संचार के प्रकार And सिद्धान्त

संचार के प्रकार

संचार का Humanीय जीवन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, संचार के बिना जीवन की परिकल्पना करना व्यर्थ है। संचार के द्वारा व्यक्तिगत And सामाजिक जीवन में सदैव निरन्तरता बनी रहती है। संचार हमारे जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है जिसे उद्देश्यों के आधार पर इसे कर्इ प्रकारों में विभाजित Reseller जा सकता है। यहाँ पर संचार के कुछ प्रमुख प्रकारों का History Reseller गया है जो संचार की प्रक्रिया को महत्वपूर्ण आधार प्रदान करते हैं-

  1. औपचारिक And अनौपचारिक संचार
  2. अन्तर्वैयक्तिक And जन-संचार
  3. मौखिक संचार
  4. लिखित संचार
  5. अमौखिक संचार
  6. अन्तर्वैयक्तिक संचार
  7. जन-संचार 

1. औपचारिक संचार 

औपचारिक संचार किसी संस्था में विचारपूर्वक स्थापित की जाती है। किस व्यक्ति को किसको और किस अन्तराल में सूचना देनी चाहिए, यह किसी संस्था में विभिन्न स्तरों पर कार्यरत् व्यक्तियों के मध्य सम्बन्धों को स्पष्ट करने में सहायक होता है। औपचारिक सन्देशवाहन के निर्माण व प्रेषण में अनेक औपचारिक सम्वाद अधिकांशत: लिखित होते हैं। यथा-संस्था का प्रधानाचार्य अपने उप प्रधानाचार्य को कुछ निर्देश प्रदान करता है, तो वह औपचारिक प्रकृति का ही समझा जायेगा क्योंकि Single उच्चाधिकारी अपने नीचे रहने वाले अधिकारियों या कर्मचारियों को निर्देश देने की ही स्थिति में बाध्य होता है। औपचारिक सन्देशवाहन के अन्य उदाहरण, आदेश, बुलेटिन आदि।

औपचारिक संचार के लाभ –

  1. औपचारिक संचार अधिकृत संचारकर्ता के द्वारा सही सूचना प्रदान की जाती है। 
  2. यह संचार लिखित Reseller में होता है। 
  3. इस संचार के द्वारा संचार की प्रतिपुष्टि होती है। 
  4. यह संचार व्यवस्थित And उचित तरीके से Reseller जाता है। 
  5. यह संचार करते समय संचार के स्तरों के क्रमों का विशेष ध्यान रखा जाता है। 
  6. इस संचार के माध्यम से संचारक की स्थिति का पता सरलता से लगाया जा सकता है। 
  7. इस संचार के द्वारा व्यावसायिक मामलों को आसानी से नियंत्रित And व्यवस्थित Reseller जा सकता है। 
  8. इस संचार के द्वारा दूर स्थापित लोगों से सम्बन्ध आसानी से स्थापित किये जा सकते हैं। 

औपचारिक संचार के दोष –

  1. इस संचार की गति धीमी होती है। 
  2. समान्यतया इस संचार में उच्च अधिकृत लोगों का अधिभार ज्यादा होता है।
  3. इस संचार में स्वतंत्र And निष्पक्ष Reseller से संचार की आलोचना नहीं की जा सकती है। 
  4. इस संचार में नियमों का शक्ति से पालन Reseller जाता है जिसंके कारण संचार में लोचशीलता के अभाव के कारण बाधा उत्पन्न होने की संभावना हमेशा विद्यमान रहती है।

2. अनौपचारिक संचार 

अनौपचारिक सन्देश वाहनों में किसी प्रकार की औपचारिकता नहीं बरती जाती। ऐसे सन्देशवाहन मुख्यत: पक्षकारों के बीच अनौपचारिक सम्बन्धों पर निर्भर करते हैं। अनौपचारिक सन्देशवाहन के कुछ उदाहरण है – नेत्रों से किये जाने वाले इशारे, सिर हिलाना, मुस्कराना, क्रोधित होना आदि। ऐसे संचार का दोष यह होता है कि सावधानी के अभाव में कभी-कभी अफवाहों को फैलाने में सहायक हो जाते हैं।


अनौपचारिक संचार के लाभ –

  1. इस संचार के द्वारा सौहार्द सम्बन्धी And संभावनाओं का आदान प्रदान होता है।
  2. इस संचार के द्वारा संचार की गति अत्यधिक तेज होती है। 
  3. इस संचार में स्वतंत्र And निष्पक्ष Reseller से विचारों का आदान-प्रदान Reseller जाता है। 
  4. इस संचार के माध्यम से सम्बन्धों में व्याप्त तनाव में कमी आती है तथा लोगों के मध्य सांवेगिक सम्बन्ध स्थापित होते हैं। 

अनौपचारिक संचार के दोष –

  1.  इस संचार के द्वारा अविश्वसनीय तथा अपर्याप्त सूचना प्राप्त होती है। 
  2. इस संचार में सूचना प्रदान करने का उत्तरदायित्व निश्चित नहीं होता है तथा सूचना किस स्तर से तथा कहाँ से प्राप्त हुर्इ है, का पता लगाना आसान नहीं होता है। 
  3. इस प्रकार का संचार ज्यादातर किसी भी संगठन में समस्या को उत्पन्न कर सकता है। 
  4. इस संचार में सूचना किस स्तर से तथा कहाँ से प्राप्त हो रही है का स्रोत निश्चित नहीं होता है जिसके कारण सूचना के उद्देश्यों की प्राप्ति तथा उसका Means निResellerण करने में कठिनार्इ का सामना करना पड़ता है।

3. लिखित संचार 

लिखित संचार Single प्रकार औपचारिक संचार है जिसमें सूचनाओं का आदान-प्रदान लिखित Reseller में Single व्यक्ति से Second व्यक्ति को प्रेषित Reseller जाता है इस संचार के द्वारा संचारक को लिखित Reseller में प्रेषित किये गये संदेश का अभिलेख रखने में आसानी होती है। लिखित संचार के द्वारा यह स्पष्ट होता है कि आवश्यक सूचना प्रत्येक व्यक्ति को समान Reseller से प्रदान की गर्इ है। Single लिखित संचार सही, सक्षिप्त, पूर्ण तथा स्पष्ट होता है। लिखित संचार के साधन-बुलेटिन, हंडै बुक्स व डायरियां, समाचार पत्र, मैगजीन, सुझाव -योजनायें, व्यावहारिक पत्रिकायें, संगठन-पुस्तिकायें संगठन-अनुसूचियाँ, नीति- पुस्तिकायें कार्यविधि पुस्तिकायें, प्रतिवेदन, अध्यादेश आदि।


लिखित संचार के लाभ –

  1. लिखित सम्प्रेषण की दशा में दोनों पक्षों की उपस्थिति आवश्यक नहीं है 
  2. विस्तृत And जटिल सूचनाओं के सम्प्रेषण के लिए यह अधिक उपयुक्त है। 
  3. यह साधन मितव्ययी भी है क्योंकि डाक द्वारा समाचार योजना, दूरभाष पर बात करने की उपेक्षा सस्ता होता है। 
  4. लिखित संवाद प्रमाण का काम करता है तथा भावी संदभोर्ं के लिए इसका उपयोग Reseller जाता है। 

लिखित संचार के दोष –

  1. लिखित संचार की दशा में प्रत्येक सूचना को चाहे वह छोटी हो अथवा बड़ी, लिखित Reseller में ही प्रस्तुत करना पड़ता है जिनमें स्वभावत: बहुत अधिक समय व धन का अपव्यय होता है। 
  2. प्रत्येक छोटी-बड़ी बात हो हमेशा लिखित Reseller में ही प्रस्तुत करना सम्भव नहीं होता।
  3. लिखित संचार में गोपनीयता नहीं रखी जा सकती।
  4. लिखित संचार का Single दोष यह भी है कि इससे लालफीताशाही का बढ़ावा मिलता है। 
  5. अशिक्षित व्यक्तियों के लिए लिखित स्म्प्रेषण कोर्इ Means नहीं रखता। मौखिक अथवा लिखित संचार के अपेक्षाकृत श्रेष्ठ कौन है, इसका निर्णय करना Single कठिन समस्या है। वास्तव में इसका उत्तर प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। 

4. मौखिक संचार 

मौखिक संचार से तात्पर्य संचारक द्वारा किसी सूचना अथवा संवाद का मुख से उच्चारण कर संवाद प्राप्तकर्ता को प्रेरित करने से है। Second Wordों में, जो सूचनायें या संदेश लिखित न हो वरन् जुबानी कहें या निर्गमित किये गये हो उन्हें मौखिक संचार कहते हैं। इस विधि के अन्तर्गत संदेश देने वाला तथा संदेश पाने वाले दोनों Single-Second के सामने होते है इस पद्धति में व्यक्तिगत पहुँच सम्भव होती है। लारेन्स एप्पले के According, ‘‘मौखिक Wordों द्वारा पारस्परिक संचार सन्देशवाहन की सर्वश्रेष्ठ कला है। मौखिक संचार के साधन – आमने सामने दिये गये आदेश, रेडियो द्वारा संचार, दूरदर्शन, दूरभाष, सम्मेलन या साभाएँ, संयुक्त विचार-विमर्श, साक्षात्कार, उद्घोषणाएँ आदि।

मौखिक संचार के लाभ –

  1. इस पद्धति से समय व धन दोनों की बचत होती है। 
  2. इसे आसानी से समझा जा सकता है।
  3. संकटकालीन अवधि में कार्य में गति लाने के लिए मौखिक पद्धति Single मात्र विधि होती है। 
  4. मौखिक संचार लिखित संचार की तुलना में अधिक लचीला होता है। 
  5. मौखिक संचार पारस्परिक सद्भाव व सद्विश्वास में वृद्धि करता है। 

मौखिक संचार के दोष –

  1. मौखिक वार्ता को बातचीत के उपरान्त पुन: प्रस्तुत करने का प्रश्न ही नहीं उठता। 
  2. मौखिक वार्ता भावी संदर्भ के लिए अनुपयुक्त है। 
  3. मौखिक सन्देशवाहन में सूचनाकर्ता को सोचने का अधिक मौका नहीं मिलता। 
  4.  खर्चीला 
  5. तैयारी की Need। 
  6. अपूर्ण। 

5. अमौखिक संचार 

यह संचार का प्रकार है जो न मौखिक होता है और न ही लिखित। इस संचार में Single व्यक्ति Second व्यक्ति को अमौखिक Reseller से सूचना को प्रदान करता है, उदाहरण के Reseller में-शारीरिक हाव-भाव के द्वारा। इस संचार में शारीरिक भाव-भंगिमा के माध्यम से संचार को प्रेषित Reseller जाता है। जिसे प्राप्तकर्ता अमौखिक Reseller से सरलता से समझ जाता है, जैसे-चेहरे का भाव, आंखों तथा हाथ का इधर-उधर घूमना आदि के द्वारा भावनाओं, संवेगों, मनोवृत्तियों इत्यादि को असानी से समझ सकता है।

अमौखिक संचार के लाभ –

  1. इस संचार के द्वारा भावनाओं, संवेगों, मनोवृत्ति इत्यादि को कम समय में प्रेषित Reseller जा सकता है।
  2. इस संचार को Single प्रकार से मौखिक संचार का प्राReseller माना जा सकता है जिसमें मौखिक संचार के लाभों And दोषों को शामिल Reseller जा सकता है। 
  3. इस संचार के द्वारा लोगों को प्रेरित, प्रभावित तथा Singleाग्रचित Reseller जा सकता है। 

6. अन्तर्वैयक्तिक संचार 

अन्र्तवैयक्तिक संचार का Single प्रकार हैं जिसमेंं संचारकर्ता तथा प्राप्तकर्ता Single-Second के आमने-सामने होते हैं। अन्र्तवैयक्तिक संचार लिखित अथवा मौखिक दोनों Reseller में हो सकते हैं, अन्र्तवैयक्तिक संचार के अन्तर्गत लिखित Reseller में यथा पत्र, डायरी इत्यादि को शामिल Reseller जा सकता है जबकि मौखिक संचार में टेलिफोन, आमने-सामने की बातचीत इत्यादि को शामिल कर सकते हैं।

अन्तर्वैयक्तिक संचार के लाभ –

  1. इस संचार के द्वारा संचारक तथा प्राप्तकर्ता के मध्य सामने-सामने के सम्बन्ध होते हैं। जिसके कारण मौखिक संदेश की गोपनीयता बनी रहती हैं। 
  2. इस संचार में संचारक तथा प्राप्तकर्ता ही होते हैं जिसके कारण सूचना अन्य लोगों के पास नहीं जा पाती है। 

7. जन-संचार 

जन-संचार संचार का Single माध्यम हैं जिसके द्वारा कोर्इ भी संदेश अनेक माध्यमों के द्वारा जन-समुदाय तक पहुंचाया जाता है। वर्तमान समय में शायद ही ऐसा कोर्इ व्यक्ति होगा जो जन-संचार माध्यम से न Added हो। सच पूछा जाय तो आज के मनुष्य का विकास जन-संचार के माध्यमों द्वारा ही हो रहा है। जन-समुदाय की Needओं को पूरा करने में जन-संचार माध्यमों की बड़ी भूमिका होती है। जो कि All वर्ग, All कार्य क्षेत्र से जुड़े लोगों तथा All उम्र के लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने में सहायता प्रदान करते हैं वर्तमान समय में जन-संचार के अनेक माध्यम हैं, जैसे-समाचार पत्र/पत्रिकायें, रेडियों, टेलीविजन, इंटरनेट इत्यादि।

संचार के सिद्धान्त 

संचार की प्रक्रिया विभिन्न अध्ययनों के बाद स्पष्ट होता है कि संचार को आधार प्रदान करने के लिए सिद्धान्त महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

  1. उद्देश्यों के स्पष्ट होने का सिद्धान्त-संचार की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि संचार के उद्देश्य विशिष्ट And स्पष्ट हों जिससे की प्राप्तकर्ता संचार के विषय को सार्थक Reseller से समझ सके। 
  2. श्रोताओं के स्पष्ट ज्ञान का सिद्धान्त-संचार की सफलता के लिए आवश्यक है कि संचारक को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि श्रोतागण कैसे हैं जिससे प्रेषित किये जाने वाले विषय को श्रोता के ज्ञान And उनकी इच्छा के According सारगर्भित Reseller में प्रेषित Reseller जा सके। इसके अतिरिक्त इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि संचार को श्रोतागण आसानी से समझ सके। 
  3. विश्वसनीयता बनाये रखने का सिद्धान्त-संचारक के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह समुदाय में अपनी स्थिति प्रास्थिति को बनाये रखे क्योंकि संचारक के द्वारा प्रेषित किये जाने वाला संचार संचारक के सामथ्र्य पर निर्भर करता है यदि समुदाय के लोगों को इस बात का विश्वास होता है कि संचारक समुदाय के हित के लिए संदेश को प्रेषित करेगा। 
  4. स्पष्टता का सिद्धान्त-संचार में प्रयोग की जाने वाली भाषा And प्रेषित किये जाने वाला विषय सरल And समReseller होना चाहिए जिससे कि संचार को लोग आसानी से समझ सके। संचार करते समय यदि क्लिष्ट भाषा का प्रयोग Reseller जाता है तो संचार की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है। 
  5. Wordों को सोच-विचार कर प्रेषित And संगठित करने का सिद्धान्त-संचारक के लिए आवश्यक होता है कि संचार में प्रयोग किये जाने वाले Wordों का चयन उचित प्रकार से Reseller जाये तथा विचारों में तारतम्यता निहित हो। यदि संचार करते समय Wordों का चयन कुछ सोच-समझकर नहीं Reseller जाता है और Wordों के मध्य तारतम्यता तथा SingleResellerता नहीं होता है तो प्राप्तकर्ता संचार के उद्देश्यों को समझ नहीं पाता है। 
  6. सूचना की पर्याप्तता का सिद्धान्त-संचारक के लिए यह आवश्यक होता है कि संचार करते समय सूचना पर्याप्त Reseller में प्रेषित की जाये इसके लिए यह भी आवश्यक होता है कि सूचना किस स्तर पर प्रेषित की जा रही है। सूचना की अपर्याप्तता के कारण प्राप्तकर्ता संचार के उद्देश्यों का Means निResellerण विपरित लगा सकता है जिसके कारण संचार के असफल होने की संभावना उत्पन्न हो जाती है। 
  7. सूचना के प्रसार का सिद्धान्त –संचार की सफलता के लिए आवश्यक होता है कि सूचना का प्रसार सही समय पर, सही परिपेक्ष््र य में, सही व्यक्ति को उचित कारण के संदर्भ में पे्रषित की जाये तथा सूचना प्रसारित करते समय इस तथ्य का भी ध्यान रखा जाय कि सूचना प्राप्तकर्ता कौन है यदि संचारक सूचना प्रेषित करते समय, परिप्रेक्ष्य, उचित व्यक्ति तथा स्पष्ट उद्देश्य का ध्यान नहीं रखता है तो संचार असफल हो जाता है। 
  8. सघनता And सम्बद्धता का सिद्धान्त-सफल संचार के लिए आवश्यक है कि सूचना में सघनता And सम्बद्धता का तत्व विद्यमान हो, सूचना को प्रदान किये जाने का क्रम 666 क्रियान्वित Reseller जा सके। 
  9. Singleाग्रता का सिद्धान्त-संचार की सफलता के लिए आवश्यक है कि संचारक And प्राप्तकर्ता दोनों Singleाग्रचित्त होकर कार्य करे। संचारक के लिए आवश्यक है कि संचार प्रेषित करते समय अपनी Singleाग्रता को भंग न होने दे तथा प्राप्तकर्ता के लिए भी यह आवश्यक होता है कि वह Singleाग्रचित होकर के प्रेषित संचार का Means निResellerण करे। 
  10. समयबद्धता का सिद्धान्त-संचार तभी सफल हो सकता है जब वह उचित तथा निश्चित समय पर Reseller जाये। संचार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि संचार करते समय संचार के उद्देश्यों की प्राप्ति सही समय पर हो पायेगी अथवा नहीं। 
  11. पुर्ननिर्देशन का सिद्धान्त-संचार की प्रक्रिया तभी सफल हो सकती है जब प्राप्तकर्ता प्रेषित संदेश का सही And उचित Means निResellerण करके संचारक को प्रतिपुष्टि प्रदान करें क्योंकि प्रतिपुष्टि के द्वारा संचारक को इस बात का ज्ञान होता है कि जिस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु संदेश को प्रेषित Reseller गया है वह सफल हुआ है अथवा नहींं।

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