राज्य सभा की शक्तियाँ और कार्य

राज्य सभा की शक्तियाँ और कार्य

By Bandey

अनुक्रम

राज्य सभा Meansात् राज्यों की परिषद् संघीय संसद का उपरि सदन है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, राज्य सभा की स्थापना Indian Customer संघ के राज्यों को प्रतिनिधित्व देने के लिए की गई है। परन्तु संयुक्त राज्य अमरीका और स्विट्षरलैण्ड के उपरि सदनों के विपरीत, Indian Customer राज्यों को राज्य सभा में Single समान प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है। इन राज्यों को राज्य सभा में भी उनकी जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व दिया गया है।

राज्य सभा की Creation

राज्य सभा Meansात् संसद के उपरि सदन में अधिक-से-अधिक 250 सदस्य होते हैं जिनमें से 238 राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं और शेष 12 सदस्यों की नामषदगी राष्ट्रपति के द्वारा उन व्यक्तियों में से की जाती है जिन्होंने कला, साहित्य, विज्ञान या समाज सेवाओं के क्षेत्रों में विशेष उपलब्धियाँ प्राप्त की हों। राज्यों का प्रतिनिधित्व करते 238 सदस्य, भारत के 28 राज्यों में सक्रिय राज्य विधानसभाओं के द्वारा चुने जाते हैं। प्रत्येक राज्य विधानसभा के द्वारा चुने गए सदस्यों की संख्या अलग-अलग होती है। संविधान की चौथी सूची में राज्यों को राज्य सभा की सीटें बांटी गई हैं। अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को अधिकतर सीटें दी गई हैं।


चुनाव की विधि

राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव राज्य विधान सभाओ के सदस्यों के द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व Singleहरी हस्तांतरित वोट प्रणाली के द्वारा अप्रत्यक्ष Reseller में Reseller जाता है। प्रत्येक राज्य विधानसभा के द्वारा उतने ही प्रतिनिधियों का चुनाव Reseller जाता है जितने की आज्ञा संविधान के द्वारा दी गई होती है। राष्ट्रपति राज्य सभा में 12 सदस्यों को उन व्यक्तियों में से मनोनीत करता है जिन्होंने कला, विज्ञान, साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त की हो। अक्तूबर 2003 में Single सर्वदलीय सम्मेलन में यह प्रस्ताव पास Reseller गया कि राज्य सभा की सदस्यता के लिए राज्य में निवास के नियम को समाप्त Reseller जाना चाहिए और साथ ही मुक्त मतदान (Open Voting) के द्वारा राज्य सभा के सदस्यों के निर्वाचन की व्यवस्था की जाने चाहिए, लेकिन जून 2004 में राज्य सभा की सदस्यता के सम्बन्ध में प्रस्तावित संशोधन किए जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी।

सदस्यों की योग्यताएँ

राज्य सभा की सदस्यता के लिए संविधान में बताए According व्यक्ति में योग्यताएँ होनी चाहिएं:

  1. वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
  2. जिस राज्य से वह चुनाव लड़ना चाहता है, उस राज्य का वह कम-से-कम 6 महीने से निवासी होना चाहिए।
  3. उसकी आयु 30 वर्ष से अधिक होनी चाहिए। इसीलिए राज्य सभा को बुषुर्गों का सदन (House of Elders) कहा जाता है।
  4. वह संसद के द्वारा निश्चित की गई अन्य All योग्यताएँ पूर्ण करता हो।
  5. वह भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभप्रद पद पर नियुक्त न हो।
  6. वह पागल या दिवालिया नहीं होना चाहिए।
  7. उसको संसद के किसी कानून के अधीन अयोग्य करार न दिया गया हो।

कार्यकाल

राज्य सभा Single अर्ध-स्थायी सदन है। यह लोक सभा के समान भंग नहीं हो सकता। प्रत्येक दो वर्षों बाद इसके Single-तिहाई सदस्य सेवा-निवृत्त हो जाते हैं और खाली सीटों के लिए चुनावस करवाए जाते हैं। राज्य सभा के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल छ: वर्ष का होता है। किसी सदस्य की सदस्यता तब रद्द हो जाती है जब वह त्याग-पत्र दे दे या उसको अयोग्य करार दे दिया जाए। अध्यक्षता करने वाले अधिकारी के द्वारा करवाई गई सदन की बैठकों और इसके अधिवेशनों में बिना किसी कारण 60 दिनों तक अनुपस्थित रहने वाले राज्य सभा के सदस्य को अयोग्य करार दिया जा सकता है।

अधिवेशन

राज्य सभा के अधिवेशन सामान्य Reseller में राष्ट्रपति के द्वारा लोक सभा के अधिवेशनों के साथ ही या पिफर जब उसको आवश्यक प्रतीत हो, बुलाए जाते हैं। परन्तु राज्य सभा के दो अधिवेशनों में छ: महीने से अधिक अन्तर नहीं हो सकता। इसी प्रकार वर्ष में कम-से-कम दो अधिवेशन बुलाने संवैधानिक Need है। राष्ट्रपति उस स्थिति में राज्य सभा का विशेष अधिवेशन बुला सकता है जब लोक सभा भंग हो चुकी हो और संकटकाल स्थिति की घोषणा की स्वीकृति लेनी हो। किसी राज्य में राष्ट्रपति राज्य की अवधि बढ़ाने के लिए अध्यादेश की स्वीकृति के लिए भी राज्य सभा विशेष अधिवेशन बुलाया जा सकता है। मई-जून, 1999 में कारगिल युद्व के मुद्दे पर Discussion करवाने के लिए राज्य सभा के Single विशेष अधिवेशन की मांग की गई क्योंकि इस समय 12वीं लोक सभा भंग की जा चुकी थी, परन्तु ऐसा विशेष अधिवेशन बुलाया नहीं गया था।

राज्य सभा की बैठकों की गणपूर्ति

राज्य सभा की प्रत्येक बैठक में इसके कम से कम 1/10 सदस्यों का उपस्थित होना अनिवार्य है Meansात् सदन की कार्यवाही के लिए राज्य सभा के कम-से-कम 1/10 सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक है। 42वें संशोधन द्वारा, राज्य सभा को अपनी बैठकों में सदस्यों का आवश्यक कोरम निश्चित करने की शक्ति दी गई परन्तु 44वें संशोधन के द्वारा यथापूर्व स्थिति Meansात् सदस्यों के 1/10 सदस्यों की उपस्थिति वाली व्यवस्था को पुन: स्थापित Reseller गया।

सदस्यों के विशेष अधिकार

राज्य सभा के सदस्यों को कई विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं। उनके द्वारा सदन में अपने विचार प्रकट करने पर कोई रोक नहीं होती और सदन में उन के द्वारा कहे गए किसी Word पर उनके विरुद्व कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। राज्य सभा के अधिवेशन के 40 दिन First और 40 दिन बाद तक और इसके दौरान इस किसी सदस्य को किसी दीवानी अपराध के लिए गिरफ्तार नहीं Reseller जा सकता। सदन के सदस्यों के विशेष अधिकारों की Safty के लिए, राज्य सभा की स्थापना के समय से ही Single विशेष समिति ;विशेष अधिकारों की समितिद्ध का गठन Reseller गया है।

राज्य सभा का अध्यक्ष

भारत का उप-राष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन (Ex-officio) अध्यक्ष होता है। वह न तो सदन का सदस्य होता है और न ही सदन में अपनी वोट का प्रयोग करता है परन्तु बैठकों की अध्यक्षता और इसकी कार्यवाहियों का संचालन वह ही करता है। वह विचार-विमर्शों में भाग नहीं लेता परन्तु सदन में अनुशासन और व्यवहारकुशलता स्थापित रखता है। किसी वैधानिक बिल के सम्बन्ध में बराबर के वोट पड़ने के समय उप-राष्ट्रपति, राज्य सभा का अध्यक्ष होने के नाते अपनी निर्णायक वोट का प्रयोग कर सकता है। जब भारत के उप-राष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो उस समय वह न तो बैठकों की अध्यक्षता कर सकता है और न ही निर्णायक वोट देने के अधिकार का प्रयोग कर सकता है। उप-राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में, राज्य सभा का डिप्टी अध्यक्ष, जिसका चुनाव राज्य सभा के सदस्यों के द्वारा अपने में से ही Reseller जाता है, बैठकों की अध्यक्षता करता है। आजकल भारत के उप-राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी राज्य सभा के प्रधान हैं।

वेतन, भत्ते और पैन्शन

राज्य सभा के सदस्यों को संसद के कानून के द्वारा निश्चित किए वेतन और भत्ते मिलते हैं और यदि कोई सदस्य अपना छ: वर्ष का कार्यकाल पूर्ण कर लेता है तो उसको पैंशन भी मिलती है।

राज्य सभा की शक्तियाँ और कार्य

वैधानिक शक्तियाँ

साधारण कानून बनाने के क्षेत्र में राज्य सभा के पास लोक सभा के समान शक्तियाँ हैं। Single साधारण बिल राज्य सभा में भी पेश Reseller जा सकता है और यह तब तक कानून नहीं बन सकता जब तक इसको राज्य सभा की स्वीकृति प्राप्त न हो। संघीय सूची, समवर्ती सूची या अवशेष शक्तियों के विषयों से सम्बन्धित कोई भी बिल, बशर्ते कि यह धन बिल न हो, राज्य सभा में पेश Reseller जा सकता है। किसी साधारण बिल पर संसद के दोनों सदनों में गतिरोध पैदा होने की स्थिति में और यदि यह गतिरोध छ: महीने तक निपटाया ना जा सके तो राष्ट्रपति इस के समाधान के लिए दानों सदनों की साझी बैठक बुलाता है। इस साझी बैठक की अध्यक्षता लोक सभा के स्पीकर के द्वारा की जाती है। यदि साझे अधिवेशन में बिल पास हो जाए तो बिल को राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षरों के लिए भेज दिया जाता है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षरों के बाद बिल कानून बन जाता है। अगर किसी बिल पर गतिरोध समाप्त न हो तो बिल को रद्द कर दिया जाता है।

वित्तीय शक्तियाँ

वित्तीय क्षेत्र में राज्य सभा की स्थिति लोक सभा की तुलना में काफी कमजोर है। Single धन बिल केवल लोक सभा में ही पेश Reseller जा सकता है। लोक सभा के द्वारा पास Reseller गया धन बिल विचार के लिए राज्य सभा में भेजा जाता है। यदि 14 दिनों के अंदर-अंदर राज्य सभा बिल पास करने में असफल रहती है तो बिल को संसद के द्वारा पास समझा जाता है चाहे राज्य सभा ने उसको पास न ही Reseller हो। यदि राज्य सभा कुछ सुधारों का प्रस्ताव रखती है तो धन बिल लोक सभा में वापस भेज दिया जाता है। प्रस्तावित सुधारों को स्वीकार या रद्द करना लोक सभा पर निर्भर करता है। बजट भी धन बिल ही होता है और राज्य सभा इसके पास होने के मार्ग में भी बाधा पैदा नहीं कर सकती। यह अधिक-से-अधिक धन बिल पास करने में 14 दिनों की देरी ही कर सकती है। इस मामले में राज्य सभा की शक्ति ब्रिटिश हाउफस ऑपफ लार्ड से भी कम है, जो धन बिल को 30 दिन तक रोक सकता है। संयुक्त राज्य अमरीका की सीनेट वित्तीय क्षेत्र में Indian Customer राज्य सभा से अधिक शक्तिशाली है। संयुक्त राज्य की सीनेट ही धन बिल के अन्तिम Reseller का निर्णय करती है।

कार्यपालिक शक्तियाँ

Indian Customer संविधान 75 (3) के According, मन्त्रि-परिषद् सामूहिक Reseller में लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। केवल लोक सभा ही अविश्वास का प्रस्ताव पास करके मन्त्रि-परिषद् को हटाए जाने का कारण बन सकती है। राज्य सभा में से भी कुछ मन्त्री लिए जाते हैं। यह परम्परा कि प्रधानमन्त्री सदैव लोक सभा में से ही होता है, अब टूट चुकी है। 1996 में, प्रधानमन्त्री एच. डी. देवेगौड़ा लोक सभा के नहीं बल्कि राज्य सभा के सदस्य बने। अप्रैल, 1997 में श्री इन्द्र कुमार गुजराल प्रधानमन्त्री बने और वह भी राज्य सभा के ही सदस्य थे। वर्तमान प्रधानमन्त्री डॉमनमोहन सिंह भी राज्य सभा के ही सदस्य हैं। इस प्रकार अब राज्य सभा का सदस्य भी प्रधानमन्त्री बन सकता है बशर्ते कि लोक सभा में बहुमत वाले/समूह उसको अपना नेता निर्वाचित कर ले, अपना ले, जैसा कि डॉ. मनमोहन सिंह के मामले में मई 2004 में हुआ था। परन्तु कुल मिला कर, राज्य सभा को संसद को प्राप्त कार्यपालिक शक्तियों के क्षेत्र में सीमित भूमिका ही प्राप्त है।

संशोधन शक्तियाँ

जहाँ तक संशोधन करने की शक्तियों का सम्बन्ध है, संसद के दोनों सदनों में से किसी Single में कोई भी संवैधानिक संशोधन बिल प्रस्तुत Reseller जा सकता है। यदि राज्य सभा इसको अपना लेती है तो इसको स्वीकृति के लिए लोक सभा में भेजा जाता है और यदि लोक सभा इसको पास कर दे तो इसको बाद में स्वीकृति के लिए राज्य सभा के पास भेजा जाता है। इसका Means यह हुआ कि राज्य सभा और लोक सभा दोनों की स्वीकृति के बिना कोई संवैधानिक संशोधन बिल पास नहीं Reseller जा सकता। दोनों को समान Reseller में और संविधान के अनुच्छेद 368 के द्वारा निश्चित बहुमत के According Single संशोधन बिल पास करना होता है। अत: संशोधन करने के क्षेत्र में संसद के दोनों सदनों को Single समान शक्तियाँ प्राप्त हैं। 5. चुनाव से सम्बन्धित शक्तियाँ ;म्समबजवतंस च्वूमतेद्धरू राज्य सभा के पास कुछ निर्वाचन शक्तियाँ भी होती हैं। राज्य सभा के निर्वाचित सदस्य, लोक सभा और All राज्यविधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों से मिलकर भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं। राज्य सभा के सदस्य अपने में से ही Single सदस्य को अपना उपाध्यक्ष चुनते हैं। राज्य सभा के सदस्य लोक सभा से मिलकर भारत के उप-राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।

न्यायिक शक्तियाँ

यह ठीक है कि राज्य सभा के पास कोई सिविल या फौजदारी अधिकार-क्षेत्र नहीं, परन्तु यह  न्यायिक कार्य करती है:

  1. राज्य सभा तथा लोक सभा दोनों मिलकर राष्ट्रपति पर संविधान का उल्लंघन करने का आरोप लगा कर उस पर महाभियोग का मुकद्दमा चला सकती है।
  2. राज्य सभा सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए विशेष प्रस्ताव पास कर सकती है।
  3. उप-राष्ट्रपति पर आरोप केवल राज्य सभा में ही लगाए जा सकते हैं।
  4. यह कुछ उच्च अधिकारियों जैसा कि अटारनी जनरल ऑफ इंडिया, कम्पट्रोलर और आडीटर जनरल, मुख्य चुनाव आयुक्त आदि को हटाने के लिए भी प्रस्ताव पास कर सकती है।

फुटकल शक्तियाँ

उपर्युक्त शक्तियों के अतिरिक्त, राज्य सभा, लोक सभा से मिलकर कार्य संयुक्त Reseller में पूर्ण करती है:

  1. राष्ट्रपति के द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों की स्वीकृति करना।
  2. संकटकाल स्थिति के घोषणा की स्वीकृति करना।
  3. सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में परिवर्तनों से सम्बन्धित बिल पास करने की शक्ति।
  4. लोक सभा और राज्य सभा की सदस्यता के लिए योग्यताओं में परिवर्तन करने की शक्ति।

राज्य सभा की विशेष शक्तियाँ

राज्य सभा को सौंपी गई कुछ विशेष शक्तियों का ब्यौरा इस प्रकार है:

  1. राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का विषय घोषित करने की शक्ति – अनुच्छेद 249 अधीन, राज्य सभा विद्यमान सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करके राज्य सूची के किसी भी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का विषय घोषित कर सकती है। ऐसे प्रस्ताव के फलस्वReseller संघीय संसद उस विषय के सम्बन्ध में Single वर्ष के समय के लिए कानून बना सकती है। ऐसा प्रस्ताव राज्य सभा के द्वारा प्रत्येक वर्ष बार बार पास Reseller जा सकता है। Second Wordों में, जब राज्य सभा धारा 249 के अधीन कोई प्रस्ताव पास करती है तो सम्बन्धित राज्य विषय Single वर्ष के लिए साझा विषय बन जाता है। इस पर संघीय संसद कानून-निर्माण कर सकती है। इस प्रकार राज्य सभा के पास साधारण समय के दौरान किसी भी राज्य के विषय को संघीय संसद के वैधानिक अधिकार क्षेत्र में शामिल करने की विशेष शक्ति प्राप्त है।
  2. किसी अखिल Indian Customer सेवा की स्थापना अथवा समाप्ति से सम्बन्धित शक्ति – संविधान के अनुच्छेद 312 के According राज्य सभा 2/3 बहुमत से Single प्रस्ताव पास करके Single या Single से अधिक नई अखिल Indian Customer सेवाओं की स्थापना कर सकती है। इसी प्रकार, राज्य सभा किसी विद्यमान अखिल Indian Customer सेवा को भंग भी कर सकती है।
  3. लोक सभा के भंग होने की स्थिति में, राज्य सभा राष्ट्रपति के द्वारा संकटकालीन शक्तियों के प्रयोग पर लोकतन्त्रीय ढंग से रोक लगाने के योग्य होती है। लोक सभा की ऐसी स्थिति में संकटकाल की घोषणा को राज्य सभा के द्वारा स्वीकार करवाए जाने की व्यवस्था है।
  4. केवल राज्य सभा ही भारत के उप-राष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव पेश कर सकती है।

राज्य सभा की स्थिति

राज्य सभा की शक्तियों के अध्ययन से Single बात सामने आती है कि यह न तो ब्रिटिश हाउस ऑपफ लार्ड के समान Single सजावटी सदन है और न ही अमरीकी सीनेट के समान Single बहुत शक्तिशाली सदन है। इसकी स्थिति इन दोनों के बीच वाली है। यह लोक सभा की परछार्इं नहीं है, परन्तु लोक सभा के समान शक्तिशाली भी नहीं है। अब संघीय संसद के उपरि सदन होने के नाते राज्य सभा को लोक सभा से कम शक्तियाँ सौंपी गई हैं, परन्तु इसके साथ ही यह भी जान लेना आवश्यक है कि संविधान द्वारा राज्य सभा को जो भूमिका दी गई है, वह काफी महत्त्वपूर्ण है। इससे कोई इनकार नहीं कि लोक सभा की तुलना में राज्य सभा कमजोर सदन है, कई आलोचकों के द्वारा तो इसको गौण या निरर्थक सदन भी कहा गया है। डॉ. अंबेडकर भी इसकी उपयोगिता के प्रति निश्चित नहीं थे। उनके विचार के According, फ्मैं नहीं कह सकता कि मैं Second सदन के बहुत पक्ष में हूँ। परन्तु संविधान निर्माण सभा के द्वारा राज्य सभा को दूसरा सदन बनाने का निर्णय कर लिया गया जो भारत संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करेगा और जो सहायक और नियन्त्रक सदन के Reseller में कार्य करेगा। (I cannot say that I am very strongly prepossessed in favour of a second chamber. However, the Constituent Assembly decided to provide for the Rajya Sabha as a second chamber,a chamber designed to give representation to the units of Indian Federation and a chamber designed to act as a helping as well as a checking chamber.) राज्य सभा को न तो ब्रिटिश हाउफस ऑपफ लार्ड के समान शक्तिहीन बनाया गया और न ही संयुक्त राज्य की सीनेट जितना शक्तिशाली। साधारण कानून-निर्माण, राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के निर्वाचनों, महाभियोग चलाने की शक्ति और सरकार की रिपोर्टों को विचारने की शक्ति के सम्बन्ध में राज्य सभा को लोक सभा के समान शक्तियाँ दी गई हैं। परन्तु कुल मिला कर इसकी भूमिका को निम्न सदन की भूमिका से कम महत्त्वपूर्ण रखा गया। लोक सभा को संघ की कार्यपालिका और देश के वित्तीय नियन्त्रण का उत्तरदायित्व सौंपा गया है और इस क्षेत्र में राज्य सभा की शक्तियाँ बहुत सीमित हैं।

राज्य सभा की उपयोगिता

इस सच्चाई के बावजूद कि राज्य सभा Single कमषोर सदन है, Indian Customer संवैधानिक प्रणाली में संघीय संसद का सहायक और दोहराने वाला सदन होने के कारण, और संघ और राज्यों के मध्य Single सम्पक्र-सूत्र का कार्य करने वाली संस्था के Reseller में इसका स्थान महत्त्वपूर्ण रहा है। राज्य सभा की उपयोगिता का वर्णन करते हुए मोरिस जोनष  लिखते हैं, इसकी तीन प्रभावशाली विशेषताएँ हैं: यह अतिरिक्त राजनीतिक अवसर देती है जिनकी मांग विद्यमान है, यह विचार-विमर्श के लिए अधिक अवसर उपलब्ध करवाती है जिनकी कभी-कभार Need पड़ी है, और यह सीमित वैधानिक समस्याओं के समाधान ढूँढने में सहायता करती है। संघीय संसद के उपरि सदनर के Reseller में राज्य सभा के महत्त्व का अग्रलिखित तथ्यों के आधार पर वर्णन Reseller जा सकता है:

  1. योग्य व्यक्तियों की प्रतिनिधि – भारत का राष्ट्रपति ऐसे व्यक्तियों में से राज्य सभा में 12 मनोनीत करता है जिन्होंने कला, विज्ञान, साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष उपलब्धियाँ प्राप्त की होती हैं। इस प्रकार योग्य और अनुभवी व्यक्तियों को संघीय संसद में शामिल करके राष्ट्र के द्वारा उनकी सेवाओं का लाभ उठाया जा सकता है।
  2. विशेष शक्तियों सहित अर्ध-स्थायी सदन के Reseller में राज्य-सभा की उपयोगिता – राज्य सभा Single अर्ध-स्थायी सदन है और अपनी विशेष शक्तियों के कारण Indian Customer संवैधानिक प्रणाली में प्रभावशाली भूमिका निभाता है। अर्ध-स्थायी सदन के Reseller में यह स्थिरता का स्रोत है। जब लोक सभा भंग हो चुकी हो और विशेष कार्य आ पड़े जैसा कि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ानी हो या संकटकालीन समय के घोषणा की स्वीकृति की Need हो, उस समय राज्य सभा से स्वीकृति ली जा सकती है। मई, 1991 में हरियाणा में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए दो दिन का राज्य सभा का विशेष अधिवेशन बुलाया गया था। 21 मई, 1991 को भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी के दुर्भाग्यपूर्ण और दुखदायी कत्ल के कारण चुनाव प्रक्रिया पूरी होने में हुई देरी के कारण यह बहुत आवश्यक हो गया था। इसके साथ ही राज्य सभा सहायक सदन के Reseller में भी कार्य करती है। यह लोक सभा का कार्य-भार हल्का करती है क्योंकि विवाद-रहित और कुछ अन्य बिल First राज्य सभा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं। यह बिलों को दोहराने वाले सदन के Reseller में भी कार्य करती है। संविधान की संशोधन प्रक्रिया में और राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति का चुनाव में यह लोक सभा के समान भूमिका निभाती है। पिफर इसके पास अनुच्छेद 249 और 312 के अधीन विशेष शक्तियाँ हैं। इस कारण राज्य सभा ब्रिटिश हाउफस ऑपफ लाड्र्ष के समान गौण या निरर्थक सदन नहीं है।
  3. राज्य सभा की भूमिका – संविधान लागू करने के समय से लेकर अब तक राज्य सभा संघीय संसद के Second सदन के Reseller में उचित भूमिका निभाती है। 1977-79 के दौरान, इसने लोक सभा के द्वारा पास किए गए कुछ बिलों/प्रस्तावों पर रोक लगाने पर जाँच करने की भूमिका निभाई। इस समय के दौरान राज्य सभा Single सक्रिय सदस्य बना रहा क्योंकि उस समय राज्य सभा में तो कांग्रेस का बहुमत था, परन्तु लोक सभा में जनता पार्टी का बहुमत था। इसने 43 वें और 44 वे संशोधन बिलों की कुछ व्यवस्थाओं में संशोधन Reseller या काट दी जिनको लोक सभा के द्वारा पास कर दिया गया था। इसी प्रकार 1989-90 और 1996-2003 के दौरान ऐसे ही वातावरण के कारण ही राज्य सभा पिफर सक्रिय बनी रही। परन्तु 1950-77 और 1980-89 के दौरान राज्य सभा के द्वारा निर्धारित और संवैधानिक Reseller में निश्चित की गई भूमिका निभाने में इसकी असफलता का मुख्य कारण Single-दल के हावी होने की प्रणाली वाली Indian Customer दल प्रणाली की प्रकृति रही थी और इसमें कोई संCreationत्मक या संवैधानिक त्रुटियाँ नहीं हैं। ज्यों-ज्यों कांगे्रस की अत्यन्त शक्तिशाली स्थिति कम होती गई और Second राजनीतिक दलों की स्थिति अधिक सक्रिय और शक्तिशाली होती गई। राज्य सभा की भूमिका भी परिवर्तित होती गई। आजकल कई अलग-अलग राजनीतिक दलों को संघ के अलग-अलग राज्यों में बहुमत प्राप्त है, राज्य सभा All दलों का आनुपातिक क्रम में प्रतिनिधित्व करती है। इनमें से कोई भी दल दो-तिहाई सीटों का बहुमत प्राप्त करने के लिए आशावान नहीं हो सकता और इसके लिए राज्य सभा अपनी इच्छा के According अपनी संशोधन शक्ति और दो विशेष शक्तियों का प्रयोग अब कर सकती है। इससे इसकी स्थिति कुछ और दृढ़ हुई है। यह अवश्य स्मरण रखा जाना चाहिए कि संघीय संसद Single दो-सदनीय संस्था है और राज्य सभा को इसका अटूट अंग उपरि सदन बना ही रहना है। अब प्रधानमंत्री की Appointment के लिए उम्मीदवार देने के लिए राज्सभा पर भी निर्भर Reseller जा सकता है।

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