श्रमिक शिक्षा क्या है ?

किसी भी विकासशील देश में आर्थिक विकास को तेजी से बढ़ाने के Single साधन के Reseller में श्रमिकों की शिक्षा के महत्व को कम नहीं Reseller जा सकता। यह ठीक ही कहा गया है कि ‘‘किसी औ़द्योगिक दृष्टि से विकसित देश का बड़ा पूंजी भण्डार इसकी भौतिक सामग्री में नहीं वरन् जांचे हुए निष्कर्शो से इकट्ठा किये गये ज्ञान तथा उस ज्ञान को प्रभावशाली ढंग से प्रयोग करने की योग्यता And प्रशिक्षण में होता है।’’ अत: औद्योगिक शान्ति को कायम रखने, स्वस्थ श्रमिक प्रबन्धक सम्बन्धों को बढ़ाने, नागरिकता के गुणों को बढ़ाने, अधिकारों And जिम्मेदारियों की जानकारी बढ़ाने, श्रमिकों की Singleता को मजबूत बनाने, आदि की Need श्रमिक शिक्षा के Single व्यापक और विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को जरूरी बनाते हैं। श्रमिकों की शिक्षा के प्रति Meansशास्त्रियों का दृष्टिकोण कुछ समय से बहुत बदल गया है तथा हाल के अनुसन्धानों द्वारा शिक्षा या निपुणता निर्माण में विनियोग का आय की वृद्धि तथा आर्थिक विकास में योगदान का अलग से अनुमान लगाने की कोशिश की गयी है। इस सम्बन्ध में शुरूआत की कोशिश शुल्ज, डेनिसन, टिम्बरजेन तथा कुछ Second Meansशास्त्रियों द्वारा की गयी है।

उद्योग की तरह आधुनिक Means में शिक्षा भी 19वीं शताब्दी के First नहीं थी। सामान्य Reseller से पढ़ना और लिखना वैयक्तिक उपलब्धियां थीं। कारीगर, लुहार, आदि के व्यवसाय ज्यादातर पैतृक हुआ करते थे। गांवों में खेती खास व्यवसाय था। उच्च शिक्षा केवल धर्म से सम्बन्ध रखती थी। इस परिस्थिति में ही भारत में आधुनिक शिक्षा और उद्योग की शुरूआत हुर्इ। इस देश में औद्योगीकरण 1850 के लगभग शुरू हुआ और इस तरह श्रमिकों के Single नये वर्ग का उदय हुआ जिसकी कोर्इ ऐतिहासिक परम्परा नहीं थी। इस वर्ग की Single सामान्य विशेषता आधुनिक Means में इसकी निरक्षरता थी क्योंकि यह उन लोगों में से कायम हुआ था जो गांवों में खेती करते थे। भारत में शाही श्रम आयोग (1930-31) ने लिखा था कि ‘‘ज्यादातर औद्योगिक श्रमिक निरक्षर है। यह Single ऐसी अवस्था है जो किसी भी Second औद्योगिक महत्व के देश में नहीं पायी जाती।’’ अत: आयोग ने यह सुझाव दिया था कि भारत में औद्योगिक श्रमिकों की शिक्षा पर खास ध्यान दिया जाना चाहिए। बहुत सी दूसरी समितियों And विशेषज्ञों ने भी इसके महत्व पर जोर दिया है। भारत में आधुनिक परिस्थितियों ने खास तौर पर आजादी के बाद हुर्इ प्रगति ने श्रमिकों की शिक्षा की Need को और भी बढ़ा दिया है।

1956 में श्रमिकों की शिक्षा का Single कार्यक्रम अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा शुरू Reseller गया जिसका उद्देश्य विभिन्न देशों को राष्ट्र निर्माण के कार्य में श्रमिकों को सक्रिय And जिम्मेदार साझेदारों के Reseller में प्रशिक्षित करने के उनके प्रयत्नों को प्रोत्साहित करना था। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 24 श्रमिक संघ नेताओं And 13 देशों से Second अनुभवी व्यक्तियों में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय द्वारा तकनीकी सहायता के विस्तृत कार्यक्रम की Resellerरेखा के अन्तर्गत तथा तकनीकी सहायता पर नियुक्त डेनिश नेशनल कमेटी And डेनमार्क की दूसरी रुचि लेने वाली संस्थाओं के सहयोग से संगठित श्रमिकों की शिक्षा के सेमिनार में भाग लिया। इस सेमिनार में भारत में हिन्द मजदूर सभा के कोषाध्यक्ष तथा मंसै ूर में प्छज्न्ब् के जनरल सेक्रेटरी ने भाग लिया। सेमिनार में भाग लेने वाले लोगों का श्रमिक शिक्षा का विचार अलग-अलग था, जो उनकी अलग परिस्थितियों और प्रशिक्षण के मुताबिक था। कुछ की राय में श्रमिक शिक्षा का आशय Single श्रमिक संघवादी के Reseller में श्रमिकों की प्रशिक्षित Reseller जाना था। Second लोग इसका Means श्रमिकों के लिए, जिन्हें औपचारिक Reseller से स्कूल में पढ़ने का मौका नहीं मिला था, मौलिक शिक्षा बढ़ाना था। कुछ और लोगों की राय में इसका आशय समाज के Single सदस्य तथा Single उत्पादक, उपभोक्ता अथवा नागरिक के Reseller में श्रमिक की शिक्षा था। सेमिनार का Single महत्वपूर्ण लक्षण इन विभिन्न दृष्टिकोणों को मिलाकर श्रमिक शिक्षा का Single ऐसा विचार प्रस्तुत करना था जो भाग लेने वाले All प्रतिनिधियों को मान्य हो। वास्तव में इस तरह के Single अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार के संगठन का विचार उस समय आया जब श्रमिक शिक्षा के बारे में बढ़ती हुर्इ रुचि न केवल औद्योगिक दृष्टि से अल्प विकसित देशों में दिखायी दे रही थी वरन् उन देशों में भी बहुत जोर पर थी जहां इस तरह का शिक्षा कार्यक्रम कुछ समय से चलाया जा रहा था तथा विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न स्तरों पर श्रमिक शिक्षा के विचारों, दृष्टिकोणों And तरीकों का मूल्यांकन करने का प्रयत्न Reseller जा रहा था। कुछ नयी परिस्थितियों ने श्रमिक शिक्षा के महत्व को और अधिक बढ़ा दिया था जैसे श्रमिकों का बढ़ता हुआ महत्व उनकी जिम्मेदारियां औद्योगिक राष्ट्रीय And अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में श्रमिक संघों का बढ़ता हुआ महत्व, श्रमिकों के लिए शिक्षा के बढ़ते हुए अवसर, आदि।

श्रमिक शिक्षा क्या है ? 

श्रमिक शिक्षा पर विचार देश में प्रचलित शिक्षा के सन्दर्भ में Reseller जाता है, किन्तु स्कूल व कॉलेजों में दी जाने वाली शिक्षा और श्रमिक शिक्षा में Single आवश्यक अन्तर यह है कि जब First की तरह शिक्षा शैक्षिक सिद्धान्तों और व्यवहारों से जो हमें 46 आज तक विरासत में मिले हैं, सम्बन्धित है, श्रमिक शिक्षा श्रमिकों की Needओं के According होती है। इन Needओं में स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाये जाने वाले कुछ पाठ्यक्रम शामिल हो सकते हैं तथा सफेदपोष श्रमिकों को तो कुछ परीक्षाओं को पास करना भी आवश्यक होता है, किन्तु व्यापक Reseller से सामान्य शिक्षा और श्रमिक शिक्षा में Single अन्तर रेखा खींची जा सकती है।

सामाजिक विज्ञानों की एन्साइक्लोपीडिया के According, ‘‘श्रमिक शिक्षा दूसरी तरह की प्रौढ़ शिक्षा के विपरीत, श्रमिक को अपने सामाजिक वर्ग के Single सदस्य के Reseller में न कि Single व्यिक्क्त के Reseller में अपनी समस्याओं को हल करने में सहायता देती है।’’ पूरी तरह से श्रमिक-शिक्षा श्रमिक की शैक्षिक Needओं को विचार में लेती है, जैसे व्यक्तिगत विकास के लिए व्यक्ति के Reseller में कुशलता And उन्नति के लिए श्रमिक के Reseller में, Single सुखी And समन्वित सामाजिक जीवन के लिए Single नागरिक के Reseller में तथा श्रमिक वर्ग के Single सदस्य के नाते उसके हितों की रक्षा करने के लिए किसी श्रमिक संघ के Single सदस्य के Reseller में शिक्षा सम्बन्धी Needएं। दिसम्बर 1957 में जिनेवा में अन्तर्राश्ट्ीय श्रम संगठन ने श्रमिक शिक्षा के विशेषज्ञों की Single सभा की जिसने बदलती हुर्इ सामाजिक, आर्थिक And तकनीकी प्रगति के सन्दर्भ में यह महसूस Reseller कि श्रमिक शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य, जहां कहीं भी और जिस दशा या स्थिति में श्रमिक रहते हों, उनका सुधार करना है।

बहुत से अल्प-विकसित देशों में यह महसूस Reseller जाता है कि Single वास्तविक श्रमिक आन्दोलन के लिए सजग, शिक्षित And आत्मनिर्भर श्रमिक संघवादियों का विकास करने तथा बाहरी नेताओं का चुनाव करने के बजाय श्रमिकों में से ही नेता तैयार करने की दृष्टि से श्रमिकों के लिए खास तरह के शिक्षा कार्यक्रमों की Need है। भारत में श्रमिक शिक्षा कार्यक्रम में दूसरी बातों या गुणों के साथ-साथ यह बातें भी होनी चाहिए : (अ) श्रमिक संघ के पदाधिकारियों, सदस्यों And प्रतिनिधियों को संगठन के उद्देश्य बनावट And ढं़गों में, उनके कानूनी अधिकारों And जिम्मेदारियों से सम्बन्धित सामाजिक कानूनों And व्यवहार में, तथा उनके हितों पर असर डालने वाली बुनियादी And सामाजिक समस्याओं में प्रशिक्षित करना, (ब) सभाओं And दूसरी श्रमिक संघीय कार्यवाहियों में हिस्सा लेने की सुविधा के लिए श्रमिकों को लिखित And मौखिक विचार व्यक्त करने की शिक्षा देना और (स) लगातार अध्ययन के लिए उन्हें प्रशिक्षित करना।

भारत में श्रमिक-शिक्षा के उद्देश्य 

1958 में शुरू की गयी श्रमिक शिक्षा उद्देश्य श्रमिकों को श्रमिक-संघ विचारधारा, सामूहिक सौदेबाजी तथा सम्बन्धित मामलों में निर्देशन देना जिससे जनतन्त्रीय आधार पर ठोस श्रमिक-संघ आन्दोलन के विकास को मदद मिल सके। योजना का लक्ष्य ‘‘कुछ समय के अन्दर सामान्य शिक्षा की कमी होते हुए भी, Single अच्छी जानकारी रखने वाले, Creationत्मक And जिम्मेदार औद्योगिक श्रमिक वर्ग को तैयार करना है जो श्रमिक संघों का ठीक-ठीक संगठन And संचालन कर सके, बाहरी सहायता पर व्यापक Reseller से निर्भर न रहे और स्वाथ्र्ाी तत्वों द्वारा “ाोशित न Reseller जा सके।’’ सामान्य Reseller से श्रमिक-शिक्षा योजना के उद्देश्य And लक्ष्य इस प्रकार है। : (1) बेहतर प्िर शक्षण पाये हुए And ज्यादा प्रबुद्ध सदस्यों द्वारा ज्यादा मजबूत व प्रभावशाली श्रमिक-संघों का विकास करना; (2) श्रमिक वर्ग में से ही नेताओं को तैयार करना तथा श्रमिक-संघों के संगठन और प्रशासन में जनतन्त्रीय तरीकों और परम्पराओं को बढ़ाना; (3) संगठित श्रमिकों को Single जनतन्त्रीय समाज में अपना ठीक स्थान पाने तथा अपने सामाजिक And आर्थिक कार्यो और जिम्मेदारियों को प्रभावपूर्ण ढंग से पूरा करने में समर्थ बनाना; तथा (4) श्रमिकों को अपने आर्थिक वातावरण की समस्याओं तथा संघों के सदस्य And कर्मचारियों के Reseller में नागरिकों के Reseller में अपने विशेषाधिकारों And जिम्मेदारियों की ज्यादा जानकारी कराना। इस प्रकार आज के प्रमुख उद्देश्यों में राष्ट्र के आर्थिक And सामाजिक विकास में श्रमिकों के सब वर्गो को विवेकपूर्ण सहयोग के लिए तैयार करना, उनके अपने बीच में विस्तृत समझ का विकास करना तथा श्रमिकों के बीच नेतृत्व को प्रोत्साहन देना, आदि महत्वपूर्ण है।

Single विकासशील देश में इन उद्देश्यों And लक्ष्यों का बहुत महत्व होता है। कोर्इ भी श्रमिक जो अपने अधिकारों And कर्तव्यों दोनों को समझता है, उद्योग और राष्ट्र दोनों के लिए उपयोगी हो सकता है। इस प्रकार की शिक्षा से विकसित होने वाला दृष्टिकोण उत्पादकता बढ़ाने, अनुपस्थिति कम करने, मजबूत And स्वस्थ श्रमिक संघ तैयार करने तथा अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों का क्षेत्र बढ़ाने में बहुत सहायक होगा। इस तरह शिक्षा की यह योजना Single आत्म निर्भर And उचित जानकारी रखने वाला श्रमिक वर्ग, जो अपने हित के विषय में सोचने में समर्थ हो तथा अपने आर्थिक तथा सामाजिक वातावरण के प्रति सजग हो, तैयार कर सकेगी।

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