पाठ्यवस्तु (Syllabus) का Means And परिभाषा

पाठ्यवस्तु में निर्धारित पाठ्य-विषयों से संबंधित क्रियाओं का ही समावेश होता है। इस प्रकार पाठ्यवस्तु के अंतर्गत किसी विषयवस्तु का description शिक्षण के लिए तैयार Reseller जाता है जिसे शिक्षक छात्रों को पढ़ाता है।
हेनरी हरेप के According -’’ पाठ्यवस्तु (सिलेबस) केवल मुद्रित संदर्शिका है जो यह बताती है कि छात्र को क्या सीखना है? पाठ्यवस्तु की तैयारी पाठ्यक्रम विकास के कार्य का Single तर्कसम्मत सोपान है।’’ श्रीमती आर.के. शर्मा के According -’’पाठ्यवस्तु किसी विद्यालयी या शैक्षिक विषय की उस विस्तृत Resellerरेखा से है जिसमें विद्यालय शिक्षक, शिक्षार्थी And समुदाय के उत्तरदायित्वों के निर्वहन के साथ-साथ छात्र के सर्वागीण विकास के अध्ययन तत्व समाहित होते हैं।’’

पाठ्यवस्तु तथा पाठ्य-पुस्तक में अन्त:संबंध

पाठ्यवस्तु तथा पाठ्रू-पुस्तक Single-Second के बगैर अधूरे हैं। पाठ्यवस्तु के बगैर पाठ्य-पुस्तक का निर्माण नहीं Reseller जा सकता है। जहाँ पाठ्यवस्तु निर्धारित पाठ्य-विषयों के शिक्षण हेतु अंतर्वस्तु, उसके ज्ञान की सीमा, छात्रों द्वारा प्राप्त किये जाने वाले कौशलों को निश्चित करता है तथा शैक्षिक सत्र में पढ़ाये जाने वाले व्यक्तिगत पहलुओं And निष्कर्षो की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है, जबकि पाठ्य-पुस्तक विषयों के ज्ञान को Single स्थान पर पुस्तक के Reseller में संगठित ढंग से प्रस्तुत करने का काम करती है। यह शिक्षकों And छात्रों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती है तथा छात्रों And शिक्षकों को जानकारी प्राप्त होती है कि विषयवस्तु का अध्यापन किस प्रकार करना चाहिए। इसलिए पाठ्यवस्तु के बगैर पाठ्य-पुस्तक की कल्पना निराधार है।

पाठ्यक्रम के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधायें 

पाठ्यक्रम के मार्ग में अनेक बाधायें भी आ जाती है जिससे यह अपेक्षित गति से सम्पन्न नहीं हो पाता। मौरिस And हाउसन के According किसी सफल नवीन प्रवृत्ति की व्यापक स्वीकृति में सामान्यता पचास वर्ष तक लग जाते है। अत: पाठ्यक्रम के मार्ग में आने वाली बाधाओं को जानना तथा उनको दूर करने के उपाय करना भी आवश्यक होता है। पाठ्यक्रम के मार्ग में उत्पन्न होने वाली कुछ प्रमुख बाधायें इस प्रकार हैं-

  1. परम्परा के प्रति प्रेम And झुकाव- प्रारम्भ में पाठ्यक्रम मे जो प्रकरण अथवा अन्तर्वस्तु सम्मिलित किये जाते है उनका अपना कुछ-न-कुछ औचित्य होता है। कुछ प्रकरणों का कुछ समय बाद कोई औचित्य नहीं रह जाता तथा वे कालातीत हो जाते है किन्तु फिर भी वे पाठ्यक्रम के अंग बने रहते है। ऐसा परम्परा के प्रति प्रेम And झुकाव के कारण होता है। इस कमी को All स्तरों के पाठ्यक्रम कार्यकर्त्ताओं में अनुभव Reseller जा सकता है। अत: ऐसे प्रकरणों को जिनके निकाल देने से छात्रों को कोई हानि नहीं होती है तथा वे पाठ्यक्रम के आकार को मात्र बड़ा कर रहे है निकालकर उनके स्थान पर उपयोगी समयानुकूल सामग्री को सम्मिलित Reseller जाना चाहिए। 
  2. आस्थाओं And सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्धता की कमी- किसी भी कार्यक्रम की सफलता उसमें आस्था की दृढ़ता तथा उसके सिद्धांतों के प्रति प्रतिबअद्धता पर निर्भर करती है। प्राय: नवीन परिवर्तनों के प्रति कार्यकत्ताओं में आस्था And विश्वास का अभाव होता है। जिससे वे उनके प्रति प्रतिबद्ध भी नहीं हो पाते है। ऐसे में इन परिवर्तित कार्यक्रमों से सम्बन्धित व्यक्ति ऊपरी मन से ही इन्हें स्वीकार करते है तथा अपेक्षित उद्यतता And तत्परता से कार्य नहीं करते है। परिणामस्वReseller परिवर्तन के मार्ग में बाधा उत्पन्न होती है। 
  3. अभिमत And आस्था में विभेद की असमर्थता- परिवर्तन के प्रति अभिमत And आस्था को सामान्यता Single ही Means मे ले लिया जाता हैं किन्तु इनमें अन्तर होता है। यद्यपि अभिमत आस्था की दिशा में ही Single कदम होता है फिर भी इसे आस्था नहीं माना जा सकता है। आस्था में अभिमत की अपेक्षा बहुत अधिक दृढ़ता होती है। इसका कारण यह है कि आस्था गहन चिन्तन के बाद बनती है तथा इसकी स्थायित्व के बारे में आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। अत: पाठ्यक्रम परिवर्तन की 25 दृष्टि से इन दोनों में विभेद करना आवश्यक होता है। किन्तु प्राय: लोग इनके विभेद करने में असमर्थ होते है तथा अभिमत को ही आस्था मान बैठते है। अभिमत को ही आस्था का Reseller मानने के कारण पाठ्यक्रम का आधार नहीं बन पाता।
  4. शिक्षकों की जड़ता And रूढ़िवादिता- किसी भी शैक्षिक कार्यक्रम का आयोजन And उसका क्रियान्वयन शिक्षकों द्वारा ही Reseller जाता है। नवीन कार्यक्रमों का क्रियान्वयन And उनकी सफलता शिक्षकों में उनके प्रति उत्साह श्रमशीलता And भविष्योन्मुख सोच पर निर्भर करती है। प्रसिद्ध पाठ्यक्रम विशेषज्ञ डॉ. सी. ई. बीबी के According-’’ पाठ्यक्रम में परिवर्तन लाने तथा नवाचारों को अपनाने के मार्ग में शिक्षकों की जड़ता And रूढ़िवादिता सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न करती है। वे नवीन प्रयोग करने में, नवाचारों को अपनाने में उनका संरक्षण करने में हिचकते है। अभिभावकों तथा अन्य शैक्षिक रूचि वाले अभिकरणों की प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं का भी उन्हें भय रहता है। कुछ इसलिए भी हिचकते है कि उनके सहकर्मी उन पर ताने कसते है कि क्यों सबके मार्ग में काँटे बो रहे हों।’’ अत: शिक्षकों की इस प्रवृत्ति के गहन विश्लेषण की Need है। डॉ. बीबी के मतानुसार नवाचारों को अपनाने में शिक्षकों की विफलता के दो कारण हो सकते है। First- यह कि वे उन नवाचारों को अपनाना ही नहीं चाहते हों तथा द्वितीय- उन्हें समझनें And अपनाने के लिए सक्षम ही न हों। अत: इसके समाधान हेतु उन्हें समुचित प्रशिक्षण प्रदान Reseller जाना चाहिए। 
  5. राष्ट्रीय हठधर्मिता (National Obstinancy)-पाठ्यक्रम के विकास के संबंध में किसी भी राष्ट्र के सम्मुख दो स्थितियाँ होती हैं। Single तो यह कि किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था विदेशी प्रतिमानों पर नहीं चल सकती तथा उसे स्वयं अपने प्रतिमान विकसित करने आवश्यक होते हैं। दूसरी तरफ Second देशों में शिक्षा संबंधी सफल प्रयोगों से प्रत्येक देश न्यूनाधिक अंशों में अवश्य लाभान्वित हो सकता है। इसलिए जहाँ Single ओर किसी विदेशी प्रतिमान का अंधानुकरण किसी देश के लिए हानिप्रद सिद्ध हो सकता है वहीं दूसरी ओर किसी उपयोगी विचार अथवा दृष्टिकोण को मात्र विदेशी होने के कारण अस्वीकार कर देना भी अविवेकपूर्ण कार्य है। दूसरी स्थिति के संबंध में अनेक राष्ट्रों में हठवादिता भी दिखाई पड़ती है। इस प्रकार की हठवादितापूर्ण राष्ट्रीय भावना पाठ्यक्रम के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा होती है। विकासशील देशों के लिए तो इस प्रकार की भावना और भी अधिक हानिप्रद होती है। अत: किसी भी देश में किये गये सफल प्रयोगों को स्वीकार करने में Second राष्ट्रों को उदार भावना अपनानी चाहिए तथा यदि अनिवार्य हो तो उन प्रयोगों में अपनी स्थितियों के According कुछ आवश्यक संशोधन कर लेने चाहिए।
  6. समुचित नियोजन का अभाव (Lack of Proper Planning)-समुचित नियोजन किसी भी कार्यक्रम की सफलता की Single अनिवार्य पूर्व Need है। अत: पाठ्यक्रम विकास के लिए भी समुचित नियोजन अति आवश्यक होता है। समुचित नियोजन के अभाव में प्रभावी पाठ्यक्रम संभव नहीं हो सकता है। इसके अतिरिक्त परिवर्तन के प्रति प्राय: All क्षेत्रों में Single मनोवैज्ञानिक अवरोध की भावना भी पाई जाती है। इस अवरोध की भावना को समुचित नियोजन तथा उसमें अंतर्निहित उपयुक्त मार्गदर्शन के द्वारा कम Reseller जा सकता है तथा कुछ समय बाद समाप्त भी Reseller जा सकता है। किन्तु प्राय: यह देखने में आता है कि अनेक पाठ्यक्रम संबंधी कार्यक्रमों का समुचित नियोजन नहीं Reseller जाता है तथा उनके क्रियान्वयन का ठीक ढंग से निरंतर मूल्यांकन भी नहीं Reseller जाता है तथा उनके क्रियान्वयन का ठीक ढंग से निरंतर मूल्यांकन भी नहीं Reseller जाता है।

परिणामस्वReseller ऐसे कार्यक्रम विफल हो जाते हैं। अत: समुचित नियोजन का अभाव पाठ्यक्रम के मार्ग में Single बाधा सिद्ध होता है। उपर्युक्त बाधाओं के अतिरिक्त पाठ्यक्रम के मार्ग में अनिश्चय की स्थिति, आत्मविश्वास की कमी, अंतर्द्वन्द्व, संकोच, आलोचना का भय, साहसपूर्ण प्रयोगों को कर सकने में अक्षमता, विरोध की प्रवृत्ति, तकनीकी ज्ञान का अभाव तथा अनुसंधान के प्रति उपेक्षा भाव आदि अनेक ऐसी बाधायें आती हैं जिनके कारण की गति या तो धीमी पड़ जाती है।

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