राज्य उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार और शक्तियां

राज्य उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार और शक्तियां

By Bandey

अनुक्रम

संविधान की धारा 214 के अन्तर्गत राज्य स्तर पर प्रत्येक राज्य के लिए Single उच्च न्यायालय (High Court) की व्यवस्था की गई है। (“There shall be a High Court of each state.”) इसके साथ ही अनुच्छेद 231 में यह भी कहा गया है कि संसद दो या दो से अधिक राज्यों और केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों के लिए Single उच्च न्यायालय की भी व्यवस्था कर सकती है। अत: 1966 के पंजाब पुनर्गठन कानून के द्वारा संसद ने पंजाब और हरियाणा राज्यों And चण्डीगढ़ के केन्द्र-प्रशासित क्षेत्र के लिए Single उच्च न्यायालय स्थापित Reseller, जोकि चण्डीगढ़ में है। राज्यों के उच्च न्यायालय अखिल Indian Customer न्याय-व्यवस्था का अंग होते हुए भी अपने आप में स्वतंत्र इकाइयाँ हैं। उनके उफपर अपने राज्यों के विधानमण्डल या कार्यपालिका का कोई नियंत्रण नहीं है। उच्च न्यायालय Single राज्य का सबसे बड़ा न्यायालय है और Single राज्य के बाकी All न्यायालय उसके अधीन होते हैं।

राज्य उच्च न्यायालय की Creation

प्रत्येक उच्च न्यायालय में Single मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) और कुछ अन्य न्यायाधीश होते हैं। इनकी संख्या संबंधित राज्यों की जरूरत को ध्यान में रखकर राष्ट्रपति द्वारा तय की जाती है। काम की अधिकता होने पर Single उच्च न्यायालय में अधिक-से-अधिक दो वर्षों के लिए अतिरिक्त न्यायाधीश (Additional Judges) Hkh नियुक्त किए जा सकते हैं। इस समय पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में Single मुख्य न्यायाधीश और 26 अन्य न्यायाधीश है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस समय 60 न्यायाधीश हैं।


राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों लिए योग्यताएँ

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और मुख्य न्यायाधीशों के लिए योग्यताएँ तय की गई हैं-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह Indian Customer संघ के किसी भी क्षेत्र में कम-से-कम 10 वर्ष तक किसी न्यायिक पद पर रह चुका हो।

अथवा

देश के किसी Single उच्च न्यायालय या Single से अधिक उच्च न्यायालयों में 10 वर्षों तक वकालत कर चुका हो। किसी व्यक्ति की वकालत का 10 वर्ष के समय की शर्त को पूरा करने के लिए उसमें वह समय भी शामिल Reseller जाता है जिस समय के लिए वह उच्च न्यायालय में वकालत शुरू करने के बाद किसी न्यायिक पद पर किसी न्यायाधिकरण (Tribunal) के सदस्य के पद पर नियुक्त रहा हो अथवा केन्द्र या राज्य सरकार के अधीन किसी ऐसे पद पर आसीन रहा हो जिसके लिए कानून के विशिष्ट ज्ञान की Need हो।

42वें संशोधन के द्वारा यह व्यवस्था की गई थी कि ऐसे व्यक्ति को उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त Reseller जा सकता है, जो राष्ट्रपति की दृष्टि में प्रसिद्व न्यायशास्त्री हो अथवा जो किसी ट्रिब्यूनल या केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन कानून की विशेष जानकारी रखने वाले पद पर 10 वर्ष तक कार्य कर चुका हो। लेकिन 44 वे संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को न्यायाधीश नियुक्त नहीं कर सकता, जो उसकी दृष्टि में प्रसिद्व न्यायशास्त्री हो, जब तक कि वह व्यक्ति उफपरलिखित अन्य योग्यताओं को पूरा न करता हो।

राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की Appointment

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की Appointment राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा संबंधित राज्य के राज्यपाल की सलाह से करता है। अन्य न्यायाधीशों (मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर) की Appointment करते समय राष्ट्रपति को उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की भी सलाह लेनी पड़ती है। मुख्य न्यायाधीश की Appointment प्राय: वरिष्ठता (Seniority) के आधार पर की जाती है। लेकिन 10 मई, 1974 को पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी. के. महाजन (D.K. Mahajan) के सेवा-निवृत्त होने पर जस्टिस नरूला को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त Reseller गया, जिस पर उनसे सीनियर न्यायाधीश प्रेमचन्द पंडित ने अपना त्यागपत्र दे दिया। 27 जनवरी, 1983 को केन्द्रीय सरकार ने यह घोषणा की कि देश के All उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश राज्य के बाहर से लिए जाएँगे तथा यह भी निर्णय लिया गया कि भविष्य में सब राज्यों के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश Second राज्यों के उच्च न्यायालयों से वहाँ पर उनकी वरिष्ठता (Seniority) तथा योग्यता (Ability) के आधार पर लिए जाएँगे। 15 जुलाई, 1986 को सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को यह आदेश दिया कि वह मुख्य न्यायाधीश के अन्य राज्यों में से नियुक्त करने की नीति को लागू करे।

राज्य उच्च न्यायालय का कार्यकाल

उच्च न्यायालय का न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक अपने पद पर काम करता है। परन्तु वह इससे पूर्व अपने पद से त्याग-पत्र देकर अलग हो सकता है। अपनी अवधि के समाप्त होने के बाद वह किसी स्थान पर सरकार की स्वीकृति के बिना कोई भी कार्य नहीं कर सकता।

पदच्युति

यदि संसद के दोनों सदन अपने-अपने सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत से और सदन की बैठक के उपस्थित सदस्यों के 2/3 बहुमत से किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सदाचार या अयोग्यता (Misbehaviour or Incapacity) के अपराध में अपराधी ठहराए और इस विषय में राष्ट्रपति को सम्बोधित करे, तो राष्ट्रपति उस न्यायाधीश को पद से हटा देता है।

वेतन

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को अस्सी हजार रुपये मासिक तथा अन्य न्यायाधीशों को सत्तर हजार रुपये मासिक वेतन मिलता है। वेतन के अतिरिक्त उन्हें कई प्रकार के भत्ते मिलते हैं। वित्तीय संकटकालीन की स्थिति को छोड़कर अन्य किसी भी परिस्थिति में उनके वेतन तथा भत्तों में कमी नहीं की जा सकती। मार्च, 1976 में संसद ने कानून पास करके उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए रिटायर होने के बाद पेंशन की भी व्यवस्था की गई।

शपथ

धारा 219 के अन्तर्गत प्रत्येक न्यायाधीश को अपना पद ग्रहण करते समय राज्य के राज्यपाल या उसके द्वारा नियुक्त अन्य पदाधिकारी के समक्ष अपने पद की शपथ लेनी पड़ती है कि वह संविधान में आस्था रखेगा, अपने कर्त्तव्यों का ईमानदारी से पालन करेगा व संविधान तथा कानून की रक्षा करेगा।

राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानान्तरण

राष्ट्रपति न्यायाधीशों का Single राज्य से Second राज्य में तबादला कर सकता है। आन्तरिक आपातकाल के दौरान Seven न्यायाधीशों को Single उच्च न्यायालय ने अपने महत्त्वपूर्ण निर्णय में उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा अन्य न्यायाधीशों के अन्तर्राज्यीय तबादले को वैध करार दिया। केन्द्रीय सरकार ने 27 जनवरी, 1983 को Single महत्त्वपूर्ण घोषणा की थी कि ऐसे मुख्य न्यायाधीश को, जिसके सेवा-निवृत्त होने में Single वर्ष अथवा कम समय रह गया हो तो उसे Second राज्य के उच्च न्यायालय में स्थानान्तरित नहीं Reseller जाएगा।

सामान्य व्यवस्थाएँ

उच्च न्यायालय का न्यायाधीश सेवानिवृत्त होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय तथा अन्य राज्यों के सिवाय किसी Second न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता। इसका अभिप्राय यह है कि सेवा से निवृत्त होने वाला न्यायाधीश उस न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता, जहाँ से वह सेवानिवृत्त हुआ हो।

राज्य उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार और शक्तियां

उच्च न्यायालयों के अधिकार और उनके क्षेत्राधिकार लगभग वैसा ही है जैसे कि संविधान लागू होने से First थे। उच्च न्यायालय का मुख्य काम मुकदमों का निर्णय करना है। परन्तु इसे न्यायिक पुनर्विचार की शक्ति भी प्राप्त है। इसके अतिरिक्त इसे अपने अधीनस्थ न्यायालयों की देख-रेख करने का प्रKingीय कार्य भी करना होता है। अत: इसकी शक्तियों तथा कार्यों का अध्ययन इस प्रकार Reseller जा सकता है-

प्रारंभिक क्षेत्राधिकार

  1. कलकत्ता, बंबई और मद्रास उच्च न्यायालयों में कुछ दीवानी व पफौजदारी मुकदमे First बार में ही सीधे पेश किए जा सकते हैं। उनके लिए यह आवश्यक नहीं कि वे First अधीन न्यायालयों में पेश किए जायें जैसा कि अन्य राज्यों में पाया जाता है।
  2. नौकाधिकरण – इच्छा-पत्र Meansात् वसीयत (Probate), विवाह विधि, कम्पनी विधि तथा विवाह-विच्छेद आदि के मुकदमे भी सीधे उच्च न्यायालयों के पास जा सकते हैं। उच्च न्यायालयों के अपमान के विषय में भी All उच्च न्यायालयों को प्रारंभिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
  3. उच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी रक्षक है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों पर आघात होता है, तो वह नागरिक सीधा सर्वोच्च न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दे सकता है अथवा उच्च न्यायालय में। उच्च न्यायालय कई लेखों (Writs), जैसे–बंदी प्रत्यक्षीकरण (Writ of Habeas Corpus), परमादेश (Writ of Mandamus), प्रतिषेध (Writ of Prohibition), उत्प्रेक्षण (Writ of Certiorari), पृच्छा लेख (Writ of Quo-Warranto) के द्वारा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है। इन लेखों (Writs) को जारी करने का अधिकार अन्य सब कार्यों के लिए भी है।

42 वें संशोधन द्वारा उच्च न्यायालयों को कुछ शक्तियों से वंचित Reseller गया था, लेकिन अब 44वें संशोधन के अन्तर्गत 42 वें संशोधन से पूर्व की स्थिति को पुन: स्थापित करने की व्यवस्था की गई है।

अपीलीय क्षेत्राधिकार

All उच्च न्यायालयों को अपने अधीन न्यायालयों के पैफसलों के विरूद्व अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है, जिन्हें दो भागों में विभाजित Reseller जा सकता है। (i) दीवानी (Civil) तथा (ii) फौजदारी (Criminal)।

(i) दीवानी–दीवानी मामलों में उच्च न्यायालयों में कोई भी अपील या पहली अपील होगी अथवा दूसरी अपील। पहली अपील का Means यह है कि जिला न्यायालयों के निर्णयों के विरूद्व सीधे उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। ऐसा तभी हो सकता है जब उस मुकदमे में कानून का कोई गहरा प्रश्न उलझा हुआ हो। Second, जब Single अपील जिले का न्यायालय सुन चुका है तो उसके निर्णय के विरूद्व भी अपील उच्च न्यायालय में हो सकती है परन्तु उसमें कोई कानूनी प्रश्न उलझा होना चाहिए। उच्च न्यायालय में पहली तथा दूसरी अपीलीय क्षेत्रािध्कार के अंर्तगत यदि उच्च न्यायालय के Single न्यायाधीश ने अपील सुनी है तो उसके निर्णय के विरुद्व उच्च न्यायालय में फिर अपील हो सकती है। ऐसी स्थिति में कई न्यायाधीश अपील सुनते हैं। यहाँ यह Historyनीय है कि 9 जनवरी, 1980 को पंजाब न्यायालय (संशोधन) अध्यादेश (Punjab Courts [(Amendment Ordinance, 1979), लागू हुआ था। इस अध्यादेश के According जिस अभियोग का संबंध 20,000 रुपये से 5 लाख रुपये तक की रकम के साथ है, इस अभियोग संबंधी पहली अपील जिला न्यायाध्ीश के पास और जिला न्यायाधीश के निर्णय विरुद्व अन्य अपील राज्य के उच्च न्यायालय (High Court) के पास होगी।

(ii) फौजदारी–फौजदारी मुकदमों में निम्नलिखित मामलों में निचले न्यायालयों के निर्णय के विरूद्व अपील उच्च न्यायालय में हो सकती है-

  1. यदि सेशन जज ने किसी अपराधी को मृत्यु-दण्ड दिया हो तो उसकी पुष्टि उच्च न्यायालय से होनी चाहिए। वह अपराधाी स्वयं भी उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
  2. यदि निचले न्यायालय ने किसी अपराधी को 4 वर्ष या इससे अधिक की सजा दी हो।
  3. किसी प्रेसीडेन्सी मजिस्टे्रट के निर्णय के विरुद्व अपील उच्च न्यायालय में होगी।
  4. उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्व सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में अपील की जा सकती है। ऐसी अपील प्रत्येक मुकदमे में नहीं हो सकती। कानूनानुसार जिन अभियोगों में अपील की जा सकती है, उनके लिए यह अनिवार्य है कि संबंधित उच्च न्यायालय (High Court) अपील करने की आज्ञा दे। उच्च न्यायालयों की आज्ञा के बिना उसके निर्णयों के विरुद्व न्यायालय अपनी इच्छा के According भी किसी मुकदमे संबंधी अनुच्छेद 136 के अन्तर्गत विशेष अपील करने की आज्ञा दे सकता है।

प्रKingीय शक्तियाँ

राज्य की न्याय व्यवस्था में उच्च न्यायालय का स्थान सबसे उफँचा होता है। वह All अधीनस्थ न्यायालयों के काम की देखभाल करता है और उनके कार्य संचालन के नियम व विनिमय बनाता है। इसकी प्रKingीय शक्तियाँ हैं-

  1. वह न्यायालय अपने राज्य की सीमा में स्थित All न्यायालयों तथा न्यायाधिकरणों (Tribunals) का निरीक्षण कर सकता है, परंतु सैनिक न्यायालय इसके Single प्रशासनिक क्षेत्र से बाहर हैं।
  2. इसे अधीनस्थ न्यायालयों के लिए कार्यवाही के नियम (Rules of Procedure) बनाने का भी अधिकार है।
  3. यह निम्न न्यायालयों के लिए अपनी कार्यवाही का रिकार्ड रखने, हिसाब-किताब तथा कागज-पत्रों को Windows Hosting रखने की विधि के बारे में नियम बना सकता है।
  4. इसे यह अधिकार प्राप्त है कि किसी भी न्यायालय से कोई कागज-पत्र अथवा रिकार्ड आदि मँगवाकर उसका स्वयं निरीक्षण कर सके।
  5. यह किसी मुकदमे को Single न्यायालय से Second न्यायालय में भी बदल सकता है।
  6. उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय (Court of Record) है। इसका भाव यह है कि इसके निर्णय और कार्य-पद्वति को दूसरी अदालतों में उदाहरण के Reseller में पेश Reseller जा सकता है।
  7. इसे राज्य के किसी न्यायालय से किसी मुकदमे को अपने पास मँगवाने अथवा यह आदेश देने का भी अधिकार है कि वह उस मुकदमे का निर्णय शीघ्र करें।
  8. इसे यह देखने का अधिकार है कि इसके अधीनस्थ न्यायालय अपनी सीमा का उल्लंघन तो नहीं करते तथा अपने कर्त्तव्यों का पालन निश्चित विधि के According करते हैं कि नहीं।
  9. इसे अपने अधीनस्थ न्यायालयों के कर्मचारियों के वेतन, भत्ते तथा सेवा की शर्तों आदि को निश्चित करने का भी अधिकार है। इन न्यायालयों के न्यायाधीशों की पदोन्नति, अवनति, पेंशन इत्यादि के बारे में नियम बनाने की शक्ति भी इसे प्राप्त है।
  10. संविधान के अनुच्छेद 229 के अन्तर्गत मुख्य न्यायाधीश इस न्यायालय के अपने कर्मचारियों तथा अधिकारियों की Appointment करता है तथा उनकी सेवा की शर्तें आदि निश्चित करता है। ऐसा करते समय वह राज्य लोक सेवा आयोग से परामर्श करता है। यह नियम राज्यपाल की स्वीकृति मिलने पर ही लागू होते हैं। यदि उच्च न्यायालय केन्द्रीय क्षेत्र में स्थित है तो इन बातों के लिए स्वीकृति राष्ट्रपति से लेनी होती है।

मुकदमों को तब्दील करने का अधिकार

यदि उच्च न्यायालय को यह पता चले कि किसी अधीनस्थ न्यायालय में कोई ऐसी मुकदमा चल रहा है जिस का संबंध कानून की व्याख्या (Interpretation of Law) से है तो वह ऐसे मुकदमे को अपने पास मँगवा सकता है। वह या तो उसी मुकदमे का स्वयं निर्माण करता है या उससे संबंधित कानूनी प्रश्न की व्याख्या करके उसे अधीनस्थ न्यायालय द्वारा निर्णय करने के लिए वापस भेज देता है। उच्च न्यायालय किसी Single अधीनस्थ न्यायालय में चल रहे मुकदमे को Second अध्ीनस्थ न्यायालय में तब्दील करने का अधिकार भी रखता है।

अभिलेख न्यायालय

उच्च न्यायालय Single अभिलेख न्यायालय है। इसके All निर्णय और अन्तिम आदेश प्रकाशित किए जाते हैं। ये भविष्य के लिए न्याय-दृष्टान्त बन जाते हैं। वकील लोग निचले न्यायालय में बहस के समय इनका हवाला देते हैं। उच्च न्यायालय को अपना अपमान करने वाले व्यक्तियों को दण्ड देने का अधिकार है।

मौलिक अधिकारों का संरक्षक

उच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकार की रक्षा करता है। यदि कोई व्यक्ति या संस्था संविधान में दिए गए मौलिक अिध्कारों का उल्लंघन करे तो उनके विरुद्व उच्च न्यायालय में कार्यवाही की जा सकती है। उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए कई प्रकार के लेख जारी कर सकता है। मौलिक अधिकारों से संबंधित मुकदमे सीधे सर्वोच्च न्यायालय में भी ले जाए जा सकते हैं।

संविधान की व्याख्या करने का अधिकार

उच्च न्यायलय कुछ मामलों में संविधान की व्याख्या करने का अधिकार भी रखता है। यह संवैधानिक मुकदमों को सुनता है तथा उन पर अपना निर्णय देता है। परन्तु इसके निर्णय अन्तिम नहीं होते। उनके विरुद्व सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। यदि राज्य विधानमण्डल कोई ऐसा कानून पास करे या राज्य कार्यपालिका ऐसा आदेश जारी करे जो संविधान का उल्लंघन करता हो तो चुनौती दिए जाने पर, उच्च न्यायालय उन्हें अवैध करार दे सकता है। 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा इस बात की व्यवस्था की गई है कि उच्च न्यायालय ऐसे मुकदमों पर विचार नहीं करेगा जिसमें किसी केन्द्रीय कानून की संवैधानिक वैधता का प्रश्न निहित हो। ऐसे मुकदमे केवल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही सुने और निपटाए जाएंगे।

मुकदमों को प्रमाणित करने का अधिकार

उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों के विरुद्व सर्वोच्च न्यायालय में तभी अपील की जा सकती है जब उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करे कि अपील करने के लिए संविधान में निश्चित की गई शर्ते पूरी होती हैं, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय को यह अिध्कार है कि वह उच्च न्यायालय के प्रमाणित न करने पर भी अपील करने की विशेष अनुमति प्रदान कर सकता है।

क्षेत्राधिकार

संविधान की धारा 230 के According संसद कानून द्वारा किसी राज्य के उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में न्यायिक कार्यों के लिए किसी केन्द्र-शासित क्षेत्र (Union Territory) को शामिल कर सकता है या उसके क्षेत्राधिकार से बाहर निकाल सकता है।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की स्वतंत्रता

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्वतंत्रता के लिए संविधान के द्वारा वैसे ही उपबन्धों की व्यवस्था की गई है जैसे उपबन्धों की व्यवस्था सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए हैं। संक्षेप में, ये उपबन्ध हैं:

  1. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की Appointment राष्ट्रपति करता है और यह Appointment न्यायिक योग्यता वाले व्यक्तियों के परामर्श के आधार पर की जाती है।
  2. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय तथा उन उच्च न्यायालयों जिनका वह न्यायाधीश नहीं रह चुका है, को छोड़कर अन्य किसी न्यायालय या पदाधिकारी के समक्ष वकालत नहीं कर सकता है।
  3. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन संविधान द्वारा निश्चित कर दिया गया है और पद ग्रहण के बाद उनके वेतन, भत्ते आदि में कोई कमी नहीं की जा सकती। वेतन, भत्ते, पेंशन तथा छुट्टी के संबंध में नियम निर्माण का अधिकार संसद को प्राप्त है, न कि राज्य के विधानमण्डल को।
  4. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल Windows Hosting है। न्यायाधीश अवकाश ग्रहण की आयु तक कार्य करते हैं और इस अवधि के पूर्व न्यायाधीशों को महाभियोग की विशेष प्रक्रिया के आधार पर ही हटाया जा सकता है।
  5. उच्च न्यायालय के अधिकारियों की Appointment इस न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश करता है तथा उनकी सेवा शर्ते भी वही निर्धारित करता है।
  6. न्यायाधीशों का वेतन तथा उच्च न्यायालय का प्रशासनिक व्यय संघ या राज्य सरकार की संचित निधि पर भारित है, इसलिए उन पर संसद या राज्य विधानमण्डल में मतदान नहीं हो सकता।

इस प्रकार Indian Customer संविधान द्वारा उच्च न्यायालयों की पूर्ण स्वतंत्रता की व्यवस्था की गयी है और Indian Customer संघ के विभिन्न उच्च न्यायालयों के अब तक के कार्य के आधार पर कहा जा सकता है कि उच्च न्यायालय अपने कर्त्तव्यपालन में पूर्णतया स्वतंत्र और निष्पक्ष रहे हैं।

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