कैरियर या वृत्तिक निर्देशन एवम स्थापन्न

वृत्तिक विकास वास्तव में मानसिक विकास के समानान्तर चलता है। बूलर (1933) द्वारा किये गये वृत्तिक विकास के सिद्धान्तों को सुपर (1957) ने प्रयोग Reseller। सम्पूर्ण वृत्तिक विकास के चरणों में उत्पित्त, व्यवस्थित, रख-रखरखाव And पतन की अवस्था मुख्य केन्द्र बिन्दु हैं। जिन्जबर्ग (1951) ने वृत्तिक चयन की अवस्था को निम्न चरणों में बांटा।

1) कल्पना अवस्था (11 वर्ष तक)
2) अनुमान अवस्था (12 से 16 वर्ष तक) इसके कर्इ उपचरण है।

  • रूचि अवस्था
  • मूल्य अवस्था
  • क्षमता अवस्था
  • परिवर्तन अवस्था

3) यथार्थ अवस्था-(17 वर्ष And अधिक) इसके भी उपचरण है

  • अन्वेषण
  • ठोसकिरण
  • विशेषीकृत

कल्पना आयु वास्तव में 4 वर्ष के आयु के बच्चे में ही परिलिक्षित हो जाती है जब वह अपने भविष्य के कार्यो को सम्भावना व्यक्त करने लगता है। धीरे-धीरे कोर्इ Single विशेष क्षेत्र के प्रति उसकी सोच बढ़ती है और वह अनुमान अवस्था की ओर बढ़ता है। इस आयु में आने तक बालक को अपनी क्षमता का कुछ अनुमान होने लगता है अपने मूल्यों को जान लेता है और वह सोचने लगता है कि उसकी इच्छा के अनुReseller उसके पास में सुविधायें हो सकता है न मिलें।
इस आयु में फिर वह अपने आसपास के वातावरण का अन्वेषण करता है। फिर भी जो अधिक सक्षम होते है वे सचेत होकर अपनी इच्छाओं का निर्धारण करने लगते है। इसके साथ ही ठोसीकरण की अवस्था प्रारम्भ हो जाती है जब बालक किसी Single क्षेत्र की ओर उन्मुख हो जाता है और अपनी रूचि को विशेषीकृत कर लेता है। इसी प्रकार से सुपर (1957) ने वृत्तिक विकास की अवस्था को निम्न चरणों में बांटा है।

1) विकास अवस्था (14 वर्ष तक)
2) अन्वेषण अवस्था (15 वर्ष से 25 वर्ष)

  • अनुमान
  • परिवर्तन
  • परीक्षण

3) संस्थापन अवस्था

  • परीक्षण
  • उन्नति

4) निर्वाह/रक्षा अवस्था (45-65 आयु)
5) क्षय अवस्था (66 वर्ष की आयु के बाद)

सुपर ने All चरणों की विस्तृत व्याख्या की है। बालक के वृत्तिक विकास पर उसके आसपास के वातावरण, विभिन्न लोगों के सामाजिक सम्बन्ध, विभिन्न व्यवसायों के प्रति सूचनायें आदि प्रभाव डालते है और यह All उसे किशोरावस्था तक मदद करते है।

अन्वेषण अवस्था-यह अवस्था अनुमान लगाने की आयु से प्रारम्भ होती है इसमें बच्चे अपने आस-पास के वातावरण से प्रेरित रहते हैं। वातावरण से मिले उद्दीपन उसे अपनी पसंद तय करने का रास्ता दिखाते है। सुपर की वृत्तिक विकास का सिद्धान्त पूर्णतया बालक के अपने मानसिक विकास के ऊपर ही आधारित है जिसमें बालक अपने विचार And प्राथमिकता तय करने तक प्रयासरत रहता है। बच्चे को सूचनायें आस-पास के वातावरण से मिलती है। अपनी क्षमताओं का ज्ञान And अपने मूल्यों And आदर्शो का निर्धारण ही उसे लक्ष्य की आरे तेजी से उन्मुख होने में सहायता करते है। अपने आपको समझने के साथ ही रूचियों का निर्धारण भी होने लगता है। अभ्यास अवस्था में कुछ बच्चे बड़ी ही सरलता से प्रविष्ट होते है तो कुछ इसे बढ़ा लेते है। जो बच्चे आत्मविश्लेषण की प्रक्रिया सही कर पाते है वे अभ्यास अवस्था में ही सफल हो जाते है और जो आत्मविश्लेषण सही तरीके से नहीं कर पाते उन्हे और प्रयास करना पड़ता है। अभ्यास अवस्था व्यवस्थीकरण अवस्था तक जाती है और फिर यह व्यवसाय में समायोजित होने व विकास करने तक जाती है।

निर्वाह/रक्षा अवस्था-यह अवस्था 45 वर्ष की आयु से प्रारम्भ होती है। यदि व्यक्ति का आत्म/प्रत्यय या आत्मविश्लेषण सही दिशा में रहता है तो वह संतुष्ट And प्रसन्नता का अनुभव करता है और ऐसा नही होने पर हताशा And असंतुष्टि का अनुभव करता है। इसके बाद पतन/क्षय की अवस्था आती है जब तक मनुष्य की ऊर्जा का हा्रस होने लगता है और फिर मनुष्य के सामने चुनौती होती है कि वह नयी परिस्थितियों के साथ समायोजन कर क्षमता के According कार्य करें।

रो की व्यक्तित्व विकास And वृत्तिक चयन का सिद्धान्त

एन रो Single चिकित्सा मनोवैज्ञानिक थे जो बाद में वृत्तिक विकास की ओर अपने व्यक्तित्व के गुणों व विशेषताओं पर किये गये शोध से उन्मुख हुये। उनके सिद्धान्तों में वृत्तिक विकास And व्यक्तित्व के मध्य सम्बन्ध स्थापित है। उनके सिद्धान्तें से यह बात स्पष्ट हुयी कि व्यक्तित्व की विभिन्नताएँ ही विभिन्न व्यवसायों को चुनने का कारण बनती है।

विभिन्न व्यावसायिक समूहों का description-रो ने सम्पूर्ण व्यवसायों के रेंज को वर्गीकृत Reseller है। ये All वर्गीकृत समूह है। सर्विस/सेवा/नौकरी-ये व्यवसाय मुख्यतया दूसरों की Needओं And अपेक्षाओं तथा हित के लिये कार्य से सम्बन्धित है। इस समूह में समाज सेवा, निर्देशन घरेलू And रक्षात्मक सेवायें सम्मिलित हैं। ये उस परिस्थिति पर निर्भर करता है कि वह उस व्यक्ति के कार्य करने की प्रकृति व परिस्थिति क्या है।

  1. धन्धे And सम्पर्क/विजनेस-ये व्यवसाय, बचत And अन्य चीजों And सेवाओं के भेजने से सम्बन्धित है।
  2. संगठन-ये All प्रबन्धन And उद्योगों, व्यवसायों And सरकार में सफेद कॉलर कार्य कहलाते हैं। इनमें मुख्यतया सरकारी उद्योग And मशीनरी आती है। इसमें व्यक्तियों के मध्य औपचारिक सम्बन्ध होते है।
  3. तकनीकि-इस समूह में व्यवसाय उत्पादन, रखरखाव, परिवहन And अनरू उपयोगी कार्यो से सम्बन्धित होते है, इसमें इंजीनियरिंग, क्राफ्ट, मशीन टे्रड, परिवहल संचार व्यवस्था इत्यादि व्यवसाय होते है।
  4. आऊटडोर-इस समूह में कृशि, संरक्षण, खनन, समुद्री व्यापार, पानी से सम्बन्धित संसाधन, खनिजों से सम्बन्धित संसाधन, जंगलों से सम्बन्धित वस्तुओं से सम्बिन्धत व्यवसाय आते है। इसमें कन्सल्टिंग स्पेशलिस्ट, आर्किटेक्टस, वैज्ञानिक व वनकर्मी आते है।
  5. विज्ञान-इनमें वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित व्यवसाय आतें हैं जिनका उपयोग विभिन्न आविष्कारों में किये जाते है।
  6. सामान्य संस्कृति-इस समूह में सांस्कृतिक धरोहरों, तत्वों को संजोने स्थानान्तरित करने का कार्य करने वाले लोग आते है। इस समूह में शिक्षा, पत्राचार, साहित्य And Humanीकि से सम्बन्धित व्यवसाय आते है।
  7. कला And मनोरंजन-इस समूह में कला And मनोरंजन के क्षेत्र में जुडे़ व्यवसाय आते हैं इसमें Single व्यक्ति का सम्बन्ध Single बहुत बड़े समूह के साथ अप्रत्यक्ष Reseller से स्थापित होता है। 

समूहों के विभिन्न स्तर-प्रत्यके समहू के छह स्तर होते है। जो कि नीचे described हैं।

  1. प्रोफेशनलAnd मैनेजेरियल (व्यक्तिगत स्तर पर)- इस स्तर पर उच्च स्तर के नवीन विचारक, सृजक प्रबन्धक तथा प्रKing आते है। इनमें व्यक्तिगत Reseller से उत्तरदायित्वों को निवर्हन करने वाले, नीति बनाने वाले और उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त लोग आते है।
  2. प्रोफेशनल And मैनेजेरियल-इस समहू में ऐसे लोग आते है जो कि अपने And Second के मध्य उत्तरदायित्व निर्धारण को माध्यम बनने, नीतियों के विष्लेशक और स्नातक स्तर से अधिक शिक्षा रखने वाले व्यक्ति आते हैं।
  3. अर्ध-व्यावसायिक तथा लघु व्यवसाय-इसमें वे लागे आते है जो अन्य लागों के लिये कम उत्तरदायित्व, स्वयं अपनी नीति बनाना (छोटे उद्योगों के लिये और हार्इस्कूल, इण्टर तथा टेक्निकल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त होते हैं। 
  4.  दक्ष-इस स्तर पर किसी विशेष स्तर पर दक्षता प्राप्त अनुभवी लागे आते हैं
  5. अर्ध दक्ष-इसमें कुछ प्रशिक्षण And अनुभव प्राप्त लागे हाते े है और वर्ग 4 में रखे जाते हैं।
  6. दक्षता विहीन-इसमें किसी विशेष प्रशिक्षण शिक्षा दक्षता की Need नही रखने वाले व्यवसाय आते है।

रो के According Needओं And रूचि के उदय के कारण –वंशानुक्रम किसी व्यक्ति के क्षमता के All गुणों के विकास में माध्यम का भूमिका निभाते है। वंशानुक्रम से प्राप्त विशेषतायें अपने वास्तविक स्वReseller को पहुँच पायेंगी या नहीं यह बहुत कुछ लिंग जाति, सामाजिक, आर्थिक परिस्थिति तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर निर्भर करता है।

  • रूचि, अभिवृित्त And व्यक्तित्व के अन्य चर कुछ वंशानुक्रम के साथ व्यक्तिगत अनुभवों पर भी आधारित करते है। और जिस क्षेत्र में बिना प्रयास ही उसका ध्यान चला जाये वह आगे चलकर उसकी रूचि को निर्देशित करते हैं।
  • जो भी Needयें लगातार संतुष्ट की जाती है वे अचेतन प्रेरक नहीं बनती।
  • जिन Needओं को कमतर संतुष्टि मिलती है वे बाद में भुला दी जाती है। और यदि मुख्य Need के ऊपर आने पर बाधा बनती है वे फिर आगे आकर प्रेरकों के मध्य बाधा बनती है।
  • जिस Need पर संतुष्टि देर से होती है और वे अप्रत्यक्ष Reseller से प्रेरक बन जाते है। Need के स्तर पर ही संतुष्टि का आनन्द निर्भर करता है।

हॉलैंड की व्यावसायिक व्यक्तित्व And कार्य वातावरण का सिद्धान्त

हालैण्ड का यह सिद्धान्त पूरी तरह से उसके मिलिटरी में परिचय साक्षात्कार के Reseller में प्राप्त अनुभव से प्रभावित है। उसके According व्यक्ति अपने कार्य पर्यावरण And व्यक्तित्व के कारण ही विभाजित किये जा सकते हैं। इस सिद्धान्त के माध्यम से उसने यह खोजने का प्रयास Reseller कि व्यक्ति की व्यावसायिक समस्याओं को सुलझाने का सुलभ कार्य Reseller जा सकता है।

इस सिद्धान्त में बहुत ही साधारण, व्यवहारिक And मापिक आयाम हैं। यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि व्यावसायिक रूचि व्यक्तित्व का Single पहलू है अत: व्यक्तित्व गुण विद्यालय विषयों के महत्व देने, पाठ्येत्तर क्रियाकलापों के आयोजन, आदतों व कार्यो तथा वृित्तक रूचि आदि व्यक्तित्व प्रदर्शन के ही भाग है। प्रकृति-यह सिद्धान्त प्रकृति में संCreationत्मक And अंतक्रियात्मक है। उनके According-

  • किसी विशेष वृित्त का चयन व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति/प्रदर्शन है जो अचानक नही वरन् अवसर मुख्य भूमिका निभाता है।
  • किसी Single वृित्तक विकास समूह में सामान्य व्यक्तित्व And समान History तथा समान व्यक्तित्व विकास होता है।
  • Single ही जैसी व्यक्तित्व की विशेषताओं के कारण वे समस्या And विशेष परिस्थिति में Single जैसी प्रतिक्रिया करते है।
  • व्यावसायिक लब्धि, स्थिरता And संतुष्टि व्यक्तित्व And वृित्तक वातावरण के मध् य अन्तर्सम्बन्ध पर निर्भर करता है।

मान्यताएँ – यह सिद्धान्त इन बाताें पर निर्भर करता है-

  • सामान्यत: व्यक्ति इन छह प्रकारों, यथार्थवादी, खोजी, कलाकार सामाजिक, उद्योगी And परम्परागत। जिस विधि से व्यक्ति अपनी सम्बन्ध वातावरण से बनाता है वही उसका प्रकार तय कर देता है।
  • इसी प्रकार छह: प्रकार के वातावरण होते हैं- यथार्थ, अन्वेशणात्मक, कलात्मक, सामाजिक, उद्यमी And परम्परागत। वास्तव में ये वातावरण मनुष्य के कारण ही बनते हैं। और मनुष्य अपने वातावरण के कारण वैसा व्यक्तित्व वाला बन जाता है।
  • लोग ऐसे वातावरण के खोज में रहते है जहाँ पर उनके कौशल क्षमता, अभिवृित्तयों के प्रदर्शन तथा मूल्यों को संरक्षण मिले। इसका अभिप्राय है Single जैसे व्यक्तित्व वाले लोग Single साथ ही रहते है।
  • व्यवहार व्यक्तित्व And वातावरण के परिणामस्वReseller ही सुनिश्चित होते है।

छह वातावरण प्रतिमान – हॉलैण्ड वास्तव Reseller में विश्वास करते थे कि व्यक्ति इनमें से किन्ही Single का सदस्य हो जाता है।

  1. यथार्थवादी वातावरण-यह वातावरण व्यक्ति को अपने तरीके से परिस्थितियों का आंकलन कर अधिक से अधिक लाभ And धन कमाने के लिये प्रेरित करता है।
  2. अन्वेशणात्मक वातावरण-यह वातावरण व्यक्ति को वातावरण में अपने अवलोकन, अन्वेशण, सैद्धान्तीकरण करते हुये उपस्थित परिस्थिति को आंकलन कर पद And प्रतिष्ठा दिलवाता है।
  3. कलात्मक वातावरण-यह वातावरण व्यक्ति को कलात्मक And सृजनात्मक मूल्यों की उत्पित्त हेतु प्रोत्साहित करता है।
  4. सामाजिक वातावरण-यह वातावरण किसी व्यक्ति को सामाजिक क्रियाओं को करने And उनसे सम्बन्धित अपनी प्राथमिकताओं के निर्धारण हेतु व्यक्ति को प्रेरित करता है। 
  5. उद्यमी वातावरण-यह वातावरण व्यक्ति को चुनौतियाँ लेते हुये कार्य करने And नवीन गतिविधियों में संलग्न रहने तथा मूल्यों के निर्धारण हेतु अभिप्रेरित करता है। 
  6. परम्परागत वातावरण-यह वातावरण जो कि प्राप्त आंकड़ों, सूचनाओं पर आश्रित होता है सम्पूर्ण गतिविधि व्यक्ति के इन विद्यमान सत्यों के प्रति अविश्वास के इर्द-गिर्द घूमता है।

वृित्तक चयन First And द्वितीय मान्यताओं के समन्वयन के Reseller में-जिस व्यक्ति का अनुस्थापन जिस तरह के वातावरण And व्यक्तित्व में हुआ उसे उसी प्रकार के वृित्त चयन में सुलभता होती है वहीं दूसरी ओर यदि व्यक्ति का अनुस्थापन Single से अधिक वातावरण में हो गया है तो वह किसी Single को चुनने में भ्रमित होगा। वही उसे समायोजित होने में भी कठिनार्इ होगी। यदि किसी Single क्षेत्र का अनुस्थापन अच्छी तरह से हो जाये तो उस प्रकृति के वृित्त में उसका निर्णय विकास And समायोजन अच्छी प्रकार से होगा।

निर्देशन के आधार-हॉलैण्ड ने लोगों के व्यक्तित्व And वातावरण की विभिन्नता को जानने हेतु Single ‘‘सेल्फ डायरेक्टड सर्च इन्वेन्टरी’’ बनायी है जिसमें आंकलन छह आयामों में होता है। अन्त में व्यक्ति के वास्तविक And प्रभावी अनुस्थापन की पहचान कर उसे वैसे ही वृित्त चयन हेतु निर्देशन देना चाहिए।

रोजगार अवसर सूचना सेवा 

किसी भी देश की Means व्यवस्था के सुनियोजित विकास तथा उसमें व्यवस्थित निर्देशन की सेवाओं And Humanीय संसाधनों के समुचित उपयोग को उपयुक्त दिशा And गति प्रदान करने की दृष्टि से देश के भीतर उपलब्ध रोजगार अवसर (इम्प्लायमेंट मार्केट) बेराजगारी की समस्या तथा गठित And अगठित क्षेत्रों में रोजगार या बेराजगारी की प्रवृत्तियों का अध्ययन अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। इस प्रकार के अध्ययनों को ठोस स्वReseller प्रदान करने के उद्देश्य से अब रोजगार-अवसरों से सम्बन्धित सूचना सेवाओं का गठन Reseller गया है। Indian Customer सन्दर्भ में ऐसी सेवायें Single व्यवस्थित प्रयास की कड़ी के Reseller में विकाSeven्मक क्रियाओं पर नजर रखने के लिये खासतौर से कायम की गर्इ हैं।

इनके तहत रोजगार की समस्याओं का अध्ययन नियोजकों, निर्देशन-कर्मियों, शैक्षिक प्रKingों तथा तकनीकी तन्त्रियों को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से Reseller जाता हैं ये सेवायें आमतौर से राज्य के रोजगार-केन्द्रों के निदेशालयों द्वारा श्रम तथा रोजगार मंत्रालय के तहत ‘डाइरेक्टर जनरल ऑफ इम्प्लायमेंट एण्ड ट्रेनिंग’ पर्यवेक्षण में आयोजित की जाती है। इनके अन्तर्गत ‘संगठित सार्वजनिक क्षेत्रों’ में नियुक्त कर्मचारियों के अलावा योग्यता And जीवनी आदि विषयक (बायोडाटा) सूचनायें, संकलित की जाती है। इन संस्थाओं से इस प्रकार की सूचनाओं के साथ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य हर Second वर्ष प्राप्त करने की कोशिश होती है।

उद्देश्य तथा कार्यक्षेत्र

रोजगार अवसर सम्बन्धी सूचनाओं को संकलित करना, उन्हें नवीनतम (अपटूडेट) Reseller में प्रस्तुत करना तथा निर्देशन-कर्मियों, प्रशिक्षण संस्थानों तथा युवाओं को सुलभ कराने की दृष्टि से उपयोगी पत्र पत्रिकाओं, बुलेटिनों तथा अन्य प्रचार And प्रसार माध् यमों का सहारा लेना ऐसी सूचना सेवाओं का मुख्य ध्येय है। इसे ‘रोजगारों’ के बारे में बुनियादी आधार सामग्री प्राप्त करने का प्रमुख स्रोत माना जाता है। हमारे यहां ‘रोजगार अवसर सूचना’ की बुनियाद शिवा राव कमेटी की संस्तुतियों में देखी जा सकती है। हमें ध्यान देना होगा कि Indian Customer परिस्थितियों में ‘श्रम केन्द्रों’ के प्रकाशनों के अलावा ‘रोजगार अवसर सूचनायें’ विशेष प्रकार की पत्रिकाओं के माध्यम से विज्ञापित होती है। ये सूचनायें पूर्व Reseller मे चल रही रोजगार सेवाओं के प्रभावी परिपूरक की तरह प्रयुक्त होती है। ये सेवायें अपने कार्य क्षेत्र के अन्तर्गत कृषि को छोड़कर All प्रतिष्ठानों को शामिल करती हैं। इनके द्वारा रोजगार सम्बन्धी सूचनाओं को हर Third माह संकलित करने की व्यवस्था है तथा ये निम्नलिखित क्षेत्रों से सम्बन्धित होती हैं-

(1) रोजगार की मात्रा।
(2) रिक्त स्थान।
(3) वे रिक्त स्थान जो विज्ञापित हैं तथा जिन्हें रोजगार कार्यालयों द्वारा भरा गया है।
(4) वे उद्यम (व्यवसाय) जिनमें कार्यकर्ताओं या कर्मचारियों की कमी है।

वृत्तक रोजगार सूचना सम्बन्धी प्रतिवेदन

रोजगार सूचनाओं के विश्लेषण के आधार पर प्राय: प्रतिवेदन (रिपोर्ट) प्रस्तुत किये जाते हैं जिन्हें जनपद, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तरों पर तैयार Reseller जाता है। उनका description इस प्रकार है-

(1) जनपद स्तर-जिसमें राजे गार सचू नाओं से सम्बन्धित आचं लिक या क्षेत्रीय प्रतिवेदन प्रस्तुत Reseller जाता है। यह रोजगार And बेराजगारी विषयक प्रवृत्तियों पर रोशनी डालता है। इसमें कर्मचारियों की मांग तथा Humanीय शक्ति की कमियों वाले अनुक्षेत्रों के सम्बन्ध में संक्षिप्त description प्रस्तुत होते है। इस प्रतिवेदन के विभिन्न अनुभागों में रोजगार-अवसरों में हुये परिवर्तनों को स्पष्ट Reseller जाता है।

(2) राज्य स्तर-जो प्राय: राजे गार समीक्षा, Human शक्ति की कमियां सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों के व्यावसायिक स्वResellerों तथा औद्योगिक क्षेत्रों And चुने हुये व्यवसायों के तहत रोजगार सम्बन्धी तदर्थ (एडहॉक) प्रतिवेदन के Reseller में प्रस्तुत किये जाते हैं।

(3) राष्ट्रीय स्तर-जिसमें त्रैमासिक राजे गार समीक्षा, सर्वजनिक क्षत्रे में रोजगार सम्बन्धी अखिल Indian Customer प्रतिवेदन पूरे भारत में ‘Humanीय शक्ति’ की कमियों के बारे में रिपोर्ट तथा अधिस्नातकों के रोजगार के बार में किये जाने वाले सर्वेक्षण शामिल हैं।
इन तीनों स्तरों पर उपलब्ध होने वाले प्रतिवेदन नियोक्ताओं तथा उन संगठनों And प्रशिक्षण की संस्थाओं तथा अन्य सम्बन्धित अधिकारियों को नियमित Reseller से वितरित किये जाते हैं। इन प्रतिवेदनों में प्रस्तुत रोजगार सूचनायें ‘इण्डियन लेबर जर्नल’ ‘मन्थली एबस्ट्रेक्ट ऑफ स्टैटिस्टिक्स’ तथा जर्नल ऑफ स्टेट स्टेस्टिकल ब्यूरो द्वारा प्रकाशित होती रहती हैं।

रोजगार सूचना सेवाओं के गुण

  1. रोजगार सम्बन्धी सूचनाओं से नियोजन का कार्य सरल बन जाता है जिससे प्रशिक्षण आयोजित करने वाली संस्थाओं, प्रबन्ध संस्थानों तथा अन्य ऐसे प्रतिष्ठानों को अपनी भावी योजनायें निर्मित करने में मदद मिलती है।
  2. नियोक्ताओं को रोजगार मार्केट का पता चल जाता है जिससे वे अपने यहां भर्ती की नीतियों को तदनुकूल ढंग से परिवर्तित करने में सफल होते हैं।
  3. नए उद्योगपतियों तथा औद्योगिक प्रतिष्ठानों को इस प्रकार की सूचनाओं द्वारा अपने व्यापरिक सम्बन्धों को बनाने तथा नवीन योजनाओं को प्रस्तावित करने का ठोस आधार मिल जाता है।
  4. ‘रोजगार सूचनाओं’ की जानकारी से हमारे सैकड़ों ऐसे युवा प्रत्यक्ष Reseller से लाभान्वित होते है जिन्हें रोजगार सम्बन्धी बातें नही मालूम हो पाती तथा जो ग्रामीण अंचलों व दूर दराज के गांवों या पहाड़ियों में रहते हैं।
  5. इन सूचनाओं का विशेष उपयोग हमारे कालेज तथा विश्वविद्यालय रोजगार उन्मुख शिक्षा योजनाओं के विकास हेतु कर सकते हैं। इनसे मांग तथा पूर्ति की सही स्थिति का मूल्यांकन करने में सरलता होती है।
  6. प्रबुद्ध अभिभावक तथा निर्देशन-कार्यकर्ता इन सूचनाओं के आधार पर अपने परामर्श कार्यों को सजग And ठोस स्वReseller दे सकते हैं।

    रोजगार सूचना सेवाओं के दोष

    1. रोजगार सूचनाओं की विश्वसनीयता And शुद्धता के बारे में प्राय: आपत्तियां उठार्इ जाती है। हमारे यहां इन सूचनाओं को संकलित करने की विधियों में अनेक ऐसे दोष हैं जो व्यवस्था की शिथिलता से प्रत्यक्षत: जुडे़ हुए है। राज्य तथा केन्द्र सरकार में दोषपूर्ण हो जाते है जिन्हें ऐसी सूचनाओं को Singleत्र करने का न तो प्रशिक्षण प्राप्त होता है और न वे इस ओर अपेक्षित रूचि रखते हैं।
    2. रोजगार सूचना सेवाओं की व्यापकता या पूर्णता को भी विवाद का विषय बनाया गया है। इन सेवाओं द्वारा विज्ञापित सूचनायें All रोजगारों को नही स्पर्श कर पाती जिसे उनमें अधूरेपन का दोष देखा जा सकता है।
    3. रोजगार सूचनाओं को संकलित करने के ढंग इतने पुराने तथा औपचारिकताओं से भरे होते है कि उन्हें समय पर प्राप्त करने में विशेष कठिनाइयां उपस्थित होती हैं। सूचनाओं सम्बन्धी प्रपत्रों (प्रोफार्मा) को बदलने की ओर कोर्इ विशेष रूचि नही ली गर्इ है।
    4. रोजगार सम्बन्धी सूचनओं को सत्त नवीन रखने की दृष्टि से विश्वविद्यालयों द्वारा अनुसन्धान And सर्वेक्षण कार्य प्राय:कम ही किये जाते हैं जिससे अनेक रोजगारों के बारे में तब जानकारी मिलती है जब Appointmentयां हो जाती है।
    5. कैरियर शिक्षकों, निर्देशन कर्मियों तथा व्यावसायिक सूचनाओं के प्रसार से सम्बन्धित अन्य कार्यकर्ताओं को इन्हें सही ढंग से संकलित And विज्ञापित करने के बारे में समुचित प्रशिक्षण का अभाव है जिससे इन सेवाओं की छवि ठीक नही बन सकी है।

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