मानसिक दुर्बलता के कारण And प्रकार

‘मानसिक मंदता कासंबंध वर्तमान क्रियाव्यवहार में पर्याप्त कमी से होती हैं इसमें सार्थक Reseller से निम्न औसत बौद्धिक क्रिया होती है तथा निम्नांकित उपयुक्त समायोजी कौशल क्षेत्रों में दो या दो से अधिक में संबंधित कमियॉं साथ-साथ होती हैं – संचार, स्वयं की देखभाल, घरेलू जीवन, सामाजिक कुशलता, सामुदायिक उपयोगिता, दिषा-बोध, स्वास्थ्य, Safty, कार्यात्मक शिक्षा, अवकाश And कार्य। मानसिक दुर्बलता 18 साल की आयु के First ही अभिलक्षित होती है।

’मानसिक मंदता Single ऐसी विकृति है जिसे ऐसी बौद्धिक कार्यक्षमता एंव अनुकूलित व्यवहार से चिह्नित Reseller जाता है जो कि औसत से काफी निचले दर्जे का होता है।’

‘मानसिक मंदता सामान्य बौद्धिक कार्यात्मक क्षमता का सार्थक Reseller में औसत से निम्न स्तर है जिसमें कतिपय कुशलता से जुड़े क्षेत्रों जैसे कि, स्वयं की देखभाल, कार्य, स्वास्थ्य और Safty से संबंधित अनुकूलन की क्षमता में महत्वपूर्ण कमी पायी जाती है।’

  1. मानसिक दुर्बलता/मंदता से ग्रस्त व्यक्ति की बुद्धिलब्धि अवश्य ही 70 से नीचे होती है। 
  2. मानसिक मदता से ग्रस्त व्यक्ति सामान्य व्यक्तियों की तुलना में बौद्धिक दृश्टि से काफी निचले स्तर पर होता है जिसके परिणामस्वReseller वह अपने दैनिक कार्यों जैसे कि खुद की देखभाल, Safty, स्वास्थ्य, रोजमर्रा के कायोर्ं का भी निश्पादन ठीक प्रकार से नहीं कर पाता है। 
  3. इस विकृति से ग्रस्त व्यक्ति अपने सामाजिक दायित्वों का पालन करने में अक्षम होते हैं And इनमें परिस्थितियों से तालमेल बैठाने में अपंग साबित होते हैं। 
  4. इस तरह की मानसिक मंदता की शुरूआत 18 साल की उम्र से पूर्व ही हो जाती है।

मानसिक मंदता से ग्रस्त बच्चों को पहचानना अत्यंत ही आसान होता है क्योंकि इनमें कुछ खास विशेषताओं पायी जाती हैं। यदि हम इन विशेषताओं को जान लें तो इनके आधार पर मानसिक Reseller से दुर्बल बच्चों को पहचाना जा सकता है। आइये इन विशेषताओं के बारे में जानें-

  1. औसत से निम्न बौद्धिक क्षमता (Below average intellectual capacity)- ऐसे व्यक्तियों की बौद्धिक क्षमता सामान्य व्यक्तियों की तुलना में काफी निम्नस्तरीय होती है। इसमें व्यक्ति का बुद्धि स्तर उम्र के According भी सामान्य से नीचे होता हैं यही कारण है कि यह कहा जाता है कि मानसिक दुर्बलता में Single अधो-सामान्य मानसिक अवस्था की अवस्था होती है। 
  2. निम्नस्तरीय समायोजन क्षमता (Low level adaptive ability)- मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त व्यक्तियों की समायोजन क्षमता सीमित होती है। ऐसे व्यक्तियों को दिन प्रतिदिन की परिस्थितियों में स्वयं को समायोजित करने में कठिनार्इ का सामना करना पड़ता है क्योंकि निम्न बौद्धिक क्षमता होने के कारण ये परिस्थितियों को समझने में देर लगाते हैं। फलत: शिक्षण प्रशिक्षण द्वारा सीखने की इनकी गति भी काफी धीमी होती है। 
  3. सामाजिक कौशलों की कमी (Lack of social skills)- ऐसे व्यक्तियों में समाज में स्वयं को Single सम्मानित व्यक्ति के Reseller में प्रस्तुत करने हेतु आवश्यक कौशलों का अभाव होता हैं। ये नैतिक मर्यादाओं मानदण्डों को भली प्रकार समझ नहीं पाते हैं फलत: नैतिक मर्यादाओं And सामाजिक नियमों का उल्लंघन इनसे स्वत: ही हो जाता है। 
  4. सीमित संज्ञानात्मक क्षमता (Limited cognitive capacity)- इन व्यक्तियों की संज्ञानात्मक क्षमता सीमित होती है। जिसके परिणामस्वReseller इनकी सीखने की गति धीमी होती है, समस्याओं को समझने And हल ढॅूंढ़ना इनके लिए अत्यंत कठिन होता है। इनकी स्मृति, अवधान, चिन्तन And प्रत्यक्षण साधारण लोगों की तुलना में अविकसित स्तर का होता है। फलत: इससे ग्रसित व्यक्ति की संज्ञानात्मक प्रक्रियायें मंद गति से संचालित होती हैं And पूर्णता तक पहुॅंच ही नहीं पाती हैं। 
  5. सीमित सांवेगिक बु़िद्ध (Limited emotional intelligence)- मानसिक मंदता से ग्रस्त व्यक्तियों की सांवेगिक बुद्धि भी सीमित होती है। ये स्वयं के साथ साथ दूसरों के संवेगों को पहचान पाने में देर लगाते हैं And प्राय: उपस्थित सामाजिक परिस्थिति के अनुReseller संवेग अभिव्यक्त कर पाने में असमर्थ रहते हैं।
  6. सामाजिक अभिप्रेरणा की कमी (Lack of social motivation)- इन व्यक्तियों में सामाजिक अभिप्रेरणा की कमी पायी जाती है। ये संबंधों के बनाये रखने के प्रति उत्सक नहीं दिखलार्इ पड़ते हैं Second Wordों में ये संबधों को बनाये रखने के लिए जरूरी प्रेरणा को इनमें अभाव होती है। परिणामस्वReseller सामाजिक कार्यों में इनकी भागीदारी नहीं के बराबर होती है। 
  7. शिक्षा And प्रशिक्षण प्रदान करने में कठिनार्इ (Difficulty in providing education and training)- मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त व्यक्तियों की बौद्धिक क्षमता न्यून होने तथा संज्ञानात्मक प्रक्रियायें धीमी होने के कारण उनकी उम्र के व्यक्तियों की तुलना में उन्हें शिक्षित करना या प्रशिक्षण प्रदान करना अत्यंत कठिन होता है फलत: ये इन चीजों में काफी पिछड़ जाते हैं And इन्हें रोजगार मिलने में भी कठिनार्इ होती है।

मानसिक दुर्बलता के प्रकार

मानसिक दुर्बलता की कसौटियों में तीन प्रकार की कसौटियॉं प्रमुख हैं। (1) बुद्धि लब्धि की कसौटी के आधार पर (2) अनुकूलन क्षमता के आधार पर (3) नैदानिक कसौटी के आधार पर।

1. बुद्धि लब्धि की कसौटी के आधार पर – 

अमेरिकन साइकियेट्रिक एसोशियेसन ने बुद्धि लब्धि के आधार पर मानसिक दुर्बलता के चार प्रकार निर्धारित किए हैं- 1. माइल्ड मानसिक दुर्बलता 2. मॉडरेट मानसिक दुर्बलता 3. सीवियर मानसिक दुर्बलता 4. प्रोफाउण्ड मानसिक दुर्बलता ।

  1. माइल्ड मानसिक दुर्बलता (mild mental retardation)- इस प्रकार के अन्तर्गत आने वाले व्यक्तियों का बुद्धि लब्धि स्तर 52 से 67 के बीच होता है। तथा इस बुद्धि लब्धि में वयस्कावस्था में भी कोर्इ बदलाव नहीं आता है। यदि इनकी सामान्य लोगों से तुलना करें तो इनकी बुद्धि लब्धि 9 से 11 वर्श के बालकों की बुद्धि लब्धि के समान होती है। बुद्धि लब्धि में कमी के अलावा इनमें किसी प्रकार की मस्तिश्कीय विकृति नहीं पायी जाती है And न ही किसी प्रकार की दैहिक विसंगति ही इनमें होती है। इनकी समायोजन क्षमता किषोरों की समायोजन क्षमता के समतुल्य होती है जिसे कि माता-पिता अथवा शिक्षकों के सहयोग विषेश प्रशिक्षण प्रदान कर बढ़ाया जा सकता है। इन्हें जीविका चलाने हेतु कुछ व्यावसायिक कौशल भी सिखाये जा सकते हैंं। 
  2. मॉडरेट मानसिक दुर्बलता (moderate mental retardation)-इस प्रकार के व्यक्तियों में बुद्धि लब्धि का स्तर 35 से 51 के बीच होता है। माइल्ड मानसिक दुर्बलता के रोगियों से इनकी स्थिति कहीं ज्यादा चिंतनीय होती है। यदि इनकी सामान्य लोगों से तुलना करें तो इनकी बुद्धि लब्धि 4 से 7 वर्श के बालकों के समान होती है। माइल्ड मानसिक दुर्बलता के व्यक्तियों के तुलना में इन्हें कुछ ही कौशल जैसे अक्षरज्ञान आदि ही बहुत विषेश प्रशिक्षण के आधार पर ही सिखाया जा सकता है। इनकी “ाारीरिक बनावट में भी बेडौलपन And कुResellerता पायी जाती है जिसकी वजह से उनके अंगों के बीच संचालन समन्वय सम्बंधी दोश पाये जाते हैं। इनमें आक्रामकता का स्तर भी बढ़ा चढ़ा होता है। 
  3. सीवियर मानसिक दुर्बलता (severe mental retardation)- इस प्रकार के व्यक्तियों में बुद्धि लब्धि का स्तर 20 से 35 के बीच होता है। मॉडरेट मानसिक दुर्बलता के रोगियों से इनकी स्थिति कहीं ज्यादा चिंतनीय And गंभीर होती है। इन्हें आश्रित दुर्बल भी कहा जाता है क्योंकि ये स्वयं की देखभाल ठीक से नहीं कर पाते And दूसरों पर निर्भर रहते हैं। इनके अंगों के बीच संचालन समन्वय संबंधी दोश पाये जाने की साथ ही भाशा विकास की समस्या भी पायी जाती है। ये ठीक से बातचीत भी नहीं कर पाते हैं। इनमें इन्द्रियों की संवेदनषीलता से संबंधित कमियॉं भी पायी जाती हैं। मॉडरेट मानसिक दुर्बलता के व्यक्तियों के तुलना में इनसे कुछ करवाने के लिए विषेश Reseller से प्रशिक्षिति सुपरवाइजर की उपस्थिति की अनिवार्यता होती है। 
  4. प्रोफाउण्ड मानसिक दुर्बलता (profound mental retardation)-इस प्रकार के व्यक्तियों में बुद्धि लब्धि का स्तर 20 से नीचे होता है। सीवियर मानसिक दुर्बलता के रोगियों से इनकी स्थिति और भी ज्यादा चिंतनीय होती है। Single प्रकार से यह मानसिक दुर्बलता का सबसे गंभीर प्रकार है। इनकी शारीरिक बनावट में भी बेडौलपन And कुResellerता पायी जाती है जिसकी वजह से उनके अंगों के बीच संचालन समन्वय सम्बंधी दोश पाये जाते हैं। इन लोगों में केंद्रीय तंत्रिका तंत्र संबंधी दोश भी होते हैं। इन्हें कुछ भी सिखाया नहीं जा सकता है। ये न तो स्वयं भोजन कर पाते हैं And न ही वस्त्र पहन पाते हैं और न ही बाहरी खतरों से स्वयं को बचा ही सकते हैं। इन लोगों में गूगापन And बहरापन भी बहुतायत में पाया जाता है। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है। 

2. अनुकूलन क्षमता के आधार पर – 

अनुकूलन क्षमता से तात्पर्य प्रशिक्षण, शिक्षा, सीखने की योग्यता आदि की मात्रा के आधार पर मानसिक दुर्बलता निर्धारण है। जिसमें सीखने, शिक्षित होने अथवा प्रशिक्षित होने की जितनी योग्यता होती है विभिन्न परिस्थितियों के अनुReseller व्यवहार करने की योग्यता भी उन्हीं में आनुपातिक Reseller में होती है। इस आधार पर मानसिक दुर्बलता के तीन प्रकार बतलाये गये हैं – प्रशिक्षित होने के अयोग्य, 2. प्रशिक्षित होने योग्य 3. शिक्षा ग्रहण करने योग्य।

  1. प्रशिक्षित होने के अयोग्य (Untrainable)- मानसिक Reseller से दुर्बल व्यक्तियों की कुल संख्या के 5 प्रतिशत व्यक्ति प्रशिक्षित होने के अयोग्य होते हैं। ये अपने रोजमर्रा के कार्य जैसे भोजन करना कपड़े पहनना आदि भी स्वयं नहीं कर पाते And इनके लिए भी दूसरों पर निर्भर होते हैं परिणामस्वReseller इन्हें प्रशिक्षण प्रदान करने पर भी कुछ सीख नहीं पाते अतAnd इन्हें किसी भी प्रकार के प्रशिक्षण से कोर्इ भी फायदा नहीं होता है। 
  2. प्रशिक्षित होने के योग्य (Trainable)- इस प्रकार के व्यक्तियों विषेश Reseller से तैयार प्रशिक्षण कोर्स करवाकर कुछ कौशल सिखलाये जा सकते हैं ये प्रशिक्षण के योग्य होते हैं। मानसिक दुर्बल व्यक्तियों की कुल जनसंख्या का 18 से 20 प्रतिशत व्यक्ति इस श्रेणी में आते हैं। 
  3. शिक्षा ग्रहण करने योग्य (Educable)- मानसिक Reseller से दुर्बल व्यक्तियों की संख्या का लगभग 75 से 80 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा ग्रहण करने योग्य व्यक्तियों का होता है। इन्हें व्यावसायिक कौशलों के अलावा कुछ शिक्षा आदि भी प्रदान की जा सकती है। इन लोगों की विषेशता यह है कि यदि इनकी शिक्षा हेतु विषेश प्रबंध Reseller जाये तो ऐसे लोग सार्थक Reseller से प्रषंसनीय स्तर पर शैक्षिक उपलब्धि प्राप्त कर सकने में सफल हो सकते हैं। शिक्षा के माध्यम से इनके समायोजन स्तर को भी ऊॅंचा उठाया जा सकता है। 

3. नैदानिक कसौटी के आधार पर – 

नैदानिक कसौटी से तात्पर्य होता है कि वे कसौटियॉं जिनसे मानसिक दुर्बलता का Single समस्या के Reseller में विषेश Reseller से निष्चित होना निर्धारित होता है। इस कसौटी पर आधारित प्रकारों में दैहिक अथवा आनुवांशिक विकृतियॉं प्रमुख Reseller से बतलायी गयी हैं।

  1. डाउन्स संलक्षण (Down’s Syndrome) – इस संलक्षण का वर्णन सबसे First ब्रिटेन के मनोचिकित्सक लैंगडान डाउन ने उन्नीसवीं शताब्दी के नौवें दशक में Reseller था। इस संलक्षण से ग्रस्त व्यक्तियों की बुद्धि लब्धि 25 से 50 के मध्य होती है। इनकी मानसिक आयु 5 से 7 वर्श के बालकों के बराबर होती है। ऐसे व्यक्तियों के चेहरे की बनावट मंगोलियन जाति के लोगों से मिलता जुलता है अतAnd इनकी विकृति को मंगोलिज्म भी कहा जाता है। इनका चेहरा गोल, छोटी And चपटी नाक, छोटी हथेलियॉं And धंसी हुइ ऑंखें होती हैं। ये लोग सामाजिक समायोजन सीखने लायक होते हैं। परन्तु उच्चस्तरीय संज्ञानात्मक कौशलों को सीखना इनके लिए असंभव होता है। ये संप्रत्यों के निर्माण को समझ नहीं पाते हैं तथा समस्या समाधान की योग्यता भी इनमें कम होती है। भाशा की अभिव्यक्ति And इस्तेमाल में ये कमजोर होते हैं।
  2. बौनापन (Cretinism)- बौनेपन को हार्इपोथाइरोडिज्म भी कहा जाता है। यह दुर्बलता थायरायड हारमोन की अत्यधिक कमी अथवा अभाव से उत्पन्न होती है। ऐसे व्यक्ति की शारीरिक लम्बार्इ छोटी होती है And ये बौने समान दीखते हैं। इनका सिर बड़ा, गर्दन मोटी, पर कंधे से सटी हुर्इ होती है। ऑंखों की पलकें मोटी होती हैं। इनके लैंगिक विकास, संवेगात्मक विकास And क्रियात्मक विकास सीमित स्तर तक ही हो पाता है। इनका मांसपेषीय विकास भी धीरे-धीरे होता है। लगभग चार वर्श की आयु से First ऐसे बच्चे उठने, बैठने And चलने में असमर्थ होते हैं। इनकी बुद्धि लब्धि 25 से 75 के बीच होती है। ये प्राय: “ाांत प्रकृति के होते है, दूसरों से कम बात करते हैं तथा अन्यों के संग खेल में जिद्दीपना दिखलाते हैं। 
  3. टर्नर संलक्षण (Turner’s Syndrome)- ये संलक्षण केवल बालिकाओं में पाया जाता है। इन बालिकाओं की बुद्धि लब्धि 30 से 40 के मध्य होती है। ये दुर्बलता सेक्स क्रोमोजोम्स में गड़बड़ी की वजह से उत्पन्न होती है। ऐसी बालिकाओं में सिर्फ Single ही Single्स क्रोमोजोम पाया जाता है। क्रोमोजोन जनित गड़बड़ी की वजह से इन बालिकाओं का दैहिक आकृति भी प्रभावित होती है इनकी गर्दन छोटी And झुकी हुर्इ होती है। इनका लैंगिक विकास भी अपरिपक्व ही होता है। 
  4. फेनिलकेटोन्यूरिया (Phenylketonuria or PKU)- यह विकृति प्रोटीन चयापचय में होने वाली गड़बड़ी से होती है। यह Single ऐसी मानसिक दुर्बलता है जिसमें जन्म के समय बालक सामान्य दिखार्इ पड़ता है। छ: से बारह महीने के दौरान उसमें मानसिक दुर्बलता के लक्षण दिखलार्इ पड़ने लगते हैं। प्रोटीन चयापचय की गड़बड़ी से फिनाइलालानाइन (phenylalanine) अधिक मात्रा में देह में जमा होने लगता है जिससे मष्तिष्क की कोशिकायें जर्जर हो जाती हैं और बच्चों में मानसिक मंदता पनप जाती है। 
  5. हाइड्रोसिफैलि (Hydrocephaly)- इस प्रकार की मानसिक दुर्बलता मस्तिष्क में सेरिब्रोस्पाइनल द्रव के अत्यधिक मात्रा में जमा हो जाने की वजह से उत्पन्न होती है। इससे मस्तिष्क का आकार सामान्य से कहीं अधिक बड़े आकार का हो जाता है। गंभीरता बढ़ने पर बच्चे के शरीर में कम्पन And पैरालिसिस के लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं। मस्तिष्क की कोशिकायें काफी पतली हो जाती हैं फलत: मानसिक दुर्बलता या मंदता विकसित हो जाती है। वैसे तो यह जन्मजात होता है परन्तु कभी कभी कुछ वर्ष सामान्य Reseller में बीतने के बाद भी यह विकसित हो सकता है।

मानसिक दुर्बलता के कारण

इस विकृति के विकसित होने के पीछे कौन से कारण अथवा कारक जिम्मेदार हैं। वैसे तो कारण And कारक कर्इ हो सकते हैं परन्तु जो प्रमुख हैं And जिनकी आपको जानकारी होनी चाहिए वे महत्वपूर्ण कारक हैं। – 1. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक  – 2. सांस्कृतिक पारिवारिक कारक  – 3. मस्तिष्कीय क्षति – 4. चयापचय, पोशण And वर्धन में गड़बडी  – 5. संक्रमण होना  – 6. क्रोमोजोम्स संयोजन में दोश -7. अन्य कारण

1. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक –

समाज-सांस्कृतिक सिद्धान्त निर्माताओं के According विभिन्न सामाजिक And सांस्कृतिक परिस्थितियॉं भी मानसिक दुर्बलता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कर्इ बार सामाजिक And सांस्कृतिक परिस्थितियों के कारण बच्चे को मिलने वाले भावनात्मक संबल And पोशण में कमी आ जाती है जिससे बच्चा कुंठा ग्रस्त हो जाता है And इस भावनात्मक वंचन से उसमें मानसिक दुर्बलता विकसित हो जाती है। उदाहरण के लिए जब किसी शिशु को बार -बार लम्बे समय तक अपने माता-पिता के सानिध्य And स्नेह से वंचित रहना पड़ता है तो इससे उस शिषु में मानसिक दुर्बलता पनप जाती है। इसके कर्इ कारण हो सकते हैं जैसे किए माता-पिता का विवाह विच्छेद, अकाल मृत्यु या विलगाव, निम्न सामाजिक And आर्थिक स्तर, Single ही कमरे में घर के All सदस्यों का रहना जिससे शिषु को आवश्यक स्वतंत्रता न मिल पाना आदि। ऐसे परिवारों से संबंधित बच्चे जब विद्यालय जाते हैं ता उन्हें उनकी चाल-ढाल, वेश-भूशा And बोलने-चालने के ढंग के आधार पर लोग And शिक्षक भी मानसिक Reseller से दुर्बल समझकर उनके साथ दयापूर्ण व्यवहार करते हैं। परिणामस्वReseller उनकी मानसिक दुर्बलता प्रत्यक्ष हो जाती है And और भी तेजी से बढ़ती है।

2. सांस्कृतिक पारिवारिक कारक  –

मनोवैज्ञानिकों ने पाया है कि जब परिवार गरीब होता है तो कम-से-कम 57 प्रतिशत बच्चे मानसिक Reseller से अवश्य ही दुर्बल हो जाते हैं। अब प्रष्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? इसका उत्तर यह है कि मानसिक दुर्बलता का सैद्धान्तिक Reseller से गरीबी से कोर्इ भी संबंध नहीं है, परन्तु यदि दुर्भाग्यवश किसी गरीबी से अभिशप्त परिवार में कोर्इ बच्चा ऐसा आ जाता है जिसमे बौद्धिक उत्तेजना की कमी होती है, तब उसे आवश्यक देखभाल पर्याप्त स्तर पर प्राप्त नहीं हो पाती है। क्योंकि गरीबी के कारण बच्चे के माता-पिता भी प्राय: अशिक्षित होते हैं And First तो वे अपने बच्चे की इस बौद्धिक उत्तेजन की कमी को समझ ही नहीं पाते हैं तथा बच्चे की प्रत्येक गलती के लिए उसे डॉंटते फटकारते हैं इससे बच्चे में भय की भावना पैदा हो जाती है और मानसिक दुर्बलता के विकसित होने की गति बढ़ जाती है। दूसरा यह कि यदि वे समझ भी जाते हैं कि उनके बच्चे में यह कमी है तो वे उसे पर्याप्त उपचार उपलब्ध नहीं करा पाते हैं। उन्हें अपने जीवन यापन की जरूरी Needओं की पूर्ति में भी परेषानी होती है ऐसे में बच्चे की विशिश्ट उपचार संबंधी जरूरते वे पूरी नहीं कर पाते हैं। ऐसे बच्चों विशिश्ट प्रशिक्षण की Need के साथ साथ सामाजिक And सांस्कृतिक समर्थन की भी जरूरत होती है। प्राय: गरीब परिवार ऐसी सामाजिक परिस्थिति में निवास करते हैं जहॉं सर्वत्र अशिक्षा And कुसमायोजन का ही बोलबाला होता है ऐसे में उनके बच्चे की इस मानसिक समस्या को समझने वाले लोगों का होना बहुत मुष्किल होता है And लोग भी उनके बच्चे की मानसिक दुर्बलता को समझ नहीं पाते हैं तथा कर्इ बार बच्चे को अपने समुदाय अथवा मोहल्ले में रखने से इंकार भी कर देते हैं। मानसिक दुर्बलता में सांस्कृतिक कारकों का भी अपना महत्वपूर्ण योगदान होता है। विभिन्न संस्कृतियों के पालन पोशण के तरीके, रहन-सहन, खान-पान, अभिव्यक्ति की आजादी आदि का बच्चों के मानसिक दुर्बलता में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उदाहरण के लिए विचारों की खुली अभिव्यक्ति वाले समाज में बच्चे की बीमारी अथवा परेषानी पर विचार-विमर्ष आसानी से होता है जिससे आवश्यक जानकारी समय पर मिल जाती है And मदद मिलने के भी आसार बढ़ जाते हैं वहीं बंद अभिव्यक्ति वाले समाज में इसका अभाव होने से मानसिक दुर्बलता के बढ़ने की संभावना तीव्र हो जाती है।

3. मस्तिष्कीय क्षति – 

मस्तिष्क के आन्तरिक अंगों में क्षति अथवा विकृति को भी वैज्ञानिकों द्वारा मानसिक दुर्बलता का Single प्रमुख कारण माना गया है। मस्तिष्कीय अंगों में यह क्षति प्रसूति पूर्व अथवा प्रसूति पश्चात दोनों ही अवस्थाओं में हो सकती है। प्रसूति से पूर्व गर्भवती महिला को जिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है, यदि उसमें ऐसी अवस्थायें सम्मिलित हों जिनमें बच्चे के मस्तिष्क पर आघात लग सकता है तो इससे भी मस्तिष्कीय अंगों में क्षति के कारण मानसिक दुर्बलता उत्पन्न हो सकती है। वैज्ञानिकों के According कभी-कभी महिलाओं को प्रसूति के पूर्व किसी रोग के कारण Single्सरे परीक्षण करवाना पड़ जाता है, इस Single्सरे परीक्षण में निकलने वाली Single्स किरणें अजन्मे बच्चे के मस्तिष्क के विकसित हो रहे अंगों में क्षति उत्पन्न करने में सक्षम होती है। इसके अलावा महिला के पेट पर बाह्य आघात लगने से भी बच्चे के मस्तिष्क को छति पहुॅंचने की काफी संभावना होती है। प्रसूति के पश्चात भी बच्चे के मस्तिष्क पर चोट लगने से उसके अंग प्रभावित हो सकते हैं फलत: बच्चे में मानसिक मंदता अथवा बच्चा मानसिक Reseller से दुर्बल हो सकता है। इसके अलावा बच्चे के मस्तिष्क में ट्यूमर हो जाने अथवा जन्म के समय सिर को पकड़ कर खींचने से भी मस्तिष्कीय अंगों पर अनावश्यक दबाव पड़ने से भी मानसिक मंदता उत्पन्न हो सकती है।

4. चयापचय, पोशण And वर्धन में गड़बडी – 

वैज्ञानिक शरीर की चयापचय, पोशण And वर्धन की प्रक्रिया में गड़बड़ी को भी बच्चों में मानसिक दुर्बलता विकसित होने का प्रमुख कारण मानते हैं। जब बच्चों को उनके शारीरिक And मानसिक विकास के लिए जरूरी तत्व, जैसे प्रोटीन,, आदि उचित मात्रा में प्राप्त नहीं होते तथा उनका चयापचय ठीक प्रकार से नहीं होता है तो कर्इ प्रकार की मानसिक दुर्बलतायें उत्पन्न हो जाती हैं। जैसे कि PKU जैसी मानसिक दुर्बलता का कारण प्रोटीन चयापचय में गड़बड़ी होती है, तथा टे-सैक (Tay-Sach’s) जैसी मानसिक दुर्बलता का कारण वसा चयापचय (fat metabolism) ठीक से नहीं हो पाना होता है। इसके अलावा थाइराइड ग्रंथि के स्राव में कमी से हाइपोथाइरोइडिज्म जैसी मानसिक दुर्बलता उत्पन्न होती है। इन प्रमाणों के प्रकाश में कहा जा सकता है कि मानसिक मंदता का Single प्रमुख कारण चयापचय, वर्द्धन And आहार की अनुपयुक्तता भी है।

5. संक्रमण होना – 

संक्रमण को भी मानसिक दुर्बलता के उत्पन्न होने के पीछे Single प्रमुख कारक माना गया है। जब बच्चा जन्म के तुरंत पश्चात किसी प्रकार के संक्रमण का शिकार हो जाता है तो उससे बालक के तीव्र गति से विकसित हो रहे मस्तिष्क का वर्धन प्रभावित होता है And उसका विकास अवरूद्ध हो जाता हैै। इसी प्रकार जन्म से पूर्व मॉं के गर्भ में ही यदि किसी प्रकार का गंभीर संक्रमण बच्चे को हो जाता है तो उससे भी गर्भ के अन्दर ही बच्चे के मस्तिष्क का विकास प्रभावित होता है। परिणामत: बच्चे के मस्तिष्क की विकास दर मंद पड़ जाती है। मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि जिन गर्भवती माताओं को गर्भ धारण करने से First तीन महीनों में रूबेला (rubella) या खसरा (measels) जैसा संक्रामक रोग हो जाता है, उनके शिशुओं में जन्म के बाद मानसिक दुर्बलता के लक्षण दिखलार्इ पड़ते हैं (अरूण कुमार सिंह, 2005)। इसके अलावा गर्भावस्था में कभी-कभी अन्य संक्रामक रोग जैसे साइटोमेगालिक रोग से माताए प्रभावित हो जाती हैं? जिससे रोग के वायरस भ्रूण को प्रभावित कर देते हैं और उससे ऐसे शिशुओं में बाद में मानसिक मंदता विकसित हो जाती है।

6. क्रोमोजोम्स संयोजन में दोश – 

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अरूण कुमार सिंह अपनी पुस्तक आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान में लिखते हैां कि सामान्यत: Single सामान्य व्यक्ति में क्रोमोजोम्स की संख्या 46 Meansात् 23 युग्म होते हैं। मानसिक दुर्बलता के कुछ नैदानिक प्रकारों से जो प्रमाण मिले हैं उनसे यह स्पष्ट हुआ है कि ऐसे प्रकारों में स कुछ में क्रोमोजोम्स की संख्या 46 से अधिक होती है तथा कुछ में इसकी संख्या 46 से कम होती है। जैसे – डाउन संलक्षण में क्रोमोजोम्स की संख्या 47 होती है। उसी तरह से क्लाइनेफिल्टर संलक्षण में क्रोमोजेम्स की संख्या 47 ही होती है परन्तु टर्नर संलक्षण में क्रोमोजोम्स की संख्या 45 ही होती हैं इन सब तथ्यों से स्पष्ट होता है कि मानसिक दुर्बलता का कारण क्रोमोजोम्स में Creation संबंधी दोश होते हैं।

7. अन्य कारण – 

उपरोक्त कारणों के अलावा कुछ अन्य कारणों के संबंध में भी अनुसंधानकर्ताओं को प्रमाण मिले हैं। अनुसंधानकर्ताओं के According जब मातायें अपनी गर्भावस्था के दिनों में कुछ विशेश दवाइयों को सेवन करती हैं इससे गर्भ में पल रहे बच्चे की मानसिक दशा प्रभावित होती है और उसमें मानसिक मंदता उत्पन्न हो जाती है। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान जो मॉंएं शराब, कोकेन, तम्बाकू, मारीजुआना, कुनैन, लेड, आर्सेनिक, कार्बन मोनोऑक्साइड के संपर्क में आती हैं या सेवन करती हैं उससे उत्पन्न नशे से प्राय: शिशुओं में मानसिक दुर्बलता उत्पन्न हो जाती है। वैसे द्रव्य जो प्लेसेन्टा को पार करके गर्भस्थ शिशु को क्षति पहुॅंचाते हैं को टेराटोजेन्स कहा जाता है। फ्रासिया And उनके सहयोगियों के According कोकेन, तम्बाकू तथा मारिजुआना तीन महत्वपूर्ण टीरैटोजेन्स हैं जो मानसिक Reseller से गर्भस्थ शिशु को कमजोर करते हैं। जन्म के बाद भी जब बच्चे किसी तरह से सालिसाइलेट, लेड तथा अन्य कीटनाशक पदार्थ को किसी न किसी Reseller में ग्रहण कर लेता है तो इससे भी ऐसे बालकों में मानसिक मंदता के लक्षण दिखलार्इ पड़ने लगते हैं।

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