असहयोग आन्दोलन के कारण, कार्यक्रम And प्रभाव

Indian Customerों को First विश्व Fight की समाप्ति के बाद अंग्रेजों द्वारा स्वराज्य प्रदाय करने का आश्वासन दिया गया था, किन्तु स्वराज्य की जगह दमन करने वाले कानून दिये गये तो उनके असन्तोष का ज्वालामुखी फूटने लगा । ऐसी स्थिति में गाँधीजी के विचारों में परिवर्तन होना स्वाभाविक था । Indian Customer जनता को असहयोग आन्दोलन के पक्ष में लाने और इसके सिद्धान्तों से अवगत कराने के लिए भाषणों तथा ‘यंग इण्डिया’ नामक पत्रिका में अपने लेखों द्वारा प्रचार करना प्रारंभ कर दिया ।

असहयोग आन्दोलन के कारण-

  1. Fightोत्तर भारत मे असन्तोष- First विश्व Fight के समय Indian Customer जनता ने ब्रिटिश सरकार को पूर्ण सहयोग दिया था । ब्रिटेन ने यह Fight स्वतन्त्रता और प्रजातन्त्र की रक्षा के नाम पर लड़ा था । ब्रिटिश विजय में Indian Customer सैनिकों का महत्वपूर्ण योगदान था । Indian Customerों को विश्वास था कि Fight की समाप्ति पर ब्रिटेन भारत को दिये गये वचनों का पालन करेगा, परन्तु भारत को स्वशासन के नाम पर ‘मॉण्ट फोर्ड’ सुधार दिये गये जिससे देश को सन्तोष नहीं हुआ।
  2. विदेशी घटनाओंं की प्रतिक्रिया- विश्व Fight के कारण यूरापे के तीन देशां-े जर्मनी, आस्ट्रिया और रूस के निरंकुश शासन की समाप्ति हो गर्इ । रूसी क्रान्ति के परिणामस्वReseller वहां साम्यवादी शासन व्यवस्था स्थापित हुर्इ । रूस की साम्यवादी सरकार ने एशिया के अनेक प्रदेशों को स्वतंत्र कर दिया । Indian Customer जनता की चेतना पर इन घटनाओं का प्रभाव पड़ा और वे राष्ट्रीय संघर्ष हेतु सक्रिय होने लगे ।
  3. ‘माण्ड-फोर्ड’ सुधारों से असन्तोष- 1919 र्इ. में ‘मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्र्ड’ सुधार योजना जनता की स्वराज्य की मांग को संतुष्ट करने की दिशा में सर्वथा निष्फल रहीं । Fight के समय सरकार ने भारत को उत्तरदायी शासन देने का वादा Reseller था, परन्तु इस समय योजना में उत्तरदायी शासन तो दूर, सिक्खों को भी मुसलमानों के समान पृथक निर्वाचन का अधिकार दे दिया गया । इससे जनता में ब्रिटिश शासन के प्रति असन्तोष फैला ।
  4. मूल्य -वृृद्धि- Fight के दौरान भारत सरकार को बहुत अधिक खर्च करना पड़ा । उस पर अत्यधिक कर्जभार हो गया । परिणामस्वReseller देश में मुद्रा-स्फीति हो गर्इ ।
  5. अकाल और प्लेग – 1917 र्इ. में अनावृिष्ट के कारण देश में अकाल And प्लेग फैल गया । हजारों व्यक्ति अकाल के ग्रास बन गये । सरकार की ओर से जनता का दु:ख दूर करने के लिए कोर्इ प्रयास नहीं Reseller गया, इससे जनता में असन्तोष बढ़ता ही गया ।
  6. रोलट Single्ट- देश में उठने वाले जन-असन्तोष से निपटने के लिए 18 मार्च, 1919 र्इको रोलटे Single्ट नामक काला कानून पास Reseller गया, जिसके According, ‘‘शासन को किसी भी व्यक्ति को संदिग्ध घोषित कर, बिना दोषी सिद्ध किये, जेल में बन्द करने का अधिकार दिया गया ।’’ इस प्रकार सरकार को पर्याप्त दमनकारी अधिकार मिल गये और Indian Customerों की स्वतन्त्रता निरर्थक And महत्वहीन हो गयी ।
  7. जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड- सरकार द्वारा किये जाने वाले दमन-चक्र के विरोध में 13 अप्रैल, 1919 र्इ. को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में Single सार्वजनिक सभा का आयोजन Reseller गया । इस शान्तिपूर्ण सभा पर अमानुषिक Reseller से गोलियों की वर्षा की गर्इ । लगभग Single हजार स्त्री, पुरूष और बच्चे मारे गये तथा दो हजार व्यक्ति घायल हुए, परन्तु इस आतंक के बावजूद भी राष्ट्रीय आन्दोलन का दमन नहीं हो सका ।
  8. खिलाफत आन्दोलन- First महाFight में टर्की अंगे्रजों के विरूद्ध लडा़ । महाFight के बाद विजेता राष्ट्रों ने टर्की में खलीफा का पद समाप्त कर कर्इ टुकड़ों में विभाजित कर दिया। Indian Customer मुसलमान टर्की के खलीफा को अपना धर्म गुरू मानते थे । अत: अंग्रेजों के इस कृत्य से उनमें बहतु रोष फैला । उस रोष को प्रकट करने के लिए मुहम्मद अली और शौकत अली नाम के दो भाइयों ने खिलाफत आन्दोलन का नेतृत्व Reseller । कांग्रेस ने इस आन्दोलन का समर्थन Reseller इससे देश में हिन्दू-मुस्लिम Singleता की भावना फैल गर्इ । वस्तुत: इस आन्दोलन के साथ मुस्लिम जनता पूर्ण Reseller से राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े ।

असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम

  1.  सरकारी उपाधियों व अवैतनिक पदों का त्याग कर दिया जाये तथा जिला व म्यूनिसिपल वार्डो के मनोनीत सदस्य अपने पदों से त्याग-पत्र दे दें । 
  2.  सरकारी दरबारों, स्वागत समारोहों व सरकारी अफसरों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रमों में भाग न लें ।
  3.  सरकारी तथा सरकार के सहायता पाने वाले स्कूलों व कॉलेजों का बहिष्कार Reseller जाये और राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की जाये ।
  4. सरकारी अदालतों का बहिष्कार तथा पंचायतों द्वारा मुकदमों का निपटारा Reseller जाये। 
  5.  नर्इ कौंसिलों के चुनावों का बहिष्कार Reseller जाये । 
  6.  विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार Reseller जाये तथा स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग और उसका प्रसार Reseller जाये । 
  7. फौजी, क्लर्क व मजदूरी करने वाले लोग विदेशों में नौकरी के लिए भर्ती न हों ।

असहयोग आन्दोलन का प्रसार

सत्य और अहिंसा पर आधारित इस आन्दोलन में देखते ही देखते लाखों व्यक्ति सम्मिलित हो गये । First गाँधीजी ने पदवी ‘कैसै र-ए-हिन्द’, महाकवि रविन्द्रनाथ टैगारे ने भी अपनी ‘नाइट’ की पदवी सरकार का े वापस कर दी । इस आन्दोलन में जनता ने कानूनों को भंग Reseller। शान्तिपूर्ण प्रदर्शन किये, न्यायालयों का बहिष्कार Reseller, हड़तालें कीं, शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार Reseller गया, शराब और विदेशी वस्तुओं की बिक्री-स्थलों पर धरने दिये गये, किसानों ने सरकार को कर नहीं दिया तथा व्यापार ठप्प कर दिये गये । विधान-मण्डलों के चुनावों में लगभग दो तिहार्इ मतदाताओं ने मतदान नहीं Reseller । जामिया-मिलिया और काशी-विद्यापीठ जैसी शिक्षा-संस्थाएं स्थापित की गर्इ । अनेक Indian Customerों ने सरकारी नौकरियां छोड़ दीं । विदेशी वस्त्रों की होली जलार्इ गर्इ । गाँधीजी के आव्हान पर जनता ने लाठी प्रहार और गोलियों की बौछार बर्दाश्त की । 17 नवम्बर 1921 र्इ. को ब्रिटेन के राजकुमार प्रिन्स ऑफ वेल्स के भारत आने पर उसका देशभर में हड़तालों और प्रदर्शनों से स्वागत Reseller गया । अनेक स्थानों पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलार्इ । सरकार का दमन चक्र चलता रहा । वर्ष के अंत तक गाँधीजी को छोड़कर देश के All प्रमुख नेता बन्दी बना लिये गये । लगभग 30,000 व्यक्ति जेलों में बन्द थे ।

जिस समय असहयोग आन्दोलन पूरे वेग से चला रहा था और सरकारी दमन चक्र भी जोरों से चल रहा था, उसी समय दिसम्बर, 1921 र्इ. में कांग्रेस का वार्षिक सम्मेलन अहमदाबाद में हुआ। हकीम अजमल खाँ के नेतृत्व में कांग्रेस ने अपना आन्दोलन उस समय तक चालू रखने का निश्चय Reseller, जब तक पंजाब और खिलाफत की शिकायतें दूर न हों और स्वराज्य की प्राप्ति न हो ।

चौरी-चौरा काण्ड और आन्दोलन का स्थगन

ऐसे समय में जबकि आन्दोलन अपनी पूर्ण गति से चल रहा था, कि अचानक सारा दृश्य बदल गया । 5 फरवरी 1922 र्इ. को गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा गांव में कांग्रेस का जुलूस निकल रहा था । लुजूस में सम्मिलित कुछ लोगों के साथ पुलिस ने दुव्र्यवहार Reseller । पर जनता उत्तेजित हो गयी और थाने में आग लगा दी जिसमें थानेदार सहित 29 पुलिस के सिपाही जल कर मर गये । गाँधीजी अहिंSeven्मक आन्दोलन में विश्वास करते थे । अत: उन्होंने तत्काल आन्दोलन को स्थगित कर दिया । इससे गाँधीजी की बड़ी आलोचना हइुर् । मोतीलाल नेहरू के According, किसी Single स्थान के पाप के कारण सारे देश को दण्ड देना उचित नहीं था । ब्रिटिश सरकार ने परिस्थिति का लाभ उठाकर गाँधीजी को गिरफ्तार कर छ’ वर्ष के कारावास का दण्ड दिया ।

असहयोग आन्दोलन का प्रभाव

आन्दोलन ने देश की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव दिखाये । इससे जन-साधारण में राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ ।

  1. कूपलैण्ड के According, ‘‘गाँधीजी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को Single क्रान्तिकारी आन्दोलन और Single जन आन्दोलन के Reseller में परिणित कर दिया ।’’ 
  2.  यह अपने ढंग का अनूठा प्रयोग था । संसार के History में Single शक्तिशाली देश के विरूद्ध जनता द्वारा पहली बार व्यापक स्तर पर अहिंSeven्मक आन्दोलन चलाया गया । 
  3. ब्रिटिश साम्राज्य का गर्व चूर-चूर हो गया । जनशक्ति के आगे सरकार की सम्पूर्ण शक्ति तुच्छ हो गयी । यह स्पष्ट हो गया कि साम्राज्य से लड़कर ही स्वराज्य प्राप्त Reseller जा सकता है । इसने Indian Customerों में आत्मसम्मान तथा निर्भीकता की भावना उत्पन्न की । 
  4. हिन्दू-मुस्लिम Singleता स्थापित हुर्इ । देश-भर में Single सी विचारधारा व राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ व विभिन्न सम्प्रदयों और प्रान्तों के लोग कांग्रेस के झण्डे के नीचे आ गये । 
  5. लोगों ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रति लगाव की प्रवृत्ति जागृत हुर्इ । फलत: कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन मिला । 
  6. ब्रिटिश मानस पर भी इसका प्रभाव पड़ा । साम्राज्यवादियों को लगा कि उनकी शक्ति अजेय नहीं है । अंग्रेजों को अपनी सरकार के औचित्य पर सन्देह होने लगा । अंग्रेज नवयुवक भारत में सेवा के लिये आने से कतराने लगे । 
  7. राष्ट्रवाद के प्रसार के साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा, स्वदेशी वस्त्र, स्वदेशी संस्थाओं And हिन्दी की लोकप्रियता में वृद्धि हुर्इ ।

असहयोग आंदोलन की समाप्ति 

अहिंसा के पुजारी गांधीजी भला ऐसी हिंसा कैसे बर्दाश्त करते, उन्होंने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया। गांधीजी के इस फैसले से देश स्तब्ध रह गया। जवाहरलाल नेहरू ने कहा – ‘ऐसे समय में जब हम All मोर्चों पर आगे बढ़ रहे थे, आन्दोलन स्थगित नहीं करना चाहिए था।’ चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरू And सुभाषचन्द्र बोस ने भी गांधीजी के इस फैसले की आलोचना की। गांधीजी की अलोकप्रियता का लाभ उठाकर ब्रिटिश सरकार ने 10 मार्च 1922 को गांधीजी को गिरफ्तार कर 6 वर्ष के लिए जेल भेज दिया। गांधीजी की बीमारी के कारण उन्हें समयपूर्व 5 फरवरी 1924 को रिहा कर दिया गया।

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