मौलिक अधिकार –

मौलिक अधिकार

By Bandey

अनुक्रम

Indian Customer संविधान के द्वारा भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार

Indian Customer संविधान के द्वारा भारत के नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक अधिकार दिए गए है: वे है:

समानता का अधिकार (Right to Equality-Article 14 to 18)

समानता का अधिकार प्रजातन्त्र का आधार स्तम्भ है, अत: Indian Customer संविधान द्वारा All व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता, राज्य के अधीन नौकरियों का समान अवसर और सामाजिक समानता प्रदान की गयी है And समानता की स्थापना के लिए उपािध्यों का निषेध Reseller गया है।


  1. कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14) – अनुच्छेद 14 के According भारत के राज्य क्षेत्र में राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं रहेगा। अनुच्छेद के First भाग के Word ‘कानून के समक्ष समानता’ ब्रिटिश सामान्य विधि की देन है और इसके द्वारा राज्य पर यह बन्धन लगाया गया है कि वह All व्यक्तियों के लिए Single-सा कानून बनायेगा तथा उन्हें Single समान लागू करेगा। सर आइवर जैनिंम्ज के According इसका Means यह है कि फ्समान परिस्थितियों में All व्यक्तियों के साथ कानून का व्यवहार Single-सा होना चाहिए। कानून का समान संरक्षण’, यह वाक्य अमरीकी संविधान से लिया गया है और इसका तात्पर्य यह है कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति समान Reseller से न्यायालय की शरण ले सकता है। कानून के समक्ष समानता का तात्पर्य यह नहीं है कि औचित्यपूर्ण आधार पर और कानून द्वारा मान्य किसी भेदभाव की भी व्यवस्था नहीं की जा सकती है। यदि कानून कर लगाने के सम्बन्ध में धनी और गरीब में और सुविधएँ प्रदान करने में स्त्रियों और पुरुषों में भेद करता है तो इसे कानून के समक्ष समानता का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता।
  2. धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15) – कानून के समक्ष समानता के साथ-साथ अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि फ्राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में भेद-भाव नहीं Reseller जायेगा। कानून के द्वारा निश्चित Reseller गया है कि सब नागरिकों के साथ दुकानों, होटलों तथा सार्वजनिक स्थानों-जैसे कुओं, तालाबों स्नानगृहों, सड़कों आदि पर किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं Reseller जायेगा।
  3. राज्य के अधीन नौकरियों का समान अवसर (अनुच्छेद 16) – अनुच्छेद 16 के According, फ्सब नागरिकों को सरकारी पदों पर Appointment के समान अवसर प्राप्त होंगे और इस सम्बन्ध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति लिंग या जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर सरकारी नौकरी या पद प्रदान करने में भेद-भाव नहीं Reseller जायेगा। इसके अन्तर्गत राज्य को यह अधिकार है कि वह राजकीय सेवाओं के लिए आवश्यक योग्यताएँ निर्धारित कर दे। संसद कानून द्वारा संघ में सम्मिलित राज्यों को अधिकार दे सकती है कि वे उस पद के उम्मीदवार के लिए उस राज्य का निवासी होना आवश्यक ठहरा दें। इसी प्रकार सेवाओं में पिछड़े हुए वर्गों के लिए भी स्थान Windows Hosting रखे जा सकते हैं।
  4. अस्पृश्यता का निषेध (अनुच्छेद 17) – सामाजिक समानता को और अधिक पूर्णता देने के लिए अस्पृश्यता का निषेध Reseller गया है। अनुच्छेद 17 में कहा गया है कि फ्अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी अयोग्यता को लागू करना Single दण्डनीय अपराध होगा। हिन्दू समाज से अस्पृश्यता के विष को समाप्त करने के लिए संसद के द्वारा 1955 ई. में ‘अस्पृश्यता अपराध अधिनियम’ (Untouchability offences Act) पारित Reseller गया है जो पूरे भारत पर लागू होता है। इस कानून के According अस्पृश्यता Single दण्डनीय अपराध घोषित Reseller गया है।
  5. उपाधियों का निषेध (अनुच्छेद 18) – ब्रिटिश शासन काल में सम्पत्ति आदि के आधार पर उपाधियाँ प्रदान की जाती थीं, जो सामाजिक जीवन में भेद उत्पन्न करती थीं, अत: नवीन संविधान में इनका निषेध कर दिया गया है। अनुच्छेद 18 में व्यवस्था की गयी है कि फ्सेना अथवा विद्या सम्बन्ध्ी उपाधियों के अलावा राज्य अन्य कोई उपाधियाँ प्रदान नहीं कर सकता। इसके साथ ही भारतवर्ष का कोई नागरिक बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के विदेशी राज्य से भी कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता।

स्वतन्त्रता का अधिकार

Indian Customer संविधान का उद्देश्य विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है, अत: संविधान के द्वारा नागरिकों को विविध स्वतन्त्रताएँ प्रदान की गयी हैं। इस सम्बन्ध में अनुच्छेद 19 सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। यह अधिकार नागरिकों को 6 स्वतन्त्रताएँ प्रदान करता हैं:

(i) धारा 19 के द्वारा Indian Customer नागरिकों को 7 स्वतन्त्रताएँ प्रदान की गई थीं, जिसमें छठी स्ततन्त्रता, सम्पत्ति प्राप्त करने तथा उसे बेचने की स्वतन्त्रता थी। परन्तु 44वें संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अधिकार के साथ-साथ ‘सम्पत्ति की स्वतन्त्रता’ भी समाप्त कर दी गई है और इस प्रकार अब धारा 19 के अन्तर्गत नागरिकों को छ: स्वतन्त्रताएँ ही प्राप्त हैं, जो इस प्रकार हैं-

  1. भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता (Right to Freedom of Speech and Expression)।
  2. शान्तिपूर्वक तथा बिना शस्त्रों के इकट्ठा होने की स्वतन्त्रता (Freedom to assemble peacefully and without arms)।
  3. संघ बनाने का अधिकार (Freedom to form Associations)।
  4. भारत राज्य के क्षेत्र में भ्रमण करने का अधिकार (Freedom to move freely throughout the territory of India)।
  5. भारत के किसी भाग में रहने या निवास करने की स्वतन्त्रता (Freedom to reside and settle in any part of the territory of India)।
  6. कोई भी व्यवसाय करने, पेशा अपनाने या व्यापार करने का अधिकार (Freedom to practise any profession or to carry on any occupation, trade or business)। धारा 20 से 22 तक ने नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। ब्रिटेन में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का आधार कानून का शासन है। यही सिद्वान्त भारत में भी अपनाया गया है।

(ii) (a) धारा 20 के According किसी भी व्यक्ति को सजा उस समय में प्रचलित कानून के According ही दी जा सकती है। (b) धारा 20 के According किसी भी व्यक्ति को Single अपराध के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती है। (c) धारा 20 के According किसी भी व्यक्ति को अपने विरुद्व गवाही देने के लिए विवश नहीं Reseller जा सकता।

(iii) धारा 21 के According कानून द्वारा स्थापित पद्धति (Procedure Established by Law) के बिना किसी व्यक्ति को उसके जीवन और उसकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से वंचित नहीं Reseller जाएगा। (a) किसी भी व्यक्ति को उसका अपराध बताए बिना गिरफ्रतार नहीं Reseller जा सकता। (b) गिरफ्रतार किये गए व्यक्ति को 24 घंटे के अन्दर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना आवश्यक है। (c) बिना मजिस्टे्रट की आज्ञा के बन्दी को जेल में नहीं रखा जा सकता। (d) बन्दी को कानूनी सलाह प्राप्त करने का पूरा अधिकार है।

शोषण के विरुद्व अधिकार

संविधान के 23 तथा 24वें अनुच्छेदों में नागरिकों के लिए शोषण के विरुद्व अधिकारों का History Reseller गया है। इस अधिकार का यह लक्ष्य है कि समाज का कोई भी शक्तिशाली व्यक्ति किसी कमजोर व्यक्ति के साथ अन्याय न कर सके।

  1. धारा 23 के According मनुष्यों का व्यापार, उनसे बेगार तथा इच्छा के विरुद्व काम करवाने की मनाही कर दी गई है और जो इस व्यवस्था का किसी प्रकार से उल्लंघन करेगा, उसे कानून के According दण्डनीय अपराध समझा जाएगा।
  2. धारा 24 के According 14 वर्ष से कम आयु वाले बालक को किसी भी कारखाने अथवा खान में नौकर नहीं रखा जाएगा। न ही किसी अन्य संकटमयी नौकरी में लगाया जाएगा। इसका अभिप्राय यह है कि बच्चों को काम में लगाने की बजाए उनको शिक्षा दी जाए। इसीलिए Indian Customer संविधान के अध्याय 4 में निर्देशक सिद्वांतों के द्वारा राज्यों को यह निर्देश दिया गया है कि वह 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा का प्रबन्ध करें शिक्षा के अधिकार (Right to Education) अधिनियम को भी इसी लिए बनाया गया है।

धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार

संविधान के अगले 4 अनुच्छेदों (25 से 28) में भारत को Single धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाने की व्यवस्था की गई है। संविधान-निर्माताओं ने अनुच्छेद 15 तथा 16 में दिए इस अब अधिकार के साथ 42वें संशोधन के द्वारा धर्म-निरपेक्ष Word को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ दिया गया है।

  1. किसी भी धर्म को मानने की स्वतन्त्रता – अनुच्छेद 25 में यह व्यवस्था की गई है कि भारत में All नागरिकों को किसी भी धर्म की मानने, उसका अनुयायी बनने तथा उसका प्रचार करने का अधिकार है।
  2. धार्मिक कार्य का प्रबंधन करने की स्वतन्त्रता – अनुच्छेद 26 द्वारा All धार्मिक सम्प्रदायों को धार्मिक And परोपकारी उद्देश्यों के लिए संस्थाएँ स्थापित करने उनसे सम्बन्धित विषयों का संचालन करने, चल तथा अचल सम्पत्ति खरीदने तथा कानून के According उनका प्रबंधन चलाने का अधिकार दिया गया है।
  3. धर्म के प्रचार के लिए कर न देने की स्वतन्त्रता – अनुच्छेद 27 में यह निर्धारित Reseller गया है। कि किसी भी धर्म के प्रचार के लिए किसी व्यक्ति को कोई कर देने पर विवश नहीं Reseller जायेगा।
  4. शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा न दिए जाने की रोक – अनुच्छेद 28 द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि राज्य द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त किसी भी संस्था में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। परन्तु इसके अधीन वे संस्थाएँ नहीं आतीं जिनकी स्थापना किसी ट्रस्ट द्वारा धर्म के प्रचार के लिए की गई हो, चाहे उसका प्रशासन राज्य ही चलाता हो। इसी अनुच्छेद में यह भी स्पष्ट Reseller गया है कि राज्य द्वारा जिन संस्थाओं को अनुदान (Grants) दिया जाता है, उनमें किसी व्यक्ति को धार्मिक समारोह में शामिल होने अथवा धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने पर विवश नहीं Reseller जा सकता।

सांस्कृतिक तथा शिक्षा संम्बधी अधिकार

सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकारों का History संविधान की 29 व 30 अनुच्छेदों में Reseller गया है। इनके According भारत में निवास करने वाले अल्पमतों के हितों की Safty की उचित व्यवस्था की गई है ताकि वे अपनी संस्कृति तथा भाषा के आधार पर अपना विकास कर सवेंफ।

  1. अनुच्छेद 29 के According, भारत के किसी भी क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों के हर वर्ग या उसके भाग को, जिनकी अपनी भाषा, लिपि अथवा संस्कृति हो, उसे यह अधिकार है कि वह उनकी उनकी रक्षा करे।
  2. अनुच्छेद 29 के According, किसी भी नागरिक को राज्य द्वारा या उसकी सहायता से चलायी जाने वाली शिक्षा संस्था में प्रवेश देने से धर्म, जाति, वंश, भाषा या इनमें किसी के आधार पर इनकार नहीं Reseller जा सकता।
  3. अनुच्छेद 30 के According, All अल्पसंख्यकों को चाहे वे धर्म पर आधारित हों या भाषा पर यह अधिकार प्राप्त है कि वे अपनी इच्छानुसार शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करें तथा उनका प्रबन्ध करें।
  4. अनुच्छेद 30 के According, राज्य द्वारा सहायता देते समय शिक्षा संस्थाओं के प्रति इस आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा कि वह अल्पसंख्यकों के प्रबन्ध के अधीन है, चाहे वह अल्पसंख्यक भाषा के आधार पर या धर्म के आधार पर क्यों न हो। 44 वें संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि राज्य अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित व चलाई जा रही शिक्षा संस्थाओं की सम्पत्ति को अनिवार्य Reseller से लेने के लिए कानून का निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखेगा कि कानून के द्वारा निर्धारित की गई रकमों से अल्पसंख्यकों के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह परिवर्तन इसलिए करना पड़ा, क्योंकि 44वें संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 31 को हटाकर सम्पत्ति का अधिकार समाप्त कर दिया गया है। अब सम्पत्ति का अधिकार केवल कानूनी अधिकार है।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार

संविधान में मौलिक अधिकारों के History से अधिक महत्त्वपूर्ण बात उन्हें क्रियान्वित करने की व्यवस्था है, जिसके बिना मौलिक अधिकार Meansहीन सिद्व हो जाते। संविधान निर्माताओं ने इस उद्देश्य से संवैधानिक उपचारों के अधिकार को भी संविधान में स्थान दिया है, जिसका तात्पर्य यह है कि नागरिक अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की शरण ले सकते हैं। इन न्यायालयों के द्वारा व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित उन All कानूनों और कार्यपालिका के उन कार्यों को अवैधानिक घोषित कर दिया जायेगा जो अधिकारों के विरुद्व हों। संवैधानिक उपचारों के अधिकारों की व्यवस्था के महत्त्व को दृष्टि में रखते हुए डा. अम्बेडकर ने कहा था, फ्यदि कोई मुझसे यह पूछे कि संविधान का वह कौन-सा अनुच्छेद है जिसके बिना संविधान शून्यप्राय हो जायेगा, तो इस अनुच्छेद (अनुच्छेद 32) को छोड़कर मैं और किसी अनुच्छेद की ओर संकेत नहीं कर सकता। यह तो संविधान का हृदय तथा आत्मा है। भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र गडकर ने इसे ‘Indian Customer संविधान का सबसे प्रमुख लक्षण’ और संविधान द्वारा स्थापित ‘प्रजातान्त्रिक भवन की आधारशिला’ कहा है।

सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए  पाँच प्रकार के लेख जारी किये जा सकते हैं-

  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण – व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए यह लेख सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी Reseller जाता है जो यह समझता है कि उसे अवैध Reseller से बन्दी बनाया गया है। इसके द्वारा न्यायालय, बन्दीकरण करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बन्दी बनाये गये व्यक्ति को निश्चित समय और स्थान पर उपस्थित करे, जिससे न्यायालय बन्दी बनाये जाने के कारणों पर विचार कर सके। दोनों पक्षों की बात सुनकर न्यायालय इस बात का निर्णय करता है कि नजरबन्दी वैध है या अवैध, और यदि अवैध होती है तो न्यायालय बन्दी को पफौरन मुक्त करने की आज्ञा देता है। इस प्रकार अनुचित And गैरकानूनी Reseller से बन्दी बनाये गये व्यक्ति बन्दी प्रत्यक्षीकरण के लेख के आधार पर स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकते हैं।
  2. परमादेश – परमादेश का लेख उस समय जारी Reseller जाता है जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्त्तव्य का निर्वाह नहीं करता। इस प्रकार के आज्ञा पत्र के आधार पर पदाधिकारी को उसके कर्त्तव्य पालन का आदेश जारी Reseller जाता है।
  3. उत्प्रेषण – यह आज्ञापत्र अधिकांशत: किसी विवाद को निम्न न्यायालय से उच्च न्यायालय में भेजने के लिए जारी Reseller जाता है, जिससे वह अपनी शक्ति से अधिक अधिकारों का उपभोग न करे या अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए न्याय के प्राकृतिक सिद्वान्तों को भंग न करे। इस आज्ञापत्र के आधार पर उच्च न्यायालय निम्न न्यायालयों से किन्हीं विवादों के सम्बन्ध में सूचना भी प्राप्त कर सकते हैं।
  4. प्रतिषेध – इस आज्ञापत्र के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों द्वारा निम्न न्यायालयों तथा अर्ध-न्यायिक न्यायाधिकरणों को जारी करते हुए यह आदेश दिया जाता है कि वे मामले में अपने यहाँ कार्यवाही स्थगित कर दें, क्योंकि यह मामला उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
  5. अधिकार पृच्छा – जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के Reseller में कार्य करने लगता है, जिसके Reseller में कार्य करने का उसे वैधानिक Reseller से अधिकार नहीं है तो न्यायालय अधिकार पृच्छा के आदेश द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस आधार पर इस पद पर कार्य कर रहा है और जब तक वह इस प्रश्न का सन्तोषजनक उत्तर नहीं देता, वह कार्य नहीं कर सकता।

व्यक्तियों के द्वारा सामान्य परिस्थितियों में ही न्यायालयों की शरण लेकर अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा सकती है, लेकिन युद्व , बाहरी आक्रमण या आन्तरिक अशान्ति जैसी परिस्थितियों में, जबकि राष्ट्रपति के द्वारा संकटकाल की घोषणा कर दी गयी हो, मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए कोई व्यक्ति किसी न्यायालय से प्रार्थना नहीं कर सकेगा। इस प्रकार संविधान के द्वारा संकट काल में नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलम्बिक करने की व्यवस्था की गयी है।

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