मनोचिकित्सा का Means, परिभाषा, उद्देश्य And प्रकार

, ‘‘मनोचिकित्सा का Means है- रोग का निवारण या कम करने के इरादे के साथ Human मन पर मानसिक क्रिया उपायों की क्रिया …. विस्तृत Means में मनोचिकित्सा से चिकित्सक या मनोवैज्ञानिक का ही पूर्ण सम्बन्ध नहीं है, बल्कि प्रत्येक मनुष्य का सम्बन्ध है, जो Second व्यक्ति के आक्रान्त मन, कष्टों को दूर करने की कोशिश करता है।’’ इसमें संवेगात्मक And व्यवहार सम्बन्धी विक्षोभों से ग्रस्त व्यक्तियों का उपचार Reseller जाता है। ये विधियां मुख्यत: मनोवैज्ञानिक होती है। मनोचिकित्सा विधियां मुख्यत: दो प्रकार की होती है – व्यक्तिगत व सामूहिक।

फिशर के According, ‘‘मनोचिकित्सा, विविध प्रकार के Humanीय रोगी And विक्षोभों, विशेषतया जो मनोजात कारणों से होते है का निराकरण करने के लिए मनोवैज्ञानिक तथ्यों And सिद्धान्तों का योजनावद्ध And व्यवस्थित ढंग से उपयोग है।’’ 

जेम्स डी. पेज के According, ‘‘मनोचिकित्सा का Means है- मानसिक विकृतियों, विशेषतया मन: स्नायुविकृतियों का मनोवैज्ञानिक प्रविधियों के माध्यम से उपचार करना।’’
मनोग्रस्तता And बाध्यता नामक मनोवैज्ञानिक समस्या से संबंधित कर्इ महत्वपूर्ण बिन्दु स्पश्ट होते हैं –

  1. मनोग्रस्तता का संबंध विचारों, व कल्पनाओं से होता है। 
  2. ऐसे विचार And कल्पनाओं से संबंधित चिंतन Meansहीन होते हैं। 
  3. ऐसे विचार या चिंतन का स्वReseller पुनरावर्ती होता है तथा रोगी के मन में जबरदस्ती प्रवेश कर उसकी चित्त की शांति को भंग कर देते हैं। 
  4. रोगी का इन विचारों, कल्पनाओं के उत्पन्न होने व अनाधिकृत प्रवेश पर कोर्इ नियंत्रण नहीं रहता है। रोगी चाहकर भी इन्हें उत्पन्न होने से नहीं रोक पाता है। 
  5. बाध्यता में भी व्यक्ति न चाहते हुए Single ही क्रिया को बार-बार दोहराता है। 
  6. मनोग्रस्तता के समान ही बाध्यता में भी व्यक्ति द्वारा की गयी अनुक्रियायें अवांछित ही नहीं बल्कि अतार्किक And असंगत भी होती हैं। 
    सार Reseller में मनोग्रस्तता-बाध्यता विकृति में रोगी के मन में बार-बार नकारात्मक विचारों की श्रृंखला चलने लगती है जिनसे रोगी छुटकारा पाना चाहता है क्योंकि ये विचार उसकी मानसिक शांति को नश्ट कर उसमें दुश्चिंता को जन्म देते हैं जिनसे बचने के लिए उसे कुछ अवांछनीय क्रियाओं को करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। रोगी जानता है कि ये क्रियायें Meansहीन, असंगत And अतार्किक हैं परन्तु वह उन्हें करने से स्वयं को रोकने में स्वयं को मजबूर महसूस करता है।

    इस प्रकार की समस्या को दूर करने के लिए इससे संबंधित कारणों की पहचान करना अथवा स्रोत का पता लगाना बहुत ही आवश्यक होता है तथा साथ ही त्वरित उपचार हेतु प्रभावशाली प्रविधियों का उपयोग करने हेतु निर्णय लेने की Need होती है। अतएव मनोरोग के कारणों का पता लगाने, उचित डायग्नोसिस करने तथा उपयुक्त उपचार हेतु क्लायंट And चिकित्सक के बीच Single मनश्चिकित्सकीय पेशेवर संबंध मनोचिकित्सक द्वारा जान-बूझकर विकसित Reseller जाता है जिसमें क्लायंट And चिकित्सक दोनों परस्पर सहयोग And Agreeि का रवैया अपनाते हुए मनोचिकित्सा के उद्देश्यों का निर्धारण करते हैं And तदनुReseller चिकित्सा प्रविधि या चिकित्सा योजना का प्राथमिकताओं के According निर्धारण करते हैं।

    मनोचिकित्सा के उद्देश्य

    मनोचिकित्सा के उद्देश्यों को दो प्रकार की दृष्टि से देखा जा सकता है। First दृष्टि में मनोचिकित्सा के सामान्य उद्देश्यों को रखा जा सकता है And द्वितीय दृष्टि में मनोचिकित्सा के विशिष्ट उद्देश्यों को स्थान दिया जा सकता है। इस प्रकार मनोचिकित्सा के दृष्टि भेद से दो उद्देश्य हुए। 1. सामान्य उद्देश्य And 2. विशिष्ट उद्देश्य।

    1. सामान्य उद्देश्य – 

    मनोचिकित्सा का सामान्य उद्देश्य मनोरोगी की भावनात्मक समस्याओं And मानसिक तनावों And उलझनों को दूर करके उसमें सामथ्र्य, आत्मबोध, पर्याप्त परिपक्वता आदि विकसित करना होता है।

    2. विशिष्ट उद्देश्य – 

    मनोचिकित्सा के विशिष्ट उद्देश्यों में रोगी के मनोरोग के निदान And उसके उपचार की प्रचलित विभिन्न पद्धतियों और उपागमों को ध्यान में रखते हुए निर्मित किये गये उद्देश्यों को रखा जाता है। जैसे कि Single संज्ञानात्मक उपागम के आधार पर किसी रोगी के मनोरोग का कारण उसके विचार, विश्वास And चिंतन प्रक्रिया में खोजे जाते हैं And उनका उपचार भी विचार प्रक्रिया And सोच में बदलाव लाने से Reseller जाता है। इस प्रकार संज्ञानात्मक उपागम के आधार पर मनोचिकित्सा का उद्देश्य विचारों में सकारात्मक बदलाव And नकारात्मक विचारों की रोकथाम हो सकता है

    प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अरूण कुमार सिंह अपनी पुस्तक आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान में मनोचिकित्सा के कुछ प्रमुख उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हैं उन उद्देश्यों के प्रमुख हैं।-

    1. रोगी के अपअनुकूलित व्यवहारों में परिवर्तन लाना । 
    2. रोगी के अन्तवर्ैयक्तिक संबंध And अन्य Second तरह के सामथ्र्य को विकसित करना । 
    3. रोगी के आन्तरिक संघर्षों को And व्यक्तिगत तनाव को कम करना । 
    4. रोगी में अपने इर्द-गिर्द के वातावरण And स्वयं अपने बारे में बने अयथार्थ पूर्वकल्पनाओं में परिवर्तन लाना ।
    5. रोगी में अपअनुकूलित व्यवहार को सम्पोषित करने वाले कारकों या अवस्थाओं को दूर करना ।
    6. रोगी को अपने वातावरण की वास्तविकताओं के साथ अच्छी तरह समायोजित करने में सहयोग प्रदान करना । 
    7. आत्मबोध And आत्मसूझ को सुस्पष्ट करना । 
      इसी प्रकार प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक द्वय सुन्डबर्ग And टाइलर ने मनोचिकित्सा के विभिन्न पहलुओं And इस क्षेत्र में किये गये अनुसंधानों की समीक्षा के आधार पर मनोचिकित्सा के प्रमुख उद्देश्यों And लक्ष्यों का वर्णन Reseller है इनमें जो सर्वाधिक उत्कृष्ट हैं ।

      1. उपयुक्त व्यवहार करने के लिए रोगी के अन्त:अभिप्रेरण को मजबूती प्रदान करना (strengthening the patients motivation to do the right things)- मनोचिकित्सा में मनोचिकित्सक का Single उद्देश्य रोगी को सही कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना होता है। इसके लिए मनोचिकित्सक द्वारा रोगी की अन्त:अभिप्रेरणा को मजबूती प्रदान करने का प्रयास Reseller जाता है। मनोरोग अथवा मनोवैज्ञानिक समस्या होने पर उसके समाधान में स्वयं सफल न हो पाने पर रोगी को सहायता की Need पड़ती है इसे हेतु उसे First निर्णय तो यही लेना पड़ता है कि वह इसके लिए मनोचिकित्सक अथवा काउन्सलर के पास जाये अथवा नहीं And इसके कारण रोगी में मानसिक वैचारिक द्वन्द्व उत्पन्न हो जाता है। यदि Single बार रोगी अपने इन द्वन्द्वों से जूझते हुए सूझ-बूझ द्वारा मनोचिकित्सक के सम्मुख अपनी समस्या रखने का निर्णय लेता है तथा ऐसे ही अन्य सही निर्णय अपनी अन्त:अभिप्रेरणा से लेता है तो यहॉं पर उसके इस अन्त:अभिप्रेरण के स्तर को उच्च बनाये रखने अथवा मजबूती प्रदान करने की Single महती जिम्मेदारी मनोचिकित्सक की होती है। 
      2. भावनाओं को अभिव्यक्त करने के तरीकों द्वारा सांवेगिक दबाव को कम करना (reducing emotional pressure by facilitating the expression of feeling)- जब रोगी अपनी मनोवैज्ञानिक समस्या लेकर मनोचिकित्सक के पास आता है तथा मनोचिकित्सक द्वारा समस्या पर बात करने पर उनकी अभिव्यक्ति करने में उसे सांवेगिक समस्या अथवा दबाव से स्वयं से ही जूझना पड़ता है तो इससे रोगी समस्या सही प्रकार से बताने में असमर्थ हो जाता है And उसमें कर्इ प्रकार की चिंतायें भी उत्पन्न हो जाती हैं मनोचिकित्सा में इस प्रकार के सांवेगिक दबाव को मनोचिकित्सा के प्रभावी होने के लिए कम करने की महती Need होती है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड इस हेतु विरेचन (catharsis) तकनीक का प्रयोग Reseller है। उनका कहना था कि सांवेगिक दबाव के दूर होने से मनोचिकित्सा बहुत ही आसान And प्रभावी सिद्ध होती है। 
      3. रोगी की अन्त:शक्ति को सम्वर्धन And विकास के लिए अवमुक्त करना (releasing the potentials of patient for growth and development)- मनोचिकित्सा का यह Single बहुत ही महतवपूर्ण उद्देश्य है। इस उद्देश्य के पीछे की अवधारणा पर Humanतावादियों द्वारा सर्वाधिक जोर दिया गया है उनके According प्रत्येक मनुष्य में स्वयं के सम्वर्धन And विकास की Single स्वाभाविक प्रवृत्ति जन्मजात Reseller से विद्यमान होती है तथा अनुकूल वातावरण मिलने And सम्यक् निर्णयों की छॉंव में उसकी यह प्रक्रिया सहज ही जारी रहती है। जब कभी इसमें व्यक्ति द्वारा अपने जीवन के प्रति लिये गये निर्णयों के कारण And प्रतिकूल वातावरण की वजह से बाधा उत्पन्न होती है तब व्यक्ति में मानसिक उलझने उत्पन्न हो वह मनोरोगों का शिकार हो जाता है। Humanतावादियों का मत है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने अन्दर छिपी प्रतिभा And संभावनाओं अभिव्यक्त करने And साकार Reseller देने की अकथित अभिलाषा रखता है इसे अभिव्यक्त करने की परिस्थितियॉं उत्पन्न करने अथवा इसकी ओर व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करने से व्यक्ति आत्म-विकास के पथ पर सहज ही अग्रसर हो जाता है। 
      4. अपनी अवॉंछनीय आदतों को बदलने में सहायता करना (helping in changing the undesirable habits)। – इस उद्देश्य के पीछे मनोवैज्ञानिकों की मान्यता है कि व्यक्ति की अवॉंछनीय And अनुपयुक्त आदतें उसे मनोरोगीे बनाती है तथा समुचित उपचार हेतु इन आदतों में सुधार की आवश्कता होती है। व्यवहारवादियों का मानना है कि हमारी आदतें सीखने के गलत नियमों का परिणाम होती हैं यदि हम सीखने के सही नियमों का इस्तेमाल करना व्यक्ति को सिखा दें तो उसके द्वारा कर्इ अवांछनीय आदतों में सकारात्मक And सुधारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। 
      5. रोगियों के संज्ञानात्मक संCreation को परिमार्जित करना (modifying the cognitive structure of patients)- संज्ञानात्मक विचार धारा के मनोवैज्ञानिकों के According संज्ञानात्मक संCreation को परिमार्जित करना मनोचिकित्सा का Single प्रमुख उद्देश्य है। उनके According मानसिक रोगों अथवा मानसिक समस्याओं का मूल कारण व्यक्ति के विचार, विश्वास And सोच का विकृत होना होता है। यदि व्यक्ति के नकारात्मक विचारों, गलत विश्वासों And विकृत सोच को उपयुक्त विचार And विश्वास से बदल दिया जाये अथवा इसमें संशोधन करन परिमार्जित कर दिया जाये तो इससे उसकी समस्या के समाधान का मार्ग्ा प्रशस्त हो जाता है। 
      6. आत्म-ज्ञान प्राप्त करना (gaining the self knowledge)- मनोचिकित्सा का Single प्रधान उद्देश्य आत्म-ज्ञान प्राप्त करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना भी है। माना जाता है कि व्यक्ति की मानसिक समस्याओं का Single प्रमुख कारण उसका स्वयं के सम्बंध में सही And ठीक-ठीक ज्ञान का न होना है। यदि व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व के All पहलुओं का सम्यक् ज्ञान हो जाये तो उससे उसका स्वयं के सम्बन्ध में सही निर्णय लेना आसान हो जाता है। सही निर्णय के लिए सही समझ जरूरी होती है And सही समझ विश्लेषणात्मक क्षमता में वृद्धि होने से बढ़ती है। विश्लेषणात्मक क्षमता के विकास के लिए अभ्यास की प्रवृत्ति होना जरूरी है। And अभ्यास की प्रवृत्ति के लिए स्वयं के बारे में जानने की अभीप्सा होना आवश्यक है। अतएव मनोचिकित्सक रोगीे को स्वयं को जानने के लिए प्रेरित प्रोत्साहित करने को मनोचिकित्सा का ही Single प्रमुख लक्ष्य मानते हैं। 
      7. संचार And अन्तवर्ैयक्तिक सम्बन्धों को प्रोत्साहित करना (facilitating interpersonal relations and communication)- संचार And अन्तवर्ैयक्तिक सम्बन्धों को प्रोत्साहित करना मनोचिकित्सा का Single और महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इसके पीछे अवधारणा यह है कि रोगी का व्यवहार उसके चिंतन And विचारों से प्रभावित होता है तथा विचार उसके भावदशा के अनुReseller होते हैं यह भावदशा उसके सामाजिक प्राणी होने की वजह से अन्तवर्ैयक्तिक सम्बन्धों पर निर्भर करती है। And अन्तवर्ैयक्तिक संबंधों का ठीक होना बहुत हद तक परस्पर संचार पर निर्भर करता है। अतAnd मनोचिकित्सा का Single प्रमुख उद्देश्य संचार And अन्तवर्ैयक्तिक संबंधों को मजबूत करना भी है। 
      8. आत्म ज्ञान And अन्तदृष्टि को बढ़ाना (Increasing self knowledge and insight)- रोगी में अन्तदर्ृष्टि उत्पन्न करना तथा स्वयं के बारे में जानकारी बढ़ाने को भी मनोचिकित्सा के Single विशेष उद्देश्य के Reseller में स्थान दिया गया है। अन्तर्दृष्टि के अभाव में व्यक्ति की निर्णय क्षमता कुंद हो जाती है तथा किंकर्तव्यविमूढ़ता उत्पन्न हो जाती है। परिणामस्वReseller व्यक्ति अपने विचारों भावों And व्यवहारों के सम्बन्ध में ठीक से विचार नहीं कर पाता है तथा उसकी समस्या के कारण तथा संभावित परिणाम उसे कभी स्पष्ट Reseller से समझ नहीं आते हैं जिसके कारण उसमें समय के साथ कर्इ मनोवैज्ञानिक समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं And उसे जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 
      9. शारीरिक दशाओं में बदलाव लाना (altering bodily states: changing the bodily or somatic processes in order to reduce painful feelings and/or increase body awareness)- रोगी के शारीरिक प्रक्रियाओं बदलाव लाना ताकि उसकी पीड़ापरक अनुभूतियों को कम कर दैहिक चेतना में वृद्धि भी मनोचिकित्सा का Single प्रमुख उद्देश्य माना जाता है। इस उद्देश्य के पीछे मनोचिकित्सा की अवधारणा है कि मन तथा देह दोनों परस्पर अन्योन्याश्रित हैं Meansातफ दोनों ही Single Second को प्रभावित करते हैं। स्वच्छ मन के लिए स्वच्छ शरीर आवश्यक है। मनोचिकित्सकों का मत है कि रोगी के दैहिक दुखों या दर्दनाक अनुभूतियों को कम करके तथा उनमें दैहिक चेतना में वृद्धि करके मनोचिकित्सा की परिस्थिति के लिए उन्हें अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है। इसके लिए व्यवहार चिकित्सा में रोगी को विश्राम प्रशिक्षण देकर उनकी चिंता एंव तनाव को दूर Reseller जाता है । रोगी की शारीरिक चेतना में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए योग की प्रक्रियाओं का भी सहारा लिया जा सकता है। 
      10. रोगी के वर्तमान चेतन स्थिति में बदलाव लाना (altering the present state of consciousness)- मनोचिकित्सा का Single उद्देश्य यह भी होता है कि कि रोगी की चेतन अवस्था में इस ढंग का परिमार्जन या बदलाव Reseller जाये कि उससे उसमें अपने व्यवहारों पर अधिक नियंत्रण की क्षमता बढ़ जाये, उसमें सृजनात्मक क्षमता में बढ़ोत्तरी हो तथा आत्म-बोध में बढ़ोत्तरी हो जाये। इन सब क्षमताओं के विकास के लिए तरह-तरह की प्रवृद्धि जिसमें ध्यान, विलगाव, तथा चेतन विस्तार आदि प्रमुख है का उपयोग Reseller जाता है। इस सब विधियों के इस्तेमाल से आत्म-बोध तथा आत्मनिर्भरता आदि जैसे गुणों का विकास होता है। 
      11. रोगी के सामाजिक वातावरण में बदलाव लाना (changing the social environment of the patient)- मनोचिकित्सा का उद्देश्य कभी कभी मनोरोग की प्रकृति And स्थिति के कारण रोगी के उपयुक्त उपचार हेतु उसके सामाजिक वातावरण में बदलाव लाने का भी होता है। इसके पीछे मनोवैज्ञानिकों को तर्क है कि मनोरोगों के कर्इ केसेज में रोगियों के रोग के कारण में Single कारण सामाजिक वातावरण भी होता है तथा यह या तो सीधे Reseller में अथवा परोक्ष Reseller में रोगी के मनोरोग की स्थिति को मजबूत करता रहता है ऐसी परिस्थिति में यह जरूरी हो जाता कि रोगी की सामाजिक परिस्थिति में कुछ बदलाव किये जायें इसके लिए कर्इ बार रोगी को स्थानपरिवर्तन की भी सलाह दी जाती है। उपरोक्त बिन्दुओं के विस्तृत वर्णन से स्पष्ट है कि मनोचिकित्सा के बहुत से उद्देश्य हैं जिन की जानकारी होना व्यक्ति के लिए आवश्यक है।

      मनोचिकित्सा के प्रकार

      मनोचिकित्सा की विधियों प्रविधियों को पॉंच प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत Reseller गया है। इन श्रेणीवर्गों में कर्इ उपप्रविधियों को भी स्थान दिया गया है – (1) मनोगत्यात्मक मनोचिकित्सा  (2) व्यवहार चिकित्सा (3) संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा (4) Humanतावादी चिकित्सा (5) सामूहिक चिकित्सा

      (1) मनोगत्यात्मक मनोचिकित्सा-

       मनोगत्यात्मक मनोचिकित्सा में व्यक्तित्व की गत्यात्मकता के विश्लेषण पर प्रमुख Reseller से जोर दिया जाता है। इसके अन्तर्गत Humanी व्यक्तित्व के अन्तवर्ैयक्तिक पहलुओं के बीच की अन्त:क्रिया को विश्लेषण के केन्द्र बिन्दु में रखा जाता है। मनोचिकित्सा के इस वर्ग में कर्इ प्रमुख चिकित्सा विधियॉं आती हैं जो कि निम्न प्रकार से है-

      1. मनोविश्लेषणात्मक मनोचिकित्सा (Psychoanlytical psychotherapy)- मनोविश्लेषणात्मक मनोचिकित्सा का प्रतिपादन सिगमण्ड फ्रायड द्वारा Reseller गया है। मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा का मूल लक्ष्य रोगी को अपने आप को उत्तम ढंग से समझने में मदद करने से होता है ताकि वह रोगी First से अधिक समायोजी ढंग से सोच सके तथा व्यवहार कर सके। इसमें उपचार की प्रक्रिया के अन्तर्गत रोगी के अचेतन में चल रहे संघर्श And इससे बचने के लिए प्रयोग किये जा रहे र्इगो Safty प्रक्रम को चेतन मन के तल पर उजागर Reseller जाता है। इसके लिए फ्री-एसोशियेसन, इन्टरप्रिटेषन ऑफ ट्रांसफेरेन्स, रेजिस्टेंस And स्वप्न विश्लेषण तकनीक का सर्वाधिक उपयोग Reseller है। फ्री-एसोसियेशन तकनीक के अन्तर्गत व्यक्ति की चिंता से जुड़ें पहलुओं के संबंध में रोगी की समझ को बढ़ाने के लिए उदासीन उद्दीपकों के माध्यम से चिंता के कारणों का पता लगाया जाता है तथा कारण पता लगने पर उन्हें रोगीे को समझाया जाता है। फ्रायड का विश्वास था कि मानसिक विकृतियॉं इड के आवेगों पर र्इगो के नियंत्रण के कम होने से पनपती है। जब व्यक्ति को यह समझा दिया जाता है कि उसकी मानसिक समस्या अथवा मनोरोग किन कारणों से उत्पन्न हुर्इ है और वह किस प्रकार अपने र्इगो की शक्ति को बढ़ा सकता है तब उसकी चिंता कम होने लगती है। फ्री- एसोसियेशन के समान ही ट्रांस्फेरेशन का अध्ययन, रेजिस्टेंस का विश्लेषण And स्वप्नों के विश्लेषण द्वारा भी रोगी की विकृति के संदर्भ में अन्तदृष्टि को खोलने का कार्य Reseller जाता है। अन्तर्दृश्टि के विकास से व्यक्ति खुद-ब-खुद ही विकृति के रहस्यों को समझ जाता है फलत् मनोग्रस्ति विचारों की रोकथाम होती है And प्रभाव स्वReseller बाध्यकारी व्यवहार को अंजाम देने की जरूरत नहीं रह जाती है। सार Reseller में मनोविकृति से व्यक्ति को छुटकारा मिल जाता है। 
      2. विश्लेषणात्मक मनोचिकित्सा (Analytical psychotherapy)- इस मनोचिकित्सा का प्रतिपादन कार्ल युंग द्वारा Reseller गया है। इसके अन्तर्गत वैयक्तिकता पर अधिक बल डाला जाता है। वैयक्तिकता Single ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने आत्मन् के भिन्न-भिन्न पहलुओं को Single साथ मिलाकर Single सम्पूर्ण स्वReseller विकसित करता है जो कि संगठनात्मक होता है। युंग के According चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति को Single पूर्णत: संतुलित व्यक्ति बनाना होता है। और इसके लिए यह आवश्यक है कि आत्मन् के विवेकपूर्ण पहलुओं को उसके अंतर्दश्र्ाी पहलुओं (intutive aspects) के साथ मिलाया जाये। रोगी का अन्तर्दश्र्ाी पहलू अचेतन में दबा होता है जिसे चेतन स्तर पर लाना आवश्यक होता है क्योंकि जब तक अन्तर्दश्र्ाी पहलू अचेतन में होता हैतब तक इसका संबंध रोगी के व्यवहारिक And विवेकपूर्ण हिस्सों से युक्त नहीं Reseller जा सकता है और व्यक्ति मानसिक रोग से छुटकारा नहीं पा सकता है। अन्तर्दश्र्ाी पहलुओं को चेतन स्तर पर लाने के लिए युंग ने Word-साहचर्य (word association) तथा स्वप्न विश्लेषण (dream analysis) प्रविधि का उपयोग Reseller है। इन प्रविधियों के उपयोग से व्यक्ति के अन्तर्दश्र्ाी पहलू चेतन में आ जाते हैं तथा वह अपने आपको सम्पूर्णता में प्रत्यक्षित करने लगता है तथा उसमें मानसिक शांति And सामंजस्या विकसित हो जाता है और वह स्वयं व समाज से समायोजनशील व्यवहार करने लगता है। इससे मानसिक रोग दूर हो जाते हैं। 
      3. वैयक्तिक चिकित्सा (Individual therapy)- वैयक्तिक चिकित्सा का प्रतिपादन एडलर द्वारा Reseller गया है। एडलर के According व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक समस्याओं And कुसमायोजी व्यवहार का कारण उपाहं (इड) And पराहं (सुपर र्इगो) के आवेगों का अहं (र्इगो) के साथ संघर्ष नहीं होता है बल्कि दोषपूर्ण जीवनशैली तथा मन में गलत धारणाओं का विकास होता है। चिकित्सा के दौरान मनोरोगी को यही समझाने का प्रयास Reseller जाता है कि उसके विकृत व्यवहार का कारण उसकी गलत धारणाएॅं And दोषपूर्ण जीवनशैली है। रोगी को उपयुक्त मनोवृत्ति विकसित करने में सहायता की जाती है तथा उन्हें बताया जाता है कि सामाजिक अभिरूचि, साहस तथा सामान्य बोध के विकास से या उसके विकास की दिशा में अपने जीवनशैली में धनात्मक बदलाव लाने से उनका मनोरोग या विकृति दूर हो जायेगी। Single प्रकार से चिकित्सा के दौरान व्यक्ति को उसकी दोषपूर्ण जीवनशैली से अवगत कराया जाता है And फिर उसमें परिवर्तन लाने के लिए उसे प्रोत्साहित Reseller जाता है। एडलर का मत है कि जो व्यक्ति जितना ही अधिक सामाजिक होता है तथा सामाजिक कार्यों में रूचि लेता है वह उतना ही मानसिक Reseller से स्वस्थ होता है। 

      (2) व्यवहार चिकित्सा –

      व्यवहार चिकित्सा के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव लाकर मनोवैज्ञानिक समस्याओं का उपचार Reseller जाता है इसके लिये इसकी कर्इ प्रविधियों का उपयोग Reseller जाता है इन प्रविधियों प्रमुख हैं-

      1. क्रमबद्ध असंवेदीकरण (Systematic desensitiazation)- क्रमबद्ध असंवेदीकरण विधि का प्रतिपादन जोसेफ वोल्पे नामक मनोवैज्ञानिक द्वारा Reseller गया है यह विधि अनुबंधन के नियमों पर आधारित होती है। इसमें रेसीप्रोकल इन्हिबिशन सिद्धान्त (reciprocal inhibition principle) का उपयोग Reseller जाता है। इस विधि का उपयोग तब Reseller जाता है जब रोगी में चिंता उत्पन्न करने वाली परिस्थिति के प्रति उपयुक्त अनुक्रिया करने की क्षमता होने के बावजूद भय के कारण ऐसा नहीं कर पाता है तथा विपरीत अनुक्रिया करता है। क्रमबद्ध असंवेदीकरण मूलत: चिंता कम करने की Single प्रविधि है जो इस स्पष्ट नियम पर आधारित है कि Single ही समय में व्यक्ति चिंतित या रिलैक्स अवस्था में Single साथ नहीं रह सकता है। इसे ही रेसीप्रकल इन्हीबिशन प्रिंसिपल कहा जाता है। इसमें रोगी को First रिलैक्स अवस्था में होने का प्रशिक्षण दिया जाता है। और जब वह रिलैक्सेशन की अवस्था में होता हैतो उसमें चिंता उत्पन्न करने वाले उद्दीपकों को बढ़ते क्रम में दिया जाता है। परिणामस्वReseller रोगी चिंता उत्पन्न करने वाले उद्दीपक अथवा परिस्थिति के प्रति असंवेदित हो जाता है क्योंकि उन्हें रिलेक्सेशन की अवस्था में ग्रहण करने की अनुभूति प्राप्त कर चुका होता है।
      2. अन्त:विस्फोटक चिकित्सा या फ्लडिंग (Implosive therapy or Flooding)- ये दोनो मनोचिकित्सा प्रविधियॉं सीखने के विलोपन (extinction) सिद्धान्त पर आधारित हैं। इसकी अवधारणा यह है कि रोगी किसी उद्दीपक या परिस्थिति से इसलिये भयभीत या चिंतित होते हैं क्योंकि वे सचमुच में यही नहीं सीख पाये हैं कि एसे उद्दीपक अथवा परिस्थितियॉं वास्तविकता में उतनी खतरनाक नहीं हैं जितनी की वह समझ रहा है। जब उन्हें ऐसी परिस्थितियों या उद्दीपकों के बीच कुछ समय तक लगातार रखा जाता है तथा किसी प्रकार का नकारात्मक परिणाम उत्पन्न नहीं होता है तब वे यह सीख जाते हैं कि उनकी चिंता या भय निराधार है। इस प्रकार से उनकी चिंता या भय धीरे धीरे विलुप्त हो जाता है।
      3. विरूचि चिकित्सा (Aversion therapy)-इस चिकित्सा विधि का प्रयोग अवांछनीय व्यवहारों को अंजाम देने की आदत या प्रवृत्ति को रोकने के लिए रोगी पर Reseller जाता है। इसमें अवॉंछनीय व्यवहार करने पर रोगी को पीड़ादायक दंड विभिन्न तरीकों से प्रदान Reseller जाता है। इस तरह की प्रविधि में चिंता उत्पन्न करने वाली परिस्थिति या उद्दीपक के प्रति रोगी में Single तरह की विरूचि पैदा कर दी जाती है जिससे उससे उत्पन्न होने वाला अवांछनीय व्यवहार अपने आप धीरे-धीरे बंद हो जाता है। रोगी में विरूचि उत्पन्न करने के लिए दंड, विशिष्ट औषध, विद्युत आघात आदि का उपयोग Reseller जाता है। अधिकतर प्रकार की चिकित्सा क्लासिकी अनुबंधन (classical conditioning) के सिद्धान्त पर आधारित होती है परन्तु दंड आधारित विरूचि चिकित्सा में क्रियाप्रसूत अनुबंधन (operant conditioning) का उपयोग Reseller जाता है। 
      4. निश्चयात्मक चिकित्सा (Assertive therapy)- निश्चयात्मक चिकित्सा का उपयोग मनोरोगियों में व्यवहारिक दृढ़ता या निश्चयात्मकता उत्पन्न करने के लिए Reseller जाता है। कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनमें पर्याप्त सामाजिक कौशलों का अभाव होता है जिसके कारण वे समाज की विभिन्न परिस्थितियों में लोगों के साथ अन्तरवैयक्तिक संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं। इसके परिणामस्वReseller वे अपने जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं फलत: उनमें हीनभावना, तुच्छता की भावना And विभिन्न प्रकार की चिंतायें जन्म ले लेती हैं। वे हमेशा तनाव से घिरे रहते हैं। ये क्रोधी स्वभाव के भी होते हैं। इनका आत्मसम्मान न्यून हो जाता है तथा मनोविकृति के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। निश्चयात्मक चिकित्सा में ऐसे लोगों को सामाजिक कौशलों का प्रशिक्षण दिया जाता है तथा इस प्रकार जीवन में आगे बढ़ने में मदद की जाती है। 
      5. संभाव्यता प्रबंधन (Contingency management) –संभाव्यता प्रबंधन के अन्तर्गत क्रियाप्रसूत अनुबंधन (operant conditioning) के नियमों पर आधारित All व्यवहार चिकित्सा विधियों को रखा जाता है तथा इनके उपयोग द्वारा व्यक्ति के कुसमायोजित व्यवहार में सुधार व्यवहार में होने वाले बदलावों तथा परिणामों को नियंत्रित करके Reseller जाता है। बुटजिन, Singleोसेला तथा एलॉय के According ‘किसी अनुक्रिया की आवृत्ति का परिवर्तन करने के इरादे से उस अनुक्रिया के परिणाम में Reseller गये जोड़ तोड़ को संभाव्यता प्रबंधन कहा जाता है’। संभाव्यता प्रबंधन में प्रमुख चिकित्सा प्रविधियों के नाम निम्न हैं-शेपिंग (shaping),टाइम-आउट(time-out),संभाव्यता अनुबंधन (contingency contracting), अनुक्रिया लागत (response cost), प्रीमैक नियम(premack principle)] टोकन इकोनॉमी (Token economy)। 
      6. मॉडलिंग (Modelling)- यह चिकित्सा प्रविधि सीखने के प्रेक्षणात्मक सिद्धान्त (observational learning) पर आधारित है। इस प्रविधि का प्रतिपादन अल्बर्ट बण्डूरा द्वारा Reseller गया है। इस प्रविधि में रोगी चिकित्सक अथवा मॉडल को Single विशिष्ट व्यवहार करते हुए प्रत्यक्षित करता है तथा साथ ही साथ उस व्यवहार से मिलने वाले परिणामों का भी ज्ञान प्राप्त करता है। इसे तरह के प्रेक्षण के आधार पर रोगी स्वयं भी वैसा ही व्यवहार करना धीरे-धीरे सीख लेता है। इस प्रविधि का सर्वाधिक प्रयोग दुभ्र्ाीति के उपचार में सफलतापूर्वक Reseller गया है।

      (3) संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा –

      संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा में मनोरोगों का कारण व्यक्ति के विकृत सोच, नकारात्मक विचार, विश्वास, मूल्यॉंकन And व्यवहार को माना जाता है तथा मनोरोग के उपचार हेतु इन्हें उपयुक्त बनाने के लिए विभिन्न प्रविधियों का प्रयोग Reseller जाता है उनमें प्रमुख हैं-

      1. तार्किक-सांवेगिक चिकित्सा (Rational-emotive therapy)
      2. बेक संज्ञानात्मक चिकित्सा (Beck’s cognitive therapy)

      बेक की संज्ञानात्मक चिकित्सा And एलिस की रेशनल-इमोटिव थेरेपी (Beck’s cognitive therapy and Ellis Rational-Emotive therapy)- संज्ञानात्मक चिकित्सा मनोविकृतियों का उपचार रोगी के विचारों, विश्वासों, धारणाओं And मान्यताओं में परिवर्तन लाने के माध्यम से करती है। इसके अन्तर्र्गत प्रसिद्ध संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक एरोन बेक And एल्बर्ट एलिस द्वारा प्रतिपादित चिकित्सा विधियों का उपयोग Reseller जाता है। मनोवैज्ञानिक एरोन बेक ने बेक-संज्ञानात्मक चिकित्सा प्रविधि का प्रतिपादन Reseller है यह चिकित्सा विधि रोगी के नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों से प्रतिस्थापित कर रोगी की चिंता का निवारण करती है। यह चिकित्सा प्रविधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि व्यक्ति को चिंता विकृति होने के लिए उसके नकारात्मक विचार जिम्मेदार होते हैं जिनकी उत्पत्ति के पीछे रोगी के पास कोर्इ वाजिब तर्क नहीं होता है इनका स्वReseller भी ऑटोमेटिक होता है Meansात् ये रोगी के नियंत्रण में नहीं होते हैं And सतत् Reseller से उसके चिंतन का हिस्सा बने रहते हैं। बेक संज्ञानात्मक चिकित्सा के द्वारा इन्हे सकारात्मक विचारों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। जिससे व्यक्ति की चिंता काफी हद तक नियंत्रण में आ जाती है। एलिस द्वारा प्रतिपादित रेशनल इमोटिव थेरेपी (Rational emotive therapy) का उपयोग भी इस विकृति के उपचार हेतु Reseller जाता है। यह चिकित्सा विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि यदि रोगी के चिंता के संबंध में विकृत धारणाओं And मान्यताओं को उपयुक्त तर्क के माध्यम से चुनौति दी जाये तो उसकी चिंता के संबंध में समझ बढ़ती है And चिंता का सामान्यीकरण करने की प्रवृत्ति घटती है।

      संज्ञानात्मक चिकित्सक अपने क्लायंट की मनोविकृति से संबंधित संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करते हैं। प्रारंभ में वे अपने क्लायंट को इस संबंध में शिक्षित करते हैं किस प्रकार अनचाहे विचारों की गलत विवेचना के कारण, जिम्मेदारी के अतिरंजित भाव के कारण, And न्यूट्रलाइजिंग व्यवहार इस विकृति के लक्षणों को उत्पन्न करने And और अधिक स्थायित्व देने में सहायक हो रहे हैं। इसके Second चरण में चिकित्सक क्लायंट को उसके विकृत चिंतन को पहचानने, उसे चुनौती देने And संशोधित करने हेतु निर्देशित करते हैं। बहुत से शोध अध्ययनों में यह पाया गया है कि संज्ञानात्मक सिद्धान्तों पर आधारित इन प्रविधियों का उपयोग करने से मनोग्रस्ति विचारों And बाध्यकारी व्यवहारों की बारंबारता And असर में कमी आती है ।

      (4) Humanतावादी चिकित्सा –

      इस प्रकार की चिकित्सा विधियों में Humanतावादी And अनुभवात्मक पहलुओं पर जोर दिया जाता है इसके लिए रोकी की अंदर छिपी उसकी संभावनाओं को तलाशने तथा उन्हें अभिव्यक्त करने के तौर तरीकों को सिखलाने पर जोर दिया जाता है। इसके अन्तर्गत चिकित्सा प्रविधियों को प्रमुख माना गया है।

      1. क्लायंट केन्द्रित चिकित्सा (Client-centered therapy)
      2. अस्तित्वात्मक चिकित्सा (Existential therapy) 
      3. गेस्टाल्ट चिकित्सा (Gestalt therapy) 
      4. लोगो चिकित्सा (Logotherapy)

      (5) सामूहिक चिकित्सा –

      सामूहिक चिकित्सा में मनोरोगी के मनोरोग की चिकित्सा हेतु समूह को ही Single जरिया बनाकर उपयोग Reseller जाता है समूह में होने वाली अंत:क्रिया के द्वारा घनिष्ठता, भावों की अभिव्यक्ति आदि के द्वारा रोगी चिकित्सा की जाती है इसके अन्तर्गत निम्नांकित प्रविधियॉं सर्वाधिक प्रचलित हैं।-

      1. साइकोड्रामा (Psychodrama)
      2. पारिवारिक चिकित्सा (Family therapy)  
      3. वैवाहिक And युग्म चिकित्सा (Marital and couple therapy)
      4. संव्यवहार विश्लेषण (Transactional analysis) 
      5. एन्काउन्टर ग्रुप थेरेपी (Encounter group therapy)

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