तुगलक वंश का पतन के कारण और परिणाम

भारत में इस्लाम का आगमन और प्रसार
मुसलमान कई कारणों से अपनी इस्लामी संस्कृति के साथ भारत में आ
बसे थे। उनका मूल स्थान भारत में न होकर कहीं और था। भारत में उनका
पदार्पण Fight, शक्ति और व्यापार के माध्यम से हुआ था। इस्लाम के आगमन
और प्रसार की विस्तृत Discussion हम निम्न प्रकार कर सकते हैं

भारत पर अरबों का आक्रमण और उसका परिणाम

प्राचीन काल से ही भारत विदेशियों के लिये आकर्षण का केन्द्र रहा है।
भारत और पश्चिमी देशें के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बहुत प्राचीन काल से है।
यहां की धन-सम्पन्नता ने सदैव से विदेषियों को आक्रमण के लिये प्रोत्साहित
Reseller है। भारत पर यवन, हूण, शक, कुशाण और मंगोलों ने आक्रमण Reseller;
किन्तु ये भारत में अपनी सत्ता स्थापित करने में आंशिक Reseller से सफल हुए थे।

जिस उत्साह और लगन के साथ तीव्र गति से इस्लाम धर्म का प्रचार And
प्रसार हुआ, उतने अल्प काल में विश्व में किसी भी धर्म का प्रचार And प्रसार
नहीं हुआ। यही कारण है कि इस्लाम का प्रचार And प्रसार कुछ क्षेत्रों तक ही
सीमित नहीं रहा वरन् विश्व के अनेक क्षेत्रों तक इसका विस्तार हुआ।
मुहम्मद बिन कासिम द्वारा सिंध विजय की वास्तविकता तिथि 712 ई.
है, किन्तु अरबों के लिये यह भारत का अभियान प्रारम्भिक नहीं था।

भारत को जिन मुसलमान आक्रमणकारियों का सबसे First सामना करना पड़ा, वे सब
तुर्क न होकर अरब थे और जो महान पैगम्बर के देहावसान के बाद संसार भर
में ‘स्वर्ग और नरक’’ की कुंजी लेकर अपने धर्म का प्रचार करने के लिये
अपनी रेगिस्तानी जन्मभूमि से निकल पड़े थे। खलीफा हजरत उमर के समय
से ही भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर अरबों के धावे होते आये थे।

खलीफा उमर के शासनकाल (सन् 636-37 ई.) में आमे ान नामक स्थान से भारत के
समुद्र तटवर्ती प्रदेश लूटने का पहला अभियान शुरू Reseller गया था। इन
प्रारम्भिक हमलों का उद्देश्य केवललचाल लूटमार करना ही था, न कि राज्य विस्तार
करना। इन हमलों में कठिनाइयों का अनुभव करने के बाद खलीफा ने इस
ओर से मुख मोड़ लिया।

उमर के बाद खलीफाओं ने समुद्री हमलों की फिर से याजे नायें बनाने
का अभियान शुरू Reseller। इसी अभियान में अब्दुल्ला-बिन-उमर-बिन-रबी ने
643-44 ई. में किरमान पर आक्रमण Reseller तथा सीस्तान अथवा सिविस्तान
की ओर बढ़कर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इस प्रकार उस
बलूचिस्तान और उसके तटवर्ती प्रदेश मकरान पर अरबों का अधिकार हो
गया। जिसकी सीमा सिंध में लगी हुई थी। खलीफा की ललचाइ दृष्टि सिंध
पर पड़ी और आक्रमण के लिये कारण भी उपस्थित हो गये।

खलीफा अलवलीद के समय में हज्जाब बड़ा ही योग्य और शक्तिशाली
King था। अत: खलीफा ने इराक,ईरान And मकरान आदि का शासन कार्य
हज्जाज को सौंप दिया था। पूर्व की ओर साम्राज्य विस्तार के लिये संधि पर
आक्रमण करना आवश्यक समझा गया और उन्हें शीघ्र ही Single अवसर भी मिल
गया। सिंहल (लंका) में कुछ अरबी माझियों की मृत्यु हो गयी।

लंका के King ने उनकी स्त्रियों तथा बच्चों को उनकी प्रार्थना पर अब
भेजने का प्रबन्ध कर दिया और उन्हें अरबी जहाजों पर चढ़ाकर भारत के
समुद्री तटवर्ती मार्ग से अरब भेजा गया।7 देवल के पास इन जहाजों पर छापे
पड़े और स्त्रियों बच्चों सहित उनकी सम्पत्ति आदि को उतार लिया गया।
कुछ लोग जो किसी प्रकार बच निकले थे, जब इसकी सूचना हज्जाज को दी
तो वह तत्कालीन सिंध के King दाहिर से यह मांग की कि बंदियों को शीघ्र
मुक्त करके उसके पास भेज दिया जाय। दाहिर उसकी मांग को पूरा नहीं
Reseller। इस पर हज्जाज कासिम के नेतृत्व में Single अभियान भेजा। नि:सन्देह
हज्जाज के लिये संधि पर आक्रमण करने के लिये Single बहाना मिल गया और
उसने Single सेना (इतना उन स्त्रियों-बच्चों के उद्धार के लिये नहीं, जितना
सिन्ध को जीतने And इस्लाम के प्रसार के लिये) भेजी।

भारत पर दुर्भाग्य के बादल मंडरा रहे थे। दुर्भाग्यवश उस समय Single और घटना घट गयी। मकरान
के कुछ अपराधी And विद्रोही भागकर सिंध में दाहिर के कारण में आ गये।
उन्हांने दाहिर के नेतृत्व में अरबों के विरूद्ध Single सगं ठन बना लिया। इस
घटना से हज्जाज और उत्तेजित हो उठा। उसके क्रोध की सीमा न रही और
उसने अपने साहसी भतीजे मुहम्मद-बिन-कासिम को सिंध पर आक्रमण करने
के लिये भेजा। यह सही है कि सिंध पर आक्रमण के लिये परिस्थितियों ने योग
तैयार कर दिया; किन्तु इसके मूल में इस्लाम के प्रसार की भावना अधिक
तर्कसंगत प्रतीत होती है।

इस्लाम के प्रसार की भावना ने भारत की ओर अरबों को अग्रसारित
करने में सहायता दी। मुहम्मद-बिन-कासिम मुल्तान की राह ली। अनेक
संकटों और अवरोधों को पार करता हुआ वह मुल्तान के द्वार पर जा पहुंचा
और आत्मसमर्पण के लिये बाध्य Reseller। नगर में भीशण रक्तपात हुआ तथा यहां
लटू में इतनी सम्पत्ति प्राप्त हुर्इ कि अरबों ने इसका नाम स्वर्ण नगर रख
दिया


मुहम्मद-बिन-कासिम के लौटने के बाद तथा उसके मृत्यु का समाचार
सुनकर सिंध के सरदारों ने मुस्लिम शासन के जुए को उतार फेंकने का प्रयास
Reseller। खलीफा उमर द्वितीय (717-720 ई.) ने सिंध के Kingों को अपने
अधीन स्वतंत्रता देने का शर्त पर आश्वासन दिया कि वे इस्लाम स्वीकार कर
लेपरिस्थितियों “का दाहिर के पुत्र जयसिंह ने इस्लाम स्वीकार कर लिया।
किन्तु, हिषाम की खिलाफत (724-743 ई.) में इस्लाम को जयसिंह ने छोड़
दिया आरै जुनैद के विरूद्ध Fight की घोशणा कर दी। Fight में जयसिंह Defeat
हुआ और बन्दी बना लिया गया। इस प्रकार सिंध पर से हिन्दू राज्य का अन्त
हो गया। सिंध पर से हिन्दू राज्य का अन्त भारत को पराधीनता की बेड़ी में
आबद्ध होने की अशुभ घड़ी थी।

दक्षिण भारत के साथ अरब व्यापारियों का सम्बन्ध बहुत पुराना है।
लेकिन, वह सम्बन्ध व्यापार तक ही सीमित था। उत्तर भारत पर अरबों का
प्रसार Single ऐसी घटना है जिसने History को Single नया मोड़ प्रदान Reseller। यह
बात अब स्पष्ट होती जा रही थी कि अरबों का उद्देश्य केवल व्यापार करना
नहीं है, बल्कि भारत को अपने आधिपत्य में लेने का भी है।

अधिकांश Historyकार सुबक्तगीन के पुत्र और भारतवर्ष के महान
विजेता महमूद को मुस्लिम History का First ‘सुल्तान’ होने का श्रेय प्रदान
करते हैं। महमूद की विजयों ने Single नये ढंग के साम्राज्य का उदय Reseller
जिसे सुल्तनत कहते हैं और जो यद्यपि खलीफा द्वारा मान्यता प्राप्त था किन्तु
वास्तव में विजयों पर आधारित था। महमूद इस्लाम धर्म के प्रसार के प्रति
अत्यन्त संवेदनशील था। गोर में इस्लामी सभ्यता के सांस्कृतिक And
राजनीतिक प्रभाव सुल्तान महमूद गजनवी (998-1030) के समय से आरंभ हुये
जिसके विषय में यह कहा जाता है कि उसने अपने 1010-11 के अभियान के
पश्चात गोरियों को इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों की
शिक्षा देने के लिये शिक्षक
नियुक्त किये।

महमूद गजनवी का भारत पर आक्रमण 1000 ई. में आरंभ हुआ, जब
उसने लाभधन के पास कुछ किलों को जीता। 1001 ई. में उसे हिन्दू माही वंश
के King जयपाल को पेशावर के पास हुये Fight में पराजित Reseller। जयपाल का
उत्तराधिकारी उसका पुत्र आनन्द पाल बना। आठ वर्शों के बाद पुन: महमूद
का आक्रमण हुआ और उसने सिंधु क्षेत्र को पार करके आन्नद पाल को
पराजित Reseller। यह Fight 1009 ई. में वहिन्द में हुआ। महमूद ने पंजाब और
पूर्वी राजस्थान पर बार-बार आक्रमण करके राजपूत प्रतिरोध को नश्ट Reseller।
1025-26 मेंउसने प्रसिद्ध सोमनाथ (गुजरात) पर आक्रमण को मंदिर लूटने
का मौका मिल गया।

इस प्रकार महमूद ने अपने 17 अभियानों से अफगानिस्तान के पूर्व से भारत में स्थित गंगा-यमुना घाटी तक रौंदने में
सफल हो गया। दूसरी ओर वह गुजरात में स्थित सोमनाथ मंदिर तक लूट
लिया किन्तु उसके समस्त अभियानों का राजनीतिक परिणाम यह हुआ कि
राबी के तक का भूभाग भारत से निकलकर गजनी साम्राज्य में जा मिला।
महमूद ने कवे ल उन कवियों के प्रति उदारता दिखायी, जिन्होंने उसकी
प्रषंसा में कवितायें लिखी। लेकिन अन्य विद्वानों के प्रति वह निश्ठुर बना रहा।
अलबरूनी, जो 1017 ई. में ख्वारिज्म के शाह के पतन के बाद बन्दी बना
लिया गया था, को काफी कम पा्रेत्साहन मिला। इसी के सरं क्षण काल में
फारसी भाषा की नींव पर दौसी के शाहनामा से पड़ी। फारसी मुस्लिम
संस्कृति का दूसरा भंडार बन गयी। भातर पर आक्रमण के साथ ही इस्लामी
संस्कृति ने भी प्रवेश Reseller। इसके आक्रमण से इस्लाम के प्रसार को काफी
बल मिला।

गोरियों के अभियानों का उद्देश्य धार्मिक बताया जाता है। उपलब्ध
descriptionों के सावधान विष्लेशण से यह धारणा निर्मूल साबित होती है। इसमें
कोई संदेह नहीं कि सैनिक मुसलमान थे किन्तु वे इस्लाम के प्रतिनिधि नहीं
थे। संभव है कि कभी-कभी उनके कार्य धार्मिक प्रवृत्तियों से प्रेरित होते होंगे
किन्तु अधिकतर वे राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित हाते थे। मुहम्मद गोरी के
नेतृत्व में भारत पर लगभग 1178 से 1206 ई. तक निरन्तर आक्रमण होते रहे।
इस आक्रमण का राजनीतिक परिणाम यह हुआ कि अब मुस्लिम साम्राज्य रावी
से लेकर गंगा-यमुना घाटी सहित ब्रºमपुत्र की घाटी तक फैल गया। इसी
मुस्लिम साम्राज्य पर उसके निर्माता की 1206 में मृत्यु होने पर Single स्वतंत्र
Indian Customer मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना हुर्इ।

गोर-आक्रमण से भारतवर्ष की सांस्कृतिक गतिविधि And भाषा पर भी
व्यापक प्रभाव पड़े। दिल्ली में तुर्क सत्ता स्थापित हो जाने के बाद फारसी भाषा
को Kingीय स्वReseller प्रदान Reseller गया।
बारहवीं शताब्दी के भारतवर्ष का Single समग्र सर्वेक्षण करने के बाद
हम निर्विवाद Reseller से इस निश्कर्श पर पहुंचते हैं कि वर्ण व्यवस्था और छूआछूत
की विचारधारा ने ही देश की प्रगति रोक रखी थी और सामाजिक अराजकता
तथा राजनीतिक विशमता को उत्तर भारत में जन्म दिया। तुर्क विजय ने इस
प्रणाली पर भीशण कुठाराघात Reseller और स्वाभाविक Reseller से ऐसे तत्वों की
सहायता प्राप्त की जो पिछली सामाजिक व्यवस्था से पीड़ित थे। तुर्क सत्ता
का भारतवर्ष में दीर्घकाल तक स्थापित रहना इस्लामी प्रसार का प्रतिफल था।

 दक्षिण भारत में इस्लाम का प्रसार

अरब व्यापारी व्यापार के सिलसिले में Indian Customer समुद्र तट (श्रीलंका) हाते
हुये पूर्वी द्वीप समूह तथा चीन तक चले जाते
था चूँकि भारत बीच में पड़ता
था, अत: भारत से इनका सम्बन्ध बहुत पुराना था।25 व्यापारिक सम्बन्ध होने के
कारण ये पष्चिमी समुद्र तट पर आया-जाया करते थे। Indian Customer King और
प्रजा भौतिक समृद्धि की वृद्धि के लिए अत्यन्त उत्सुक थे।26
अत: इन अरब व्यापारियों को राज्य की ओर से सुविधायें प्रदान की गयी
और प्रजा ने भी इनके साथ सहानुभूति दिखाई। ये मुस्लिम व्यापारी भारत के
दक्षिणी तट पर तीन नगरों में आबाद हुये अरब First मालावार तट पर
Sevenवीं शताब्दी के अन्त में लगभग जा बसे। स्टरक ने भी मोपला लोगों के
वृतान्त में इसी बात का History Reseller।

मुस्लिम प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। दक्षिण भारत में धार्मिक
संघर्शो ने लोगों के आस्था को डगमगा दिया था। राजनीतिक Reseller से भी यह
समय अस्थिरता और उथल-पुथल का था। इस्लाम लोगों के सामने
सीधे- सादे सिद्धान्तो रीति-रिवाजों, और विश्वास के Reseller में प्रकट हुआ और
लोग इसकी तरफ आकर्षित हुए।

मालावार का चेरामन पेरूमल King ने नये धर्म को स्वीकार कर लिया।
King का धर्म परिवर्तन लोगों के दिमाग पर जबरदस्त प्रभाव डाला। वह
अपने राज्य में मुस्लिम धर्म प्रचार को All प्रकार की सुविधायें प्रदान Reseller।
जमोरिन के काल में मुस्लिम प्रभाव का और अधिक विस्तार हुआ। दक्षिण भारत
के अनेक नगरों में इस्लाम का प्रचार और प्रसार तेजी के साथ हुआ।
दसवीं शताब्दी के प्रारम्भ होने तक भारत के पूर्वी तट पर भी इस्लाम
का प्रचार और प्रसार आरम्भ हो गया था और बहुत से मुस्लिम पीर और
औलिया इन दोनों में अपने धर्म का प्रसार करने में तत्पर हो गये थे।

इसमें सन्देह नहीं है कि महमूद गजनवी के आक्रमण से First भारत के
अनेक प्रदेशों में इस्लाम का प्रसार हो गया था और इस्लाम फूल और फल
रहा था। उस समय सिंध और दक्षिण के समुद्र तट के प्रदेश ऐसे क्षेत्र थे जहाँ
मस्जिदों की मीनारें Single नये धर्म की सत्ता की सचू ना दिया करती थीं। उत्तरी
भारत में भी इस्लाम का प्रसार हो रहा था और कुछ स्थानों पर मसु लमानों ने
अपना Single महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था। महमूद गजनवी के आक्रमण के
First मुसलमानों के भारत में प्रवेश के लिए भारत का द्वार खुल गया था।
मुहम्मद गजनवी के निरन्तर आक्रमणों से भारत का द्वार भी इस्लाम के
प्रचार के लिए खुल गया और मुहम्मद गोरी के विजय के बाद भारत में इस्लाम
का राज्य स्थापित हो गया।

भारत के विभिन्न भागों में इस्लाम के अनुयायी अब दिखाई पड़ने लगे।
अब उन्हें राजकीय संरक्षण भी मिलने की आषा दिखलाइ देने लगी। इसके
First भी हिन्दू Kingों ने मुसलमानों को अपने राज्य में संरक्षण प्रदान Reseller
था। महुम्मद उल्फ Single कहानी के द्वारा हिन्दू Kingओं और मुि स्लम व्यापारियों
के सम्बन्ध पर प्रकाश डालता है। जब काम्बे के हिन्दुओं ने मुस्लिम
व्यापारियों पर आक्रमण कर दिया तो सिद्धराज (1094-1143) ने पूरे मामले की
जांच करवायी। कुछ हिन्दू Kingओं ने मुस्लिम लोगों की प्रषासनिक कार्यों में
भी नियुक्त Reseller। उदाहरण के लिए सोमनाथ के King ने कई मुस्लिम
अधिकारियों को अपने यहाँ रखा था।

 इस्लाम के प्रसार में मुस्लिम संतों की भूमिका

भारत में इस्लाम के प्रचार आरै प्रसार में मुस्लिम संतों और फकीरों ने
भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । नवीं शताब्दी में अबहिजनी-रवि-बिन
साहब-अल-आदी-अल-बसरी सिंध आये और यही 106 हिजरी में इनकी मृत्यु
हो गयी।
10वीं शताब्दी में मंसूर-अल-हल्लाज ने समुद्री मार्ग द्वारा भारत की
यात्रा की और उत्तरी भारत तथा तुर्किस्तान होते हुए वापस लौट गये। 11वीं
शताब्दी में बाबा रिहान बगदाद से दरवेषों के साथ भडोच आये।
ग्यारहवीं शताब्दी में शेख इस्लाइन और अब्दुल्ला यमनी नाम के फकीर
भारत में धर्म प्रचार के लिए आये। 12वीं शताब्दी में नूर सतागर ईरानी भारत
आये और उन्होंने गुजरात के अछूत हिन्दुओं को इस्लाम का अनुयायी बनाया।
कुनबी, खरवार और कोरी जातियों को मुसलमान बनाने में इन्होंने महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई।इस काल में यद्यपि मुस्लिम राज-सत्त्ाा की स्थापना अभी तक नहीं हो
पायी थी और इन मुस्लिम संतों को किसी प्रकार के राजनैतिक शक्ति का
सहारा प्राप्त नहीं था, फिर भी इन फकीरों को इस्लाम का प्रचार करने में
काफी सफलता प्राप्त हुयी क्योंकि वे उच्च चरित्र वाले थे तथा अनेक प्रकार
की साधनाओं में प्रवीण थे। इस युग तक भारत के हिन्दुओं में संकीर्ण जाति
प्रथा विकसित हो चुकी थी और जनसाधारण के Single बहुत बड़े भाग को तुच्छ
भाग को हीन समझा जाता था। शूद्रों को समाज में उपेक्षा की दृष्टि से देखा
जाता था।

इस्लाम के सामाजिक समानता से आकृष्ट होकर अधिकांश मुद्रा ने
हिन्दू समाज को छोड़कर इस्लाम को स्वीकार करने के लिए लालायित हो
उठे। इसका लाभ उठाकर मुस्लिम संतों ने अपना निवास इन लोगों के
नजदीक बनाया और इनके प्रति सहानुभूति जताकर इस्लाम का प्रचार अच्छे
ढंग से Reseller। महमूद गजनवी के आक्रमण के बाद बहुत से मुस्लिम संत और
फकीर भारत आये।

इनमें अली-बिन-अल-हुजविरी का नाम विशेष Reseller से Historyनीय है
जो गजनी के रहने वाले थे और अनेक मुस्लिम देशों के भ्रमण के बाद लाहौर
आये और वहीं 465 या 469 हिजरी सन् में ‘मृत्यु को प्राप्त हो गये। लेख
इस्माइल बुखारी और फरीद्दीन अतार भी भारत आये ख्वाजा मुइनुद्दीन
चिष्ती 1197 में अजमरे आये और 1234 तक वहीं रहे।
लेख मुइनुद्दीन चिश्ती अपने जीवन काल में इतने लोकप्रिय हो गये थ
कि इन्हें मुहम्मद गोरी ने सुल्तान उल-हिन्द Meansात हिन्द का आध्यात्मिक गुरू
की उपाधि से विभूषित Reseller था।

13वीं शताब्दी में शेख जलालुद्दीन बुखारी उच्छ में भवालपुर में रहने
लगे तथा बाबा फरीद पाकपट्टन में। 14वीं शताब्दी में अब्दुल करीम-अल-
जिली जो इब्नुल अरबी के आलोचक और इन्सान-ए-कामिल के लेखक थे
भारत की यात्रा की।
पीर समुद्र सैयद युसूफउद्दीन और इमामशाह ने भारत को अपना कर्म
स्थल बनाया। इसके अतिरिक्त सैयद माह मीर, कुतुबुद्दीन बख्तियार काजी,
बाबा उद्दीन जकारिया, जलालुद्दीन सूर्खपोष, मुहम्मद गोस आदि ने भारत
भूमि पर इस्लाम के प्रचार And प्रसार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके
व्यक्तिगत सम्पर्क और प्रभाव से इस्लामी दर्शन और रहस्यवाद का प्रसार
हुआ।

इस प्रकार मुसलमान व्यापारी फकीर और सूफी शांतिपूर्वक देश के
विभिन्न भागों में जा पहुंचे तथा कई महत्वपूर्ण भागों में जा बसे। डा0
आरनाल्ड का कहना है कि मुसलमान धर्म की सरलता को बहुत से लेखक
महत्व देते हैं और उनका कहना है कि इसकी बुद्धिग्राहता And समान बन्धुता
के आदर्श के स्वार्थपरता के कारण अभिजात वर्ग द्वारा दबाये गये कुछ हिन्दुओं
के वर्गो को बहुत आकर्षित Reseller।

 इस्लाम धर्म का प्रसार में सत्ता की भूमिका

जब तक भारत में मुस्लिम सत्त्ाा की स्थापना नहीं हो पायी थी तब तक
पीरों और फकीरों द्वारा शांतिपूर्वक इस्लाम का प्रचार होता रहा। किन्तु, जब
मुहम्मद गोरी ने भारत को विजित करके अपने प्रतिनिधि King के Reseller में
कुतुबुद्दीन ऐबक को नियुक्त Reseller तो Indian Customer History ने भी Single करवट
ली। मुहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद जब कुतुबुद्दन ऐबक King बना तो
भारत में Single नये King वंश की नींव पड़ गयी।

मुस्लिम सत्त्ाा की स्थापना के बाद इस्लाम धर्म के प्रसार और प्रचार के
लिए अब तक जो शांतिपूर्वक तरीके अपनाये गये उनमें भी परिवर्तन हुआ और
Indian Customer जनता को इस्लाम का अनुयायी बनाने के लिये मुस्लिम Kingों ने
बल प्रयोग करना शुरू कर दिया। भारत में इस्लाम का प्रचार अधिकांष
इस्लाम के सिद्धान्तों की सरलता के कारण न होकर उसके राजधर्म होने के
कारण तथा तलवार के बल पर फैलाये जाने के कारण हुआ।51 भारत में
मुसलमान राज्य धार्मिक राज्य ही बना रहा।

मुसलमानों के अतिरिक्त जातियों पर राज्य की ओर से अनेक प्रतिबन्ध
लगाये गये थे। बलात् धर्म परिवर्तन करने का आदेश भी राज्य की ओर से
दिया गया था। लोगों को इस्लाम बनाने के लिए ‘जजिया’ कर लगाया गया।
यह कर केवल गैर मुसलमानों को ही देना पड़ता था। हनीफी धर्मषास्त्रियों के
According, मुसलमान भिन्न जातियों को अपने प्राणों की रक्षा के लिए जजिया
देना पड़ता है।

कुछ विद्वानों का मत है कि जजिया कर राज्य की आय का Single
महत्वपूर्ण स्रोत था।53 इसलिए मुस्लिम Kingों ने हिन्दूओं को धर्म परिवर्तनों के
लिए विवश नहीं Reseller। क्योंि क इससे राज्य की आय कम जो जाती थी।54
सत्य जो कुछ भी हो यह नि:सन्देह है कि यह केवल गैर मुसलमानों पर
ही लगाया जाता था और यह हीनता का परिचायक था। जजिया लगाने के
उद्देश्य यही था कि जजिया के आर्थिक भार और भेदभाव बर्ताव से अधिकांष
हिन्दू किसी न किसी दिन इस्लाम स्वीकार कर ही लंगे। अनेक मुसलमान
इतने धर्मान्ध थे कि वह नये मंदिरों का निर्माण और पुराने मंदिरों का मरम्मत
नहीं होने देते थे।

इल्तुतमिश के राज्यकाल में उलेमाओं ने मिलकर मांग की थी कि
हिन्दुओं को कुरान के आदेश के According इस्लाम या मृत्यु चुनने को कहा
जाय। अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में काजी मुगिसुद्दीन ने भी यह
मांग की थी। उसने कहा था चूंकि हिन्दू पैगम्बर के कट्टर शत्रु हैं। इसलिए
खुदा ने स्वयं हिन्दुओं का पूर्ण दमन करने के लिए आदेश दिया है। पैगम्बर ने
कहा है वे या तो इस्लाम स्वीकार करें या नहीं तो उन्हें कत्ल कर दिया
जाय।

कुतुबुद्दीन मुबारकषाह के शासन का वर्णन करते हुए इब्नबतूता ने
लिखा है कि इस्लाम ग्रहण करने के इच्छुक हिन्दू को सुल्तान के सामने
उपस्थित Reseller जाता था और सुल्तान उसकी बहुमूल्य वस्त्र और कंकण प्रदान
करता था।

फिरोज तुगलक के शासन काल में राज्य द्वारा धर्म परिवर्तन को
प्रोत्साहन Reseller गया और लोगों को इस्लाम ग्रहण करने के लिए प्रलोभन दिया
जाने लगा। सुल्तान के “ाब्दों से उसके विचारों की पुश्टि होती है, जो हिन्दू
इस्लाम धर्म ग्रहण करेगा उसे जजिया कर से मुक्त कर दिया जायेगा। जनता
के कानों में इसकी खबर पहुंची आरै बहुत बड़ी सख्ंया में हिन्दू उपस्थित हो
गये और उनको इस्लाम ग्रहण करने का सम्मान प्रदान Reseller गया।
विधर्मी प्रजाजनों को इस्लाम गह्र ण करने के लिये वह उत्साहित करता
है जो इस्लाम ग्रहण कर लेते, उनको ‘जजिया’ कर से मुक्त कर देता था।
Single ब्राह्मण को जिसने अपने पूर्वजों का धर्म त्यागना अस्वीकार कर दिया था,
यह दोश लगाकर जीवित जलवा दिया कि वह मुसलमानों को सत्धमर् से विलग
होने को प्रवृत्त्ा करता है।

फिरोज कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने अपने शासनकाल में मंछिरों
को गिराया तथा विधर्मियों के नेताओं का वध Reseller जो दूसरों को भी बुरार्इ
की ओर घसीटते थे और इन मंदिरों के स्थान पर मस्जिद बनवार्इ। केवल
Fight या सैनिक अभियानों के समय ही नहीं बल्कि शांतिकाल में भी हिन्दुओं के
मंदिर गिरा दिये जाते थे और उनकी देव मूर्तियों के टुकड़े- टुकड़े कर दिये
जाते थे।

फिरोज तुगलक ने पूर्ण “ाांति के समय महल नामक Single गांव पर
आक्रमण कर दिया उसी समय इस गांव के तालाब के किनारे इस गांव की
हिन्दू जनता पूजा के लिए Singleत्र हुए थे और Single मेला भी लगा हुआ था।
फिरोज तुगलक ने पूजा अर्चना बन्द कर दी। इतना ही नहीं उसने मंदिरों का
भी विध्वंस कर डाला और उपासकों का कत्ल कर देने का हुक्म दे दिया।
फिरोज की भाँति सिकन्दर लोदी ने भी हिन्दुओं को इस्लाम धर्म स्वीकार
करने के लिए प्रलोभन दिया। इनका मुख्य लक्ष्य यह था कि किसी भी तरह
हिन्दअु ों को इस्लाम का अनुयायी बनाया जाय और All प्रकार का दबाव
डालकर मुसलमान बना लिया जाय। र्इश्वरी प्रसाद ने लिखा है ‘‘हिन्दुओं पर
राज्य की ओर से इस्लाम लादा जाने लगा।

मध्यकालीन मुसलमान King कभी-कभी हिन्दुओं को बड़ी संख्या में
मुसलमान बना लते थे। कश्मीर के बुतशिकन सिकन्दर ने हजारों हिन्दुओं को
मुसलमान बना लिया था और जिन्होंने अपना धर्म परिवर्तन नहीं Reseller उन्हें
राज्य से निकाल दिया था।
बंगाल के जलालुद्दीन (1414-1430) ने भी सैकड़ों हिन्दुओं को बलात्
मुसलमान बना लिया था और जो बाकी रहे थे उन पर खूब अत्याचार किये
थे।

इस प्रकार सल्तनत काल में मुस्लिम King बलपूर्वक इस्लाम स्वीकार
कराने में नहीं हिचकिचाते थे। इसका कारण इस्लाम जो कुछ लोगों तक ही
सीमित था Kingों के पदापातीय दृष्टिकोण के कारण अधिक लोगों में फैला
तथा भारत के विस्तृत भू-भाग में इसका प्रचार हुआ।
मुगल काल में बाबर और हुमायूँ में भी धार्मिक असहिष्णुता विद्यमान थी।
लेकिन, सल्तनत कालीन Kingों की भाँति विशाल पैमाने पर नहीं। मुगल
काल में अकबर Single धर्मसहिष्णु King था आौर उसने All धर्मावलम्बियों को
अपने धर्म को मानने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की। वह विभिन्न धर्मों को Single
ही लक्ष्य की ओर ले जाने वाले विभिन्न मार्ग मानने लगा। वह इस परिणाम
पर भी पहुंच गया था कि प्रत्येक धर्म के गहन और जनसुलभ अंग होते है।
अकबर के धार्मिक सहिश्णुता की नीति थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ
औरंगजेब के काल तक चलती रही। जहांगीर और शाहजहां यद्यपि अकबर की
भाँति धर्म-सहिष्णु नहीं थे फिर भी उनमें उतनी कट्टरता नहीं थी जितनी कि
औरंगजेब में। जहांगीर के सम्बन्ध में रामप्रसाद त्रिपाठी का कहना है कि वह
अपने पिता से अधिक इस्लाम परायण था और अपने पुत्र खुर्रम से कम।
कट्टर मुि स्लमों को राजी रखने के लिये ही वह कभी-कभी अकबर द्वारा
स्थापित, और अपने से मान्य, सहिश्णुता के सिद्धान्तों से विचलित हो जाता
था।

दुर्भाग्यवश उसके शासन काल में अनजाने ही धार्मिक अनाचार के बीच
Single बार फिर बोये गये। Single उद्धारक दार्शनिक पिता और Single राजपूत रानी
का पुत्र होते हुये भी वह इस्लाम धर्म को मानता था और उसने सिक्कों पर
अकबर द्वारा हटाये गये धार्मिक सिद्धान्तों को फिर से जारी Reseller। शाहजहां के सम्बन्ध में बनारसी प्रसाद सक्सेना का कहना है कि
सहिश्णुता से हटकर घड़ी की सूई असहिष्णुता की ओर मुड़ गयी थी। सम्राट
के आग्रह से हिन्दुओं को समझा बुझाकर या जबरिया मुसलमान बनाने का
क्रमिक प्रयास आरम्भ हुआ। नौकरी And उपहारों का प्रलोभन देकर उनको
धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य Reseller जाता था। हिन्दुओं को अपने सम्बन्धियों
को मुसलमान बनने से रोकने की सख्त मनाही थी।

प्रिंगले केनेडी का कहना है ‘‘जो अकबर ने प्राप्त Reseller था और जिसकी
जहांगीर और शाहजहां’ ने अपने अनेक दुर्गुणों के होते हुए भी रक्षा की थी, वह
Meansात् अपनी हिन्दू प्रजा का स्नेह औरंगजेब ने खो दिया। वह दार-उल-हरब
(काफिर देश) को दार-उल-इस्लाम (सत्य धर्म का देश) बनाना चाहता था।
उसका उद्देश्य यह था कि हिन्दू बाध्य होकर इस्लाम स्वीकार कर लें और इस
प्रकार भारत Single इस्लामी राज्य बन जाय।

इस प्रकार Kingों के सहयागे से भारत में इस्लाम फूलता और फलता
रहा। राजकीय संरक्षण प्राप्त होने के कारण इस्लाम का विकास संभव हो सका
फिर भी ये कहना समीचीन प्रतीत होता हे कि इतने प्रयासों के बावजदू भी
इस्लाम धर्म में भारत के अधिसख्ं य हिन्दुओं ने स्वीकार नहीं Reseller बल्कि उनके
अन्दर विद्वेश की भावना में वृद्धि ही हुई।
असहनीय कष्टों को सहकर भी भारत की हिन्दू जनता अपने धर्म के
प्रति आस्थावान बनी रही। यह उसके धैर्य और सहनषीलता का सर्वोत्तम
उदाहरण कहा जा सकता है।

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