हठयोग क्या है ?

सामान्य Reseller से हठयोग का Means व्यक्ति जिदपूर्वक हठपूर्वक किए जाने वाले अभ्यास से लेता है Meansात किसी अभ्यास को जबरदस्ती करने के Means में हठयोग जिदपूर्वक जबरदस्ती की जाने वाली क्रिया है। हठयोग Word पर अगर विचार करें तो दो Word हमारे सामने आते है ह और ठ।

   ह का Means है- हकार Meansात Ultra site नाडी।(पिंगला)
   ठ का Means है- ठकार Meansात चन्द्र नाडी।(इडा)

हठयोग के इसी हकार तथा ठकार Word को संस्कृत Wordार्थ कौस्तुभ ने भी स्वीकार Reseller है। भलर्इ हठयोग के परिपेक्ष्य में यह अवश्य प्रतीत होता है कि हठपूर्वक (जिदपूर्वक) की जाने वाली क्रिया हठयोग है। परन्तु स्पष्ट है कि हठयोग की क्रिया Single उचित तथा श्रेष्ठ मार्गदर्शन में की जाये तो साधक सहजतापूर्वक इसे कर सकता है। इसके विपरीत अगर व्यक्ति मार्गदर्शन पुस्तकों में पढकर करता है तो इस साधना के के विपरित तथा नकारात्मक परिणाम होते है।

यह सच है कि हठयोग की कुछ क्रियाये कठिन अवश्य कही जा सकती है। इन्हे करने के लिए निरन्तरता और –ढता आवश्यक है प्रारम्भ में साधक हठयोग की क्रिया के अभ्यास को देखकर जल्दी करने के लिए अपने को तैयार नहीं करता इसलिए Single सहनशील, परिश्रमी, जिज्ञासु और तपस्वीे व्यक्ति ही इस साधना को कर सकता है। अब हम हठयोग की विविध परिभाषाओं का अध्ययन करेंगे। विविध ग्रन्थों में हठयोग को इस प्रकार परिभाषित Reseller है।
सिद्ध-सिद्धान्त संग्रह के According –

      हकार कीर्तित Ultra siteष्ठकारश्चेन्द्रव उच्यते । 

      सर्याचन्द्रयमसोर्योगात् हठयोगो निगद्यते ।। 

Meansात हकार (Ultra site) तथा ठकार (चन्द्र) नाडी के योग को हठयोग कहते है।

योगशिखोपनिषद में भी हकार को Ultra site तथा ठकार को चन्द्र मानकर Ultra site और चन्द्र के संयोग को हठयोग कहा गया है।

 हकारेण तु Ultra site स्याकत् सकारेणेन्दुदरूच्यकते।
 Ultra siteाचन्द्र मसोरैक्यंस हढ इव्यकमिधीयते ।।

योगशिखोपनिषद में योग की परिभाषा देते हुए कहा है कि अपान व प्राण, रज व रेतस Ultra site व चन्द्र तथा जीवात्मा व परमात्मा का मिलन योग है। यह परिभाषा भी हठयोग की Ultra site व चन्द्र के मिलन की स्थिति को प्रकट करती है –
    योSपानप्राणयोरैक्यं स्वरजो रेतसोस्तथा।।
    Ultra siteाचन्द्रमसोर्योगो जीवात्मपरमात्मनो:।
    And तु द्वन्द्वजालस्य संयोगो योग उच्यते।।

ह (Ultra site) का Means Ultra site स्वर, दायाँ स्वर, पिंगला स्वर अथवा यमुना तथा ठ (चन्द्र) का Means चन्द्र स्वर, बाँया स्वर, इडा स्वर अथवा गंगा लिया जाता है। दोनों के संयोग से अग्नि स्वर, मध्य स्वर, सुषुम्ना स्वर अथवा सरस्वती स्वर चलता है, जिसके कारण ब्रह्मनाड़ी में प्राण का संचरण होने लगता है। इसी ब्रह्मनाड़ी के निचले सिरे के पास कुण्डलिनी शक्ति सुप्तावस्था में स्थित है। जब साधक प्राणायाम करता है तो प्राण के आघात से सुप्त कुण्डलिनी जाग्रत होती है तथा ब्रह्मनाड़ी में गमन कर जाती है जिससे साधक में अनेकानेक विशिष्टताएँ आ जाती हैं। यह प्रक्रिया इस योग पद्धति में मुख्य है। इसलिए इसे हठयोग कहा गया है। यही पद्धति आज आसन, प्राणायाम, “ाट्कर्म, मुद्रा आदि के अभ्यास के कारण सर्वाधिक लोकप्रिय हो रही है। महर्षि पतंजलि के मनोनिग्रह के साधन Reseller में इस पद्धति का प्रयोग अनिवार्यत: उपयोगी बताया गया है। हठ प्रदीपिका में स्वामी स्वात्माराम ने हठयोग को परिभाषित करते हुए कहा है कि हठपूर्वक मोक्ष का भेद हठयोग से Reseller जा सकता है।

       उद्घाटयेत् कपाटं तु तथा कुचिंकया हठात।
       कुण्डटलिन्या तथा योगी मोक्षद्वारं विभेदयेत ह0प्र0 3/101

Meansात जिस प्रकार चाभी से हठात किवाड़ को खोलते है उसी प्रकार योगी कुण्डलिनी के द्वार (हठात) मोक्ष द्वार का भेदन करते है।

विविध परिभाषाओं के अवलोकन के बाद अब Single प्रश्न आपका अवश्य होगा कि हठयोग के क्या उद्देश्यक है। स्वात्माराम योगी द्वारा यह घोषणा कर दी गर्इ है कि ‘केवल राजयोगाय हठविद्योपदिश्यते’ Meansात् केवल राजयोग की साधना के लिए ही हठविद्या का उपदेश करता हूँ। हठप्रदीपिका में अन्यत्र भी कहा है कि आसन, प्राणायाम, मुद्राएँ आदि राजयोग की साधना तक पहुँचाने के लिए हैं-

      पीठानि कुम्भकाश्चित्रा दिव्यानि करणानि च।
      सर्वाण्यपि हठाभ्यासे राजयोग फलावधि:।। ह0प्र0 1/67

यह हठयोग भवताप से तप्त लोगों के लिए आश्रय स्थल के Reseller में है तथा All योगाभ्यासियों के लिए आधार है- 

     अशेषतापतप्तानां समाश्रयमठो हठरू
     अशेषयोगयुक्तानामाधारकमठो हठ:।। ह0प्र0 1/10

इसका अभ्यास करने के पश्चात अन्य योगप्रविधियों में सहज Reseller से सफलता प्राप्त की जा सकती है। कहा गया है कि यह हठविद्या गोपनीय है और प्रकट करने पर इसकी शक्ति क्षीण हो जाती है-

      हठविद्यां परं गोप्या योगिनां सिद्धिमिच्छताम। 
      भवेद् वीर्यवती गुप्ता निवÊर्या तु प्रकाशिता।। ह0प्र0 1/11

इसलिए इस विद्या का अभ्यास Singleान्त में करना चाहिए जिससे अधिकारी- जिज्ञासु तथा साधकों के अतिरिक्त सामान्य जन इसकी क्रियाविधि को देखकर स्वयं अभ्यास करके हानिग्रस्त न हों। साथ ही अनधिकारी जन इसका उपहास न कर सकें।

स्मारण रहे कि – जिस काल में हठप्रदीपिका की Creation हुर्इ थी, वह काल योग के प्रचार-प्रसार का नहीं था। तब साधक ही योगाभ्यास करते थे। सामान्यजन योगाभ्यास को केवल र्इÜवरप्राप्ति के उद्देश्य से की जाने वाली साधना के Reseller में जानते थे। आज स्थिति बदल गर्इ है। योगाभ्यास जन-जन तक पहुँच गया है तथा प्रचार-प्रसार दिनों-दिन प्रगति पर है। लोग इसकी महत्ता को समझ गए हैं तथा जीवन में ढालने के लिए प्रयत्नशील हो रहे हैं।

हठयोग का उददेश्य 

हठयोग के उद्देश्य के –ष्टिकोण से विचार करने पर हम देखते हैं कि ‘राजयोग साधना की तैयारी के लिए तो हठयोग उपयोगी है ही’, इस मुख्य उद्देश्य के साथ अन्य अवान्तर उद्देश्य भी कहे जा सकते हैं जैसे- स्वास्थ्य का संरक्षण, रोग से मुक्ति, सुप्त चेतना की जागृति, व्यक्तित्व विकास, जीविकोपार्जन तथा आध्यात्मिक उन्नति। इनकी विस्तृत विवेचना इस प्रकार है।

1. स्वास्थ्य का संरक्षण- 

शरीर स्वस्थ रहे। रोगग्रस्त न हो। इसके लिए भी हम हठयौगिक अभ्यासों का आश्रय ले सकते हैं। ‘आसनेन भवेद् –ढम, ‘षट्कर्मणा शोधनम’ आदि कहकर आसनों के द्वारा मजबूत शरीर तथा “ाट्कर्मों के द्वारा शुद्धि करने पर दोषों के सम हो जाने से व्यक्ति सदा स्वस्थ बना रहता है। विभिन्न आसनों के अभ्यास से शरीर की मांसपेशियों को मजबूत बनाया जा सकता है तथा प्राणिक ऊर्जा के संरक्षण से जीवनी शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। शरीर में गति देने से All अंग-प्रत्यंग चुस्त बने रहते हैं तथा शारीरिक कार्यक्षमता में वृद्धि होती है जिससे शरीर स्वस्थ रहता है। अत: हम कह सकते है कि स्वास्थ्य संरक्षण में हठयोग का महत्वपूर्ण स्थान है।

2. रोग से मुक्ति- 

अब इन हठयोग के अभ्यासों को रोग-निवारण के लिए भी प्रयुक्त Reseller जा रहा है। कहा भी है-

     ‘आसनेन रुजो हन्ति’। (घेरण्ड संहिता)
     ‘कुर्यात् तदासनं स्थैर्यमारोग्यं चाड़्गलाघवम। हव्म्प्रव्म् 1/17

विभिन्न आसनों का शरीर के विभिन्न अंगों पर जो प्रभाव पड़ता है, उससे तत्सम्बन्धी रोग दूर होते हैं। जैसे मत्स्येन्द्रासन का प्रभाव पेट पर अत्यधिक पड़ता है तो उदरविकारों में लाभदायक है। जठराग्नि प्रदीप्त होने के कारण कब्ज, अपच, मन्दाग्नि आदि रोग दूर होते हैं। इ

सी प्रकार षट्कर्मों का प्रयोग करके रोगनिवारण Reseller जा सकता है। जैसे धौति के द्वारा कास, श्वास, प्लीहा सम्बन्धी रोग, कुष्ठ रोग, कफदोष आदि Destroy होते हैं।

नेति के द्वारा –ष्टि तेज होती है, दिव्य –ष्टि प्रदान करती है और स्कन्ध प्रदेश से ऊपर होने वाले रोगसमूहों को शीघ्र Destroy करती है।

      कपालशोधिनी चौव दिव्य–ष्टिप्रदायिनी।
      जत्रूध्र्वजातरोगोघं नेतिराशु निहन्ति च।। ह0प्र0 2/31

आधुनिक वैज्ञानिक युग में यद्यपि आयुर्विज्ञान की नर्इ वैज्ञानिक खोज हो रही है। फिर भी अनेक रोग जैसे- मानसिक तनाव, मधुमेह, प्रमेह, उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, साइटिका, कमरदर्द, सर्वाइकल स्पोंडोलाइटिस, आमवात, मोटापा, अर्श आदि अनेक रोगों को योगाभ्यास द्वारा दूर Reseller जा रहा है।

3. सुप्त चेतना की जागृति – 

 हठयोग के अभ्यास शरीर को वश में करने का उत्तम उपाय हैं। जब शरीर स्थिर और मजबूत हो जाता है तो प्राणायाम द्वारा श्वास को नियंत्रित Reseller जा सकता है। प्राण नियंत्रित होने पर मूलाधार में स्थित शक्ति को ऊध्र्वगामी कर सकते हैं। प्राण के नियंत्रण से मन भी नियंत्रित हो जाता है। अत: मनोनिग्रह तथा प्राणापान-संयोग से शक्ति जाग्रत होकर ब्रह्मनाड़ी में गति कर जाती है जिससे साधक को अनेक योग्यताएँ स्वत: प्राप्त हो जाती हैं। अत: हम कह सकते है कि हठयोग के अभ्यागस से सुप्ता चेतना की जागृति होती है।

4. व्यक्तित्व विकास- 

साधक इन अभ्यासों को अपनाकर निज व्यक्तित्व का विकास करने में समर्थ होता है। उसमें Humanीय गुण स्वत: आ जाते हैं। शरीर गठीला, निरोग, चुस्त, कांतियुक्त तथा गुणों से पूर्ण होकर व्यक्तित्व का निर्माण करता है। ऐसे गुणों को धारण करके उसकी वाणी में मृदुता, आचरण में पवित्रता, व्यवहार में सादगी, स्नेह, आदि का समावेश हो जाता है।

5. जीविकोपार्जन – 

देश ही नहीं, विदेश में भी आज योगाभ्यास जीविकोपार्जन का Single सशक्त माध्यम बन गया है। देश में ही अनेक योग प्रशिक्षण केन्द्र, चिकित्सालय, विद्यालय, महाविद्यालय, विÜवविद्यालय योग के प्रचार-प्रसार में लगे हैं। रोगोपचार के लिए व्यक्तिगत Reseller से लोग योग प्रशिक्षक को बुलाकर चिकित्सा ले रहे हैं तथा स्वास्थ्य-संरक्षण हेतु प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। विदेश में तो भारत से भी अधिक जागरूकता है। अत: जीविकोपार्जन के लिए भी इसे अपनाया जा रहा है।

6. आध्यात्मिक उन्नति- 

कुछ लोग वास्तव में जिज्ञासु हैं जो योग द्वारा साधना में सफल होकर साक्षात्कार करना चाहते हैं। उनके लिए तो योग है ही। साधक साधना के लिए आसन-प्राणायामादि का अभ्यास करके –ढ़ता तथा स्थिरता प्राप्त करके ध्यान के लिए तैयार हो जाता है। ध्यान के अभ्यास से समाधि तथा साक्षात्कार की अवस्था तक पहुँचा जा सकता है। अत: आध्यात्मिक उन्नति हेतु भी हठयोग Single साधन है। Meansात् पूर्व में बतार्इ गर्इ विधि से यदि बोधिप्राप्त न हो तो हठयोग का आश्रय लेना चाहिए। राजयोग साधना का आधार होने के कारण इसे भी राजयोग के समकक्ष स्थान प्राप्त है। अतरू हम कह सकते है कि आध्यात्मिक उन्नति का राजयोग महत्वपूर्ण सौपान है।

हठयोग के प्रमुख ग्रन्थों का सामान्य परिचय 

हठयोग के ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्व यह आवश्यक है कि हठयोग की परम्परा कहॉं से शुरू हुर्इ इस प्रश्न के उत्तर आपको कहानी को पढ़कर स्वत: ही आ जायेगा। Single बार भगवान शिव, मॉं पार्वती को लेकर भ्रमण पर निकले थे। भ्रमण के दौरान दोनों Single सरोवर के किनारे बैठ जाते है मॉं पार्वती की इच्छा पर भगवान शिव उन्हें हठयोग की शिक्षा देते है। भगवान शिव द्वारा दी गर्इ यह शिक्षा सरोवर में Single मछली सुन लेती है जब भगवान शिव को इस बात का आभास होता है तो वह उस मछली को मत्स्येन्द्र नाथ बना देते है। स्वयं हठप्रदीपिका के प्रणेता स्वात्मा राम जी हठप्रदीपिका की शुरूवात करते कहते है

      ‘श्रीआदिनाथाय नमोSस्तुतस्मैयेनोपदिष्टार हठयोगविद्या’’ हठ0प्रदी0 1/1

Meansात् उन सर्वशक्तिमान आदिनाथ को नमस्कार है जिन्होंने हठयोगविद्या की शिक्षा दी थी। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि भगवान शिव ही हठयोग के आदि प्रणेता है। पुन: स्वात्माराम कहते है-

      हठविद्या हि मत्ये्वान्द्रागोरक्षाद्या विजानते
      स्वादत्मावरामोSथवा योगी जानीते तत्प्रसादतरू हठ0प्रदी0  1/4

Meansात मत्येन्द्रनाथ, गोरक्ष आदि योगी हठविद्या के मर्मज्ञ थे और उन्हीें की कृपा से योगी स्वात्माराम ने इसे जाना अब हम आपके अवलोकनार्थ हठयोग के प्रमुख ग्रन्थों् का सामान्य परिचय देते है।

1. हठ प्रदीपिका – 

 हठप्रदीपिका स्वामी स्वात्माराम द्वारा प्रतिपादित हठयोग का Single ग्रन्थ है। अगर आपने History का अध्ययन Reseller है तो 10वीं तथा 15वीं शताब्दी में अपने मुट्ठी भर स्वार्थ के लिए कर्इ लोग हठयोग व राजयोग के समबन्ध में भ्रान्तियॉ फैलाते रहे। कर्इ लोगों का मत था कि हठयोग व राजयोग दो अलग-अलग मार्ग है इन दोनों रास्तों का आपस में कोर्इ सम्बन्ध नहीं है। इन भ्रामक तत्वों ने वेश-भूषा, इत्यादि आडम्बरों पर जोर देकर भ्रान्तियॉं फैलार्इ थी परन्तु इस शस्य श्यामला धरती पर जब भी विकृतियॉं पैदा हुर्इ और अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँची तब कोर्इ न कोर्इ महापुरूष का अवतरण हुआ है। स्वात्माराम नाम के इस महापुरूष ने ऐसे समय में हठप्रदीपिका नामक प्रमाणिक वैज्ञानिक पुस्तक लिखकर हठयोग के वास्तविक स्वReseller को हमारे सामने रखा। स्वात्माराम जी ने कहा 

    केवलं राजयोगाथहठविद्योपदिश्यसते ह0प्र0 1/2

Meansात केवल राजयोग की प्राप्ति के लिए हठयोग का उपदेश दिया जा रहा है।

2. घेरण्ड संहिता – 

घेरण्ड संहिता की Creation स्वात्माराम जी ने की थी, कहा जाता है कि Single King चण्डिकापालि महर्षि घेरण्ड की कुटी में गये और प्रणाम कर Single प्रश्न Reseller

      घटस्थ योगं योगेश तत्वाज्ञानस्य कारणम।
      इदानीं श्रोतुमिच्छाोमि योगेÜवर वद प्रभो घे0सं0 1/2

Meansात हे योगेश्वर, तत्व ज्ञान का कारण जो धटस्थ योग है, उसे मैं जानने का इच्छुक हूँ हे प्रभु कृपा करके उसे मेरे प्रति कहिए।
 महर्षि घेरण्डक कहते है-

      साधु-साधु महाबाहो यन्मां त्वं परिपृच्छसि
      कथयामि च ते वत्स सावधानोवधारय घे0सं01/3

Meansात हे महाबाहों, तुम्हारे प्रश्न के लिए मैं तुम्हारी प्रशंसा करता हूँ। हे वत्स, तुमने जिस विषय की जिज्ञासा की है उसे मैं तुम्हारे प्रति कहता हॅू। इस प्रकार King चिण्कापालि प्रश्न पूछते है और महर्षि घेरण्ड उत्तर देते है। इस प्रश्न उत्तर की शैली में पूरी घेरण्ड संहिता लिखी गर्इ है। महर्षि घेरण्ड कौन थे इस बात का किसी को पता नहीं है First प्रति 1804 की है। मालुम पड़ता है कि महर्षि घेरण्ड Single वैण्णश संत रहे होंगे उन्होंने कर्इ श्लोकों में विष्णु की Discussion की है। शायद ऐसा हो कि वैष्णव सन्त होने के साथ-साथ इन्होंने हठयोग को अपनाया हो। घेरण्ड संहिता को लोग सप्तांग योग के नाम से भी जानते है।

3. शिव संहिता – 

 शिव संहिता योग की Single मुख्य ग्रन्थ है, कहा जाता है कि स्वयं आदिनाथ शिव ने इसकी Creation की थी। शिव संहिता पर अनेकानेक विद्वानों ने भाषानुवाद Reseller है। शिव संहिता को ‘पंच प्रकरण’ भी कहा जाता है। शिव संहिता में योग की विविध विषयवस्तु का वर्णन मिलता है इनमें साधक की दिनचर्या तथा साधना पद्धति का ज्ञान व विज्ञान निहित है। नाडी ज्ञान, चक्र तथा कुण्डलिनी का इसमें वृहद वर्णन मिलता है।

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