Indian Customer वैज्ञानिक के नाम और उनके आविष्कार

बौधयन 

बौधयन First विद्वान थे जिन्होंने गणित में कई अवधरणाओं को स्पष्ट Reseller जो बाद में पश्चिमी दुनिया द्वारा पुन: खोजी गयी। ‘पाई’ के मूल्य की गणना भी उन्हीं के द्वारा की गई। जैसा कि आप जानते हैं पाई वृत्त के क्षेत्रफल और परिधि को निकालने में प्रयुक्त होती है। जो आज पाइथोगोरस प्रमेय के नाम से जानी जाती है वह बौधयन के शुल्व सूत्रों में First से ही विद्यमान है, जो पाइथोगोरस के जमाने से कई वर्ष पूर्व लिखे गये थे।

आर्यभट्ट

आर्यभट्ट पांचवीं शताब्दी के गणितज्ञ, नक्षत्राविद्, ज्योतिर्विद और भौतिकी के ज्ञाता थे। वह गणित के क्षेत्रा में पथप्रदर्शक थे। 23 वर्ष की उम्र में उन्होंने आर्यभट्टीयम् लिखा जो उस समय के गणित का सारांश है। इस विद्वत्तापूर्ण कार्य में 4 विभाग हैं। First विभाग में उन्होंने बड़ी दशमलव संख्याओं को वर्णों में प्रकट करने की विध् िdescribed की। Second विभाग में आधुनिक काल के गणित के विषयों के कठिन प्रश्न दिए गए हैं जैसे संख्या सिद्धान्त रेखागणित, त्रिकोणमिति और बीजगणित (एल्जेब्रा)। शेष दो विभाग नक्षत्र विज्ञान से सम्बद्ध हैं।

आर्यभट्ट ने बताया कि शून्य Single संख्या मात्रा नहीं हैं बल्कि Single चिÉ है, Single अवधरणा है। शून्य के आविष्कार से ही आर्यभट्ट Earth और चन्द्रमा के बीच की दूरी का सही सही मापन कर पाए। शून्य की खोज से ही ऋणात्मक संख्याओं की Single नई दिशा का भी द्वार खुल गया।

जैसा कि हमने देखा, आर्यभट्टीय के अंतिम दो विभाग नक्षत्र विज्ञान से सम्बद्ध हैं। स्पष्टतया आर्यभट्ट ने विज्ञान के क्षेत्रा में, विशेष Reseller से नक्षत्र विज्ञान में बहुत बड़ा योगदान Reseller।

प्राचीन भारत में नक्षत्र विज्ञान बहुत उन्नत था। इसे खगोलशास्त्र कहते हैं। खगोल नालन्दा में प्रसिद्ध नक्षत्र विषयक वेधशाला थी जहां आर्यभट्ट पढ़ते थे। वस्तुत: नक्षत्र विज्ञान बहुत ही उन्नत था और हमारे पूर्वज इस पर गर्व करते थे। नक्षत्र विज्ञान की इतनी उन्नति के पीछे शुद्ध पचांग के निर्माण की Need थी।

जिससे वर्षा चक्र के According पफसलों को चुना जा सके, फसलों की बुआई का सही समय निर्धरित Reseller जा सके, त्योहारों और ऋतुओं की सही तिथियां निर्धरित की जा सकें समुद्री यात्राओं के लिए, समय के ज्ञान के लिए और ज्योतिष में जन्म कुण्डलियां बनाने के लिए पर्याप्त जानकारी प्राप्त हो सके। नक्षत्र विज्ञान का ज्ञान विशेष Reseller से नक्षत्रों और ज्वार-भाटा का ज्ञान व्यापार के लिए बहुत आवश्यक था क्योंकि उन को रात के समय समुद्र और रेगिस्तानों को पार करना पड़ता था।

हमारी Earth नामक ग्रह अचल है इस लोक प्रसिद्ध विचार को तिरस्कृत करते हुए आर्यभट्ट ने अपना सिद्धांत बताया कि Earth गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है। उसने उदाहरण देते हुए स्पष्ट Reseller कि Ultra site का पूर्व से पश्चिम की ओर जाना मिथ्या है, उनमें से Single उदाहरण थाμजब Single मनुष्य नाव में यात्रा करता है, तब किनारे के पेड़ उल्टी दिशा में दौड़ते हुए मजर आते हैं। उसने यह भी सही बताया कि चांद और अन्य ग्रह Ultra site की रोशनी के प्रतिबिम्ब के कारण ही चमकते हैं। उसने चन्द्र ग्रहण और Ultra siteग्रहण का भी वैज्ञानिक स्पष्टीकरण दिया और कहा कि ग्रहण केवल राहु या केतु या किसी अन्य राक्षस के कारण नहीं होते। अब आप स्पष्ट अनुभव कर सकते हैं कि क्यों भारत के First उपग्रह का नाम जो आकाश में छोड़ा गया, आर्यभट्ट रखा गया।

ब्रह्मगुप्त

Sevenवीं शताब्दी से ब्रह्मगुप्त ने गणित को अन्य वैज्ञानिकों की अपेक्षा कहीं अध्कि ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। उन्होंने अपने गुणन की विधियों में स्थान का मूल्य उसी प्रकार निर्धरित Reseller जैसा कि आजकल Reseller जाता है। उन्होंने ऋणात्मक संख्याओं का भी परिचय दिया और गणित में शून्य पर अनेक प्रक्रियाएं सिद्ध कीं। उन्होंने ब्रह्मस्पुफट-सिद्धांत लिखा जिसके माध्यम से अरब हमारी गणितीय व्यवस्थाओं से परिचित हो सके।

भास्कराचार्य

भास्कराचार्य 12वीं शताब्दी के विख्यात व्यत्तिफ थे। वह कर्णाटक में बीजापुर में पैदा हुए। वह अपनी पुस्तक सिद्धांतशिरोमणि के कारण प्रसिद्ध हैं। इसके भी चार खण्ड हैं-लीलावती (गणित), बीजगणित (एल्जेब्रा), गोलाध्याय और ग्रहगणित (ग्रहों का गणित) भास्कराचार्य ने बीजगणितीय समीकरणों को हल करने के लिए चक्रवात विधि का परिचय दिया। यही विधि: शताब्दियों बाद यूरोपीय गणितज्ञों द्वारा पुन: खोजी गई जिसे वे चक्रीय विधि कहते हैं। 19वीं शताब्दी में Single अंग्रेज-जेम्स टेलर ने ‘लीलावती’ का अनुवाद Reseller और विश्व को इस महान कृति से परिचित करवाया।

महावीराचार्य

जैन साहित्य में (ई.पू. 500 से 100 शताब्दी तक) गणित का व्यापक वर्णन है। जैन गुरुओं को द्विघाती समीकरणों को हल करना आता था। उन्होंने, भिन्न, बीजगणितीय समीकरण, श्रृंखलाएं, सेट सिद्धांत, लघुगणित (legarithms) घाताघ्क (exponents) आदि को बड़ी रोचक विधि से समझाया। जैन गुरु महावीराचार्य ने 850 (ई.पू.) में गणित सार संग्रह लिखा, जो आधुनिक विधि लिखी गई पहली गणित की पुस्तक है। दी गई संख्याओं का लघुतम निकालने का आधुनिक तरीका भी उनके द्वारा described Reseller गया है। अत: जॉन नेपियर के विश्व के सामने इसे प्रस्तुत करने से बहुत First यह विधि Indian Customerों को ज्ञात थी।

कणाद

कणाद, छ: Indian Customer दर्शनों में से Single वैशेषिक दर्शन के छठी शताब्दी के वैज्ञानिक थे। उनका वास्तविक नाम औलूक्य था। बचपन से ही वे बहुत सूक्ष्म कणों में रुचि रखने लगे थे। अत: उनका नाम कणाद पड़ गया। उनके आणविक सिद्धांत किसी भी आधुनिक आणविक सिद्धांतों से मेल खाते हैं। कणाद के According, यह भौतिक विश्व कणों (अणु/एटम) से बना है जिसको Humanीय चक्षुओं से नहीं देखा जा सकता। इनका पुन: विखण्डन नहीं Reseller जा सकता। अत: न इनको विभाजित Reseller जा सकता है न ही इनका विनाश हो सकता है। निस्संदेह यह वही तथ्य है जो आधुनिक आणविक सिद्धांत भी बताता है।

वराहमिहिर

भारत में प्राचीन काल के Single अन्य सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक थे वराहमिहिर। वह गुप्त काल में हुए। वराहमिहिर ने जलविज्ञान, भूगर्भीय विज्ञान और पर्यावरण विज्ञान के क्षेत्रा में महान योगदान Reseller। वह First वैज्ञानिक थे जिन्होंने यह दावा Reseller कि दीमक और पौधे भी भूगर्भीय जल की पहचान के निशान हो सकते हैं। उसने छ: पशुओं और तीस पौधें की सूची दी जो पानी के सूचक हो सकते हैं। उन्होंने दीमक (जो लकड़ी को बर्बाद कर देती है) के विषय में बहुत महत्त्वपूर्ण सूचना प्रदान की कि वे बहुत नीचे पानी के तल तक जाकर पानी लेकर आती हैं और अपनी बांबी (घर) को गीला करती है। Single अन्य सिद्धान्त, जिसने विज्ञान की दुनिया को आकृष्ट Reseller वह है भूचाल मेघ सिद्धांत जो वराहमिहिर ने अपनी बृहत्संहिता में लिखा। इस संहिता का 32वां अध्याय भूचालों के चिन्हों को दर्शाता है। उन्होंने भूचालों का संबंध नक्षत्रों के प्रभाव, समुद्रतल की गतिविधियों, भूतल के जल, असामान्य मेघों के बनने से और पशुओं के असामान्य व्यवहार से जोड़ा है। Single अन्य विषय जहां वराहमिहिर का योगदान Historyनीय है वह है ज्योतिष/नक्षत्रा विज्ञान/प्राचीन भारत में पफलित ज्योतिष को बहुत उच्च स्थान दिया जाता था और वह प्रथा आज तक भी जारी है। ज्योतिष का, जिसका Means है प्रकाश की विद्या, मूल वेदों में है। आर्यभट्ट और वराहमिहिर के द्वारा Single व्यवस्थित Reseller में वैज्ञानिक ढंग से इस विद्या का प्रस्तुतीकरण Reseller गया। आर्यभट्ट की आयभटीयम् के दो विभाग नक्षत्र विज्ञान पर आधरित हैं जो वस्तुत: फलितज्योतिष का आधार हैं। फलित ज्योतिष भविष्यवाणी करने की विद्या है। विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में वराहमिहिर का स्थान था। वराहमिहिर की भविष्यवाणियां इतनी शुद्ध होती थीं कि विक्रमादित्य ने उन्हें ‘वराह’ की उपाधि दी।

नागार्जुन

नागार्जुन दसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक थे। उनके परीक्षणों का प्रमख उद्देश्य था मूल धतुओं को सोने में बदलना जैसाकि पश्चिमी दुनिया में कीमियागर करते थे। यद्यपि वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुआ। फिर भी वह Single ऐसा तत्त्व बनाने में सपफल हुआ जिसमें सोने जैसी चमक थी। आज तक यही तकनीक नकली जेवर बनाने के काम आती है। अपने ग्रंथ रसरत्नाकर में उन्होंने सोना, चांदी, टीन और तांबा निकालने का विस्तार से वर्णन Reseller है।

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