एनजीओ (NGO) के गठन हेतु नियम And नियमावली

समाज कल्याण का मूल प्रारम्भ स्वयंसेवी क्रिया में देखा जा सकता है जिसने इसे पिछली अनेक शताब्दियों से वर्तमान तक जीवित रखा है। भारत में सामाजिक हित के लिए स्वयंसेवी कार्य की गौरवपूर्ण परम्परा रही है। स्वयंसेवी Word लैटिन भाशा के Word, जिसका Means है ‘इच्छा’ अथवा ‘स्वतंत्रता’ से लिया गया है। हैराल्ड लास्की ने समुदाय की स्वतंत्रता को ‘रूचिगत उद्देश्यों के वर्द्धन हेतु व्यक्तियों के इकट्ठा होने के मान्यता-प्राप्त कानूनी अधिकार के Reseller में परिभाशित Reseller है।’ Indian Customer संविधान की धारा 19 (1) (ऋ) के अन्तर्गत Indian Customer नागरिकों को समुदाय बनाने का अधिकार प्राप्त है। समुदाय की स्वतंत्रता Human स्वतंत्रताओं में प्रमुख है। यह मनुश्यों के लिए किसी सामान्य उद्देश्यों के लिए समुदायित होने की व्यापक स्वतंत्रता है। वे किसी कार्य को स्वयं करने अथवा अपने अथवा अन्य व्यक्तियों के हित को प्राप्त करने हेतु किसी कार्य को कराने अथ्ज्ञवा लोक उद्देश्य का अनुधावन करने के लिए इकट्ठा होने की इच्छा रख सकते हैं। संयुक्त राश्ट्र की Wordावली में स्वयंसेवी संगठनों को आ Kingीय संगठन कहा जाता है। इन्हें आदि का नाम भी दिया गया है। स्वयंसेवी संगठन की विभिन्न प्रकार से परिभाशा की गयी है। लार्ड बीवरिज के According, ‘‘सही तौर पर, स्वयंसेवी संगठन Single ऐसा संगठन है जिसका आरम्भ And प्र शासन इसके सदस्यों द्वारा किसी बाह्य नियंत्रण के बिना Reseller जाता है चाहे इसके कार्यकर्ता वैतनिक अथवा अवैतनिक हो।’’ मेरी मोरिस And मोडलीन रोफ की परिभाशाएं भी समान है। मोडलीन रोफ ने केवल यह बात जोड़ी है कि स्वयंसेवी संगठनों को कम से कम आंशिक तौर पर स्वयंसेवी संसाधनों पर आश्रित होना चाहिए।

नियम And नियमावली 

मार्इकल बेंटन ने इसकी परिभाशा किसी Single सामान्य हि अथवा अनेक हितों के अनुधावन हेतु संगठित समूह कहकर की है। डेविड एल0 सिल्स के Wordों में, ‘‘स्वयंसेवी संगठन इसके सदस्यों के कुछेक सामान्य हितों की प्राप्ति हेतु राज्य नियंत्रण के बिना स्वैच्छिक सदस्यता के आधार पर संगठित व्यक्तियों का समूह है।’’ नार्मन जानसन ने स्वयंसेवी समाज सेवाओं की विभिन्न परिभाशाओं की समीक्षा करते हुए इनकी चार प्रमुख विशेषताऐं बतलायी हैं :-

  1. संCreation की विधि, जो व्यक्तियों के लिए स्वैच्छिक है, 
  2. प्रशासन की विधि, इसके संविधान, इसकी सेवाओं, इसकी नीति And इसके लाभार्थियों के बारे में स्वयं-प्रKingीय संगठन निर्णय करते हैं।
  3. वित्त विधि, कम से कम इसका कुछ कोश स्वैच्छिक अभिकरणों से प्राप्त होता है, And 
  4.  पेर्र क जो लाभ-पा्र प्ति नहीं होती। 

कुछ लेखकों, यथा सिल्स के विचार में स्वयंसेवी संगठनों की विधिक प्रस्थिति इसकी क्रियाओं की दृश्टि से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है परन्तु Indian Customer संदर्भ में यह उनके वित्तीय दायित्व के लिए विशेष Reseller से महत्वपूर्ण है। क्योंकि प्रावधान है कि सहायता अनुदानों के लिए केवल ऐसी स्वयंसेवी संस्थाओं पर विचार Reseller जायेगा जो निगमित है तथा जो कम से कम तीन वर्शों से कार्यरत है। स्मिथ And फ्रीडमैन स्वयंसेवी संगठनों को औपचारिक Reseller में संगठित, सापेक्षतया स्थायी द्वितीयक समूह समझते है जो कम संगठित, अनौपचारिक, अस्थायी पा्र थमिक समूह से भिन्न होता है। औपचारिक संगठन परिलक्षित होता है – कार्यालयों की अवस्थिति में जिनके कार्मिकों की भर्ती निर्धारित प्रक्रियाओं के माध्यम से होती है, अनुसूचित बैठकों में, सदस्यता के लिए पात्र योग्यताओं में, श्रम के विभाजन Andविशेषीकरण मे, यद्यपित संगठनों में ये All विशेषएं समान मात्रा में नहीं पायी जातीं, स्वयंसेवी संगठनों को अपनी स्वायत्तता को पर्याप्त मात्रा में त्यागना पड़ता है क्योंकि यदि यह सरकारी अनुदान लेना चाहती है तो इन्हें कुछेक शर्तों को (यद्यपि इनका स्वReseller नियामक है) स्वीकार करना होता है। उदाहरणतया, भारत में स्वयंसेवी संगठनों को राजनीति And धर्म से दूर रहना होता है यदि ये राश्ट्र निर्माण गतिविधियों में भाग लेने हेतु सरकार से धन प्राप्त करना चाहते हैं। यह Indian Customer धर्मनिरपेक्षता के अनुReseller है जिसके अन्तर्गत सार्वजनिक धन का किसी धर्म के प्रचार हेतु प्रयोग नहीं Reseller जा सकता। अन्तिम, उन्हें राश्ट्रीय उद्देश्यों, यथा समाजवाद, धर्म निरपेक्षता, प्रजातंत्र, राश्ट्रीय Singleता And अखंडता के प्रति कटिबद्ध होना चाहिए।स्वयंसेवी संगठन की व्यापक परिभाशा का प्रयास करते हुए, प्रो. एम. आर. इनामदार का कथ्ज्ञन है : ‘‘स्वयंसेवी संगठन को समुदाय के लिए स्थायी तौश्र पर लाभप्रद होने के लिए अपने सदस्यों में सामुदायिक विकास हेतु शक्तिशाली इच्छा And भावना का विकास करना होता है, परिश्रमी And समपिर्त नेतृत्व And भारित कायांर् े में कुशल व्यक्ति प्राप्त करने हेतु आर्थिक तौर पर क्षय होना होता है। स्वयंसेवी संगठन आदि समाज के हित में कार्य करना चाहता है तो उसे First सोसायटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1860 की धारा 20 में पंजीकृत हों।

  1. संस्था का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों के सवांर्गीण विकास करना हो। 
  2. ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन हो जो कि व्यक्ति, समूह, समुदाय, राज्य व राश्ट्रहित में हो।
  3. संस्था में स्वयंसेवियों की संख्या Seven से कम न हो तथा यह ध्यान रखा जाए कि All धर्म जाति And लिंग का प्रतिनिधि हो तथा Single परिवार के सदस्यों को शामिल न Reseller जाये।
  4. समस्त सदस्यों के नाम, पते And व्यवसाय स्पश्ट हो तथा All का उद्देश्य समाज हित में समाजसेवा हो, ऐसे सदस्य को बिल्कुल शामिल न Reseller जाये जो कि धन कमाना चाहते हों। 
  5. All सदस्य अपने हस्ताक्षर करने And सन्तुश्ट होने के बाद रजिस्ट्रार कार्यालय में अपना आवेदन करेंगे तथा जाँचोपरान्त And सही पाये जाने पर उन्हें पंजीकृत प्रमाण पत्र दिया जा सकेगा। 

नियमावली 

स्वयंसेवी संगठन की नियमावली में निम्नलिखित सूचनाऐं स्पश्ट Reseller से दी जाये जिससे किसी प्रकार की भ्रम की स्थिम उत्पन्न न हों

  1. संस्था का पूरा नाम 
  2. संस्था का पूरा पता 
  3. संस्था का कार्य क्षेत्र 
  4. संस्था का उद्देश्य 
  5. सदस्यों की सदस्यता तथा सदस्यों के वर्ग : 
    1. संरक्षक सदस्य 
    2. आजीवन सदस्य 
    3. सामान्य सदस्य 
    4. विशिश्ट सदस्य 
  6. सदस्यों की समाप्ति 
  7. संस्था के अंग : 
    1. साधारण सभा – 

प्रबन्धकारणी समिति साधारण सभा में : इसके अन्तर्गत निम्न सूचनाऐं शामिल की जायें

  1. गठन
  2. बैठक 
  3. सूचना अवधि 
  4. गणपूर्ति 
  5. विषेश वार्शिक अधि 
  6. साधारण सभा के कर्तव्य/अधिकार 
  7. प्रबन्धकारणी समिति And उसके अधिकार 
  8. कार्यकाल 
  9. प्रबन्धकारिणी समिति के पदाधिकारियों के अधिकार And कर्तव्य 
  10. संस्था के नियमों/विनियमों में संषोधन प्रक्रिया 
  11. संस्था का कोश 
  12. व्यय का अधिकार
  13. संस्था के आय-व्यय का लेखा परीक्षण 
  14. संस्था द्वारा/उसके विरूद्ध अदालती कार्यवाही के संचालन का उत्तरदायित्व 
  15. संस्था के अभिलेख
  16.  संस्था का निर्धारण 

यदि उक्त समस्त बिन्दुओं का समावेशि स्वयं सेवी संस्था की नियमावली हेतु आवश्यक है। अत: उक्त समस्त बिन्दुओं को शामिल Reseller जाना चाहिए।

मापदंड

राश्ट्रीय विकास परिशद् जो देश में सर्वोच्च निर्णयकारी संस्था है, जिसके द्वारा स्वीकृत Sevenवीं योजना प्रलेख में स्वयंसेवी संगठनों को मान्यता देने हेतु मापदंड निम्नलिखित हैं : –

  1. संगठन का विधिक असितत्व होना चाहिए 
  2. उद्देश्य समुदाय की सामाजिक And आर्थिक Needओंविशेषतया कमजोर वर्गों की पूर्ति करते हों 
  3. संगठन का उद्देश्य लाभ अर्जित न हो 
  4. All नागरिकों को धर्म जाति रंग धर्ममत, लिंग, वंश के भेदभाव के बिना गतिविधियाँ All के लिए उपलब्ध हों 
  5. कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए आवश्यक नमनीयता, व्यवसायिक योग्यता And प्रबन्धात्मक कौशल हो 
  6. पदाधिकारियों में किसी राजनीतिक दल का निर्वाचित सदस्य न हो 
  7. अहिंSeven्मक And संवैधानिक साधनों का पालन हो 
  8. धर्म निरोक्षता And कार्य की प्रजातंत्रीय विधियों And विचारधारकों के प्रति प्रतिबद्धता हो। 

विशेषताएं 

स्वयंसेवी संगठन की उपर्युक्त परिभाशाओं के आधार पर प्रमुख विशेषताएं हैं :

  1. यह कार्यों के क्षेत्र And स्वReseller के According विधिक प्रस्थिति प्राप्ति हेतु समिति पंजीकरण कानून 1980, Indian Customer न्यासकानून 1882, सहकारी समिति कानून 1904 अथवा संयुक्त स्टाक कम्पनी 1959 के अन्तर्गत पंजीकृत होती है, 
  2. इसके निष्चित लक्ष्य And उद्देश्य And कार्यक्रम होते हैं,
  3. इसकी प्रKingीय संCreation And विधिवत् संरचित प्रबन्ध And कार्यकारी समितियाँ होती है, 
  4. यह बिना किसी बाह्य नियंत्रण के अनेकों सदस्यों द्वारा प्रजातंत्रीय नियमों के According प्रषासित होता है, 
  5. यह अपने कायांर् े के सम्पादन के लिए सहकारी कोश से अनुदानों के Reseller में तथा आंशिक तौर पर स्थानीय समुदाय अथवा इसके कार्यक्रमों से लाभान्वित व्यक्तियों से अंषदान अथवा शुल्क के Reseller में अपनी निधियों को Singleत्रित करता है। 

कार्यक्रम 

परियोजना के माध्यम से विभिन्न कार्यक्रमों को ध्यान में रखकर समय-समय पर परियोजना का निर्माण सम्बन्धित विभाग की दिशानिर्देषों के आधार पर Reseller जाता है। जिन क्षेत्रों को ध्यान में रखकर परियोजना का निResellerण Reseller जाता है। वे कार्यक्रम है :-

  1. परिवार कल्याण कार्यक्रम 
  2. शिशु कल्याण 
  3. परिवार जीवन शिक्षा 
  4. गृह सहायता कार्यक्रम 
  5. बुढ़ापे में देखभाल सम्बन्धी कार्यक्रम 
  6. युवा कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रम 
  7. विकलांगों के कल्याण हेतु कार्यक्रम 
  8. सेवानिवृत्ति सैनिकों के लिए कार्यक्रम 
  9. विपदा रहित 
  10. सामुदायिक विकास 
  11. चिकित्सा समाज सेवा 
  12. मनोरोगों से सम्बन्धित कार्यक्रम 
  13. स्कूल सामाजिक सेवायें 
  14. सुधारात्मक कार्यक्रम 
  15. कमजोर वर्गों के कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रम 
  16. आतंकवादियों तथा दंगों से पीड़ितों का कल्याण 
  17. स्वतंत्रता-संग्राम का कल्याण 
    उपरोक्त कार्यक्रमों सम्बन्धी क्षेत्रों के अतिरिक्त परियोजना का निResellerण मूल्यांकनात्मक, तुलनात्मक And अध्ययनात्मक हो सकता है। जिससे कमजोर वर्गों जैसे – महिला, वृद्ध, अनसूचित जाति/जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यक And अन्य का विकास हो सके।

    तत्व 

    व्यक्तियों को स्वैच्छिक कार्य के लिए प्रेरित करने वाले तत्वों में धर्म, शासन, व्यापार, दानशीलता And पारस्परिक सहायता स्वेच्छाचारिता के प्रमुख स्रोत हैं। धार्मिक संस्थाओं का प्रचार उत्साह, सरकारी संस्थाओं की लोकहित के प्रति कटिवद्धता, व्यापार में लाभ प्रवृत्ति, सामाजिक अभिजनों की परोपकारी भावना And सहयोगियों के मध्य स्व-सहायता की पेर्र णा All स्वेच्छाचारिता में परिलक्षित है। क्रियात्मक स्तर पर, उपर्युक्त संघटकों में भी अधिक अन्तर न हो, परन्तु प्रत्येक में सेवा की भावना Single सामान्य उत्प्रेरक के Reseller में पायी जाती है।

    ब्यूराडिलोन And विलियम बीवरिज पारस्परिक सहायता And Human पेम्र को स्वैच्छिक सामाजिक सहायता के विकास के दो प्रमुख स्रोत मानते हैं। इनका उद्भव क्रमशी: व्यक्तिगत And सामाजिक अन्तरात्मा से होता है स्वैच्छिक कार्य को पे्िर रत करने वाले अन्य तत्वों में वैयक्तिक हित, यथा अनुभव, मान्यता, ज्ञान And मान, कुछेक मूल्यों के प्रति कटिबद्धता आदि को प्राप्त करने की इच्छा को गिना जा सकता है।

    इसके अतिरिक्त, समाज के अभाग्षाशीली व्यक्तियों अथवा अपने संगी-साथियों अथवा स्वयं अपनी सहायता करने के लिए समूह अथवा स्वयंसेवी संगठनों के निर्माण में अनेक प्रकार की भावनाएं मुनश्यों को प्रेरित करती है। ये आदर्षवादी, शिक्षात्मक, मनोवज्ञै ानिक And सामाजिक होती है जो पथ्ृ ाक् अथवा भिन्न-भिन्न Reseller में मिलकर कार्य करती हैं।

    आदर्षात्मक Reseller में, स्वयंसेवी संगठन प्रजातंत्र And व्यक्तियों के व्यक्तित्व को Windows Hosting रखते तथा समाज के सामान्य स्वास्थ्य में योगदान प्रदान करते हैं। वे प्रजातंत्र में समाजीकरण के प्रमुख अंग हैं तथा अपने सदस्यों को सामाजिक मानकों And मूल्यों के प्रति शिक्षित कर अकेलेपन को दूर करने में सहायता करते हैं। मनोवैज्ञानिक भावनाएं व्यक्तियों को Safty, आत्मव्यक्ति And परिवार, चर्च And समुदाय जैसी सामाजिक संस्थाओं के उसके कारण अपने हितों की पूर्ति हेतु स्वयंसेवी संगठनों के सदस्य बनने की ओर प्रेरि त करती है। समाजशास्त्रियों ने सदस्यता के मनोवैज्ञानिक का उत्प्रेरक हितों, यथा समुदाय, वर्ग, वंषील, धार्मिक, लिंग, आयु आदि के साथ अध्ययन Reseller है तथा वे इस निश्कर्श पर पहुंचे हैं कि संगठन से व्यक्ति को अपने साथियों के साथ सामुदायिक भावना की प्राप्ति होती है सदस्यता का वर्ग आधार होता है जहां सामाजिक – आर्थिक हित समिति का सुस्य बनने की ओर प्रेरित करते है वर्ग, वंशित And धर्म के Reseller में किसी समूह की सदस्यता में अधिकांशत: समResellerता पार्इ जाती है, सदस्यता का सामाजिक-धार्मिक प्रस्थिति जिसका मापन आय स्तर, व्यवसाय, गृह स्वामित्व, जीवन स्तर And शिक्षा से Reseller जाता है, के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है, नगरीय क्षेत्रों में ग्रामीण की तुलना में स्वयंसेवी संगठन का सदस्य बनने में अधिक रूचि होती है, अधिकांश अभिकरणों में निदेशक मंडलों में मनुश्यों का प्रभुत्व होता है, स्त्रियां अपनी पारिवारिक प्रस्थिति तथा परिवार चक्र में उनके स्तर के According इनकी सदस्यता ग्रहण करती है, स्वयंसेवी संगठनों की सहभागिता वृद्धायु के साथ कम हो जाती है।

    इस प्रकार, स्वयंसेवी संगठन की सदस्यता का मनोविज्ञान Single जटिल घटना है। यह संस्कृति, सामाजिक वातावरण And राजनीतिक पर्यावरण पर निर्भर होता है जो Single व्यक्ति से Second व्यक्ति And Single व्यक्ति समूह से Second व्यक्ति-समूह में भिन्न हो सकता है।

    स्वयंसेवी संगठनों के कार्य And उत्तरदायित्व 

    प्रजातंत्रीय, समाजवादी And कल्याणकारी समाज में, स्वयंसेवी संगठन अनिवार्य होते हैं And वे अपने सदस्यों के कल्याण, देश के विकास तथा समाज And राश्ट्र की Singleता And अखंडता के लिए अनेक कार्य करते हैं। इनमें से कुछेक उद्देश्यों And कार्यों का वर्णन है :-

    1. मनुष्य स्वभाव से सामाजिक प्राणी है। समूह में कार्य करने की प्रकृति उसमें मौलिक है। अतएव मनुश्य स्वेच्छापूर्वक अपने तथा अन्यों के हित के लिए समूह And समितियों की संCreation करते हैं ताकि वे पूर्ण And समृद्ध जीवन व्यतीत कर सकें। जैसे मनोरंजक And सांस्कृतिक गतिविधियों, सामाजिक सेवाओं, व्यावसायिक हितों के वर्द्धन हेतु निर्मित स्वयंसेवी संगठनों से परिलक्षित है। 
    2. प्रजातंत्रीय प्रणाली युक्त बहुलवादी समाज में सरकार को विभिन्न पात्रों में Singleाधिकार विकसित करने से रोकने के लिए व्यक्ति And राज्य के मध्य अन्त:स्थ Reseller में अनेक स्वतंत्र, स्वयंसेवी अKingीय संगठनों की Need होती है। स्वयंसेवी संगठन नागरिकों केा शुभ कार्यों में लगाते हैं And सरकार के हाथों में शक्तियों के केन्द्रीकरण को रोकते है जिससे वह शक्तिभंजक के Reseller में कार्य करते है। स्वयंसेवी समूह शक्ति में सहभागिता द्वारा सेवाओं के संगठन में सरकार केा Singleाधिकार उपागम का विकास करने से रोकते हैं।
    3. वे व्यक्तियों को अपने निजी संगठनों के प्रशासन में भाग लेकन समूह And राजनीतिक कार्य की मौलिकताओं को सीखने का अवसर प्रदान करते हैं। 
    4. संगठित स्वैच्छिक कार्य विभिन्न राजनीतिक And अन्य हितों वाले समूहों And स्कूल, महाविद्यालय And विष्वविद्यालय प्राध्यापकों की समितियां, Indian Customer विष्वविद्यालय समिति, Indian Customer प्रषिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता समिति, सोषल वर्क स्कूलों की समिति, ग्रामीण विकास हेतु स्वयंसेवी अभिकरणों की समिति, Indian Customer बाल कल्याण परिशद् की Indian Customer समाज कल्याण परिशद्, Indian Customer महिला संघ आदि, वं उपभोक्ताओं के हितों की Safty हेतु उपभोक्ता मंच जो अभी स्थापित हुए हैं, विभिन्न देषों में Human अधिकार संगठन And विष्वव्यापी Human अधिकार संगठन And क्षेत्रीय संगठन, यथा And आदि। 

    संक्षेप में स्वयंसेवी संगठनों ने भूतकाल में कल्याण सेवाएं प्रदान करने में प्रषंसनीय भूमिका अदा की है। क्योंकि सरकार And जनता दोनों द्वारा इसे प्रषंसा And मान्यता दी गयी है, अतएव भविश्य में भी इसे अधिक गौरवमय भूमिका अदा करने के लिए प्रोत्साहित Reseller जायेगा। परन्तु उनके संगठन And क्रियाप्रणाली में पूर्व described न्यूनताओं को उन्हें Human सेवा के वास्तविक उपकरण बनाने हेतु दूर करना होगा। All धर्मों के संतों, गुरूओं And पीरों की शिक्षाएं लोगों को ध्यान के साथ सेवा को मिलाकर अहं को समाप्त तथा मोक्ष को प्राप्त करने का आदेष देते हैं। व्यास (जिला अमृतसर) में बाबा जैमल सिंह का डेरा इस तथ्य का अनोखा उदाहरण है कि किस प्रकार सामुदायिक कार्य स्वैच्छिक ढंग से इतने विषाल स्तर पर Reseller जा सकता है तथा किस प्रकार धर्म को Human सेवा के लिए बेहतर प्रकार से प्रयोग Reseller जा सकता है। व्यक्तियों ने भी स्वैच्छिक सेवा के अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। भगत पूरण सिंह, अमृतसर में पिंगलवाड़े के संत, मानसिक Reseller से बाधित, अपाहिजों And बाधितों के लिए महत्वपूर्ण सेवा कर रहे हैं। उनके कार्य की ‘मदर टेरेसा’ के साथ तुलना की गयी है। पिंगलवाड़ा वास्तव में Single मंदिर है जहां सार्वभैमिक भ्रातृत्व की शिक्षा दी जाती है And उसका पालन Reseller जाता है जहां जाति, वंश, धर्ममत की जंजीरों को तोड़ दिया गया है And Humanता की मशाल सदा जलती रहती है। यह ठीक ही कहा गया है कि स्वर्ग वहीं पर है जहां लोग मिलजुलकर सम्पूर्ण Human जाति के कल्याण हेतु कार्य करते हैं तथा नरक वहां पर है जहां कोर्इ भी Humanता के प्रति सेवा की बात तक नहीं सोचता। भारत में स्वैच्छिकता इस कथन के पूर्वार्द्ध में विष्वास करके इसका पालन करती है And वंचितों, दलितों, अलाभान्वितों And अविषेशाधिकारियों के कल्याण हेतु विभिन्न प्रोग्रामों को क्रियान्वित तथा कल्याण राज्य के आदर्ष को प्राप्त करने में राज्य के प्रयासों के पूरक Reseller में कार्य कर इसकी पुश्टि करती है।

    स्वयंसेवी संगठनों की समाज कल्याण And विकास में भूमिका

     हमारे महान नेताओं के स्वैच्छिक सामाजिक कार्य पर बल दिया है। उदाहरणतया महात्मा गांधी राज्य की अपेक्षा सामूहिक सामाजिक कार्य का शक्तिशाली समर्थन Reseller था। विनोबा भावे And जय प्रकाश नारायण ने भी उनके विचारों की पुश्टि की थी। भारत में सामुदायिक कार्य And स्व-सहायता का लम्बा History रहा है, Single दया, सामूहिक हित की चिन्ता And नि:स्वार्थ कार्य भविश्य में भी दिखार्इ देंगे। विकास में स्वयंसेवी संगठनों को संलग्न करने की Need को स्वातन्त्रयोत्तर काल में (1957) सरकारी प्रलेखों में मान्यता दी गयी है। बलवन्तराय मेहता समिति का कथन है, ‘‘आज सामुदायिक विकास की विभिन्न परियोजनाओं की क्रियान्विति में गैर-सरकारी अभिकरणों And कार्यकर्ताओं पर तथा इस नियम पर कि अन्तत: लोगों के स्वयं स्थानीय संगठनों को स्वयं सम्पूर्ण कार्य करना चाहिए, पर अधिक से अधिक बल दिया जा रहा है।’’ इसी प्रकार, ग्रामीण – नगरीय सम्बन्ध समिति (1966) ने विकास गतिविधियों हेतु सामुदायिक समर्थन प्राप्त करने में स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका पर बल दिया गया था। पंचायती राज संस्थाओं पर गठित Single अन्य अखिल Indian Customer समिति (अषोक मेहता समिति) ने स्वयंसेवी अभिकरणों की प्रषंसा इन Wordों में की – ‘‘अनेक स्वयंसेवी संगठन, जो ग्रामीण कल्याण में कार्यरत हैं, में कुछ ने व्यश्टि नियोजन कार्य में पंचायती राज संस्थाओं की सहायता की है। वे व्यापक क्षेत्रीय विकास योजनाएं तैयार करती हैं, संभाविता अध्ययन And लागत-लाभ विष्लेशण करती हैं तथा नियोजन And क्रियान्वयन में स्थानीय सहभागिता को प्रेरित करने के साधनों की खोज करती है। ‘‘ अवार्ड भी परियोजना निर्माण में परामष्र्ाीय सेवाएं तथा अपने सदस्य अभिकरणों को तकनीकी समर्थन प्रदान करती है। स्वयंसेवी अभिकरण, यदि उनके पास आवश्यक कौशल, प्रमाणित ख्याति And सुसज्जित संगठन है, पंचायती राज संस्थाओं की नियोजन प्रक्रिया में सहायता कर सकते हैं। उन्हेंविशेषतया परियोजनाओं And स्कीमों के निर्माण में संलग्न Reseller जा सकता है। वे सामाजिक परिवर्तन के उपायों के पक्ष में शक्तिशाली जनमत तैयार करने में सहायता कर सकते हैं। चतुर्थ पंचवश्रीय योजना (1969-74) में अंकित Reseller गया, ‘‘सामाजिक स्वयंसेवी संगठन पिछड़े वर्गों के मध्य कल्याण गतिविधियों का प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, उन्हें अस्पृष्यता को समाप्त करने हेतु प्रचार और प्रोपेगण्डा करने, छात्रावासों And शिक्षण संस्थाओं को चलाने, कल्याण And सामुदायिक केन्द्रों को संगठित करने, सामाजिक शिक्षा देने तथा प्रशिक्षण And ओरियन्टेशन पाठ्यक्रमों को चलाने जैसी परियोजनाओं के लिए सहायता दी जायेगी।’’ Sevenवी पंचवश्रीय योजना में निर्धनता दूर करने And न्यूनतम Needओं सम्बन्धी प्रोग्रामों को क्रियान्वित करने के लिए स्वयंसेवी संगठनों को प्रधानता दी गयी क्योंकि इन प्रोग्रामों में आरम्भित कार्य इतने विशाल हैं कि सरकार अकेली प्रत्येक कार्य निश्पादित नहीं कर सकती। स्वयंसेवी अभिकरणों द्वारा पूरक प्रयास आवश्यक होंगे, क्योंकि विभिन्न प्रकार के कौषल की Need होगी, विभिन्न स्वReseller की रणनीतियों का रेखान्वित तैयार करना होगा, लक्षित समूहों तक पहुंचने के लिए विभिन्न दृश्टिकोणों And अनुस्थापन वाले कार्मिकों को तैयार करना होगा। इसके अतिरिक्त, सरकारी अधिकारियों को विकास कार्य सुपूर्द करना उचित नहीं होगा क्योंकि यह नियमबाधित And अनुदार होते हैं। सृजनात्मकता, नवीनता, उच्च उत्पेर्र णा And प्रतिबद्धता अपेक्षित क्रियाक्षेत्रों में गैर-सरकारी संगठन अधिक उपयुक्त है। इस दृि श्टकोण से आवश्यक तकनीकी कौषल से सज्जित स्वयंसेवी संगठन सामाजिक-आर्थिक विकास के लाभप्रद अभिकरण हो सकते है। छठी पंचवश्रीय योजना काल से विकास कार्य में स्वयंसेवी संगठनों को संलग्न किये जाने के बारे में सरकारी विचारधारा में दर्षनीय परिवर्तन आया है। अब इन संस्थाओं को महत्वपूर्ण प्रोग्रामों जैसे बीस सूत्री कार्यक्रम में परामष्र्ाीय समूहों के माध्यम से संलग्न करने की अति Need है।

    जबकि सरकार के कल्याणकारी प्रोग्रामों में स्वयंसेवी अभिकरणों को दीर्घकाल से संलग्न Reseller जा रहा है, इनके सहयोग को अधिक व्यापक बनाने का विचार लगभग Single दषक से पुश्ट होता जा रहा है। अक्टूबर, 1982 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने All मुख्यमंत्रियों को लिखा कि स्वयंसेवी अभिकरणों के परामष्र्ाीय समूहों को राज्य स्तर पर संस्थागत Reseller जाये जो Sevenवीं पंचवश्रीय योजना में इसके प्रलेख में इस निष्चय को यह उल्लिखित करके स्पश्ट कर दिया गया कि विभिन्न विकास कार्यक्रमों,विशेषतया, ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन And नियोजन में स्वयंसेवी संगठनों को संलग्न करने हेतुविशेष प्रयास किये जायेंगे।

    स्वयंसेवी अभिकरणों की शक्ति को मान्यता देते हुए इस प्रलेख में कहा गया, ‘‘सामाजिक And आर्थिक विकास की प्रक्रिया को गति प्रदान करने मे उनकी भूमिका को अपर्याप्त मान्यता दी गयी है। इन अभिकरणों ने नये प्रतिResellerों And उपागमों सहित, प्रतिस्पर्धा सुनिष्चित करके गरीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवारों की संलग्नता प्राप्त करके नवीनीकरण के लिए आधार प्रदान Reseller है। इस प्रलेख में कार्यक्रमों And सहयोग के क्षेत्रों,विशेषतया गरीबी दूर करने And नवीन कमलागत तकनीकी प्रोग्रामों की लम्बी सूची दी गयी। इसमें यह भी ध्यान दिया गया कि Sevenवीं पंचवश्रीय योजनाकार स्वैच्छिकता को व्यवसायी बनाने, व्यावसायिक योग्यता And प्रबंध कौशाल को आरम्भ करने जो स्वयंसेवी अभिकरणों के संसाधनों And समर्थताओं के अनुReseller होगा परविशेष बल देगी।

    Sevenवीं योजना प्रलेख में स्वयंसेवी अभिकरणों के साथ क्रियाशील समन्वय उत्पन्न करने हेतु केन्द्रीय And राज्य सैक्टरों में 100 से 150 करोड़ रू0 के व्यय का प्रावधान Reseller गया। प्रलेख में यह भी उल्लिखित Reseller गया कि स्वयंसेवी अभिकरणों को Single आचार संहिता, जो सरकार से अनुदान सहायता प्राप्त करने वाले अभिकरणों पर लागू हो, का निर्माण करना चाहिए।

    Sevenवीं योजना काल के दौरान सरकारी प्रोग्रामों के क्रियान्वयन And सरकारी फंडों से समर्थित अन्य विकास कार्य में स्वैच्छिक अभिकरणों की संलग्नता में पर्याप्त वृद्धि हुर्इ। आठवीं योजना (1991 – 96) में इस प्रवृत्ति के जारी रहने की अधिक संभावना है।

    1. राज्य के पास नागरिकों की All Needओं की पूर्ति हेतु आवश्यक वित्तीय साधन And Humanषक्ति नहीं होती। स्वयंसेवी संगठन अतिरिक्त साधन जुटाकर सरकार द्वारा पूरी न की जाने वाली Needओं की पूर्ति तथा स्थानीय जीवन को समृद्ध कर सकता है।
    2. स्वयंसेवी संगठन उन क्षेत्रों जो पूर्णतया राज्य का दायित्व है, परन्तु जिनके लिए इसके पास सीमित साधन है में भी सहायता कर सकते हं ै And राजकीय संगठनों की तुलना में ऐसे कार्यों को अधिक अच्छी प्रकार निश्पादित कर सकते हैं। उदाहरणतया, शिक्षा राज्य का दायित्व है, परन्तु स्वयंसेवी संगठनों द्वारा चालित And प्रबन्धित शिक्षा संस्थाओं की संख्या राजकीय संस्थाओं से कहीं अधिक है तथा इनमें शिक्षा का स्तर भी नमनीयता, प्रयोगीकरण की योग्यता, अग्रणी भावना And अन्य गुणों के कारण ऊँचा है। यही बात स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में भी है। परोपकारी And दानशील संस्थाओं द्वारा चलाये जा रहे अस्पतालों में राजकीय अस्पतालों की तुलना में अधिक अच्छी देखभाल की जाती है। व्यास में महाराज सावन सिंह दानशील अस्पताल Single विचित्र आधुनिक संस्था है जहां हजारों रोगियों का जाति अथवा रंग के भेदभाव के बिना नि:षुल्क इलाज होता है तथा भोजन मिलता है।
    3. स्वयंसेवी संगठन केवल राज्य क्षेत्रों में ही भूमिका अदा नहीं करते, अपितु वे नयी Needओं में जाने का जोखिम उठा सकते हैं, नये क्षेत्रों में कार्य कर सकते हैं, सामाजिक कुरीतियों को उजागर कर सकते हैं तथा ऐसी Needओं जिनकी अभी तक पूर्ति नहीं हुर्इ है अथवा जिनकी ओर ध्यान नहीं दिया गया है की ओर भी ध्यान दे सकते है। वे विकास क्रान्ति को दर्षाने वाले निर्माता And अभियंता के Reseller में कार्य कर सकते हैं। वे सर्वेक्षण दल के Reseller में कायर् कर सकते है। वे परिवतर्न के अग्रगामी बनकर परिवतर्न को कम कश्टदायक बना सकते है। वे प्रगति And विकास के लिए कार्य करके कालान्तर में राज्य की गतिविधियों को व्यापकतर क्षेत्रों में विकसित करने में सहायता कर सकते है जिससे राश्ट्रीय न्यूनतम की वृद्धि होगी। 
    4. वे ऐसे व्यक्तियों, जो राज्य की गतिविधियों में राजनीति And शासन के माध्यम से भाग लेना पसन्द नहीं करते, को स्वयंसेवी समूहों में संगठित करके गतिविधियों के लिए मार्ग प्रषस्त करते हैं जिससे ऐसे व्यक्तियों के ज्ञान, अनुभव And सेवा भावना लोगों की Needओं And अपेक्षाओं को पूरा करने And उनके जीवन को समृद्ध बनाने हेतु समाज में आवश्यक परिवर्तन लाने में उपलब्ध हो जाते हैं। वे व्यक्तियों को ऐसे समूहों, जो राजनीतिक नहीं हैं तथा किसी भी राजनीतिक दल के सत्ता में आने से जिनका कोर्इ सरोकार नहीं है, परन्तु जो दलगत राजनीति से ऊपर हैं And राश्ट्र निमार्ण् ा के अन्य क्षेत्रों में रूचि रखते है में इकट्ठा करके स्थिरकारी शक्ति के Reseller में कार्य करते हैं तथा इस प्रकार राश्ट्रीय Singleीकरण And अराजनीतिक विशयों पर संकेन्द्रीकरण में योगदान देते हैं। 
    5. वे अपने सदस्यों को उनके कल्याण हेतु सरकार की नीतियों And इसके कार्यक्रमों, उनके अधिकारों And कर्तव्यों के बारे मे शिक्षित करने का कार्य करते हं ै तथा बिना किसी भय And दृढ़ विष्वास से सरकार की नीतियों And गतिविधियों की Creationत्मक आलोचना करने की स्थिति में भी होते हैं जिससे सरकार इन नीतियों And प्रोग्रामों से प्रभावित होने वाले लागों के दृश्टिकोणों को स्थान देते हुए इनमें आवश्यक समुजन कर लेती है, जैसा कि अनुसूचित जनजातियों And पर्यावरण संरक्षण से समबन्धित कार्यक्रमों के विशय में हुआ है। 
    6. वेविशेष हितों Andविशेष समूहों, यथा वृद्ध , विकलांग, महिलाएं, बालक आदि की विषिश्ट Needओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं जिन Needओं की राज्य द्वारा वित्तीय अभाव के कारण समुचित Reseller में पूर्ति नहीं हो सकती। वृद्धों के कल्याणकारी प्रोग्रामों में संलग्न स्वयंसेवी संगठन है। Indian Customer बाल कल्याण परिशद ् बाल कल्याण के वर्द्धन में संलग्न हैं। अखिल Indian Customer भूतपूर्व सैनिक कल्याण समिति भूतपूर्व सैनिकों के कल्याण से सम्बन्धित है। इसी प्रकार, हजारों स्वयंसेवी संगठन अपने-अपने सम्बन्धित समूहों के हितों की देखभाल करने हेतु वर्तमान है। 
    7. वे अपने लाभार्थियों And अपनी संतुश्टि के लिए कार्य करने की बेहतर स्थिति में होते हैं, क्योंकि वे अपने निकट व्यक्तियों, समूहों And समुदाय की Needओं को पहचान कर उनकी पूर्ति हेतु समुचित कार्यक्रम बना सकते है उनकी क्रियान्वयन प्रक्रिमें पा्र प्त अनभ्ु ावों के प्रकाश में आवश्यक परिवर्तन कर सकते हैं, लोगों की सहभागिता प्राप्त कर सकते हैं, आवश्यक निधि जुटा सकते है लोक विष्वास And सहयोग पा्र प्त कर सकते हैं। जो सरकारी संगठन के अधिकारी करने में अयोग्य होते हैं।
    8. संक्षेप में, स्वयंसेवी संगठनों के प्रमख्ु ा कायांर् े में सम्मिलित हं ै – व्यक्तियों, समूहों And समुदायों की Needओं की जानकारी प्राप्त करके समिति बनाने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को मूर्त अभिव्यक्ति प्रदान करना इन Needओं की सरकारी सहायता, अनुदानों अथवा निजी संसाधनों द्वारा पूर्ति हेतु परियोजनाओं And कार्यक्रमों को आरम्भ करना, नागरिकों की न्यूनतम Needओं के लिए प्रावधान करने में राज्य के दायित्व में अंशदान देना, अनाच्छादित And आपूर्ति Needओं के क्षेत्रों की पूर्ति करना, सरकार की Singleाधिकार प्रवृत्तियों को रोकना, सेवा भावना से भरपूर व्यक्तियों को लोक कल्याण के वर्द्धन हेतु स्वयं को संगठित करने के अवसर प्रदान करना, नागरिकों को उनके अधिकारों And कर्तव्यों के बारे में शिक्षित करना तथा उन्हें उनके कल्याण हेतु सरकारी नीतियों And कार्यक्रमों की जानकारी देना, प्रचार माध्यमों द्वारा लोक समर्थन प्राप्त करना, चंदों तथा दान द्वारा वित्तीय संसाधन जुटाना And अन्तिम, समाज कल्याण, नागरिकों के जीवन की संवृद्धि And राश्ट्र की प्रगति हेतु अराजनीतिक And गैर-दलीय प्रकार की गतिविधियों को संगठित करना। 

    स्वयंसेवी संगठनों की दुर्बलताएं And पारदर्षता 

    स्वयंसेवी संगठनों ने समाज के विभिन्न वर्गों को सेवा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है And सरकार के समर्थन से, जिसकी वे विरोधी न होकर सहभागी हैं, नये क्षेत्रों में अपने प्रोग्रामों का विस्तार करने में उनका भविश्य उज्जवल है। यदि उपर्युक्त described उनकी अपूर्णताओं, दुर्बलताओं And कमियों को दूर कर दिया जाता है And उनके संगठन तथा संCreation को परिश्कृत And सशक्त बना दिया जाता है,विशेषतया नये सदस्यों की समय-समय पर भर्ती, पदाधिकारियों का प्रजातंत्रीय निर्वाचन, सही नेतृत्व की व्यवस्था, विकेन्द्रीकरण And सत्त का प्रतिनिधान, योग्य And प्रशिक्षित कार्मिक, प्रोग्रामों के निर्माण And क्रियान्वयन में लोगों की भागीदारी, निधियों का सही उपयोग, सामान्य समस्याओं के विचार हेतु यंत्र, समन्वय यंत्र, राजनीतिज्ञों का अहस्तक्षेप, स्वाथ्र्ाी हितों की समाप्ति, समर्पित And परिश्रमी कार्यकर्ताओं की भर्ती, सामाजिक दायित्व And स्वमूल्यांकन आदि के क्षेत्र में तो वे अपनी प्राचीन सेवा भावना को पुन: पा सकते हैं तथा सरकार And समाज दोनों की प्रशसा And कृतज्ञता को अर्जित करके अधिक ओजस्विता से समाज की सेवा कर सकते हैं।

    स्वयंसेवी संगठनों को राज्य सरकारों द्वारा सहायता 

    केन्द्रीय कल्याण, स्वास्थ्य And परिवार कल्याण, Human संसाधन विकास, ग्रामीण विकास, पर्यावरण And वन मंत्रालयों के अतिरिक्त राज्य सरकारों के विभिन्न विभागविशेषतया समाज कल्याण विभाग समाज के विभिन्न वगांर् े हेतु कल्याण प्रोग्रामों में संलग्न स्वयंसेवी संगठनों को सहायता अनदु ान प्रदान करते है। परन्तु समाज कल्याण विभागों की कार्यदक्षता को सुधारने की Need है ताकि लाभार्थियों की बेहतर सेवा हो सके। हरियाणा सरकार के समाज कल्याण विभाग ने राज्य में परित्यक्त महिलाओं And विधवाओं, वृद्धों And विकलांग व्यक्तियों हेतु अनेक कल्याण परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए वर्श 1988-89 के लिए 141.17 करोड़ रू0 की राशि का प्रावधान Reseller था, परन्तु इसने फरवरी, 1989 तक बजट प्रावधान का केवल 46 प्रतिशत ही व्यय Reseller। हरियाणा विधान सभा की अनुमान समिति ने समाज कल्याण विभाग की सामान्य Reseller से तथा स्वयंसेवी संगठनों कीविशेष Reseller से कार्यप्रणाली को परिश्कृत करने हेतु विभिन्न संस्तुतियां And सुझाव दिये हैं –

    1. निधियों के अपव्यय को रोकने के लिए, विभाग को विभिन्न स्कीमों पर राशि अनुपात में व्यय करनी चाहिए ताकि वर्श के अन्त में इसे लापरवाही से व्यय न Reseller जा सके। 
    2. विभाग को वित्त विभाग के साथ विचाराधीन स्कीमों को स्वीकृत कराने हेतु तत्परता And ओजस्विता से मामले को अनसरित करना चाहिए ताकि धन समय पर प्राप्त हो सके And स्कीम के उद्देश्य को पूरा Reseller जा सके। 
    3. विभाग में अनेक पद 1987 से रिक्त पड़े हुए हैं, इन रिक्त पदों को तुरन्त भरा जाना चाहिए ताकि विभाग में कार्यकुशिलता का वर्द्धन हो सके अथवा यदि इनकी Need नहीं है अथवा इनका शीघ्र नहीं भरा जा सकता तो इन्हें समाप्त कर दिया जाये।
    4. स्वयंसेवी संगठनों को सहायता अनुदान हेतु उपायुक्त के माध्यम से प्रार्थना पत्र देने की वर्तमान प्रक्रिया में काफी समय की बर्बादी होती है, ऐसे प्रार्थनापत्र जिला कल्याण अधिकारी के द्वारा अपनी निरीक्षण रिपोर्ट सहित अग्रेशित किये जाने चाहिए ताकि विभाग से अनुदान समय पर मिल सके। 
    5. अनुदानों को समय पर दिये जाने के प्रष्न पर पुनर्विचार Reseller जाये And स्वयंसेवी संगठनों को कोर्इ कठिनार्इ न हो, इस दृश्टि से स्पश्ट समय-सारिणी बना दी जाये। 
    6. All स्वयंसेवी संगठनों को सरकारी अनुदानों से क्रय आंशिक अथवा पूर्ण Reseller से All परिसम्पत्तियों का रिकार्ड रखना चाहिए तथा इनका प्रयोग केवल निर्दिश्ट उद्देश्यों के लिए ही, जिनके लिए अनुदान दिया गया था Reseller जाना चाहिए। इन परिसम्पत्तियों को सरकार की पूर्ण Agreeि के बिना विक्रय अथवा अन्य किसी प्रकार से प्रयोग न Reseller जाये।
    7. स्वयंसेवी संगठनों को वित्तीय सहायता द्वारा अछूते क्षेत्रों में कल्याण सेवाएं तथा नयी कल्याण सेवाएं, जो अभी तक आरम्भ नहीं हुर्इ है का आरम्भ करने हेतु प्रोत्साहित Reseller जाना चाहिए। 

    स्वयंसेवी संगठनों को विदेशी सहायता 

    भारत में स्वयंसेवी संगठन विकासशील देषों में अपने प्रतिResellerों की भांति अंतर्राश्ट्रीय स्वयंसेवी अभिकरणों (अKingीय संगठनों) से भी सहायता प्राप्त करते हैं। कनाडा अंतर्राश्ट्रीय विकास अभिकरण ने देश की चार स्वयंसेवी एजेंसियों, यथा – महिला विकास ऐक्षन, दिल्ली, सेवागिल्ड, मद्रास दीपालय शिक्षा समाज, दिल्ली And नवयुवक And समाज विकास केन्द्र उड़ीसा, को इन संस्थाओं को अंतर्राश्ट्रीय प्लान, जो दक्षिणी एशिया में विष्व बाल विकास अभिकरण के माध्यम से सषक्त बनाने हेतु लगभग Single करोड़ Resellerयों का अनुदान दिया। समाज कल्याण के क्षेत्र में अधिक क्रियात्मक And प्िर सद्ध हैं : ‘केअर’; ऑक्सफोर्ड अकाल राहत समिति, विदेश सामुदायिक सहायता, डेविश अन्तर्राश्ट्रीय विकास अभिकरण And क्रिष्चियन बाल कोश। भारत को इनसे सबसे अधिक धन प्राप्त हुआ है। भारत में इन अभिकरणों के कार्यक्षेत्र में सम्मिलित हैं : संकटकालीन And विपत्ति राहत, स्वास्थ्य And शिक्षा, सामुदायिक विकास, पूरक पोशाहार, महिला, बाल, विकलांग And अन्य पीड़ित वर्गों का कल्याण, सामाजिक Safty, सामाजिक And नैतिक स्वास्थ्य विज्ञान, पुनर्वास कार्य, दत्तक देखभाल And प्रयोजन आदि।

    अन्तर्राश्ट्रीय अभिकरण Human पीड़ा को दूर करने हेतु क्रिष्चियन चिन्ता And दानशीलता से प्रेरित होते हैं। अन्तर्राश्ट्रीय रैडक्रास Fight में घायल सैनिकों की चिकित्सीय देखभाल And Humanी व्यवहार तथा सेना में कार्य कर रहे व्यक्तियों को Safty प्रदान करने के लिए 1861 में स्थापित First वृहद् अन्तर्राश्ट्रीय संगठन था। बाद में, इसका कार्यक्षेत्र गंभीर बनाने के लिए तकनीकी मार्गदर्षन देकर, राश्ट्रीय जन सहयोग And बाल विकास संस्थान, राश्ट्रीय सामाजिक सुरक्षण संस्थान, राश्ट्रीय “ौक्षिक अनुसंधान And प्रषिक्षण परिशद आदि में उनके कार्मिकों को प्रषिक्षण देकर, उनकी Needओं And समस्याओं में अनुसंधान कराकर, उनके द्वारा संगठित समाज कल्याण सेवाओं And संस्थानों को नियमित करके, सेवाओं के न्यूनतम मानकों को सुनिष्चित करके, कर्मचारी वर्ग And लोगों के शोशण को रोक कर, वैतनिक And स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं की सूची तैयार करके, कार्य रणनीतियों का विकास करने के लिए अनुभवों And विचारों के आदान-प्रदान हेतु मंच प्रदान कर।

    महिला And बाल विकास विभाग, कल्याण मत्रालय, Human संसाधन विकास मंत्रालय के माध्यम से सरकार स्वयंसेवी संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देते हुए उनके प्रतिनिधियों को विभिन्न समितियों, कार्यसमूहों And अध्ययन दलों में स्थान देकर उनकी सेवाओं का कल्याणकारी राज्य के आदर्ष को साकार बनाने हेतु लाभ उठाती है And उन्हें विदेषों में आयोजित सम्मेलनों, गोश्ठियों आदि में भाग लेने के लिए भेजती है। वास्तविक Reseller में, सरकार यह अनुभव करती है कि विकास And समाज कल्याण के प्रत्येक क्षेत्र में स्वयंसेवी अभिकरणों की सहभागिता अनिवार्य है। कुछ समय पूर्व, इसने बच्चों के अन्तरादेश अंगीकरण के मामलों की प्रायाजित/छानबीन करने हेतु लगभग Single-सौ Indian Customer And लगभग तीस विदेशी सामाजिक/बाल कल्याण अभिकरणों को मान्यता प्रदान की है।

    अभी हाल ही में, कल्याण मंत्रालय ने स्वैच्छिक प्रयासों को बढ़ावा देने की दृश्टि से ऐसे स्वयंसेवी संगठनों को संगठनात्मक सहायता देने की स्कीम आरम्भ की है जो प्रमुख Reseller में कल्याण गतिविधियों में संलग्न है And जिनका क्रियाक्षेत्र इतना व्यापक है कि इसे समन्वय हेतु केन्द्रीय कार्यालय स्थापित करना आवश्यक है। ऐसी सहायता अधिकतम पन्द्रह वर्शों तक दी जाती है। सहायता की राशि मात्रा, गुण के आधार पर निर्धारित की जाती है। केन्द्रीय कार्यालय को चलाने हेतु व्यावसायिक And अव्यावसायिक कार्मिकों के वेतन, भत्तों And अन्य आकस्मिक व्यय को इस राशि का निर्धारण करते समय ध्यान में रखा जाता है। प्रबन्धक संगठनों द्वारा चलाये जा रहे स्कूल्य ऑफ सोशल वर्क, जिन्हें विष्वविद्यालय अनुदान आयोग से सहायता प्राप्त नहीं होती, भी इस स्कीम के अन्तर्गत सहायता अनुदान के पात्र हैं।

    उपर्युक्त described उपाय सरकार द्वारा स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका की प्रषंसा And मान्यता का प्रमाण है। परन्तु इसे उनके ऊपर नियंत्रण And पर्यवेक्षण भी करना होता है ताकि स्वयंसेवी संगठनों को प्रदत्त वित्तीय सहायता को उसी उद्देश्य के लिए प्रयोग Reseller जाये जिसके लिए यह दी गयी है। इसका कोर्इ दुResellerयोग अथवा गबन न हो, उनके द्वारा उन नियमों विनियमों, अनुदेषों, दिशा निर्देषों का पालन Reseller जाये जो पदाधिकारियों के नियमित निर्वाचन, योग्य स्टाफ की Appointment, सेवाओं के स्तर को बनाये रखने के लिए जारी किये गये हैं। वह सहायता अनुदान के प्रयोग कर लिये जाने का प्रमाण-पत्र स्वीकृत लेखा परीक्षकों से लेखा परीक्षण के उपरांत प्रस्तुत करें। सरकार ऐसे संगठनों के विरूद्ध जांच आयोग कानून के अधीन जांच भी आरम्भ कर सकती है जिनके विरूद्ध फंडों के दुResellerयोग अथवा गबन And कुप्रबन्ध के आरोप हैं अथवा ऐसी शिकायतों की छानबीन हेतु समितियों की Appointment कर सकती है तथा आरोप सिद्ध हो जाने पर उनके विरूद्ध उचित कार्यवाही कर सकती है।

    स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका को मान्यता 

    भारत में कल्याणकारी सेवाओं के विकास में स्वयंसेवी प्रयासों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जैसा कि दक्षिण में विभिन्न बांध परियोजनाओं के बारे में हुआ है। यदि स्वयंसेवी अभिकरण को निर्धनों के हितों की चिन्ता है तो यह सरकार के विरूद्ध संघर्श में उलझ सकती है जिसे सरकारी अधिकारी स्पश्टतया अनुमोदित नहीं करेंगे। पुन: स्वयंसेवी अभिकरण से कम लागत वाले स्थानीय संसाधनों पर आधारित तकनीकों में योगदान देने की अपेक्षा की जाती है जो निर्धन कृशकों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है, परन्तु स्थानीय अधिकारी हरित क्रान्ति प्रकार की प्रावधिकी में, जो कृशि रसायनों की उच्च मात्राओं तथा तदनुReseller बीजों पर आधारित है के प्रसार करने में संलग्न हैं। स्वयंसेवी अभिकरण रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को कम करने के लिए लोगों को कहते हैं, जबकि सरकार ऐसे बीजों का प्रचार करती है जो ऐसे रसायनों के प्रयोग की मांग करते है। इस पक्र ार, सरकार तथा स्वयंसेवी संगठन के मध्य संघर्श क्षेत्रों में वृद्धि होती जाती है।

    स्वयंसेवी अभिकरणों को संलग्न करने की रणनीति सरकार And अभिकरणों के मध्य स्वस्थ वातावरण And सद्भाव की उपस्थिति की पूर्वकल्पना करती है। परन्तु दुर्भाग्यवश, वर्तमान सम्बन्ध सुखद नहीं है। प्रत्येक में Second के प्रति शंका And अवस्था का अभाव है। यद्यपि दोनों के मध्यविशेषतया उच्च स्तरों पर अधिकारियों And स्वयंसेवी संगठनों के प्रमुख प्रतिनिधियों के मध्य अच्छे संबंधों के And किये गये अच्छे कार्यों के कुछेक उदाहरण देखे जा सकते है तथापि प्रशासन के निचले स्तरों पर,विशेषतया गैर-संस्थात्मक And छोटे समूहों के प्रति ग्रामीण स्तर पर खुला विरोध है। जैसा ऊपर described Reseller गया है, विकास प्रयासों को बेहतर बनाने के लिए सरकार And स्वयंसेवी संगठनों के मध्य सहयोग सुनिष्चित करने हेतु स्वतंत्र And स्पश्ट विचार-विमर्ष द्वारा कुछेक महत्वपूर्ण विशयों के समाधान किये जाने की Need है।

    वस्तुत: इन समस्याओं का जन्म सरकार And स्वयंसेवी अभिकरणों के मध्य संबंध, विकास कार्य में इन अभिकरणों की भूमिका तथा सामुदायिक विकास And जनसहयोग पर किसी स्पश्ट नीति की अनुपस्थिति के कारण हुआ है। अत: सरकार को संघर्श क्षेत्रों को यदि समाप्त नहीं हो सकते तो कम करने And दोनों के मध्य सरल सम्बन्धों को बनाये रखने के लिए सुस्पश्ट नीति की घोशणा करनी होगी। दोनों सरकार And स्वयंसेवी अभिकरणों को अपनी उचित भूमिकाओं को स्पश्ट समझना होगो। संगठनों को यह मानना होगा कि उनका कार्य राज्य का पूरक है। वे दूसरा राज्य नहीं है, अधिक से अधिक वे सरकार के प्रयासों के पूरक हो सकते हैं, वे राज्य द्वारा आरम्भिक सामाजिक पुनर्निर्माण के प्रयासों का स्थान नहीं ले सकते। यह उनका सरकार के प्रति सकारात्मक दृश्टिकोण होना चाहिए। इसी प्रकार, सरकार को भी स्वयंसेवी अभिकरणों की महत्वपूर्ण भूमिका की प्रषंसा करनी चाहिए तथा स्वैच्छिक कार्य की प्रकृति And इसके दर्षन को समझना चाहिए। दूसरा यह सत्य है कि सरकारी सहायता अनुदानों पर स्वयंसेवी अभिकरणों की अतिनिर्भरता उनके कार्य And विचारधारा की स्वतंत्रता जो स्वैच्छिक कार्य का मूल तत्व है, को कठिन बना देती है। परन्तु सरकार को इस सीमा तक उनके ऊपर नियंत्रण नहीं करना चाहिए कि राजनीतिक वैरभाव अथवा अधिकारियों के अहं से पे्िर रत जाँच आयोग स्थापित करके उन्हें अपमानित Reseller जाये। स्वयंसेवी अभिकरणों का उचित मार्गदर्षन करने तथा उन्हें निर्दिश्ट कार्यों के निश्पादन में सहायता दिये जाने की Need है। सरकार And स्वयंसेवी संगठन के मध्य सम्बन्ध सामाजिक कल्याण And विकास मे क्रमश: भूमिका अदा करने के लिए सामान्य प्रयास में सहभागिता का सम्बन्ध है। यहद इस सहभागिता को ठीक प्रकार से कार्य करना है तो सरकार And स्वयंसेवी संगठन दोनों को परस्पर सम्मान करना चाहिए। जैसा पूर्व described Reseller गया है, ब्रिटेन में सरकार किसी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व विभिन्न प्रकार के स्वयंसेवी संगठनों, व्यावसायिक संगठनों And सेवा संगठनों से परामर्ष करके प्रोग्रामों का निर्माण करती है। परिणामत: जब निर्णय की घोशणा संसद में की जाती है तो इससे सम्बन्धित हितों And संगठनों की निहित Agreeि प्राप्त होती है। क्योंकि स्वयंसेवी संगठनों को नियोजन स्तर पर ही संलग्न कर लिया जाता है, अतएव उनके क्रियान्वयन में वे सहर्श सहयोग प्रदान करते हैं। ऐसे उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अक्टूबर, 1982 में All राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर स्वयंसेवी अभिकरणों के परामष्र्ाीय समूहों की स्थापना पर बल दिया था, परन्तु दुर्भाग्यवश केवल कुछेक परामष्र्ाीय समूह ही स्थापित किये गये हैं। इस सुझाव का पूर्णResellerेण परिपालन Reseller जाना अति आवश्यक है। संक्षेप में सह-भागिता सरकार And स्वयंसेवी संगठनों के मध्य संबन्धों का मूल है And दोनों सहभागियों के हित में इसका पालन Reseller जाना चाहिए। सरकार क्योंकि वरिश्ठ सहभागी है, अतएव इसे स्वयंसेवी संगठनों की तुलना में अधिक उदार And सहायक होना चाहिए।

    स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका 

    समाज कल्याण में सवयंसेवी संगठनों की भूमिका का दो मौलिक आधारों पर मूल्यांकन Reseller जा सकता है। First, राश्ट्रीय सरकार द्वारा आरम्भित राश्ट्रीय योजना के नियोजन And क्रियान्वयन में लोगों की सहभागिता सम्बन्धी पक्ष है। नियोजकों ने प्रजातंत्रीय योजना के बाद लोगों की स्वैच्छिक Agreeि प्राप्त करने के लिए ही नहीं, अपितु नियोजन And क्रियान्वयन प्रक्रिया में उनकी सकारात्मक सहभागिता प्राप्त करने के लिए भी बहुधा अपनी उत्कृश्ट इच्छा अभिव्यक्त की है। Second Wordों में, सरकारी तौर पर निर्मित And प्रशासित योजना में अप्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व प्राप्त लोगों अथवा उनके संगठनों को सम्बद्ध करने का ही प्रष्न नहीं है, अपितु विकास की सम्पूर्ण प्रक्रिया में संयुक्त सहभागिता विकसित करना है। वस्तुत: यह सहभागिता प्रजातंत्र की अवधारणा को वास्तविकता में Resellerान्तरित करने की ओर Single पत्र है।

    इस सामान्य उपागम के अतिरिक्त जो प्रजातंत्रीय योजना के अन्तर्गत किसी विकासीय परियोजना के बारे में उचित है, समाज कल्याण के क्षेत्र में स्वयंसेवी संगठनों को महत्वपूर्ण भूमिका दिये जाने का Single अन्य औचित्य है। भारत में सामाजिक कार्य के लम्बे History में स्वयंसेवी संगठनों ने सदा महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ है। चाहे किसी विपदाग्रस्त व्यक्ति अथवा अकाल अथवा बाढ़ से उत्पन्न संकट का मामला था, स्वयंसेवी संगठन सेवा प्रदान करने में आगे आता था। राज्य की भूमिका तत्कालीन Kingों के दृश्टिकोण के According उदासीनता से लेकर आकस्मिक कभी-कभी परोपकारी रूचि तक बदलती रही है। शताब्दियों तक राज्य सहायता की अपेक्षा सामुदायिक सहायता ही स्वयंसेवी संगठनों का प्रमुख आधार रही है। भारत में स्वतंत्रता-प्राप्ति के उपरान्त ही राज्य के दृश्टिकोण में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है। संविधान में प्रगतिशील सामाजिक नीति का निResellerण Reseller गया तथा देष की योजनाओं में कल्याणकारी प्रोग्रामों की उचित स्थान दिया गया।

    फंड-Singleत्रीकरण – परिवर्तित सामाजिक-आर्थिक दशाओं के कारण स्वयंसेवी संगठनों के लिए फंड इकट्ठा करना कठिन हो गया है। रेणुका राय समिति 1959 ने विकास And भरण-पोशण अनुदानों सहित सहायता अनुदान प्रणाली की सिफारिष की थी। इसके बावजूद भी स्वयंसेवी संगठनों को स्वयं को चालू रखने हेतु बढ़ते हुए व्यय को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन इकट्ठा करना होगा। सहायता अनुदान प्रणाली स्वयंसेवी संगठनों के प्रयासों का केवल पूरक हो सकती है। यह भी आवश्यक है कि अपने स्वयंसेवी स्वReseller के संरक्षण हेतु उन्हें राज्य सहायता पर अत्यधिक आश्रित नहीं होना चाहिए। सामुदायिक सहायता की मात्रा संगठन करने का विचार कुछ वर्शों से प्रचलित है। इस विचार का प्रमुख तत्व यह है कि कोश को नागरिकों की अधिक संख्या से अल्प-दान न कि दानवीरों की अल्प संख्या से विशाल दान द्वारा इकट्ठा Reseller जाये। इस लक्ष्य को सम्मुख रखते हुए समिति ने कहा : ‘‘स्वयंसेवी संगठनों को फंड Singleत्रित करने के अपने प्रोग्रामों को पुनर्Reseller देना होगा, ताकि वे कुछेक दानवीरों की सहानुभूति की अपेक्षा नागरिकों के विषाल बहुमत की स्वैच्छिक सहायता पर निर्भर हो।’’

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