रोकड़ प्रबंध क्या है ?

रोकड़ Single ऐसी महत्वपूर्ण चल सम्पत्ति है जिसके बिना किसी व्यवसाय का सफल संचालन करना संभव नहीं होता। रोकड़ में सर्वाधिक तरलता का गुण रहता है। इस कारण रोकड़ का प्रबन्ध वित्त प्रबन्धकों की सबसे बड़ी समस्या है। रोकड़ प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य संस्था की तरलता And लाभदायकता में वृद्धि करना होता है। कार्यशील पूंजी के प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य संस्था की प्रत्येक सम्पत्ति का अनुकूलतम उपयोग करना होता है। चालू सम्पत्तियों में रोकड़, प्राप्य बिल व रहतिया को सम्मिलित Reseller जाता है। रोकड़ व्यवसाय के चालू सम्पत्तियों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह व्यवसाय का प्रारम्भिक और अन्तिम बिन्दु (Starting and Finishing Point) होता है। यह व्यवसाय का रक्त है। वित्तीय प्रबन्ध में रोकड़ का संकीर्ण Means हस्तस्थ रोकड़ (Cash in hand) व बैंक शेष से होता है। परन्तु विस्तृत Means में विपणन योग्य प्रतिभूतियॉं (Marketable Securities) तथा बैंक सावधि जमा (Bank Time Deposits) को भी रोकड़ में सम्मिलित Reseller जाता हैं।

रोकड़ And रोकड़ तुल्य सम्पत्तियाँ – रोकड़ का प्रबन्ध चल सम्पत्तियों के प्रबन्ध का केन्द्र बिन्दु है। नकद कोष का व्यापार में वही स्थान है जो Human शरीर में रक्त का। रक्त के उचित संचालन की ही भाँति रोकड़ का अन्तर्वाह And बहिर्वाह स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। रोकड़ प्रबन्ध का आशय रोकड़ उपलब्धता तथा किसी व्यर्थ कोष पर ब्याज आय को अधिकतम करने के उद्देश्यों से Single फर्म के मुद्राओं के प्रबन्धन से है।

रोकड़ कोषों का प्रबन्ध यह सुनिश्चित करता है कि वक्त पर नकदी की कमी न पड़े और व्यवसाय में रोकड़ का प्रवाह ठीक बना रहने के साथ ही साथ उनका उचित प्रयोग सुनिश्चित हो सके। रोकड़ प्रबन्ध 5 R’s – Right quality, Right quantity, Right time, Right source, Right cost- उचित गुण, उचित मात्रा, उचित समय, उचित साधन, उचित लागत का निर्णय है। रोकड़ प्रबन्ध के मुख्य Reseller से निम्न चार पहलू या आयाम (Facets or Dimensions) होते हैं ।

  1. रोकड नियोजन – इसके अन्तगर्त रोकड़ की Need का उचित ढंग प्रमुखतया रोकड़ बजट के द्वारा, नियोजन कर लिया जाना चाहिए। इसके लिए रोकड़ के अन्तर्वाहों और बहिर्वाहों का First से अनुपात लगाया जाता है ताकि अधिकता या न्यूनता का स्पष्ट पूर्वाभास हो सके।
  2. रोकड़ प्रवाहोंं का प्रबन्धन –रोकड़ प्रवाह (अन्तर्वाह And बहिर्वाह) का प्रबन्ध इस ढंग से करना चाहिए कि रोकड़ का संग्रहण शीघ्रता से हो सके और भुगतान यथासम्भव विलम्ब से करना पड़े। रोकड़ के संग्रहण की गति को तीव्र करने के लिए विकेन्द्रित संग्रहण (Decentralised collections) और तालक सन्दूक प्रणाली (Lock Box system) का प्रयोग Reseller जा सकता है। इसके विपरीत रोकड़ के वितरण की स्थिति में केन्द्रित व्रूवस्था अपनार्इ जा सकती है। ताकि भुगतान करने में अधिक समय लग सके। 
  3. अनुकूलतम रोकड शेष – रोकड  प्रबन्धन का Single प्रमुख पहलू अनुकूलतम स्तर का निर्धारण है रोकड़ आधिक्य की लागत तथा रोकड़ कमी के दुप्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए अनुकूलतम शेष की सीमा तय की जा सकती हैं । 
  4. अतिरिक्त रोकड का विनियोग – रोकड़ प्रबन्धन का चौथा पहलू निष्क्रिय रोकड़ का विनियोग करता है। ताकि फर्म का वह पैसा अनुत्पादक न पड़ा रहे। यह विनियोग प्राय: बैंक निक्षेपों व विपणन योग्य प्रतिभूतियों में Reseller जाता है इसकालाभ यह होता है कि फर्म की कुछ आय की प्राप्ति भी की जाती है।प्रतिभूतियों का चुनाव करते समय Safty (Safety), परिपक्वता (Maturity), And विपणनशीलता (Marketability) का ध्यान रखा जाना चाहिए। 

रोकड़ प्रबन्ध के उद्देश्य 

वित्तीय प्रबन्धक संस्था के लिए अनुकूलतम नकद कोषों का निर्माण करें। जिससे कि संस्था अपने Needओं की पूर्ति तुरन्त कर सके। व्यवसाय में रोकड़ की उपलब्धता जीवन और मरण के समान है, नकद कोष न केवल व्यवसाय को प्रारम्भ करने अथवा संचालित करने के लिए आवश्यक है अपितु भविष्य की आकस्मिकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक है। अत: नकद कोष रखने के निम्न उद्देश्य हैं –

  1. सतर्कता, 
  2. व्यापार प्रयोजन सम्बन्धी, 
  3. व्यवसाय सुअवसर का लाभ, 
  4. कार्यकुशलता में वृद्धि 
  5. नये विनियोग को प्रोत्साहन, 
  6. ख्याति को बनाये रखना, 
  7. बैंकों व ऋणदाताओं से मधुर सम्बन्ध, 
  8. व्यापारिक छूट प्राप्त करना इत्यादि। 

रोकड शेष को निर्धारित करने वाले तत्व 

रोकड़ का अनुकूलतम स्तर बनाये रखना वित्तीय प्रबन्धकों के लिए सर्वाद्धिाक महत्वपूर्ण कार्य है। Need से अधिक रोकड़ And Need से कम रोकड़ दोनों ही व्यवसाय के लिए हानिकारक है। अत: Single व्यावसायिक संस्था के पास इतनी रोकड़ अवश्य होनी चाहिए कि, उसकी दैनिक Needओं की पूर्ति हो सके। And अप्रत्याशित घटनाओं का सामना Reseller जा सके। किसी व्यवसाय में नकद कोष की मात्रा की Need को निम्न निर्णायक तत्व प्रभावित करते हैं।

  1. रोकड भुगतान – यदि फर्म अपने ऋणों के भुगतान करने में विलम्ब करे तो कम रोकड़ शेष चाहिए। अगर फर्म ऋणों का तुरन्त भुगतान करने को इच्छुक रहती हो तो अधिक रोकड़ शेष निर्धारित करना होगा। 
  2. स्कन्ध स्थिति – पत््र यके व्यावसायिक संस्था को व्यापार संचालन हेतु कच्चे व तैयार माल का स्कन्ध रखना पड़ता है। जिस व्यवसाय में स्कन्ध अधिक मात्रा में रखा जाता है वहाँ पर नकद कोषों की जरूरत अधिक होती हैं । 
  3. उत्पादित माल की मागं – अगर संस्था द्वारा निर्मित माल की मांग लगातार रहती है। तो कम नकद कोषों की जरूरत होती है। इसके विपरीत पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादकों को अधिक नकद कोष जरूरत होगी। 
  4. व्यापार की मात्रा  – Single छोटे व्यापार में बडे़ व्यापार की तुलना में कम रोकड़ की Need अवश्यम्भावी है। बड़ी स्पष्ट बात है कि पान विक्रेता को रोकड़ की Need फ्रीज विक्रेता से जरूर कम हुआ करेगी। 
  5. रोकड संग्रहण – अगर फर्म रोकड़ की वसूली के लिए विकेन्द्रित संग्रहण, तालक सन्दूक प्रणाली अन्तर कम्पनी रोकड़ हस्तान्तरण पर नियन्त्रण जैसी तकनीकों का प्रयोग करती है तो रोकड़ की गति तीव्र होगी और रोकड़ शेष की कम जरूरत होगी। इसके विपरीत, अर्मिाक जरूरत महसूस होगी। 
  6. बैंिकंग सम्बन्ध  – एसे ी कम्पनियाँ जिनके अपने जीवनकाल में बैंकों के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं तथा बैंकों की दृष्टि से जिनकी अच्छी साख है वे कम रोकड़ स्तर से ही काम चला सकती हैं । 
  7. क्रय-विक्रय की शर्तें  – अगर फर्म उधार क्रय को नकद क्रय की तुलना में प्राथमिकता देती है तो कम रोकड़ की जरूरत रहेगी, अन्यथा अधिक रोकड़ चाहिए। इसी प्रकार फर्म यदि उधार विक्रय को प्रोत्साहित करती है तो अपेक्षाकृत अधिक रोकड़ चाहिए। 
  8. व्यवसाय की प्रकृति  – कछु व्यवसाय एसे े होते हैं जहाँ पर रोकड़ की Need स्थार्इ पूंजी की तुलना में कम होती है फिर भी कुल सम्पत्तियों की तुलना में तरल कोषों का अनुपात 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत के बीच रहता है। 
  9. साख नीति, उत्पादन प्रक्रिया, उत्पादन नीति, वितरण प्रणाली, प्रबन्धकीय नीति, And वसूली नीति इत्यादि। 
  10. मन्दी की स्थिति। 
  11. अन्य तत्व – कछु अन्य तत्व भी है जसै – 
    • क. नकद कोषों का कुशल प्रबन्ध 
    • ख. प्राप्य विपत्रों की दशा, 
    • ग. भावी मुद्रा स्फीति की आशंका 
    • घ. लाभांश नीति, व 
    • ड़ स्कन्ध आवर्त अनुपात। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *