औद्योगिक नीति का Means, महत्व And भारत में औद्योगिक नीति का विकास

(iv) प्रशुल्क And कर नीति-इस नीति के अन्तर्गत सरकार की प्रशुल्क नीति अनावश्यक विदेशी स्पर्द्धा को रोकने की होगी जिससे कि उपभोक्ता पर अनुचित भार डाले बिना विदेशी साधनों का उपयोग Reseller जा सके। पूँजीगत विनियोग करने, बचत में वृद्धि करने And कुछ व्यक्तियों के हाथों में सम्पित्त का केन्द्रीयकरण रोकने के लिए कर-प्रणाली में आवश्यक सुधार Reseller जायेगा।

(v) श्रमिकों के हितो की Safty – इस नीति के अन्तर्गत औद्योगीकरण को गति देने तथा उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए श्रम व प्रबन्ध के मध्य मधुर सम्बन्धों के महत्वों पर बल दिया गया जिससे कि श्रम शक्ति का पूर्ण व कुशलतम उपयोग Reseller जा सके। इसके लिए इस नीति के अन्तर्गत श्रमिकों के लिए अभिप्रेरणा And कल्याणात्मक कार्यक्रमों को चलाने तथा प्रबन्ध में श्रमिकों को भाग बातों पर भी जोर दिया गया।

    2. औद्योगिक नीति, 1956 –

    भारत की First औद्योगिक नीति 1948 के बाद देश में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, जिनके कारण Single नयी औद्योगिक नीति की Need महसूस होने लगी। नवीन औद्योगिक नीति की Need के सम्बन्ध मे तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने संसद में कहा था कि – ‘‘First औद्योगिक नीति की घोषणा के बाद इन आठ वर्षों में भारत में काफी औद्योगिक विकास तथा परिवर्तन हुए हैं। भारत का नया संविधान बना, जिसके अन्तर्गत मौलिक अक्तिाकार (Fundamental Rights) और राज्य के प्रति निर्देशक सिद्धान्त घोषित किये गये हैं। First योजना पूर्ण हो चुकी है और सामाजिक तथा आर्थिक नीति का प्रमुख उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना करना मान लिया गया है, अत: Need इस बात की है कि इन All बातों तथा आदर्शों के प्रति बिम्बित करते हुये Single नर्इ औद्योगिक नीति की घोषणा की जाए। अत: भारत की नवीन औद्योगिक नीति की घोषणा 30 अप्रैल, 1956 को की गयी।

    औद्योगिक नीति, 1956 के उद्देश्य – 

    1. औद्योगीकरण की गति में तीव्र वृद्धि करना। 
    2. देश की Meansव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए बड़े उद्योगों का विकास And विस्तार करना, 
    3. सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार करना, 
    4. कुटीर And लघु उद्योगों का विस्तार कराना, 
    5. Singleाधिकार And आर्थिक सत्ता के संकेन्द्रण को रोकना, 
    6. रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध करना, 
    7. आय तथा धन के वितरण की असमानताओं को कम करना, 
    8. श्रमिकों के कार्य करने की दशाओं में सुधार करना, 
    9. औद्योगिक सन्तुलन स्थापित करना, 
    10. श्रम, प्रबन्ध And पूँजी के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित करना। 

    औद्योगिक नीति, 1956 की मुख्य विशेषताएँ – 

    (i) उद्योगो का वर्गीकरण – इस नीति में उद्योंगों को तीन वर्गों में विभाजित Reseller गया: 1. वे उद्योग, जिनके निर्माण का पूर्ण उत्तरदायित्व राज्य पर होगा, 2. े उद्योग, जिनकी नवीन इाकाइयों की स्थापना साधारणत: सरकार करेगी,, लेकिन निजी क्षेत्र से यह आशा की जायेगी कि वह इस प्रकार के उद्योगों के विकास में सहयोग दे, 3.शेष All उद्योग जिनकी स्थापना और विकास सामान्यत: निजी क्षेत्र के अधीन होगा। इस नीति में उद्योगों का वर्गीकरण तीन अनुसूचियों में Reseller गया है –

    1. अनुसूची ‘क’ – इनमें 17 उद्योगों को सम्मिलित Reseller गया है, जिसके भावी विकास का सम्पूर्ण दायित्व सरकार पर होगा। इस अनुसूची में सम्मिलित किये गये उद्योग इस प्रकार हैं – अस्त्र-शस्त्र और सैन्य सामग्री,, अणु शक्ति, लौह And इस्पात, भारी ढलार्इ, भारी मशीनें, बिजली का सामान, कोयला, खनिज तेल, लौह धातु तथा ताँबा, मैगजीन, हीरे व सोने की खानें, सीसा And जस्ता आदि खनिज पदार्थ, विमान निर्माण, वायु परिवहन, रेल परिवहन, टेलीफोन, तार और रेडियो उपकरण, विद्युत शक्ति का जनन और उसका वितरण। उपरोक्त समस्त उद्योग पूर्णतया सरकार के अधिकार क्षेत्र में रहेंगे।
    2. अनुसूची ‘ख’ – इस वर्ग में वे उद्योग रखे गये हैं जिनके विकास में सरकार उत्तरोत्तर आधिक भाग लेगी। अत: सरकार इनकी नर्इ इकाइयों की स्थापना स्वयं करेगी लेकिन निजी क्षेत्र से भी आशा की गर्इ कि वह भी इसमें सहयोग देगा। इस वर्ग में 12 उद्योग शामिल किये – अन्य खनिज, एल्मुनियम And अन्य अलौह धातुएँ, मशीन औजार, लौह मिश्रित धातु, औजारी इस्पात, रसायन उद्योग, औषधियां, उर्वरक, कृतिम रबर, कोयले से बनने वाले कार्बनिक रसायन, रासायनिक घोल, सड़क परिवहन And समुद्री परिवहन। इस वर्ग को मिश्रित क्षेत्र की संज्ञा दी जा सकती है।
    3. अनुसूची ‘ग’ – इस वर्ग में शेष समस्त उद्योगें को रखा गया है तथा जिनके विकास व स्थापना का कार्य निजी और सहकारी क्षेत्र पर छोड़ दिया गया, परन्तु इनके सम्बन्ध में सरकारी नियन्त्रण And नियमन की व्यवस्था की गर्इ इस वर्ग को निजी क्षेत्र (Private Sector) की संज्ञा दी जा सकती है।

    (ii) लघु And कुटीर उद्योगों का विकास – लघु व कुटीर उद्योग को इस औद्योगिक नीति मे भी महत्वपूर्ण स्थान प्रदान Reseller गया। लघु And कुटीर उद्योग से रोजगार के अवसर बढ़ने, आर्थिक शक्ति का विकेन्द्रीकरण होने तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने की पूर्ण सम्भावना होती है इसलिए सरकार ने इस नीति मे बड़े पैमाने के उत्पादन की मात्रा सीमित करके और उनके प्रति विभेदात्मक (Discriminatory) कर प्रणाली अपनाकर तथा लघु And कुटीर उद्योगों को प्रत्यक्ष सहायता देकर लघु And कुटीर उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन दिया।

(iii) निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग- इस नीति के अन्तगर्त सरकार ने यह स्पष्ट Reseller कि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र पूर्णत: अलग-अलग नहीं हैं बल्कि वे Single-Second के सहयोगी हैं।

(iv) निजी क्षेत्र के प्रति न्यायपूर्ण And भेदभाव रहित व्यवहार – इस नीति के अन्तर्गत सरकार ने स्पष्ट Reseller कि निजी क्षेत्र के विकास में सहायता देने की दृष्टि से सरकार पंचवष्रीय योजनाओं द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों के According विद्युत परिवहन तथा अन्य सेवाओं और राजकीय उपायों से उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन देगी, परन्तु निजी क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों को सामाजिक और आर्थिक नीतियों के अनुReseller कार्य करना होगा।

(v) सन्तुलित औद्योगिक विकास – इस नीति में यह स्पष्ट Reseller गया कि सरकार उद्योग And कृषि का सन्तुलित And समन्वित विकास करके और प्रादेशिक विषमताओं को समाप्त करके सम्पूर्ण देश के निवासियों को उच्च जीवन स्तर उपलब्ध कराने का प्रयास करेगी।

(vi)

तकनीकी And प्रबन्धकीय सेवाएँ – इस नीति में इस बात को स्वीकार Reseller गया कि औद्योगिक विकास का कार्यक्रम चलाने लिए तकनीकी And प्रबन्धकीय कर्मचारियों की माँग बढ़ जायेगी जिसके लिए सरकारी And निजी दोनों प्रकार के उद्योगों में प्रशिक्षण सुविधाएँ देने की व्यवस्था की जायेगी तथा व्यावसायिक प्रबन्ध प्रशिक्षण सुविधाओं का विश्वविद्यालयों व अन्य संस्थाओं में विस्तार Reseller जायेगा। अत: देश में प्रबन्धकीय और तकनीकी कैडर (Managerial and Technical Cadre) की स्थापना की जायेगी।

(vii) औद्योगिक सम्बन्ध And श्रम कल्याण- इस नीति में औद्योगिक सम्बन्धों को अच्छे बनाए रखने And श्रमिकों को आवश्यक सुविधाएँ And प्रोत्साहन देने पर जोर दिया गया। कार्य-दशाओं में सुधार तथा उत्पादकता पर जोर दिया गया। इसके अतिरिक्त इस नीति में उद्योगों के संचालन में संयुक्त परामर्श को प्रोत्साहित करने को भी कहा गया और औद्योगिक शान्ति को बनाए रखने पर भी जोर दिया गया।

3. औद्योगिक नीति, 1991- 

औद्योगिक नीति, 1991 की घोषणा 24 जुलार्इ, 1991 में की गर्इ।

औद्योगिक नीति, 1991 के उद्देश्य  – 

  1. सुदृढ़ नीति सरंचना (Sound Policy Framework) 
  2. लघु उद्योगों का विकास (Development of Smallscale Industies) 
  3. आत्म-निभर्रता (Self-Reliance) 
  4. Singleाधिकार की समाप्ति (Abolition of Monopoly) 
  5. श्रमिको के हितो का सरं क्षण (Protection of Interest of Labourers) 
  6. विदेशी विनियोग (Foreign Investment) 
  7. सार्वजनिक क्षत्रे की भूमिका (Role of Public Sector) 

औद्योगिक नीति, 1991 के विशेष प्रावधान – 

(i) उदार औद्योगिक नीति – इस नीति के द्वारा 18 उद्योगों को छोड़कर अन्य All उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। इन 18 उद्योगों की दशा में लाइसेंसिंग व्यवस्था को अनिवार्य रखा गया है। इन उद्योगों में कोयला, पेट्रोलियम, चीनी, चमड़ा, मोटर कारें, बसें, कागज तथा अखबारी कागज, रक्षा उपकरण, औषधि इत्यादि शामिल हैं। जिन उद्योगों के लिए लाइसेंसिग व्यवस्था को अनिवार्य रखा गया है उनके कारणों में Safty And सामरिक नीति, सामाजिक कारण, वनों की Safty, पर्यावरण समस्याएँ, हानिकारक वस्तुओं का उत्पादन तथा धनी लोगों के उपयोग की वस्तुएँ मुख्य हैं।

(ii) सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका – सरकार ने लाके उपक्रमों के प्रति नवीन दृष्टिकोण अपनाने की घोषणा की है। इसके अन्तर्गत ऐसे लोक उपक्रमों को अधिक सहायता प्रदान की जायेगी, जो औद्योगिक Meansव्यवस्था के संचालन के लिए आवश्यक है। इन उपक्रमों को अधिक से अधिक विकासोन्मुख और तकनीकी दृष्टि से गतिशील बनाया जायेगा। जो उपक्रम वर्तमान में ठीक नहीं चल पा रहे, लेकिन पर्याप्त सम्भावनाएँ हैं, उन्हें पुन: संगठित Reseller जायेगा। भविष्य में लोक उपक्रमों के विकास की दृष्टि से प्राथमिकता वाले क्षेत्र निम्न प्रकार होंगे- (i) आवश्यक आधारभूत संCreation से सम्बन्धित वस्तुएँ और सेवाएँ, (ii) तेल खनिज संसाधनों का निष्कर्षण, (iii) ऐसे क्षेत्र में तकनीकी विकास And निर्माणी क्षमता का निर्माण जो दीर्घकाल में उत्पादों का निर्माण जहाँ सामरिक घटक महत्वपूर्ण हैं, जैसे-Safty उपकरण। इस नीति के अन्तर्गत सार्वजनिक उद्योगों की संख्या घटाकर केवल 8 कर दी गर्इ है जो कि इस प्रकार है- (i) अस्त्र And गोला-बारूद तथा रक्षा साज-सामान, रक्षा वायुयान और Fightपोत से सम्बन्धित मदें, (ii) परमाणु शक्ति (iii) कोयला और लिग्नाइट, (iv) खनिज तेल, (v) लौह मैंगनीज तथा क्रोम, अयस्कों, जिप्सम, गंधक, स्वर्ण और हीरे का खनन, (vi) ताँबां, सीसा, जस्ता, टिन मोलिडिब्नम और विलफ्राम का खनन, (vii) परमाणु शक्ति के उपयोग के खनिज, तथा (viii) रेल परिवहन।

(iii) Singleाधिकारी And प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम में संशोधन – इस नीति में यह घोषणा की गर्इ है कि बड़ी कम्पनियों और औद्योगिक घरानों पर Singleाधिकारी And प्रतिबन्धात्मक व्यापार अधिनियम के अन्तर्गत पूँजी सीमा समाप्त कर दी जायेगी। इसके फलस्पReseller बड़े औद्योगिक घरानों और कम्पनियों को नये उपक्रम लगाने, किसी उद्योग की उत्पादन क्षमता बढ़ाने, कम्पनियों का विलीनीकरण करने, उनका स्वामित्व लेने अथवा कुछ परिस्थितियों मे संचालकों की Appointment करने, उनका स्वामित्व लेने अथवा कुछ परिस्थितियों में संचालकों की Appointment करने के लिए केन्द्रीय सरकार की पूर्व स्वीकृति नहीं लेनी होगी। सरकार भविष्य में इस अधिनियम के माध्यम से Singleाधिकारी, प्रतिबन्धात्मक तथा अनुचित औद्योगिक And व्यापारिक प्रवृित्तयों को नियन्त्रित करने पर अधिक महत्व देगी। 

(iv) स्थानीयकरण नीति  इस नीति के According जिन उद्योगों के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य नहीं होगा, उन्हें छोड़कर दस लाख से कम जनसंख्या वाले नगरों में किसी भी उद्योग के लिए औद्योगिक अनुमति की जरूरत नहीं होगी। दस लाख से अधिक आबादी वाले नगरों के मामलों में इलक्ट्रानिक्स और किसी तरह के अन्य गैर-प्रदूषणकारी उद्योगों को छोड़कर All इकाइयाँ नगर की सीमा से 25 किलोमीटर के बाहर लगेंगी।

(v) विदेशी से पूँजीगत साज-सामान का आयात – विदेशी पूँजी के विनियोग वाली इकाइयों पर पुर्जे, कच्चे माल और तकनीकी जानकारी के आयात के मामले में सामान्य नियम लागू होंगे लेकिन रिजर्व बैंक विदेशी में भेजे गये लाभांश पर नजर रखेगा, जिससे बाहर भेजी गयी विदेशी मुद्रा और उस उपक्रम की निर्यात की आय के मध्य सन्तुलन बना रहे। नयी नीति के अन्तर्गत अनुसूची III में शामिल प्राथमिकता वाले उद्योगों को छोड़कर अन्य मामलों में विदेशी अंश पूँजी की पूर्व स्वीकृति लेनी होगी।

(vi) व्यापारिक कम्पनियों में विदेशी अंश पूँजी – इस नीति के According अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में Indian Customer माल की पहुँच बनाने की दृष्टि से निर्यात करने वाली व्यापारिक कम्पनियों में भी 50 प्रतिशत तक विदेशी पूँजी के विनियोग की अनुमति दी जायेगी लेकिन इस प्रकार की कम्पनियों पर देश की सामान्य आयात-निर्यात नीति ही लागू होगी।

(vii) विद्यमान इकाइयों का विस्तार –इस नीति में विद्यमान औद्योगिक इकाइयों को नयी विस्तृत पट्टी (Broad Banding) की सुविधा दी गर्इ है जिसके अन्तर्गत बिना अतिरिक्त विनियोग के वे किसी भी वस्तु का उत्पादन कर सकते हैं। विद्यमान इकाइयों का पर्याप्त विस्तार भी लाइसेंसिग से मुक्त रहेगा।

(viii) लोक उपक्रमों की कार्य प्रणाली – इस नीति के According लगातार वित्तीय संकट में रहने वाले लोक उपक्रमों की जाँच औद्योगिक And वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (Board for Industrial and Financial Reconstruction) अथवा किसी प्रकार का कोर्इ अन्य विशेष संस्थान करेगा। छंटनी किये गये कर्मचारियों के पुनर्वास के लिए सामाजिक Safty योजना बनार्इ जायेगी। लोक उपक्रमों की कार्य प्रणाली सुधारने के लिए सरकार बोर्ड के साथ Agreeि समझौतों (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर करेगी और दोनों पक्ष इस Agreeि के प्रति उत्त्ारदायी होंगे। सरकार की तरफ से Agreeि वार्ता में भाग लेने वाले लोगों का तकनीकी स्तर बढ़ाया जायेगा।

    औद्योगिक नीति 1991 में किये गये परिवर्तन –

    सरकार ने औद्योगिक नीति 1991 के घोषित होने के पश्चात भी औद्योगिक उपलब्धियों को मजबूत करने, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिस्पध्री बनाने की प्रक्रिया को गति देने, घरेलू तथा विदेशी प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने पर जोर देने आदि के लिए औद्योगिक नीति 1991 में समय-समय पर परिवर्तन And संशोधन Reseller जा रहा है। इस औद्योगिक नीति में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तनों या सुधारों का description  है-

    (i) औद्योगिक अनुज्ञापन में ढील – औद्योगिक नीति, 1991 जब घोषित हुर्इ थी, तो उस समय 18 प्रमुख उद्योगों को अनुज्ञापन लेना आवश्यक था जिसमें 14 अप्रैल 1993 से उद्योगों (मोटरकार, खालें, चमड़ा व रेफ्रिजरेटर उद्योग) को अनुज्ञापन से मुक्त कर दिया गया। तत्बाद 1997 में केन्द्र सरकार ने उदारीकरण की दिशा में कदम बढ़ाते हुए 5 अन्य उद्योगों को अनुज्ञापन से मुक्त कर दिया। इसके तीन वर्ष पश्चात पुन: 4 और उद्योगों को अनिवार्य अनुज्ञापन से मुक्त कर दिया गया। इस प्रकार औद्योगिक नीति, 1991 में घोषित 18 प्रकार के उद्योगों के अनुज्ञापन को घटाकर वर्तमान में 5 प्रकार के उद्योगों को ही अनिवार्य लेने की Need है। वे उद्योग जिनको अब अनुज्ञापन लेना अनिवार्य है-

    1. एल्कोहलिक पेयों का अवसान व इनसे शराब बनाना, 
    2. तम्बाकू के सिगार व सिगरेट तथा विनिर्मित तम्बाकू के अन्य विकल्प, 
    3. इलेक्ट्रानिक एयरोस्पेस व Safty उपकरण, 
    4. औद्योगिक विस्फोटक-डिटोनेटिव, फ्यूज, सेफ्टीफ्यूज, गन पाउडर, नाइट्रोसूल्यूलोज तथा माचिस सहित औद्योगिक विस्फोटक सामग्री, 
    5. खतरनाक रसायन 

    (ii) सरकारी क्षेत्रों के लिए आरक्षित उद्योगों में कमी – औद्योगिक नीति, 1991 में सरकारी क्षेत्र के लिए 17 आरक्षित उद्योगों को रखने का प्रावध् ाान Reseller गया था, परन्तु उदारीकरण के लागू होने के पश्चात इसमें कमी की गयी। वर्तमान समय में ऐसे सरकारी क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या घटकर केवल 3 ही रह गयी है। ये उद्योग है- (i) परमाणु ऊर्जा (ii) रेलवे परिवहन (iii) परमाणु ऊर्जा खनिज (15 मार्च, 1995 को जारी अधिसूचना सं. 50 212(E) के परिशिष्ट में दर्शाये गये पदार्थ हाल ही के वर्षों में इन उद्योगों में भी कुछ कार्यों के सम्पादन के लिए निजी क्षेत्र को अनुमति प्रदान की गयी है।

    (iii) एम. आर. टी. पी. अधिनियम, के स्थान पर प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 – Indian Customer Meansव्यवस्था में घरेलू तथा विदेशी कम्पनियों के मध्य स्वस्थ And सकारात्मक प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने तथा उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए एम. आर. टी. पी. अधिनियम के स्थान पर प्रतिस्पर्धा अधिनियम बनाने का निर्णय विजयराघवन समिति की सिफरिशों के आधार पर सरकार ने लिया। इस सन्दर्भ में संसद द्वारा वर्ष 2002 में प्रतिस्पर्धा विधेयक को पारित Reseller गया तथा 14 जनवरी 2003 को भारत के राजपत्र में प्रकाशित होने के बाद इसी तिथि से यह अधिनियम अस्तित्व में आ गया। इस अधिनियम का गठन Single नियामक आयोग के Reseller में Reseller गया।

    (iv) विदेशी निवेश नीति का उदारीकरण – सरकार ने विदेशी निवेश के सम्बन्ध में नीतिगत उपाय किये हैं-

    1. औद्योगिक नीति 1991 में देश उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के 34 उद्योगों में विदेशी पूँजी निवेश की सीमा 51 प्रतिशत तक Reseller गया था, परन्तु बाद में इन उद्योगों की संख्या बड़ाकर 48 कर दी गयी। खनन क्रियाओं से सम्बन्ध रखने वाले तीन उद्योगों में विदेशी निवेश की सीमा 50 प्रतिशत तथा अन्य उद्योगों में विदेशी निवेश की सीमा को 74 प्रतिशत तक करने की अनुमति सरकार ने प्रदान की है। 
    2. गैर-स्वीकृत कम्पनियों में विदेशी संस्थागत निवेशक Single कम्पनी की पूँजी में अब 10 प्रतिशत तक निवेश कर सकते हैं। नयी औद्योगिक नीति में निवेश की सीमा 5 प्रतिशत ही थी।
    3. विदेशी पूँजी निवेश के लिए मशीनरी के नयी होने की शर्त को हटा दिया गया है।
    4. Indian Customer मूल के विदेशी नागरिकों को अब Indian Customer रिजर्व बैंक की अनुमति के बिना आवासीय सम्पित्त अधिगृहीत करने की अनुमति दी दे गयी है। 
    5. जिन कम्पनियों का कार्य कम से कम 3 वर्ष तक संतोषजनक रहा है, वे अन्तर्राष्ट्रीय पूँजी बाजार में यूरो निर्गमन के जरिये विदेशी पूँजी जुटा सकती हैं। 
    6. 20 सितम्बर 2001 को सरकार द्वारा घोषणा की गयी कि विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा पोर्टफोलियो निवेश की सामान्य 24 प्रतिशत की सीमा के स्थान पर 49 प्रतिशत तक निवेश Reseller जा सकता हैं। 
    7. निजी क्षेत्र में कार्यरत बैंकों में विदेशी पूँजी निवेश की सीमा 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दिया गया है। 
    8. तेल शोधन के क्षेत्र में अभी तक केवल 26 प्रतिशत तक ही विदेशी पूँजी निवेश (FDI) की अनुमति थी, जिसे सरकारी तेल कम्पनियों की रिफाइनरियों को छोड़कर शेश पर 100 प्रतिशत विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति प्रदान कर दी गयी। 
    9. पेट्रोलियम पदार्थों के विपणन के क्षेत्र में 74 प्रतिशत की विदेशी पूँजी निवेश की सीमा को बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया गया। बशर्तें 5 साल के अन्दर इस निवेश में से 26 प्रतिशत Indian Customer सहयोगी या आम निवेशकों को बेचा जाय। 
    10. तेल की खोज क्षेत्र में गैर-कम्पनी वाले संयुक्त उद्यमों में 60 प्रतिशत तथा कम्पनी बनाकर काम करने वाले संयुक्त उद्यमों में 100 प्रतिशत (First यह 51 प्रतिशत थी) तक विदेशी पूँजी निवेश कर दिया गया।
    11. विदेशी निवेश सम्वर्द्धन बोर्ड (Foreign Investment Promotion Board) का 18 फरवरी 2003 को पुनर्गठन करके इसे वित्त मन्त्रालय के आर्थिक कार्य विभाग को हस्तान्तरित Reseller गया। बोर्ड के पुर्गठन के अन्तर्गत सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सम्बन्धी प्रक्रिया को उदार बनाया है, जिसमें निवासी द्वारा अनिवासी के अंशों का हस्तातरण ECB का इक्वटी में परिवर्तन तथा अंशों के नये निर्गमन के द्वारा विदेशी पूँजी भागीदारी में बढ़ोत्तरी आदि को सरकारी औपचारिकता के स्थान पर स्वत: मन्जूरी का प्रस्ताव के साथ-साथ कुछ शर्तों के आधार पर विदेशी निवेश तकनीकी सहयोग के नये प्रस्तावों का अब स्वत: मंजूरी के अन्तर्गत प्रस्तुत करने की अनुमति होगी। 
    12. विद्युत व्यापार And उसकी प्रक्रिया, काफी And रबड़ के भण्डारण आदि के स्वचालित मार्ग में 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति, 
    13. Singleल ब्राण्ड के खुदरा व्यापार में सरकार की अनुमति लेकर 51 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति। 
    14. कृषि And सम्बन्धित व नियन्त्रित शर्तों And सेवाओं के अन्तर्गत स्वचालित मार्ग के माध्यम से सेवाओं (जैसे – पुष्प कृषि, बागवानी, बीजों का विकास, पशुपालन, मत्स्य पालन, सब्जियों And खुम्बी की खेती) शत प्रतिशत तक प्रत्यक्ष निवेश अनुमति। 
    15. 13 मार्च 2008 को सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आर्इ) के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किये हैं- 
      1. क्रेडिट सूचना कम्पनियों के मामले में 49 प्रतिशत तक एफ. डी. आर्इ.। 
      2. उपज विपणि में 26 प्रतिशत तक एफ. डी. आर्इ. तथा 23 प्रतिशत तक एफ. आर्इ. आर्इ. की छूट परन्तु कोर्इ व्यक्तिगत निवेशक 5 प्रतिशत से अधिक का हिस्सेदार नहीं हो सकता।
      3. औद्योगिक पार्कों की सीमा निर्धारण करने वाले प्रावधानों की समाप्ति।
      4. गैर-अनुसूचित एयरलाइन्स, चार्टर्ड एयरलाइन्स तथा कार्गो, उड्डयन प्रशिक्षण विद्यालयों की स्थापना And विकास से सम्बन्धित क्रियाओं में 100 प्रतिशत तक एफ.डी.आर्इ.। सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनरी में 49 प्रतिशत तक एफडी. आर्इ. की अनुमति। 
        1. केन्द्र सरकार ने 13 मार्च 2008 के 1553.26 करोड़ रुपये के 18 प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रस्तावों को अपनी स्वीकृति प्रदान की। 5. सरकारी खनिज उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए खोलना ;Govt. owned mines & minerals Industry open for pvt. sector)- औद्योगिक नीति 1991 में 13 खनिज उद्योगों को सरकारी क्षेत्र के लिए आरक्षित रखने का प्रावधान Reseller गया था। परन्तु आधुनिकीकरण And उदारीकरण के दौर प्रारम्भ होने के बाद 26 मार्च 1993 को इन उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए पूर्णतया खोल दिया गया। 

        (v) उत्पाद And आयात शुल्कों में कमी – 1991 की औद्योगिक नीति में उत्पाद And आयात शुल्कों को सरल And तार्किक बनाने का प्रयास Reseller गया था, परन्तु इसके पश्चात भी पूँजीगत वस्तुओं पर उत्पादक शुल्कों को और युक्तिसंगत बनाया गया है। पूँजी सम्बन्धी लागतों को कम करने के लिए तथा निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए आयात And उत्पाद शुल्कों में और भी कटौती की गयी है।

      (vi) पूँजी लाभ पर कर में कमी-  पूँजी बाजार में विदेशी निवेश स्तरों में वृद्धि व प्रोत्साहित करने के लिए विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए अल्पकालीन पूँजी लाभों पर 30 प्रतिशत की रियायती कर की दर आरम्भ की गयी है।

      (vii) दूरसंचार में उदार निवेश तथा नीति में परिवर्तन – नयी औद्योगिक नीति में आधार भूत दूरसंचार सेवा के क्षेत्र में 24 प्रतिशत विदेशी निवेश की व्यवस्था की गयी थी। परन्तु उदारीकरण के बाद इसके विकास And विस्तार की Need को देखते हुए सरकार 2000-01 के बजट में 40 प्रतिशत की विदेशी निवेश की सीमा बढ़ा दी है। इसके पश्चात 2004-05 के बजट के आधारभूत दूर संचार सेवा के क्षेत्र में 74 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति प्रदान की गयी है। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल द्वारा 26 मार्च, 1999 को अनुमोदित नयी दूरसंचार नीति (New Telecommunication Policy-NTP-99) की घोषणा नीति का स्थान ले लिया है। नर्इ नीति के अन्तर्गत सन 2002 तक ‘माँग पर फोन (Telephone on Demand) उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था। देश में टेलीफोन उपलब्धता को 2005 तक 7 प्रति हजार जनसंख्या तथा 2010 तक 15 प्रति हजार जनसंख्या तक लाने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार ने 13 अगस्त 2000 से प्राइवेट आपरेटरों के लिए उनकी संख्या पर बिना किसी प्रतिबन्ध राष्ट्रीय लम्बी दूरी की सेवा 15 जनवरी 2002 से खोल दिया। बुनियादी फोन सेवा प्रदान करने वाली कम्पनियों की संख्या का निर्धारण दूरसंचार नियमन प्राधिकरण (TRAI) द्वारा Reseller जायेगा। केन्द्र सरकार ने तेज गति की इंटरनेट सेवा सम्बन्धी नीति (Broad Band Policy) की घोषणा 14 अक्टूबर 2004 को कर दी, जिसका उद्देश्य तीव्र गति से इंटरनेट प्रदान करते हुए अधिक से अधिक लोगों को इंटरनेट से जोड़ना है। 2 नवम्बर 2000 से ‘डायरेक्ट टू होम’ (DTH) सेवा प्रदान की गयी है, जिसके माध्यम से दूर दराज गाँवो में भी सस्ते And छोटे से उपकरण के माध्यम से बिना मासिक शुल्क के 100 से अधिक चैनलों को देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त संचार विभाग ने टेलीफोन सेवा उपलब्ध कराने के लिए 5 मार्च 2008 को आवंटन पूरा होने के बाद कुल 126 नये लाइसेंस जारी किये हैं।

      (vii) उपक्रम पूँजी निधियों को छूट – नयी औद्योगिक नीति में नये उपक्रम कम्पनी में अपनी संग्रहित राशि का 5 प्रतिशत तक निवेश कर सकते हैं, परन्तु बाद में इस सीमा में वृद्धि करके 10 प्रतिशत कर दिया गया।

      (viii) बीमा व्यवसाय में निजी कम्पनियों को अनुमति – नयी औद्याेिगक नीति के बीमा व्यवसाय के सम्बन्ध में प्रावधान Reseller गया था कि यह व्यवसाय केवल सरकारी क्षेत्र के लिए ही आरक्षित रहेगा परन्तु अक्टूबर 2000 में इसमें परिवर्तन Reseller गया तथा बीमा नियामक विकास प्राधिकरण (IRDA) ने प्रारम्भ में निजी क्षेत्र की तीन कम्पनियों को बीमा व्यवसाय प्रारम्भ करने का अनुज्ञापन प्रदान कर दिया इन तीन कम्पनियों में जीवन बीमा के क्षेत्र में एच. डी. एफ. सी. स्टैण्डर्ड लाइफ इंश्योरेन्स कम्पनी लि. (HDFC Standard Life Insurance Company Ltd.) तथा साधारण बीमा के क्षेत्र में ‘रिलायंस जनरल इंश्योरेन्स कम्पनी लि- (Reliance General Insurance Co Ltd.) व रायल सुन्दरम एलायस इंश्योरेन्स कम्पनी लि- Royalsundaram Insurance company Ltd. को अनुज्ञापन प्रदान किये। जून 2008 तक निजी क्षेत्र की कुल 19 जीवन बीमा कम्पनियों तथा 13 सामान्य बीमा कम्पनियों को बीमा व्यवसाय करने हेतु लाइसेंस प्रदान Reseller गया है।

      (ix) रक्षा सम्बन्धी उत्पादन में निजी क्षेत्र के प्रव्रेश की अनुमति – नयी औद्योगिक नीति में रक्षा सम्बन्धी उत्पादन का कार्य केवल सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा करने का प्रावधान था। परन्तु केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल के 9 मर्इ 2001 को लिए गये Single निर्णय के According केन्द्र सरकार ने Safty सम्बन्धी 26 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति होगी परन्तु Safty सम्बन्धी उत्पादन करने के लिए निजी क्षेत्र की कम्पनी को रक्षा मन्त्रालय से लाइसेंस लेना अनिवार्य होगा। रक्षा सम्बन्धी किन-किन उत्पादों के उत्पादन हेतु निजी क्षेत्र को अनुमति दी जानी है, इसका निर्णय रक्षा मन्त्रालय के अधीन है।

      (x) लघु उद्योगों की नीति में परिवर्तन – नयी औद्योगिक नीति में लघु उद्योगों के निवेश की सीमा को Single करोड़ रु. करने का प्रावधान Reseller गया था परन्तु फरवरी 1997 में इसमें परिवर्तन करके 3 करोड़ रु. की सीमा निर्धारित कर दी गयी तथा लघु उद्योगों की माँग पर पुन: फरवरी 1997 में इस सीमा को घटाकर Single करोड़ रु. कर दिया गया। लघु And मध्यम उपक्रम विकास विधेयक 2005 के According लघु उद्योगों में निवेश की सीमा बढ़ाकर 5 करोड़ रु. कर दिया गया है। लघु उद्योग क्षेत्र के अन्तर्गत निर्मित की जाने वाली आरक्षित वस्तुओं की संख्या 836 थी, जिसमें समय समय पर कमी Reseller जाता रहा, जो वर्तमान में केवल 35 वस्तुएँ ही आरक्षित वर्ग में रह गयी हैं, जिनमें 5 वस्तुएँ खाद्य पदार्थ व उससे सम्बन्धित, Single वस्तु लकड़ी के उत्पाद, 5 वस्तुएँ प्लास्टिक उत्पाद, 3 वस्तुएँ आर्गेनिक रसायन, दवाएँ व दवाओं के सहायक, 7 अन्य रसायन व रासायनिक उत्पाद, Single सीसा व शीशा युक्त, 10 वस्तुएँ मैकेनिकल इन्जीनियरिंग तथा 2 वस्तुएँ बिजली की मशीनें, एप्लायंस तथा उपकरण से सम्बन्धित हैं

      (xi) फिल्म And मनोरंजन को उद्योग का दर्जा – फिल्म व मनारे जं न क्षत्रे के विकास को सहायता करने के लिए सरकार ने अक्टूबर 2000 में फिल्मों सहित मनोरंजन क्षेत्र को Indian Customer औद्योगिक विकास बैंक अधिनियम, 1954 के अन्तर्गत उद्योग बीमा कराने तथा करों में विवेकीकरण करने में सुविधा हो जायेगी।

      (xii) अन्य महत्वपूर्ण परिवर्तन या संशोधन – नयी औद्योगिक नीति 1991 के घोषित होने के बाद कुछ अन्य महत्वपूर्ण परिवर्तन, उपायों या संशोधनों का description है-

        1. विदेशी निवेश संवद्र्धन को प्रोत्साहन देने के लिए विदेशी निवेश संवद्र्धन परिषद् गठन तथा विदेशी निवेश संवद्र्धन मण्डल का पुनर्गठन। 
        2. सेवाकर को बढ़ाकर 12 प्रतिशत Reseller गया। 
        3. कम्पनियों की रुग्णता (sickness) का पता लगाने के लिए दिसम्बर 1993 में रुग्ण औद्योगिक कम्पनी (विशेष उपबन्ध) अधिनियम, 1985 मे संशोधन।
        4. गैर-वित्तीय कम्पनियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की 100 प्रतिशत अनुमति। 
        5. निर्यात ऋण पुनर्वित सीमाओं में वृद्धि। 
        6. वाणिज्यिक क्षेत्र को पर्याप्त साख उपलब्ध कराने के लिए नकद आरक्षित अनुपात (CRR) तथा सांविधिक नकदी अनुपात (SLR) में समय-समय पर परिवर्तन। 
        7. थोक दवाओं के लिए औद्योगिक लाइसेंस की समाप्ति। 
        8. All वस्तुओं वर सेनवैट 16 प्रतिशत से घटाकर 14 प्रतिशत करना। 

        औद्योगिक नीति, 1991 का मूल्यांकन 

        तत्कालीन प्रधनमन्त्री श्री पी. वी. नरसिंहराव ने इस नीति को उदार नीति बताते हुए अगस्त, 1991 को राज्य सभा में कहा था कि-

        सरकार ने औद्योगिक नीति, 1991 को Single खुली औद्योगिक नीति की संज्ञा दी है। इसमें अनेक आधारभूत परिवर्तन किये गये हैं। औद्योगिक लाइसेंसिंग, रजिस्ट्रेशन व्यवस्था तथा Singleाधिकार अधिनियम का अधिकांश भाग समाप्त कर दिया गया है। विदेशी पूँजी के पर्याप्त स्वागत की नीति अपनार्इ गर्इ है, लोक उपक्रमों की भूमिका को पुन: परिभाषित Reseller गया तथा औद्योगिक स्थानीयकरण की नीति को पुन: तय Reseller गया है।

        उपरोक्त विशेषताओं के बावजूद कुछ आलोचकों का विचार है कि बड़ी कम्पनियों और औद्योगिक घरानों के विस्तार, विलीनीकरण And अधिग्रहण की जाँच व्यवस्था को समाप्त करके सरकार ने आर्थिक शक्ति के संकेन्द्रण को रोकने के संदर्भ में उचित नहीं Reseller है। कुछ आलोचकों का विचार है कि विदेशी पूँजी And तकनीक के स्वागतपूर्ण आगमन से घरेलू उद्योगों के विकास पर विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है। संक्षेप में औद्योगिक नीति, 1991 के लिए यह कहा जा सकता है कि यदि विदेशी पूँजी And तकनीक के आगमन पर सावधानीपूर्ण निगरानी रखी जाए तो यह नीति Indian Customer औद्योगिक Meansव्यवस्था (Indian Industrial Economy) को आधुनिक, कुशल गुणवत्ता प्रधान और विश्व बाजार में प्रतियोगी बनाने में महत्वपूर्ण प्रयास सिद्ध हो सकती है।

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