व्यक्तित्व विकार का Means, परिभाषा, लक्षण, कारण And प्रकार

व्यक्तित्व विकृति Single प्रकार से अपरिपक्व व्यक्तित्व विकास का परिणाम होता है। इसमें ऐसे लोगों को सम्मिलित Reseller जाता है, जिनके व्यक्तित्व के शीलगुण तथा उनका विकास इतने अपरिपक्व And विकृत ढंग से होता है कि ये अपने वातावरण की प्राय: प्रत्येक वस्तु, घटना, परिस्थिति, व्यक्ति के बारे में Single दोषपूर्ण प्रत्यक्षण And चिन्तन करते हैं। परिणामस्वReseller इनमें कुसमायोजनशीलता इतनी अधिक बढ़ जाती है कि Second लोगों के लिये इनका व्यवहार असह्य हो जाता है। वे इनके व्यवहार को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। इस प्रकार व्यक्तित्व विकृति न तो तनावपूर्ण परिस्थिति के प्रति Single प्रकार की प्रतिक्रिया है और न ही यह चिंता के प्रति Single तरह के बचाव का प्रतिफल है, बल्कि यह तो मूल Reseller से शीलगुणों की विकृति है जो वातावरण को दोषपूर्ण या कुसमायोजित ढंग से प्रत्यक्षण करने, चिन्तन करने और उसके प्रति प्रतिक्रिया करने की प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है।

  1. कारसन And बुचर के According- ‘‘सामान्यत: व्यक्तित्व विकृतियाँ व्यक्तिगत शीलगुणों का Single उग्र या अतिरंजित प्राReseller है जो व्यक्ति को उत्पाती व्यवहार विशेषकर अंतवैयिक्तिक प्रकृति के उत्पाती व्यवहार को करने के लिये Single झुकाव उत्पन्न करता है;‘
  2. DSM-IV के According-’’व्यक्तित्व विकृति व्यवहार And आन्तरिक अनुभूतियों का Single ऐसा स्थायी पैटर्न होता है जो व्यक्ति की संस्कृति की प्रत्याशाओं से लम्बे Reseller से विचलित होता है, अनम्य And व्यापक होता है, जिसकी शुरूआत किशोरावस्था या आरंभिक बाल्यावस्था में होता है जो विशेष समय तक स्थिर रहता है तथा जिससे तकलीफ And हानि होती है।’’
  3. डेविसन तथा नील के Wordों में- ‘‘व्यक्तित्व विकृति विकृतियों का विषम समूह है, जो वैसे व्यवहारों And अनुभूतियों का स्थायी And अनम्य पैटर्न होता है, जो सांस्कृतिक प्रत्याशाओं से विचलित होता है और तकलीफ या हानि पहुँचाता है।’’

व्यक्तित्व विकृति के विभिन्न परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि व्यक्तित्व विकृति से ग्रस्त होने पर व्यक्ति का व्यवहार इतना अधिक विचलित हो जाता है कि उसके बारे में किसी प्रकार का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है और न ही Second लोग उनके व्यवहार का कोर्इ ठीक-ठीक Means निकाल पाते हैं। परिणामस्वReseller ऐसा व्यवहार लोगों को मान्य नहीं होता है। पाठकों, आपकी जानकारी के लिये बता दें कि व्यक्तित्व विकृति में व्यक्ति सामान्यत: किसी प्रकार की चिन्ता या अवसाद से ग्रस्त नहीं रहता है। किसी विकृति को व्यक्तित्व विकृति की श्रेणी में रखने के लिये यह आवश्यक है कि विकृत शीलगुण का स्वReseller चिरकालिक हो। व्यक्तित्व विकार के All लक्षण प्राय: किशोरावस्था तक स्पष्ट Reseller से दिखायी देने लगते हैं और वयस्कावस्था में भी बने रहते हैं, किन्तु मध्यावस्था अथवा प्रौढ़ावस्था के आते-आते लगभग समाप्त हो जाते है। कारसन And बुचर ने व्यक्तित्व विकृति को चारित्रिक विकृति का नाम दिया है।

व्यक्तित्व विकृति के लक्षण या व्यक्तित्व विकृति का नैदानिक स्वReseller-

जैसा कि आप जानते है मनोवैज्ञानिकों And मनश्चिकित्सकों द्वारा व्यक्तित्व विकृति के अनेक प्रकार बताये गये है और प्रत्येक प्रकार की अपनी कुछ अलग विशेषतायें हैं, किन्तु फिर भी कुछ विशेषतायें ऐसी है, जो All प्रकार की व्यक्तित्व विकृतियों में पायी जाती है। 1) विघटित व्यक्तिगत संबंध 2) चिरकालिक दु:खदायी व्यवहार 3) नकारात्मक नतीजा 4) Single ही कुसमायोजी व्यवहार को दोहराना 5) व्यवहार परिवर्तन के विरोधी

  1. विघटित व्यक्तिगत संबंध- व्यक्तित्व विकृति की पहली सामान्य विशेषता है-विघटित व्यक्तिगत संबंध। व्यक्तित्व विकृति वाले लोगों के व्यक्तिगत संबंध संतोषजनक नहीं होते हैं। इनके व्यक्तिगत संबंध इतने खराब रहते हैं कि Second लोग प्राय: इनसे नाराज रहते हैं और साथ ही साथ इनसे घबराये भी रहते है। 
  2. चिरकालिक दु:खदायी व्यवहार- व्यक्तित्व विकृति वाले लोगों का व्यवहार दूसरों के लिये अत्यन्त कष्टदायी होता है। इस प्रकार के व्यवहार का स्वReseller चिरकालिक होता है। 
  3. नकारात्मक नतीजा- व्यक्तित्व विकृति वाले लोगों को अपनी जिन्दगी की घटनाओं के प्राय: नकारात्मक परिणामों का ही सामना करना पड़ता है। जैसे- व्यसन संबंधी विकृतियाँ, विवाह-विच्छेद, विभिन्न प्रकार की आपराधिक गतिविधियाँ इत्यादि। प्रसिद्ध विद्वान् खानृजिनय तथा ट्रोस ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि व्यक्तित्व विकृति के All प्रकारों में व्यक्ति में नारकोटिक के प्रति Single प्रकार की मजबूत निर्भरता पायी जाती है। 
  4. Single ही कुसमायोजी व्यवहार को दोहराना- Single ही कुसमायोजी व्यवहार को दोहराना व्यक्तित्व विकृति की Single अत्यन्त महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके अन्तर्गत व्यक्तित्व विकार से ग्रस्त व्यक्ति अपने कुसमायोजी या दोषपूर्ण व्यवहार से कुछ सीखे बिना लगातार उसे दोहराता रहता है। इस प्रकार व्यक्तित्व विकृति में जो भी विशेष शीलगुण पैटर्न विकसित होता है, जैसे-द्वेष करना, शक करना आदि, वह प्रत्येक परिस्थिति में व्यक्ति के द्वारा दिखलाया जाता है। 
  5. व्यवहार परिवर्तन के विरोधी- व्यक्तित्व विकृति वाले लोग व्यवहार परिवर्तन के नितान्त विरोधी होते हैं। ये समय परिस्थिति के According अपने व्यवहार में किसी भी प्रकार का विवेकपूर्ण परिवर्तन करना नहीं चाहते। इसके साथ ही Second लोगों को भी इस बात का अवसर नहीं देते हैं कि वे उसके व्यवहार में किसी भी प्रकार के परिवर्तन की माँग कर सके। 
    उपरोक्त description से यह स्पष्ट है कि व्यक्तित्व विकृति की कुछ ऐसी सामान्य विशेषतायें हैं, जिनसे इनके स्वReseller को समझने में सहायता मिलती हैं। नीचे व्यक्तित्व विकृति का Single उदाहरण दिया जा रहा है जिससे इन विशेषताओं को और ज्यादा ढंग से समझा जा सकता है। ‘‘ मार्क नाम के Single 22 साल के युवक को मनोवैज्ञानिक उपचारगृह में लाया गया, जिस पर चोरी And डकैती का मुकदमा चलने वाला था। उस युवक की केस स्टडी से पता लगा कि वह 9 वर्ष की आयु से ही अनेक बार सामाजिक Reseller से घिनौने कार्य करने के कारण जेल जा चुका था। इसके साथ-साथ वह कर्त्तव्यत्यागिता और अपने विध्वंSeven्मक व्यवहार के कारण विद्यालय से भी निकाल दिया गया था। अनेक बार वह कर्इ दिनों And सप्ताहों के लिये घर से भाग गया था। आज तक वह लम्बे समय तक टिककर कोर्इ भी नौकरी नहीं कर पाया। उसके मित्र भी न के बराबर थें। इसलिये उसे अकेला ही कहा जा सकता है। शुरूआत में तो वह किसी भी व्यक्ति से अत्यन्त आकर्षक ढंग से मिलता था किन्तु तत्काल ही वह अपने आक्रामक And आत्म-उन्मुखी व्यवहार के कारण उनसे झगड़ लेता था।’’ पाठकों, उपर्युक्त केस उदाहरण में व्यक्तित्व विकार के प्राय: All लक्षण स्पष्ट Reseller से दिखायी दे रहे हैं।

    व्यक्तित्व विकृति के कारण –

    व्यक्तित्व विकृति के मूल Reseller से क्या-क्या कारण है, इस पर मनोवैज्ञानिकों And मनश्चिकित्सकों द्वारा ज्यादा प्रकाश नहीं डाला गया है। व्यक्तित्व विकृति के कारणों के संबंध में पर्याप्त अध्ययन And जानकारी न होने के प्रमुख कारण हैं-

    1. इसका First कारण तो यह है कि व्यक्तित्व विकार की औपचारिक Reseller से स्वतंत्र पहचान 1952 के First नहीं हो पायी थी। अत: इस क्षेत्र में आवश्यक शोध अध्ययन की कमी है। 
    2. दूसरा प्रमुख कारण यह है कि व्यक्तित्व विकृतियों का स्पष्ट Reseller से निदान करने में लोगों को अभी भी अनेक प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और इस विकृति से ग्रसित लोग अभी भी उपचार हेतु मनोवैज्ञानिक उपचारगृह में नहीं जाते हैं। 
      इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यक्तित्व विकृति के कारणों को लेकर अनेक कठिनाइयाँ मौजूद है, किन्तु इसके बावजूद अन्य मनोविकारों के समान ही व्यक्तित्व विकृति के भी तीन प्रमुख कारण बताये गये हैं। 1. जैविक कारक 2. मनोवैज्ञानिक कारक 3. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक

      1. जैविक कारक- मनोवैज्ञानिकों And मनश्ििचकित्सकों ने व्यक्तित्व विकृति के कारणों में जैविक कारकों की भूमिका को प्रधान Reseller से स्वीकार Reseller है। विभिन्न प्रयोगात्मक अध्ययनों के According बच्चों में विशेष तरह की शरीर संगठनात्मक प्रतिक्रिया प्रवृत्ति जैसे-अति संवेदनशीलता उच्च अथवा  जीवन शक्ति आदि कारणों से Single विशेष प्रकार की व्यक्तित्व विकृति के उत्पन्न होने की संभावना रहती है। केन्टलर And गु्रयनवर्ग के According स्थिर व्यामोही व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करने में जैविक या शारीरिक कारकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। लोरैन्गर And उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन के आधार पर ज्ञात Reseller कि सीमान्त रेखीय व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करने में शारीरिक कारण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते है। इसके साथ ही समाजविरोधी व्यक्तित्व विकृति की उत्पत्ति में भी जैविक कारकों को महत्त्वपूर्ण माना गया है।
      2. मनोवैज्ञानिक कारक- व्यक्तित्व विकृति में जैविक कारकों के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक कारकों की भूमिका को भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है। इन मनोवैज्ञानिक कारकों में प्रारंभिक सीखना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस मत के According बच्चे बचपन में ही अपने आसपास के वातावरण से कुछ-कुछ अनुक्रियाओं को कुछ खास ढंग से करना सीख जाते हैं, जो आगे चलकर व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करती है। वैसे तो All प्रकार की व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करने में मनोवैज्ञानिक कारक महत्त्वपूर्ण है, किन्तु इनमें भी समाज-विरोधी व्यक्तित्व विकार के कारणों में इनकी विशिष्ट भूमिका को स्वीकार Reseller गया है।
      3. सामाजिक -सांस्कृतिक कारक-जैविक And मनोवैज्ञानिक कारकों की तरह सामाजिक-सांस्कृतिक कारक किस प्रकार व्यक्तित्व विकृतियों को उत्पन्न करते हैं यह बात अभी अधिक स्पष्ट नहीं हो पायी है। इस संबंध में और अधिक शोध अध्ययन की Need है। मनोवैज्ञानिकों का ऐसा मत है कि आधुनिक आरामतलब जिन्दगी, तुरंत संतुष्टि, समस्याओं का तुरंत समाधान होना आदि के कारण व्यक्ति में उत्तरदायित्वहीनता And आत्मकेन्द्रितता जैसे लक्षण विकसित होने लगते है, जो धीरे-धीरे व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करती हैं। फिर भी इस संबंध में निश्चित Reseller से कुछ कहने के लिये पर्याप्त शोध की Need है।

      इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यक्तित्व विकृति के कारणों में जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक And सांस्कृतिक कारकों की भूमिका महत्वपूर्ण है, किन्तु इस क्षेत्र में पर्याप्त शोध अध्ययन की Need आज भी निरन्तर अनुभव की जा रही है।

      व्यक्तित्व विकृति के निदान में सम्मिलित समस्यायें-

      व्यक्तित्व विकृतियों का ठीक-ठीक निदान करने में अनेक तरह की समस्यायें है।

      1. व्यक्तित्व विकृतियों के निदान में पहली समस्या तो पर्याप्त शोध अध्ययनों का अभाव है, जिसके कारण नैदानिक मनोवैज्ञानिक And मनश्चिकित्सक इनके निदान हेतु वस्तुनिष्ठ कसौटी नहीं बना पाये हैं। इसके अतिरिक्त विद्वानों ने व्यक्तित्व विकृति को स्पष्ट Reseller से परिभाषित भी नहीं Reseller है, जिसके कारण इनके निदान में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 
      2. विडगर तथा फ्रान्सेस का मत है कि व्यक्तित्व विकारों की ठीक-ठीक पहचान करना इसलिये भी कठिन हो जाता है, क्योंकि व्यक्तित्व विकृति के विभिन्न प्रकार परस्पर अनन्य नहीं है। कहने का आशय यह है कि Single ही व्यक्ति में व्यक्तित्व विकार के Single से अधिक लक्षण देखने को मिलते है। इस कारण यह निश्चित करना कठिन हो जाता है कि व्यक्तित्व विकारों में से कौन सा प्रकार है। 
      3. फ्रान्सेस के Wordों में ‘‘ व्यक्तित्व विकृतियों में पाये जाने वाले व्यक्तित्व शीलगुण का स्वReseller विमीय होने के कारण वे सामान्य अभिव्यक्ति से लेकर रोगात्मक अभिव्यक्ति दोनों में पाये जाते हैं।’’ कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसे शीलगुण कुछ मात्रा में सामान्य व्यक्तियों में भी देखने को मिलते हैं, जिसके कारण वास्तविक व्यक्तित्व विकृति का निदान करना अत्यन्त कठिन हो जाता है। 
      4. व्यक्तित्व विकृतियों के निदान में Single और कठिनार्इ यह है कि इन विकृतियों को वस्तुनिष्ठ व्यवहारों के आधार पर परिभाषित नहीं Reseller जाता है बल्कि अनुमानित शीलगुणों के आधार पर परिभाषित Reseller जाता है। इस कारण भी इनके निदान में कठिनार्इ का सामना करना पड़ता है।

      इस प्रकार आप समझ गये होंगे कि व्यक्तित्व विकृति के निदान या पहचान में नैदानिक मनोवैज्ञानिकों And मनश्चिकित्सकों को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे निदान की विश्वसनीयता बुरी तरह प्रभावित होती है। इन समस्याओं को दूर करने के लिये यह आवश्यक है कि व्यक्तित्व विकृति के निदान हेतु वस्तुनिष्ठ कसौटी तैयार की जाये।

      व्यक्तित्व विकृति के प्रकार-

      असामान्य व्यवहारों के नैदानिक वर्गीकरण तंत्र-DSM-IV TR (2000) में व्यक्तित्व विकृति को 10 श्रेणियों में वर्गीकृत Reseller गया है,

      1. स्थिर व्यामोही व्यक्तित्व विकृति (Pararoid personality disorder) 
      2. स्किजोआयड व्यक्तित्व विकृति (Schizaid personality disorder) 
      3. स्किजोटाइपल व्यक्तित्व विकृति (Schizotypal personality disorder) 
      4. हिस्ट्रओनिक व्यक्तित्व विकृति (Histrionic Personality disorder) 
      5. आत्ममोही व्यक्तित्व विकृति (Narcissistic personality disorder) 
      6. समाजविरोधी व्यक्तित्व विकृति (Antisocial personality disorder) 
      7. सीमान्तरेखीय व्यक्तित्व विकृति (Boarderline personality disorder) 
      8. परिवर्जित व्यक्तित्व विकृति (Avoidant personality disorder)
      9. अवलम्बित व्यक्तित्व विकृति (Dependent personality disorder)
      10. मनोग्रस्ति-बाध्यता व्यक्तित्व विकृति (Obsessive-compulsive personality disorder)

      इन 10 तरह की व्यक्तित्व विकृतियों को समूह अ, समूह ब And समूह स में बाँटा गया है,
      1. समूह अ –समूह अ में तीन व्यक्तित्व विकृतियों को रखा गया है-

      1. स्थिर व्यामोही व्यक्तित्व विकृति
      2. स्किजोआयड व्यक्तित्व विकृति
      3. स्किजोटाइपल व्यक्तित्व विकृति

      इन तीनों प्रकार के व्यक्तित्व विकृतियों के व्यवहार में प्राय: समानता देखने को मिलती है। इस प्रकार की व्यक्तित्व विकृतियों में व्यक्ति का व्यवहार विचित्र, असामाजिक And अनियमित होता है।
      2. समूह ब – इस समूह में चार व्यक्तित्व विकृतियों को रखा गया है-

      1. हिस्ट्रीओनिक व्यक्तित्व विकृति 
      2. आत्ममोही व्यक्तित्व विकृति 
      3. समाजविरोधी व्यक्तित्व विकृति 
      4. And सीमान्तरेखीय व्यक्तित्व विकृति

      इन चारों विकृतियों को Single ही समूह में इसलिये रखा गया है, क्योंकि इन चारों ही व्यक्तित्व विकारों में रोगी का व्यवहार सांवेगिक, नाटकीय And सनकी जैसा होता है।
      3. समूह स – समूह स में तीन व्यक्तित्व विकृतियों को रखा गया है-

      1. परिवर्जित व्यक्तित्व विकृति 
      2. अवलम्बित व्यक्तित्व विकृति 
      3. मनोग्रस्ति बाध्यता व्यक्तित्व विकृति

      चिन्ता या डर लक्षण के आधार पर इन तीनों विकारों को Single श्रेणी में रखा गया है। यद्यपि मनोग्रस्तिबाध्यता विकृति में रोगी ज्यादा चिन्तित या भयग्रस्त नहीं रहता है।

      1. स्थिर व्यामोही व्यक्तित्व विकृति- इस प्रकार के व्यक्तित्व विकृति वाले लोगों में शक, अतिसंवेदनशीलता, र्इष्र्या, जिद जैसे शीलगुणों की प्रधानता होती है। ऐसे लोग तर्क के आधार पर अपने प्रत्येक कार्य को और अपने को निर्दोष साबित करने का प्रयास करते है, जबकि इनके कार्य And व्यवहार प्राय: हर तरह से दोषपूर्ण होते हैं। ऐसे व्यक्तियों में अपने पद And प्रतिष्ठा के प्रति अत्यधिक सजगता देखने को मिलती है। जो लोग पद-प्रतिष्ठा में इनसे निम्नस्तर के होते हैं उनके प्रति ये घृणा का भाव रखते हैं और जो इनसे ऊँचे पद वाले होते हैं, उनके प्रति इनके मन में र्इष्र्या का भाव होता है। 
      2. स्किजोआयड व्यक्तित्व विकृति- इस प्रकार की व्यक्तित्व विकृति वाले लोग सामाजिक संबंध बनाने में अक्षम होते हैं और उनकी इसमें अभिरूचि भी नहीं होती है। इनमें सामाजिक कुशलता की कमी पायी जाती है। इस प्रकार के व्यक्तित्व विकार वाले व्यक्ति अपनी भावनाओं को भी ठीक प्रकार से अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं। इसलिये इन्हें Singleान्तप्रिय And असामाजिक माना जाता है। 
      3. स्किजोटाइपल व्यक्तित्व विकृति- इस प्रकार के व्यक्तित्व विकृति वाले व्यक्तियों का प्रधान लक्षण यह है कि इनके प्रत्यक्षण, चिन्तन And बातचीत करने में सनकपना या, झक्कीपना बहुत अधिक होता है। ऐसे व्यक्ति भी Singleान्तप्रिय And अत्यन्त संवेदनशील होते हैं। वास्तविकता का ज्ञान होते हुये भी ऐसे लोगों में व्यक्तिगत तथा अन्धविश्वासयुक्त चिन्तन की प्रधानता होती है। निरन्तर इस प्रकार के चिन्तन के कारण उनका वास्तविकता से सम्पर्क कम होने लगता है। 
      4. हिस्ट्रीओनिक व्यक्तित्व विकृति- इस प्रकार की व्यक्तित्व विकृति वाले लोगों में मूल Reseller से कुछ ऐसे व्यवहारात्मक पैटर्न दिखायी देते हैं जिसमें उत्तेजना, अपरिपक्वता, सांवेगिक अस्थिरता, उत्तेजना के लिये उतावलापन आदि प्रमुख होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के लैंगिक And अन्तवैयक्तिक संबंध संतोषजनक नहीं होते है। ऐसे लोग आत्मकेन्द्रित होते हैं तथा इनमें दूसरों का अनुमोदन प्राप्त करने की तीव्र लालसा पायी जाती है। 
      5. आत्ममोही व्यक्तित्व विकृति- इस प्रकार की व्यक्तित्व विकृति वाले लोगों में आत्म महत्व की भावना अत्यन्त तीव्र And मजबूत पायी जाती है। इस प्रकार के लोग स्वयं को अत्यन्त महत्वपूर्ण व्यक्ति समझते हैं और Second लोगों से विशेष सेवा की अपेक्षा रखते हैं। साथ ही ऐसे लोग अपनी इच्छा को ही सर्वोपरि मानते हैं और अपनी इच्छा के समझ दूसरों की इच्छा का तृच्छ मानकर उसे कोर्इ महत्व नहीं देते हैं। ये लोग अत्यन्त महत्वाकांक्षी होते हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे लोग दूसरों को अपने निकट नहीं आने देते हैं और उनको अपने ऊपर निर्भर भी नहीं बनाते हैं। ऐसे लोगों में परानुभूति का सर्वथा अभाव पाया जाता है और ये स्वयं में किसी प्रकार के दोष या कमी को स्वीकार नहीं करते हैं। अत: ये कभी भी मनोवैज्ञानिक उपचारगृह में जाकर उपचार करवाने की Need अनुभव नहीं करते हैं। 
      6. समाजविरोधी व्यक्तित्व विकृति- इस प्रकार की व्यक्तित्व विकृति वाले लोग समाजविरोधी या आक्रामक व्यवहार दिखलाकर दूसरों के अधिकारों की अवहेलना करते हैं। साथ ही किसी भी प्रकार के असामाजिक तथा अनैतिक कार्यों को करने में कोर्इ संकोच या हिचकिचाहट नहीं होती है तथा इस प्रकार के कार्यों को करना वे अपना अधिकार समझते हैं। इस प्रकार के लोग दूसरों को धोखा देने और ठगने में भी बहुत होशियार होते हैं। 
      7. सीमान्त रेखीय व्यक्तित्व विकृति- इस प्रकार की व्यक्तित्व विकृति वाले व्यक्तियों में व्यक्तित्व विकार के लक्षण के अतिरिक्त कुछ ऐसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं जो गंभीर मनोरोग यानि भावनात्मक रोग में होते है इसी आधार पर इस व्यक्तित्व विकृति का नाम सीमान्त रेखीय व्यक्तित्व विकृति रखा गया है। इस प्रकार के विकार में व्यक्ति में व्यवहारात्मक समस्या के साथ-साथ मनोदशा में भी परिवर्तन होता रहता है। थोड़ा सा भी उत्तेजन मिलने से ऐसे लोग बहुत क्रोधित हो जाते हैं। ऐसे लोग स्वभाव से आवेगशील होते हैं और इनका व्यवहार अस्थिर, आक्रामक And अपूर्वानूमेय होता है। विडिगर तथा उनके सहयोगियों का मत है कि ऐसे लोगों की पहचान आवेगशीलता And आत्म-विकृति के आधार पर आसानी से की जा सकती है। गुण्डरसन And सिंगर के Wordों में ऐसे व्यक्तियों का अन्तवैयक्तिक संबंध असंतोषजनक होता है। इसके साथ ही इनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति अधिक मजबूत होती है। 
      8. परिवर्जित व्यक्तित्व विकृति- इस प्रकार की व्यक्तित्व विकृति वाले लोगों का लक्षण यह है कि ऐसे लोग Second व्यक्तियों द्वारा अपने प्रति दिखलाये गये तिरस्कार And उपेक्षा के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील होते हैं। ऐसे लोगों के सामाजिक संबंध भी व्यापक नहीं होते। अपने सामाजिक संबंधों को मजबूत और व्यापक बनाने की चिन्ता इनमें बिल्कुल भी नहीं होती है। इस प्रकार के व्यक्तित्व विकार से ग्रसित लोग अपनी आलोचना से भी अत्यधिक भयभीत रहते हैं। 
      9. अवलम्बित व्यक्तित्व विकृति- जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस प्रकार के व्यक्तित्व विकार वाले लोगों में दूसरों पर निर्भर रहने की प्रवृत्ति प्रबल होती है। अकेले रहने पर वे अत्यधिक बेचैन हो उठते हैं। साथ ही साथ इनमें आत्म-विश्वास का अभाव पाया जाता है। जिसके कारण पर्याप्त योग्यता तथा कौशल होने के बावजूद ये अपने आपको असहाय महसूस करते है। ऐसे व्यक्तियों को जब दूसरों के साथ मिलकर काम करना होता है तब तो इसका निष्पादन संतोषप्रद होता है किन्तु अकेले ये ठीक प्रकार से कोर्इ कार्य करने में सक्षम नहीं होते हैं। 
      10. मनोग्रस्ति बाध्यता व्यक्तित्व विकृति- इस प्रकार के व्यक्तित्व विकार वाले लोग नियम, कानून आदि के प्रति अत्यधिक सतर्क होते है तथा साथ ही वे इस मत को मानने वाले होते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने-अपने तरीके से कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिये। ऐसे लोग अपनी भावनाओं को ठीक प्रकार से व्यक्त नहीं कर पाते है। और न ही इनमें हास्य करने की प्रवृत्ति होती है। ऐसे व्यक्ति स्वभाव से अत्यन्त कर्तव्यनिष्ठ, अविरोधी, दृढ़ And जिद्दी होते है। ऐसे लोगों का जीवन बाध्यतापूर्ण आदेशों से भरा होता है। उपरोक्त description से स्पष्ट है कि मनोवैज्ञानिकों And मनश्चिकित्सकों ने भिन्न-भिन्न लक्षणों के आधार पर व्यक्तित्व विकृति के अनेक प्रकारों का वर्णन Reseller है।

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