पुनर्जागरण का Means, विशेषताएँ And कारण
पुनर्जागरण का Means, विशेषताएँ And कारण
अनुक्रम
पुनर्जागरण Single फ़्रेंच Word (रेनेसाँ) है, जिसका शाब्दिक Means है – ‘फिर से जागना’। इसे ‘नया जन्म’ अथवा ‘पुनर्जन्म’ भी कह सकते हैं। परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से इसे Human समाज की बौद्धिक चेतना और तर्कशक्ति का पुनर्जन्म कहना ज्यादा उचित होगा। प्राचीन यूनान और रोमन युग में यूरोप में सांस्कृतिक मूल्यों का उत्कर्ष हुआ था। परन्तु मध्यकाल में यूरोपवासियों पर चर्च तथा सामान्तों का इतना अधिक प्रभाव बढ़ गया था कि लोगों की स्वतंत्र चिन्तन-शक्ति तथा बौद्धिक चेतना ही लुप्त हो गई। लैटिन तथा यूनानी भाषाओं को लगभग भुला दिया गया। शिक्षा का प्रसार रुक गया था। परिणामस्वReseller सम्पूर्ण यूरोप सदियों तक गहन अन्ध्कार में डूबा रहा। ईश्वर, चर्च और धर्म के प्रति यूरोपवासियों की आस्था चरम बिन्दु पर पहुँच गई थी। धर्मशास्त्रों में जो कुछ सच्चा-झूठा लिखा हुआ था अथवा चर्च के प्रतिनिध् जो कुछ बतलाते थे, उसे पूर्ण सत्य मानना पड़ता था। विरोध करने पर मृत्युदंड दिया जाता था। इस प्रकार, लोगों के जीवन पर चर्च का जबरदस्त प्रभाव कायम था। चर्च धर्मग्रन्थों के स्वतंत्र चिन्तन और बौद्धिक विश्लेषण का विरोधी था। सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में भी चर्च और सामन्त व्यवस्था लोगों को जकड़े हुए थी। किसान लोग सामन्त की स्वीकृति के बिना मेनर (जागीर) छोड़कर नहीं जा सकते थे।
मध्ययुग के अन्त में Humanीय दृष्टिकोणों में आमूल परिवर्तन आया। जब भूमि के द्वारा उदर-पोषण का स्रोत उपलब्ध न रहा तो लोग मेनर से अपना सम्बन्ध् तोड़कर कृषि फार्मों पर स्वतंत्र Reseller से मजदूरी करने लगे या गाँवों में जाकर अन्य कोई काम करने लगे अथवा कस्बों या गाँवों में अपनी स्वयं की दुकानें खोलने लगे। इन्हीं लोगों से ‘मध्यम वर्ग’ का उदय हुआ जिसने पुनर्जागरण के उदय में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। अब प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन-अध्यापन से पुन: नई आस्था का जन्म हुआ। पीढ़ियों से निर्विरोध् चले आ रहे विचारों को सन्देह की दृष्टि से देखा जाने लगा। चर्च तथा धर्मशास्त्रों की बातों पर शंका की जाने लगी। परिणामस्वReseller कला, साहित्य, विज्ञान, दर्शन And जीवन के प्राय: All दृष्टिकोणों में महान् परिवर्तन आ गया। इस सांस्कृतिक And सामाजिक परिवर्तन को ही History में ‘पुनर्जागरण’ की संज्ञा दी गई है।
पुनर्जागरण की विशेषताएँ
पुनर्जागरण काल में प्राचीन आदर्शों, मूल्यों और विचारों का तत्कालीन सामाजिक And राजनीतिक स्थिति से समन्वय स्थापित करके Single नई संस्कृति का विकास Reseller गया। इस दृष्टि से पुनर्जागरण की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार थीं –
(1) पुनर्जागरण की First विशेषता धर्मिक आस्था के स्थान पर स्वतंत्र चिन्तन को प्रतिष्ठित करके तर्कशक्ति का विकास करना था। मध्ययुग में व्यक्ति के चिन्तन And मनन पर धर्म का कठोर अंकुश लगा हुआ था। पुनर्जागरण ने आलोचना को नई गति And विचारधरा को नवीन निडरता प्रदान की।
(2) दूसरी विशेषता मनुष्य को अन्ध्विश्वासों, रूढ़ियों तथा चर्च द्वारा आरोपित बंधनों से छुटकारा दिलाकर उसके व्यक्तित्व का स्वतंत्र Reseller से विकास करना था।
(3) तीसरी विशेषता Humanवादी विचारधरा थी। मध्ययुग में चर्च ने लोगों को उपदेश दिया था कि इस संसार में जन्म लेना ही घोर पाप है। अत: तपस्या तथा निवृत्ति मार्ग को अपनाकर मनुष्य को इस पाप से मुक्त होने का सतत् प्रयास करना चाहिए। इसके विपरीत पुनर्जागरण में Human जीवन को सार्थक बनाने की शिक्षा दी।
(4) चौथी विशेषता देशज भाषाओं का विकास थी। अब तक केवल यूनानी और लैटिन भाषाओं में लिखे गये ग्रन्थों को ही महत्त्वपूर्ण समझ जाता था। पुनर्जागरण ने लोगों की बोलचाल की भाषा को गरिमा And सम्मान दिया, क्योंकि इन भाषाओं के माध्यम से सामान्य लोग बहुत जल्दी ज्ञानार्जन कर सकते थे। अपने विचारों को सुगमता के साथ अभिव्यक्त कर सकते थे।
(5) चित्रकला के क्षेत्र में पुनर्जागरण की विशेषता थी -यथार्थ का चित्रण, वास्तविक सौन्दर्य का अंकन। इसी प्रकार, विज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जागरण की विशेषता थी -निरीक्षण, अन्वेषण, जाँच और परीक्षण।
यूरोप के पुनर्जागरण में अरब और मंगोल लोगों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
पुनर्जागरण के कारण
पुनर्जागरण किसी Single व्यक्ति, Single स्थान, Single घटना, Single विचारधरा अथवा आन्दोलन के कारण सम्भव नहीं हो पाया था। इसके उदय And विकास में असंख्य व्यक्तियों के सामूहिक ज्ञान And विविध् देशों की विभिन्न परिस्थितियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। फिर भी, निम्न कारणों को इसके लिए उत्तरदायी माना जा सकता है –
(1) धर्मFight -ईसाई धर्म के पवित्र तीर्थ-स्थान जेरूसलम के अधिकार को लेकर ईसाइयों और मुसलमानों (सैल्जुक तुर्क) के बीच लड़े गये Fight History में ‘धर्मFightों’ के नाम से विख्यात हैं। ये Fight लगभग दो सदियों तक चलते रहे। इन धर्मFightों के परिणामस्वReseller यूरोपवासी पूर्वी रोमन साम्राज्य (जो इन दिनों में बाइजेन्टाइन साम्राज्य के नाम से प्रसिद्ध था) तथा पूर्वी देशों के सम्पर्वफ में आये। इस समय में जहाँ यूरोप अज्ञान And अन्ध्कार में डूबा हुआ था, पूर्वी देश ज्ञान के प्रकाश से आलोकित थे। पूर्वी देशों में अरब लोगों ने यूनान तथा Indian Customer सभ्यताओं के सम्पर्क से अपनी Single नई समृद्ध सभ्यता का विकास कर लिया था। इस नवीन सभ्यता के सम्पर्क में आने पर यूरोपवासियों ने अनेक वस्तुएं देखीं तथा उन्हें बनाने की पद्धति भी सीखी। इससे First वे लोग अरबों से कुतुबनुमा, वस्त्र बनाने की विधि कागज और छापाखाने की जानकारी प्राप्त कर चुके थे।
धर्मFightों के परिणामस्वReseller यूरोपवासियों को नवीन मार्गों की जानकारी मिली और यूरोप के कई साहसिक लोग पूर्वी देशों की यात्रा के लिए चल पड़े। उनमें से कुछ ने पूर्वी देशों की यात्रओं के दिलचस्प वर्णन लिखे, जिन्हें पढ़कर यूरोपवासियों की कूप-मंडूकता दूर हुई।
मध्ययुग में लोग अपने सर्वोच्च धर्मिध्कारी पोप को ईश्वर का प्रतिनिधि मानने लगे थे। परन्तु जब धर्मFightों में पोप की सम्पूर्ण शुभकामनाओं And आशीर्वाद के बाद भी ईसाइयों की पराजय हुई तो लाखों लोगों की धर्मिक आस्था डगमगा गई और वे सोचने लगे कि पोप भी हमारी तरह Single साधरण मनुष्य मात्र है।
(2) व्यापारिक समृद्धि – धर्मFightों के समय में अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण इतालवी नगरों ने व्यावसायिक समृद्धि का लाभ उठाया। मुस्लिम बन्दरगाहों पर वेनिसी तथा अन्य इतालवी व्यापारिक बेड़े सुदूरपूर्व से आने वाली विलास-सामग्रियाँ उठाते थे। वेनिस के रास्ते वे सामग्रियाँ अन्ततोगत्वा फ्रलैंडर्स और जर्मनी के नगरों तक पहुँच जाती थीं। कालान्तर में जर्मनी के नगर भी व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बन गये। यूरोप के बढ़ते हुए व्यापार-वाणिज्य से उसकी व्यापारिक समृद्धि बढ़ती गई। इस धन-सम्पदा ने पुनर्जागरण की आर्थिक पृष्ठभूमि तैयार कर दी।
(3) धनी मध्यम वर्ग का उदय – व्यापार-वाणिज्य के विकास ने नगरों में धनी मध्यम वर्ग को जन्म दिया। ध्निक वर्ग ने अपने लिये भव्य And विशाल भवन बनवाये। समाज में अपनी शान-शौकत तथा प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए इस वर्ग ने मुक्त हाथों से धन खर्च Reseller। भविष्य में अपनी ख्याति को चिरस्थायी बनाने के लिए विद्वानों और कलाकारों को आश्रय प्रदान Reseller। इसमें फ्रलोरेन्स के मैडीसी परिवार का नाम Historyनीय है।
नगरों के विकास ने Single और दृष्टि से भी सहयोग दिया। चूँकि ये नगर व्यापार-वाणिज्य के केन्द्र बन गये थे, अत: विदेशों से व्यापारी लोग इन नगरों में आते-जाते रहते थे। इन विदेशी व्यापारियों से नगरवासी विचारों का आदान-प्रदान Reseller करते थे। देश-विदेश की बातों पर भी विचार-विमर्श होता रहता था जिससे नगरवासियों का दृष्टिकोण अधिक व्यापक होता था।
(4) अरब और मंगोल – यूरोप के पुनर्जागरण में अरब और मंगोल लोगों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। अरबों के माध्यम से ही यूरोप को कुतुबनुमा, कागज और छापेखाने की जानकारी मिली थी। यूरोप के बहुत से क्षेत्रों विशेषकर स्पेन, सिसली और सार्डिनिया में अरबों के बस जाने से पूर्व यूरोपवासियों को बहुत-सी बातें सीखने को मिलीं। अरब लोग स्वतन्त्रा चिन्तन के समर्थक थे और उन्हें यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिकों -प्लेटो तथा अरस्तु की Creationओं से विशेष लगाव था। ये दोनों विद्वान् स्वतंत्र विचारक थे और उनकी Creationओं में धर्म का कोई सम्बन्ध् न होता था। अरबों के सम्पर्क से यूरोपवासियों का ध्यान भी प्लेटो तथा अरस्तु की ओर आकर्षित हुआ।
तेरहवीं सदी के मध्य में कुबलाई खाँ ने Single विशाल मंगोल साम्राज्य स्थापित Reseller और उसने अपने ही तरीके से यूरोप और एशिया को Single-Second से परिचित कराने का प्रयास Reseller। उसके दरबार में जहाँ पोप के दूत तथा यूरोपीय देशों के व्यापारी And दस्तकार रहते थे, वहीं भारत तथा अन्य एशियाई देशों के विद्वान् भी रहते थे।
(5) पांडित्यवाद – मध्ययुग के उत्तरार्द्ध में यूरोपीय दर्शन के क्षेत्र में Single नई विचारधारा प्रारम्भ हुई जिसे ‘विद्वतावाद’ (स्कालिस्टिक) अथवा पांडित्यावाद के नाम से पुकारा जाता है। इस पर अरस्तु के तर्कशास्त्र का गहरा प्रभाव था। बाद में इसमें सेन्ट आगस्टाइन के तत्वज्ञान को भी सम्मिलित कर दिया गया। अब इसमें धर्मिक विश्वास और तर्क दोनों सम्मिलित हो गये। पेरिस, ऑक्सपफोर्ड, बोलो न आदि विश्वविद्यालयों ने इस विचारधरा को तेजी से आगे बढ़ाया और उसी बात को सही मानने का निर्णय Reseller जो तर्क की सहायता से सही पाई जा सके। कालान्तर में इस विचारधरा का प्रभाव जाता रहा परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि इसने यूरोपवासियों की चिन्तनशक्ति को विकसित करके उनकी तर्कशक्ति को भी सबल बनाया था।
(6) कागज और छापाखाना – चीन ने प्राचीन युग में ही कागज और छापाखाना का आविष्कार कर लिया था। मध्ययुग में अरबों के माध्यम से यूरोपवासियों को भी इन दोनों की जानकारी मिली। कागज और छापाखाना ने पुनर्जागरण को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया जिसके पूर्व हस्तलिखित (हाथ से लिखी हुई) पुस्तकों का प्रचलन था जो काफी मूल्यवान होती थीं और जिनकी संख्या भी काफी कम होती थी। अत: ज्ञान-विज्ञान के इन साधनों पर कुछ धनी लोगों का ही Singleािध्कार था। परन्तु कागज और छापाखाना के कारण अब पुस्तकों की कमी न रही और वे अब काफी सस्ती भी मिलने लगीं। अब सामान्य लोग भी पुस्तकों को पढ़ने में रुचि लेने लगे। इससे जनता में ज्ञान का प्रसार हुआ। विज्ञान और तकनीकी की प्रगति का रास्ता खुल गया। यही कारण है कि इन दोनों को इतना अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है।
(7) कुस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार – 1453 ई. में तुर्की लोगों ने पूर्वी रोमन साम्राज्य (बाइजेन्टाइन साम्राज्य) की राजधनी कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया और बाल्कन प्रदेशों में भी प्रवेश करने लगे। कुस्तुनतुनिया गत दो सदियों से यूनानी ज्ञान, कला और कारीगरी का केन्द्र बना हुआ था। परन्तु बर्बर तुर्कों को सांस्कृतिक मूल्यों से विशेष लगाव नहीं था और उन्होंने इस क्षेत्र के All लोगों को समान Reseller से लूटना-खसोटना शुरू कर दिया।