उग्रवादी तथा क्रांतिकारी आन्दोलन (1906-1919 र्इ.)

उग्रवाद के उदय के कारण

1. राजनीतिक कारण – 

  1. सरकार द्वारा कांग्रेस की मांगों की उपेक्षा करना – 1892 र्इ. के Indian Customer परिषद् अधिनियम द्वारा जो भी सुधार किये गये थे, अपर्याप्त And निराशाजनक थे। लाला लाजपत राय ने कहा , ‘Indian Customerों को अब भिखारी बने रहने में ही संतोष नहीं करना चाहिए और न उन्हें अंग्रेजों की कृपा पाने के लिये गिड़गिड़ाना चाहिए।’’ इस प्रकार इस समय के महान उग्रवादी नेताओं ( लाल, बाल And पाल) को उदारवादियों को भिक्षावृत्ति की नीति में Singleदम विश्वास नहीं रहा। उन्होंने निश्चय Reseller कि स्वराज्य की प्राप्ति रक्त और शस्त्र से ही संभव हैं
  2. ब्रिटिश सरकार की Indian Customerों के प्रति दमनकारी नीति – 1892 से 1906 र्इ. तक ब्रिटेन में अनुदार दल सत्तारूढ़ रहा। यह दल अत्यंत ही प्रतिक्रियावादी था। 1897 र्इ. में श्री तिलक को राजद्रोह के अपराध में कैद कर लिया गया और उन्हें 18 महीने का कठोर कारावास दिया गया। श्री तिलक की गिरफ्तारी से सारा देश रो पड़ां सरकार के क्रूर कृत्यों से सारे देश में क्रोध And प्रतिशोध की भावना उमड़ पड़ी।

2. आर्थिक कारण

  1. दुर्भिक्ष And प्लेग का प्रकोप – 1876 से 1900 र्इ. तक देश के विभिन्न भागों में 18 बार दुभिर्क्ष् ा पड़ा। 1896-97 र्इ0. में बंबर्इ में सबसे भयंकर अकाल पड़ां लगभग दो करोड़ लोग इसके शिकार हुए । सरकार अकाल पीड़ितों की सहायता करने में असमर्थ रही। अत: Indian Customerों ने यह निश्चय Reseller कि उन्हें ब्रिटिश सरकार का अंत करना ही है चाहें इसके लिये उन्हें हिंSeven्मक साधनों का सहारा ही क्यों न लेना पड़े ? अभी अकाल का घाव भरा भी नहीं था कि बंबर्इ प्रेसीडेसं ी में 1897-98 र्इ. में प्लेग का प्रकापे छा गया । पूना के आसपास भयंकर प्लेग फैला जिसमें लगभग 1 लाख 73 हजार व्यक्तियों को प्राण गंवाने पडे। सरकार के द्वारा प्लेग की रोक-थाम के लिये जो साधन अपनाये गये इससे जनता में बड़ा असंतोष छा गया।
  2. ब्रिटिश सरकार की पक्षपात पूर्ण कर व्यवस्था – सरकार की आर्थिक नीति का मुख्य उद्देश्य अंग्रेज व्यापारियों तथा उद्यागे पतियों का हित साधन था, न कि Indian Customerों कां कपास पर आयात कर बढ़ाया गया तथा Indian Customer मिलों से तैयार किये हुए माल पर उत्पादन कर लगाया गया जिसके फलस्वReseller विदेशी माल सस्ता रहा और Indian Customer कपड़ा उद्यागे को बड़ी हानि पहंचु ींसरकार की आर्थिक नीति के विरूद्ध Indian Customerों में असंतोष छा गया। उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना आरंभ कर दियां

3. धार्मिक तथा सामाजिक कारण

  1. Indian Customerों में जागृति – 19 वीं शताब्दी में स्वामी विवेकानन्द, लाके मान्य तिलक, विपिनचन्द्र पाल, अरविन्द घोष इत्यादि ने प्राचीन Indian Customer धर्म And संस्कृति को श्रेष्ठ बताकर Indian Customer युवकों में आत्म विश्वास की भावना उत्पन्न की। पुनरूत्थानवादी नेता धर्म की ओट में उग्र राष्ट्रीयता का प्रचार करने लगे। विपिनचन्द्र पाल ने काली And दुर्गा का आह्वान कर बताया कि ‘‘ स्वतंत्रता हमारे जीवन का ध्येय है And इसकी प्राप्ति हिन्दू धर्म से ही संभव है।’’ 
  2. Indian Customerों के साथ विदेश में अभद्र व्यवहार – विदेशों में भी Indian Customerों के साथ अभद्र And अन्यायपूर्ण व्यवहार Reseller जाता था। अंग्रेज Indian Customerों को काला आदमी समझते थे And उनको घृणा की दृष्टि से देखते थे। अंग्रेजी समाचार पत्र जातिभेद का तीव्र प्रचार कर रहे थे। दक्षिण अफ्रीका के प्रवासी Indian Customerों के साथ तिरस्कारपूर्ण और निन्दनीय व्यवहार Reseller जाता था। उन्हें मकान बनाने, संपत्ति खरीदने And रेलवे के ऊँच े दर्जे में यात्रा करने का अधिकार न था। 
  3. लार्ड कर्जन की निरकुंशतापूर्ण प्रशासनिक नीति – लार्ड कर्जन की स्वेच्छाचारिता तथा निरंकुशता ने भी Indian Customer राष्ट्रीय आन्दोलन में उग्रवाद के जन्म को अवश्यंभावी कर दिया। उसने Indian Customerों की भावनाओं पर बिल्कुल ध्यान न दिया। 
  4. पाश्चात्य क्रांतिकारी सिद्धान्तों का प्रभाव – Indian Customer नवयुवकों के विचार And दृष्टिकोण को परिवर्तित करने में पश्चिमी देशों के क्रांतिकारी सिद्धान्तों का जबर्दस्त हाथ रहा। फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमरीका के राष्ट्रीय आन्दोलनों में क्रांतिकारी विचारों को जगा दिया तथा इन देशों में स्वतंत्रता संग्राम की सफलता ने यह स्पष्ट कर दिया कि केवल संवैधानिक मांग से ही साम्राज्यवाद से मुक्ति नहीं मिल सकती है। 

उग्रवादियों के उद्देश्य – 

उग्रवादियों का उद्देश्य स्वराज्य प्राप्त करना था। उनके अग्रणी नेता तिलक कहा करते थे, ‘‘ स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और में इसे लेकर रहूगा।’’ अरविन्द घोष ने भी कहा था, ‘‘ स्वराज्य हमारे जीवन का लक्ष्य है और हिन्दू धर्म के माध्यम से ही इसकी पूर्ति संभव है।’’ इस प्रकार, उग्रवादी स्वतंत्रता के महान पुजारी थे। पूर्णतया राष्ट्रीय सरकार की स्थापना के समर्थक थे तथा इंग्लैण्ड से संबंध विच्छेद चाहते थे।

उग्रवादी आन्दोलन की प्रगति – 

कांग्रेसे दो गुटों में बंट गर्इ नरम दल And गरम दल। नरम दल के प्रमुख नेता गोपाल कृष्ण गोखले, फीरोजशाह मेहता And सुरेन्द्रनाथ बनर्जी थे। गरम दल के प्रमुख नेता बालगंगाधार तिलक, विपिन चन्द्र पाल और लाला लाजपतराय थे जो लाल-बाल-पाल के नाम से विख्यात थे। दाने ों गुटों के बीच पहली बार 1905 र्इके बनारस अधिवेशन में खुला संघर्ष हुआ। कांग्रेस के युवक वर्ग के लाल-बाल-पाल के नेतृत्व में विद्राहे का झंडा खड़ा Reseller। कांग्रेस के पंडाल में उग्रवादियों की पृथक बैठक हुर्इ और अनाधिकारिक Reseller से उग्रवादी दल का जन्म हुआ। उग्रवादियों के प्रभावस्वReseller इस अधिवेशन में राजनीतिक सुधारों की मांग की गर्इ। कांग्रेस की राजनीतिक भिक्षावृत्ति की नीति पर गहरा प्रहार Reseller गया और यह प्रहार भविष्य में और भी प्रबलतम होता गया।

1906 र्इ0. के कलकत्ता अधिवेशन में दादाभार्इ नौरोजी ने नरम दल और गरम दल के मध्य कांग्रेस में फूट उत्पन्न होने से रोकीं उन्होंने अध्यक्षपद से कांग्रेस का लक्ष्य ‘स्वराज्य’ घोषित Reseller साथ ही स्वराज्य, स्वदेशी आन्दोलन, विदेशी बहिष्कार और राष्ट्रीय भिक्षा के समर्थन में प्रस्ताव पास किये गये। उससे उग्रवादियों को काफी संतोष हुआ तथा काँग्रेस में Singleता बनी रही।

कांग्रेस का अगला अधिवेशन 1907 र्इ. में सूरत में हुआ। इस अधिवेशन में स्वराज्य के Means तथा उसकी प्राप्ति के साधनों के प्रश्न पर नरम और गरम दलों में फटू काफी गहरी हो गर्इ। अध्यक्ष पद के लिये पुन: मतभेद हुआ। उग्रवादी लोकमान्य तिलक को इस अधिवेशन का सभापति बनाना चाहते थे, परन्तु उदारवादियों ने बहुमत द्वारा डॉरासबिहारी घोष को सभापति निर्वाचित Reseller। फलत: अध्यक्ष भाषण के पूर्व ही हो-हल्ला आरंभ हो गया तथा शोर-गुल के बीच अधिवेशन को स्थगित कर देना पड़ा। तत्बाद सूरत अधिवेशन में उदारवादी बहुमत में थे। अत: इनकी Single अलग सभा हुर्इं। इनकी समिति ने कांग्रेस का विधान तैयार Reseller। विधान की First धारा में काँग्रेस की नीति का स्पष्टीकरण Reseller गया जिसका पालन प्रत्येक कांग्रेसी के लिये आवश्यक बताया गया। इस धारा में कहा गया कि ‘‘भारत की जनता को उसी प्रकार की शासन व्यवस्था प्राप्त हो, जिस प्रकार की शासन व्यवस्था ब्रिटिश साम्राजय के अन्य उपनिवेशों में प्रचलित है और उनके समान ही भारतवासी भी साम्राज्य के अधिकारों और उत्तरदायित्वों के भागी बने। यही भारत की राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्य हैं। इन उद्देश्यों की प्राप्ति वर्तमान शासन व्यवस्था में धीरे-धीरे सुधार का राष्ट्रीय Singleता तथा जनोत्साह को बढ़ावा देकर और देश के मानसिक नैतिक, आर्थिक And औद्योगिक साधनों को सुसंगठित कर वैधानिक रीति से की जाए।’’

उग्रवादी कांग्रेस की इस नरम नीति के बिल्कुल विरूद्ध थे। अत: वे कांग्रेस से अलग हो गये। दोनों दल अगले 9 वर्षो तक पृथक Reseller से कार्य करते रहें।

महाराष्ट्र में उग्रवादी आन्दोलन –उग्रवाद का जन्म महाराष्ट्र में हुआ, किन्तु शीध्र ही यह बंगाल आ पहुंचां महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में उग्रवाद का प्रचार हुआ। श्री तिलक का जन्म स्थान महाराष्ट्र में था। श्री तिलक सर्वप्रिय आदर्श देशभक्त नेता थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिये सार्वजनिक आन्दाले न का सूत्रपात Reseller। उन्हें पाश्चात्य सभ्यता, संस्कृति And दृष्टिकोण से घोर घृणा थी। ‘केशरी’ And ‘मराठा’ नामक दो साप्ताहिक पत्रों का संपादन कर श्री तिलक ने महाराष्ट्र के युवकों में जोश तथा स्वदेश प्रेम उत्पन्न करने की चेष्टा टा की। 1881 में उन पत्रों में कोल्हापुर राज्य के संबंध में कुछ लेखों के प्रकाशन होने पर उन्हें बंदी बना लिया गया। इससे उनकी लाके प्रियता और भी बढ़ गर्इ।

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