मनोविज्ञान के अध्ययन की विधियाँ

अन्तर्निरीक्षण विधि- 

अन्तर्निरीक्षण विधि को व्यक्ति के मनोविज्ञान के अध्ययन की First विधि के Reseller में जाना जाता है। इस विधि के प्रतिपादक विलियम वुण्ट And उनके शिष्ट र्इ.बी. टिचनर कहे जाते हैं। विलियम वुण्ट मनोविज्ञान को ‘फादर ऑफ साइकोलाजी’ भी कहा जाता है क्योंकि विलियम वुण्ट ही वह प्रमुख अनुसंधानकर्ता हुए हैं जिन्होंने जर्मनी के शहर में First विश्व के First मनोविज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना सन् 1979 में कर के मनोविज्ञान को विज्ञान के Reseller में मान्यता दिलवायी। विलियम वुण्ट की शिक्षाओं पर चलते हुए टिचनर ने मनोविज्ञान के First संप्रदाय संCreationवाद ( स्कूल ऑफ स्ट्रक्चरलिज्म) की स्थापना की। अन्तर्निरीक्षण इसी संCreationवाद के अन्तर्गत मनोविज्ञान के अध्ययन की Single प्रमुख विधि के Reseller में प्रचलित हुआ। वुण्ट And टिचनर ने मनोविज्ञान को चेतन अनुभूतियों के विज्ञान के Reseller में परिभाषित Reseller, तथा इसके अध्ययन हेतु अन्तर्निरीक्षण की विधि को उपयुक्त बताया।

इनके According चेतन अनुभूतियॉं मुख्य Reseller में तीन तत्वों को अपने आप में समाहित करती हैं। 1) संवेदन, 2) भाव And 3) छवि। अपने दिन प्रतिदिन के जीवन में व्यक्ति प्रतिपल-प्रतिक्षण विभिन्न प्रकार की अनुभूतियों से गुजरता है, इन अनुभूतियों में से जो अनुभूतियॉं चेतन होती हैं उनमें उपरोक्त तीनों तत्व प्रमुखता से सम्मिलित होते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोर्इ व्यक्ति सुबह सवेरे Single बाग में टहलने हेतु जाये And किसी सुगंधित पुष्प को देखकर उसे कुछ चेतन अनुभूतियॉं हों जिसका वर्णन वह स्वयं ही इस प्रकार वर्णन करे कि –

‘बाग में गुलाब के सुन्दर पुष्प को देखकर उसे बहुत ही प्रसन्नता हुर्इ और ठीक इसी तरह के पुष्प उसके दादा जी के बाग में भी खिला करते थे।’ यह वर्णन अन्तर्निरीक्षण विधि का Single उत्तम उदाहरण है क्योंकि इसमें हम पाते हैं कि व्यक्ति ने अपने चेतन अनुभूति में तीनों तत्वों का समावेश Reseller है। खिले पुष्प को देखना Single दृष्टि संवेदन का उदाहरण है। गुलाब के खिले पुष्प को देखकर व्यक्ति को प्रसन्नता के भाव का अनुभव हुआ। गुलाब के फूलों को देखकर उसके मन में Single खास छवि उत्पन्न हुर्इ, जो उसे उसके दादा जी के बगीचे की याद दिला रही थी। इस तरह से स्पष्ट है कि जब व्यक्ति अपनी चेतन अनुभूतियों का वर्णन इस प्रकार से करता है जिसमें Single खास संवेदन, भाव And छवि (प्रतिमा) सम्मिलित होती है तो उसे अन्तर्निरीक्षण विधि की संज्ञा दी जाती है।

अन्तर्निरीक्षण से ही मिलता जुलता Single संप्रत्यय है आत्मनिरीक्षण (सेल्फ आब्जरवेशन)। आत्मनिरीक्षण And अन्तर्निरीक्षण में पर्याप्त भिन्नता है अतAnd विद्यार्थियों को इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए। अन्तर्निरीक्षण में जहॉं व्यक्ति अपनी चेतन अनुभूति के तीनों तत्वों का वर्णन करता है वहीं आत्मनिरीक्षण में व्यक्ति आन्तरिक अनुभूतियों का वर्णन न करके स्वयं से संबंधित तथ्यात्मक जानकारी का वर्णन करता है। उदाहरण के लिए यदि कोर्इ व्यक्ति अपने सिर के बालों को देखकर कहता है कि उसके अधिकांश बालों का रंग सफेद हो गया है तो यह केवल आत्मनिरीक्षण का उदाहरण होगा। क्योंकि इस उदाहरण में व्यक्ति ने अपने बालों के रंग के संदर्भ में तथ्यात्मक जानकारी का वर्णन Reseller है वहीं यदि व्यक्ति यह कहता कि अपने सफेद बालों को देखकर उसे दुख अथवा प्रसन्नता हो रही है तथा सफेद बाल उसे उसके दादाजी की याद दिलाते हैं And ऐसे ही सफेद बाल उसके दादा जी के भी थे तो यह अन्तर्निरीक्षण विधि का उदाहरण होगा। स्पष्ट है कि आत्मनिरीक्षण को अन्तर्निरीक्षण कहलाने के लिए चेतन अनुभूतियों का सम्मिलित Reseller जाना Single अनिवार्य शर्त है।

निरीक्षण विधि- 

मनोविज्ञान के अध्ययन हेतु निरीक्षण विधि के प्रयोग की शुरूआत प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जे.बी. वाटसन के काल से हुर्इ। वाटसन को मनोविज्ञान में व्यवहारवाद का जनक माना जाता है। वाटसन का मानना था कि विलियम वुण्ट And टिचनर की अन्तर्निरीक्षण विधि के द्वारा Human चेतना अथवा Human मन का अध्ययन पक्षपात रहित And दोष रहित तरीके से Reseller जाना संभव नहीं है। इसलिए जिन तत्वों (संवेदन, भाव And प्रतिमा) को इन मनोवैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन की विषयवस्तु बनाया गया है इनका वास्तविक जगत में यथार्थ Reseller से अवलोकन नहीं Reseller जा सकता है अतएव ये तत्व मनोविज्ञान के वैज्ञानिक अध्ययन की विषय वस्तु के Reseller में शामिल नहीं किये जाने चाहिए। वाटसन ने इन तत्वों की जगह पर प्रेक्षणीय व्यवहार को मनोविज्ञान के अध्ययन की विषयवस्तु माना है। उनका कहना है कि केवल प्रेक्षण विधि द्वारा ही मनोविज्ञान का उचितAnd वैज्ञानिक सीमाओं के अन्तर्गत वस्तुनिष्ठ प्रकार से अध्ययन Reseller जा सकता है।

इस विधि में अध्ययनकर्ता व्यक्ति के व्यवहारों का निष्पक्ष भाव से निरीक्षण या अवलोकन करता है। अपने अवलोकन के आधार पर वह Single विशेष रिपोर्ट तैयार करता है जिसका विश्लेषण कर वह उस व्यक्ति के व्यवहार के बारे में Single निश्चित निष्कर्ष पर पहुॅंचता है। निरीक्षण को वस्तुनिष्ठ बनाने के लिए व्यक्ति के व्यवहारों का अवलोकन कर्इ भिन्न परिस्थितियों में Reseller जाता है। कर्इ निरीक्षणकर्ता मिलकर व्यक्ति के व्यवहारों का अवलोकन Single साथ करते हैं। इसी कारण से इसे वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि कहा जाता है। इस विधि में दो प्रकार के व्यवहारों का अध्ययन Reseller जाता है। 1) बाह्य व्यवहार And 2) आन्तरिक व्यवहार। बाह्य व्यवहारों को पूर्णत: अवलोकनीय व्यवहारों जैसे कि खेलना, रोना, दौड़ना जैसे व्यवहारों तथा आन्तरिक व्यवहारों को पूर्णत: आन्तरिक परन्तु परोक्ष Reseller से निरीक्षणीय, मापनीय व्यवहारों जैसे-रक्तचाप में परिवर्तन, हृदयगति में बदलाव आदि के Reseller में अध्ययन Reseller जाता है।

परिस्थिति विशेष के आधार पर प्रेक्षण तीन प्रकार का होता है।

(1) स्वाभाविक प्रेक्षण

स्वाभाविक परिस्थिति में Reseller गया प्रेक्षण स्वाभाविक प्रेक्षण कहलाता है। स्वाभाविक परिस्थिति से तात्पर्य ऐसी परिस्थिति से होता है जिसमें प्रेक्षण किये जा रहे लोगों के व्यवहारों का उनके स्वाभाविक Reseller से निवास करने वाले स्थानों, कार्यस्थलों आदि में अध्ययन Reseller जाता है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में इस प्रकार के अध्ययन की शुरूआत First जीवों जैसे कि बन्दरों, मधुमक्खियों, चींटियों, चूहों आदि के व्यवहार के प्रेक्षण से की गयी। प्राय: ऐसे जीवों में शोधकर्ता आक्रामकता, प्यार, सामाजिकता, संवेदनशीलता आदि का अध्ययन करते हैं। मनुष्यों में इस तरह के की अध्ययन विधि का उपयोग शिशुओं And बच्चों के व्यवहार के अध्ययन हेतु सर्वाधिक Reseller गया है।

स्वाभाविक प्रेक्षण का उदाहरण- मान लीजिए कि Single अध्ययनकर्ता विकसित देशों के नागरिकों द्वारा रेल यात्रा के दौरान दिखलाये जाने वाले व्यवहार का विकासशील देशों के नागरिकों की रेल यात्रा के दौरान किये जाने वाले व्यवहारों के बीच तुलनात्मक अध्ययन करना सुनिश्चित करता है। इसके लिए First Single विकासशील देश And Single विकसित देश का चयन करना होगा। यदि वह इसके लिए क्रमश: भारत And अमेरिका का चयन करता है तो उसे इन देशों में जाकर वहॉं की स्वाभाविक परिस्थिति में रेलयात्रा करनी होगी तथा बिना किसी यात्री को अपने अध्ययन का उद्देश्य बताये ही उसे उनके व्यवहारों का विभिन्न परिस्थितियों में अवलोकन And अंकन करना होगा। इसके उपरान्त ही अध्ययनकर्ता दोनों देशों के नागरिकों के रेलयात्रा के दौरान किये गये व्यवहारों का उचित Reseller से तुलनात्मक विश्लेषण कर किसी खास निष्कर्ष पर पहुॅंच सकेगा।

(2) सहभागी प्रेक्षण

सहभागी प्रेक्षण वैसे प्रेक्षण को कहा जाता है जिस प्रेक्षण विधि में अध्ययनकर्ता अध्ययन के दौरान अध्ययन परिस्थिति में अध्ययन किये जाने वाले व्यक्तियों के साथ सहभाग करता है। इस विधि में अध्ययनकर्ता लोगों द्वारा किये जा रहे कार्य में ठीक उन्हीं की तरह प्रतिभाग करता है तथा साथ ही गुप्त Reseller से उनके व्यहारों का अध्ययन भी करता है। इस प्रेक्षण में प्रतिभागियों जिनके व्यवहार का अध्ययन Reseller जा रहा है उन्हें उनका प्रेक्षण Reseller जा रहा है इसकी जानकारी नहीं होती है। उदाहरण के लिए यदि कोर्इ अध्ययनकर्ता कॉल सेन्टर में कार्य करने वाले कर्मचारियों के व्यवहार का अध्ययन करना चाहता है तो वह स्वयं Single काल सेन्टर कर्मी के Reseller में नौकरी कर यदि अन्य कर्मचारियों के व्यवहार का अध्ययनकर्ता है तो यह सहभागी प्रेक्षण का उपयुक्त उदाहरण होगा।

सहभागी प्रेक्षण के गुण And दोष

  1. सहभागी प्रेक्षण में अध्ययनकर्ता के स्वयं सहभाग करने से वह व्यक्तियों के सूक्ष्म व्यहारों And संवेगों का गहरार्इ से अध्ययन करने में समर्थ होता है। इससे व्यक्तियों के व्यवहार संबंधी गहन, विस्तृत And सूक्ष्म जानकारी प्राप्त होती है। यह सहभागी प्रेक्षण का Single प्रमुख गुण है।
  2. इस पे्रक्षण द्वारा प्रेक्षण किये जा रहे व्यक्तियों के व्यवहार And संवेग के बारे में स्वाभाविक And वास्तविक जानकारी प्राप्त होती है। 
  3. इस प्रेक्षण का प्रमुख दोष यह है कि प्रेक्षण के दौरान प्रतिभागियों के साथ समय बिताने के कारण अध्ययनकर्ता में स्वयं ही Single मनोवैज्ञानिक प्रभाव उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण कुछ व्यक्तियों के प्रति अध्ययनकर्ता को लगाव व कुछ के प्रति विलगाव उत्पन्न हो जाता है Second Wordों में कहें तो पसन्द And नापसन्द का भाव उत्पन्न हो जाता है। इससे अध्ययनकर्ता All प्रतिभागियों के व्यवहार And संवेगों का अंकन पक्षपातरहित Reseller से नहीं कर पाता है। इससे अंकन वस्तुनिष्ठता में कमी आ जाती है। इस दोष की विशेषता यह है कि यह स्वाभाविक दोष होता है And अध्ययनकर्ता को इसका अहसास प्राय: नहीं हो पाता है। 
  4. अध्ययनकर्ता लोगों के साथ उनके व्यवहारों में हाथ बॅंटाने के कारण उनके All व्यहारों पर नजर नहीं रख पाता है परिणामस्वReseller कुछ व्यवहारों का वह अवलोकन नहीं कर पाता है। साथ ही अपनी पहचान गुप्त रखने के कोशिश में कर्इ बार उससे अवलोकन में त्रुटि की संभावना बनी रहती है।
  5. All प्रकार की परिस्थितयों में सहभागी प्रेक्षण कर पाना संभव नहीं होता है। क्योंकि All प्रकार की परिस्थितियों में सहभाग कर पाने की योग्यता अध्ययनकर्ता में होना संभव नहीं होता है। सहभागी प्रेक्षण में अध्ययनकर्ता की आयु, उसका लिंग, जाति, धर्म, संस्कृति शिक्षा And मूल्यों का प्रभाव तथा परिस्थिति की जटिलतायें बाधा बन जाती हैं। 

उदाहरण के लिए यदि अध्ययनकर्ता फुटबाल खिलाड़ियों द्वारा खेल के दौरान किये जाने वाले व्यवहारों के अध्ययन करना चाहता है तो उसे खिलाड़ी के Reseller में स्वाभाविक परिस्थिति में प्रतिभाग करना होगा। यदि अध्ययनकर्ता कॉलेज के छात्रों के समूह व्यवहार का अध्ययन करना चाहता है तो उसे कॉलेज छात्र के Reseller में कॉलेज में प्रवेश प्राप्त कर उनके साथ रहना होगा। इस तरह से यह ज्ञात होता है कि अध्ययनकर्ता को सहभागी प्रेक्षण विधि अपनाने के लिए अभिनय कला का भी ज्ञान होना आवश्यक है। जो कि All अध्ययनकर्ताओं के लिए संभव नहीं है।

(3) असहभागी प्रेक्षण

असहभागी प्रेक्षण वैसे प्रेक्षण को कहा जाता है जिसमें अध्ययनकर्ता लोगों के व्यवहार का अध्ययन उनके साथ सहभाग न कर बल्कि दूर रहकर करता है। Second Wordों में वह व्यक्तियों के उन व्यवहारों में हाथ नहीं बॅंटाता जिनका उसे प्रेक्षण करना होता है। नैदानिक, शैक्षिक, सामाजिक तथा आद्योगिक परिस्थितियों के व्यवहारों का प्रेक्षण प्राय: इस विधि से Reseller जाता है। उदाहरण के लिए यदि कोर्इ अध्ययनकर्ता क्लास रूम में विद्यार्थियों द्वारा शिक्षक की उपस्थिति में किये जाने वाले व्यवहारों का अवलोकन करना चाहता है। तथा इसके लिए वह शिक्षक की अनुमति प्राप्त कर कक्षा में विद्यार्थिंयों के पीछे बैठकर अथवा खड़े रहकर उनका अवलोकन करता है तो यह असहभागी प्रेक्षण का उदाहरण होगा।

असहभागी प्रेक्षण के गुण And दोष

  1. असहभागी प्रेक्षण की प्रमुख गुण यह है कि इस प्रेक्षण के लिए अध्ययन कर्ता को विशेष प्रशिक्षण की Need नहीं होती है जैसे कि अभिनय कला आदि। इस प्रकार का प्रेक्षण करना सहभागी पे्रक्षण की अपेक्षा कहीं अधिक सरल होता है। इस प्रेक्षण हेतु अध्ययनकर्ता अपने साथ कापी कलम आदि लेकर बैठ सकता है। 
  2. असहभागी प्रेक्षण में अध्ययन किये जाने वाले व्यक्तियों के All व्यवहारों पर Single साथ नजर रख पाना संभव होता है क्योंकि अध्ययनकर्ता स्वयं उन व्यवहारों में शामिल नहीं होता है। 
  3. अवलोकन किये जा रहे व्यक्तियों के साथ लगाव And पसंद नापसंद की स्थिति उत्पन्न नहीं होने के कारण अवलोकन इनके प्रभावों से मुक्त रहता है And प्रेक्षण की वस्तुनिष्ठता बरकरार रहती है। 
  4. इस प्रेक्षण विधि का दोष यह है कि अध्ययनकर्ता प्रेक्षण किये जाने वाले व्यक्तियों के सूक्ष्म व्यवहारों And जटिल संवेगों का अवलोकन नहीं कर पाता है फलत: व्यवहार के पीछे के कारणों को ज्ञात कर पाना संभव नहीं हो पाता है।

सर्वे विधि

सर्वे विधि को सर्वेक्षण विधि भी कहा जाता है। इस विधि का प्रयोग समाज मनोवैज्ञानिकों द्वारा सर्वाधिक Reseller जाता है। आजकल इसका प्रयोग मीडिया जगत द्वारा भी राजनैतिक परिणामों जैसे कि चुनाव परिणाम अथवा लोकप्रिय नेता कौन है? जैसे उद्देश्यों के लिए भी Reseller जा रहा है। सर्वे विधि का प्रयोग मनोवैज्ञानिक प्रमुख Reseller से मनोवृत्ति के अध्ययन हेतु करते हैं। समाज में विभिन्न मुद्दों पर लोगों की राय लेने के Reseller में इस विधि की शुरूआत हुर्इ थी। कानून व्यवस्था, आरक्षण, पठन-पाठन विधि, बच्चों का पालन-पोषण, दहेज प्रथा, धार्मिक भावनाएॅं, आदि जैसे मुद्दों पर लोगों की मनोवृत्ति के विश्लेषण हेतु सर्वे विधि द्वारा ऑंकड़े इकट्ठा किये जाते हैं And Single खास निष्कर्ष पर पहुॅंचा जाता है।

सर्वे विधि का प्रयोग करने से पूर्व जिस समस्या अथवा विषय पर अध्ययन Reseller जा रहा है। उससे संबंधित जनसंख्या को परिभाषित कर लिया जाता है तथा इस जनसंख्या के Single बड़े समूह को, जिसमें उस परिभाषित जनसंख्या के समस्त गुण विशेषताएॅं विद्यमान होती हैं को प्रतिनिधिक समूह मानकर प्रतिदर्श चयन कर लिया जाता है। तथा प्रतिदर्श में सम्मिलित लोगों की राय उपयुक्त विधि द्वारा संग्रहित का ली जाती है। संग्रहित जानकारी And ऑंकड़ों का उपयुक्त विधि द्वारा विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाला जाता है।

उदाहरण के लिए यदि कोर्इ अध्ययनकर्ता ‘बच्चों को मोबाइल की सुविधा उपलब्ध कराना’ विषय पर शिक्षक, माता-पिता, राजनीतिज्ञ, समाजशास्त्री, मनोवैज्ञानिक आदि की राय जानना चाहता है तो वह इन श्रेणियों के लोगों के प्रतिनिधिक समूहों का चयन कर उनसे इस विषय पर राय लेकर ऑंकड़े संग्रहित कर तदनुपरान्त विश्लेषण कर Single खास निष्कर्ष पर पहुॅंच सकता है।

सर्वे विधि की ऑंकड़ा संग्रहण विधियॉं

सर्वे विधि में विभिन्न प्रकार के ऑंकड़ों के संग्रहण की प्रमुख Reseller से पॉंच विधियॉं हैं।

  1. साक्षात्कार सर्वे
  2. मेल सर्वे
  3. पैनल सर्वे
  4. टेलीफोन/मोबाइल सर्वे
  5. इन्टरनेट सर्वे

साक्षात्कार सर्वे विधि में किसी समस्या के बारे में ऑंकड़े संग्रह करने के लिए प्रतिदर्श में सम्मिलित किये गये All प्रतिभागियों का Singleा-Single करके अध्ययनकर्ता साक्षात्कार लेता है। साक्षात्कार Single उद्देश्यपूर्ण बातचीत होती है। इसमें प्रमुख Reseller से अध्ययनकर्ता प्रतिभागी से कुछ पूर्व निर्धारित प्रश्न पूछता है। इन प्रश्नों के उत्तरों को संग्रहित कर लिया जाता है। All व्यक्तियों द्वारा दिये गये उत्तर के आधार पर अध्ययनकर्ता Single निश्चित निष्कर्ष पर पहुॅंचता है।

मेल सर्वे विधि में अध्ययनकर्ता अध्ययन विषय से संबंधित प्रश्नों की Single पुस्तिका छपवाकर उसे डाक द्वारा प्रतिभागियों के घर भेज देता है। इस पुस्तिका में प्रश्नों के उत्तर देने का तरीका And निर्देश छपा हुआ होता है। प्रतिभागियों प्रश्नों के उत्तर देकर इस पुस्तिका को पुन: डाक द्वारा अध्ययनकर्ता को लौटा देते हैं। इस प्रकार अध्ययन हेतु ऑंकड़ों का संग्रह हो जाता है।

पैनल सर्वे विधि में व्यक्तियों के Single प्रतिनिधिक समूह जिसे कि प्रतिदर्श कहा जाता है का कर्इ बार विभिन्न समय अन्तराल पर साक्षात्कार लिया जाता है। इस विधि की खास विशेषता यह है कि प्रतिनिधिक समूह से Single ही समस्या से संबंधित प्रश्नों के उत्तर अलग-अलग समय अन्तराल पर हूबहू पूछे जाते हैं And प्राप्त उत्तरों को ऑंकड़ों के Reseller में सम्मिलित कर लिया जाता है। इस विधि से Single अतिरिक्त लाभ यह होता है कि अध्ययनकर्ता को यह स्पष्ट Reseller से ज्ञात हो जाता है कि वे कौन से कारक हैं जो समस्या के प्रति व्यक्तियों की मनोवृत्ति में अन्तर लाते हैं।

टेलीफोन/मोबाइल सर्वे विधि में अध्ययकर्ता अध्ययन में सम्मिलित किये गये व्यक्तियों द्वारा ही प्रश्नों के उत्तर टेलीफोन पर पूछ लेता है। इस विधि द्वारा सर्वाधिक शीघ्रता से ऑंकड़ा संग्रहण का कार्य पूर्ण हो जाता है। परन्तु देखा गया है कि टेलीफोन पर व्यक्ति प्रश्नों का सही-सही जवाब विशेषकर वैसे प्रश्नों का जवाब जिसका सम्बंध नैतिकता से होता है, नहीं दे पाता है। वे देश जहॉं टेलीफोन अथवा मोबाइल की सुविधा बहुत कम व्यक्तियों के पास उपलब्ध है इस विधि का उपयोग नहीं हो पाता है।

इन्टरनेट सर्वे विधि में मोबाइल And मेल सर्वे विधि दोनों ही की विशेषताएॅं सम्मिलित हैं। इन्टरनेट पर मेल के साथ ही चैट की सुविधा सहज ही उपलब्ध है। तथा इसमें प्रश्नों को छपे हुए फार्मेट में लोगों के पास भेज पाना अत्यन्त ही सहज है। इस विधि द्वारा समय And श्रम दोनों की ही बचत होती है। इस विधि का दोष यह है कि यह सुविधा भी All देशों के All नागरिकों के पास उपलब्ध नहीं होने के कारण प्रतिनिधिक ऑंकड़ों का संग्रह इस विधि से भी पूरी तरह संभव नहीं है।

सर्वे विधि के गुण And दोष

इस विधि द्वारा प्राप्त परिणामों में सामान्यीकरण का गुण पाया जाता है क्योंकि चयनित प्रतिदर्श आकार में बड़े होने के कारण उन पर प्राप्त निष्कर्षो को जनसंख्या के बड़े समूह पर लागू Reseller जा सकता है।

इस विधि से जसे ऑंकड़े संग्रह किये जाते हैं उसकी वैधता पर लोगों को शक बना रहता है। उदाहरण के लिए मेल सर्वे द्वारा प्राप्त सूचनायें सही हैं इस पर निश्चिंत होना संभव नहीं है क्योंकि हो सकता है कि प्रश्नों के जवाब उचित व्यक्ति द्वारा न दिया जा कर किसी और द्वारा दिया गया हो। ऐसा भी संभव है कि व्यक्ति कुछ ही प्रश्नों का जवाब देकर प्रश्न पुस्तिका को लौटा दें। अत: यह कहा जा सकता है कि सर्वे विधि द्वारा प्राप्त ऑंकड़ों की वैधता बहुत अधिक नहीं होती है। इसके बावजूद इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता है।

कालानुक्रमिक विधि

कालानुक्रमिक विधि – जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस विधि में समय अन्तराल का विशेष महत्व होता है। इस विधि उपयोग ऐसे चरों के अध्ययन हेतु Reseller जाता है जिनमें समय And परिस्थिति के बदलने के कारण बदलाव आने की काफी संभावना होती है। जैसे कि परिपक्वता, बुद्धि, स्मरण शक्ति, शारीरिक बदलाव, रहन-सहन आदि। जैण्डन ने इस परिभाषित करते हुए कहा है कि ‘यह Single ऐसी शोध विधि है जिसमें वैज्ञानिक व्यक्तियों के Single ही समूह का अध्ययन भिन्न-भिन्न समयों पर उनके व्यवहार And अन्य गुणों में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर करता है।’ इस विधि में दो प्रमुख विशेषतायें हैं।

  1. इसमें व्यक्तियों के Single ही समूह का अध्ययन Reseller जाता है।
  2. अध्ययन अलग-अलग समय अन्तराल पर दोहराया जाता है। अध्ययन कितनी बार दोहराया जायेगा यह अध्ययन के उद्देश्य पर निर्भर करता है। विशेष Reseller से कालानुक्रमिक विधि का प्रयोग Human विकास का अध्ययन करने के लिए Reseller जाता है। 

उदाहरण के लिए यदि कोर्इ अनुसंधानकर्ता Humanीय विशेषताओं जैसे कि बुद्धि विकास, भाषा विकास, संज्ञानात्मक विकास, शारीरिक विकास आदि का अध्ययन करना चाहता है तो यह विधि काफी उपयुक्त साबित होती है।

कालानुक्रमिक विधि के गुण And दोष

  1. यह विधि व्यवहारों And मानसिक प्रक्रियाओं में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों का क्रमबद्ध Reseller् से करने में सहायक होती है।
  2. इस विधि द्वारा कारण-प्रभाव संबंध की यथार्थ व्याख्या करना संभव होता है क्योंकि अध्ययन क्रमबद्ध Reseller से And विभिन्न अवस्थाओं में Reseller जाता है। 
  3. इस विधि का दोष यह है कि यह काफी खर्चीली And समय व्यय कराने वाली विधि है, क्योंकि यह बहुत लम्बे समय तक चलती है। इस विधि के साथ Single समस्या यह है कि लम्बे समय तक चलने वाले अध्ययन में प्राय: कुछ प्रतिभागी विभिन्न कारणों से अध्ययन में सहयोग करना बंद कर देते हैं। परिणाम स्वReseller प्राप्त परिणामों की वैधता पर प्रश्न चिह्न लग जाता है।

अनुप्रस्थ काट विधि

अनुप्रस्थ काट विधि कालानुक्रमिक विधि से विपरीत विधि है। इस विधि में अध्ययनकर्ता लम्बे समय तक मनोवैज्ञानिक समस्या का अध्ययन न कर समय के Single ही विभाग में विभिन्न प्रकार के अध्ययन समूहों के बीच चयनित समस्या का तुलनात्मक Reseller से अध्ययन करता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि अध्ययनकर्ता उम्र And भाषा विकास के बीच विकास संबंध की जॉंच करना चाहता है And इस हेतु वह विभिन्न उम्र समूहों के बच्चों से लेकर वयस्कों के विभिन्न उम्रसमूह तैयार करता है And Single ही अध्ययन वर्ष में उनके ऑंकड़े Singleत्र कर उनका विश्लेषण कर किसी निष्कर्ष पर पहुॅंचता है तो उसे अध्ययन की अनुप्रस्थ काट विधि का उत्तम उदाहरण माना जाएगा।

Second Wordों में यदि कहें तो इस विधि में अध्ययनकर्ता भिन्न-भिन्न आयुवर्गो And सामाजिक-आर्थिक स्तरों से व्यक्तियों का चयन कर कर्इ समूह निर्मित करता है जिनका अध्ययन Single ही समय में Single साथ Reseller जाता है। ये निर्मित समूह दस्ता समूह (cohort group) कहलाते हैं। उदाहरण के लिए सन 2010 में जन्मे उत्तराखण्ड के All नागरिक Single दस्ता समूह के उदाहरण होंगे वहीं सन् 2011 में जन्मे All व्यक्ति Second दस्ता समूह के सदस्य होंगे। इस विधि से प्राप्त परिणामों की सफलता विभिन्न उम्र समूहों से चयनित समूहों के प्रतिनिधित्व के गुण से सम्पन्न होने की सीमा से होती है। इसके लिए प्रतिभागियों का चयन यादृच्छिक विधि द्वारा उत्तम होता है।

अनुप्रस्थ-काट विधि के गुण And दोष

  1. इस विधि से मनोवैज्ञानिक विकास का अध्ययन करने में समय And श्रम दोनों की बचत होती है। इसके अलावा अध्ययन में सम्मिलित All प्रतिभागियों के दीर्घावधि सहयोग की भी जरूरत नहीं रहती है।
  2. इस विधि का दोष यह है कि अध्ययन करने में प्रतिभागियों के समूह में होने वाले परिवर्तन की दिशा ज्ञात नहीं हो पाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अध्ययन भिन्न-भिन्न समय अंतरालों में न करके Single ही समय में कर लिया जाता है।

क्रास-सांस्कृतिक विधि

क्रास-सांस्कृतिक विधि का उपयोग समाजशास्त्रियों And मनोवैज्ञानिकों द्वारा सर्वाधिक Reseller जाता है। यह विधि अनुप्रस्थ-काट विधि से काफी मिलती जुलती है क्योंकि अनुप्रस्थ काट विधि में विकाSeven्मक समस्या का अध्ययन करने के लिए विभिन्न आयुवर्ग निर्मित कर उनसे प्रतिनिधिक समूहों का चुनाव कर उनके बीच विकास प्रक्रिया की तुलना की जाती है वैसे ही क्रास-सांस्कृतिक विधि में विभिन्न सांस्कृतिक समूहों से प्रतिनिधिक समूहों का चुनाव कर उन संस्कृतियों के विकास And नियम आदि की तुलना की जाती है। क्रास सांस्कृतिक विधि के कर्इ उदाहरण उपलब्ध हैं जिनमें से यहॉं उदाहरण के Reseller में प्रसिद्ध Humanशास्त्री रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा किए गए अध्ययन का वर्णन Reseller जा रहा है। इस अध्ययन की परिकल्पना यह थी कि विशेष प्रशिक्षण And अनुशासन जैसे मुद्दों पर माता-पिता तथा बच्चों के बीच तनाव उत्पन्न होने पर दादा-दादी तथा पोते-पोतियों के बीच संबंध मधुर हो जाते हैं। इस परिकल्पना की जॉंच के लिए विभिन्न संस्कृतियों से ऑंकड़े Singleत्र किए गए और उनका विश्लेषण करने पर पाया गया कि माता-पिता And बच्चों में मतभेद होने पर केवल उन संस्कृतियों में दादा-दादी And उनके पोते-पोतियों में स्नेह बढ़ जाता है जिनमें पारिवारिक सत्ता दादा-दादी से संबंधित नहीं होती है और वे अनुशासन के Reseller में कार्य नहीं करते हैं। जिन संस्कृतियों में दादा-दादी अनुशासन पर अधिक जोर देते हैं वहॉं उन दोनों के बीच उस ढंग का स्नेहपूर्ण And दोस्ताना संबंध नहीं पाया जाता है।

क्रास सांस्कृतिक विधि के गुण And दोष

  1. क्रास-सांस्कृतिक विधि में सामान्यीकरण का गुण पाया जाता है Meansात् अध्ययन के परिणाम आसानी से संस्कृति विशेष पर लागू Reseller जाना आसान होता है। 
  2. इस विधि का दोष यह है कि विभिन्न संस्कृतियों के पर्याप्त Reseller से भिन्न होने पर प्राप्त ऑंकड़ों की गुणवत्ता Single सी नहीं रह पाती है। ऐसे में वे अध्ययन जो कि प्रशिक्षित अनुसंधानकर्ता द्वारा संचालित किए जाते हैं उन्हें छोड़कर अन्य अध्ययनों में Singleत्रित आंकड़ों की गुणवत्ता विश्वसनीय नहीं होती है।

क्षेत्र अध्ययन विधि

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक करलिंगर ने क्षेत्र अध्ययन को परिभाषित करते हुए कहा है कि ‘क्षेत्र अध्ययन Single ऐसा अप्रयोगात्मक अनुसंधान है जिसका उद्देश्य वास्तविक सामाजिक संCreation में समाजशास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक And शैक्षिक चरों में अन्त:क्रियाओं And उसके संबंधों की खोज करना है’ (‘Field studies are non-experimental scientific inquires aimed at discovering the relations and interactions among sociological, psychological and educational variables in real social structure.’ – Kerlinger, 1986)। सामान्य Reseller में क्षेत्र अध्ययन विधि का मूल Means उसके नाम ‘क्षेत्र‘ में ही विद्यमान है। इस विधि में क्षेत्र से तात्पर्य अध्ययन की वास्तविक परिस्थिति से होता है। उदाहरण के लिए यदि कोर्इ अध्ययनकर्ता स्कूल के विद्यार्थियों के उनके शिक्षक के साथ की जा रही बातचीत के पैटर्न का अध्ययन स्कूल की वास्तविक परिस्थिति में जाकर करता है तो वह क्षेत्र अध्ययन विधि का Single उपयुक्त उदाहरण होगा। इसी प्रकार इस विधि में Human व्यवहारों का कॉलेज, फैक्टरी, ऑफिस आदि में स्वाभाविक परिस्थिति में Reseller जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि मनोविज्ञान की इस विधि में व्यवहार के जिन पहलुओं के बारे में मनोवैज्ञानिक अध्ययन करते हैं, उनमें अपनी ओर से किसी तरह का जोड़-तोड़ नहीं Reseller जाता है बल्कि उसका हू-ब-हू ठीक उसी Reseller में अध्ययन Reseller जाता है जिस Reseller में वह घटित होता है।

क्षेत्र अध्ययन विधि के गुण And दोष

  1. इस अध्ययन विधि द्वारा प्राप्त निष्कर्ष अधिक वैध होते हैं क्योंकि अध्ययन स्वाभाविक And वास्तविक क्षेत्र-परिस्थिति में Reseller गया होता है।
  2. इसका दोष यह है कि अध्ययन परिस्थिति पर अध्ययनकर्ता का कोर्इ नियंत्रण नहीं होने के कारण वह अध्ययन के दौरान उपस्थित होने वाले विघ्नों को नियंत्रित करना संभव नहीं हो पाता है, यदि अध्ययनकर्ता परिस्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश करता है तो वह परिस्थिति अवास्तविक हो जाती है उसकी स्वाभाविकता समाप्त हो जाती है।

सहसंबंधात्मक शोध विधि

सह संबंधात्मक विधि मनोविज्ञान विषय के अध्ययन की Single बहुत ही प्रचलित विधि है। इस विधि में मनोविज्ञान विषय के विभिन्न चरों के बीच सहसंबंधों का अध्ययन Reseller जाता है। उदाहरण के लिए यदि कोर्इ अनुसंधानकर्ता यह जानना चाहता है कि उम्र बढ़ने के साथ साथ बुद्धि And स्मृति में किस प्रकार की बढ़ोत्तरी And घटोत्तरी पायी जाती है। तो उसे उम्र के साथ बुद्धि And स्मृति के बीच सहसंबंधों का अध्ययन करना होगा। इस हेतु उसे सहसंबंध परिकलन की सांख्यिकी विधि का प्रयोग करना होगा। इस हेतु उसे उम्र And बुद्धि तथा उम्र And स्मृति का मापन कर ऑंकड़ों के दो सेट तैयार करने होंगे। जिनके बीच सांख्यिकी का प्रयोग कर सहसंबंध परिकलित Reseller जायेगा। इस सहसंबंध की मात्रा And चिह्न के आधार पर सहसंबंध की सीमा And दिशा का निर्धारण संभव होगा। सहसंबंध तीन प्रकार का होता है। धनात्मक सहसंबंध, नकारात्मक सहसंबंध, And शून्य संहसंबंध। धनात्मक सहसंबंध वह सहसंबंध होता है जब Single चर में बढ़ोत्तरी होने पर Second चर में भी बढ़ोत्तरी होती जाती है। नकारात्मक सहसंबंध वह सहसंबंध होता है जब Single चर में बढ़ोत्तरी होने पर Second चर में घटोत्तरी होने लगती है। शून्य सहसंबंध में Single चर में होने वाले बदलाव से दूसरा चर स्वतंत्र होता है। सहसंबंध की सीमा .1 से ़1के बीच होती है। पूर्ण धनात्मक 1 पूर्ण सकारात्मक संबंध का संकेत करता है। पूर्ण नकारात्मक 1 पूर्ण नकारात्मक संबंध का संकेत करता है। सहसंबंध की मजबूती चिह्नों पर निर्भर नहीं करती है। चिह्न केवल दिशा का संकेत करते हैं। सहसंबंध के अध्ययन द्वारा कारण-प्रभाव की व्याख्या नहीं की जा सकती है क्योंकि दो चरों के बीच बढ़ोत्तरी किसी Third चर के प्रभाव स्वReseller भी हो सकती है।

प्रयोगात्मक विधि

प्रयोगात्मक विधि मनोविज्ञान विषय के अध्ययन की Single वैज्ञानिक विधि है। अध्ययन की इस वैज्ञानिक विधि में विज्ञान की All विशेषताएॅं जैसे कि क्रमबद्धता, व्यवस्था, विश्लेषण, प्रेक्षण, निरीक्षण And नियंत्रण इसमें व्याप्त होती हैं। मनोविज्ञान का विज्ञान होने का दावा इसमें होने वाले वैज्ञानिक प्रयोगों के कारण ही मजबूत हो पाया है। आज का मनोविज्ञान इतना प्रायोगिक हो गया है कि सही Meansों में केवल उन्हीं तथ्यों And सिद्धान्तों को मान्यता प्राप्त रह गयी है जिन्हें वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा साबित Reseller गया है। सवाल उत्पन्न होता है कि प्रयोगात्मक विधि क्या है? इसे समझने के लिए प्रयोग के स्वReseller को समझना होगा क्योंकि प्रयोगात्मक विधि का आधार प्रयोग होता है। सामान्य Reseller में किसी व्यवहार And मानसिक प्रक्रिया का किसी नियंत्रित दशा में क्रमबद्ध And व्यवस्थित पे्रक्षण करना ही प्रयोग कहलाता है।

प्रायोगिक विधि में समस्या के निर्धारण के उरान्त परिकल्पना का निर्माण Reseller जाता है यह परिकल्पना दो या दो से अधिक चरों के बीच अनुमानित संबंध का कथन होता है। चर को Single ऐसे संप्रत्यय के Reseller में परिभाषित Reseller जाता है जिस में मात्रात्मक अथवा गुणात्मक परिवर्तन संभव होता है। प्रायोगिक विधि में प्रमुख Reseller से तीन प्रकार के चरों का वर्णन मिलता है।

  1. स्वतंत्र चर
  2. परतंत्र चर And 
  3. बाह्य चर।

स्वतंत्र चर ऐसे चरों को कहा जाता है जिनका कि प्रभाव अन्य चरों पर प्रयोग के माध्यम से देखा जाना सुनिश्चित Reseller जाता है। इन चरों में मात्रात्मक अथवा गुणात्मक परिवर्तन करने में प्रयोगकर्ता स्वतंत्र And सक्षम होता है। परतंत्र चर ऐसे चरों को कहा जाता है जिनमें कि प्रयोग की दशा में प्रयोगकर्ता स्वतंत्र चर के माध्यम से होने वाले बदलावों का अध्ययन करता है। इस प्रकार परतंत्र चर की मात्रा में परिवर्तन अथवा बदलाव होना स्वतंत्र चर के परिचालन पर निर्भर करता है। बाह्य चर उन चरों को कहा जाता है जिनका अध्ययन करने में प्रयोगकर्ता अथवा अनुसंधानकर्ता की रूचि नहीं होती है परन्तु ये चर बाह्य Reseller में अध्ययन परिस्थिति को प्रभावित करते पाये जाते हैं जिनसे परतंत्र चर में स्वतंत्र चर के प्रभाव में वृद्धि अथवा कमी हो जाती है।

उदाहरण के लिए यदि कोर्इ शोधकर्ता ध्यान के अभ्यास का प्रयोज्यों के स्मृति निष्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना चाहता है तथा इसके लिए वह परिकल्पना विनिर्मित करता है कि ‘ध्यान के नियमित अभ्यास से प्रयोज्यों के स्मृति निष्पादन में बढ़ोत्तरी होती है।’ इस परिकल्पना में दो चर हैं, ध्यान And स्मृति। ध्यान स्वतंत्र चर है And स्मृति परतंत्र चर। ध्यान का प्रभाव प्रयोज्यों की स्मृति पर देखा जा रहा है। अब यदि प्र्रायोगिक दशा में अन्य चर नियंत्रित हैं Meansात ध्यान के अलावा अन्य किसी प्रकार का बाह्य हस्तक्षेप स्मृति निष्पादन को प्रभावित नहीं कर रहा है तो प्राप्त परिणाम यह इंगित करेंगे कि प्रयोज्यों की स्मृति में आने वाले बदलाव केवल ध्यान के अभ्यास का परिणाम हैं। परन्तु यदि किसी कारण प्रयोगकर्ता बाह्य चरों के प्रभाव को नियंत्रित करने में असमर्थ रहता है तो प्राप्त परिणाम वैध नहीं कहलायेंगे। उदाहरण के लिए उपर्युक्त परिस्थिति में यदि प्रयोग की परिस्थिति में कहीं से शोर की आवाज सुनार्इ पड़ने लगे तो प्रयोज्यों की स्मृति निष्पादन गंभीर Reseller से प्रभावित हो सकता है। जिससे प्राप्त परिणाम शुद्ध नहीं होंगे।

प्रायोगिक अध्ययन विधि के गुण And दोष

  1. प्रायोगिक अध्ययन विधि में प्रयोगकर्ता का अध्ययन परिस्थिति पर काफी हद तक नियंत्रण रहता है जिससे प्राप्त परिणामों की विश्वसनीयता And वैधता में वृद्धि होती है।
  2. प्रायोगिक अध्ययन विधि में स्वतंत्र चर And परतंत्र चर का वैज्ञानिक ढंग से प्रयोग किये जाने के कारण तथा बाह्य चरों के प्रभाव को नियंत्रित किये जाने के कारण, कारण-प्रभाव संबंध स्थापित कर पाना अत्यंत सरल होता है।
  3. प्रायोगिक अध्ययन विधि में नियंत्रण का गुण पाये जाने के कारण परिणामों की आंतरिक वैधता में वृद्धि होती है। 
  4. अध्ययन को Second अनुसंधानकर्ता द्वारा पुन: दुहराये जाने पर पूर्व में प्राप्त परिणामों को प्राप्त करने की संभावना काफी अधिक रहती है जिससे अध्ययन विश्वसनीय माना जाता है।
  5. प्रायोगिक अध्ययन विधि का प्रमुख दोष यह है कि All प्रकार की परिस्थियों में इसका प्रयोग कर पाना संभव नहीं हो पाता है अतएव इसकी प्रयोग सीमित रह जाता है। 
  6. प्रायोगिक अध्ययन विधि का दूसरा दोष यह है कि अध्ययन परिस्थिति में अत्यधिक नियंत्रण होने की दशा में प्रयोज्यों का व्यवहार स्वाभाविक नहीं रह पाता है फलत: इसकी बाह्य वैधता में कमी आ जाती है।

इन कमियों के बावजूद प्रयोगात्मक विधि के गुण अधिक होने के कारण वैज्ञानिक अध्ययन हेतु इसका प्रयोग सर्वाधिक Reseller जाता है।

मेटा विश्लेषण

मेटा विश्लेषण मनोविज्ञान के अध्ययन की Single प्रमुख विधि है इसका प्रयोग उन परिस्थितियों में Reseller जाता है जबकि किसी Single विषय विशेष से संबंधित बहुत से अध्ययन पूर्व में किये जो चुके होते हैं And उन अध्ययनों के परिणामों में प्रत्यक्ष Reseller से संगति देखने में नहीं आती है। ऐसी परिस्थिति में उचित निष्कर्ष पर पहुॅंच पाना अनुसंधानकर्ता के लिए संभव नहीं होता है। इस स्थिति को दूर करने हेतु अनुसंधानकर्ता विभिन्न अनुसंधानों से प्राप्त परिणामों को Single साथ Singleत्र कर पुन: व्यवस्थित करते हैं And उपयुक्त सांख्यिकीय विधि का इस्तेमाल कर उचित सांख्यिकीय विश्लेषण करते हैं। इस विश्लेषण के उपरांत प्राप्त परिणाम पूर्व शोधों के संबंध में Single दिशा विशेष की ओर संकेत करते हैं जिसके आधार पर निष्कर्ष प्रतिपादित किये जाते हैं।

मेटा विश्लेषण की विशेषतायें

  1. मेटा विश्लेषण का प्रमुख गुण यह है कि इस विधि द्वारा पूर्व में किये गये अध्ययनों की सांख्यिकीय विश्लेषण कर परिणामों को किसी Single दिशा में झुकाव का अंदाजा लगा पाना संभव होता है, जिससे दुविधा की स्थिति समाप्त होती है। 
  2. मेटा विश्लेषण में नया अध्ययन करने की Need नहीं होती है बल्कि पूर्व के अध्ययनों के ऑंकड़ों का उपयोग किये जाने के कारण समय, श्रम And धन की बचत भी होती है। 
  3. मेटा विश्लेषण के लिए अध्ययनकर्ता का शोध And सांख्यिकी में निष्णात होना आवश्यक होता है। अन्यथा ऑंकड़ो की प्रकृति ठीक प्रकार नहीं समझ पाने पर गलत परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

मेटा विश्लेषण का प्रयोग मनोविज्ञान, शिक्षा, पर्यटन , समाजशास्त्र आदि से संबंधित शोधो में काफी अधिक Reseller जाता है।

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