कुपोषण से होने वाली बीमारियां

(1) क्वाशियोरकर- 

यह रोग प्रोटीन नामक पोषक तत्वों की कमी से होता है। इसमें लक्षण दिखार्इ देते हैं। क्वाशियोरकर यह रोग प्राय: 1-5 वर्ष तक उम्र के बच्चों में पाया जाता है दूसरा बच्चा जन्म ले लेने के कारण First बच्चे को दूध अथवा प्रोटीन युक्त भोज्य पदार्थ नहीं मिल पाते जिससे प्रोटीन की कमी हो जाती है। इसमें निम्नलिखित लक्षण दिखार्इ देते हैं।

 क्वाशियोरकर
  1. एडीमा- प्रोटीन की कमी से ऊतकों के खाली स्थान में पानी भर जाता है। यह स्थिति एडीमा कहलाती है। जिसके कारण बालक देखने में स्वस्थ दिखायी देता है।
  2. चेहरा चन्द्रमाकार – चेहरे पानी से सूजन होने के कारण चेहरा चन्द्रमा के समान गोल दिखार्इ देता है। 
  3. (iii) शारीरिक वृद्धि में कमी – उचित आहार न मिलने के कारण प्रोटीन ऊर्जा देने का कार्य करने लगती है। जिससे शरीर की वृद्धि रूक जाती है। 
  4. रक्तहीनता – प्रोटीन की कमी होने से हीमोग्लोबिन का प्रतिशत कम होने लगता है। जिससे रक्तहीनता उत्पन्न होती है। 
  5. दस्त – पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है। यकृत बड़ा हो जाता है। जिससे बच्चों में पतले दस्त की स्थिति देखी जाती है। 
  6. रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी- प्रोटीन एन्टीबाडी का निर्माण करती है इसलिए प्रोटीन की कमी पर रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है। 
  7. शुष्क त्वचा- त्वचा शुष्क तथा त्वचा को रंग प्रदान करने वाले तत्व (मिलेनिन) का निर्माण प्रोटीन द्वारा ही सम्पन्न होता है। 
  8. बालों में परिवर्तन- बाल भूरे रंग के तथा सूखे हो जाते हैं। क्योंकि बालों को निर्माण प्रोटीन द्वारा ही होता है। 
  9. भार में कमी- देखने में बालक स्वस्थ दिखायी देता है परन्तु वजन कम हो जाता है। 
  10. भूख में कमी- प्रोटीन पाचन सम्बन्धी एन्जाइम का निर्माण करती है प्रोटीन की कमी से पाचन क्षमता कमजोर होने से भूख नहीं लगती है।
  11. स्वभाव- बालक स्वभाव से चिड़चिड़ा हो जाता है। 

(2) सूखा रोग (मरास्मस) – 

यह रोग अधिकतर 15 माह के बच्चे में होता है। इसमें बालक के आहार में प्रोटीन के साथ-साथ कैलोरी की कमी हो जाती है इसे प्रोटीन कैलोरी माल न्यूट्रीशन (P.C.M) के नाम से भी जाना जाता है। आहार में प्रोटीन और कैलोरी दोनों की कमी से मरास्मस नामक रोग होता है।

मरास्मस के लक्षण

मरास्मस के लक्षण –

  1. शारीरिक वृद्धि विकास में कमी। 
  2. नाड़ी की गति धीमी। 
  3. पाचन तंत्र में विकार, यकृत का बढ़ना। 
  4. रोग निरोधक क्षमता का कम होना। 
  5. रक्त की कमी (एनीमिया) होना। 
  6. पतला दस्त तथा डिहाइड्रेशन होना। 
  7. भावहीन चेहरा। 
  8. झर्रीदार त्वचा। 

(3) आँखों पर प्रभाव- 

विटामिन ‘ए’ की कमी का प्रभाव सबसे अधिक आँखों पर पड़ता है। इसकी कमी से निम्नलिखित रोग हो जाते हैं- 

  1. रतौंधी- रोडोप्सिन (Rhodopsin) नाम का तत्व कम प्रकाश में सामान्य दृष्टि प्रदान करता है। किन्तु विटामिन ‘ए’ की कमी होने पर इसका निर्माण पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाता जिसके कारण अन्धेरा होते ही व्यक्ति को दिखायी नहीं देता। इसे ही रतौंधी या रात्रि का अन्धापन कहते हैं। 
  2. कंजीक्टवाइटिस- अश्रु स्त्राव कम हो जाने से कन्जक्टिवा, सूखी, मोटी और रंजित हो जाती है तथा धुँधलापन आ जाता है। इसका उपचार न होने से कोर्निया पर भी सूखापन आने लगता है तथा घाव होने लगता है। 
  3. बिटॉट स्पॉट- विटामिन ‘ए’ की कमी से तिकोने आकार के हल्के पीले रंग के धब्बे कन्जक्टिवा में पाये जाते हैं धीरे-धीरे ये कोर्निया को ढकने लगते हैं। इन धब्बों को बिटॉट स्पॉट कहते हैं।
  4. किरेटोमलेशिया- इसमें रक्त वाहनियाँ पूरे कार्निया को घेर लेती है। जिससे आँखे लाल हो जाती है। कार्निया के अपारदश्र्ाी हो जाने के कारण अन्धापन आ जाता है। 
  5. टोड त्वचा- विटामिन ‘ए’ की कमी से स्वेद ग्रन्थियाँ काम नहीं करती। जिससे त्वचा सूखकर खुरदरी और चितकबरी हो जाती है।
  6. आमाशय में अम्ल की मात्रा में वृद्धि- विटामिन ‘ए’ की कमी से उच्च अम्लीयता तथा अतिसार हो जाता है। (iv) दाँतों पर प्रभाव- विटामिन ‘ए’ की कमी से इनेमेल कमजोर हो जाता है तथा दाँत जल्दी गिर जाते हैं। 
  7. बाँझपन- विटामिन ‘ए’ की कमी होने से बाँझपन के लक्षण या अविकसित शिशु उत्पन्न होते हैं। 
  8. संक्रमण रोग- विटामिन ‘ए’ की कमी होने से रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाने से सर्दी, खाँसी, निमानिया आदि की स्थिति देखी जाती है। 

(4) रिकेट्स – 

इस रोग में निम्न लक्षण पाये जाते हैं। यह रोग विटामिन ‘डी’ की कमी से होता है- 

  1. नाकनीज- विटामिन ‘डी’ की कमी होने पर टाँगो की अस्थियाँ कमजोर व मुलायम हो जाती है। जिससे शरीर का भार सहन नहीं कर पाती। घुटने अन्दर की ओर मुड़ जाते है चलते में आपस में टकराते हैं यह स्थिति ज्ञदवबा ज्ञदममे कहलाती है। 
  2. कबूतूतर छाती- इसमें पसलियाँ अवतल आकार में मुड़ने लगती है जिससे छाती वाला भाग आगे उठा हुआ दिखायी देता है इसे कबूतर छाती कहते हैं। 
  3. रिकेटिक माला- इसमें पसलियाँ बीच में अनियमित Reseller से फूल जाती है फूले भाग मोतियों के समान दिखार्इ देते हैं इसे ही रिकेटिक माला कहा जाता है। 
  4. माथे की अस्थि बाहर की ओर उभरी दिखायी देती है। 
  5. शारीरिक वृद्धि में कमी- विटामिन ‘डी’ की कमी होने से अस्थियाँ पूर्ण विकसित नहीं हो पाती जिसके कारण शारीरिक वृद्धि सामान्य नहीं हो पाती। 
  6. दाँतो में भी दोष उत्पन्न हो जाते है। 

(5) आस्टोमलेशिया – 

विटामिन ‘डी’ की कमी व्यस्कों में होने पर यह रोग पाया जाता है जिसके निम्न लक्षण दिखार्इ देते हैं।

  1. इसमें अस्थियाँ कोमल व कमजोर होकर जल्दी टूटने लगती है। 
  2. रीड़ की हड्डी मुड़ जाती है और कूबड़ निकल जाता है। 
  3. टाँगों और कमर की अस्थियों में दर्द रहता है। 
  4. गर्भावस्था में श्रोणि मेखला संकुचित होने से प्रसव में परेशानी होती है। 

(6) टिटेनी – 

यह रोग बच्चों में पाया जाता है इसमें विटामिन ‘डी’ की कमी से रक्त में कैल्शियम का स्तर कम हो जाता है जिससे अंगुलियों में कंपन तथा कभी-कभी पूरे शरीर में ऐठन देखी जाती है।

(7) ओस्टियोपोरोसिस- 

यह वृद्धावस्था में कैल्शियम की कमी के करण पाया जाता है इसमें अस्थियों में से कैल्शियम निकलकर रक्त में जाने लगता है इसलिये अस्थियाँ छिद्रमय और भुरभुरी हो जाती है।

(8) बेरी बेरी – 

यह रोग विटामीन B1 (थायमिन)की कमी से होता है। बेरी बेरी- बेरी बेरी रोग दो प्रकार का होते है। 

  1. शैशव बेरी बेरी – गर्भावस्था या स्तनपान अवस्था में जब स्त्री के आहार में बी-1 की कमी रहती है तो बच्चों में ये लक्षण दिखायी देते हैं। 
    1. कब्ज, वमन, अतिसार। 
    2. शरीर में एडीमा। 
    3. ह्रदय आकार का बढ़ना। 
    4. सांस लेने में कठिनार्इ होने पर बच्चा नीला पड़ जाता है और उसकी मौत भी हो जाती है। 
  2. व्यस्क बेरी बेरी- यह दो प्रकार की होती है। 
    1. सूखी बेरी-बेरी- इसमें निम्न लक्षण दिखायी देते है। 
      1. शरीर में पानी का कम होना।
      2. माँसपेशियों का कमजोर होना। 
      3. त्वचा में संवेदनशीलता कम होन के कारण आघात की सम्भावना बढ़ जाती है। 
    2. गीली बेरी-बेरी- इसमें निम्न लक्षण दिखायी दते े है। 
      1. शरीर में एडीमा का होना। 
      2. सांस लेने में कष्ट होना। 
      3. हृदय की धड़कन का बढ़ जाना या बन्द हो जाना। And मृत्यु हो जाना। 

(9) पैलेग्रा – 

नायसिन की कमी से पैलेग्रा नामक रोग हो जाता है इसलिये इस विटामिन को पैलेग्रारोधक विटामिन (Pellagra Preventing Factor) कहा जाता है। पैलेग्रा के लक्षण पैलेग्रा को Three ‘D’ Diseas भी कहा जाता है इसमें निम्न लक्षण दिखायी देते है। 

  1. चर्मरोग- शरीर के जिन भागों पर Ultra site की रोशनी पड़ती है त्वचा लाल हो जाती है। वहाँ सूजन, खुजली और जलन होने लगती है।
  2. अतिसार- नायसनि की कमी से जीभ पर दाने तथा पाचन सम्बन्धी विकार आ जाते हैं। जैसे दस्त होना। 
  3. पागलपन- सिर दर्द, क्षीण स्मरण शक्ति, चिड़चिड़ापन तथा नींद न आना और स्थिति अधिक बढ़ने पर पागलपन देखा जाता है। 

(10) घेंघा रोग – 

आयोडीन की कमी से Thyroxin का स्त्राव कम हो जाता है जिसके कारण इसकी अधिक मात्रा उत्पन्न करने के लिए ग्रन्थि को अधिक कार्य करना पड़ता है और जिससे ग्रन्थि फूल जाती है। ग्रन्थि का आकार बढ़ने से श्वास नली पर दबाव पड़ता है And श्वांस लेने में कठिनार्इ होती है। 

(11) बौनापन – 

आयोडीन की कमी होने पर बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास रूक जाता है। त्वचा मोटी, खुरदरी और झुर्रीदार हो जाती है। होट, मोटे, जीभ बाहर निकल आती है। और कद बौना रह जाता है। 

(12) मिक्सोडिमा – 

व्यस्कों में कमी होने से मिक्सोडिमा रोग हो जाता है। रोगी का चेहरा भावहीन हो जाता है। रोगी आलसी And सुस्त रहता है एडीमा पाया जाता है। 

(13) रक्तहीनता- 

यह लौह तत्व की कमी से होता है। 

रक्तहीनता के लक्षण- 

  1. थकावट कमजारी महसूस होना। 
  2. आँखो के नीचे काले गढडे दिखार्इ देना। 
  3. गाल चमकहीन तथा दो मुख वाले। 
  4. नाखून, सपाट, भुरभुरे तथा चम्मच के आकार के हो जाते है। 
  5. सिर दर्द And चक्कर आना। 
  6. साँस फूलना। 
  7. भूख कम लगना। 
  8. बच्चों में शारीरिक वृद्धि रूकना। 

    (14) स्कर्वी- 

    यह विटामिन ‘सी’ की कमी से होता है। 

    स्कर्वी के लक्षण- 

    1. थकान महसूस होना। 
    2. शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है। जिससे सर्दी जुकाम व फ्लू आदि के संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है। 
    3. त्वचा का रंग पीला हो जाता है। आँखो में नीचे धब्बे दिखार्इ देते है। 
    4. मसूड़े बैगनी रंग के दिखायी देते हैं। तथा रक्त स्त्राव होने लगता है और बदबू आने लगती है। 
    5. दाँत का क्षय होने लगता है। 
    6. लोहे के अवशोषण न होने से रक्तहीनता हो जाती है। 
    7. रक्त नलिकायें भंगुर होने से फटने लगती है। जिसमें रक्त स्त्राव दिखार्इ देता है। 
    8. अस्थियाँ कमजोर हो जाती है। 
    9. घाव भरने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

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