अभिप्रेरणा का Means, प्रकार, स्त्रोत And सिद्धान्त

प्राणी के व्यवहार को परिचालित करने वाली जन्मजात तथा अर्जित वृतिया को प्रेरक कहते है। यह वह अन्तवृति है जो प्राणी मे क्रिया उत्पन्न करती है और उस क्रिया को तब तक जारी रखती है जब तक उद्देश्य की पूर्ति नही जाती है। ‘Motivation’ Word लेटिन भाषा के ‘Movers’ का Resellerान्तर है जिसका Means है आगे बढ़ना ‘to move’ Meansात प्ररणा का Means है किसी भी व्यक्ति मे गति उत्पन्न करना। ‘प्रेरणा’ Word के शाब्दिक And मनोवैज्ञानिक Meansो मे अन्तर होता है। शाब्दिक Means मे किसी भी उत्तेजना को प्रेरणा कहते है। उत्तेजना के अभाव में किसी प्रकार की प्रतिक्रिया सम्भव नही होती है। यह उत्तेजना आन्तरिक And ब्राहृय दोनो प्रकार की हो सकती है। मनोवैज्ञानिक Means मे प्ररणा का Means केवल आन्तरिक उत्तेजना से होता है। Meansात प्रेरणा वह आन्तरिक शक्ति है जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।

  1. वर्नाड के According “प्रेरणा से तात्पर्य उन घटनाओ से है जो किसी विशेष उद्देश्य की ओर क्रिया को उत्तेजित करती है जबकि इससे First उस लक्ष्य की ओर कोई क्रिया या तो नही थी या बहुत कम क्रिया सम्भव थी।”
  2. लावेल के According “अभिप्रेरणा Single ऐसी मनोशारीरिक प्िरक्रया है जो किसी Need की संतुष्टि करेगी” जैसे भूख लगने पर खाना खाना।

प्रेरणा के स्त्रोत

प्रेरणा के प्रमुख 4 स्त्रोत होते है।

  1. Needए – प्रत्येक पा्रणी की कछु मौलिक Needए  हाते ी है। जिसके बिना उसका अस्तित्व सम्भव नही है जैसे भोजन, पानी, हवा इत्यादि। इन Needओ की तृप्ति पर ही व्यक्ति का जीवन निर्भर करता है।
  2. चालक – पा्रणी की Need से चालक का जन्म हाते ा है। चालक शक्ति का वह स्त्रोत है जो प्राणी को क्रियाशील करता है। जैसे भोजन की Need से भूख – चालक की उत्पत्ति होती है। भूख चालक उसे भोजन की खोज करने के लिए प्रेरित करता है।
  3. उदीपन – पयार्वरण की वे वस्तृएं जिसके द्वारा पा्रणी के चालको की तृप्ति होती है। उद्दीपन कहलाती है। भूख Single चालक है, और भूख चालक को भोजन संतुष्ट करता है। अत: भूख चालक के लिए भोजन उदद्ीपन है। Need, चालक व उद्दीपन तीनो मे सम्बन्ध होता है। Need, चालक को जन्म देती है, चालक बढे़ हुये तनाव की दशा है जो कार्य और प्रारम्भिक व्यवहार की ओर अग्रसर करता है। उद्दीपन बाहरी वातावरण की कोई भी वस्तु होती है। जो Need की सन्तुष्टि करती है और इस प्रकार क्रिया के द्वारा चालक को कम करती है।
  4. प्रेरक – प्रेरक Word व्यापक है। प्रेरको को Need, इच्छा, तनाव, स्वभाविक स्थितियाँ, निर्धारित प्रवृतियाँ, रूचि, स्थायी उद्दीपक आदि से जाना जाता है। यह किसी विशेष उद्देश्य की ओर व्यक्ति को ले जाते है।

प्रेरको के प्रकार

1-जन्मजात प्रेरक 

  1.  (भूख, प्यास, भय आदि) 

2-अर्जित प्रेरक

  1. सामाजिक प्रेरक (समूह में रहना, संचय, युयुत्सा) 
  2. व्यक्तिगत प्रेरक (अभिवृत्ति,विश्वास,रूचि, महत्वकांक्षा का स्तर, लक्ष्य, आदत)

प्रेरणा के सिद्धान्त

व्यक्ति के व्यवहार को कौन – कौन सी चीजे प्रभावित करती है इसके लिए मनोवैज्ञानिको ने अलग – अलग विचार प्रस्तुत किये है।

1. मूल प्रवृति सिद्धान्त-

1890 मे विलियम जेम्स के According मनुष्य अपने व्यवहार का निर्देशन And नियंत्रण मूल प्रवृति की सहायता से करता है। सिग्मंड फ्रायड के According मूल प्रवृतियां प्रेरक शक्ति के Reseller मे काम करते है। मूल प्रवृति का प्रमुख स्त्रोत शारीरिक Needए होती है। दो तरह की मूल प्रवृति व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है – जीवन मूल प्रवृति And मृत्यु मूल प्रवृति। जवीन मूल प्रवृति का तात्पर्य उससे है जिससे व्यक्ति अपने जीवन की महत्वपूर्ण क्रिया करने के लिए प्रेरित होता है। मृत्यु मूल प्रवृति व्यक्ति को All तरह के विनाशात्मक व्यवहार करने की प्रेरणा देता है। यह दोनो Single साथ मिलकर व्यक्ति के व्यवहार को प्ररित करते है।

2. प्रणोद सिद्धान्त-

इसके According अभिप्रेरणा में प्रणोद की स्थिति पायी जाती है। यह अवस्था शारीरिक Need या बाहरी उद्दीपक से उत्पन्न होती है। हसमे वयक्ति क्रियाशील हो जाता है और उद्देश्यपूर्ण व्यवहार करने लगता है। फ्रायड का अभिप्रेरक सिद्धान्त (मनोविश्लेषण सिद्धान्त) प्रणोद सिद्धान्त पर आधारित है। फ्रायड के According यौन तथा आक्रमणशीलता दो प्रमुख प्रेरक है जिसकी बुनियाद बचपन मे ही पड़ जाती है।

3. प्रोत्साहन सिद्धान्त-

इस सिद्धान्त के According अभिप्ररित व्यवहार की उत्पत्ति लक्ष्य या प्रोत्साहन के कुछ खास गुणो के कारण होती है। इस सिद्धान्त को प्रत्याशा सिद्धान्त भी कहा जाता है। जैसे भूख न होने पर भी स्वादिष्ट भोजन मिलने पर व्यक्ति उसकी ओर खिच जाता है।

4. विरोधी – प्रक्रिया सिद्धान्त-

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन सोलोमैन तथा कौरविट के द्वारा 1974 मे Reseller गया। इसके According सुख देने वाले लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हम लोग प्रेरित रहते है। तथा जिससे हमे अप्रसन्नता होती है उससे दूर रहते है। प्रेरणा के इस सिद्धान्त को संवेग का सिद्धान्त भी कहते है।

5. Need – पदानुक्रम सिद्धान्त-

यह सिद्धान्त Humanतावादी मासलो द्वारा दिया है। इनके According प्रत्येक व्यक्ति मे जन्म से ही आत्माभि व्यक्ति की क्षमता होती है जो व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती है। मासलो ने Needओ या Human अभिप्रेरको को Single क्रम मे रखा। Humanीय Needए मुख्य Reseller से पाँच होती है।

  1. शारीरिक Needए – यह सबसे नीचे के क्रम में आती है इसमे भूख प्यास, काम आदि शारीरिक Needएं आती हैं। सबसे First व्यक्ति इन Needओं की पूर्ति करता है। 
  2. Safty की Need- यह शारीरिक Needओ के बाद आती है। इसमे शारीरिक तथा संवेगिक दुर्घटनाओ से बचाने की Need सम्मिलित है इसमे व्यक्ति डर तथा अSafty से बचने की कोशिश करता है। 
  3. सदस्य होने तथा स्नेह पाने व देने की Need – इस तरह की Need के कारण व्यक्ति परिवार, स्कूल, धर्म, प्रजाति, धार्मिक पार्टी के साथ तादाम्य स्थापित करता है। व्यक्ति अपने समूह के अन्य सदस्यो के साथ स्नेह दिखाता है तथा उनसे स्नेह पाने की कोशिश करता है। 
  4. सम्मान की Need – First तीन Needओ की सन्तुष्टि होने पर सम्मान की Need की उत्पत्ति होती है। इसमे आन्तरिक सम्मान कारक जैसे आत्मसम्मान, उपलब्धि, स्वायत्तता तथा ब्राहृय सम्मान कारक जैसे पद, पहचान आदि सम्मलित होते है। 
  5. आत्म सिद्धि की Need – आत्मसिद्धि सबसे उपरी स्तर की Need है। यह पर All लोग नही पहुँच पाते है। आत्मसिंिद्ध मे अपने अन्दर छिपी क्षमताओ को पहचानकर उसे ठीक तरह से विकसित करने की Need है।

6. मर्रे का सिद्धान्त-

मरे ने अपने अभिपे्ररणा के सिद्धान्त को Need के Reseller मे बताया है। असन्तुष्ट Needए व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है और तब तक बनी रहती है जब तक Needओ की सन्तुष्टि नही होती है। प्रत्येक Need के साथ Single विशेष प्रकार के संवेग जुड़े रहते है। 1930 मे बहुत सारे अघ्ययनो के बाद मर्रे ने Needओ के दो प्रकार बताये।

  1. दैहिक Needएँ – इस प्रकार की Needए व्यक्ति के जीवन जीने के लिए आवश्यक होती है जैसे भोजन, पानी, हवा इत्यादि। मर्रे ने 12 दैहिक Needए बतायी है।
  2. मनोवैज्ञानिक Needएँ – यह Needए शारीरिक नही होती है। मर्रे ने 28 Needए बतायी है यह प्राथमिक Needओं से उत्पन्न होती है जैसे- उपलब्धि की Need, सम्बन्ध की Need आदि। मर्रे के According कभी – कभी व्यक्ति की दैहिक Needओं की तुलना मे मनोवैज्ञानिक Needए हावी हो जाती है।

प्रेरणा की विधियां

1. पुरस्कार –

यह प्रेरणा देने की अत्यन्त प्रमुख विधि है। क्योकि इसके द्वारा व्यक्ति को Single स्तर प्रात्त होता है। सन्तोष मिलता है, उत्साह प्राप्त होता है, कार्य मे रूचि आती है, व्यक्ति कार्य करने के लिए अधिक लीन हो जाता है। पुरस्कार मुख्य Reseller से तीन प्रकार के होते है।

  1. मौखिक पुरस्कार – प्रशंसा करना।
  2. चिन्हित पुरस्कार – मेडेल, गोल्ड स्टार, मानक उपधि, फिल्मफेयर अवार्ड इत्यादि।
  3. भौतिक पुरस्कार – टाफी देना, धन देना इत्यादि।

रेली And लिविस ने पुरस्कार को प्रभाव पूर्ण बनाने के लिए निम्न लिखित सुझाव दिये है।

  1. पुरस्कार स्वंय का प्राप्त Reseller हुआ होना चाहिए।
  2. छोटे कार्यो के लिए पुरस्कार नही देना चाहिए। 
  3. पुरस्कार सदैव विशिष्ट कार्य के लिए दिए जाना चाहिए, सामान्य कार्य के लिए नही।
  4. छात्रों को यह पता होना चाहिए कि उसका निष्पादन Second से कितना श्रेष्ठ है। प्रत्येक पुरस्कार के लिए नियम निर्धारित होने चाहिए।
  5. पुरस्कार को तुरन्त दिया जाना चाहिए।

2. दण्ड –

दण्ड के द्वारा व्यक्ति मे असंतोष तथा अरूचि उत्पन्न होती है। दण्ड मुख्य Reseller से दो प्रकार के होते है।

  1. मौखिक दण्ड – डाँटना, आलोचना करना इत्यादि।
  2. शारीरिक दण्ड – सजा देना, मारना, मुर्गा बनाना इत्यादि।

जोन्स, ब्लेयर तथा सिम्पसन ने 1965 मे यह पाया कि-

  1. दण्ड के द्वारा ईष्या तथा विद्वेष की भावना बढ़ती है।। 
  2. इससे छात्रों मे संवेगात्मकता इस हद तक बढ़ती है कि इससे सीखना लगभग असम्भव हो जाता है। 
  3. यह विद्यार्थियों मे तनाव, चिन्ता And थकान उत्पन्न करती है। 
  4. इससे कक्षा मारेल निम्न हो जाता है।

    3. श्रेणी अथवा अंक –

    श्रेणी अथवा अंक भी अच्छे प्रेरक के Reseller मे कार्य करते है। यह Single प्रकार के चिन्हित पुरस्कार है। सारे विद्यार्थियो को Single आधार पर श्रेणी नही देनी चाहिए क्योकि कुछ विद्याथ्र्ाी आसानी से उस श्रेणी को प्राप्त कर लेते है और उनमे श्रेष्ठता की भावना विकसित हो जाती है जबकि अन्य विद्यार्थियों को उसी श्रेणी लाने के लिए कठोर परिश्रम करना है।

4. सफलता –

प्रेरणा देने का प्रमुख आधार है बालक को अपने कार्य मे सफल बनाना। सफलता ही व्यक्ति को किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है। अग्रेजी मे Single कहावत है “NothingSucceed Like Success” सफलता से व्यक्ति मे आत्मविश्वास बढ़ता है यह आत्मविश्वास व्यक्ति मे पाने योग्य लक्ष्य को निर्धारित करता है।

5. प्रतिद्वन्दिता And सहयोग-

प्रतिद्वन्दिता कभी – कभी सकारात्मक प्रेरणा के Reseller मे कार्य करती है। यह तीन प्रकार से कार्यगत होती है।

  1. छात्रो मे अपने सहयोगियो के साथ अन्त:व्यक्तिगत प्रतिद्विन्द्वता होनी चाहिए। परन्तु मनोवैज्ञानिको And शिक्षा शास्त्रियो से इसको बहुत अधिक महत्व नही दिया है।
  2. समूह प्रतिद्वन्दिता आपस मे सहयोग की भावना का विकास करती है। 
  3. अपने स्वयं से प्रतिद्वन्दिता – इस प्रकार की प्रतिद्विन्ता सबसे प्रभावशाली होती है तथा मानसिक स्वास्थकर्त्ताओ के द्वारा इसको प्रभावशाली बताया गया है। शिक्षा के दार्शनिक आधार के According शैक्षिक कार्यक्रम मे Needओ को सन्तुष्ट करने का काम करता है। तथा व्यक्तियो मे संवेगात्मक संतोष पैदा करती है।

6. परिणाम का ज्ञान-

प्रेरणा प्रदान करने की यह सबसे ज्यादा प्रभावपूर्ण विधि है। छात्रो को इस बात का ज्ञान करवाना अत्यन्त आवश्यक है कि वह जिस समूह का सदस्य है उस समूह के अन्य लोग कैसा कर रहे है। छात्र को अपनी स्वयं की उन्नति की जानकारी देनी चाहिए जिससे वह अधिक परिश्रम से कार्य कर सके।

7. नवीनता-

नवीनता ज्ञान प्राप्त करने मे प्रेरणा का कार्य करती है। शिक्षक को नवीनता लाने के लिए शिक्षण की विभिन्न विधियों को प्रयोग मे लाना चाहिए।

8. महत्वाकांक्षा का स्तर-

महत्वाकांक्षा का स्तर यह निर्धारित करता है कि किसी भी व्यक्ति ने अपने लिये क्या, कितना कठिन लक्ष्य निर्धारित Reseller है। कुछ विद्याथ्र्ाी अपने लिए अपनी योग्यतानुसार लक्ष्य निर्धारित करते है जबकि अन्य विद्याथ्र्ाी या तो बहुत उच्च या निम्न लक्ष्य निर्धारित करते है। शिक्षक का यह कर्त्तव्य है कि वह छात्रो के महत्वाकांक्षा के स्तर के आधार पर लक्ष्य निर्धारित करने मे उनकी सहायता करें।

9. रूचि –

प्रेरणा प्रदान करने के लिए First शिक्षक को छात्रो की रूचियो को जानना चाहिए। बालक की पाठ मे रूचि उत्पन्न करनी चाहिए। अत: अध्यापक को पढ़ाए जाने वाले पाठ को बालक की रूचि से सम्बन्धित करना चाहिए।

10. लक्ष्य का प्रभाव-

टोलमेन के According किसी भी व्यक्ति का व्यवहार लक्ष्य केन्द्रित या उद्देश्यपूर्ण होता है शिक्षक को ऐसे लक्ष्यो का निर्धारण करे जो छात्रो की NeedनुReseller हो।

11. आत्मीयता-

उच्च स्तर के विद्यार्थियो के लिए यह विधि प्रेरणा प्रदान करने के लिए अत्यन्त सहायक होती है। इसके लिए छात्रो से प्रश्न पूछना, विषय से सम्बन्धित कहानी सुनाना, शारीरिक क्रियाओ मे छात्रो की भागीदारी, प्रशंसा, छात्रो को नाम से सम्बोधित करना आदि विधियों को अपनाया जा सकता है।

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