भारत में सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य के क्षेत्र

सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य में समाज कार्य की Single प्रणाली के Reseller में विकास के साथ-साथ इसकी प्रविधियों, आधारभूत मूल्यों, धारणाओं तथा कार्य पद्धति में अन्तर आता गया। प्रारम्भ में वैयक्तिक सेवा कार्य का उद्देश्य सहायता प्रदान करना था। परन्तु बाद में मनोविज्ञान तथा मनोविकार विज्ञान के प्रभाव के कारण व्यक्तित्व And व्यवहार सम्बन्धी उपचार भी इसके कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत सम्मिलित कर लिया गया।

वैयक्तिक सेवा कार्यकर्ता का उद्देश्य Single ओर सेवाथ्री के कश्ट को दूर करना तथा दूसरी ओर व्यक्ति स्थिति व्यवस्था में अकार्यामक्ता को कम करना। Second Wordों में कार्यकर्ता सेवाथ्री में अधिक सन्तोश, आत्म अनुभूति तथा आत्म सन्तुष्टि And आत्म सुख का संचार करता है। इसके लिए उसके अहं को दृढ़ बनाकर उसमें अनुकूलन सम्बन्धी निपुणताओं का विकास करता है। परिवर्तन या तो सेवाथ्री में या परिस्थिति में अथवा दोनों में कुछ न कुछ होता है।

सुधारात्मक वैयक्तिक सेवा कार्य 

आपराधी को केवल दण्ड देकर उसकी मनोवृत्ति And व्यवहार में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता हैं। दण्डशास्त्र के नवीन दृष्टिकोण के According अपराधों का मुख्य कारण समाज की सामाजिक, आर्थिक दोषपूर्ण संCreation है। अत: अपराधी को दण्ड देना अवांछित , अHumanीय And अनैतिक है। अपराधी के व्यक्तित्व में परिवर्तन लाकर उसकी मनोवृत्ति को बदला जा सकता है। अत: अपराधी की दण्ड की अवधि में हर सम्भव प्रयत्नों द्वारा सहायता पहुँचाकर उसके व्यक्तित्व में निहित आत्म-क्षमताओं And गुणों को विकसित करना सुधारात्मक दृष्टिकोण का प्रमुख विचार है। यह विचारधारा तथा दर्शन ऐसी वैज्ञानिक पद्धति का विकास करना चाहती है जिसके उपयोग द्वारा अपराधी दण्ड युक्ति के उपरान्त Single आत्म-सम्मानी, निर्भर, आत्म विश्वासी And उत्तरदायी नागरिक की तरह समाज में जीवन यापन कर सके।

सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य का दृढ़ विश्वास है कि प्रत्येक व्यक्ति में Single निहित आत्मसम्मान की भावना And सुधार की क्षमता होती है। यदि उसे सहायता पहुँचायी जाय तो वह अपनी समस्याओं का निस्तारण मार्ग ढँूढ़ सकता है। किसी भी व्यक्ति में कोर्इ जन्मजात दोश नहीं होता है, व्यक्तिगत And सामाजिक परिस्थितियाँ व्यक्ति को समाज विरोधी कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है। सामाजिक परिस्थितियाँ बहुत बड़ी सीमा तक उसके दोषपूर्ण समायोजन के लिए उत्तरदायी हैं। हर व्यक्ति में परिवर्तन के लक्षण विद्यमान होते हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति का सुधार भी सम्भव है। अत: क्रूर तथा अHumanीय तरीकों के स्थान पर सुधारात्मक तरीकों के प्रयोग द्वारा अपराधी में सुधार लाया जा सकता है।

सुधार Word का Means है- अपराधी व्यक्ति को कानून का पालन करने वाले नागरिक की भाँति जीवन व्यतीत करने योग्य बनाना। इलियट के According सुधार वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा आधुनिक समाज कानून तोड़ने वाले व्यक्तियों की आपराधिक मनोवृत्ति में परिवर्तन लाने तथा उनकी जीवन शैली को सामाजिक नियमों के अनुReseller ढालने का प्रयत्न करता है। वेनेट के According सुधार का उद्देश्य अपराधी को उसकी दण्ड अवधि में Single नर्इ दिशा प्रदान करना है। कोनार्ड के According सुधार का मुख्य उद्देश्य अपराधी के व्यक्तित्व में Single परिवर्तन लाना है जिससे उसके मन में कारागार अथवा सुधार संस्था से मुक्ति के बाद अच्छा And उपयोगी जीवन बिताने की इच्छा उत्पन्न हो सके।

सुधारात्मक सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य के उद्देश्य 

  1. व्यक्ति के विचलित व्यवहार And दृष्टिकोण में ऐसी सहायक प्रक्रिया द्वारा परिवर्तन लाना जो उसके व्यक्तिगत And सामाजिक समायोजन में अधिकतम सहायक सिद्ध हो। 
  2. अपराधी व्यक्ति के पर्यावरण And परिस्थितियों में परिवर्तन तथा संशोधन द्वारा अनेक प्रकार के निरोधात्मक And सुधारात्मक साधनों की उपलब्धि कराके परिवर्तन लाना जो उसमें अपराधिकता को जन्म देती है। सामाजिक 

वैयक्तिक कार्यकर्ता की भूमिका 

सुधारात्मक कार्य में कार्यकर्ता अन्य सुधार कार्यकर्ताओं, मनोवैज्ञानिकों, मनोचिकित्सकों के साथ मिलकर कार्य करता है। वह सुधार टोली का Single अभिन्न सदस्य होता है। उसका कार्य अन्य कार्यकर्ताओं के अन्तर सम्बन्धों तथा उसके विशिष्ट ज्ञान पर निर्धारित भूमिका पर निर्भर करता है।

सुधार कार्यकर्ताओं की इस टोली में समाज कार्यकर्ता की भूमिकाएँ हो सकती हैं : –

  1. अपराधी के बारे में जाँच पड़ताल करके उसकी सामाजिक अवस्था तथा अपराधी की दशाओं के बारे में ऐसी रिपोर्ट प्रस्तुत करना जिससे अपराधी सुधार संस्थाओं के अधिकारी किसी निश्चित सुधारवादी निर्णय पर पहुँच सकें। 
  2. सेवाथ्री (अपराधी) का उस प्रकार से पर्यवेक्षण करना जिससे वह आत्म नियंत्रित होकर अवैधानिक व्यवहार न करें। 
  3. सेवाथ्री (अपराधी) की सामाजिक तथा वैधानिक मजबूरियों को दूर करने में सहायता करना तथा उसके व्यवहार, सामाजिक आदर्शों के अनुकूल बनाना। 
  4. उन All अधिकारियों के साथ व्यावसायिक सम्बन्ध स्थापित करना जो सेवाथ्री के वर्तमान सामाजिक वैधानिक स्तर से प्रत्यक्ष And परोक्ष Reseller से सम्बन्धित हैं। 
  5. वैयक्तिक सेवा कार्य तथा सामूहिक सेवा कार्य की विधियों का इस प्रकार से प्रयोग करना जिससे सेवाथ्री (अपराधी) कानूनी तथा प्रशासनिक नियमों का पालन अपने हित को ध्यान में रखकर कर सके। 
  6. अपराधी ,सुधार संस्था के अन्य कर्मचारियों के साथ सहयोग And समन्वयपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखना तथा संस्था के समस्त सुधार सम्बन्धी निर्णयों में अपने मत को रखना। 
  7. अपराधी-सुधार संस्था के सुधारात्मक कार्यक्रम को सुदृढ़ बनाना। सुधारात्मक समाज कार्य के ज्ञान में वृद्धि करने के लिए प्रयत्न करना। अपराधियों की मनोवृत्ति में परिवर्तन लाने के लिए वैयक्तिक सेवा कार्य की अत्यन्त Need है। 

फ्रीडलैण्डर, ने निम्न प्रकार से इसके महत्व को स्पष्ट Reseller है : –पुनस्र्थापन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सुधार संस्थाओं में वैयक्तिक सेवा कार्य आवश्यक है। हमने इस बात को माना है कि अनेक सुधार संस्थाओं में पुनस्र्थापन के उद्देश्य की प्राप्ति पूरे Reseller से सम्भव नहीं हो पार्इ है परन्तु फिर भी कारागार तथा बाल सुधार संस्थाओं के संवासियों के लिए वैयक्तिक सेवा कार्य की Need को सैद्धांतिक Reseller से स्वीकार कर लिया गया है। कारागारों तथा अन्य प्रकार की वयस्क And बाल सुधार संस्थाओं में संवासियों को मनोसामाजिक सहायता की Need अपने दैनिक जीवन में पड़ती रहती है।

मॉडल प्रिजन मैनुअल में अपराधी सुधार संस्थाओं में नियुक्त सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिकाओं का वर्णन Reseller गया है। :-

  1. संवासी का साक्षात्कार करना तथा उसके परिवार And अन्य सामाजिक संस्थाओं के साथ सम्बन्ध स्थापित करके उसके चरित्र, व्यवहार, अपराध की दशाओं तथा सामाजिक आर्थिक जीवन की पृष्ठभूमि के बारे में सम्पूर्ण सूचना उपलब्ध करना। 
  2. संवासी की समस्त संस्थागत समस्याओं का स्पष्टीकरण करना तथा उनके समाधान की योजना निर्मित करना। 
  3. संवासियों के वर्गीकरण कार्यक्रम में संस्था के अधिकारियों के संवासी के व्यक्तित्व And व्यवहार की विशेषताओं को बताकर संवासी को उन कार्यक्रमों में लगाने का प्रयत्न करना जिससे उन संवासी को लाभ पहुँच सकता है। 
  4. संवासी तथा प्रशासन कार्यकर्ताओं के मध्य उपयुक्त प्रकार के सहयोगपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना करने में मदद पहुँचाना,तथा परिवार के सदस्यों को समय-समय पर वांछित सहायता प्रदान करना। 
  5. संवासी को अपनी मुक्ति के लिए तैयार करना तथा उनको उन समस्याओं से अवगत कराना जो मुक्ति के बाद उत्पन्न हो सकती हैं परन्तु जिनका समाधान ढूँढ़ा जा सकता है। 

वैयक्तिक कार्यकर्ता के कार्य 

  1. उन संवासियेां को परामर्ष देना तथा मार्ग निर्देशन करना जो अपराधी सुधार संस्थाओं में पहली बार आये हैं और जो अपने को इस प्रकार के विचित्र माहौल में अकेला पाते हैं। 
  2. संवासियों की मानसिक कुंठाओं, आहत भावनाओं तथा विक्षिप्त मनोदशाओं को दूर करने में सहायता पहुँचाना तथा उन्हें संस्था के अन्य संवासियों, अधिकारियों तथा कार्य-पद्धतियों के समReseller व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना। 

सुधारात्मक वैयक्तिक कार्य का कार्य 

अपराधी सुधार संस्थाओं में सुधारात्मक वैयक्तिक कार्यकर्ता का उत्तरदायित्व संवासियों में संतोषजनक समायोजन उत्पन्न करने के साथ-साथ उन्हें पुनर्वासन हेतु तैयार करना है। सामाजिक कार्यकर्ता निम्न समस्याओं को अपने कार्य क्षेत्र में सम्मिलित करता है।

  1. संवासियों की संस्थागत समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ। 
  2. संवासियों के परिवार के सदस्यों, उनके रिश्तेदारों तथा मित्रों सम्बन्धी समस्त समस्यायें जिनसे संवासी चिन्तित रहता है।
  3. संवासियों की मुक्ति, उत्तर रक्षा तथा पुनर्वासन सम्बन्धी समस्यायें। 

सुधारात्मक वैयक्तिक कार्यकर्ता की कुशलतायें – 

इलियट स्टड ने निम्नलिखित व्यावसायिक कुशलताओं का होना आवश्यक बताया है :-

  1. अपराधी सुधार के क्षेत्र में And इससे सम्बद्ध समस्त विषयों, नीतियों तथा कार्यों का पूर्ण ज्ञान। 
  2. अपराधियों के व्यक्तित्व, चरित्र, स्वभाव तथा अपराध के कारणों And उपचार की आधुनिक विधियों का पूर्ण ज्ञान।
  3. अपराधी सुधार तथा अपराधी पुनर्वासन सम्बन्धी आवश्यक कुशलताओं को सम्पादित करने की क्षमता। 
  4. अपराधियों के प्रति सहिष्णुता का दृष्टिकोण तथा उनके सुधार And पुनर्वासन के लिए हर सम्भव प्रयत्न करने का दृढ़ निश्चय। 
  5. अपराधी सुधार के क्षेत्र में कार्य करने वाले अन्य कार्यकर्ताओं के साथ सहयोग And समन्वय पूर्वक कार्य करने की कुशलता आदि। 

सुधारात्मक वैयक्तिक कार्य की समस्यायें 

बरवैंक ने उन समस्याओं का History Reseller है जिनसे समाज कार्य के सफल योगदान में बाधा उत्पन्न हो रही है :-

  1. सुधारात्मक समाज कार्य, कल्याण के अन्य क्षेत्रों में होने वाले समाज कार्य की अपेक्षा अभी नया है अत: इसे निम्न स्तर का विषय माना जा रहा है। 
  2.  अपराधी सुधार संस्थाओं के प्रKing सुधारात्मक समाज कार्यकर्ताओं के योगदान के विषय में अभी पूर्ण Reseller से सन्तुश्ट नहीं हैं और इस प्रकार के कार्यकर्ताओं की Appointment में हिचकिचाहते हैं।
  3. समाज कार्य का प्रशिक्षण प्रदान करने वाले स्कूलों द्वारा आज तक स्पष्ट Reseller से यह तय नहीं हो पाया है कि अपराधी, सुधार के क्षेत्र में समाज कार्यकर्ताओं की क्या-क्या भूमिकायें हो सकती है और उन भूमिकाओं का निर्वाह व्यावसायिक समाज कार्यकर्ताओं की किन कुशलताओं के प्रयोग से हो सकता है। 
  4. जिन अपराधी संस्थाओं में (चाहे वे कारागार हों या बाल सुधार संस्थायें) समाज कार्यकर्ताओं की Appointment की गयी है उनको वहाँ पर निम्न स्तर का कार्यकर्ता ही समझा गया हैं और उनसे ऐसे कार्य कराये जाते हैं जिनको थोड़ा पढ़ा लिखा व्यक्ति भी कर सकता है।
  5. अपराधी सुधार के क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यावसायिक समाज कार्यकर्ता पूर्ण And उचित स्वीकृति के अभाव में कुण्ठित हो जाते हैं और अपने कार्य में कुशलता नहीं ला पाते जिसकी उनसे अपेक्षा की जाती है।
  6. अपराधी सुधार के क्षेत्र में कार्य करने वाले समाज कार्यकर्ताओं का वेतन स्तर इतना कम है कि अधिकांष कुशल कार्यकर्ता इस क्षेत्र में नौकरी करने की इच्छा नहीं प्रकट करते। अच्छे And कुशल कार्यकर्ता कोर्इ दूसरी अच्छी नौकरी ढूँढ़ने में तत्पर रहते हैं। 
  7. अधिकांश समाज कार्य स्कूलों में सुधारात्मक समाज कार्य का उचित प््रशिक्षण देने के लिए न तो शिक्षक हैं और न आवश्यक सुविधायें उपलब्ध हैं।
  8. सुधारात्मक समाज कार्य सम्बन्धी साहित्य का अभाव अच्छे And कुशल कार्यकर्ता तैयार करने में Single बड़ी बाधा उत्पन्न करता है। 

उपर्लिखित समस्याओं का मूल कारण भारत में समाज कार्य का प्रारम्भिक अवस्था में होना है। वर्तमान समय में समाज कार्य ही विकास की प्रारम्भिक अवस्था में है, अत: Second क्षेत्र कहाँ तक विकसित हो सकते हैं परन्तु संतोश का विषय है कि सरकार सुधार के क्षेत्र में प्रषिक्षित कार्यकर्ताओं की Appointment पर गम्भरीता पूर्वक विचार कर रही है।

बाल अपराध 

वे बालक जिनकी अवस्था 7 वर्ष से 16 वर्ष 18 या 21 वर्ष, तक की है, के अपराधी व्यवहार And अन्य असामाजिक कृत्यों को बाल अपराध की श्रेणी में रखा जाता है । ऐसे बच्चों में अपराधी प्रवृत्ति का विकास होने से वे अपराध के कार्य करने लगतें हैं।

बाल न्यायालय 

बाल अपराधियों के सुधार क्षेत्र में बाल न्यायालय की स्थापना Single क्रान्तिकारी चेतना का प्रतीक है। विश्व में सबसे पहला बाल न्यायालय अमरीका के षिकागो नगर में स्थापित हुआ था परन्तु उसके पूर्व भी इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा तथा स्विटरजरलंडै में ऐसे कानून बनाये जा चुके थे जिनमें बाल अपराधियों के लिए न्यायिक व्यवस्था, वयस्क अपराधियों से भिन्न थी।

बाल कल्याण, बाल हितों के सन्तुलन को बनाये रखने में बाल न्यायालय Single ऐसी वैधानिक प्रणाली है जो न्यायिक कार्यवाही में निहित, अभिभावक पेर्र णा तथा संरक्षण प्रवृत्ति द्वारा बालकों की रक्षा करने की विशेषताओं के आधार पर उन साधारण न्यायालयों से भिन्न है जिनमें न्यायाविधि की कठोरता तथा दण्ड देने की प्रक्रिया पर जोर दिया जाता है। राज्य को उन बालकों का माता पिता, अभिभावक तथा संरक्षक माना जाता है। जो मन्द बुद्धि, शारीरिक विकलांगता, परित्यक्तता, अनाथपन तथा उचित प्रकार के देख-रेख के बिना जीवन जी रहे हैं यह उसी वैधानिक चेतना का प्रतिफल है। इस प्रकार के न्यायालय अपना न्यायिक उत्तरदायित्व दण्ड के माध्यम से नहीं वरन सुधार, रक्षा तथा शिक्षा द्वारा सम्पादित करते हैं।

बाल न्यायालयों की विशेषताएँ 

अपनी विशेषताओं के आधार पर इस प्रकार के न्यायालय उन न्यायालयों से भिन्न होते हैं जहाँ पर वयस्क व्यक्तियों के मुकदमों की सुनवायी होती है जो इस प्रकार है :-

  1. बाल न्यायालय उस प्रकार का न्यायालय है जिसमें बाल तथा तरुण आयु के युवकों के मुकदमों की सुनवायी Single विशेष विधि से की जाती है। 
  2. इस प्रकार के न्यायालयों के मजिस्ट्रेट से यह आशा की जाती है कि वे अपने सामने प्रस्तुत किये गये बालकों के लिए मार्ग दर्शक की भूमिका अदा करें। 
  3. इनमें उन बालकों की जिनकी अवस्था 7 वर्ष से 16 वर्ष 18 या 21 वर्ष, तक की है, के अपराधी व्यवहार And अन्य असामाजिक कृत्यों से सम्बन्धित मामलों का निर्णय Single विशेष कानून बाल अधिनियम की धाराओं के आधार पर Reseller जाता है जो या तो पूर्व बाल अपराध की अवस्था से गुजर रहे हैं या उनमें अपराधी प्रवृत्ति का विकास हो रहा है या कोर्इ अपराध कार्य कर रहे हैं। 
  4. इस प्रकार के न्यायालयों में मजिस्ट्रेट नियुक्त होने के लिए आवश्यक नहीं है कि बड़े विधि विशेषज्ञ हों। Appointment उन व्यक्तियों की होती है जो कानून के ज्ञान के साथ-साथ Human स्वभाव ताकि Human समायोजन की समस्याओं की उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों से भली भांति अवगत हों तथा उन्हें बाल कल्याण के क्षेत्र में दक्षता प्राप्त हो। 
  5. इन न्यायालयों में आवश्यक नहीं है कि दोशी ठहराये गये बालकों को दण्ड दिया जाय। इसके विपरीत इन न्यायालयों से यह आशा की जाती है कि वे बालकों के सुधार के लिए सेवाएँ आयोजित करने में सहायक सिद्ध होंगे तथा बालकों की देख-रेख, Safty, कल्याण तथा शिक्षा सम्बन्धी संस्थागत तथा संस्कारिक कार्यक्रमों की प्राप्ति संभव करा सके, जो उपेक्षित है। 
  6. इन न्यायालयों में अपराधी तथा असामाजिक व्यवहार प्रदर्शित करने वाले बालकों से सम्बन्धित शिकायतों का निर्णय पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर नहीं Reseller जाता है। पूरी वैधानिक प्रक्रिया, उपचारात्मक तथा सुधारात्मक कार्यवाही का आधार होती है परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट, जो बालक के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक तथा पारिवारिक वातावरण सम्बन्धी कारकों का अध्ययन, निरीक्षण तथा मूल्यांकन बड़ी सावधानी तथा कुशलता से की जाती है।
  7. जिस समय तक बालक के बारे में सामाजिक जाँच परिवीक्षा अधिकारी के द्वारा होती है उस अवधि में उसे जेल में न रखकर उन पर्यवेक्षण गृहों में रखा जाता है जहाँ उनकी Safty के साथ-साथ स्वच्छ वातावरण तथा स्वास्थ्यप्रद रहन सहन का अवसर प्रदान होता है। 
  8. इन न्यायालयों को अपने निर्णय देने में बड़ा विवेकाधिकार प्राप्त होता है। न्यायालय मुकदमों को रदद कर सकता है, बालक तथा उसके माता-पिता को चेतावनी दे सकता है। उन पर फाइन कर सकता है, उन्हें किसी सुधार कार्य करने वाली संस्था की देख रेख में रहने का आदेश दे सकता है या उन्हें बाल सुधार संस्थाओं में रखे जाने का निर्णय दे सकता है। 

बाल अपराधियों के सुधार की Need तथा महत्व 

बाल अपराधियों के सुधार की Need तथा इसके महत्व का प्रश्न दण्ड के आधुनिक सुधारवादी दर्शन के सिद्धान्तों And विधियों के अभ्युदय के साथ संलग्न है। दण्ड के प्राचीन सिद्धान्तों And विधियों में अपराधियों (चाहे वे बालक हों या वयस्क) का कठोरतम दण्ड देने का भाव निहित था क्योंकि उस युग को स्वीकृत मान्यता यह थी कि समाज अपराधी के प्रति प्रतिशोधात्मक दृष्टिकोण रखने का हकदार है और अपराधियों को कठोर दण्ड देकर ही समाज, गैर अपराधी व्यक्तियों में कानून के भयपूर्वक पालन की आदत डाल सकता है। अतएव बाल अपराधियों के लिए Single ऐसी कारागार प्रशासन की व्यवस्था को कार्यान्वित Reseller गया जिसमें उनकी शिक्षा, औद्योगिक प्रशिक्षण तथा मनोगत सुधार की पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हों।

बाल अपराधी, पारिवारिक तथा सामाजिक परिस्थितियों का शिकार हो जाते हैं और उनकी अपराधिकता आकस्मिक होने के साथ-साथ उनकी अपरिपक्व बुद्धि, कानून के परिणामों के प्रति अज्ञान तथा अपराध कार्य करने की योजना का प्रदर्शन मात्र है। अत: ऐसी व्यवस्था होनी अनिवार्य है जिसका प्रमुख उद्देश्य उनका सुधार तथा चारित्रिक पुनर्गठन करना हो। इसी विश्वास पर आधारित मान्यताओं को स्वीकार करके आधुनिक युग में बाल अपराधियों के वयस्क अपराधियों से भिन्न प्रकार के बाल सुधार संस्थाओं की स्थापना की गयी है। बाल अपराधियों के सुधार की दिशा में जो भी अन्तर्राष्ट्रीय प्रगतियाँ हुर्इ उनमें बाल न्यायालयों की स्थापना Single महत्वपूर्ण कदम है।

वैयक्तिक सेवा कार्य की Need 

चिकित्सालय में रोगग्रस्त बालक अनेक समस्याओं से जूझता है परन्तु इन समस्याओं की ओर चिकित्सकों का ध्यान बहुत कम जाता है क्योंकि इसके लिए अधिक समय तथा विशेष ज्ञान की Need होती है जिसका उनके पास अभाव होता है। उचित निदान And उपचार के लिए बालक And उसके माता-पिता दोनों का ही योगदान आवश्यक होता है। परन्तु वर्तमान चिकित्सा पद्धति को महत्व नहीं दिया गया है। बालकों को Singleान्त में दुनिया से बिलकुल पृथक कर दिया जाता है और वे कष्ट पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। इन परिस्थितियों में वे अन्य समस्याएँ उत्पन्न कर लेते हैं जैसे सांवेगिक तनाव, सांवेगिक हृास, प्रतिगमन के लक्षण, प्रत्याहार, अलगाव की भावना, विघटित प्रत्यक्षीकरण, अहमन्यता, र्इष्र्या की भावना आदि।

वैयक्तिक सेवा कार्य का महत्व 

  1. सांवेगिक प्रतिक्रियाऐं:- चिकित्सालय में प्रवेश स्वयं अपने आप में Single समस्या है। बालक के लिए रोग भी सांवेगिक समस्या है। इस समस्या में उस समय और भी अधिक वृद्धि होती है जब उसकी शल्य चिकित्सा की जाती है। इंजेक्शन लगाने के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार की समस्या उत्पन्न होती है। 
  2. परिवार से अलगाव :- चिकित्सालय आने पर बालक के अधिकांश सामाजिक सम्बन्ध विच्छिन्न हो जाते हैं। इसका प्रतिफल यह होता है कि वह आदान-पद्र ान की प्रक्रिया में भाग नहीं लेता है। वह कभी-कभी न तो बात करता है और न सलाह मानता है। इस विरोध की भावना का कारण अपने सामान्य पर्यावरण से पृथक् होना तथा वर्तमान परिस्थितियों से ताल-मेल न कर पाना होता है। 
  3. Singleाकीपन की समस्या :- यद्यपि All बालक सामान्य क्रियाएं सम्पन्न करने में असमर्थ नहीं होते तथापि चिकित्सालय में वे पंगु बन जाते हैं। वे शैया पर All ख़ुशियों And प्रसन्नताओं से वंचित पड़े रहते हैं। उनके पास समय व्यतीत करने का कोर्इ साधन नहीं होता है। अत: या तो उनको अकारण भय उत्पन्न हो जाता है या फिर अपने को Meansहीन समझने लगते हैं। 
  4. वात्सल्य And प्रेम की कमी :- कोर्इ माता पिता अपने में ही उलझे रहते हैं और बालक की ओर ध्यान नहीं दे पाते हैं। परिणामस्वReseller बालक इस आवश्यक तत्व से वंचित रहता है और उन स्थितियों की खोज करता है जहाँ पर वह माता पिता का पेम्र पा सकता है। बीमार होना Single ऐसी ही स्थिति है। 
  5. अहमन्यता: – कभी कभी माता पिता रोगी बालक की इतनी अधिक देख रेख, परवाह तथा लाड़ प्यार करते हैं कि वह केवल Singleांगी बन कर रहा जाता है। उसका समायोजन अव्यवस्थित हो जाता है। अस्पताल से वापस जाने पर उसके मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

कार्यकर्ता की भूमिका 

  1. सांवेगिक व्यवधानों का पता लगाता है। 
  2. सामाजिक समस्याओं की खोज करता है। 
  3. समस्याओं के समाधान के उपाय खोजता है। 
  4. बालकों व उनके अभिभावकों को स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करता है। 
  5. आवश्यक सेवाओं का प्रबन्ध करता है। 
  6. मनोरंजनात्मक कार्य सम्पन्न करवाता है।
  7. पारिवारिक सम्बन्धों को दृढ़ करता है। 
  8. चिकित्सालय पर्यावरण से समायोजन स्थापित करने में सहायता करता है। 
  9. अच्छी आदतों के विकास में सहायता करता है। 
  10. सफार्इ सम्बन्धी नियमों को बताता है। 
  11. पोशक तत्वों का History करता है। 
  12. Saftyत्मक तरीकों को बताता है। 

विद्यालय सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य 

व्यक्ति के समाजीकरण की यद्यपि परिवार Single महत्वपूर्ण संस्था है। वह अपना प्रारम्भिक जीवन परिवार की सीमा में ही व्यतीत करता है। उसकी Needओं की संतुष्टि भी यहीं होती है। परन्तु जैसे- जैसे वह बड़ा होता जाता है उसकी रुचि बाºय पर्यावरण की ओर बढ़ने लगती है और परिवार के बन्धन से मुक्त होना चाहता है। वह घर की चहारदीवारी से निकल कर पड़ौस तथा किसी विद्यालय में जाना पसन्द करता है और वहाँ जाकर आनन्द प्राप्त करता है। वह विद्यालय जाने के लिए स्वयं लालायित रहता है और कभी-कभी हठ करने लगता है कि अन्य बालकों की तरह वह भी विद्यालय अवश्य जायगा। विद्यालय में उसका परिचय अनेक विद्यार्थियों से होता है तथा विचारों का आदान-प्रदान होता है। अत: ऐसा वातावरण तैयार करना आवश्यक होता है जिसमें वह अपना सफल समायोजन कर के तथा संवेगात्मक व बौद्धिक विकास के लिए शैक्षणिक व मनोरंजनात्मक कार्यक्रमों से लाभ उठा सके।

भारतवर्ष में यद्यपि शिक्षा पद्धति में काफी अन्तर आया है परन्तु अभी भी प्राध्यापक का मुख्य ध्यान केवल बौद्धिक विकास पर रहता है तथा रटने-रटाने की प्रथा बराबर पड़ी हुर्इ है। वैयक्तिक कमी अथवा समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है। परन्तु जितना बौद्धिक विकास आवश्यक होता है उतना ही संवेगात्मक समायोजन और मानसिक विकास महत्वपूर्ण होता है।

विद्यालय में सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य की Need 

बालक का अधिकांश प्रारम्भिक जीवन विद्यालय में ही गुजरता है। अत: विद्यालय के साथ समुचित समायोजन आवश्यक होता है। वह क्या पढ़ता है यह आवश्यक नहीं है बल्कि किस प्रकार पढ़ता है, उसकी रुचि किस स्तर की है, सम्बन्ध का क्या स्वReseller है, आदि भी जानना आवश्यक होता है। यदि इन कारकों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है तो बालक पढ़ार्इ में पीछे रह जाता है, नैराष्य अनुभव करता है तथा स्कूल से भागने लगता है। ऐसे बालक सामान्यत: विभिन्न संवेगात्मक समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं।

ऐसे बालकों की समस्याओं के निराकरण के लिए प्रशिक्षित कार्यकर्ता की Need होती है जो वैयक्तिक अध्ययन करके समस्या की प्रकृति ज्ञात कर उसका समुचित समाधान कर सके। विकसित देशों में प्रत्येक विद्यालय में वैयक्तिक कार्यकर्ता होता है जो यह कार्य करता है। उच्च विद्यालयों में तो Single समाज कार्य का विभाग ही अलग होता है।

भारतवर्ष में इस प्रकार के प्रत्यय का विकास अभी नहीं हो पाया है। क्योंकि भारत की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है इसके अतिरिक्त समाज कार्य की Need का ज्ञान भी केवल चंद लोगों को ही हैं इसके अतिरिक्त समाज कार्य की Need का ज्ञान भी केवल चंद लोगों को ही है। इसी कारण विद्यालयों की समस्याओं में निरन्तर वृद्धि हो रही है।

विद्यालय में वैयक्तिक कार्यकर्ता की समस्याएँ

(1) समस्याग्रस्त बालक :- व्यक्तिगत And पारिवारिक समस्याओं के कारण विद्यालय में ऐसे भी बालक होते हैं जो संवेगात्मक तथा मानसिक कठिनाइयों से परेषान रहते हैं। उनका न तो कक्षा में समायोजन ठीक प्रकार से हो पाता है और न ही वे अपना ध्यान पढ़ार्इ पर केन्द्रित कर पाते हैं। कक्षा में विद्याथ्री इतने अधिक होते हैं कि शिक्षक विद्याथ्री की व्यक्तिगत समस्याओं पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें उन प्रविधियों And प्रणालियों का ज्ञान नहीं होता है जिनसे उसकी संवेगात्मक समस्याओं का समाधान Resellerा जा सके। वह संवेगात्मक व मनोवैज्ञानिक समस्याओं तथा Needओं को समझने और उनका समाधान करने में सक्षम नहीं होता है। अत: वैयक्तिक कार्यकर्ता की Need होती है जो इन समस्याओं को सुलझा सकता है। कार्यकर्ता बालक का साक्षात्कार करता है और उसके माता-पिता से मिलता है, साथियों से समस्या के बारे में पूछ ताछ करता है। इस प्रकार वह समस्या से सम्बन्धित तथ्यों की खोज करता है। निदान के उपरान्त वह उपचार की Resellerरेखा निश्चित करता है। कार्यकर्ता माता-पिता को बालक की समस्या बताते हैं तथा उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है। शिक्षक के कारण यदि कोर्इ समस्या बालक में उत्पन्न होती है तो वह शिक्षक की मनोवृत्ति को बदलने में सहायता करता है। उसका कार्य समस्या के वास्तविक तथ्यों की जानकारी करके समस्या का जड़ से समाप्त करना होता है।

(2) पिछड़ापन :-कक्षा में All बालक न तो पढ़ार्इ में समान होते हैं और न ही खेलकूद में। कुछ बालक सामान्य स्तर से पढ़ार्इ तथा खेलकूद में ऊँचे होते हैं और कुछ बालक पढ़ार्इ तथा खेलकूद में सामान्य से काफी नीचे होते हैं। ऐसे बालक पढ़ने से जी चुराते हैं तथा भागने काप्रयास करते हैं। ऐसे बालकों पर अध्यापक विशेष ध्यान नहीं दे पाता है और निजी तौर पर शिक्षा देना उनके लिए कठिन हो जाता है। परन्तु यदि उनकी समस्या पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो उनका व्यक्तित्व प्रभावित होता है और हीनता की भावना विकसित हो जाती है। कभी – कभी इन बालकों को विद्यालय से निकाल दिया जाता है। परन्तु इस पिछड़ेपन के कारण बालक स्वयं न होकर सामाजिक, शारीरिक तथा मानसिक स्थितियाँ होती हैं। इन समस्याओं And स्थितियों को समझकर वैयक्तिक सहायता पहुँचाना आवश्यक होता है। वैयक्तिक कार्यकर्ता बाल मनोविज्ञान के द्वारा तथा मनोचिकित्सा की सहायता से ऐसे बालकों की सहायता करता है।

परिवार नियोजन कार्यक्रम 

अधिकांश लोग अब भी परिवार नियोजन का तात्पर्य जनसंख्या नियन्त्रण से लगाते हैं। जनसंख्य नियन्त्रण Single सरकारी नीति है जिसको सामाजिक तथा आर्थिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए चलाया जा रहा है। अपने परिवार के सदस्यों की संख्या अपने साधनों के According सीमित रखने का नाम परिवार नियोजन है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य परिवार के लिए आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (1970) ने परिवार नियोजन के अन्तर्गत निम्न कार्यों को सम्मिलित Reseller है : –

  1. जन्म में उचित समयान्तर तथा जन्म दर रोक लगाना। 
  2. बच्चे विहीन परिवारों की चिकित्सकीय सुविधाएँ प्रदान करना। 
  3. बच्चों की देख-रेख सम्बन्धी ज्ञान प्रदान करना। 
  4. यौन शिक्षा देना। 
  5. प्रजनन सम्बन्धी दोशी परिवार का स्क्रीनिंग करना। 
  6. जेनटिक मंत्रणा देना। 
  7. पूर्व वैवाहिक सलाह देना तथा परीक्षण करना।
  8. गर्भावस्था को टेस्ट करना। 
  9. विवाह मंत्रणा देना। 
  10. First बच्चे के जन्म से सम्बन्धित ज्ञान प्रदान करना तथा अन्य सुविधाएँ देना। 
  11. अविवाहित माताओं को सेवाएँ प्रदान करना। 
  12. गृह Meansशास्त्र तथा पोशण सम्बन्धी शिक्षा देना। 
  13. गोद लेने में सहायता करना। 

इस प्रकार से परिवार नियोजन कार्यक्रम का उद्देश्य परिवार के सदस्यों की सीमा में नियन्त्रण करना है। जिन परिवारों में बच्चे अधिक संख्या में पैदा होते हैं उन दम्पत्तियों को परिवार नियोजन करने के लिए और अवांछित बच्चों के जन्मों को रोकने के लिए परिवार नियोजन के विभिन्न तरीकों का ज्ञान And सेवा सुविधा की विशेष व्यवस्था भीपरिवार नियोजन कार्यक्रम के अन्तर्गत आती है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वास्थ्य रक्षा सम्बन्धी विभिन्न सेवाएँ प्रदान करना है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रतिरक्षीकरप, प्रसव के पूर्व, प्रसव में तथाप्रसव के बाद माताओं की देख-रेख, दवाइयों काप्रबन्ध चेचक, डिप्थीरिया, काली खासी आदि के बचाव के लिए टीके लगाना तथा दवाइयाँ देना। पौश्टिक आहार की योजना भी अब इसका अंग बन गयी है। इस योजना के अन्तर्गत गर्भवती माताओं तथा शिशुओं को पौश्टिक भोजन बाँटा जाता है। इन अनेक कार्यों में वृद्धि के कारण इस कार्यक्रम का नाम बदल कर परिवार कल्याण And मातृ शिशु कल्याण कार्यक्रम रख दिया गया है।

जनसंख्या And आर्थिक विकास 

देश की जनसंख्या तथा आर्थिक विकास का घनिष्ट सम्बन्ध है। आर्थिक विकास के अन्तर्गत देश की राष्ट्रीय आय, प्रति व्यक्ति आय, रहन सहन का स्तर, उत्पादन की दषा, रोजगार व्यवस्था आदि सम्मिलित है।आर्थिक विकास के लिए पाँच साधनों की Need होती है। भूमि, श्रम, पूँजी, प्रबन्ध And उद्यम। उत्पादन शक्ति के उन पाँच साधनों में Human शक्ति विकास का महत्वपूर्ण साधन है। Human शक्ति से श्रम, प्रबन्ध And उद्यम उत्पादन के तीन साधन तो प्रत्यक्ष Reseller से प्राप्त है जबकि पूँजी का सम्बन्ध भी Human से ही है। अत: स्पष्ट है कि जनसंख्या तथा विकास में घनिष्ट सम्बन्ध है। यदि देश में जनशक्ति अधिक है तो देश श्रम के क्षेत्र में धनी होगा तथा देश धनी होगा। परन्तु ऐसा नहीं है।

विकासषील देशों के लिए ये हानिकारक है। जब जनशक्ति की अधिकता होगी तो भूमि, साधन सीमित होने के कारण Human शक्ति बढ़ती जायेगी, फलस्वReseller् प्रति व्यक्ति उत्पादन कम होता जायेगा। खाद्य समस्या बढ़ेगी, बेरोजगारी फैलेगी, राश्ट्रीय आय में वृद्धि नहीं होगी Meansात् प्रति व्यक्ति आय में कमी होगी, वस्तुओं की माँग अधिक होने के कारण कीमतें बढ़ेंगी तथा मुद्रा स्फीति पर बुरा असर पड़ेगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विकासषील देशों के लिए जनसंख्या वृद्धि घातक है।

परिवार नियोजन के तरीके 

परिवार को सीमित रखने के लिए अनेक तरीकों का विकास Reseller गया है। ये दो प्रकार के तरीके हैं (1) स्थायी, (2) अस्थायी।

  1. स्थायी तरीके :- स्थायी तरीकों में पुरुष नसबन्दी तथा स्त्री नसबन्दी है।
  2. अस्थायी तरीके :- अस्थायी तरीके निम्न हैं जिनका उपयोग कर परिवार को सीमित रखा जा सकता है तथा अनिच्छित जन्म को रोका जा सकता है :- (1) लूप (2) खाने वाली गोली (3) निरोध (4) गर्भ समापन (5) Windows Hosting काल

वैयक्तिक सेवा कार्यकर्ता की भूमिका 

समाज कार्य ने इस विशाल समस्या के समाधान का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया है। समाज कार्य का First उत्तर दायित्व उन मनोसामाजिक समस्याओं का समाधान करना तथा उन पर विजय प्राप्त करना है जो विकास And उन्नति में बाधा पहुँचाते हैं। कार्यकर्ता, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा सांस्कृति कारक जो परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाने में बाधा उत्पन्न करते हैं, दूर करना है। वह शिक्षा, चिकित्सा तथा कल्याणकारी संस्थाओं की सेवाओं का सदुपयोग भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए करता है। वह व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करता है जिससे व्यक्ति परिवार नियोजन के महत्व को समझ सकने में समर्थ होते हैं। वह पोशण सम्बन्धी ज्ञान प्रदान करता है, महत्वपूर्ण रोगों के विषय में जानकारी देता है शिक्षा सुविधाओं की Discussion करता है, कल्याणकारी कार्यक्रमों से अवगत कराता है, नवीन कानूनों का ज्ञान देता है तथा स्वास्थ्य शिक्षा देता है। परिवार कल्याण कार्यकर्ता के Reseller में वैयक्तिक सेवा कार्यकर्ता के निम्न कार्य हैं :-

  1. घनिश्ट सम्बन्ध स्थापित करके सेवाथ्री में विश्वास जाग्रत करना कि वह उनका हितैशी है तथा उन्नति And विकास चाहता हैं। 
  2. कार्यकर्ता को यह ज्ञान होना चाहिए कि वह सेवाथ्री से Single केस के Reseller में नहीं बातचीत कर रहा है बल्कि Single व्यक्ति के सन्दर्भ में बातचीत हैं। 
  3. वह सेवाथ्री को परिवार नियोजन सम्बन्धी सकारात्मक तथा नकारात्मक All भावनाओं के स्पष्टीकरण का पूर्ण अवसर देता है। 
  4. कार्यकर्ता का कार्य सेवाथ्री में केवल उपयुक्त ज्ञान का विकास करना है। इसके बाद वह सेवाथ्री की इच्छा पर छोड़ देता है कि वह अपने जीवन को खुशहाल बनाने के लिए स्वयं निर्णय ले। वह यह नहीं बताता है कि उसे “यह” करना आवश्यक है। वह केवल सलाह देता है।

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