साम्प्रदायिकता के लक्षण
टी0के0 ऊमन (1989) ने साम्प्रदायिकता के छह आयाम (dimensions) बतलाये हैं: आत्मSevenीकरणवादी (assimilationist), कल्याणकारी (welfarist), पलायनवादी (retreatist), प्रतिशोधवादी (retaliatory), अलगाववादी (separatist), और पार्थक्यवादी (secessionist)। आत्मSevenीकरणवादी साम्प्रदायिकता वह है जिसमें छोटे धार्मिक समूहों का बड़े धार्मिक समूह में समवेश/Singleीकरण (assimilate/integrate) कर लिया जाता है। इस प्रकार की साम्प्रदायिकता यह दावा करती है कि सब जनजातियां हिन्दू हैं और जैन, सिख, और बौद्ध, हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के अन्तर्गत आते हैं। कल्याणकारी साम्प्रदायिकता का लक्ष्य किसी विशेष समुदाय का कल्याण होता है, जैसे जीवन-स्तर को सुधारना और शिक्षा And स्वास्थ्य का प्रबन्ध करना; उदाहरणार्थ, र्इसार्इ संस्थाएँ र्इसार्इयों की उन्नति के लिये काम करती हैं, या पारसी संस्थाएँ पारसियों के उत्थान में कार्यरत रहती हैं। इस तरह के सामुदायिक संगठन का उद्देश्य केवल अपने समुदाय के सदस्यों के हित में कार्य करना होता है। पलायनवादी साम्प्रदायिकता वह है जिसमें Single छोटा धार्मिक समुदाय अपने को राजनीति से अलग रखता है; उदाहरण के लिये, बहार्इ समुदाय जिसने अपने सदस्यों के लिये राजनीति में भाग लेना अवैध घोषित Reseller हुआ है। प्रतिशोधपूर्ण साम्प्रदायिकता Second धार्मिक समुदायों के सदस्यों को हानि और चोट पहुंचाने का प्रयत्न करती हैं। पृथकतावादी या अलगाववादी साम्प्रदायिकता वह है जिसमें Single धार्मिक समुदाय अपनी संस्कृति की विशेषता बनाये रखना चाहता है और देश में Single अलग राज्य की मांग करता है; उदाहरणार्थ, उत्तरपूर्वी भारत में कुछ मिज़ों और नागाओं की मांग, असम में बोडों की मांग और बिहार में झाड़खंड की जनजातियों की मांग। अन्त में, पार्थक्यवादी साम्प्रदायिकता वह है जिसमें Single धार्मिक समुदाय अपनी अलग राजनीतिक पहचान चाहता है और Single स्वतंत्र देश की मांग करता है। खालिस्तान की मांग कर रहा सिखों का Single बहुत ही छोटा उग्रवादी (militant) भाग इस प्रकार की साम्प्रदायिकता को अपना रहा था। इन छह प्रकारों की साम्प्रदायिकता में से पिछले तीन Reseller समस्यायें खड़ी करते हैं और जिनके कारण आन्दोलन, साम्प्रदायिकता झगड़े, आतंकवाद और बगावत उत्पन्न होते हैं।