अतिसार के कारण, लक्षण And वैकल्पिक चिकित्सा

अतिसार Single ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति को बार-बार मल निष्कासन हेतु जाना आवश्यक हो जाता है। मल बिल्कुल पतला होकर निकलता है। अतिसार रोग रोगी को असहाय सा बना देता है। रोगी के शरीर में पानी, खनिज लवण और अन्य पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। सामान्य Reseller से All व्यक्ति इस बीमारी से ग्रस्त हो ही जाते है, चाहे वो बच्चे हो, वयस्क हो या बूढ़ें हो, All उम्र या आयु वर्ग के व्यक्तियों को यह रोग हो सकता है, परन्तु अधिकतर बच्चो को यह रोग होता है। अतिसार में ठोस भोजन तुरन्त बन कर देना चाहिए और तरल पेय पदार्थो का सेवन करना चाहिए।

कारण-

  1. मेल-बेमेल आहार करने से अतिसार (दस्त) हो जाते है। 
  2. कन्फेनशरी And डिब्बाबंद वस्तुओ का अधिक मात्रा में सेवन करने से यह रोग होता है। 
  3. Single बार खा लेने के बाद फिर से भोजन ग्रहण करने से यह रोग हो जाता है। 
  4. अतिसार (दस्त) होने का Single कारण मल का वेग रोकना भी है। 
  5. आयुर्वेद कहता है कि धातुओं और त्रिदोनो का कुपित हेना अतिसार का कारण हैं। 
  6. यदि कोर्इ व्यक्ति समयाभाव या अन्य किसी कारणवश जल्दी-जल्दी में भोजन करना अतिसार पैदा करता है। 
  7. रूखी, अत्यधिक चिकनी और गर्म खाद्य पदार्थो के सेवन से भी यह रोग हो जाता है। 
  8. कुछ व्यक्तियो में प्रात: काल उठते ही भोजन कर लेने ही आदत के कारण वे अक्सर अतिसार से ग्रसित रहते है। 
  9. बिना भूख के खाते रहना भी Single वजह है, अतिसार रोग की। 
  10. भोजन का समय निश्चित ना होना। 
  11. शरीर में विषाक्त पदार्थो का बढ़ जाना। 
  12. हार्इ पावर वाले एंटीबॉयोटिक और अन्य दवाइयों से भी अतिसार हो जाता है। 
  13. यदि यकृत अपने कार्यो को सुचारू Reseller से ना कर पा रहा हो तो भी यह रोग हो जाता है। 
  14. कुछ व्यक्तियो में एपेंडिसाइटिस के कारण भी यह रोग हो जाता है। 
  15. संक्रमण भी अतिसार का Single प्रमुख कारण है। संक्रमित भोजन करना तथा मुहँ, गले, दाँत में कोर्इ संक्रमण हो जाए तो यह संक्रमण आँतो तक पहुँचकर अतिसार उत्पन्न कर देता है। 
  16. पेट में कीड़े होने से भी कुछ लोगो को अतिसार हो जाता है। 
  17. मांस-मछली और नशीले पदार्थो का अत्यधिक And अनियमित सेवन भी अतिसार का Single कारण है। br /> 

लक्षण – 

  1. अचानक होने वाला रोग है। 
  2. पेट दर्द, ज्वर और दस्त, उल्टी तथा भूख की कमी हो जाना इसके लक्षण है। 
  3. बार बार मल त्याग की इच्छा होती है।  

वैकल्पिक चिकित्सा- 

अतिसार Single ऐसा रोग है जिसके उपचार हेतु कभी भी दवाइयों का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस रोग के उपचार हेतु वैकल्पिक चिकित्सा सर्वोतम विधा है।

1. यौगिक चिकित्सा – 

यौगिक अभ्यास में शरीर को विश्रान्ति देने का मनोबल बढा़ने वाले अभ्यासों को करना चाहिए।

  1. षट्कर्म – सामान्य स्थिति में षट्कर्मो के अभ्यास की आवष्यकता नही है. क्योंकि शरीर की दस्त द्वारा हो ही रही होती है। यदि रोग जीर्ण स्थिति में पहुॅच जाये तो नेति, कुंजल और लघु शंखप्रक्षालन कर शरीर शुद्धि की प्रReseller को बढ़ाना चाहिए। 
  2. आसन – पवनमुक्तासन, व वजा्रसन का अभ्यास करना चाहिए “वास प्रश्वास की सजगता के साथ आसनों में शिथिलीकरण वाले आसन करने चाहिए। जैसे- मत्स्यक्रीडासन, शशांकासन, शवासन (उदर श्वसन के साथ) करना चाहिए, 
  3. प्राणायाम – प्राणायाम में उदर And अनुलोम विलोम का अभ्यास अति उत्तम है। भा्रमरी व नाड़ीशोधन श्वसन का अभ्यास बिना कुम्भ्क के करना चाहिए, व शीतली प्राणायाम 
  4. मुद्रा And बन्ध- अतिसार के रोग में रोगी अत्यधिक कमजोर हो जाता है। अत: रोगी प्राण मुद्रा का कर सकता हैै। 
  5. ध्यान- रोगी को पूरा ध्यान आती हुर्इ श्वास और जाती हुर्इ “वास पर केन्द्रित करना चाहिए। अतिसार के रोगी हेतु योगनिद्रा का अभ्यास विशेष फलदायी है। रोगी स्वयं को शान्त एंव ऊर्जावान बनाये रखने के लिए जाप और ऊँ का उच्चारण कर सकता है। 
  6. स्वाध्याय- विधेयात्मक चिंतन वाली पुस्तको का अध्ययन योग निद्रा का अभ्यास कराया जा सकता है।

2. प्राकृतिक चिकित्सा- 

  1. दस्त को प्राकृतिक चिकित्सा में तीव्र रोग कहा गया है, क्योंकि यह रोग तेजी से आता है और शरीर के विजातीय द्रव्यों को बाहर फेंक देता है। उचित और सम्यक उपचार के बाद उतनी ही तेजी से चला जाता है। 
  2. दस्तो को तुरन्त रोकने की कोशिश कदापि ना करे। प्रकृति को हमारे भीतर विद्यमान जीवनी शक्ति को अपना शोधन कार्य करने दे। उसमें व्यवधान उत्पन्न ना करें। 
  3. निम्न उपचार क्रम अपनाकर प्रकृति का सहयोग करे। 
  4. पेट की गर्मी को दूर करने के लिए मिट्टी की पट्टी या पानी की ठण्डी पट्टी का पेट पर प्रयोग करे। 
  5. यदि रोग अपनी उग्र अवस्था में हो और हाथ पैर ठण्डे हो गये हो तो 2 मिनट तक पेट का गर्म और 1 मिनट तक पेट का ठण्डा सेंक ले। यह क्रिया 5 बार दोहराये। यह अतिसारजन्य पेट दर्द को भी दूर करता है। 
  6. तत्बाद पेट तथा पैर पर सूती ऊनी कपड़े से लपेट दे। 
  7. आँतो के सक्रंमण को दूर करने के लिए और आँतो की सामथ्र्य को बढ़ाने के लिए नीम के ठण्डे पानी का एनिमा देना चाहिए। यदि रोगी को सर्दी लग रही है, तो गुनगुने पानी का एनिमा देना चाहिए। 
  8. उदर रोग नाशक कटि स्नान (ठण्डा) 15 मिनट के लिए दे। ठण्डा कटि स्नान के दौरान यदि रोगी के पैर ठण्डे हो तो गर्म पानी में रोगी के पैरो में रखे।
  9.  वमन हो रहा हो तो नींबू पानी और मट्ठे के सिवाय रोगी को कुछ ना दे। नींबू पानी और मट्ठे में ही उपवास करवाये। 
  10. वमन अधिक हो रहा हो तो पेट पर गीला कपड़ा रखकर उसके ऊपर से बर्फ रख दे। 
  11. पैरो को गरम रखने के लिए पैरो में सूती ऊनी लपेट करे या हल्के हाथों से पैरो के तलवो की मसाज करें। 
  12.  बवासीर में रोग की स्थिति के आधार पर आसमानी Ultra site तप्त जल का Needनुसार उपयोग करे। 

3. चुम्बक चिकित्सा 

  1.  शक्तिशाली चुम्बको का प्रयोग नाभि पर Reseller जाना चाहिए। 
  2. चुम्बको का प्रयोग प्रात: काल दोनो तलुओ मे करना चाहिए। 
  3. चुम्बको का दक्षिणी ध्रुंव नाभि पर रखना चाहिए। 
  4. चुम्बको का प्रयोग प्रात: साय 15 से 30 मिनट तक करना चाहिए। 
  5. दक्षिणी ध्रुव द्वारा प्रभावित चुम्बकीय जल दिन में तीन बार पीना चाहिए। 
  6. कनपटी के दोनो ओर चुम्बको का प्रयोग करना चाहिए जिससे मानसिक क्षीणता तथा “ाारिरिक कमजोरी में लाभ मिलेगा 
  7. अच्छी तरह उबालकर ठण्डा Reseller हुआ जल चाहिए। 
  8. ग्लूकोज, चीनी व नमक का घोल देना चाहिए जो कि निर्जलीकरण के लिए उपयुक्त है।

4. जड़ी बूटी चिकित्सा- 

  1. 12 ग्राम आक की जड़ की छाल तथा 12 ग्राम कालीमिर्च को बारीक पीस ले। छोटी-छोटी चने के दाने बराबर गोलिया बना ले। दिन में 3 बार इन गोलियों का अर्क सौंफ के साथ सेवन करे। 
  2. समान मात्रा में आम की गुठली की गिरी का चूर्ण, जामुन की गुठली का चूर्ण और भुनी हुर्इ हरड़ को मिलाये। दिन में 2-3 बार 3-5 ग्राम की मात्रा में सेवन करे। 
  3. इमली के बीज भाड़ में भूनकर उसमें गरम पानी डाले कुछ घण्टो के बाद बकला निकाल कर गीला-गीला ही कूटकर छलनी में छानकर सुखा ले। इसमें शक्कर के साथ 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 4 बार खाये। 
  4. 4 भाग कुटज छाल और Single भाग छोटी इलायची को पीसकर कूट ले और इसकी 1 ग्राम मात्रा सुबह शाम जल या मट्ठे के साथ ग्रहण करे। 
  5. हल्दी को बारीक पीसकर छान ले और आग पर भून लें और हल्दी के बराबर काला नमक मिलाये। इसके प्रयोग से अतिसार के दस्त रूक जाते है। 
  6. अमरूद की पत्तियों को उबालकर पीना चाहिए। 
  7. 70 ग्राम दही में 4 ग्राम खसखस को पीसकर मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करे। 
  8. नीम की पत्तियों को पानी में मिलाकर पीयें। 
  9. बेलगिरी, धनिया, मिश्री बराबर मात्रा में पीसकर गोलियाँ बना ले और दिन में 3 बार चूसे। 
  10. बेल का मुरब्बा सुबह, “ााम 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए। 
  11. प्रात:काल र्इसबगोल 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए। 

 5. प्राण चिकित्सा-

  1. अतिसार से ग्रस्त रोगी के सौर जालिका चक,्र नाभि चक्र, पेट और मूलाधार चक्र प्रभावित होते है। अत: इन चक्रो में विशेष ध्यान देने की Need होती है। 
  2. First् सौर जालिका चक्र, नाभि चक्र, और पेट की जाँच करनी चाहिए।
  3.  तत्बाद अग्र सौर जालिका चक्र की स्थानीय झाड़- बुहार के बाद उसे ऊर्जित करें। 
  4. प्रक्षेपित प्राण ऊर्जा की स्थिर होने की कल्पना करें। 
  5. नाभि चक्र की स्थानीय सफार्इ करे, पेट के ऊपरी And निचले भाग की भी स्थानीय झाड़- बुहार करें। नाभि चक्र की स्थानीय सफार्इ के बाद उसे ऊर्जित करें।  
  6. प्रक्षेपित प्राण ऊर्जा की स्थिर होने की कल्पना करें। 
  7. यही प्रReseller मूलाधार चक्र के लिए करें। First् मूलाधार चक्र की स्थानीय सफार्इ करे, स्थानीय झाड़- बुहार के बाद उसे ऊर्जित करें। 
  8. प्रक्षेपित प्राण ऊर्जा की स्थिर होने की कल्पना करें। 
  9. यदि उपरोक्त उपचार के बाद भी रोगी दर्द की शिकायत करे और उसे पतले दस्त हो रहे हो तो यह समझना चाहिए कि झाड़- बुहार की अधिक Need है या झाड़- बुहार ढ़ग से नहीं Reseller गया है।
  10. अत: अग्र सौर जालिका चक,्र नाभि चक्र, पेट और मूलाधार आदि चक्रो में विशेष ध्यान देते हुए पुन: इन चक्रो की स्थानीय झाड़- बुहार ढ़ग से करनी चाहिए। यदि उपरोक्त उपचार के बाद भी रोगी के रोग का प्रकोप कम ना हो, तो रोगी को अधिक उन्नत प्राणशक्ति उपचारक से मिलना चाहिए। 
  11. यदि उपरोक्त उपचार के बाद भी रोगी के रोग का प्रकोप कम ना हो, तो रोगी को अधिक उन्नत प्राणशक्ति उपचारक से मिलना चाहिए। 

6. आहार चिकित्सा- 

  1. अतिसार में जल And खनिज लवणों की अत्यधिक कमी हो जाती है। अत: कुछ समयान्तराल में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में रोगी को ओ. आर. एस. का घोल बनाकर पिलाना चाहिए। 
  2. अतिसार में सुपाच्य आहार ही लेना चाहिए, पूर्ण आहार ना लें। अतिसार में ऐसे भोज्य पदार्थो का सेवन करना चाहिए, जो शरीर में खनिज लवणों And जल का सन्तुलन बनाये रखे। 
  3. First कुछ दिनो तक मट्ठा या नींबू पानी+शहद ही लेना चाहिए। नींबू पानी में हल्का-सा नमक भी डाला जा सकता है।
  4. तत्बाद कुछ दिनो के बाद और रोगी की भूख और इच्छा के According सब्जियों का रस अथवा फलों का रस दिया जा सकता है। 
  5. सब्जियों में गाजर, तोरार्इ, लौकी, टिण्डा आदि सुपाच्य सब्जियों को मिलाकर बनाया गया सूप लिया जा सकता है। All सब्जियाँ उपलब्ध ना होने पर किसी भी Single प्रकार की सब्जी का सूप बनाना चाहिए। 
  6. फलो में केले के सेवन ऊर्जा And खनिज लवणों की कमी को दूर करता है। सेब को उबालकर खिलाना भी लाभकारी है। इसके अतिरिक्त अनानास और बेल भी इस रोग के लिए लाभकारी है। फलो में अनार, संतरा और मौसमी का रस भी उत्तम है। 
  7. रोगी को छाछ के साथ किशमिश देना, पीने के लिए नारियल पानी And छेने का पानी भी लाभकारी है। 
  8. दालों में मूंग और मसूर का पानी, साबूदाना, दही और दलिया भी उपयोगी है।

नोट- रोग की अवस्था के आधार पर First अपक्व आहार फिर उबले आार पर तथा तत्बाद अन्त में हल्के सुपाच्य आहार में आना चाहिए।

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