संघवाद और Indian Customer संविधान

शासन की शक्तियों का प्रयोग मूल Reseller से Single स्थान से Reseller जाता है या कर्इ स्थानों से। इस आधार पर शासन-प्रणालियों के दो प्रकार हैं-Singleात्मक शासन और संघात्मक शासन। जिस शासन-व्यवस्था में शासन की शक्ति Single केन्द्रीय सरकार में संकेन्द्रित होती है, उसे Singleात्मक शासन कहते हैं। इसके विपरित जिस प्रणाली में शासन की शक्तियाँ केन्द्र तथा उसकी घटक इकाइयों के बीच बँटी रहती हैं, उसे संघात्मक शासन कहतें हैं।

संघात्मक शासन प्रणाली का Means And परिभाषा 

‘संघ’ Word आंग्ल भाशा के ‘फेडरेशन’ Word का हिन्दी अनुवाद है। ‘फेड-रेशन’ Word लैटिन भाशा के Word ‘फोडस’ से बना है। ‘फोडस’ से अभिप्राय है ‘संधि’ या समझौता। जब दो या दो से अधिक राज्य Single संधि अथवा समझौते के द्वारा मिलकर Single नये राज्य का निर्माण करते हैं। तो वह राज्य ‘संघ राज्य’ के नाम से जाना जाता है। अमरीका, आस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैण्ड के संघों का विकास इसी प्रकार से हुआ है।

संघात्मक शासन उस प्रणाली को कहते हैं जिसमें राज्य-शक्ति संविधान द्वारा केन्द्र तथा संघ की घटक इकाइयों के बीच विभाजित रहती है। संघात्मक राज्य में दो प्रकार की सरकारें होती है- Single संघीय या केन्द्रीय सरकार और कुछ राज्यीय अथवा प्रान्तीय सरकारें। दोनों सरकारें सीधे संविधान से ही शक्तियाँ प्राप्त करती है। दोनों अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र रहती हैं। दोनों की सत्ता मौलिक रहती है। और दोनों का अस्तित्व संविधान पर निर्भर रहता है।

के0 सी0 व्हीयर के According, ‘‘संघीय शासन-प्रणाली में सरकार की शक्तियों का पूरे देश की सरकार और देश के विभिन्न प्रदेशों की सरकारों के बीच विभाजन इस प्रकार Reseller जाता है कि प्रत्येक सरकार अपने-अपने क्षेत्र में कानूनी तौर पर Single-दूसरी से स्वतन्त्रता होती है। सारे देश की सरकार का अपना ही आधिकार क्षेत्र होता है और यह देश से संघटक अंगों की सरकारों के किसी प्रकार के नियंत्रण के बिना अपने अधिकार का उपयोग करती है और इन अंगों की सरकारें भी अपने स्थान पर अपनी शिक्तायों का उपयोग केन्द्रीय सरकार के किसी नियंत्रण के बिना ही करती है। विशेष Reseller से सारे देश की विधायिका की अपनी सीमित शक्तियाँ होती है और इसी प्रकार से राज्यों या प्रान्तों की सरकारें की भी सीमित शक्तियाँ होती हैं। दोनों में से कोर्इ किसी के अधीन नहीं होती और दोनों Single-Second की समन्वयक होती है।’’

गार्नर के Wordों में, ‘‘संघ Single ऐसी प्रणाली है जिसमें केन्द्रीय तथा स्थनीय सरकारें Single ही प्रभुत्व-शक्ति के अधीन होती हैं। यें सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में, जिसे संविधान अथवा ससंद का कोर्इ कानून निश्चित करता है, सर्वोच्च होती है। संघ सरकार, जैसा प्राय: कह दिया जाता है, अकेली केन्द्रीय सरकार नहीं होती, वरन् यह केन्द्रीय And स्थानीय सरकारों को मिलाकर बनती है। स्थानीय सरकार उसी प्रकार संघ का भाग है, जिस प्रकार केन्द्रीय सरकार। वे केन्द्र द्वारा निर्मित अथवा नियन्त्रित नहीं होती।’’

हरमन फाइनर का कथन है कि ‘‘संघात्मक राज्य वह है जिसमें सत्ता And शक्ति का Single भाग संघीय इकाइयों में निहित रहता है, जबकि दूसरा भाग केन्द्रीय संस्था में, जो क्षेत्रीय इकाइयों में समुदाय द्वारा जान-बूझकर स्थापित की जाती है।’’ हैमिल्टन के अभिमत में ‘‘संघ राज्यों का Single ऐसा समुदाय होता है जो Single नवीन राज्य की सृष्टि करता है।’’ यथार्थ में संघात्मक शासन-व्यवस्था में विशय स्वतन्त्र राज्य अपनी Agreeि से Single केन्द्रीय सरकार की स्थापना करते हैं और Agreeि के According राष्ट्रीय महत्व के कुछ विशयों का शासन-प्रबन्धक केन्द्र को देकर शेष विशयों के प्रबन्धक के अधिकार सम्बन्ध में अधिकार स्वयं रखते हैं। अधिकांश पुराने संघ इसी प्रकार से बने है तथापि आधुनिक युग में कतिपय ऐसे नये संघात्मक राज्यों का भी निर्माण हुआ है जिनमें केन्द्र की ओर से पहल की गयी तथा संविधान के माध्यम से राज्यों को कुछ शक्तियाँ दी गयी। यह Historyनीय है कि Indian Customer संघ का निर्माण इसी प्रक्रिया से हुआ हैं।

संघात्मक शासन के सम्बन्ध में व्यक्त विचारों से निम्नलिखित तथ्य उभरते है: First, संघ शासन में दोहरी सरकारें होती है- केन्द्रीय सरकार तथा इकाइयों की सरकारें। द्वितीय, संविधान द्वारा केन्द्र तथा इकाइयों के मध्य शासन-शक्तियों का बटँबारा Reseller जाता है। तृतीय, संघ शासन में दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्त होती हैं तथा Single Second के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करती।

संघात्मक शासन के लक्षण 

किसी शासन-व्यवस्था को संघात्मक तभी कहा जाता है जब उस राजनीतिक व्यवस्था में संविधान तथा सरकार दोनों ही संघात्मक सिद्धान्त पर खरी उतरती हों। संघवाद का मूलभूत सिद्धान्त है- शक्तियों का विभाजन। के0 सी0 व्हीयर के According, ‘‘संघीय सिद्धान्त से मेरा तात्पर्य शक्ति के विभाजन के तरीके से है जिससे सामान्य (संघीय) And क्षेत्राधिकारी (राज्यों की) सरकारें अपने क्षेत्र में समान And पृथक होती है।’’ आम तौर से सघ व्यवस्था के तीन लक्षण या तत्व माने जाते हैं :

1. संविधान की सर्वोच्चता-

संघ के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि उसका संविधान लिखित And सर्वोच्च हो। संघ प्रणाली Single प्रकार की संविदा पर आधारित होती है, जिसमें Single ओर केन्द्रीय सरकार और दूसरी ओर इकार्इ राज्यों की सरकारें होती है। छोटी-छोटी इकाइयाँ मिलकर Single नया राज्य बनाती है, जो प्रभुत्व-सम्पन्न होता है, किन्तु साथ ही साथ वे स्थानीय मामलों में अपनी स्वायत्ता को भी Windows Hosting रखना चाहती हैं, अत: ऐसी स्थिति में यह नितान्त आवश्यक है कि दोनों पक्षों का क्षेत्राधिकरी तथा शक्तियाँ सुनिश्चित हों।

यह लिखित संविधान द्वारा ही सम्भव है जो देश की सर्वोच्च विधि होती है। अलिखित संवैधानिक परम्पराओं के आधार पर संध कायम नहीं रह सकता, क्योंकि उनका विधिक महत्व नहीं होता। यदि किसी संघ का संविधान सुपरिवर्तन हुआ तो इकार्इ राज्यों को अपने अधिकारों के सम्बन्ध में सदैव शंका बनी रहेगी। लिखित संविधान से ही संविधान की सर्वोच्चता के सिद्धान्त का उद्भव होता है।

2. शक्तियो का विभाजन-

संघ शासन का दूसरा लक्षण यह है कि इसमें सरकार की शक्तियों को इकार्इ राज्यों तथा संघ सरकार के बीच बाँट दिया जाता है। कुछ काम केन्द्रीय सरकार करती है और कुछ इकाइयों की सरकारें। कायोर्ं के विभाजन करने के दो मुख्य तरीके हैं। First के According संविधान द्वारा संघ सरकार के कार्यो को निश्चित कर दिए जाता है और बचे हुए काम राज्यों की सरकारों के लिए छोड़ दिये जाते है। बचे हुए कार्यों को अवशिष्ट कार्य कहते हैं।

जब विभाजन इस प्रणाली से होता है तो कहा जाता है कि अवशिष्ट शक्तियाँ इकार्इ राज्यों में निहित हैं। अमरीकी संघ इस प्रणाली का महत्वपूर्ण उदाहरण है। Second तरीके के According संविधान द्वारा राज्यों के काम निश्चित कर दिये जाते हैं और शेष कार्य केन्द्रीय सरकार के लिए छोड़ दिए जाते है। कनाडा का संघ इस प्रणाली का महत्वपूर्ण उदाहरण है। इस सम्बन्ध में Indian Customer संघ की अपनी निराली विशेषता है।

संघ प्रणाली में केन्द्र And घटक इकाइयों के बीच कार्योें And शक्तियों के विभाजन का मुख्य सिद्धान्त यह है कि जो कार्य सार्वदेशिक महत्व के तथा सम्पूर्ण राष्ट्र के अस्तित्व के लिए आवश्यक होते हैं उनका प्रबन्ध केन्द्रीय सरकार को सौंप शेष राज्य सरकारों को सुपुर्द कर दिये जाते हैं।

3. न्यायपालिका की सर्वोच्चता- 

चूँकि संघ राज्य में अनेक सरकारें होती हैं और उनके अधिकार And शक्तियाँ निश्चित होती है, इसलिये उनके बीच क्षेत्राधिकार के प्रश्न को लेकर विवाद उठ खड़े होने की सदैव गुंजाइश रहती है। संघ व्यवस्था में यह Single आधारभूत प्रश्न रहता है कि केन्द्रीय And राज्यीय सरकारें अपनी-अपनी वैधानिक मर्यादाओं के भीतर कार्य कर रही है अथवा नहीं ? इस प्रश्न का निर्माण करने वाले कोर्इ व्यवस्था होनी चाहिए। इसलिए प्राय: संघ राज्य में Single सर्वोच्च न्यायलय की व्यवस्था की जाती है।

सर्वोच्च न्यायलय का कार्य यह देखना होता है कि संघ के अन्तर्गत सब विधायिकाएँ वे ही कानून पारित करें, जो सविधान के अनुकूल हों और यदि कोर्इ कानून ऐसा हो जो संविधान के प्रतिकूल हो, तो वह उसे अवैध घोशित कर दे। न्यायपालिका इकाइयों And इकाइयों की सरकारों के बीच न्यायाधिकरण का कार्य भी करती है और उनमें यदि कोर्इ संवैधानिक झगड़ा उठ खड़ा होता है, तो उसका निर्णय भी वही करती है।

कुछ विचारक संघात्मक व्यवस्था के तीन गौण लक्षण और मानते हैं। ये तीन लक्षण हैं- (1) दोहरी नागरिकता, (2) राज्यों का इकाइयों के Reseller में केन्द्रीय व्यवस्थापिका के उच्च सदन में प्रतिनिधित्व, और (3) राज्यों को संघीय संविधान के संशोधन में पर्याप्त महत्व देना। इन लक्षणों के समर्थकों की मान्यता है कि प्रभुत्व-शक्ति के दोहरे प्रयोग की भाँति ही संघात्मक शासन में नागरिकता भी दोहरी होनी चाहिए। इसमें साधारणत: प्रत्येक व्यक्ति दो राज्यों का नागरिक होता है, Single तो संघ राज्य का और Second संघ की उस इकार्इ के राज्य का जिसमें उसका निवास हो। राज्यों के हितों का संरक्षण और अधिक ठोस बनाने के लिए यह आवश्यक है कि राज्यों का केन्द्रीय व्यवस्थापिका के उच्च सदन में समान प्रतिनिधित्व रहे तथा बिना राज्यों की Agreeि संविधान में संशोधन न किये जा सकें।

संघवाद  का सैद्धान्तिक आधार 

संघ राज्य में Single संघीय या केन्द्रीय सरकार होती है और कुछ संघीभूत इकाइयों की सरकारें होती हैं। संवैधानिक दृष्टिकोण से संघात्मक व्यवस्था शासन का वह Reseller है जिसमें अनेक स्वतन्त्र राज्य अपने कुछ सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए केन्द्रीय सरकार संगठित करते हैं और उद्देश्यों की पूर्ति में आवश्यक तथा महत्वपूर्ण विशय केन्द्रीय सरकार को सौंप देते हैं And शेष विशयों में अपनी-अपनी पृथक स्वतन्त्रता Windows Hosting रखते है। डैनियल जे0 एलाजारा के According, संघीय पद्वति ऐसी व्यवस्था प्रदान करती है जो ‘‘ अलग-अलग राज्य-व्यवस्थाओं को Single बाहर से घेरने वाली राजनीतिक पद्धति में इस प्रकार संगठित करती है कि इनमें से प्रत्येक अपनी-अपनी मूल राजनीतिक अंखडता को बनाये रख सकती है।’’ यह व्यवस्था सामान्य और घटक दो सरकारों के बीच इस प्रकार शक्तियों का वितरण करती है जिसका उद्देश्य दोनों की सत्ता और प्राधिकार-क्षेत्र की रक्षा होता है तथा जो परम्परामत मानको के According ‘समन्वयकारी सरकार’ समझी जाती हैं।

संघवाद का बुनियादी पहलु बहूलवादी है। मैक्स हाइल्डबर्ट बोहिम ने इस बात की ओर संकेत करते हुए लिखा है कि ‘‘इसकी मौलिक प्रवृत्ति समाजस्यकीरण की ओर इसका नियामक सिद्धान्त Singleता का है।’’ संघीय व्यवस्था के पीछे ‘अनेको में Single’ की स्थापना के उद्देश्य के साथ ही साथ, इन अनेको में से Single को, जहाँ तक सम्भव हो अपना पृथक और विचित्र राजनीतिक तथा सामाजिक अस्तित्व बनाये रखने की अनुमति की शक्तिशाली इच्छा भी कहा जा सकता है। संघवाद के सिद्धान्त के गंभीर अध्ययन से इसके नम्य और सहकारी स्वReseller का पता चलता है जो यह प्रदर्शित करता है कि सरकार का कोर्इ भी स्तर ‘‘न तो Single Second से स्वतन्त्र है और न ही Single Second पर आश्रित।’’

संघवाद की यह परम्परागत व्याख्या आधुनिक राजनीतिक संदर्भ में बहुत कुछ वेमेल पड़ गर्इ प्रतीत होती है। संघवाद की परम्परागत धारणा का दर्शन दोनों ही स्तर की सरकारों में अन्त:क्रिया के ऐसे प्रतिमान की ओर हैं जिसमें हर स्तर की सरकार की अपने अधिकार-क्षेत्र में पृथकता और स्वतन्त्रता बेआँच रहे। आधुनिक संघीय पद्धति ‘‘Singleात्मक सरकार और सर्वोच्च सत्तात्मक राज्यों के शिथिल संघ के बीच कहीं पर स्थित है।’’ परम्परागत धारणा के According राष्ट्रीय और प्रादेशिक सरकारें ‘समन्वयक’ हैं जो सामान्य और संघटक स्तरों पर स्वतन्त्र राजनीतिक पद्धतियों का निर्माण करती है, आधुनिक धारणा के According, दोनों Single ही पद्धति की Creation करती हैं ‘‘जिसके भीतर कर्इ अति व्यापक उपपद्धतियाँ होती हैं।’’

इसके परिणामस्वReseller, निर्णय-निर्माण और निर्णय-निश्पादन प्रक्रियाएँ न केवल राष्ट्रीय और प्रादेशिक सरकारों की आपसी सहभाजिता के माध्यम से बल्कि शक्तियों के केन्द्रीकरण की अकाट्य प्रवृत्ति के कारण केन्द्र की सर्वोच्च स्थिति के मध्य में उसकी सौदेवाजी की शक्ति और कुशलता से तथा अपनी-अपनी जनांकिक, समरनीतिक, राजनीतिक, आर्थिक स्थिति आदि के कारण इकाइयों की वरिश्ठ क्षमता से भी प्रभावित और निर्धारित की जाती हैं।

नवीनतम प्रवृत्तियों के अध्ययन से यह निश्कर्श निकाला जा सकता है कि संघवाद सहयोग की Single ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जड़ता नहीं, गतिशीलता तथा सजीवता दृष्टिगोचर होती है। मारकस एफ0 फ्रेन्डा ने संघवाद की व्याख्या करते हुए लिखा है कि संघवाद Single स्थिर मॉडल या राजनीतिक संगठन का सूत्र न होकर जन-आधारित दलों, व्यापक नौकरशाही, विविध प्रकार के हित-समूहों तथा बृद्धिरत कार्यों वाली निर्वाचित सरकारों की अन्त:क्रिया से उत्पन्न निरन्तर परिवर्तनशील प्रक्रिया है। प्रो0 अमल रे ने इसी ओर संकेत करते हुए लिखा है कि संघीय व्यवस्था में दो तरह की सत्ताओं को राष्ट्रीय उद्देश्यों की पूर्ति में सहयोगी बनाया जाता है।

केन्द्रीय And राज्य सरकारों के बीच बढ़ता हुआ विचार-विनिमय इन दोनों को सामान्य नीतियों और कार्यक्रमों पर Agree ही नहीं बनाता वरन् संघ की इकाइयाँ अब अपने-अपने क्षेत्र में पूर्ण स्वायत्तता की माँग भी नहीं करती हैं क्योंकि आज का समाज इतने Singleीकृत हो गये हैं कि केन्द्र और राज्यों के क्षेत्रों का सुनिचय अव्यावहारिक सा हो गया है। अब तो इन दोनों के अधिकार क्षेत्र Single Second के ऊपर, Single-Second को ढकते हुए से लगते हैं। इसी कारण आधुनिक राजनीतिक समाजों में संघवाद Single गतिशील सहयोग की प्रक्रिया के Reseller में देखा जाने लगा है। निश्कर्शत: आधुनिक संघीय पद्धति ‘‘Singleात्मक सरकार और सर्वोच्च सत्तात्मक राज्यों के शिथिल संघ के बीच कहीं पर स्थित है।’’ यह महासंघीय नमूने े प्रकार में भिन्न हैं, किन्तु इसका Singleतात्मक पद्धति से आकार में भेद हो गया है। अब संघवाद के सिद्धान्त की परम्परावादी धारणा के According केन्द्रीय तथा राज्यों की सरकारों को Single Second से पृथक, स्वतन्त्र तथा ‘क्षेत्र-विशेष’ में सीमित केवल संवैधानिक दृष्टि से ही माना जा सकता है। व्यवहार में बदलते राजनीतिक परिवेश में यह अन्तर धुँधला पड़ता जा रहा है।

संघवाद का ऐतिहासिक विकास 

संघवाद की जड़ किसी न किसी Reseller में प्राचीन काल में भी विद्यमान थीं। प्राचीन यूनान के नगर राज्य इससे अपरिचित नहीं थे। मध्य युग में इटली के कुछ नगरों में भी संघवाद की झलक मिलती है और तेरहंवी शताब्दी से स्विट्जर लैण्ड के ‘कानफेडरेशन’ के विकास से इसका History अविकल रहा है इस संघ का जन्म सन् 1291 में हुआ जबकि वहाँ के तीन फॉरेस्ट केण्टन (प्रदेश) अपनी रक्षा के लिए आपस में मिल गये। आज अनेक विविधता वालें राज्यों-जैसे युगोस्लाविया, संयुक्त राज्य अमेरिका, मेक्सिको, आस्ट्रेलिया, सोवियत संघ और भारत आदि- के राजनीतिक संगठन का आधार संघवाद ही है। आज यदि संसार अन्तर्राष्ट्रीय अराजकता से, जिससे अब तक परिचित है, निकलकर Single विश्व-राज्य के Reseller में संगठित होता है तो यह निश्चित है कि ऐसा संघीय आधार पर ही हो सकेगा। समय-समय पर विभिन्न देशों में संघवाद के अनेक Reseller रहे हैं। अपने शिथिलतम Reseller में यह ऐसे राज्यों का Single संकलन मात्र है जो वास्तव में किचिनमात्र भी राज्य का निर्माण नहीं करते। History इस भाँति के विशिष्ट संगठनों के उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिन्हें हम किसी अधिक उपयुक्त नाम के आभाव में प्राय: कानफेडरेशन कहते हैं। बहुत पीछे जाने की Need नहीं, नेपोलियन के पतन पर सन् 1815 में स्थापित जर्मनी के कानफेडरेशन को ही लीजिए, जो इस भाँति के संगठन का Single उदाहरण है। जर्मनी में ऐसे दो Word Single स्टाट (जिसका Means राज्य है) तथा दूसरा Word (जिसका Means संघ है) मौजूद हैं।

इन दोनों Wordों के संयुक्त Reseller से हमें जानने में सहायता मिल सकती है कि तथाकथित कानफेडरेशन और वास्तविक संघ में क्या अन्तर है। सन् 1815 से 1866 तक विद्यमान रहने वाला जर्मनी का यह कानफेडरेशन जर्मनी द्वारा हमेशा ‘बन्द’ ही कहा जाता था और फ्रैंकफर्ट में स्थित राज्य परिषद् (डायट), जो इसकी Only केन्द्रीय संस्था थी, वास्तव में इस संगठन के विभिन्न राज्यों के राजदूतों की सभा से अधिक कुछ भी नहीं थी। जर्मन लोग राज्यों के इस संगठन को राज्य संघ कहते थे। इसमें राज्यों की बहुलता पर जोर दिया जाता था। राज्य संघ उसके सदस्यों को सामान्यता अधिक सन्तोषजनक प्रतीत नहीं हुआ और वे कुछ समय में ही या तो पुन: अलग हो गये अथवा Single वास्तविक यूनियन के Reseller में अधिक घनिष्ठा के साथ जुड़ गये।

इस वास्तविक यूनियन को जर्मनी ने संघ राज्य कहा। इसमें 25 राज्य थे जिनमें जनसंख्या सम्बन्धी विविधता थी। इसमें Single सम्राट, राज्य-परिषद और डायट थी। राज्य-परिषद का गठन राज्यों के प्रतिनिधियों से मिलकर होता था। और प्रत्येक राज्य का परिषद में Single वोट माना जाता था। प्रशा के प्रधानमंत्री को राज्य-परिषद का अध्यक्ष And चान्सलर माना जाता था। संघवाद की आधुनिक धारणा अमरीकी संविधान की देन है। फिलाडेल्फिया सम्मेलन के द्वारा जब अमरीकी संविधान का निर्माण Reseller जा रहा था तो उसके पूर्व अमरीकी क्षेत्र के 13 उपनिवेश पृथक-पृथक रहते हुए अपना राजनीतिक जीवन व्यतीत कर रहे थे। लम्बे समय से अलग रहने के कारण उनमें अपनी पृथक सत्ता के प्रति स्वाभाविक Reseller से तीव्र मोह उत्पन्न हो गया था और वे उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन इसके साथ ही ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध विद्रोह करने वाले इन 13 राज्यों को इस बात का पूरा भय था कि ब्रिटेन या यूरोप का अन्य कोर्इ देश उन्हें पुन: पराधीन करने के लिए प्रयत्न कर सकता है। अत: बाहरी दबाव का सफलतापूर्वक मुकाबला करने के लिए उनका Single होना आवश्यक था। उनके सामने समस्या यह थी कि विविध राज्य अपनी पृथक-पृथक सत्ता बनाये रखते हुए भी Single हो जायें और ऐसे केवल संघीय व्यवस्था को अपनाकर ही Reseller जा सकता था।

बाद में आस्ट्रेलिया के संविधान का निर्माण हुआ जिसमें संघवाद के समस्त विशिष्ट लक्षण, Meansात् सीमित तथा समान सत्ता वाले विधायक राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण, संविधान की सर्वोच्च और संविधान की व्याख्या करने की न्यायलयों का शक्ति मौजूद है। इस संविधान (सन् 1900) में कॉमनवेल्थ (केन्द्रीय) सरकार की शक्तियो का History Reseller गया है और शेष शिक्तायों को राज्यों के लिए छोड़ दिया गया है। इन परिगणित शक्तियों की सूची लम्बी है, फिर भी राज्यों के लिए पर्याप्त स्वतन्त्रता छोड़ दी गर्इ है। संविधान ने Single संघीय कार्यपालिका की स्थापना की है जिसमें स्थापना नाममात्र के लिए तो सपरिषद् गवर्नर जनरल उत्तरदायी होता है, परन्तु जो वास्तव में सीनेट तथा प्रतिनिधि सभा से युक्त द्विसदनी संघीय विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी होता है। सीनेट में राज्यों को समान प्रतिनिधित्व प्राप्त हुआ है। संविधान सर्वोच्च न्यायलय से युक्त Single संघीय न्यायपालिका की भी स्थापना करता है।

कनाडा में Single विशिष्ट प्रकार के संघ राज्य का निर्माण हुआ है। सी0 एफ0 स्ट्राँग ने कनाडा को संघ राज्य का Resellerान्तरित नमूना कहा है। अमरीका के गृहFight (1861-65) ने कनाडा निवासियों को, जो इसके इतने समीप थे, संघवाद के उस Reseller से, जो संयुक्त राज्य अमरीका में तब तक त्रियान्वित हो चुका था, निराश कर दिया था। इसी विश्वास में कनाडा के प्रमुख राजनीतिज्ञों ने Single समाधान निकाला जो वास्तविक संधीय प्रणाली में, जो बदनाम हो चुकी थी, और Singleात्मक प्रणाली के बीच, जो कनाडा के निवासियों की Needओं के अनुकूल नहीं थी, Single समझौता था। कनाडा में शक्तियों के वितरण का वह सिद्धान्त अपनाया गया जो अमरीकी व्यवस्था का ठीक उल्टा था। कनाडा में प्रान्तों की शक्तियाँ परिगणित की गयी हैं और ‘रक्षित शक्तियाँ’ संधीय सत्ता के लिए छोड़ दी गयी हैं।

सोवियत रूस और यूगोस्लाविया जैसे साम्यवादी देशों ने अपनी राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना में पश्चिमी संविधानवाद की पद्धतियों को अस्वीकार Reseller है फिर भी अपने संविधानों का निर्माण संघ प्रणाली के नमूने पर करने का ही प्रयत्न Reseller। सोवियत संघ में जुलार्इ, 1918 में अपनाये गये संविधान द्वारा ‘सोवियत समाजवादी रूसी गणराज्य’ की स्थापना की गयी थी। सन् 1836 के संविधान के अनुच्छेद 13 में संघात्मक व्यवस्था का History Reseller गया था और 1977 में अपनाये गये संविधान के अनुच्छेद 70 में कहा गया है कि ‘‘सोवियत समाजवादी गणराज्यों का संघ Single अखण्ड संघीय बहुजातीय राज्य है जो समाजवादी संघबद्धता के सिद्धान्त पर जातियों के स्वतन्त्र आत्मनिर्णय और समान सोवियत समाजवादी गणराज्यों के स्वैच्छिक मिलन के फलस्वReseller गणित हुआ है।’’

संघवाद की उपयोगिता

सघात्मक व्यवस्था आधुनिक युग में अत्यधिक लचीली शासन-व्यवस्था है जिसमें प्रादेशिक स्वतन्त्रता के साथ ही साथ राष्ट्रीय Singleता भी सम्भव बनती है। Single राजनीतिक व्यवस्था में विकेन्द्रकरण की प्रवृत्ति उतनी ही आवश्यक है जितनी केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति। इन विरोधी प्रवृत्तियों में समन्वय का सर्वोत्तम साधन संघात्मक व्यवस्था ही है। संघवाद की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए सिजविक ने लिखा है-’’संघवाद ने राज्यों के हड़पे जाने या राज्य-विस्तार करने की समस्या का अन्त कर दिया है।

यह राज्यों के शांतिपूर्ण Singleीकरण की पद्धति है। इस प्रकार न केवल स्थानीय स्वशासन और स्वाभिमान की रक्षा सम्भव हो सकी है, अपितु राष्ट्रीय स्वाधीनता भी बचार्इ जा सकी है। संघवाद द्वारा बहुत सी छोट-छोटी स्वतन्त्र प्रजातियों को आर्थिक हानियों से बचाने का अवसर मिल गया, क्योंकि अब वे संगठित होकर Single Reseller से कार्य कर सकती हैं। संघीय और राज्य सरकारों की शक्ति And क्षेत्र इस भाँति विभक्त होते हैं कि उनसे उत्पन्न शासन-तन्त्र सन्तुष्ट रहते हैं। राज्य की कार्य-क्षमता और दक्षता में अभिवृद्धि होती है। संघवाद Single ऐसा राजनीतिक मुद्दा हो गया है जिसमें राज्यों को अधिकतम व्यवस्थापूर्वक न्यूनतम अधिकार संघ को हस्तान्तरित करने से अधिकतम स्वाधीनता का लाभ हुआ है।’’ संघात्मक शासन के प्रमुख गुण इस प्रकार हैं, जिनसे इसकी उपयोगिता स्पष्ट होती है :-

  1. राष्ट्रीय Singleता तथा क्षेत्रीय स्वतन्त्रता का समन्वय-संघ शासन का सबसे बड़ा गुण यह है कि बहुत से छोटे-छोटे राज्य मिलकर Single राष्ट्र को जन्म देते हैं और साथ ही अपना स्वतन्त्र अस्तित्व भी Windows Hosting रखते हैं। छोटे-छोटे दुर्बल राज्य Singleता के सूत्र में बँध जाते हैं और सबल केन्द्रीय सरकार की स्थापना करते हैं जो उनकी स्वतन्त्रता की रक्षा करती है। साथ ही, संघीभूत राज्यों की स्वायत्तता भी Windows Hosting रहती है। 
  2. केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्तियों का समन्वय-संघवाद केन्द्रीकरण तथा विकेन्द्रीकरण की विरोधी प्रवृत्तियों का भी समन्वय करता है। इसके अन्तर्गत राष्ट्रीय महत्व के विशय केन्द्रीकृत कर दिये जाते हैं और स्थानीय विशय विकेन्द्रीकृत। अत: इस व्यवस्था से केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण दोनों के लाभों की प्राप्ति होती है। 
  3.  प्राासनिक कुशलता-संघ शासन-प्रणाली में शासन की शक्तियाँ Single स्थान पर केन्द्रित न होकर, कर्इ स्थानों पर विभाजित रहती हैं, इससे किसी Single केन्द्र पर शासन का कार्यभार अधिक नहीं पड़ता। फलस्वReseller प्रशासन कुशल हो जाता है तथा उसकी क्षमता बढ़ जाती है।
  4. शासन निरंकुश नही हो पाता-संघात्मक शासन-व्यवस्था में शक्ति का विकेन्द्रीकरण निरंकुशता के स्थापित होने की सम्भावना को कम करता है। केन्द्र तथा राज्यों में शासन की शक्तियाँ विभाजित रहती हैं, इसलिए शासन निरंकुश नहीं हो पाता।
  5. विशाल देशो के लिये उपयुक्त –यह शाासन-प्रणाली विशाल आकार And क्षेत्रफल वाले देशों के लिए विशेष Reseller से उपयुक्त है जहाँ विभिन्न संस्कृतियों, जातियों, धर्मों तथा भाशाओं के लोग रहते हैं। ऐसे देशों में स्थानीय विविधताओं के साथ-साथ राष्ट्रीय Singleता स्थापित करनी होती है जो संघात्मक व्यवस्था में ही सम्भव है। 
  6. समय और धन की बचत-शक्ति-विभाजन के कारण संघीय व्यवस्था में केन्द्रीय सरकार का कार्यभार कुछ हल्का हो जाता है परिणामस्वReseller काम के निपटाने में देर होने अथवा लालफीताशाही और नौकरशाही की प्रवृत्ति क्षीण हो जाती है। शासन का संघात्मक Reseller आर्थिक दृष्टि से भी लाभकारी है। यदि All छोटे-छोटे राज्य पृथक-पृथक सेनाएं रखें, Second देशों में अपने राजदूत भेजें और वैदेशिक विभागों का गठन करें, तो निश्चय ही व्यय अधिक होगा।
  7. विश्व सरकार की नीव-राज्यों की वर्तमान संघ व्यवस्था Single विश्व-राज्य की नींव के Reseller में कार्य कर सकती है। यदि कभी Single विश्व-शासन बन सका तो उसकी नींव निश्चित Reseller से संघ शासन-प्रणाली ही होगी।

संघवाद के दोष

वर्तमान विश्व में गिनी-चुनी 16 संघीय व्यवस्थाओं के कारण यह प्रश्न पैदा होता है कि इस शासन-व्यवस्था को बड़े पैमाने पर क्यों नहीं अपनाया जा रहा है? इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि उपर्युक्त गुणों के होते हुए भी संघ शासन-व्यवस्था में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं :

  1. कमजोर शासन-Singleात्मक शासन की तुलना में संघात्मक शासन कमजोर होता है। शक्ति-विभाजन और विकेन्द्रीकरण के कारण सुदृढ़ शासन की स्थापना की जा सकती। डॉ0 आश्र्ाीवादम् के According यह शक्ति-विभाजन आन्तरिक और बाह्म दोनों क्षेत्रों में बाधाएँ उपस्थित करता है। केन्द्र तथा राज्यों की सरकारों में आपसी झगड़े और मतभेद बने रहते हैं। संघ व्यवस्था में निर्णय करने की शीघ्रता, SingleResellerता, दृढ़ता इत्यादि का अभाव रहता है।
  2. केन्द्र और राज्यों शासन में संघर्ष –संघ शासन में संविधान द्वारा केन्द्र तथा राज्यों में शक्ति-विभाजन होता है। इस शक्ति-विभाजन के कारण केन्द्र और राज्यों की सरकारों के बीच निरन्तर संघर्श और विवाद होते रहते हैं। इससे राष्ट्रीय Singleता पर बुरा असर पड़ता है। 
  3. संकटकाल में अनुपयुक्त –संघ शासन संकटकालीन स्थिति का सामना करने में अनुपयुक्त हैं। कर्इ विशयों पर राज्यों से मन्त्रणा करनी पड़ती है और उनसे विचार-विमर्श किये बिना दृढ़ता से निर्णय नहीं लिये जा सकते।
  4. अनमनीय शासन-संघात्मक शासन का संविधान कठोर होता है। उसमें तब तक कोर्इ संशोधन नहीं हो सकता जब तक घटक राज्यों की Agreeि प्राप्त न कर ली जाये। परिणामस्वReseller कर्इ बार संविधान में सरलता से संशोधन नहीं हो पाता और राज्य की प्रगति अवरूद्ध हो जाती है। 
  5. Singleता मे कमी – संघ शासन में केन्द्र तथा राज्य अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले विशयों के सम्बन्ध में स्वतन्त्र Reseller से कानून और नियम बनाते हैं। दोनों स्तरों पर दो विरोधी राजनीतिक दलों का शासन हो सकता है। ऐसी स्थिति में संघात्मक देश में राष्ट्रीय Singleता की सामंजस्यपूर्ण भावना की वह मात्रा नहीं आ सकती जो Singleात्मक शासन-व्यवस्था वाले देशों में साधारणतया पायी जाती है।

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