धारणा का Means, परिभाषा And प्रकार

धारणा का Means

धारणा मन की Singleाग्रता है, Single बिन्दु, Single वस्तु या Single स्थान पर मन की सजगता को अविचल बनाए रखने की क्षमता है। ‘‘योग में धारणा का Means होता है मन को किसी Single बिन्दु पर लगाए रखना, टिकाए रखना। किसी Single बिन्दु पर मन को लगाए रखना ही धारणा है। धारणा Word की व्युत्पत्ति संस्कृत के ‘धृ’ धातु से हुर्इ है जिसका Means होता है- आधार, नींव।’’ धारणा Meansात ध्यान की नींव, ध्यान की आधारशिला। धारणा परिपक्व होने पर ही ध्यान में प्रवेश मिलता है। धारणा की अनेक परिभाषाएँ मिलती हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

 महर्षि पतंजलि- देशबन्धश्चित्तस्य धारणा।। पा.यो.सू. 3/1 

Meansात देश विशेष में चित्त को स्थिर करना धारणा कहलाता है। स्पष्ट है कि महर्षि ने भी मन को Singleाग्र करने की प्रक्रिया को ही धारणा कहा है जिसमें मन या चित्त को किसी स्थान विशेष में बांधकर रखने की प्रक्रिया ही धारणा है। यहाँ देश के दो भेद किए गए हैं- बाह्य देश जैसे किसी मूर्ति, Ultra site, चन्द्रमा आदि तथा अंतर देश जैसे शरीर के अंदर के कुछ विशिष्ट स्थान जैसे “ाट्चक्र आदि। धारणा से संबंधित विभिन्न व्याख्याकारों ने जो व्याख्या की है वह इस प्रकार है-

महर्षि व्यास- नाभिचक्रे, हृदयपुण्डरीके, मूर्धिन ज्योतिषि, नासिकाग्रे, जिàाग्र इत्यादि देशों में अथवा बाह्य विषय में वृत्ति मात्र से बंधना स्थिर करना धारणा कहलाता है।

इस सूत्र में देश बन्ध पद का अभिप्राय यह है कि चित्तवृत्ति को शरीर के अंदर किसी स्थान विशेष जैसे नाभिचक्र, हृदय कमल, नासिका का अग्रभाग, भृकुटि, जिàाग्र में अथवा आकाश, Ultra site, चन्द्रमा आदि देवता में से किसी Single में अन्य All जगह के विषयों से विरक्त हो Single ही विषय पर चित्त की वृत्ति को स्थिर करने का नाम ही धारणा है। कुछ अन्य ग्रंथों में धारणा की परिभाषा इस प्रकार है-

त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद्-
 पंचभूतमये देहे भूतेष्वेतेषु वंचषु। मनसो धारणं एतद युक्तस्य च यमादिभि:। 

Meansात चित्त का निश्चलीकरण भाव होना ही धारणा है। शरीरगत पंचमहाभूतों में मनोधारण Reseller धारणा भवसागर को पार कराने वाली है।

योगतत्वोपनिषद (69/72)- पंचज्ञानेन्द्रियों के विष्ज्ञय में ब्रह्म या आत्मा की भावना होना ही धारणा है 

दर्शनोपनिषद्- शरीरगत पंचभूतांश का बाह्य पंचभूतों में धारण करना ही यथार्थ धारणा है। 

तेजोबिन्दूपनिषद्- मन के विषयों में ब्रह्मभाव का अवस्थित होना ही धारणा है। 

कठोपनिषद्- तां योगमिति मन्यते स्थिरामिन्दिय धारणम्। 2/3/11 

 Meansात मन और इंद्रियों का दृढ़ नियंत्रण ही धारणा योग है।

वसिष्ठ संहिता- इसमें धारणा की चार परिभाषाएँ दी गयी हैं। Meansात योगशास्त्र के ज्ञाता योगी लोग यम आदि गुणों से युक्त अपने में मन की स्थिरता को धारणा कहते हैं। अन्य तीन परिभाषाओं में क्रमश: Single में बाह्याकाश And अंतराकाश का हृदय में चिंतन करने को धारणा कहा गया है। Single में पंचमहाभूतों का बीज मंत्रों के साथ और Single में पांच देवताओं का चिंतन करना धारणा कहा गया है।

स्वामी विवेकानन्द- धारणा का Means है मन को देह के भीतर या उसके बाहर किसी स्थान में धारण या स्थापन करना। मन को स्थान विशेष में धारण करने का Means है मन को शरीर के अन्य स्थानों से हटाकर किसी Single विशेष अंश के अनुभव में बलपूर्वक लगाए रखना।

आचार्य श्रीराम शर्मा- धारणा का तात्पर्य उस प्रकार के विश्वासों की धारणा करने से है जिनके द्वारा मनोवांछित स्थिति को प्राप्त Reseller जा सकता है। भौतिक संपदायें कुपात्रों को भी मिल जाती हैं परंतु आत्मिक संपदाओं में Single भी ऐसी नहीं है जो अनाधिकारी को मिल सके। स्वामी निरंजनानंद सरस्वती- वह वस्तु या प्रत्यय जिस पर मन दृढ़तापूर्वक आधारित होता है, योग की परंपराओं में धारणा राजयोग का अंतरंग अभ्यास है जो मानसिक अनुशासन का मार्ग है।

स्वामी शिवानंद- विचारों के सामुदायीकरण को धारणा कहते हैं। मानसिक प्रवृत्तियों को केवल Single पदार्थ पर स्थिर और प्रतिष्ठापित करना धारणा है। जिस विधि में मन और मन की प्रवृत्तियाँ Singleाग्र कर दी जाती हैं। उनमें चंचलता और विक्षेप नहीं रहता उसे (या उस विधि को) धारणा कहा जाता है।

धारणा के प्रकार- 

धारणा के प्रकारों का वर्णन विभिन्न ग्रंथों And विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग प्रकारों का वर्णन Reseller है- स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के According – इन्होंने चार प्रकार की धारणा बतायी है जिनके कर्इ उपभेद हैं जो क्रमश: इस प्रकार हैं –

1. औपनिषदिक धारणा- 

इसमें स्वामी जी ने 6 प्रकार की धारणा बतार्इ है-

  1. बाह्याकाश 
  2. अंतराकाश 
  3. चिदाकाश 
  4. आज्ञाचक्र धारणा 
  5. हृदयाकाश धारणा 
  6. दहराकाश धारणा 

2. लय धारणा- 

यह दो प्रकार की है-

  1. मूलाधार And विशुद्धि दृष्टि 
  2. लोक दृष्टि 

3. व्योम पंचक धारणा- 

इसमें पांचों सूक्ष्म आकाशों की अनुभूति अवचेतन तथा उसके परे जगत की होती है। ये पांच हैं-

  1. गुणरहित आकाश 
  2. परमाकाश 
  3. महाकाश 
  4. तत्वाकाश 
  5. Ultra siteाकाश 

4. नादानुसंधान धारणा- 

स्थूल से सूक्ष्म आकाशों की अनुभूति अवचेतन तथा उसके परे ध्वनि कंपन की खोज धारणा का संपूर्ण भाग है जिसे नादानुसंधान कहते हैं। (धारणा दर्शन, पृ.423)

वसिष्ठ संहिता में described धारणा- इसमें पांच तत्वों की धारणा बतायी गयी है-
 भूमिरापस्तथा तेजो वायुराकाशमेव च।
 एतेशु पंचवर्णानि धारण धारणा स्मृता:।। 4/4

Meansात Earth, जल, तेज, वायु And आकाश इनमें पांच बीज वर्णों (ल, व, र, य, ह) का चिंतन करना धारणा है। इसे इस प्रकार समझ सकते हैं- महाभूत स्थान बीजाक्षर देवता Earth पांव से जानु तक लं ब्रह्म जल जानु से मूलाधार तक वं विष्णु अग्नि मूलाधार से हृदय तक रं रूद्र वायु हृदय से भू्रमध्य तक यं महत् आकाश भू्रमध्य से ब्रह्मरंध्र तक हं अध्यवत 

घेरण्ड संहिता के According – इसमें पंचतत्वों के आधार पांच प्रकारों की धारणा का History है- पार्थिवी धारणा, आम्भसी धारणा, अग्नि धारणा, वायवीय धारणा व आकाशी धारणा। शिव संहिता तथा अन्य कर्इ उपनिषदों में भी पंच तत्व के आधार पर पांच प्रकार की धारणा बतायी गयी है।

धारणा का परिणाम And महत्व- 

धारणा से Singleाग्रता बढ़ती है और Singleाग्रता से अनेक कार्य संपन्न होते हैं क्योंकि हमारी मानसिक ऊर्जा Single बिन्दु पर होती है। आध्यात्मिक And लौकिक दोनों प्रकार के कार्यों के लिए धारणा आवश्यक है। स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के According कोर्इ भी छोटा से छोटा कार्य हो, उसे Singleाग्रता से करने की Need होती है। बिना Singleाग्रता के हम कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते। जबकि Singleाग्र मन वाला व्यक्ति कोर्इ भी कार्य अधिक दक्षतापूर्वक कर सकता है। अत: दैनिक जीवन के साथ ही साथ आध्यात्मिक साधना के लिए धारणा आवश्यक है। हम मन की तुलना बल्ब से कर सकते हैं। Single बिजली के बल्ब का प्रकाश All दिशाओं में फैलता है, ऊर्जा बिखरती रहती है। आप उस बल्ब से पांच फुट की दूरी पर ताप का अनुभव नहीं कर सकते। यद्यपि उस बल्ब के मध्य स्थित फिलामेंट में पर्याप्त ताप विद्यमान होगा। इसी प्रकार मन में प्रच्छन्न Reseller में अपरिमित शक्ति है परन्तु यह All दिशाओं में बिखरी हुर्इ है जो धारणा से केन्द्रित होती है।

वसिष्ठ संहिता (4/11-15) में धारणा की महत्ता के सन्दर्भ में बताया गया है कि –

  1. Earth तत्व की धारणा से Earth तत्व पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। 
  2. जल तत्व की धारणा से रोगों से छुटकारा मिलता है। 
  3. अग्नि तत्व की धारणा करने वाला अग्नि से नहीं जलता। 
  4. वायु तत्व की धारणा से वायु के समान आकाश विहारी होता है। 
  5. आकाश तत्व में पांच पल की धारणा से जीव मुक्त होगा और Single वर्ष में ही मल-मूल की अल्पता होगी।

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