हिंदी साहित्य का History
- कर्ता के आधार पर –प्रसाद युग, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग।
- प्रवृत्ति के आधार पर-भक्तिकाल, संतकाव्य, सूफीकाव्य, रीतिकाल, छायावाद, प्रगतिवाद।
- विकासवादिता के आधार पर-आदिकाल, आधुनिक काल, मध्यकाल।
- सामाजिक तथा सांस्कृतिक घटनाओं के आधार पर-राष्टींय धा रा, स्वातंत्रयोनर काल, स्वच्छंदतावाद, आदि।
इस संबंध में Historyनीय हैं-
- काल विभाजन साहित्यिक प्रवृत्तियों की समानता के आधार पर होना चाहिए।
- कालों का नामकरण यथासंभव मूल चेतना ;प्रमाान प्रवृत्ति को आधार बनाकर करना चाहिए।
- युगों ;कालों का सीमांकन मूल प्रवृत्तियों के आरंभ और समापन के According होना चाहिए।
- काल की मूल प्रवृत्ति का निर्माण प्रमुख ग्रन्थों के आधार पर करना चाहिए।
काल विभाजन
गार्सा-द-तासी, शिवसिह सेंगर का काल विभाजन –
गार्सा-द-तासी, शिवसिह सेंगर ने काल विभाजन का कोई प्रयास नहीं Reseller।
ग्रियर्सन का काल विभाजन –
ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक ‘द माडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर आफ हिंदुस्तान’ को ग्यारह अध्यायों में विभक्त Reseller है। प्रत्येक अध्याय Single काल खंड को व्यक्त करता है। इन्होंने लेखकों And कवियों का कालक्रमानुसार वर्गीकरण Reseller है। इस काल विभाजन में वैज्ञानिकता का अभाव है तथा अध्यायों की संख्या अधिक होने से उसे काल विभाजन मानना उपयुक्त नहीं है।
मिश्रबंधुओं का काल विभाजन-
मिश्रबंधुओं ने अपनी पुस्तक ‘मिश्रबंधु विनोद’ 1913 ई. में काल विभाजन प्रस्तुत Reseller-
- आरंभिक काल –
- पूर्वारंभिक काल (700 – 1343 वि.)
- उनरारंभिक काल (1344 – 1444 वि-)
- माध्यमिक काल –
- पूर्व माध्यमिक काल (1445 – 1560 वि.)
- प्रौढ़ मामयमिक काल (1561 – 1680 वि.)
- अलंकृत काल –
- पूर्वालंकृत काल (1681 – 1790 वि.)
- उनरालंकृत काल (1791 – 1889 वि.)
- परिवर्तन काल –
- (1890 – 1925 वि.)
- वर्तमान काल –
- (1926 वि. से अब तक)
मिश्रबंधुओं के काल विभाजन की त्रुटिया –
- कालखंडों के नामकरण में Single जैसी पण्ति नहीं अपनाई गई। आरंभिक, मामयमिक, वर्तमान काल विकासवादिता के आधार पर हैं तो अलंछत काल आंतरिक प्रवृनि के आधार पर।
- इस काल विभाजन का कोई सुस्पष्ट आधार नहीं है।
- हिंदी साहित्य के History का प्रारंभ 700 वि. (64 ई.) से मानकर हिंदी के अंतर्गत अपभं्रश की Creationओं को समेट लिया गया है। हिदी साहित्य का प्रारंभ 1000 ई. के आसपास हुआ था।
- परिवर्तन काल असंगत है तथा कालों की संख्या भीअधिक है।
इन्हीं न्यूनताओं को मयान में रखकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उक्त काल विभाजन पर व्यंग्य करते हुए लिखा है-’’सारे Creation काल को के वल आदि, ममय, पूर्व, उनर, इत्यादि खंडों में आख मूंदकर बाट देना-यह भी न देखना कि किस खंड के भीतर क्या आता है और क्या नहीं-किसी वृन संग्रह को History नहीं बना सकता।’’
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का काल विभाजन-
आचार्य शुक्ल ने हिंदी साहित्य के History’ (1929 ई.) में काल विभाजन Reseller-
- वीरगाथाकाल (संवत् 1050-1375 वि.)
- भक्तिकाल (संवत् 1375-1700 वि.)
- रीतिकाल (संवत् 1700-1900 वि.)
- गद्यकाल (संवत् 1900-1984 वि.)
वस्तुत: शुक्लजी ने अपने हिंदी साहित्य के History में दोहरा नामकरण करते हुए उसका प्राReseller निम्न प्रकार से दिया है-
- आदिकाल (वीरगाथाकाल) (1050-1375 वि.)
- पूर्व ममयकाल (भक्तिकाल) (1375-1700 वि.)
- उनर ममयकाल (रीतिकाल) (1700-1900 वि.)
- आमाुनिक काल (गद्य काल) (1900-1984 वि.)
स्पष्ट है कि लोग जिसे आदिकाल कहते हैं शुक्लजी उस काल में ‘वीरता’ की प्रवृनि को प्रमाान मानकर उसका नाम वीरगाथाकाल रखना चाहते हैं। इसी प्रकार पूर्व ममयकाल को भक्तिकाल, उनर ममयकाल को रीतिकाल तथा आमाुनिक काल को वे गद्यकाल कहे जाने के पक्ष में है। उनके According वीरगाथाकाल में वीरता की, भक्तिकाल में भक्ति की, रीतिकाल में रीतितत्व निResellerण की और आमाुनिक काल में गद्य की प्रमाानता है, इसलिए प्रमाान प्रवृनि के आधार पर ही इन कालखंडों का नामकरण करना उचित है। शुक्ल जी काल विभाजन पद्धति के दो आधार हैं-
- प्रमाान प्रवृनि,
- ग्रंथों की प्रसिद्धि।
जिस कालखंड में Single विशेष ढंग की Creationए अधिक मिलीं उसे Single अलग कालखंड माना गया और Creationओं की प्रचुरता के आधार पर प्रमाान प्रवृत्ति का निर्धारण कर लिया गया। प्रमाान प्रवृत्ति के लिए लोक प्रसिद्ध ग्रंथो को ही आधार बनाया गया है। शुक्लजी के काल विभाजन में सर्वािमाक आपनि विद्वानों को वीरगाथाकाल नाम पर है। इस काल की अधिकांश सामग्री आधार हीन And अप्रामाणिक है।
अत: उसके आधार पर प्रमाान प्रवृत्ति का निर्माण नहीं हो सकता। वुफछ आलोचकों ने इस नाम को अनुचित बताकर इसे आदिकाल कहना ही उपयुक्त माना है। Single प्रवृनि को प्रमाानता देकर शेष को गौण मान लेने का दृष्टिकोण भी वुफछ लोगों के मत से Singleांगी है जो History की अमाूरी And Single पक्षीय व्याख्या करता है जिसे वैज्ञानिक नहीं कह सकते। पिफर भी यह कहना उचित है कि शुक्लजी की काल विभाजन पण्ति का आधार तर्वफसंगत And पुष्ट है। उनका काल विभाजन सरल And सुस्पष्ट है। अधिकतर परवर्ती Historyकारों ने उसी का आधार ग्रहण Reseller है।
डॉ. रामवुफमार वर्मा का काल विभाजन-
डॉ. रामवुफमार वर्मा ने अपने History ग्रंथ हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक History’ (1938 ई.) में इस प्रकार काल विभाजन Reseller-
- संधिकाल (750 वि. – 1000 वि.)
- चारणकाल (1000 वि. – 1375 वि.)
- भक्तिकाल (1375 वि. – 1700 वि.)
- रीतिकाल (1700 वि. – 1900 वि.)
- आधुनिक काल (1900 वि. – अब तक)
संधिकाल में उन्होंने अपभृंश की Creationए समाविष्ट की हैं। चारणकाल और शुक्लजी के वीरगाथाकाल में कोई मौलिक अंतर नहीं है। वीरगाथाओं के रचयिता चारण कहलाते थे। शुक्लजी ने नामकरण Creation की प्रवृनि के आधार पर Reseller जबकि डॉ. वर्मा ने Creationकार के आधार पर Reseller।
डॉ. गणपति चंद्र गुप्त का काल विभाजन-
इन्होंने हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक History’ (1965 ई.) में निम्न काल विभाजन Reseller-
- प्रारंभिक काल – (1184-1350 ई.)
- मध्यकाल – 1. पूर्व ममयकाल (1350-1500 ई.) 2. उनर ममयकाल (1500-1857)
- आधुनिक काल – (1857-1965 ई.)
टास्क मिश्रबंधुओं के काल विभाजन की त्राुटियों से क्या तात्पर्य है? समझाइए। डॉ. गणपति चंद्र गुप्त का यह भी मत है कि हिंदी के प्रारंभिक काल And मध्यकाल में तीन प्रकार का काव्य मिलता है-(i) धर्माश्रित काव्य, (ii) राज्याश्रित काव्य, (iii) लोकाश्रित काव्य।
विभिन्न काल खंडों के नामकरण
1. आदिकाल –
- वीरगाथाकाल – आचार्य रामचंद्र शुक्ल
- आदिकाल – हजारीप्रसाद द्विवेदी
- चारणकाल – डॉ. रामवुफमार वर्मा
- बीज वपन काल – महावीर प्रसाद द्विवेदी
- सिद्द सामंत युग – राहुल सांछत्यायन
- आरंभिक काल – मिश्र बंधु
- प्रारंभिक काल – डॉ. गणपति चंद्र गुप्त
2. पूर्व मध्यकाल-भक्तिकाल।
3. उत्तर मध्यकाल-रीतिकाल, अलंकृतकाल, शृंगारकाल, कला काल।
4. आधुनिक काल-गद्यकाल, वर्तमान काल।
स्पष्ट है कि First कालखंड के नामकरण पर ही अिमाक विवाद है। हिंदी साहित्य के History ग्रंथों में जो नाम सर्वािमाक प्रचलित हैं, वे इस प्रकार हैं-
- आदिकाल (1000 ई. से 1350 ई.)
- भक्तिकाल (1350 ई. से 1650 ई.)
- रीतिकाल (1650 ई. से 1850 ई.)
- आमाुनिक काल (1850 ई. से अब तक)
उक्त नाम ही अब सर्वस्वीछत हैं। History ग्रंथों में इन्हीं का प्रयोग होता है।