आर्थिक सुधार की Need And क्षेत्र

सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार करने की First की नीतियों ने सार्वजनिक क्षेत्र को अकुषल बना दिया था तथा इस क्षेत्र में बहुत अधिक हानि हो रही थी। लाइसेंस और नियंत्रण प्रणाली ने निजी क्षेत्र द्वारा निवेश पर रोक लगा दिया तथा इसके कारण विदेषी निवेषक भी हतोत्साहित हो रहे थे। अत: विकास के First चार दषकों में अपनार्इ गर्इ आर्थिक नीतियों के संबंध में फिर से विचार करने की आवष्यकता थी। इसी के फलस्वReseller सरकार ने आर्थिक सुधार की शुरूआत की। इस इकार्इ में आप आर्थिक सुधार के स्वReseller और उसके क्षेत्र के संबंध में पढ़ेगें। आर्थिक सुधार के कार्यान्वयन की प्रगति और समस्याओं के संबंध में अध्ययन Reseller जाएगा तथा इस नीति का विष्लेषण Reseller जाएगा।

आर्थिक सुधार की Need 

स्वर्गीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में शुरू की गर्इ आर्थिक नीति में निम्नलिखित का प्रावधान था : (i) भारी और मूल उद्योगों की स्थापना में सार्वजनिक क्षेत्र की मुख्य भूमिका, (ii) जल विद्युत शक्ति परियोजनाओं, बांधों, सड़को और संचार के निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्र के माध्यम से सरकार की भूमिका का विस्तार, तथा (iii) स्कूलों, कालेजों, विश्वविद्यालयों, तकनीकी और इंजीनियरी संस्थानों के Reseller में सामाजिक आधारभूत संCreationओं के विकास में तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, अस्पतालों And डाक्टरों, नर्सों आदि को प्रषिक्षित करने के लिए चिकित्सा संस्थाओं की स्थापना में सरकार की भूमिका।

यद्यपि Meansव्यवस्था का शेष क्षेत्र निजी क्षेत्र के लिए छोड़ दिया गया था, फिर भी इस भाग में विनियमन और नियंत्रण की प्रणाली लागू की गर्इ थी। इसके फलस्वReseller लाइसेंस परमिट राज की शुरूआत हुर्इ। नौकरषाही And राजनीतिज्ञ लाइसेंस प्रणाली का दुResellerयोग करके धन कमाने लगे। इसमें कोर्इ संदेह नहीं कि राज्य के नेतृत्व में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के फलस्वReseller भारी और मूल उद्योगों के Reseller में औद्योगिक आधार का निर्माण हुआ। इसकी सहायता से सड़कों, रेलवे, संचार और जल-विद्युत कायर्ेा, और थर्मल पावर प्लांटों का निर्माण हुआ तथा षिक्षा And स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रसार हुआ। साथ ही साथ कुछ समस्याएं भी सामने आर्इ। ये समस्याएं निम्नलिखित थी :

  1. अत्यधिक नियंत्रणों और लाइसेंस-नीति के कारण निजी क्षेत्र में निवेष के सम्बन्ध में बाधायें उत्पन्न हुर्इ। 
  2. सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश तो बहुत बड़ी मात्रा में हो रहा था परन्तु उनसे आय बहुत ही कम होती थी। अकुषलता And नौकरषाही के नियमों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र की हालत खराब हो रही थी। 
  3. जो क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र के लिए Windows Hosting थे उन All में इस क्षेत्र का Singleाधिकार था। इन क्षेत्रों में निजी क्षेत्र को सार्वजनिक क्षेत्र के साथ प्रतियोगिता करने का अधिकार नहीं था। इसका परिणाम यह हुआ सार्वजनिक क्षेत्र ने अपनी लागतों को कम करने की ओर ध्यान नहीं दिया। 
  4. Singleाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम 1969 के कारण बड़े-बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठान बड़ी परियोजनाओं में बड़ी मात्रा में निजी निवेष के Reseller में धन नहीं लगा सके।
  5. लाइसेंस आदि से संबंधित जटिल नियमों-विनियमों के होने से विदेषी निवेशकर्ता भी हतोत्साहित हो गए। 
    उपर्युक्त कारणों से आर्थिक नीति में परिवर्तन की आवष्यकता हुर्इ, जिससे Single ओर तो सार्वजनिक क्षेत्र का सुधार हो सके और दूसरी ओर प्रतिबंधित क्षेत्रों को निजी क्षेत्र (Indian Customer और विदेशी दोनो ही) के प्रवेश के लिए खोला जा सके। संवृद्धि और कुषलता में सुधार लाने के लिए विकास के First चार दषकों में अपनार्इ गर्इ आर्थिक नीति के संबंध में पुन: विचार करने की आवष्यकता थी।

    सरकार की वर्तमान आर्थिक सुधार नीति का स्वReseller And क्षेत्र 

    1. कर सुधार – 

    सरकार करवंचना को रोकने व अधिक कर वसूल करने के उद्देष्य से करों में सुधार कर रही है जिनके अंतर्गत प्रोव्म् चलैया समिति की रिपोर्ट के आधार पर प्रयत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों (Direct & Indirect Taxes) से सम्बन्धित अनेक सिफरिषों को सरकार ने मानकर कार्यReseller में परिणत कर दिया है: 

    1.  व्यक्तिगत आयकर (Individual Income) की अधिकतम दर 30 प्रतिषत कर दी गर्इ है।
    2.  दुकानदारो व छोटे व्यापारियों को निष्चित रकम के Reseller में कर देने की सुविधा प्रदान की गर्इ है। 
    3.  आयात-निर्यात शुल्क के ढ़ाँचे को सरल बनाया है। 
    4.  D.T.C. (Direct Tax Code)  GST (Goods andservices Tax) को लागू करना। 

    2. आर्थिक क्षेत्र में सुधार – 

    सरकार ने आर्थिक क्षेत्र में सुधार के लिए निम्न कार्य किये है: ;

    1. बैंकों के लिए नवीन सिद्धान्त बनाये गये है जिससे कि उनके वार्षिक खाते सही स्थिति (real position) को बता सकें। 
    2. बैकों के लिए SLR की सीमा घटार्इ जा रही है। 
    3. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूँजी बाजार से अपनी पूंजी Singleत्रित करने की अनुमति प्रदान की गर्इ है, लेकिन 51 प्रतिषत पूँजी सदा ही सरकार के पास रहेगी। 
    4. निजी क्षेत्र के बैंक अपना विकास, बिना राष्ट्रीयकरण के भय के कर सकते हैं। 
    5. सेबी (SEBI) को वैधानिक अधिकार दे दिये गये हैं। पूँजी नियन्त्रक का कार्यालय बन्द कर दिया गया है। सेबी ने पूँजी बाजार का नियमित करने के लिए अनेक नियम उपनियम लागू किये हैं। ‘राष्ट्रीय स्कन्ध विपणि’ स्थापित Reseller जा चुका है। 

    3. सार्वजनिक क्षेत्र में सुधार – 

    सार्वजनिक क्षेत्र (Public Sector) ने आषा के अनुReseller कार्य नहीं Reseller है। अधिकांश इकाइयाँ घाटे में चल रही है: अत: 

    1. घाटे वाली इकाइयों को गैर-योजना ऋण नहीं दिये जायेंगे।
    2.  लाभ देने वाली सार्वजनिक इकाइयों को अपनी पूँजी का 49 प्रतिशत तक निजी क्षेत्र को देने की अनुपति दी गर्इ है। 

    4. औद्योगिक नीति में सुधार – 

    आर्थिक सुधार कार्यक्रम के अन्तर्गत औद्योगिक नीति (Industrial Policy) में मूलभूत परिवर्तन किये गये हैं: 

    1. औद्योगिक लाइसेन्स प्रणाली समाप्त कर दी गर्इ है। 
    2. MRTP औद्योगिक गृहों को अब विनियोग व विस्तार के लिये अनुमति लेने की आवष्यकता नहीं है। 
    3. सार्वजनिक क्षेत्र के लिए Windows Hosting उद्योगों की संख्या 17 से घटाकर 3 कर दी गर्इ है। 

    5. राजकोषीय घाटे को ठीक करना – 

    आर्थिक सुधार कार्यक्रम के अन्तर्गत राजकोषीय घाटा कम करने की बात कही गर्इ है। यह घाटा 1990-1991 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 6.6 प्रतिषत था। जो 2004-05 में 5.6 प्रतिषत रह गया है। 

    6. विदेशी व्यापार And विनिमय दर नीतियाँ – 

    विगत वर्षों में विदेशी व्यापार And विनियम दर नीतियों पर कड़े सरकारी नियन्त्रण थे, परन्तु अब- 

    1. आयात शुल्क जो काफी अधिक थे उन्हें कर्इ स्तरों पर कम कर दिया गया है जैसे जुलार्इ 1991 में अधिकतम 150 प्रतिषत तक करना, फरवरी 1992 में 110 प्रतिषत, फरवरी 1993 में 85 प्रतिषत व मार्च 1995 में 50 प्रतिषत तक करना। वर्ष 2005-06 यह 20 से 40 प्रतिषत कर दिया गया है। 
    2. सोना व चादी के आयात का उदारीकरण करना। 
    3. रुपये की विनिमय दर विदेषी विनिमय बाजार में माँग व पूर्ति (Demand & Supply) के According निर्धारित करना। 

    7. विदेशी विनियोग नीति – 

    देश के औद्योगिक विकास में विदेषी विनियोग नीति महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। नर्इ औद्योगिक नीति की घोषणा से लेकर 2004-05 तक विदेशी विनियोजकों को 2,84,812 करोड़ रुपये विनियोजित करने की अनुमति दी जा चुकी है परन्तु वास्तविक विनियोग 1,29,828 करोड़ रुपयें का ही हुआ है जो कुल अनुमति का 45.6 प्रतिषत है। इसमें वे विदेश कम्पनियाँ भी शामिल हैं जिनकों शत-प्रतिषत विदेषी विनियोग की अनुमति दी गर्इ है। 

    सार्वजनिक क्षेत्र का सुधार – 

    सार्वजनिक क्षेत्र के सुधार के अनेक उपाय किये गए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित है:

    1. सार्वजनिक क्षेत्र को सामरिक और हार्इ टेक के उद्योगों And आरक्षित संCreationओं तक सीमित रखा जाएगा। अब तक जो क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रखे गए थे उनमें से कुछ को निजी क्षेत्र के लिए मुक्त कर दिया जाएगा। 
    2. सार्वजनिक क्षेत्र के जो उद्यम दीर्घकाल से रोगग्रस्त है, उनके संबंध में बोर्ड फार इन्डस्ट्रियल एंड फाइनेन्सियल रिकंस्ट्रक्षन (BIFR) की सलाह ली जाएगी। यह बोर्ड यदि उन्हें आजीवन क्षय (Non Viable) घोषित कर देता है तो उनका समापन कर दिया जायेगा। लेकिन यदि बोर्ड की राय है कि उनको पुन: जीवित करने की संभावना है तब उनके पुनर्जीवन/पुनर्वास योजना को कार्यन्वित Reseller जाएगा। इस प्रक्रिया में जिन श्रमिकों को काम से हटाया जायेगा उन्हें सामाजिक Safty तंत्र (Socialsecurity Mechanism) के अधीन सहायता दी जाएगी। 
    3. श्रमिकों की कार्यकुषलता को बढ़ाने And कार्य के साथ उनके हित को जोड़ने के लिए उद्यम के शेयरों का Single भाग श्रमिकों को दिया जाएगा। 
    4. सर्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के लिए संसाधनों को जुटाने की दृष्टि से सार्वजनिक क्षेत्र के प्रबंध को अनुमति दी जाएगी कि वे म्युचुअल फंडो और अन्य वित्त्ाीय संस्थाओं को अपने स्वामित्व का Single भाग देकर उनसे धन ले सकते हैं। 
    5. सार्वजनिक क्षेत्र के प्रबंध को अधिक पेषेवर बनाया जाएगा तथा निर्णय लेने के संबंध में उन्हें अधिक स्वायत्त्ाता प्रदान की जाएगी। 
    6. सर्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां सरकार के साथ मेमोरेंडम आँफ अंडरस्टैंडिंग ;डवनद्ध पर हस्ताक्षर करेंगी जिससे कि Single ओर तो वह स्वायत्त्ा हो सकें ओर दूसरी ओर उत्त्ारदायी हो जाएं। 

    उदारीकरण (Liberalisation) 

    उदारीकरण से तात्पर्य उद्योग तथा व्यापार को अनावष्यक प्रतिबन्धों से मुक्त करना है ताकि उन्हें अधिक प्रतियोगी बनाया जा सके। Second Wordों में, उदारीकरण Single प्रक्रिया है जिसमें देष के शासन तन्त्र द्वारा राष्ट्र के आर्थिक विकास हेतु अपनाये जा रहे विभिन्न कदमों जैसे लाइसेंसिंग नियंत्रण, कोटा प्रणाली इत्यादि प्रषासकीय अवरोधों को कम Reseller जाता है। इससे आर्थिक व्यवस्था में सरकार की भूमिका क्रमष: कम होती जाती है। 

    उदारीकरण के उद्देश्य – 

    उदारीकरण के प्रमुख उद्देष्य इस प्रकार हैं- 

    1. व्यवसाय के क्षेत्र में सरकार व नौकरशाही के हस्तक्षेप को न्यूनतम करना, 
    2. घरेलू उत्पादन प्रणाली में सुधार करके उत्पादन क्षमता में विकास करना,
    3. आर्थिक क्षेत्र में अनुसंधान के माध्यम से वस्तुओं की गुणवत्त्ाा में सुधार लाना, 
    4. देश की Meansव्यवस्था में आमूल-चूल सुधार करके कृषि, उद्योग, परिवहन आदि के क्षेत्र में तीव्र विकास को सम्भव करना, 
    5. प्रबन्धकीय दक्षता And निष्पादन में सुधार लाना,
    6. रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना, 
    7. सार्वजनिक क्षेत्र के अनावष्यक Singleाधिकार को समाप्त करना, 
    8. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में शामिल होना, 
    9. सूचनाओं के आदान-प्रदान प्रणाली को प्रभावी बनाना, 
    10. सम्पूर्ण Meansव्यवस्था के चहुँमुखी विकास की दषा में कदम बढ़ाना। 

    उदारीकरण के पक्ष में तर्क –

    1.  विदेशी मुद्रा भण्डार में आश्चर्यजनक Reseller से वृद्धि हुर्इ है। जुलार्इ, 1991 में विदेशी मुद्रा भण्डार मात्र Single अरब डालर था, जो जुलार्इ, 2003 में बढ़कर 82,774 अरब डॉलर हो गया।
    2. कृषि, उद्योग आदि में उदार नीति अपनाने से विभिन्न सकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर हुए हैं। 
    3. भारत के निर्यातों में वृद्धि हुर्इ है। जहाँ 1991-92 में कुल निर्यात 44,041 करोड़ रुपये के थे, वहाँ जनवरी, 2000 में ये बढ़कर 1,18,638 करोड़ रुपये के हो गये।
    4. प्रत्यक्ष विदेशी विनियोग में वृद्धि तथा राजकोषीय घाटे में कमी हुर्इ है। 
    5. उदारीकरण से Indian Customer उपभोक्ताओं को सस्ती, आकर्षक तथा टिकाऊ वस्तुओं को प्राप्त करने का अवसर मिल रहा है जिससे जनसाधारण के जीवन स्तर में सुधार हुआ है। 
    6. उदरीकरण की नीति अपनाने से देष की Meansव्यवस्था का विश्वव्यापीकरण दृष्टिगोचर हो रहा है। 

    निजीकरण (Privatlsation)

     व्यवसाय, सरकार तथा शैक्षणिक क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘निजीकरण’ Word ध्यान आकर्षित करता रहा है। ‘निजीकरण’ Word को खोजने का श्रेय पीटर एफ.ड्रकर (Peter F. Drucker) को जाता है, जिन्होंने इस Word का प्रयोग अपनी पुस्तक ‘The Age of Discontinuity (1969) में Reseller। इसके दस वर्ष बाद जब श्रीमती मागे्रट थ्रैचर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनीं तब उन्होंने निजीकरण को व्यवहारिक Reseller दिया। इसके बाद Single-Single करके अनेक देशों द्वारा निजीकरण को अपनाया गया। 

    संकुचित Reseller में, निजीकरण से तात्पर्य है ऐसी औद्योगिक इकार्इयों के स्वामित्व को निजी क्षेत्र में हस्तान्तरित कर देना जोकि अभी तक सरकारी स्वामित्व तथा नियंत्रण में थी। व्यापक Means में, निजीकरण से अभिप्राय निजी उद्योगों के सम्बन्ध में सरकार द्वारा उदार औद्योगिक नीति अपनाने से है जिससे सरकार निजी उद्यमियों के विभिन्न आर्थिक क्रिया-कलापों पर न्यूनतम नियंत्रण तथा नियमन करती है। निजीकरण में सार्वजनिक क्षेत्र का हिस्सा निजी क्षेत्र की तुलना में कम Reseller जाता है।

    निजीकरण के आधारभूत उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

    1. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के निष्पादन में सुधार करना ताकि करदाताओं पर पड़ने वाले वित्त्ाीय भार को कम Reseller जा सके।
    2. निजी क्षेत्र के विनियोगों को प्रोत्साहित करना तथा सरकार हेतु आय में वृद्धि करना। 
    3. सरकार पर पड़ने वाले प्रषासनिक व प्रबंधकीय भार को कम करना।
    4. निजीकरण का Single उद्देष्य निजी क्षेत्र को सामान्य जनता में लोकप्रिय बनाना भी है। 

    बाधायें (Obstacles) – निजीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाये निम्नलिखित हैं: 

    1. सरकार सामान्यतया अलाभकर सार्वजनिक इकार्इयों को बेचना चाहती है, जिन्हें निजी क्षेत्र सरकार द्वारा माँगें जाने वाले मूल्य पर नहीं खरीदना चाहता है। 
    2. तुलनात्मक Reseller से अविकसित पूँजी बाजारों के कारण सरकारे शेयर निर्गमित करने में कठिनार्इ महसूस करती है। दूसरी तरफ बड़े क्रेताओं को वित्त्ा उपलब्ध कराने में भी सरकार को समस्या का सामना करना पड़ता है।
    3. सार्वजनिक उद्योग का स्वामित्व सम्बन्धी अधिकार निजी क्षेत्र को दिये जाने पर राजनैतिक विरोध का सामना करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, उद्योग में कार्यरत कर्मचारी भी विरोध करते हैं क्योकि उन्हें अपने रोजगार के छिनने का भय रहता है। 

    निजीकरण के पक्ष में तर्क – 

    निजीकरण के पक्ष में विचार व्यक्त करने वालों का विश्वास है कि सार्वजनिक क्षेत्र की विभिन्न समस्याओं का हल निजीकरण में है। वे निजीकरण के पक्ष में अग्रलिखित तर्क प्रस्तुत करते है: 

    1. उत्तरदायित्व के निर्धारण में सरलता (Fixing the responsibility) – किसी कमी या दोष के लिए सार्वजनिक उद्योगों में किसी कर्मचारी या अधिकारी को उत्तरदायित्व या जवाब देह ठहराना मुष्किल होता है, लेकिन निजी क्षेत्र में उत्तरदायित्व का क्षेत्र स्पष्ट Reseller से परिभाषित कर दिया जाता है। सार्वजनिक उद्योग में अगर उत्तरदायित्व निर्धारित कर भी दिया जाय तो विभिन्न दबावों तथा शक्तियों के कारण उनका प्रभावी क्रियान्वयन सम्भव नहीं हो पाता है। 
    2. कुशलता तथा निष्पादन में वृद्धि (Improvement in efficiency and performance) – निजी क्षत्रे में प्रत्यके निर्णय ‘लाभ-आधारित’ होता है। कार्य तथा पुरस्कार में सीधा सम्बन्ध होने के कारण कुषलता तथा निष्पादन में सुधार के लिए निरंतर प्रयास किये जाते हैं। 
    3. उपभोक्ताओं को अच्छी सेवाय (Better Servlces to the customers) – निजी क्षेत्र का अस्तित्व मुख्य Reseller से उपभोक्ताओं के संतोष पर निर्भर करता है क्योंकि यह संतोष ही उपभोक्ताओं को पुन: क्रय करने हेतु प्रेरित करता है। लोक उद्योगों में सामान्यता उपभोक्ताओं की रूचि, आवष्यकताओं आदि की अवहेलना देखने को मिलती है। Single बार निजीकरण होने से लोक उद्योगों के दृष्टिकोण में भारी परिवर्तन होने की सम्भावना व्यक्त की गयी है। इसके फलस्वReseller सेवाओं की गुणवत्त्ाा में भारी सुधार होने की आषा है। 
    4. निजी क्षेत्र में उपचारात्मक उपाय शीघ्र उठाना ;Remedial measures are taken early in Private Sector) – किसी कमी या दोष को दूर करने के सम्बन्ध में निजी क्षेत्र में तत्काल उपचारात्मक कदम उठाये जाते है। लोक क्षेत्र में ऐसे कदम उठाने के सम्बन्ध में निर्णय लेने में काफी समय निकल जाता है और समस्या विकराल Reseller धारण कर लेती है और कभी-कभी उस दोष या कमी को दूर करना लगभग असम्भव हो जाता है। 
    5. आर्थिक समाजवाद (Economic Sociallsm) – निजीकरण के द्वारा ‘राज्य Singleाधिकार’ समाप्त होगा तथा नीति निर्धारण, मूल्य निर्धारण तथा विभिन्न निर्णयों की स्वतंत्रता के परिणामस्वReseller आर्थिक समाजवाद की दिशा में प्रगति होगी। ऐसी व्यवस्था में सरकार के साथ-साथ उद्यमियों, बाजार शक्तियों आदि का भी हस्तक्षेप होगा। 
    6. राजनैतिक हस्तक्षेप न होना (No Political Interference)- रिजर्व बैंक के गर्वनर विमल जालान का सही कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र में राजनैतिक हस्तक्षेप की अवहेलना नहीं की जा सकती हैं जिसे उन उद्योगों की कार्यकुशलता में कमी आने का Single कारण कहा जा सकता है। ऐसी बात निजी क्षेत्र पर लागू नहीं होती है। 
    7. नयी प्रौद्योगिकी (New Technology)- निजीकरण से देश में नय-े नये उद्यमियों तथा साहसियों का प्रादुर्भाव होता है। वे नयी किस्मों की वस्तुओं को बाजार में लाने के लिए नयी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हैं। 
    8. उत्त्ाराधिकार सम्बन्धित नियोजन (Succession related planning)- अनेक लोक उद्योग अक्सर लम्बे समय तक ‘मुखियाविहीन’ रहते हैं। इससे निर्णण लेने में विभिन्न आषंकाएँ बनी रहती हैं क्योंकि यह कोर्इ नहीं जानता कि आने वाले मुखिया (प्रधान संचालक या जनरल मैनेजर) का क्या दृष्टिकोण होगा ऐसी परिस्थिति निजी क्षेत्र में उत्पन्न नहीं होती है क्योंकि इसमें उत्त्ाराधिकारी का निर्धारण जल्दी तथा समय से कर लिया जाता है। 
    9. लाभो का सृजन (Creation of Profits) – निजीकरण से देष में पूँजी, कोष तथा लाभों का सृजन होता है। निजी क्षेत्र का मूल उद्देष्य लाभोपार्जन ही होता है। निजी क्षेत्र व्यवसाय में हुए विनियोग को बढ़ाने का निरंतर प्रयास करते हैं। इसके फलस्वReseller देश में आधिक्य तथा विनियोग हेतु कोष उपलब्ध रहते हैं। 

    वैश्वीकरण (Globalisation) 

    वैश्वीकरण का Means भिन्न-भिन्न लोगों के लिए भिन्न-भिन्न होता है। विकासषील देषों के लिए देष की Meansव्यवस्था को विष्व की Meansव्यवस्था के साथ Singleीकृत करने को वैष्वीकरण कहते हैं। साधारण Wordों में, यह Single प्रक्रिया है जिसमें विश्व Singleीकृत होकर Single विशाल बाजार में परिवर्तित हो जाता है। ऐसा होने के लिए समस्त व्यापारिक अवरोधों (Trade Barriers) को दूर करना आवश्यक है। वैश्वीकरण में राजनैतिक तथा भूगोलीय अवरोधक कोर्इ Means नहीं रखते हैं। वैश्वीकरण की प्रमुख विशेषतायें निम्ननिखित है: 

    1. व्यापार का तीव्र विकास होता है, विशेष तौर से बहुराष्ट्रीय निगमों (Multinational Corporations) का विस्तार होता है।
    2. देश की Meansव्यवस्था को विष्व की Meansव्यवस्था के साथ Singleीकृत Reseller जाता है जिसमें राजनैतिक व भूगोलीय अवरोधक समाप्त हो जाते है।
    3. अन्तर्राष्ट्रीय वित्त्ाीय लेन-देन अथवा कार्य कलापों में तेजी आती है। 
    4. अन्तर्राष्ट्रीय बाजार का प्रदुर्भाव होता है Meansात् वस्तुओं, सेवाओं, पूँजी, तकनीक तथा श्रम सम्बन्धी अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों का Singleीकरण हो जाता है। 

    भारत में वैश्वीकरण को प्रेरित करने वाले घटक – 

    1. राजनैतिक कारक (Political Cause)– गत वर्षों में आये राजनैतिक उतार-चढ़ाव का वैष्वीकरण पर गहरा प्रभाव पड़ा। सोवियत संघ का विखण्डन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका का Only महाषक्ति के Reseller में रह जाना आदि सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना रही। अमेरिका की करंसी ‘डालर’ में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार संचालित Reseller जाने लगा जिससे वैष्वीकरण को प्रोत्साहन मिला। 
    2. तकनीकी प्रगति (Technological Progress)- परिवहन, संम्प्रेशण तथा सूचना आदि के क्षेत्र में हुर्इ तकनीकी क्रान्ति ने वैष्वीकरण के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कम्प्यूटर तथा सैटेलाइट के प्रयोग ने सम्पूर्ण संम्पेषण प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तनकर दिये हैं। सम्पूर्ण विष्व Single छोटा-सा गाँव हो गया है जिसमें र्इ-मेल, मोबाइल फोन, पर्सनल कम्प्यूटर आदि के माध्यम से कुछ क्षणें में ही Single सूचना किसी भी Second स्थान पर पे्रषित की जा सकती है। तकनीकी प्रगति ने कम लागत पर उच्च किस्म का उत्पादन करना सम्भव बनाया है।
    3. विकासशील देशों के अनुभव (Experiences of Developing Countries)- विकासषील देषों वैष्वीकरण की नीति अपना कर अपनी Meansव्यवस्था में काफी सुधाार Reseller। ताइवान, कोरिया, थार्इलैण्ड, ंिसंगापुर, हाँगकाँग इत्यादि इसके उदाहरण है। इन देषों के सफल विष्वव्यापीकरण को भारत में प्रोत्साहित Reseller है।
    4. उदारवादी नीतियाँ (Liberalised Policies)- अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों ने ‘व्यापार उदारीकरण’ (Trade Liberalisation) की नीति अपनायी। इसके परिणाम स्वReseller अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देन पर लगे व्यापारिक अवरोधों को दूर कर दिया गया जिससे वैष्वीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिला। इससे व्यापार तथा विदेषी निवेष क्षेत्र में उदारता का प्रादुर्भाव हुआ।
    5. औद्योगिक संगठन की विशेषताएँ (Features of Industrial Organisation)- औद्योगिक संगठन में उभरती नयी प्रवृित्त्ायों ने भी वैष्वीकरण को बढ़ावा दिया है। औद्योगिक संगठनों की लोचपूर्ण उत्पादन प्रणाली, तकनीकी प्रगति, संगठनीय विषेषताओं (मुख्यतया जापानी प्रबंध पर आध् ाारित) ने राष्ट्रीय सीमाओं के पार आर्थिक गतिविधियाँ करने को प्रेरित Reseller है। 
    6. प्रतिस्पर्धा (Competition)- पँूजीवादी Meansव्यवस्था की Single प्रमुख विशष्े ाता अन्य क्षेत्र (सार्वजनिक क्षेत्र) से प्रतिस्पर्धा होना है। इसी प्रतिस्पर्धा के कारण उद्यमी को विदेषों में नये बाजार खोजने की आवष्यकता होती है। विदेषी निगमों से प्रतिस्पर्धा के कारण ही घरेलू निगम भी विश्व परिप्रेक्ष्य में अपने को स्थापित करने लगे हैं।
    7. अन्र्तसम्बन्धित And स्वतंत्र Meansव्यवस्थायें (Interlinked and Independent Economics)- आर्थिक कल्याण के संदर्भ में, वैष्वीकरण से तात्पर्य आर्थिक Reseller से अन्तर्सम्बन्धित पर्यावरण से है। प्रत्येक राष्ट्र की सम्पन्नता में विश्व के अन्य राष्ट्रों का योगदान होता है Meansात् कोर्इ अकेला राष्ट्र बिना अन्य राष्ट्रों के सहयोग के प्रगति नहीं कर सकता है। भारत तथा अन्य विकासषील राष्ट्रों में विपरीत भुगतान संतुलन जैसी वित्त्ाीय समस्याओं ने वैश्वीकरण को आवष्यक बना दिया है। 

    भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है। इसके कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित है: 

    1. बहुराष्ट्रीय निगमों (MNCs) ने बड़ी संख्या में भारत में प्रवेष Reseller है। 
    2. 2200 की संख्या के आसपास Indian Customer कम्पनियों ने ISO 9000 प्रमाण-पत्र प्राप्त किये हैं जो कि उच्च गुणवत्त्ाा की गारण्टी हैं। 
    3. Indian Customer निगमों की गतिविधियाँ अमेरिकी ऋण बाजार में बढ़ी हैं। 
    4. केवल तटकर में ही कमी नहीं की गयी है वरन् Meansव्यवस्था को विदेषी प्रत्यक्ष विनियोग (FDI) तथा विदेशी प्रौद्योगिकी के लिए भी खोल दिया गया है। 
    5. गत कुछ वर्षों में व्यापार And निर्यात गहनता दोनों में वृद्धि हुर्इ है। गत वर्ष की तुलना में 2002-03 में भारत का निर्यात 19 प्रतिषत बढ़ा है। 
    6. देश में भारी मात्रा में विदेषी विनियोग हुआ है तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने देश में प्रवेष Reseller है। 

    आर्थिक सुधारों का मूल्याकंन 

     आर्थिक सुधारों का सूत्रपात्र बहुत उत्साह के साथ Reseller गया था। इसके अनेक लाभ हुए है परन्तु अनेक क्षेत्रों में सफलता नहीं मिल पार्इ है। नीचे इस नीति का मूल्यांकन Reseller जा रहा है। 

    1. First, Meansव्यवस्था की सुवृद्धि में धीरे-धीरे सुधार हुआ और तीन वर्षों (1994-96 से 1996-97 तक) में संवृद्धि दर बढ़ाकर GDP का 7 प्रतिशत हो गर्इ। संवृद्धि दर की वृद्धि के संबंध में यह रिकार्ड था। 
    2. द्वितीय, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (PSUs) को अब आर्थिक सुधारों के कारण निजीकरण की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। अपने आस्तित्व को बचाने के लिए वे अपने कार्यों में सुधार लाने का प्रयास कर रहे है। 1995-96 वर्ष में केन्द्रीय सरकार के PSUs ने निवेशित पूंजी पर 16.1 प्रतिशत की दर से सकल आय अर्जित Reseller जो Single रिकार्ड दर थी। विनिवेश से 2005-06 49214 करोड़ Resellerये प्राप्त हुआ। 
    3. तृतीय, मुद्रा स्फीति की प्रवृित्त्ा को रोकने में आर्थिक सुधार सफल रहे है। 1991-92 में यह 10 प्रतिषत से अधिक थी जबकि जनवरी 2007 में 6.11 प्रतिषत रही। 
    4. चौथा, औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक से पता चलता है कि इस क्षेत्र में समग्र संवृद्धि दर 1991-92 के 0.6 प्रतिषत से बढ़कर 1995-96 में 11.8 प्रतिशत हो गर्इ, हालांकि 1996-97 में यह दर गिरकर 6.6 प्रतिषत हो गर्इ। फिर 2006-07 में 8.2 प्रतिशत हो गर्इ। 
    5. पांचवा, निर्यात की वृद्धि दर 1992-93 में 3.8: (यू. एस. डालर में मापित) थी। 1995-96 तक यह दर बढ़कर 20.8: हो गर्इ। लेकिन वर्ष 1996-97 वर्ष में यह दर फिर घट कर 4.1: हो गर्इ। उसी प्रकार आयात में वृद्धि दर 1992-93 के 12.7: से बढ़कर 1995-96 में 28.6: हो गर्इ थी लेकिन बाद में इसमें कमी हुर्इ और 1996-97 में यह 5.1: हो गर्इ। 2005-06 में यह 23.4: बढ़ा। 

    अंतत:, विदेशी मुद्रा रिजर्व 1990-91 तक गिरकर 2.24 बिलियन यू. एस. डॉलर हो गया था। अप्रैल 2007 तक यह बढ़कर 2.00 बिलियन डॉलर हो गया। इससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। आर्थिक सुधारों के अंतर्गत उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण तथा सार्वजनिक क्षेत्रों के सुधार के कार्यक्रम आते हैं। यह नीति अल्पकालिक उद्देश्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित करती रही है जैसे कि भुगतान-संतुलन की बिगड़ती हुर्इ स्थिति पर नियंत्रण, विदेशी मुद्रा रिजर्व का निर्माण, राजकोषीय घाटे को कम करना तथा मुद्रास्फीति पर नियंत्रण। लेकिन यह नीति गरीबी को कम करने, पूर्ण रोजगार की स्थिति लाने, स्वावलंबन, धन की असमानता को दूर करने, अवसर की स्थापना का प्रावधान करने तथा सामाजिक न्याय स्थापित करने के दीर्घकालिक लक्ष्यों की ओर ध्यान नहीं दे पार्इ है। मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और निजीकरण जैसे कुछ अल्पकालिक लक्ष्यों के संबंध में भी इस नीति को केवल आंशिक सफलता ही मिल पार्इ है। आर्थिक सुधार में जिन प्रमुख क्षेत्रों की ओर पुन: ध्यान देना चाहिए वे निम्नलिखित है- 

    1. इसका कार्यक्षेत्र सीमित रहा है। मुख्यत: इसने अपना ध्यान बड़े कंपनी क्षेत्रों पर ही केन्द्रित Reseller है। इसके फलस्वReseller छोटे पैमाने के क्षेत्र और कृषि की उपेक्षा हुर्इ है, जोकि रोजगार के मुख्य स्रोत हैं। अत: आवश्यक है कि समग्र आर्थिक संवृद्धि को बढ़ाने तथा दीर्घकालिक दृष्टि से इसे और सफल करने के लिए छोटे पैमाने के क्षेत्र और कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाया जाए। 
    2. निजीकरण के क्षेत्र में मजदूर संघों की ओर से विरोध के कारण आर्थिक सुधार को कोर्इ विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुर्इ है। अत: उसने प्रतीकात्मक निजीकरण का मार्ग अपनाया है। यह कार्य अत्यंत स्वस्थ सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिवेश की प्रक्रिया द्वारा Reseller जा रहा है। इसके अतिरिक्त विनिवेश से जो आय होती है उसका उपयोग अब तक केन्द्रीय सरकार के घाटे को पूरा करने के लिए Reseller जाता है। ऐसा करना उचित नहीं है। 
    3. थोक कीमत सूचकांक में वृद्धि दर को तो आर्थिक सुधार नियंत्रित कर पाये है परन्तु वह उद्योगों में कार्य करने वाले श्रमिकों या कृषि मजदूरों के उपभोक्ता कीमत सूचकांक में होती हुर्इ वृद्धि को नहीं रोक पाये है। 1991-92 से 1996-97 के बीच की अवधि में उपभोक्ता कीमत सूचकांक में औसत वृद्धि 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष हुर्इ। इसमें आम जनता का कल्याण निहित है। 
    4. आर्थिक सुधार दीर्घकालिक आधार पर राजकोषीय घाटे में कमी नहीं कर पाये है। गैर-योजना गत व्ययों पर नियंत्रण रखने में यह असफल रहा है, लेकिन राजकोषीय घाटे में कमी को दिखाने के लिए इसने योजनागत व्ययों (plan expenditure) में कटौती कर दी है। पांचवे वेतन आयोग और अब Sixth वेतन आयोग की रिपोर्ट को कार्यान्वित करने के बाद गैर-योजनागत व्ययों (non-plan expenditure) का बहुत अधिक हो जाने की संभावना है परन्तु स्वेच्छा से आय प्रकट करने की योजना (voluntary disclosure of income scheme) द्वारा सरकार की आय बढ़ने की संभावना कम ही है। Second Wordों में कहा जा सकता है कि आर्थिक सुधारों ने सम्पन्न वर्ग के लोगों पर कर की अधिकतम दर का घटाकर 30: करके उन्हें काफी रियायत दी है लेकिन कर छिपाने वालों को वह अपनी आय प्रकट करने के लिए प्रेरित नहीं कर पार्इ है। 
    5. आधारभूत संCreationओं के निर्माण के लिए आर्थिक सुधार विदेशी निजी क्षेत्रों पर अधिक निर्भर रही है, लेकिन इस संबंध में यह असफल रहा। उदाहरणार्थ पिछले पांच वर्षों में विदेशी फर्मे इस देश की बिजली की पूर्ति में Single भी किलोवाट की वृद्धि नहीं कर पार्इ है। आठवीं योजना में बिजली के उत्पादन क्षमता में 30,538 MW वृद्धि करने का लक्ष्य था लेकिन वास्तव में 16,243 MW की ही वृद्धि हो पार्इ जो कि निर्धारित लक्ष्य से 46: कम था। 

    संक्षेप में कहा जा सकता है कि आर्थिक सुधार के आधार को अधिक व्यापक बनाने के लिए इसे पुन: दिशा देने की Need है जिससे इसमें कृषि और छोटे पैमाने के उद्योगों को भी शामिल Reseller जा सके। देश के निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र को बराबरी का दर्जा दिया जाना चाहिए, जिससे ये बिजली, दूरसंचार, सड़क आदि के क्षेत्रों में आधारभूत संCreation के निर्माण में योगदान कर सकें। इसी के महत्व को ध्यान में रखते हुए पूर्व प्रधान मंत्री श्री गुजराल ने कंफडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) के सम्मेलन को 16 अगस्त 1997 को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘‘11वीं सदी के पूंजीवाद के वे दिन समाप्त हो गए जब कोर्इ भी विदेशी इस देश में आकर आय पर हावी हो सकता था। विदेशियों का हम स्वागत तो करते हैं परन्तु उन्हें इस इस बात की अनुमति नहीं दी जाएगी कि वे इस देश की कंपनियों को Destroy कर दें या उन्हें अपने अधिकार में ले लें। उन्हें केवल उन्हीं क्षेत्रों में निवेश करने की अनुमति दी जाएगी, जिनमें हमें उनके सहयोग की Need है। भारत के उद्योगों को All प्रकार का संरक्षण प्राप्त होगा तथा अनुचित प्रतियोगिता से उनकी रक्षा की जाएगी।

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