विजयनगर साम्राज्य की स्थापना And पतन के कारण

विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक हरिहर First तथा बुक्काराय थे । उन्होंने सल्तनत की कमजोरी का फायदा उठाकर होयसल राज्य का (आज का तैमूर) हस्तगत कर लिया तथा हस्तिनावती (हम्पी) को अपनी राजधानी बनाया । इस साम्राज्य पर King के Reseller में तीन राजवंशों ने राज्य Reseller –

  1. संगम वंश, 
  2. सालुव वंश, 
  3. तुलव वंश ।

विजयनगर साम्राज्य का राजनीतिक History

1. संगम वंश (1336 से 1485 र्इ.  तक)

  1. हरिहर First  (1336 से 1353 र्इ.  तक) – हरिहर First ने अपने भार्इ बुककाराय के सहयोग से विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की । उसने धीरे-धीरे साम्राज्य का विस्तार Reseller । होयसल वंश के King बल्लाल की मृत्यु के बाद उसने उसके राज्य को अपने राज्य में मिला लिया। 1353 र्इ. में हरिहर की मृत्यु हो गर्इ ।
  2. बुकाराय (1353 से 1379 र्इ. तक)- बुक्काराय ने गदद्ी पर बैठते ही King की उपाधि धारण की । उसका पूरा समय बहमनी साम्राज्य के साथ संघर्ष में बीता । 1379 र्इ. को उसकी मृत्यु हुर्इ । वह सहिष्णु तथा उदार King था ।
  3. हरिहर द्वितीय (1379 से 1404 र्इ. तक)- बक्ु काराय की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र हरिहर द्वितीय सिंहासनारूढ़ हुआ तथा साथ ही महाKingधिराज की पदवी धारण की । इसने कर्इ क्षत्रेों को जीतकर साम्राज्य का विस्तार Reseller । 1404 र्इ. में हरिहर द्वितीय कालकवलित हो गया ।

बुक्काराय द्वितीय (1404-06 र्इ.) देवराय First (1404-10 र्इ.), विजय राय (1410-19र्इ.) देवराय द्वितीय (1419-44 र्इ), मल्लिकार्जुन (1444-65 र्इ.) तथा विResellerाक्ष द्वितीय (1465-65 र्इ.) इस वंश के अन्य King थे । देवराज द्वितीय के समय इटली के यात्री निकोलोकोण्टी 1421 र्इको विजयनगर आया था । अरब यात्री अब्दुल रज्जाक भी उसी के शासनकाल 1443 र्इ. में आया था, जिसके descriptionों से विजय नगर राज्य के History के बारे में पता चलता है ।

अब्दुल रज्जाक के तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों का वर्णन करते हुये लिखा है- ‘‘यदि जो कुछ कहा जाता है वह सत्य है जो वर्तमान राजवंश के राज्य में तीन सौ बन्दरगाह हैं, जिनमें प्रत्येक कालिकट के बराबर है, राज्य तीन मास 8 यात्रा की दूरी तक फैला है, देश की अधिकांश जनता खेती करती है । जमीन उपजाऊ है, प्राय: सैनिको की संख्या 11 लाख होती है ।’’ उनका बहमनी सुल्तानों के साथ लम्बा संघर्ष हुआ । विResellerाक्ष की अयोग्यता का लाभ उठाकर नरसिंह सालुव ने नये राजवंश की स्थापना की ।

2. सालुव वंश (1486 से 1505 र्इ. तक)

नरसिंह सालुव (1486 र्इ.) Single सुयोग्य वीर King था । इसने राज्य में शांति की स्थापना की तथा सैनिक शक्ति में वृद्धि की । उसके बाद उसके दो पुत्र गद्दी पर बैठे, दोनों दुर्बल King थे । 1505 र्इ. में सेनापति नरस नायक ने नरसिंह सालुव के पुत्र को हराकर गद्दी हथिया ली ।

3. तुलव वंश (1505 से 1509 र्इ. तक)-

  1. वीरसिंह तुलव (1505 से 1509 र्इ. तक)- 1505 र्इ. में सेनापति नरसनायक तुलुव की मृत्यु हो गर्इ । उसे पुत्र वीरसिंह ने सालुव वंश के अन्तिम King की हत्या कर स्वयं गद्दी पर अधिकार कर लिया ।
  2. कृष्णादेव राय तुलव (1509 से 1525 र्इ. तक)- वह विजयनगर साम्राज्य का सर्वाधिक महान् King माना जाता है । यह वीर और कूदनीतिज्ञ था । इसने बुद्धिमानी से आन्तरिक विद्रोहों का दमन Reseller तथा उड़ीसा और बहमनी के राज्यों को फिर से अपने अधिकार में कर लिया । इसके शासनकाल में साम्राज्य विस्तार के साथ ही साथ कला तथा साहित्य की भी उन्नति हुर्इ । वह स्वयं कवि व ग्रंथों का रचयिता था ।
  3. अच्युतुत राव (1529 से 1542)- कृष्णदेव राय का सौतलेा भार्इ ।
  4. वेंकंट First (1541 से 1542 र्इ.)- छ: माह शासन Reseller ।
  5. सदाशिव (1542 से 1562 र्इ.) – वेंकट का भतीजा King बना । ताली काटे का Fight हुआ । विजयनगर राज्य के विरोध में Single सघं का निर्माण Reseller । इसमें बीजापरु , अहमदनगर, बीदर, बरार की सेनाएं शामिल थी । 

बहमनी राज्य व विजयनगर में संघर्ष रायचूर दोआब की समस्या 

मुहम्मद First के काल में जो Fight व संघर्ष विजयनगर के साथ प्रारम्भ हुआ वह बहमनी राज्य के पतन तक चलता रहा । विजयनगर और बहमनी Kingों में रायचूर दोआब के अतिरिक्त मराठवाड़ा और कृष्णा कावेरी घाटी के लिए भी Fight हुए । कृष्णा गोदावरी घाटी में संघर्ष होते रहा। इसके प्रमुख कारणों में राजनीति, भौगोलिक तथा आर्थिक थे । फरिश्ता के According दोनों राज्यों के मध्य शान्ति विजयनगर द्वारा निर्धारित राशि देने से बन्द करता था तब तब Fight होते रहता था ।

    भौगोलिक Reseller बहमनी राज्य तीन तरफ से मालवा गुजरात उड़ीसा जैसे शक्तिशाली राज्यों से घिरा हुआ था । विजयनगर तीन दिशाओं से समुद्र से घिरा था । वे राज्य विस्तार के लिए केवल तुंगभद्रा क्षत्रे पर हो सकता था । अत: भौगोलिक Reseller कटे- फटे होने के कारण बडे – बड़े बन्दरगाह भी इसी भाग में था ।

    पुतगालियोंं का आगमन

    सल्तनत काल में ही यूरोप के साथ व्यापारिक संबंध कायम हो चुका था 1453 र्इ. में कुस्तुन्तुनिया पर तुर्को का अधिकार हो जाने के बाद यूरोपीय व्यापारियों को आर्थिक नुकसान होने लगा । तब नवीन व्यापारिक मार्ग की खोज करने लगे । जिससे भारत में मशालों का व्यापार आसानी से हो सके । पुर्तगाल के King हेनरी के प्रयास से वास्कोडिगाम भारत आये ।

    अपने निजी व्यापार को बढ़ाना चाहते थे व दुसरे पुर्तगाली एशिया और अफ्रीकीयों को इसार्इ बनाना मुख्य उद्देश्य था व अरब को कम करना मुख्य उद्देश्य था ।

    गोआ पुर्तगालियों की व्यापारिक और राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ था । गोआ तथा दक्षिणी Kingों पर नियंत्रण रखा जा सकता था।

    विजय नगर साम्राज्य  के पतन के कारण

    1. पडा़ेसी राज्यों से शत्रुता की नीति- विजयनगर सम्राज्य सदैव पड़ोसी राज्यों से संघर्ष करता रहा । बहमनी राज्य से विजयनगर नरेशों का झगड़ा हमेशा होते रहता था । इससे साम्राज्य की स्थिति शक्तिहीन हो गयी ।
    2. निरंकुश King- अधिकांश King निरकुश थे, वे जनता में लोकपिय्र नहीं बन सके।
    3. अयोग्य उत्तराधिकारी- कृष्णदेव राय के बाद उसका भतीजा अच्युत राय गद्दी पर बैठा । वह कमजोर King था । उसकी कमजोरी से गृह-Fight छिड़ गया तथा गुटबाजी को प्रोत्साहन मिला ।
    4. उड़ी़सा-बीजापुर के आक्रमण- जिन दिनों विजयनगर साम्राज्य गृह-Fight में लिप्त था । उन्हीं दिनों उड़ीसा के King प्रतापरूद्र गजपति तथा बीजापुर के King इस्माइल आदिल ने विजयनगर पर आक्रमण कर दिया । गजपति हारकर लौट गया पर आदिल ने रायचूर और मुदगल के किलों पर अधिकार जमा लिया ।
    5. गोलकुंडा तथा बीजापुुर के विरूद्ध सैनिक अभियान- इस अभियान से दक्षिण की मुस्लिम रियासतों ने Single संघ बना लिया । इनसे विजयनगर की सैनिक शक्ति कमजोर हो गयी।
    6. बन्नीहट्टी का Fight तथा विजयनगर साम्राज्य का अन्त- तालीकोट के पास हट्टी में मुस्लिम संघ तथा विजयनगर साम्राज्य के मध्य Fight हुआ । इससे रामराय मारा गया । इसके बाद विजयनगर साम्राज्य का अन्त हो गया । बीजापुर व गोलकुंडा के Kingों ने धीरे- धीरे उसके राज्य को हथिया लिया ।

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