गुणात्मक अनुसंधान क्या है ?

अनुसन्धान विधियों को मुख्यत: दो Resellerों में बॉटा जा सकता हे- तार्किक प्रत्यक्षवाद (Logical Positivism) तथा गोचर खोज (Phenomenological Inquiry) । शैक्षिक शोधों में पहला Reseller ज्यादा प्रयुक्त हुआ है। परन्तु विगत Single दशक से शैक्षिक परिस्थितियों से सम्बन्धित समस्याओं, समाधान प्रक्रियाओं And व्यवस्थाओं से मुद्दों को स्पष्ट And उजागर करने के लिये गोचर खेाज उपागम पर ज्यादा बल दिया जा रहा है। शोध के इन्हीं उपागमों के आधार पर शोध को तीन भॉगों में बॉटा जा सकता है- मात्रात्मक शोध, गुणात्मक शोध And क्रियात्मक शोध । वास्तव में शोध के मात्रात्मक तथा गुणात्मक शोधों मे न तो केार्इ स्पष्ट अन्तर है और न ही दोनों Single Second के पूरक हैं। दोनों शोधों में मात्रात्मक And गुणात्मक प्रदत्तों का प्रयोग हो सकता है। इसीलिये अब तक गुणात्मक शोध की कोर्इ सर्वमान्य परिभाषा नहीं बन सकी है। गुणात्मक अनुसन्धान के विषय में जॉन डब्ल्यू बेस्ट तथा जेम्स वी कान ने कहा है-‘‘क्या है ? का वर्णन करने के लिए गुणात्मक descriptionात्मक अनुसन्धान अमात्रात्मक विधियों का प्रयोग करता है। गुणात्मक descriptionात्मक शोध प्रत्यक्ष चरों के मध्य के अमात्रात्मक सम्बन्धों को जानने के लिये व्यवस्थित प्रक्रियाओं का प्रयोग करता है।’’

गुणात्मक अनुसन्धान के लिये व्यवहार में कर्इ पद प्रयुक्त किये जाते हैं, जैसे – नृ-शास्त्र शोध (Enthnographic Research) व्यष्टि अध्ययन शोध (Case Study Research) घटना-क्रिया विज्ञानपरक शोध (Phenomenological Research) तथा संCreationवाद (Constructivism), सहभागी प्रेक्षण (Participant Observation) आदि।

गुणात्मक अनुसन्धान में जब नृ: शास्त्रीय शोध Word का प्रयोग होता है, तब घटित घटनाओं के स्थान पर वर्तमान की घटनाओं का अध्ययन Reseller जाता है। इसमें शोधकर्ता या शोधकर्ती का दृष्टिकोण खोज के गोचर (Phenomena) के प्रति अधिक व्यैक्तिक तथा मृदु होता है। वह व्यक्तियों की अभिवृत्तियों, पसन्दों या व्यवहारों के कारणों तथा अभिप्रेरणाओं के प्रति समझ पैदा करने के लिये व्यैक्तिक लेखों, असंरचित साक्षात्कारों, तथा सहभागी प्रेक्षण विधियों का प्रयोग करता है। इस प्रकार के अनुसन्धान में संकलित प्रदत्तों का उपयोग परिकल्पनाओं की जॉच के स्थान पर परिकल्पनाओं के निर्माण में Reseller जाता है।

इस प्रकार से कहा जा सकता है कि गुणात्मक अनुसन्धान गहनतापूर्वक Reseller जाने वाला Single ऐसा व्यस्थित प्रक्रियाओं वाला अनुसन्धान है जिसमें गुणात्मक प्रदत्त संकलन की विधियों का प्रयोग कर परिकल्पनात्मक निश्कर्शों को मात्रात्मक या गुणात्मक Reseller में प्राप्त Reseller जाता हेै तथा जिसका सम्बन्ध वर्तमान गोचर से होता है।

गुणात्मक अनुसन्धान की विशेषतायें –

गुणात्मक अनुसन्धान के सम्बन्ध में उपरोक्त बातों से उसकी विशेषताओं को सरलता से जाना जा सकता हैे। प्रमुख विशेषतायें हैं-

  1. गुणात्मक अनुसन्धान में आगमनात्मक (Inductive) उपागम का प्रयोग होता है।
  2. इसमें शोधकर्ता या शोधकर्ती की अहं भूमिका होती है।
  3. गुणात्मक अनुसन्धान का केन्द्र बिन्दु विशिष्ट परिस्थिति, संस्थायें, समुदाय या Human समूह होता है।
  4. यह मात्रात्मक प्राप्तांको, मापन तथा सांख्यिकीय विश्लेषण के स्थान पर निहित कारणों, व्याख्याओं और निहित Meansों पर बल देता है।
  5. यह संरचित उपकरणों के स्थान पर व्यैक्तिक अनुभवों केा ज्यादा बल देता है।
  6. यह कम घटनाओं या कम समूह या कम सदस्य संख्या पर आधारित हेाता है।
  7. इसकी आधार सामाग्रियॉ साक्षात्कार, प्रत्यक्ष प्रेक्षण तथा लिखित अभिलेख हेाते हैं।
  8. इसमें संगठनात्मक प्रक्रियाओं का अध्ययन Reseller जाता है।
  9. मात्रात्मक अनुसन्धान में जहॉ सार्वभौमिक सामान्यीकरण Reseller जाता है वहीं गुणात्मक अनुसन्धान विशिष्ट सन्दर्भ के साथ केन्द्रित रहता है।
  10.  गुणात्मक अनुसन्धान ज्ञान के विशिष्ट, सही या सत्य के मार्ग पर विष्वास नहीं करता बल्कि परिस्थितिजन्य ज्ञान पर बल देता है।

गुणात्मक अनुसन्धान के उद्द्देश्य And प्रसंग –

  1. अभिवृत्ति, पूर्वाग्रह, पसंद, संगठनात्मक वातावरण आदि जैसे विस्तृत Means वाले पदो के लिए गहन समझ विकसित करना।
  2. ऐसे सन्दर्भों (Context) को समझना जिसमें कुछ व्यवहार अभिव्यक्त होते हैं या कुछ घटनायें घटित होती है।
  3. Single प्रत्याशित घटना की पहचान करना।
  4. किसी प्रक्रिया का समझना।
  5. निमित्तीय (causal) व्याख्या विकसित करना।
  6. विशिष्ट प्रकार के व्यवहार या विशिष्ट घटना को बढ़ाने वाले जिम्मेदार कारकों केा जानने के लिये गहन अध्ययन करना।
  7. किसी घटना या व्यवहार के लिये जिम्मेदार विभिन्न कारकों के मध्य के अन्र्तसम्बन्धों का अध्ययन करना।

गुणात्मक अनुसन्धान के इन उद्देश्यों को फ्रायड द्वारा विकसित मनोविश्लेषण के सिद्धान्त तथा पियाजे द्वारा विकसित संज्ञात्मक विकास सिद्धान्त द्वारा समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने गुणात्मक अनुसन्धान का प्रयोग Reseller था। गुणात्मक अनुसन्धान की विषेताओं तथा उद्देश्यों के आधार पर गुणात्मक अनुसन्धान के प्रसंगो (Themes) को निर्धारित Reseller जा सकता है। गुणात्मक अनुसन्धान के प्रसंग (Theme of the Qulitative Research ) गुणात्मक अनुसन्धान के प्रसंगों को पैटन (Patton) ने दस प्रसंगों के Reseller में इंगित Reseller है। पैटन द्वारा बताये गये प्रसंग  है-

  1. नैसर्गिक अध्ययन (Naturalistic Inquiry)Meansात पूर्व निर्धारित नियमों के आधार पर प्राप्त निष्कर्षों के बिना, बिना किसी नियन्त्रण या बाधा के, बिना किसी हस्तक्षेप के, वास्तविक सांसारिक परिस्थितियों में अनसुलझी प्रकृतिजन्य परिस्थितियों में अध्ययन।
  2. आगमनात्मक विश्लेषण (Inductive Analysis)Meansात सैद्धान्तिक आधार पर परिकल्पनाओं के निर्माण And जॉच के स्थान पर खोज के लिये प्राप्त विस्तृत तथा विशिष्ट प्रदत्तों के महत्वपूर्ण वर्गों, विभागों तथा अन्र्तसम्बन्धों को समझना।
  3. समग्र परिप्रेक्ष्य (Holistic Perspective)Meansात किसी घटना के अंशों या विवृत चरों के रेखीय या कार्यकारण सम्बन्धों के स्थान पर अध्ययन विषय की सम्पूर्ण घटना (Whole phenomenon) को जटिल व्यवस्था के Reseller में अध्ययन।
  4. गुणात्मक प्रदत्त (Qualitiative Data)Meansात Human के व्यैक्तिक लेखों, अनुभवों, प्रत्यक्ष भाशणों, व्याख्याओं आदि का विस्तृत And गहन अध्ययन।
  5. व्यक्तिगत सम्पर्क And अन्र्तदृष्टि (Personal contact and Insight) Meansात शोधाथ्र्ाी, व्यक्तियों या घटनाओं के प्रत्यक्ष सम्पर्क में रहकर व्यैक्तिक अनुभव And अन्र्तदृष्टि के आधार पर व्यक्तियों के व्यवहारों या घटना के प्रति समझ विकसित करता है।
  6. अभिकल्पगत नम्यता (Design Flexibility)Meansात शोधाथ्र्ाी के लिए शोध अभिकल्प का चुनाव करने में नम्यता रहती है। वह परिस्थिति के According अभिकल्पों का निर्माण And उनमें परिवर्तन कर सकता है।
  7. तदनुभूतिजन्य तटस्थता (Empathic Neutrality)विषय वस्तु की NeedनुReseller शोधाथ्र्ाी अपने व्यैक्तिक अनुभव And अन्र्तदृष्टि का प्रयोग अध्ययन में करता है परन्तु वह व्यैक्तिक पूर्वाग्रहों या पूर्व निर्धारित धारणाओं केा उससे अलग रखते हुए घटना का वस्तुनिष्ठ अध्ययन करता है
  8. सन्दर्भगत सूक्ष्म ग्राहिता (Context Sensivity) Meansात् शोधाथ्र्ाी स्थान And समय की दृष्टि से घटना या परिस्थितियों के सामाजिक, ऐतिहासिक And सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के प्रति सन्वेदनशील होता है।
  9. विशिष्ट व्यष्टि अभिमुखीकरण (Unique case Orientation)Meansात् शोधाथ्र्ाी व्यक्तिगत अध्ययन से शोध की तुलना कर प्रत्येक व्यष्टि को विशिष्ट तथा अद्वितीय मानता है।
  10. गतिशील व्यवस्थायें (Dynamic System )Meansात शोधाथ्र्ाी प्रक्रिया के प्रति सावधान रहता है तथा सम्पूर्ण संस्कृति या Single व्यक्ति पर केन्द्रित रहते हुए परिवर्तनों को स्थिर मानकर कार्य करता है।

गुणात्मक अनुसन्धान का महत्व

गुणात्मक अनुसन्धान का शोध में महत्वपूर्ण स्थान है। भले ही शैक्षिक अनुसन्धान में गुणात्मक अनुसन्धान अब तक उपेक्षित रहा हो, लेकिन पिछले दशक से विद्धानों ने शोध की इस विधा पर जोर देना प्रारम्भ कर दिया है। सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में गुणात्मक अनुसन्धान का प्रयोग तेा बहुत First से ही होता रहा है। गुणात्मक अनुसन्धान की विशेषतायें And उद्देश्य से इसके महत्व को आंका जा सकता है।गुणात्मक अनुसन्धान के मूलत: तीन व्यावहारिक उपयोग हैं –

  1. ग्राह या समझने योग्य सिद्धान्तों की स्थापना करने में।मूल्यांकित किये जा रहे किसी उत्पाद या किसी कार्यक्रम की उपयोगिता केा सामान्य Reseller से आंकलित करने के स्थान पर वर्तमान के अभ्यास या प्रयासों को सुधारने की ओर अग्रसर संCreationत्मक मूल्यांकन के संचालन में।
  2. शोधार्थियों के साथ सहयोगात्मक शोधों (Collaborative Research) में संलग्नता।

इन व्यवहारिक उपयोग से भी गुणात्मक अनुसन्धान की महत्ता और भी बढ़ जाती है। इस प्रकार से गुणात्मक अनुसन्धान के महत्व को  बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट Reseller जा सकता है-

  1. सामाजिक And शैक्षिक क्षेत्र के लिए सिद्धान्तों के निResellerण की दृष्टि से।
  2. शोधार्थियों में शोध के प्रति गहनता बढ़ाने की दृष्टि से।
  3. सांख्यिकीय जटिलताओं के स्थान पर शोधार्थियों के अनुभव And अन्र्तदृष्टि के विकास की दृष्टि से।
  4. किसी घटना के वास्तविक चित्रण की दृष्टि से।
  5. अभिवृत्ति, पसंद तथा व्यवहारों को विस्तृत And स्पष्ट Reseller प्रदान करने की दृष्टि से।
  6. भावी अनुसन्धानों को दृष्टि प्रदान करने की दृष्टि से।
  7. परिकल्पनाओं के निर्माण की दृष्टि से।
  8. शेाधार्थियों में आत्मविश्वास And उसकी विश्वसनीयता बढ़ाने में।
  9. शोध में यान्त्रिकता को न्यून करने की दृष्टि से।
  10. विभिन्न समस्याओं के समाधान And कार्यक्रमों को सफल बनाने की दृष्टि से।
  11. किसी कार्यक्रम के संCreationत्मक मूल्यांकन की दृष्टि से।
  12. परस्पर सम्बद्ध शोधों में संलग्नता की दृष्टि से।

शैक्षिक क्षेत्र में गुणात्मक अनुसन्धान के शोध विषयक उदाहरण:-

  1. मध्यान्ह भोजन योजना अन्य राज्यों के सापेक्ष तमिलनाडु में सुचारू Reseller से क्यों चल रही है ? 
  2. शैक्षिक नीतियों को प्रभावित करने के लिये शिक्षक संगठन क्या युक्तियाँ प्रयोग में लाते है ? 
  3. शैक्षिक गुणवत्ता उन्नयन की दृष्टि से शिक्षक-अभिभावक सहयोग को कैसे बढ़ाया जा सकता है ? 
  4. विद्यालयों के प्रधानाचार्य किन कार्यों में अपना समय अधिक व्यतीत करते हैं ? 
  5. परीक्षाओं के बारे में क्या सोचते हैं ? 
  6. प्रधानाचार्यो की भूमिका के विषय में शिक्षक वर्ग क्या धारणायें रखते हें? 
  7. प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक अध्ययन-अध्यापन को प्रभावी बनाने के लिये क्या प्रयास करते हैं ? आदि।

गुणात्मक अनुसन्धान के प्रकार

(1) घटना-क्रिया विज्ञानपरक अध्ययन –

घटना क्रिया विज्ञान एडमण्ड हयूसर्ल (Edmund Husserl) के द्वारा प्रतिपादित माना जाता है। बाद में इसके विकास में मार्टिन हेडेगर (Martin Heidegger) ने भी अपना योगदान दिया। यह Single दार्षनिक परम्परा है। घटना-क्रिया विज्ञान, Humanीय अनुभव के शोध केा मुख्य आधार मानता है। इस विधि में शोधार्थी अपने जीवन संसार के अनुभवों को परिलक्षित करता है। इसमें प्रतिभागियों को किसी घटना के बारे में अपने अनुभव को व्यक्त करने का अवसर दिया जाता है तब शोधार्थी प्रतिभागियों के प्रत्यक्षीकरण का विश्लेषण उनके प्रत्यक्षीकरण की समानता तथा भिन्नता के आधार पर करता है।

(2) हयूरिस्टिक अध्ययन –

हयूरिस्टिक Word ग्रीक भाषा के हयूरिस्को Word से बना है जिसका Means ‘to discover’ मैं खोजता हूँ’ होता है। यह आन्तरिक या गहरार्इ से खोज की प्रक्रिया केा इंगित करता है, जो विभिन्न अनुभवों के Means And प्रकृति को जानने तथा भावी अन्वेशण And विश्लेषण की विधियों तथा प्रक्रियाओं के विकास से सम्बिन्ध् ात होता है। हयूरिस्टिक अध्ययन Single प्रक्रिया हेै जो किसी Single समस्या या Single ऐसे प्रश्न से प्रारम्भ होता हैे जिसका समाधान या उत्तर शोधार्थी प्राप्त करना चाहता है। हयूरिस्टिक अध्ययन की छ: कलायें (phases) होती है –

  1. प्रारम्भिक संलग्नता (The initial engagement)
  2. प्रकरण और प्रश्न में डूबना (Immersion)
  3. अनुभवों को Singleत्रित करना (Incubation)
  4. उद्घाटित करना (Illumination)
  5. Meansापन (Expliration)
  6. सृजनात्मक संष्लेषण के Reseller में शोध के चरम पर पहुँचना (culmination)

(3) -शास्त्रीय अध्ययन –

नृ-शास्त्रीय शोध का जन्म Human शास्त्र विषय से हुआ है। इसका प्रमुख उद्देश्य सामाजिक समूहों का अध्ययन और इसकी सांस्कृतिक विशेषताओं का description देना है। इस विधि में शोधाथ्र्ाी अध्ययन समूह के सदस्य के Reseller सम्मिलित होकर समूह से आन्तरिकता स्थापित कर उनके साथ लम्बे समय तक रहकर समूह के साक्ष्यों की क्रियाओं, वार्तालापों, सांस्कृतिक विशेषताओं तथा घटनाओं पर सूक्ष्म दृष्टि रख कर Single विस्तृत description तैयार करता है। इस शोध में शोधार्थी की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है तथा वस्तुनिष्ठता को बनाये रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है। Single नृ-शास्त्रीय अध्ययन के पद होते हैं –

  1. प्रारम्भिक अन्वेषण (Initial Exploration)
  2. भौगोलिक अवस्थाओं का अध्ययन (Study of the geographical conditions)
  3. प्रेक्षण की योजना बनाना (Planning for the observation)
  4. सामाजिक अवस्थाओं में स्वयं संलग्न होना (Getting into the social setting)
  5. अवस्थाओं या परिस्थितियों का प्रेक्षण करना (Making observation about the setting)
  6. इनके बारे में अन्तिम निश्कर्ष निकालना (Finally drawing conclusions about it)

(4) व्यष्टि अध्ययन –

इसमें किसी घटना से सम्बन्धित कुछ इकाइयों या व्यष्टियों को चुनकर उनका गहन अध्ययन Reseller जाता है। Single व्यष्टि या इकार्इ Single व्यक्ति, Single संस्था, Single सामाजिक समूह, Single समुदाय अथवा Single ग्राम हो सकता है। इसमें शोधाथ्र्ाी को पक्षपात रहित होकर कार्य करना होता है।

(5) दार्शनिक अध्ययन –

शैक्षिक शोधों में दार्षनिक अध्ययनों की Single महत्वपूर्ण भूमिका है। इस प्रकार के अध्ययन Human जीवन तथा उसके संसार की आधारभूत मान्यताओं के निर्धारण में महत्वपूर्ण होती है। वास्तव में दर्शन शैक्षिक नीतियों तथा प्रक्रियाओं के निर्धारण केा प्रभावित करता है।

प्रत्येक व्यक्ति का अपना Single दर्शन होता है जो उसके दृष्टिकोण, शिक्षा And उसकी नीतियों तथा धारणाओं के निर्माण में सहायक होता है।इसलिये व्यक्ति या देश या समाज के दर्शन के अध्ययन के लिये दार्षनिक शोध किये जाते हैं । इस निधि में विश्लेषणात्मक चिन्तन, अन्र्तदृष्टि तथा विचारों के संष्लेषण की क्षमताओं के आधार पर निश्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं।

गुणात्मक अनुसन्धान में पद्रत्त सगंह्र के उपकरण

गुणात्मक अनुसन्धानों में सूचनाओं या प्रदत्तों के संकलन के लिए मुख्यत: उपकरणों का उपयोग Reseller जाता है –

  1. साक्षात्कार शिक्षाशास्त्र जैसे व्यावहारिक तथा सामाजिक शोधों में साक्षात्कार तकनीक Single महत्वपूर्ण तकनीक है। साक्षात्कार को मौखिक प्रश्नावली के भी Reseller में जाना जाता है। साक्षात्कार मुख्यत: दो प्रकार का होता है- संरचित या मानकीकृत साक्षात्कार तथा असंरचित या अमानकीकृत साक्षात्कार। गुणात्मक अनुसन्धानों में प्रदत्त संकलन के उपकरण में इसका प्रयोग बहुतायत Reseller जाता है। परन्तु गुणात्मक अनुसन्धान में असंरचित साक्षात्कार का प्रयोग ज्यादा होता है।
  2. प्रेक्षण प्रेक्षण मुख्यत: दो प्रकार से Reseller जाता है- सहभागिक तथा असहभागिक Meansात अध्ययन के सदस्य बनकर Reseller जाने वाला प्रेक्षण तथा समूह से बाहर रहकर Reseller जाने वाला प्रेक्षण। गुणात्मक अनुसन्धानों में दोनों प्रकार के प्रेक्षणों का प्रयोग Reseller जा सकता है परन्तु अनुसन्धान केा विष्वसनीय बनाने के किए सहभागिक प्रेक्षण ज्यादा उपयुक्त माना जाता है।
  3. अभिलेखीय विश्लेषण इसमें अभिलेखों के प्रदत्त के Reseller में लेकर उनका विश्लेषण कर समान And विपरीत कथन या Wordों केा लेकर संष्लेषण कर निश्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को ही गुणात्मक अनुसन्धान के Single उपकरण के Reseller में व्यक्त Reseller जाता है। अभिलेख के अन्तर्गत व्यक्ति या घटना से सम्बन्धित लिखित साक्ष्य Meansात संवाद, लेख, भाषण, या दस्तावेजों केा लिया जाता है।
  4. दृश्य – श्रव्य प्रदत्त विष्लेश्ेशण इस प्रकार के उपकरण में सूचनाओं केा निम्न के द्वारा प्रदत्त के Reseller में संकलित कर उनका विश्लेषण Reseller जाता है- श्रव्य टेप, दृश्य टेप, फोटोग्राफ, कलाकृतियाँ, चित्र, पेन्टिंग, संज्ञानात्मक मानचित्र आदि।
  5. केन्द्रित समूह इसमें विभिन्न समूहों से किसी घटना के बारे में असंरचचित साक्षात्कार के द्वारा प्रतिक्रियायें Singleत्रित कर उनका विश्लेषण Reseller जाता है। उपरोक्त अतिरिक्त समीपस्थ अध्ययन, अंग गतिक अध्ययन तथा स्ट्रीट नृ-शास्त्रीय अध्ययन भी गुणात्मक अनुसन्धान के उपकरण के Reseller में जाने जाते हैं।

गुणात्मक अनुसन्धानों में प्रदत्त  विश्लेषण की तकनीकें

गुणात्मक अनुसन्धानों में असम्भाविता प्रतिदर्शन विधियों जैसे -कोटा प्रतिदर्शन, प्रासंगिक प्रतिदर्शन, उद्देश्यपूर्ण प्रतिदर्शन, क्रमबद्ध प्रतिदर्शन, हिमकंदुक प्रतिदर्शन, संतृप्त प्रतिदर्शन, तथा घनीभूत प्रतिदर्शन विधियों का प्रयोग कर शोध् ा की इकाइयों का चयन उद्देश्यानुReseller में कर पूर्व described उपकरणों का प्रयोग करके प्रदत्त संकलित किये जाते हैं। परन्तु प्रदत्तों की प्रकृति प्रयुक्त उपकरण या तकनीक पर निर्भर करती है। फिर भी ज्यादातर गुणात्मक अनुसन्धानों में प्रदत्तों की प्रकृति गुणात्मक Reseller में होती है। इस प्रकार से प्राप्त प्रदत्तों के विश्लेषण के तीन स्तर होते हैं –

  1. प्रदत्तों का संगठन
  2. प्रदत्तों का description And
  3. प्रदत्तों का निर्वचन

प्राप्त प्रदत्तों को विभिन्न आधारों, वगोर्ं, तथा विशेषताओं के आधार पर संगठित कर उनका description प्रस्तुत Reseller जाता है तथा प्रदत्तों के निर्वचन के लिये गुणात्मक अनुसन्धानों में तीन प्रकार की विश्लेषण तकनीकों केा प्रयोग Reseller जा सकता है-

  1. विषय-वस्तु विश्लेषण तकनीक
  2. निगमनात्मक विश्लेषण तथा
  3. तार्किक विश्लेषण

इन तीनों तकनीकों में विषयवस्तु विश्लेषण तकनीक का प्रयोग व्यवहारिक विज्ञानों में इस तकनीक की विषेशताओं के आधार पर बहुतायत से Reseller जाता है। निगमनात्मक विश्लेषण Humanशास्त्र में ज्यादा प्रयुक्त की जाती है जबकि तार्किक विश्लेषण का प्रयोग क्रास अध्ययनों में उपयोगी है। इसलिये महत्ता की दृष्टि से विषय वस्तु विश्लेषण केा समझना ज्यादा आवष्यक है।

विषयवस्तु विष्लेशण तकनीक (Content Analysis Technique) विषयवस्तु विश्लेषण को दस्तावेज विश्लेषण के नाम से भी पुकारा जाता है। इसमें “ोाधकर्ता अध्ययन किये जाने वाली घटना या व्यक्ति के सम्बन्ध में साक्षात्कार, प्रेक्षण या प्रश्नावली से प्राप्त विचारों को Singleत्रित नहीं करता बल्कि ऐसी घटनाओं या व्यक्तियों द्वारा किये गये संचारों (communication) या उनके व्यवहारों के बारे में Singleत्रित किये गये दस्तावेजों का विश्लेषण कर निश्कर्ष पर पहँुचता है विषयवस्तु विश्लेषण को परिभाषित करत े हएु करलिगंर (Kerlinger) ने कहा है ‘‘विषयवस्तु विश्लेषण चरों को मापने के लिये संचारों का Single क्रमबद्ध, वस्तुनिष्ठ तथा परिभाषात्मक ढंग से विश्लेषण And अध्ययन करने की Single विधि हैं।’’हालस्टी (Holsti) के According ‘‘विषयवस्तु विश्लेषण सचूनाआ ें के विशिष्ट गुणों को क्रमबद्ध And वस्तुनिष्ठ ढ़ंग से पहचान करते हुये अनुमान लगाने की Single विधि है।’’बेरेलसन (Berelson) ने भी विषयवस्तु विश्लेषण को निम्न प्रकार से परिभाशित Reseller है-’’विषयवस्तु विश्लेषण संचारों की विषयवस्तु में सन्निहित वस्तुनिष्ठ, व्यवस्थित तथा परिमाणात्मक description देने की Single शोध प्रविधि है।’’

उपरोक्त से स्पष्ट है कि विषयवस्तु विश्लेषण-

  1. Single ऐसी प्रविधि है जिसमें संचार में निहित तथ्यों या विशेषताओं को पृथककर उसे अनुसन्धान प्रदत्त के Reseller में तैयार Reseller जाता है।
  2. यह Single वैज्ञानिक प्रविधि है।
  3. इसमें व्यक्त And अव्यक्त दोनों तरह के विषयवस्तु का विश्लेषण Reseller जाता है।

    विषयवस्तु विश्लेषण के उद्द्देश्य –

    विषयवस्तु विश्लेषण में प्रदत्तों के प्राथमिक स्रोतों में पत्र, पत्रिकायें, जनरल, आत्मकथा, डायरी, किताब, पाठयक्रम, न्यायालय के निर्णय, तस्वीर, फिल्म, कार्टून, आदि प्रमुख है। शोधार्थी इन स्रोतों से प्राप्त प्रदत्तों की विष्वसनीयता की परख करता है तब उनका उपयोग करता है। इस तकनीक के कुछ विशेष उद्देश्य होते हैं। जो निम्न है-

    1. वर्तमान परिस्थितियों And प्रचलनों का वर्णन करना तथा उनकी व्याख्या करना।
    2. लेखक के संप्रत्ययों, विश्वास, चिन्तन And उनकी लेखन शैली को जानना।
    3. किसी घटना या प्रतिफल से सम्बन्धित विभिन्न कारकों को पहचानना And उनकी व्याख्या करना।
    4. ऐसे विभिन्न संकेतों का विश्लेषण करना जिनसे विभिन्न संस्थाओं देशों या अन्य विचार धाराओं का प्रतिनिधित्व होता है।
    5. पाठ्य पुस्तकों या अन्य Single जैसी पुस्तकों की प्रस्तुतीकरण की कठिनार्इ स्तर की पहचान करना।
    6. छात्रों के कार्यों में विभिन्न तरह की त्रुटियों को विश्लेषण करना।
    7. किसी पाठ्य वस्तु की प्रस्तुति में सम्बन्धित प्रचार And पूर्वाग्रह का मूल्यांकन करना।
    8. विभिन्न विषयों या सस्याओं के तुलनात्मक महत्व को जानना।

    विषयवस्तु विष्लेशण की प्रक्रिया –

    विषयवस्तु विश्लेषण की प्रक्रिया को मूलत: तीन भागों में बॉटा जा सकता है-

    1. समष्टि को परिभाषित तथा वर्गीकृत करना –विषयवस्तु विश्लेषण में First समष्टि  को ठीक प्रकार से परिभाषित Reseller जाता है तथा उसका उपयुक्त ढ़ंग से वर्गीकरण Reseller जाता है। शोधकर्त्ता द्वारा जिस विषयवस्तु का विश्लेषण करना है, उसे स्पष्ट Wordों में परिभाशित करके उसे पुन: छोटे-छोटे भागों में विभक्त कर दिया जाता है। उदाहरण के लिये कक्षा अनुशासन पर शिक्षक द्वारा दिखलार्इ गयी सख्ती के अनुशासन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करने के लिये शोधकर्ता वर्ग अनुशासन को चार महत्वपूर्ण श्रेणियों समय निष्ठा, ध्यान, पाठ बनाना तथा साथियों के साथ होने वाले दुव्र्यवहार में कमी में बॉट सकता है। इससे शोधकर्ता को परिकल्पना बनाना सरल हो जाता है।
    2. विश्लेषण की इकार्इ –विषयवस्तु विश्लेषण में Single महत्वपूर्ण कदम इकार्इ के Reseller में विश्लेषण करना होता है। इन इकाइयों का सम्बन्ध सामग्री के संCreationत्मक पक्ष से होता है। इकार्इ से तात्पर्य सामग्री का Single विशिष्ट संCreationत्मक अंष या भाग से होता है जिसे Single पद या Singleांश समझकर किसी वर्ग के अन्तर्गत स्थान दिया जाता है। बेरेलसन ने इन इकाइर्यों को पाँच भागो में बाँटा है
      1. Word (Words) – Word विश्लेषण की सबसे छोटी इकार्इ हेाती है, परन्तु कभी-कभी इससे भी छोटी इकार्इ अक्षर का भी प्रयोग Reseller जाता है। उदाहरण के लिये केार्इ शोधार्थी विद्यार्थियों की बोधश्क्ति तथा Wordों के स्वReseller के बीच के सम्बन्ध को जानना चाहता है तो वह Word को विश्लेषण की इकार्इ मानकर Wordों केा तीन भागों -आसान, साधारण तथा कठिन में बाँट सकता है। इस प्रकार से वह अपनी सूची के प्रत्येक Word को तीन भागों में बाँटकर तथा उन्हें छात्रों केा देकर उनकी बोध् ाशक्ति का अध्ययन कर सकता है।
      2. विषय (Theme) –विष्लेशण की दूसरी इकार्इ विषय है जो प्राय: Single वाक्य या Single प्रस्ताव के Reseller में होता है।
      3. Singleांश (Item) – किसी दिये हुये उद्दीपन के प्रति प्रयोज्य द्वारा की गयी सम्पूर्ण अनुक्रिया को ही Singleांष कहा जाता है। जैसे प्रयोज्य द्वारा किसी चित्र को देखकर Single कहानी लिखना या लघु आत्मकथा या लघु रेडियो कार्यक्रम या लघु दूरदर्शन कार्यक्रम केा विश्लेषण के Singleांष के Reseller में लिया जाता है।
      4. स्वलक्षण (Character) –स्वलक्षण से तात्पर्य साहित्यिक Creation में किसी व्यक्ति या पात्र से होता है तथा इस इकार्इ का प्रयोग लघु कहानियों के विश्लेषण में Reseller जाता है। इसीलिये साहित्यिक शोध के क्षेत्र में स्वलक्षण इकार्इ का प् ्रयोग ज्यादा Reseller जाता है।
      5. दिकाल मापदण्ड (Space and time measures ) –इस इकार्इ का प्रयोग सामान्यत: मनोविज्ञान या शिक्षा के अनुसन्धानों में नहीं होता। यह ऐसी इकार्इ होती है जिसमें वस्तु का भौतिक माप Reseller जाता है। जैसे- दो वस्तुओं के बीच की दूरी को इंच की संख्या से व्यक्त करना, पेज संख्या, विचार विमर्ष का समय, पैराग्राफ की संख्या आदि। इसका प्रयोग प्राकृतिक विज्ञानों में ज्यादा Reseller जाता है।
    3. परिमाणन (Quantification) विषयवस्तु विश्लेषण का तीसरा भाग परिमाणन है। परिमाणन से आशय विषयवस्तु विश्लेषण की वस्तुओं को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया से होता है। उदाहरण के लिये किसी लेख के विश्लेषण में कहा जाये कि इसमें 4 पेज या 10 पैराग्राफ हे। परिमाणन की प्रक्रिया को सामान्यत: तीन प्रकार से Reseller जाता है। नामित मापन, क्रमिक मापन तथा रेंटिंग मापन।

    विषयवस्तु विश्लेषण के लाभ –

    1. इस विधि का कार्यक्षेत्र व्यापक हेै जिससे इसे विभिन्न तरह की सामग्रियों के अध्ययन में सरलता से प्रयुक्त Reseller जा सकता है
    2. विषयवस्तु विश्लेषण का प्रयोग आश्रित चर पर किसी प्रयोगात्मक हस्तक्षेप के पड़ने वाले प्रभाव के अध्ययन जैसी परिस्थितियों में भी Reseller जा सकता है।
    3. विषयवस्तु विश्लेषण का प्रयोग प्रेक्षण की अन्य विधियों से प्राप्त प्रदत्तों की वैधता ज्ञात करने में Reseller जा सकता है।
    4. सामाजिक संस्कृति के क्रमिक विकास के अध्ययन में प्रयोग
    5. विभिन्न संस्कृतियों के तुलनात्मक अध्ययन में प्रयोग

    विषय वस्तु विश्लेषण की सीमायें  – 

    1. इस विधि से प्राप्त प्रदत्त अधिक विश्वसनीय नही होते तथा निश्कर्षो पर विभिन्न अनुसन्धानकर्ताओं में भी Agreeि नहीं होती।
    2. विषयवस्तु विश्लेषण में निश्कर्शो के सामान्यीकरण की समस्या होती है।
    3. इस विधि में शोधकर्ता का अपना पूर्वाग्रह, विश्वास And स्थिराकृति आदि का विश्लेषण करते समय प्रभाव पड़ता है जिससे आत्मनिष्ठता उत्पन्न हो जाती है। 
    4. इस विधि का कार्य क्षेत्र सीमित होता है, क्योंकि जिन व्यक्तियों के लेख, दस्तावेज आदि किसी कारण उपलब्ध नहीं होते तेा उनका विषयवस्तु विश्लेशण नहीं Reseller जा सकता।
    5. इस विधि में सामान्यत: समय And श्रम अधिक लगता है।

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