नियोजन का Means, परिभाषा, प्रकार, महत्व And सिद्धान्त

नियोजन भविष्य में किये जाने वाले कार्य के सम्बन्ध में यह निर्धारित करता है कि अमुक कार्य को कब Reseller जाय, किस समय Reseller जाय कार्य को कैसे Reseller जाय कार्य में किन साधनों का प्रयोग Reseller जाय, कार्य कितने समय में हो जायेगा आदि ।

उदाहरण : श्री शिवम से उनके व्यवसायिक सहयोगी श्री सत्यम किसी कार्य के सम्बन्ध में मिलना चाहते है। श्री शिवम द्वारा उनसे मिलने के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों का निर्धारण नियोजन ही है।

– सत्यम से किस दिन मिला जाय?
– किस समय मिला जाय?
– कहॉं मिला जाय?
– किस सम्बन्ध में मुलाकात होनी है?
– किन बातों पर विचार विमर्श होना है?
– विचार विमर्श में किसको शामिल Reseller जाय आदि?

इस प्रकार किसी भी कार्य को करने से First उसके सम्बन्ध में सब कुछ पूर्व निर्धारित करना ही नियोजन कहलाता है। नियोजन का आशय पूर्वानुमान नहीं है अपितु यह किसी कार्य को करने के सम्बन्ध में First से ही निर्णय कर लेना है। व्यवसाय में पग पग पर निर्णय की Need पड़ती है। व्यवसाय के प्रवर्तन से समापन तक निर्णयन की Need पड़ती है। जो नियोजन पर ही आधारित होता है।

प्रबन्ध के क्षेत्र में नियोजन से आशय वैकल्पिक उद्देश्यों, नीतियों कार्यविधियों तथा कार्यक्रमों मे से सर्वश्रेष्ठ का चयन करने से है। पीटर एफ-ड्रकर के According ‘‘Single प्रबंधक जो भी क्रियायें करता है वे निर्णय पर आधारित होती है।’’

नियोजन की परिभाषाएँ 

नियोजन के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अपने मत व्यक्त किये हैं जिन्हें हम परिभाषायें कह सकते हैं, उनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं :-

  1. बिली र्इं गोत्ज : नियोजन मलूत: चयन करता है और नियोजन की समस्या उसी समय पैदा होती है जबकि किसी वैकल्पिक कार्यविल्पिा की जानकारी हुर्इ हो। 
  2. कूण्टज और ओ डोनल – व्यवसायिक नियोजन Single बौद्धिक प्रक्रिया है किसी क्रिया के कारण का सचेत निर्धारण है, निर्णयों को लक्ष्यों तथ्यों तथा पूर्व-विचारित अनुमानों पर आधारित है ।’’ 
  3. एम.र्इ.हर्ले – ‘‘क्या करना चाहिए इसका First से ही निधार्रण करना नियोजन कहलाता है।वैज्ञानिक लक्ष्यों, नीतियों, विधियों तथा कार्यक्रमों में से सर्वश्रेष्ठ का चयन करना ही व्यावसायिक नियोजन कहलाता है। 
  4. मेरी कुशिंग नाइल्स – ‘‘नियोजन किसी उदद्ेश्य को पूरा करने के लिए सर्वोत्तम कार्यपथ का चुनाव करने And विकास करने की जागरूक प्रक्रिया है। यह वह प्रक्रिया है जिस पर भावी प्रबन्ध प्रकार्य निर्भर करता है’’। 
  5. जार्ज आर. टेरी – ‘‘नियोजन भविष्य में झोंकने की Single विधि है। भावी Needओं का Creationत्मक पुनर्निरीक्षण है जिससे कि वर्तमान क्रियाओं को निर्धारित लक्ष्यों के सन्दर्भ में समायोजित Reseller जा सके। 

उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन And विश्लेषण के आधार पर हम कह सकते हैं कि, ‘‘नियोजन प्रबंध का Single आधारभूत कार्य है, जिसके माध्यम से प्रबन्ध द्वारा अपने साधनों को निर्धारित लक्ष्यों के According समायोजित करने का प्रयास Reseller जाता है और लक्ष्य पूर्ति हेतु भविष्य के गर्भ में झॉंककर सर्वोत्तम वैकल्पिक कार्यपथ का चयन Reseller जाता है जिससे कि निश्चित परिणामों को प्राप्त Reseller जा सके।’’

नियोजन की विशेषताएॅ 

नियोजन की परिभाषाओं के अध्ययन And विश्लेषण के आधार पर इसकी निम्नलिखित विशेषताएं दृष्टिगोचर होती हैं –

  1. नियोजन प्रबंध का प्राथमिक कार्य है क्योंकि नियोजन प्रबन्ध के अन्य All कार्यो जैसे स्टाफिंग, सन्देशवाहन, अभिप्रेरण आदि से First Reseller जाता है। 
  2. नियोजन का सार तत्व पूर्वानुमान है।
  3. नियोजन में ऐक्यता पायी जाती है Meansात Single समय में किसी कार्य विशेष के सम्बन्ध में Single ही योजना कार्यान्वित की जा सकती है। 
  4. प्रबंध के प्रत्येक स्तर पर नियोजन पाया जाता है। 
  5. नियोजन उपलब्ध विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन है। 
  6. नियोजन Single सतत And लोचपूर्ण प्रक्रिया है। 
  7. नियोजन Single मार्गदर्शक का कार्य करती है। 
  8. नियोजन में प्रत्येक क्रियाओं में पारस्परिक निर्भरता पायी जाती है।
  9. नियोजन में संगठनात्मकता का तत्व पाया जाता है।
  10. निर्णयन नियोजन का अभिन्न अंग है। 
  11. नियोजन भावी तथ्यों व आंकड़ों पर आधारित होता है। यह इन क्रियाओं का विश्लेषण And वर्गीकरण करता है। इसके साथ ही यह इन क्रियाओं का क्रम निर्धारण करता है। 
  12. नियोजन लक्ष्यों, नीतियों, नियमों, And प्रविधियों को निश्चित करता है, 
  13. नियोजन प्रबन्धकों की कार्यकुशलता का आधार है। 

नियोजन की प्रकृति 

  1. नियोजन की निरन्तरता  -नियोजन की Need व्यवसाय की स्थापना के पूर्व से लेकर, व्यवसाय के संचालन में हर समय बनी रहती है। व्यवसाय के संचालन में हर समय किसी न किसी विषय पर निर्णय लिया जाता है जो नियोजन पर ही आधारित होते हैं। भविष्य का पूर्वानुमान लगाने के साथ साथ वर्तमान योजनाओं में भी Needनुसार परिवर्तन करने पड़ते हैं । Single योजना से दूसरी योजना, दूसरी योजना से तीसरी योजना, तीसरी योजना से चौथी योजना, चौथी योजना से पांचवीं योजना, इस प्रकार नियोजन Single निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
  2. नियोजन की प्राथमिकता  –  नियोजन All प्रबन्धकीय कार्यों में प्राथमिक स्थान रखता है। प्रबन्धकीय कार्यों में इसका First स्थान है। पूर्वानुमान की नींव पर नियोजन को आधार बनाया जाता है।इस नियोजन Resellerी आधार पर संगठन, स्टाफिंग, अभिप्रेरण And नियंत्रण के स्तम्भ खड़े किये जाते हैं। इन स्तम्भों पर ही प्रबंध आधारित होता है। प्रबंध के All कार्य नियोजन के पश्चात ही आते हैं तथा इन All कार्यों का कुशल संचालन नियोजन पर ही आधारित होता है।
  3. नियोजन की सर्वव्यापकता  –  नियोजन की प्रकृति सर्वव्यापक होती है यह Human जीवन के हर पहलू से सम्बन्धित होने के साथ साथ संगठन के प्रत्येक स्तर पर और समाज के प्रत्येक क्षेत्र में पाया जाता है।संगठन चाहे व्यावसायिक हो या गैर व्यावसायिक (धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, या सामाजिक) छोटे हों या बड़े, All में लक्ष्य व उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नियोजन की Need पड़ती है।
  4. नियोजन की कार्यकुशलता  –  नियोजन की कार्य कुशलता आदाय और प्रदाय पर निर्भर करती है। उसी नियोजन को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है जिसमें न्यूनतम लागत पर न्यूनतम अवांछनीय परिणामों को प्रबट करते हुए अधिकतम प्रतिफल प्रदान करें। यदि नियोजन कुशलता पूर्वक Reseller गया है तो व्यक्तिगत And सामूहिक सन्तोष अधिकतम होगा।
  5. नियोजन Single मानसिक क्रिया  –  नियोजन Single बौद्धिक And मानसिक प्रक्रिया है। इसमें विभिन्न प्रबन्धकीय क्रियाओं का सजगतापूर्वक क्रमनिर्धारण Reseller जाता है। नियोजन उद्देश्यों तथ्यों व सुविचारित अनुमानों की आधारशिला हैं।

नियोजन के  उद्देश्य

नियोजन Single सर्वव्यापी Humanीय आचरण है। Human को प्रत्येक क्षेत्र में सतत विकास के लिए नियोजन का सहारा लेना पड़ता है। संगठनों में भी नियोजन प्रत्येक स्तर पर देखने को मिलता है। नियोजन के प्रमुख हैं – 

  1. नियोजन कार्य विशेष के निष्पादन के लिये भावी आवश्यक Resellerरेखा बनाकर उसे Single निर्दिष्ट दिशा प्रदान करना है। 
  2. नियोजन के माध्यम से संगठन से सम्बन्धित व्यक्तियों (आन्तरिक And बाह्य) को संगठन के लक्ष्यों And उन्हें प्राप्त करने की विधियों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती हैं। 
  3. नियोजन संगठन की विविध क्रियाओं में Singleात्मकता लाता है जो नीतियां के क्रियान्वयन के लिये आवश्यक होता है। 
  4. नियोजन उपलब्ध विकल्पों में सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन है। जिसके परिणामस्वReseller क्रियाओं में अपव्यय के स्थान पर मितव्ययता आती है। 
  5. भावी पूर्वानुमानों के आधार पर ही वर्तमान की योजनायें बनायी जाती हैं। पूर्वानुमान को नियोजन का सारतत्व कहते हैं।
  6. नियोजन का उद्देश्य संस्था के भौतिक And Humanीय संसाधनों में समन्वय स्थापित कर Humanीय संसाधनों द्वारा संस्था के समस्त संसाध् ानों को सामूहिक हितों की ओर निर्देशित करता है। 
  7. नियोजन में भविष्य की कल्पना की जाती है। परिणामों का पूर्वानुमान लगाया जाता है And संस्था की जोखिमों And सम्भावनाओं को जॉचा परखा जाता है। 
  8. नियोजन के परिणामस्वReseller संगठन में Single ऐसे वातावरण का सृजन होता है जो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करता है। 
  9. नियोजन में योजनानुसार कार्य को पूरा Reseller जाता है जिससे संगठन को लक्ष्यों की प्राप्ति अपेक्षाकृत सरल हो जाती है। 
  10. नियोजन, संगठन में स्वस्थ वातावरण का सृजन करता है जिसके परिणामस्वReseller स्वस्थ मोर्चाबन्दी को भी प्रोत्साहन मिलता है। 
  11. नियोजन समग्र Reseller से संगठन के लक्ष्यों, नीतियों, उद्देश्यों, कार्यविधियों कार्यक्रमों, आदि में समन्वय स्थापित करता है। 

नियोजन के प्रकार 

नियोजन समान तथा विभिन्न समयावधि व उद्देश्यों के लिए Reseller जाता है इस प्रकार नियोजन के प्रमुख प्रकार हैं :- 

  1. दीर्घकालीन नियोजन – जो नियोजन Single लम्बी अवधि के लिय े Reseller जाए उसे दीर्घकालीन नियोजन कहते हैं। दीर्घकालीन नियोजन, दीर्घकालीन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए Reseller जाता है। जैसे पूंजीगत सम्पत्तियों की व्यवस्था करना, कुशल कार्मिकों की व्यवस्था करना, नवीन पूंजीगत योजनाओं को कार्यान्वित करना, स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा बनाये रखना आदि। 
  2. अल्पकालीन नियोजन – यह नियोजन अल्पअवधि के लिय े Reseller जाता है। इसमें तत्कालीन Needओं की पूर्ति पर अधिक बल दिया जाता है। यह दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, तिमाही, छमाही या वार्षिक हो सकता है। 
  3. भौतिक नियोजन – यह नियोजन किसी उद्देश्य के भौतिक संसाधनों से सम्बन्धित होता है। इसमें उपक्रम के लिए भवन, उपकरणों आदि की व्यवस्था की जाती है। 
  4. क्रियात्मक नियोजन – यह नियोजन संगठन की क्रियाओं से सम्बन्धित होता है। यह किसी समस्या के Single पहलू के Single विशिष्ट कार्य से सम्बन्धित हो सकता है। यह समस्या, उत्पादन, विज्ञापन, विक्रय, बिल आदि किसी से भी सम्बन्धित हो सकता है। 
  5. स्तरीय नियोजन – यह नियोजन ऐसी All सगंठनों में पाया जाता है जहॉं कुशल प्रबन्धन हेतु प्रबंध को कर्इ स्तरों में विभाजित कर दिया जाता है यह उच्च स्तरीय, मध्यस्तरीय तथा निम्नस्तरीय हो सकते हैं। 
  6. उद्देश्य आधारित नियोजन – इस नियोजन में विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु नियोजन Reseller जाता है जैसे सुधार योजनाओं का नियोजन, नवाचार योजना का नियोजन, विक्रय सम्वर्द्धन नियोजन आदि। 

नियोजन के सिद्धान्त

नियोजन करते समय हमें विभिन्न तत्वों पर ध्यान देना होता है। इसे ही विभिन्न सिद्धान्तों में वर्गीकृत Reseller गया है। Second Wordों में नियोजन में सिद्धान्तों पर ध्यान देना आवश्यक है। 

  1. प्रााथमिकता का सिद्धान्त – यह सिद्धानत इस मान्यता पर आधारित है कि नियोजन करते समय प्राथमिकताओं का निर्धारण Reseller जाना चाहिए और उसी के According नियोजन करना चाहिए। 
  2. लोच का सिद्धान्त – प्रत्येक नियोजन लोचपूर्ण होना चाहिए। जिससे बदलती हुर्इ परिस्थितियों में हम नियोजन में आवश्यक समायोजन कर सकें। 
  3. कार्यकुशलता का सिद्धान्त- नियोजन करते वक्त कार्यकुशलता को ध् यान में रखना चाहिए। इसके तहत न्यूनतम प्रयत्नों And लागतों के आध् ाार पर संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहयोग दिया जाता है। 
  4. व्यापकता का सिद्धान्त – नियोजन में व्यापकता होनी चाहिए।नियोजन प्रबन्ध के All स्तरों के अनुकूल होना चाहिए। 
  5. समय का सिद्धान्त – नियोजन करते वक्त समय विशेष का ध्यान रखना चाहिए जिससे All कार्यक्रम निर्धारित समय में पूरे किये जा सकें And निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त Reseller जा सके। 
  6. विकल्पों का सिद्धान्त – नियोजन के अन्तगर्त उपलब्ध All विकल्पों में से श्रेष्ठतम विकल्प का चयन Reseller जाता है जिससे न्यूनतम लागत पर वांछित परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। 
  7. सहयोग का सिद्धान्त – नियोजन हेतु सगंठन में कायर्रत All कामिर्कों का सहयोग अपेक्षित होता है। कर्मचारियों के सहयोग And परामर्श के आधार पर किये गये नियोजन की सफलता की सम्भावना अधिकतम होती है। 
  8. नीति का सिद्धान्त – यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है नियोजन को प्रभावी बनाने के लिए ठोस And सुपरिभाषित नीतियॉं बनायी जानी चाहिए। 
  9. प्रतिस्पर्द्धात्मक मोर्चाबन्दी का सिद्धान्त – यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि नियोजन करते समय प्रतिस्पध्र्ाी संगठनों की नियोजन तकनीकों, कार्यक्रमों, भावी योजनाओं आदि को ध्यान में रखकर ही नियोजन Reseller जाना चाहिए। 
  10. निरन्तरता का सिद्धान्त – नियोजन Single गतिशील तथा निरन्तर जारी रहने वाली प्रक्रिया है। इसलिये नियोजन करते समय इसकी निरन्तरता को अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिये। 
  11. मूल्यांकन का सिद्धान्त – नियोजन हेतु यह आवश्यक है कि समय समय पर योजनाओं का मूल्यांकन करते रहना चाहिए। जिससे Need पड़ने पर उसमें आवश्यक दिशा परिवर्तन Reseller जा सके। 
  12. सम्प्रेषण का सिद्धान्त – प्रभावी सम्प्रेषण के माध्यम से ही प्रभावी नियोजन सम्भव है।नियोजन उसके क्रियान्वयन, विचलन, सुधार आदि के सम्बन्ध में कर्मचारियों को समय समय पर जानकारी दी जा सकती है और सूचनायें प्राप्त की जा सकती हैं। 

नियोजन की प्रक्रिया 

नियोजन छोटा हो या बड़ा, अल्पकालीन हो या दीर्घकालीन, उसे विधिवत संचालित करने हेतु कुछ आवश्यक कदम उठाने पड़ते हैं। इन आवश्यक कदमों को ही नियोजन प्रक्रिया कहते हैं। नियोजन प्रक्रिया के प्रमुख चरण हैं –

नियोजन की प्रक्रिया
  1. लक्ष्य निर्धारण करना – व्यावसायिक नियोजन का प्रारम्भ लक्ष्यों को निर्धारित करने से होता है। First संगठन का लक्ष्य निर्धारित Reseller जाता है। इसके पश्चात इसे विभागों और उपविभागों में विभाजित कर दिया जाता है। कर्मचारी जिस विभाग से सम्बन्धित हो, उसे उस विभाग के लक्ष्य के बारे में अवश्य ही जानकारी होनी चाहिए। लक्ष्य निर्धारण से ही योजनाओं का क्रियान्वयन सरलतापूर्वक Reseller जा सकता है। 
  2. पूर्वानुमान करना – लक्ष्य निर्धारण के पश्चात पूर्वानुमान की Need पड़ती है। व्यवसाय से सम्बन्धित विभिन्न बातों का पूर्वानुमान लगाना पड़ता है। जैसे – पूंजी की Need है? कितना उत्पादन करना है? कच्ची सामग्री कहॉं से क्रय करना उपयुक्त होगा? उत्पादन में कितना समय लगना चाहिए। उत्पादन लागत कितनी होनी चाहिए? किसे कितना पारिश्रमिक देना चाहिए? विक्रय मूल्य कितना हो? विक्रय कब, कहॉ, कितना Reseller जाना चाहिए? आदि इसके अतिरिक्त व्यावसायिक वातावरण से सम्बन्धित अन्य तथ्यों को भी पूर्वानुमान Reseller जाता है। इसमें तेजी, मन्दी, सरकारी नीतियॉं, वैश्विक दशायें आदि प्रमुख हैं। 
  3. सीमा निर्धारण करना – नियोजन की सीमायें भी होती हैं ऐसे नियोजन जिन पर संगठन का पूर्ण नियंत्रण होता है नियंत्रण योग्य सीमायें कहलाती हैं। इनमें कम्पनी की नीतियॉं, विकास कार्यक्रम कार्यालय तथा शाखाओं की स्थिति आदि आते हैं। अर्द्धनियंत्रण में ऐसे नियोजन को सम्मिलित Reseller जाता है जिन पर संगठन का पूर्ण नियंत्रण नहीं होता है, इसे आंशिक Reseller से ही नियंत्रित Reseller जा सकता है। इसे अर्द्ध नियंत्रण योग्य नियोजन कहते हैं।इसमें मूल्य नीति, विक्रय क्षेत्र,पारिश्रमिक, अनुलाभ आदि प्रमुख हैं। अनियंत्रण योग्य नियोजन वह है जिन पर संगठन का कोर्इ नियंत्रण नहीं होता है। इसमें देश की जनसंख्या, राजनीतिक वातावरण, कर दरें, भावी मूल्य स्तर, व्यापार चक्र आदि प्रमुख हैं। नियोजन की सीमाओं में प्रबन्धकों में परस्पर मतभेद हैं। यह संगठन And उसके लक्ष्यों पर ही निर्भर करता है कि उनके नियोजन की सीमायें क्या होनी चाहिए। 
  4. वैकल्पिक कार्यविधियों का विश्लेषण And मूल्यांकन  – नियोजन के इस चरण में वैकल्पिक कार्यविधियों का विश्लेषण And मूल्यांकन Reseller जाता है। विकल्पों के विश्लेषण से हमें यह जानकारी प्राप्त हो जाती है कि उपलब्ध विकल्पों में क्या गुण दोष हैं तथा इनके मूल्यांकन से हमें यह पता चलता है कि कौन सा विकल्प किन परिस्थितियों में हमें सर्वोत्तम परिणाम देगा। 
  5. श्रेष्ठतम विकल्प का चयन  – नियोजन के इस चरण में उपलब्ध विकल्पों के विश्लेषण And मूल्यांकन के पश्चात संगठन के लिए श्रेष्ठतम विकल्प का चयन Reseller जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि Single संगठन के लिए जो श्रेष्ठतम विकल्प हो वही Second संगठन के लिए भी श्रेष्ठतम विकल्प हो। अत: प्रत्येक संगठन Needनुसार श्रेष्ठ विकल्प का चयन करता है। 
  6. योजनाओं का निर्माण  – श्रेष्ठतम विकल्प के चयन के पश्चात योजनाओं और उपयोजनाओं का निर्माण Reseller जाता है। जिससे लक्ष्य को प्राप्त करने में सरलता हो। इन योजनाओं में समय, लागत, लोचशीलता, प्रतिस्पर्द्धा की नीति,आदि घटकों का भी ध्यान रखा जाता है। उपयोजनायें, मूल योजनाओं के क्रियान्वयन को सरल कर देती है। इसके पश्चात योजनाओं के सुचारू संचालन के उद्देश्य से क्रियाओं के निष्पादन का क्रम व समय भी निध्र्धारित कर दिया जाता है। योजनाओं के निर्माण के समय विभिन्न कर्मचारियों का सहयोग लिया जाता है जिससे योजनाओं का भली-भॉंति निर्माण हो सके। 
  7. अनुगमन  – योजनाओं के क्रियान्वयन के पश्चात उनकी सफलताओं का मापन Reseller जाता है और यदि आवश्यक हुआ तो योजनाओं में आवश्यक संशोधन Reseller जाता है। बदलती हुर्इ Needओं, परिस्थितियों And सम्भावित परिवर्तनों के सम्बन्ध में भी योजनाओं में आवश्यक संशोध् ान Reseller जाता है इस प्रकार अनुगमन में योजनाओं के क्रियान्वयन के पश्चात हमें जो परिणाम प्राप्त होते हैं। उन्हीं के According हम आवश्यक कदम उठाते हैं। 

नियोजन का महत्व 

नियोजन की अनुपस्थिति में व्यवसायिक सफलता प्राप्त करना असम्भव है। जिस प्रकार Single उद्देश्यहीन व्यक्ति जीवन में सफल नहीं हो सकता है उसी प्रकार बिना नियोजन के कोर्इ भी संगठन, व्यावसायिक या गैर व्यावसायिक, सफल नहीं हो सकता है। नियोजन ही संगठन का मार्गदर्शन करता है तथा मार्ग में आने वाली बाधाओं पर विजय प्राप्त करने में सहायक होता है। अर्नेस्ट सी. मिलर ने ठीक ही कहा है कि, ‘‘बिना नियोजन के कोर्इ भी कार्य केवल निष्प्रयोजन क्रिया होगी जिससे अव्यवस्था के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त न होगा। नियोजन का महत्व निम्नलिखित बिन्दुओ से और भी अधिक स्पष्ट होता है – 

  1. संगठन के उददेश्यों पर ध्यान केन्द्रित करना   – प्रत्येक व्यावसायिक संगठन के आधारभूत लक्ष्य होते हैं। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ही नियोजन Reseller जाता है। नियोजन से संगठन के प्रबंधकों का लक्ष्य की ओर ध्यान केन्द्रित रहता है, जिससे संगठन के प्रत्येक कर्मचारी जागरूक और सतर्क बने रहते हैं।संगठन के लक्ष्यों के प्रति All का ध्यान केन्द्रित रहने से अन्र्तविभागीय क्रियाओं में परस्पर समन्वय बना रहता है।इस प्रकार नियोजन विभिन्न क्रियाओं को व्यवस्थित करता है। नियोजन ही संगठन की नीतियों, क्रियाविधियों, कार्यक्रमों तथा अन्य विभागों में समन्वय स्थापित करता है। 
  2. लागत व्ययों को कम करना   – नियोजन के माध्यम से संगठन की प्रत्येक क्रिया निर्धारित ढंग से की जाती है। यह विधि उपलब्ध विकल्पों में श्रेष्ठतम होती है जिससे व्ययों में कमी आती है। संकट की परिस्थितियों में इनसे निपटने के लिए नियोजन का ही सहारा लेना पड़ता है। अनेकों व्यावसायिक व्याधियों के उपचार हेतु पूर्वानुमान का सहायक होता है। नियोजन से कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। जिससे लागत व्यय में कमी आ जाती है। 
  3. भविष्य की अनिश्चितता का सामना करने के लिए   – भविष्य सदा अनिश्चित रहता है। आज के व्यावसायिक वातावरण ने इस अनिश्चितता को और भी अधिक बढ़ा दिया है। इन अनिश्चितताओं पर पूर्ण Reseller से तो नहीं अपितु काफी हद तक नियोजन के माध्यम से निपटा जा सकता है। भविष्य के गर्भ में झांककर अनिश्चितताओं का उपचार करना ही तो नियोजन है। बाढ़, अग्निकाण्ड, भूकम्प, व्यापारिक उतार चढ़ाव, बदलती हुर्इ बाजार स्थिति कर व्यवस्थाओं में बदलाव आदि अनिश्चितता ही तो है जिन का नियोजन के माध्यम से सामना Reseller जा सकता है। 
  4. प्रबन्धकीय कार्यो में समन्वय स्थापित करना   – प्रबन्धकीय कार्यों में नियोजन का First स्थान है। बिना नियोजन के अन्य All प्रन्धकीय कार्यों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। नियोजन के माध्यम से ही समुचित नियंत्रण, समन्वय, निर्देशन, अभिप्रेरण, स्टाफिंग आदि किये जा सकते हैं। अत: All प्रबन्धकीय कार्यों में समन्वय स्थापित करने के लिए नियोजन Indispensable है। 
  5. मनोबल And अभिप्रेरण में वृद्धि   – Single कुशल नियोजन पद्धति के अन्तर्गत प्रत्येक स्तर पर प्रबन्धकों की भागिता And कर्मचारियों को प्रोत्साहित Reseller जाता है। जिससे मनोबल And अभिप्रेरण में वृद्धि होती है। कर्मचारियों को यह पता होता है कि कौन सा कार्य कब, कहॉं, कैसे, कितने समय में होना है? इससे उनके मनोबल में वृद्धि होती है। 
  6. उतावले निर्णयों पर रोक   – नियोजन के अन्तर्गत विभिन्न विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन Reseller जाता है। विकल्प के चयन के समय परिस्थितियों, समस्याओं, कठिनाइयों व मिव्ययता का पर्याप्त ध्यान रखा जाता है। इससे उतावले निर्णयों पर रोक लगती है जिससे अनावश्यक हानि से संगठन Windows Hosting रहता है। प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति में सुधार नियोजन से संगठन की प्रतिस्पर्धा क्षमता में अभिवृद्धि होती है। नियोजन के माध्यम से ही Single संगठन प्रतियोगिता का सामना करने में सफल हो सकता है। कुशल नियोजन से ही Single संगठन अपने प्रतिद्वन्दी संगठन पर विजय प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार नियोजन से प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में सुधार होता हैं। 
  7. सृजनात्मकता को प्रोत्साहन  – नियोजन में भविष्य के गर्भ में झांककर बेहतर विकल्पों का चयन Reseller जाता है। इससे संगठन की सृजनात्मकता को प्रोत्साहन मिलता है। शोध, नवप्रवर्तन आदि सृजनात्मकता के प्रोत्साहन का ही परिणाम है। नियोजन Human जीवन के All पहलुओं पर सम्बन्धित होता है। प्रत्येक संगठन की सफलता और विफलता नियोजन पर ही निर्भर करती है। कुशल नियोजन व्यावसायिक संगठन ही नहीं अपितु Human जीवन, समाज And राष्ट्र को भी प्रगति के पथ पर अग्रसर करता है। नियोजन के महत्व के संदर्भ में जितना भी कहा जाय कम है। 

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