वैयक्तिक And सामूहिक परामर्श की अवधारणा व Need

वैयक्तिक परामर्श, अवधारणा व Need 

आमतौर पर परामर्श व्यक्तिगत Reseller से ही सम्पन्न होता है। परामर्श किसी भी प्रकार की Need पर व्यक्तिगत Reseller में ही दिया जाता है। व्यक्तिगत परामर्श में व्यक्ति की समंजन क्षमता बढ़ाने उसकी निजी समस्याओं का हल ढूढ़ने तथा आत्मबोध की क्षमता उत्पन्न हेतु दी जाने वाली सहायता होती है।
यह कहना सर्वथा गलत न होगा कि वैयक्तिक परामर्श में व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक, शैक्षिक, व्यावसायिक जीवन से सम्बन्धित समस्याओं को समझना व उनका हल प्राप्त करने की दक्षता विकसित की जाती है। वैयक्तिक परामर्श की Need मुख्य Reseller से किशोरावस्था से ही मूल Reseller में प्रारम्भ होती है। इस परामर्श का मुख्य उद्देश्य होता है-

  1. व्यक्ति को अपने आसपास के वातावरण की सम्भावनाओं को सही तरीके से समझने के योग्य बनाना। 
  2. व्यक्ति को अपने परिवार, समुदाय विद्यालय And व्यवसाय सम्बन्धी सामन्जस्य की व्यक्तिगत समस्याओं को हल करने में सहयोग देना। 
  3. व्यक्ति में सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता विकसित करना।
  4. व्यक्ति को अपनी क्षमताओं And अभियोग्यता को समझने में सहयोग देना। 
  5. व्यक्ति द्वारा लिये जाने वाले व्यक्तिगत निर्णयों को लेने हेतु उचित इच्छाषक्ति विकसित करने में सहयोग देना।
  6. व्यक्ति को अपने जीवन को सही दिशा देने हेतु क्षमता विकसित करने में सहयोग देना। 
  7. अपने जीवन की विविध परिस्थितियों को समझने व उसी के अनुकूल अपेक्षित सूझबूझ विकसित करने में सहयोग करना।

 वैयक्तिगत परामर्श का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत सामंजस्य And व्यक्तिगत कुशलता विकसित करना है।

1. वैयक्तिगत परामर्श की Need-

वैयक्तिक परामर्श विशेष Reseller में व्यक्ति विशेष की Need के अनुReseller उसे सहायता देने हेतु दिया जाता है। बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक अपने जीवन के विविध सन्दर्भो में मधुर सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता ही स्वस्थ मानसिक स्वास्थ्य के परिसूचक है। पुराने And नयी परिस्थितियों के मध्य टकराव कम करके सामंजस्य की स्थिति उत्पन्न करवाना ही वैयक्तिक परामर्श का उद्देश्य होता है। उक्त परिप्रेक्ष्य में वैयक्तिक परामर्श की Need को निम्नलिखित दृष्टियों से प्रदर्शित Reseller जा सकता है-

  1. व्यक्तिगत सामंजस्य And समायोजन बढ़ाने की दृष्टि से परिवार तथा विद्यालय के जीवन से सम्बन्धित अनेक समस्याओं का उद्भव व्यक्ति के जीवन मे होता है जिनके निदान के लिये परामर्श की Need होती है। 
  2. वैयक्तिगत दक्षता का विकास करने हेतु-परामर्श की दूसरी Need अपनी क्षमता को पहचानने, निर्णय लेने व अनुकूलन की क्षमता विकसित करने हेतु होती है।
  3. आपसी तनावों व व्यक्तिगत उलझनों से निजात हेतु-वर्तमान में उपभोक्तावादी समाज ने आम मनुश्य को तनाव And आपसी उलझनों में ढ़केल दिया है इनसे निदान पाने के लिये व्यक्तिगत परामर्श की बहुत ही अधिक आवश्ककता होती है।
  4. व्यक्ति के पारिवारिक And व्यावसायिक जीवन में सामजंस्य बैठाने हेतु- आज शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भी व्यक्ति की आत्मनिर्भरता की प्राप्ति है। व्यक्ति किसी न किसी व्यवसाय से Added रहता है। व्यवसायिक जीवन भी उसका महत्वपूर्ण भाग बन जाता है परन्तु व्यक्ति के निजी पारिवारिक And सामुदायिक जीवन के साथ उसका समायोजन And सामंजस्य बिठाने का संघर्श प्रारम्भ हो जाता है और इसी के लिये उसे व्यक्तिगत परामर्श की Need होती है।
  5. जीवन में धैर्य व सयंम के साथ सन्तुलन बनाये रखने हेतु-व्यक्ति के जीवन में जीवन पर्यन्त उसको अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और उसके लिये उसे धैर्य व संयम का प्रयोग करना पड़ता है और इनके अभाव में उसका कुसमायोजन होने लगता हैं। वैयक्तिक परामर्श से उसमें धैर्य व संयम का विकास Reseller जाता है।
  6. निर्णय लेने की क्षमता के विकास हेतु-व्यक्ति को सम्पर्ण जीवन में अनके निर्णय लेना पड़ता है जो कि उसके सम्पूर्ण जीवन पर प्रभाव डालता है। वैयक्तिक परामर्श के द्वारा व्यक्ति को उसकी परिस्थितिजन्य समस्याओं के समय सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित की जाती है।
  7. व्यक्ति के जीवन में सुख, शान्ति व सन्तोष के भाव लाने हेतु-हर व्यक्ति के जीन में प्रमुख लक्ष्य सुख शान्ति व सन्तोष लाना होता है। इसके लिये उसकी मनोवृित्त्ा को समझते हुये उसमें सन्तोश के भाव पैदा करना भी वैयक्तिक परामर्श की Need होती है।

इस प्रकार हम देखते हैं जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपेक्षित कुशलता, आत्मसन्तोष And सामंजस्य स्थापित करने तथा स्वस्थ, प्रभावी And सहज आत्मविकास का मार्ग प्रशस्त करने हेतु वैयक्तिक परामर्श की Need होती है।

2. वैयक्तिक परामर्श के सिद्धान्त 

वैयक्तिक परामर्श की सम्पूर्ण प्रक्रिया के संचालन हेतु कुछ निश्चित सिद्धान्तों को ध्यान में रखा जाता है।

  1. तथ्यों के गोपनीयता का सिद्धान्त-इस परामर्श में इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि प्राथ्र्ाी से सम्बन्धित जो भी सूचनायें And तथ्य प्राप्त हों उन्हें गोपनीय रखे जायें। 
  2. लचीलापन का सिद्धान्त-वैयक्तिक परामर्श पूर्णतया प्रार्थी के हिताय चलने वाली प्रक्रिया होती है अत: इसे समय, काल, परिस्थिति के According लचीला बनाकर संचालित Reseller जाता है जिससे प्राथ्र्ाी को अपनी समस्याओं से निदान मिल सके। 
  3. समग्र व्यक्तित्व पर ध्यान-इस परामर्श में प्राथ्र्ाी के सम्यक विकास हेतु परामर्शदाता का ध्यान रहता है और उसकी क्षमता And व्यक्तित्व विकास का पूरा प्रयास Reseller जाता है। 
  4. सहिष्णुता And सहृदयता का सिद्धान्त-वैयक्तिक परामर्श में परामर्शदाता प्रार्थी को विचारों को व्यक्त करने की स्वतन्त्रता देता है और उसके प्रति सहिष्णु And सहृदय रहता है।प्रार्थी को इस बात का आभास कराया जाता है कि वह परामर्शदाता के लिये महत्वपूर्ण है।
  5. प्राथ्र्ाी के आदर का सिद्धान्त-वैयक्तिक परामर्श का उद्देश्य प्रार्थी को विभिन्न क्षेत्रों में अपेक्षित दक्षता, कुशलता, आत्मसन्तोष And सामजस्य कायम करते हुये स्वस्थ प्रभावी And सहज आत्म विकास का मार्ग प्रशस्त करने की दृष्टि से सहयोग देना है। अत: प्रार्थी का आदर Reseller जाता है। 
  6. सहयोग का सिद्धान्त-वैयक्तिक परामर्श में प्रार्थी के ऊपर अपने दृष्टिकाण्े  को विचारों को लादने के बजाय उसे स्वयं की समस्याओं के प्रति उचित समझ विकसित करते हुये उन्हें सुलझाने हेतु सहयोग दिया जाता है। उपरोक्त All सिद्धान्त वैयक्तिक परामर्श की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावशाली बना देते हैं। 

    समूह परामर्श 

    समूह परामर्श की संकल्पना अपेक्षाकृत नवीन है। यह पद्धति ऐसे प्रत्याशियों के लिए उपयोगी सिद्ध हुर्इ है जो व्यक्तिगत परामर्श से लाभान्वित नहीं हो पाये हैं। प्रत्येक व्यक्ति मूलत: सामाजिक होता है। कभी-कभी समाज में रहकर ही व्यक्ति अपना अनुकूलन And अपनी समस्याओं का निदान कर लेता है। सी0जी0 केम्प (1970) ने लिखा है कि व्यक्ति को अपने जीवन के All क्षेत्रों में सार्थक सम्बन्ध बनाने की Need पड़ती है। इन्हीं सम्बन्धों के आधार पर वे अपने जीवन को निकटता से समझ पाते हैं और Single लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। इसके सन्दर्भ में सामूहिक परिपे्रक्ष्य के प्रति रूचि बढ़ती जा रही है। समूह परामर्श के आधार-समूह परामर्श के कुछ मूलभूत आधार हैं जिनकी Discussion नीचे की जा रही है-

    1. व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व सम्बन्धी पूँजी तथा अभाव का ज्ञान हो। व्यक्ति अपनी क्षमताओं के प्रति या तो अल्प ज्ञान रखता है, या अज्ञानी होता है। कभी-कभी तो वह अपनी क्षमताओं को बढ़ा-चढ़ा कर कहता है। उसके स्वमूल्यांकन में यथार्थ का अभाव होता है। सामूहिक परामर्श प्रत्याशी को इस योग्य बनाता है कि वह समूह में रहकर अन्य व्यक्तियों की पृष्ठभूमि में अपनी वास्तविक क्षमता को पहचान सके और अपनी कमियों को दूर कर सके। 
    2. समूह परामर्श व्यक्ति को इस योग्य बनाता है कि वह अपने व्यक्तित्व में सन्निहित सम्भावनाओं के अनुReseller सफलता प्राप्त करने में सफल हो सके। समूह में रहकर वह अपनी प्रत्यक्ष सम्भावनाओं को भलीभाँति पहचान सकता है।
    3. वैयक्तिक भिन्नता Single मनोवैज्ञानिक तथ्य है। Single व्यक्ति Second व्यक्ति से कार्य, अभिवृित्त्ा, बुद्धि आदि में भिन्न होता है। समूह परामर्श इस मनोवैज्ञानिक तथ्य की उपेक्षा नहीं करता। यह कुशल परामर्शक पर निर्भर करता है कि वह वैयक्तिक भिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए भी समूह परामर्श प्रदान कर सकें। 
    4. प्रत्याशी को समाज का अंग मानना समूह-परामर्श का चौथा सिद्धान्त है। प्रत्येक व्यक्ति समूह अथवा समाज में रहकर ही अपना विकास कर पाता। सामूहिक जीवन का अनुभव ही उसे विकास के पथ पर अग्रसर करता है। समाज से पृथक रहकर व्यक्ति कुण्ठाग्रस्त हो जाता है। 
    5. प्रत्याशी में सम्प्रत्यय का विकास सामूहिक परामर्श का पाँचवाँ सिद्धान्त है। समूह में रहकर ही व्यक्ति का सर्वांगीण विकास सम्भव हो पाता है और वह अपने विषय में सही धारणा बना सकता है। 

    1. समूह-परामर्श के लाभ 

    1. सीमन लिखता है कि सामूहिक-परामर्श Single Windows Hosting And समझदारी का परिवेश प्रस्तुत करता है। इस परिवेश में सबका सहभाग होता है और सबका अनुमोदन भी होता है। 
    2. इसमें ऐसा अवसर सुलभ होता है जो स्वच्छ, नि:शंक तथा उन्मुक्त हो और जिसमें समस्याओं का समाधान ढूँढा जा सके और खुला मूल्यांकन Reseller जा सके। 
    3. परामर्शदाता को समूह-आचरण सम्बन्धी ज्ञान का उपयोग करने का अवसर प्राप्त होता है। 
    4. अनेक Humanीय दुर्बलताओं जैसे नशा-सेवन, यौन-शिक्षा आदि पर खुली बहस हो सकती है। 

    2. समूह-परामर्श की Needएँ 

    1. व्यक्तिगत साक्षात्कार-समहू -परामर्श समाप्त होने के उपरान्त परामर्शक प्रत्येक सेवार्थी का व्यक्तिगत साक्षात्कार करता है ताकि वह प्रत्याशी की व्यक्तिगत समस्याओं से अवगत हो सके। परामर्शक को जो सूचनाएँ समूह-परामर्श से प्राप्त नहीं होती हैं उनकी पूर्ति व्यक्तिगत साक्षात्कार द्वारा कर लेता है। इस प्रक्रिया से प्रत्याशी की सहायता करने में परार्शक को सरलता होती है। 
    2. परामर्श-कक्ष की समुचित व्यवस्था-जिस कक्षा में समूह-परामर्श दिया जाता है उस कक्ष को First सुखद बनाया जाना चाहिए। कक्ष का वातावरण ऐसा हो कि प्रत्याशी अपनेपन का अनुभव करें। बैठने की कुर्सियाँ आरामदेह And सुखकारी हों। 
    3. समूह में SingleResellerता-जहाँ तक सम्भव हा,े परामर्शेय समहू में आयु, लिगं तथा यथासम्भव समस्या की SingleResellerता हो ताकि परामर्श प्रदान करने में सुविधा हो। कुछ परामर्शदाताओं का यह मत है कि असमान समूह को परामर्शित करना अधिक लाभदायी होता है। 

    समूूह का आकार-समहू का आकार वृहत् हाने े पर परामर्श निरर्थक हा े जाता है अत: समूह का आकार यथासम्भव छ: से आठ तक होना चाहिए। इसमें विचारों का आदान-प्रदान उत्त्ाम हो जाता है।

    3. समूह परामर्श की प्रक्रिया एव क्रियाकलाप 

    1. समूह-परामर्श की प्रक्रिया –समूह-परामर्श के लिए परामर्शप्रार्थी के लक्ष्य की जानकारी आवश्यक है और लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए समूह के अन्य सदस्यों के सहयोग की अपेक्षा होती है। इसके लिए निम्न प्रक्रिया का अनुसरण Reseller जाता है।

    1. प्र्रत्येक सदस्य के लक्ष्य का ज्ञान प्राप्त करना-समूह-परामर्शक तभी सफल हो पाता है जब उसे सेवार्थी के उद्देश्यों की पूरी जानकारी हो। 
    2. संगठन का निर्णय-अपनी परामर्श-योजना में यदि परामर्शक सगं ठन द्वारा लिये गये निर्णयों को ध्यान में रखकर परामर्श देता है तो सामूहिक परामर्श अधिक प्रभावकारी होता है। 
    3. समूूह का गठन-व्यक्ति के लक्ष्य और व्यक्ति के स्वभाव को ध्यान में रखकर ही समूह के प्रत्येक सदस्य को अधिक लाभ पहुँचाया जा सकता है। 
    4. परामर्श का आरम्भ-समहू -परामर्श को आरम्भ करत े समय परामर्शदाता को अपनी तथा अन्य सदस्यों की भूमिका स्पष्ट करनी चाहिए। यदि समूह के All सदस्य परामर्श में सहयोग दें तो परामर्शक का कार्य अधिक सुगम हो सकता है। 
    5. सम्बन्धों का निर्माण-सामूहिक-परामर्श की प्रक्रिया में जैसे-जैसे परामर्श का कार्य आगे बढ़ता है, सम्भावना रहती है कि सेवार्थी अपने लक्ष्य से भटक जाय। अत: परामर्शदाता का यह दायित्व बनता है कि वह अपनी निष्पक्षता का परिचय देते हुए अपने प्रति प्रत्याशी में विश्वास जगाये और उसे उसके लक्ष्यों का निरन्तर स्मरण दिलाता रहे। 
    6. मूल्यांकन-परामर्श के प्रभाव का मूल्याकंन अन्तिम सोपान है। परामर्शदाता को अपने प्रभाव का मूल्यांकन करते रहना चाहिए ताकि वह जान सके कि उसके परामर्श का क्या प्रतिफल रहा है। 

    2. समूह-परामर्श के क्रियाकलाप-समूह-परामर्श के अंतर्गत विविध प्रकार के क्रियाकलापों का समावेश होता है। यथा, अभिमुखीकरण, कैरियर/वृित्त्ा वार्ताएँ, कक्षा-वार्ताएँ, वृित्त्ा-सम्मेलन, किसी संस्था जैसे : उद्योग, संग्रहालय, प्रयोगशाला आदि की शैक्षिक यात्राएँ तथा अनेक प्रकार के अनौपचारिक नाटक-समूह। आगे इन All की Discussion विद्यालय-परिस्थिति में आयोजन करने की दृष्टि से की जा रही है।

    वृत्तिक-परामर्श 

    इस प्रकार के परामर्श में छात्रों के लिए कर्इ सुनियोजत बैठकों का अयोजन Reseller जाता है, जिनका उद्देश्य विभिन्न विषयों पर छात्रों को सूचना प्रदान करना है। इनसे छात्रों को भविश्य में अपने लिए व्यावसायिक और शैक्षिक कैरियर चुनने और उससे संबंधित योजना बनाने में सहायता मिलती है। इस प्रकार की बैठकों के दौरान छात्रों को व्यावसायिक सूचनाएँ मिल जाती है और अध्यापकों, अभिभावकों तथा समुदाय के लोगोंं में निर्देशन-कार्यक्रम के महत्व के संबंध में सामान्य Reseller से जागरूकता पैदा हो जाती है।

    कैरियर परामर्श की योजना बनाने में उपबोधक, विद्यालय-संकाय तथा छात्रों के सम्मिलित प्रयासों की Need होती है। Single कार्य-योजना-समिति का गठन Reseller जाए जिसमें इन All समूहों के प्रतिनिधि सम्मिलित हों, जिससे समग्र विद्यालय में सहभागिता का भाव आ सके। अभिभावकों को संसाधन-विष्लेशकों के Reseller में इस वृित्त्ा सम्मेलन में भाग लेने के लिए बुलाया जाना चाहिए।

    परामर्श की योजना बनाते समय जो मार्गदर्शक Resellerरेखा तैयार की जाए, उसमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाए :

    1. सम्मेलन के प्रयोजन के संबंध में छात्रों को First ही बता देना चाहिए : 
    2. जाँच-सूचियों के द्वारा छात्रों की व्यावसायिक अभिरूचियों की जानकारी प्राप्त कर ली जाए ताकि तदनुसार ही उन-उन क्षेत्रों के विशेषज्ञ वक्ताओं को आमंत्रित Reseller जा सके। 
    3. अतिथि वक्ताओं के नाम बैठक में सुझा दिए जाँए तथा कार्य-प्रभारी की Appointment भी उसी समय कर देनी चाहिए। 
    4. किस दिन किस विषय पर Discussion होनी है? सम्मेलन किस दिन आयोजित होगा? इन All बातों को First ही निश्चय कर लेना चाहिए। ध्यान रहे कि उस निर्धारित अवधि में परीक्षाएँ न पड़ती हों। क्योंकि परीक्षा के निकट होने की स्थिति में छात्र अन्य कामों में अपनी रूचि नहीं दिखा सकेंगे। 
    5. प्रत्येक दिन की वार्ताओं का क्रम, Discussion-समूहों का क्रम, फिल्म-शो आदि की First से ही व्यवस्था कर लेनी चाहिए। 
    6. विद्यालय कर्मियों तथा स्वयं-सेवी छात्रों के कामों का बँटवारा First ही कर दिया जाए। 
    7. प्रचार-पत्रक तैयार कर लें। सम्मेलन के संबंध में अभिभावकों को पूर्व सूचना भेज दी जाए।
    8. कैरियर परामर्श में जिन-जिन विषयों के बारे में Discussion होनी है उनसे संबंधित चार्ट तैयार कर लिए जाएँ ताकि छात्रों को विषयों से संबंधित कुछ पूर्व जानकारी प्राप्त हो सके। 
    9. समूह परामर्श में प्राप्त सूचनाओं के आधार पर व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाने हेतु साक्षात्कार Reseller जा सकता है जिससे कि व्यक्तिगत स्तर पर उत्पन्न कठिनार्इ का निदान हो सकें। 

    परामर्श की योजना के चरण 

    वृत्तिक-परामर्श के लिए महीनों First योजना बना लेनी चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित सोपान आवश्यक है।

    1. परामर्श आयोजित करने का विचार कम से कम 45 दिन First ही लोगों के सामने प्रकट कर देना चाहिए। सम्मेलन आयोजित करने की प्रषासनिक स्वीकृति मिल जाने के तुरन्त बाद छात्रों को इसकी सूचना दी जा सकती है। छात्रों को First से सूचित करना इसलिए आवश्यक है ताकि वे स्वयं-सेवक कार्यकर्त्त्ााओं के Reseller में अपने नाम दे सकें। 
    2. स्वेच्छा से कार्य करने वाले अध्यापकों तथा छात्रों की Single सूची तैयार कर लेनी चाहिए और उनके बीच कार्य का वितरण कर देना चाहिए। जैसे, माइक का प्रबंध कौन करेगा? भाशणों का आयोजन करने की जिम्मेदारी किस पर होगी? स्वल्पाहार की व्यवस्था किसके हाथों में रहेगी? सूचना-पत्रकों के वितरण की व्यवस्था कौन देखेगा? आदि-आदि। 
    3. Second विद्यालयों के प्रधानाचार्यो तथा अभिभावकों को उचित समय पर पत्र भेज दिए जाएँ। पत्रों के साथ कैरियर परामर्श के उद्देश्य तथा योजना की संक्षिप्त Resellerरेखा भी भेजी जानी चाहिए। 
    4. अतिथि-वक्ताओ को पर्याप्त समय First पत्र भेज दिए जाएँ।
    5. वार्ताओं, Discussionओं फिल्मों व चार्ट आदि का विस्तृत कार्यक्रम First से तैयार कर लिया जाए। 
    6. माइक की व्यवस्था, बैठने की व्यवस्था, वीडियों कैसेट बनाने की व्यवस्था आदि First से तय हो। जो पत्रक बाँटे जाने हों उन्हें First ही मुद्रित करवा लेना चाहिए।
    7. पर्याप्त समय पूर्व ही सत्रानुसार कार्यक्रम का description निश्चित कर लेना चाहिए तथा छात्रों And Second प्रतिभागियों को समय से पूर्व सूचना दे देनी चाहिए।
    8. प्रत्येक सत्र के लिए वक्ताओं की सूची तैयार कर लें। उचित होगा यदि हर सत्र के लिए दो-तीन वक्ताओं के नामों का विकल्प रहे ताकि यदि कोर्इ वक्ता-विशेष उपलब्ध न हो सके तो Second वक्ता को आमंत्रित Reseller जा सके। संसाधन-विशेषज्ञों के Reseller में अभिभावकों, पूर्व छात्रों तथा स्टाफ सदस्यों को नामित Reseller जा सकता है। 
    9. वक्ताओं को दिए जाने वाले विषयों की Single Resellerरेखा तैयार कर ली जाए ताकि यह पता रहे कि कौन-सा वक्ता किस विषय पर बोलेगा। 

    जब परामर्श सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाए तब बाद में Single परिDiscussion आयोजित कर उसकी कमियों का आकलन कर लेना चाहिए ताकि अगले सम्मेलन में उन कमियों की पुनरावृित्त्ा न हो।

    You may also like...

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *