उद्यमिता क्या है?

जो व्यक्ति जोखिम उठाता हैं तथा संसाधनों की व्यवस्था करता है, उद्यमी कहलाता है तथा वह जो कौशल दृष्टिकोण चिन्तन करता हैं उसे उद्यमिता कहते हैं। इस में उद्यमिता And इसकी भूमिका का अध्ययन करेंगे।

उद्यमिता का Means

Single उद्यमी का आशय ऐसे व्यक्ति से है जो व्यापारिक अवसर की पहचान करता है, नये व्यवसाय की स्थापना हेतु आवश्यक कदम उठाता, व्यवसाय उपक्रम को सफल बनानें के लिए विभिन्न संसाधनों जैसे व्यक्ति, सामग्री और पूँजी को Singleत्र करता हैं और निहित जोखिम व अनिश्चितताओं को वहन करता है। उद्यमिता का अभिप्राय उद्यमी द्वारा किये गए कार्यो से हैं। यह Single ऐसी पे्रक्रिया है जिसमें Single व्यक्ति किसी नए व्यवसाय की स्थापना में निहित विभिन्न कार्यों को करता है वास्तव में जो कुछ उद्यमी करता है वही उद्यमिता है। अत: उद्यमिता को Single ऐसे कार्य के Reseller में देखा जा सकता है ।

  1. बाजार में उपस्थित अवसरो को पहचानना And प्रयोग करना। 
  2. विचारो को क्रिया में परिवर्तित करना। 
  3. किसी नयें उद्यम को प्रारम्भ करने के लिए प्रवर्तन का कार्य करना। 
  4. अपने कार्य क्षेत्र में श्रेष्ठतम्र प्रदर्शन का प्रयत्न करना।
  5. निहित जोखिम And अनिश्चितताओं को वहन करना।
  6. समResellerता लाना।

    अत: उद्यमिता का आशय उस कौशल, दृिष्ब्कोण, चिन्तन, तकनीक And कार्यप्रणाली से है, जिसके द्वारा व्यवसाय में निहित अनेक प्रकार की जोखिम And अनिश्चितताओं का सामना Reseller जाता है And व्यवसाय को संचालित Reseller जाता है।

    वी. आर.गायकवाड- ‘‘उद्यमिता से तात्पर्य नवप्रवर्तन से हैं। यह अनिश्चितताओं का सामना करने के लिए काम लेने की अन्त: प्रेरणा और इच्छा है Meansात् यह भावी घटनाओं को इस प्रकार देखने की क्षमता है, जो बाद में सही हो सके।’’

    उद्यमिता की Need And महत्व

    उद्यमिता व्यावसायिक अवसर को पहचानने, जोखिम के प्रबन्धन And सम्प्रेषणीय And प्रबन्ध कौशल के माध्यम से Humanीय, वित्तीय And भौतिक संसाधनो को गतिशील बनाने के लिए आवश्यक है। उद्यमिता की Need And महत्व को निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट Reseller जा सकता है-

    1. सफल इकार्इ की स्थापना 
    2. संतुलित आर्थिक विकास के लिए 
    3. उपलब्ध संसाधनों का सर्वोतम उपयोग 
    4. आत्मनिर्भरता के लिए 
    5. आर्थिक And सामाजिक समस्याओं को कम करने के लिए 
    6. औद्योगिक वातावरण विकसित करने के लिए 
    7. ग्लोबल महत्व
    8. अन्य 

    I. उद्यमी प्रवृतियाँ विकसित करने लिए
    II. नवप्रवर्तन के लिए
    III. रोजगार के अवसरों वृद्धि के लिए

    1. सफल इकार्इ की स्थापना-सफल इकार्इ की स्थापना केवल सफल उद्यमी ही कर सकते हैं। सफल इकाइयों की स्थापना के लिए उद्यमिता का प्रशिक्षण And विकास आवश्यक है।
    2. संतुलित आर्थिक विकास-उद्यमिता देश में संतुलित आर्थिक विकास And पिछडें क्ष्ेात्रो का विकास को बढ़ावा देती है ।
    3. उपलब्ध संसाधनो का सर्वोतम उपयोग-उद्यमी ही कर सकता है। इससे बहुमूल्य धातुओं का भण्डारों का उचित विदोहन होगा व लोगो को रोजगार की प्राप्ति होगी ।
    4. आत्मनिर्भरता के लिए-उद्यमिता से उत्पादन, व्यापार, व विपणन को बढ़ावा मिलता हैं इससे व्यक्ति, समाज व राष्ट्र की आय में वृद्धि होती हैं। जिससे आत्मनिर्भरता बढ़ती है।
    5. आर्थिक And सामाजिक समस्याओं को कम करने के लिए-उद्यमिताा से लोगों की आय व शिक्षा का स्तर बढ़ती है जिसमे सामाजिक अपराध And गरीबी में विराम लगने से सामाजिक समस्याएँ कम होती है।
    6. औद्योगिक वातावरण विकसित करने के लिए-देश में औद्योगिक वातावरण विकसित करने के लिए उद्यमिता विकास आवश्यक है ।
    7. ग्लोबल महत्व-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का पहचान बढ़ावा के लिए देश में उद्यमिता को प्रोत्साहित किए जाने की Need है ।
    8. अन्य-
      1. उद्यमी प्रवृतियाँ विकसित करने के लिए
      2. नवप्रर्वतन के लिए
      3. रोजगार के अवसरो में वृद्धि के लिए

    Single सफल उद्यमी की विशेषताएँ

    1. पहल क्षमता-Single उद्यमी में नवप्रवर्तन की प्रवृति, अवसर पकडने तथा पहल शुरू करने की क्षमता होनी चाहिए। यदि वह सही समय पर उचित पहल नही करेगा/करेगी तो अवसर हाथ से निकल जायेगा। अत: उद्यमी की पहल करने की क्षमता ही काफी हद तक उद्यम की सफलता की कुँजी है।
    2. व्यापक ज्ञान-Single उद्यमी को व्यवसाय के आर्थिक And अनार्थिक पर्यावरण जैसे कि बाजार, उपभोक्ता की रूचि, तकनीक आदि का विस्तृत ज्ञान होना चाहिए। यदि इस सबका उचित ज्ञान नही है तो उसने जो निर्णय लिये हैं वह घटिया स्तर के होंगें तथा आगे भविष्य में व्यवसाय की लाभ प्रदता में उनका योगदान नही होगा।
    3. जोखिम उठाने की तत्परता-किसी भी व्यवसाय को शुरू करना जोखिमों And अनिश्चितताओं से भरा होता है। विभिन्न प्रकार के जोखिम And अनिश्चितताओ से कुशलता पूर्वक निपटने के लिए उद्यमी में जोखिम उठाने की तत्परता And आवश्यक दूरदर्शिता होनी चाहिए।
    4. खुले विचार And आशावादी दृष्टिकोण-Single उद्यमी को खुले विचारो वाला होना चाहिए। उसमें गतिशील And आशावादी सोंच होनी चाहिए जिसमे कि वह व्यवसायिक पर्यावरण में परिवर्तनों का पूर्वानूमान लगा सके तथा बिना समय खोए कार्यवाही कर सके।
    5. अनूकूलनशीलता (स्वयं को वातावरण के अनुकूल ढालना)-उद्यमी को व्यावसायिक पर्यावरण की वास्तविक ताओ को समझ लेना चाहिए। उसे व्यवस्था में आ रहे परिवर्तनो के अनुReseller ढालने के लिए स्वयं तैयर रहना चाहिए। यदि वह परिवर्तन का विरोध करता है और उसकी प्रतिक्रिया में देरी होती है तो वह अवसरों के लाभ उठाने के अवसर खो देगा।
    6. आत्मविश्वास-जीवन में सफलता पाने के लिए व्यक्ति के अन्दर आत्मविश्वास होना चाहिए। तभी व ह सफल उद्यमी बन सकता है ।
    7. नेतृत्व के गुण-उद्यमी के अन्दर Single अच्छा नेता के गुणो का होना आवश्यक है। उसके अन्दर आत्म-अनुशासन, बुध्दिमता, न्यायप्रियता, सम्मान And गौरव आदि विशिष्टताओ के साथ उसमे इन सबके उपर उच्च स्तर की नैतिकता का होना आवश्यक है।
    8. कठिन परिश्रम के प्रति रूझान-जीवन में कठिन परिश्रम का कोर्इ पूरक नही हैं। व्यवसाय संचालन में कोर्इ न कोर्इ समस्या आती ही रहती है। व्यवसायी को इनके प्रति सचेत रहना होता है तथा अतिशीघ्र उनका समाधान भी ढूँढना होता है। इसके लिए उद्यमी को कड़ा परिश्रम करना होगा।

    उद्यमी के कार्य

    1. विचार सृजन-उद्यमी में सृजनात्मक मस्तिष्क होता है। उसमें व्ययवसायिक अवसरों की पहचान करने, उन्हे Single सफल व्यावसायिक उद्यमी में परिवर्तित करने तथा उन्हे मूर्त Reseller प्रदान करने की योग्यता होती हैं।
    2. प्रवर्तन-सामान्यत: यह समझा जाता है कि उद्यमी Singleल स्वामित्व के Reseller में Single छोटे व्यवसाय की स्थापना का ही जोखिम उठाता है। लेकिन वर्तमान में कर्इ उद्यमी ऐसे हैं जिन्होने बडी-बडी कम्पनियो के प्रवर्तन का कार्य Reseller है। वास्तव में नयें व्यवसाय की स्थापना, वर्तमान व्यवसाय का छोटे अथवा बडे पैमाने पर विस्तार अथवा दो या दो से अधिक इकाइयों के समिश्रण में भी प्रवर्तन Reseller जा सकता है। Single पव्र तर्क के Reseller में  उद्यमी सम्भावनाओ का अध्ययन करता है, सगंठन के प्राReseller के सम्बन्ध में निर्णय लेता है, आवश्यक कोष And Human संसाधन जुटाता है, तथा व्यवसाय के प्रस्ताव को मूर्तReseller प्रदान करता है।
    3. नवर्तन-उद्यमी को Single नवप्रवर्तक के Reseller में देखा जाता है जो नर्इ तकनीक, उत्पादों And बाजारों को विकसित करने की कोशिश करता है। उद्यमी अपनी सृजनात्मक योग्यताओं का प्रयोग कर कुछ नया करता है तथा बाजार में उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाता है।
    4. जोखिम And अनिश्चितताओं को वहन करना-नये व्यवसाय को आरम्भ करने में कुछ जोखिम और अनिश्चितताएं निहित होती है। यह उद्यमी ही होता है जो जोखिम को उठाता है तथा भविष्य की अदृश्य स्थितियों के कारण होने वाली हानियों को वहन करने के लिए तैयार रहता है।
    5. आवश्यक पूजी की व्यवस्था-किसी भी उद्यम को प्रारंभ करने में सबसे बड़ी बाधा धन जुटाने में आती है। उद्यमी ही किसी व्यवसाय को प्रारंभ करने के लिए प्रारम्भिक पूंजी की व्यवस्था करता है जिसे जोखिम पूंजी अथवा मूल पूंजी भी कहते है ।
    6. Appointmentकरण-उद्यमी को ही संगठन ढांचे की Resellerरेखा तैयार करनी होती है तथा विभिन्न पदों के लिए उपयुक्त व्यक्तियों की भर्ती करनी होती है।

    उद्यमी And प्रवर्तक मे अतंर

    Single उद्यमी प्रवर्तक भी कहलाता है क्योंकि वह भी आवश्यक कोष And Human संसाधन जुटाता है, जोखिम वहन करता है तथा प्रस्तावित व्यवसाय को Single स्वReseller प्रदान करता है। लेकिन सैद्धान्तिक Reseller से दोनो में अतं र है जो किसी व्यवसाय की पहचान करते हैं तथा जोखिम को वहन करने के लिए तैयार रहते है, उन्हे उद्यमी कहा जाता है। जबकि जो लोग व्यवसाय की स्थापना करते हैं और उसे संचालन योग्य बनाते है, उन्हे प्रवर्तक कहते है। लेकिन व्यावहारिक Reseller से सही Meansो में यह अन्तर भी सही नहीं है क्योंकि आजकल उद्यमी की भूमिका Single व्यावसायिक अवसर की पहचान करने And जोखिम उठाने तक ही सीमित नहीं है। वह अब व्यवसाय को स्थापित करने तथा चलाने के लिए आवश्यक कदम उठाते हैं क्योंकि आजकल उद्यमी पूंजी And पेशेवर लोगों की सेवाएँ भी सरलता से उपलब्ध हैं। ध्यान रहे कि कुछ Meansशास्त्री जोखिम उठाने को उद्यमिता का मूलकार्य मानते हैं वहीं Second उत्पादन के संसाधनों का समन्वय पूजीं की व्यवस्था अथवा नवप्रवर्तनों पर जोर देते है। अत: अधिक व्यावहारिक तो यह रहेगा कि उद्यमिता को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए जिसमें प्रवर्तन सम्मिलित है। वैसे भी भारत में अधिकांश व्यावसायिक प्रवर्तक स्वयं उद्यमी तथा पारिवारिक व्यवसाय चलाते रहे है। उद्यमी स्वयं मालिक And प्रबंधक भी होते है।

    उद्यमियों के प्रकार

    1. व्यवसाय के प्रकार के According – व्यापारी उद्यमी

    • औद्योगिक उद्यमी
    • कृषि उद्यमी
    • सेवा उद्यमी

    2. तकनीकी उपयोग के According – तकनीकी उद्यमी

    • गैर-तकनीकी उद्यमी

    3. क्षेत्र के According – शहरी उद्यमी

    • ग्रामीण उद्यमी

    4. लिंगानुसार – पुरूष उद्यमी

    • महिला उद्यमी

    उद्यमियों के समक्ष आने वाली समस्याएं

    1. व्यवसाय का चयन-व्यवसाय चयन के लिए First बाजार का अध्ययन करना होता है कि क्या उसके उत्पाद अथवा सेवा को बाजार में ग्राहक पसंद करेगा, कितनी मांग होगी, लागत क्या होगी, लाभप्रद होगा अथवा नहीं। इसे संभाव्यता अध्ययन कहते है तथा इसे संभाव्यता रिपोर्ट अथवा परियोजना रिपोर्ट के Reseller में प्रस्तुत Reseller जाता है। इसी के आधार पर सर्वाधिक लाभ देने वाली व्यवसाय का चयन Reseller जाता है।
    2. उद्यम के स्वReseller का चयन-इस हेतु उद्यमी के पास Singleल स्वामित्व, साझेदारी अथवा संयुक्त पूंंजी कम्पनी आदि विकल्प होता है जिसमें से उपयुक्त व्यवसायिक संगठन का चयन करना अपेक्षाकृत कठिन होता है। यदि बड़े पैमाने के व्यवसायों के लिए कंपनी संगठन ही उपयुक्त रहेगा जबकि छोटे And मध्य पैमाने के व्यवसायों के लिए Singleल स्वामित्व अथवा साझेदारी अधिक उपयुक्त रहेगा।
    3. वित्तीयन-वित्त की व्यवस्था करना उद्यमी के लिए सदा ही Single समस्या रहा है। कोर्इ भी व्यवसासय बिना पूंजी के प्रारंभ नहीं Reseller जा सकता। उद्यमी को पूंजी की Need स्थायी सम्पत्ति, भूमि And मशीन, उपकरण आदि को खरीदने के लिए होती है। व्यवसाय के दिन प्रतिदिन के खचोर्ं के लिए भी धन की Need होती है। कितनी पूंजी की Need है इसका निर्धारण कर लेने के बाद उद्यमी को विभिन्न स्रोतों से वित्त की व्यवस्था करनी होती है। ऐसे कर्इ वित्तीय संस्थान है जैसे कि आर्इ.एफ.सी.आर्इ. आर्इ.बी.डी.आर्इ. आदि जो अच्छे उद्यमीय कार्यो के लिए प्रारम्भिक पूजीं अथवा उद्यम पूंजी कोष उपलब्ध करा रहे है।
    4. स्थान का निर्धारण-उद्यमी के लिए Single समस्या व्यावसायिक इकार्इ के स्थान निर्धारण करने की है यह कर्इ तत्वों पर निर्भर करता है जैसे कि कच्चा माल, परिवहन सुविधाएं, बिजली And पानी की उपलब्धता व बाजार का नजदीक होना। सरकार पिछडे़ क्षेत्र या अविकसित क्षेत्रों में स्थापित इकार्इ को कर अवकाश, बिजली And पानी के बिलों पर छूट आदि के Reseller में कर्इ प्रलोभन देती है। अत: Single व्यावसायिक इकार्इ को स्थापित करने से First उद्यमी को इन All बातों केा ध्यान में रखना होता है।
    5. इकार्इ का आकार-व्यवसाय का आकार कर्इ कारणों से प्रभावित होता है जैसे कि तकनीकी वित्तीय एंव विपणन। जब उद्यमी यह अनुभव करते है कि वह प्रस्तावित उत्पाद And सेवाओं को बाजार में बेच सकते है, And पर्याप्त पूंजी जुटा सकते हैं तब वे अपनी गतिविधियों को बडे़ पैमाने पर शुरू कर सकते है। सामान्यत: उद्यमी अपने कार्य को छोटे पैमाने पर प्रारम्भ कर धीरे-धीरे उसे बढ़ा सकते है। उदारहण के लिए डॉकरसन भार्इ पटेल निरमा लि0 के स्वामी, 1980 में सार्इकिल पर घूम-घूम कर कपड़े धोने का पाउडर बेचा करते थे और कार्य में वृद्धि से अब यह बढ़कर निरमा लि0 बन गया है।
    6. मशीन And उपकरण-किसी भी नये उपक्रम को प्रारम्भ करने से पूर्व मशीनों, उपकरणों And प्रक्रियाओं का चयन संवेदनशील समस्या है। यह कर्इ बातों पर निर्भर करती है जैसे कि पूंजी की उपलब्धता, उत्पादन का आकर And उत्पादन प्रक्रिया की प्रकृति। लेकिन उत्पादकता पर जोर दिया जाना चाहिए। उपकरण And मशीन विशेष का चयन करते समय मरम्मत And रख-रखाव की सुविधाओं की उपलब्धता, अतिरिक्त पूंजी की उपलब्धता तथा बिक्री के बाद सेवा को भी ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है।
    7. उपयुक्त श्रमशक्ति-यदि व्यवसाय का आकार बड़ा है तो उद्यमों को विभिन्न कार्यक्षेत्रों के लिए उपयुक्त योग्य व्यक्तियों की तलाश करनी होती है। उसे प्रत्येक कार्य के लिए सही व्यक्ति की पहचान करनी होती है और संगठन में कार्य करने के लिए उन्हे अभिप्रेरित करना होता है। यह सरल नहीं होता। इसमें काफी सहनशक्ति And प्रोत्साहन की जरूरत होती है।

    इस प्रकार से Single नये व्यवसाय को प्रारंभ करने से First उद्यमी को अनेकों समस्याओं का समाधान ढूंढना होता है।उचित चयन And व्यवस्था की जाये तो सफलता सुनिश्चित है ।

    भारत में उद्यमिता प्रथाएं

    उद्यमिता Word छोटे व्यवसाय की स्थापना के साथ Added है। इसमें कोर्इ संदेह नहीं है कि भारत जैसे देश में भरपूर आत्मविश्वास And दूर दृष्टि रखने वाले योग्य व्यक्ति सामान्यत: नौकरी करने के स्थान पर छोटा व्यवसाय प्रारम्भ करते है उद्यमिता उन नौजवानों को स्वतंत्र जीवन जीने का अवसर प्रदान करती है जो अपने भाग्य के स्वयं निर्माता बनना चाहते है। Indian Customer Means व्यवस्था की धीमी प्रगति का कारण उद्यमिता की कमी है जबकि हमारे पास प्राकृतिक संसाधन And श्रम शक्ति पर्याप्त मात्रा में है । इस तथ्य को सरकार ने भी भलीभांति पहचाना है जो उद्यमियों को अनेकों सुविधाएं एंव प्रोत्साहन प्रदान करती है। इस प्रकार से औद्योगिक नीतियां And सरकार की पंचवर्षीय योजनाओं ने उद्यमियों को औद्योगिकरण की गति में वृद्धि के लिए प्रोत्साहित और प्रेरित Reseller है। अब सरकार विभिन्न प्रकार के प्रलोभन And छूट देती है जिनमें पूंजी की सहायता, तकनीकी ज्ञान, विपणन की सुविधाएं, औद्योगिक संरक्षण प्रदान करना तथा अन्य ढांचागत सुविधाएं सम्मिलित हैं।

    केन्द्रीय सरकार द्वारा Indian Customer औद्योगिक वित्त निगम की स्थापना के बाद कर्इ राज्य सरकारों ने भी उद्यमियों को वित्त जुटाने And तकनीकी सुविधा प्रदान करने के लिए अपने-अपने वित्त निगमों की स्थापना की है। इनके अतिरिक्त Indian Customer औद्योगिक विकास बैंक, Indian Customer लघु औद्योगिक विकास बैंक, लघु उद्योग विकास संगठन, लघु उद्योग निगम, लघु उद्योग सेवा संस्थांन, राज्य लघु उद्योग विकास निगम, उद्योग निदेशालय, जिला उद्योग केन्द्रों ने हमारे देश में उद्यमिता की वृद्धि में काफी सहायता की है। इनमें से कुछ वित्तीय संस्थानों ने नवयुवक And उभरतें उद्यमियों केा उपक्रम पूंजी प्रदान करना प्रारंभ कर दिया है।

    सरकार And इन संस्थानों के निरंतर प्रयत्नों से अनुकुल परिणाम आने प्रारम्भ हो गये है। यह परिणाम उदारीकरण के बाद की अवधि (1990) में अधिक महत्वपूर्ण रहे है। इनके प्रमुख उदाहरण इन्फोसिस टेक्नोलॉजीके श्री एन.आरनारायण मूर्ति And एच.सी.एल. टेक्नोलॉजी के श्री शिवानादर है। वस्तुत: बडी संख्या में उद्यमी अति लघु And लघु पैमाने की इकार्इयों में लगे हैं। इस प्रकार के व्यावसायिक संगठन जिन समस्याओं का सामना करते है। उनमें माल की कमी, पूंजी And बिजली की कमी, प्रशिक्षण सुविधाओं का अभाव, और गुणवत्ता नियंत्रण का अभाव और अपर्याप्त विपणन सुविधाएं सम्मिलित है। सरकार को इन समस्याओं का स्थार्इ Reseller से समाधान करना होगा जिसमे कि भारत में उद्यमियता नर्इ उँचार्इयों तक पहुँचे।

    उद्यमिता विकास कार्यक्रम 

    Meansव्यवस्था के विकास में उद्यमी समुदाय का महत्व And योगदान हम First ही देख चुके हैं। इसलिए Single सफल उद्यमी बनने के लिए आवश्यक कौशल को विकसित करना पूरे विश्व में चिन्ता का विषय बन गया हैं। उद्यमिता विकास कार्यक्रम इस चिन्ता का उत्तर हैं। भारत में कर्इ संगठन उद्मिता विकास कार्यक्रम उद्मिता प्रशिक्षण देने के लिए चलाते हैं। इनमें सबसे प्रमुख संगठनस उद्यमिता विकास संस्थान, अहमदाबाद हैं, छत्तीसगढ़ में राज्य उद्यमिता विकास संस्थान (SEDI) रायपुर में हैं।

    उद्यमिता के महत्वपूर्ण उद्देश्य 

    1. उद्यमिता की गुणवत्ता को विकसित And सुदृढ करना; 
    2. उपयुक्त उत्पादों का चयन And सुसाध्य परियोजनाओं को तैयार करना; 
    3. व्यक्तियों को छोटे व्यवसायों की स्थापना And परिचालन में निहित प्रक्रिया And कार्यवाही से परिचित कराना; 
    4. रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना; 
    5. व्यावसायिक जोखिम की चुनौतियों का सामना करने के लिए उद्यमियों को प्रशिक्षित करना And तैयार करना; 
    6. व्यवसाय के बारे में उद्यमी के दृष्टिकोण को व्यापक बनाना And कानून की सीमाओं के भीतर उसके विकास में सहायता करना।
    7. देश के प्रत्येक राज्य And क्षेत्र का विकास करने हेतु

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