समाजवाद का पतन
1953 र्इ. के बाद रूस और पूर्वी यूरोप तथा 1976 र्इ. के बाद चीन में पूँजीवाद की पुनस्र्थापना की शुरूआत ही समाजवाद के पतन का आरंभ होना थी। यह कोर्इ अनायास या आकस्मिक Reseller से घटित होने वाली घटना नहीं थी। इसके कुछ सुनिश्चित वस्तुगत और मनोगत कारण थे। Single सुनिश्चित ऐतिहासिक पृष्ठभूमि थी। द्वितीय विश्वFight के पश्चात से साम्यवादी नेतृत्व की नीतियाँ समाजवाद के पतन के लिए उत्तरदायी रही थीं। प्रस्तुत अध् याय में समाजवाद के पतन के प्रारंभ के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों का वर्णन Reseller जा रहा है। सोवियत संघ के विघटन के कारक तथा समाजवाद के पतन का प्रभाव का History Reseller जा रहा है।
भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया वास्तव में सम्पूर्ण विश्व की Meansव्यवस्था का Singleीकरण है। इसके अंतर्गत सूचनाओं का राष्ट्रीय सीमाओं के आरपार स्वतंत्र Reseller से संचरण होता है। इसे ही भूमण्डलीकरण या वैश्वीकरण कहते हैं। आज कर्इ बहुराष्ट्रीय निगम और बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ समस्त विश्व में Single साथ कार्य कर रही हैं। भूमण्डलीकरण के लिए आवश्यक प्रक्रिया उदारीकरण भी आज समस्त देशों ने अपना ली है। उदारीकरण की प्रक्रिया से भूमंडलीकरण द्वारा विश्व व्यापार निर्बाध Reseller से चले, इसके लिए विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गर्इ है। आज अंग्रेजी Word ळसवइसप्रंजपवद के हिन्दी पर्यायवाची Word भूमण्डलीकरण या वैश्वीकरण And विश्वव्यापी बन गये है। Meansव्यवस्था के वैश्वीकरण का Means है देश विशेष की Meansव्यवस्था को विश्व की Meansव्यवस्था के साथ जोड़ना। भूमण्डलीकरण के प्रभाव विभिन्न देशों की भिन्न-भिन्न परिस्थितियों पर भिन्न-भिन्न हुए। भूमण्डलीकरण के प्रभावों का वर्णन प्रस्तुत अध्याय में Reseller जा रहा है।
समाजवाद के पतन का प्रारंभ
समाजवाद की पराजय को समझाने के लिए यह समझना आवश्यक है कि पूंजीवाद पर इसकी विजय किस प्रकार होती है। समाजवाद के लिए संघर्ष की दीर्घकालिक और जटिल प्रकृति से हमें भली-भांति परिचित होना होगा। जिस प्रकार चार सौ वर्षों के लम्बे संघर्ष में गतिरोध और पराजय के कर्इ दौरों के बाद पूंजीवाद ने सामंतवाद को निर्णायक शिकस्त दी थी । उसी पूंजीवाद को आसानी के साथ And कम समय में शिकस्त देना समाजवाद के लिए सम्भव नहीं था। लेनिन ने इस विषय में कहा था- ‘समाजवाद में सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व Single ऐसे वर्ग द्वारा चलाये जाने वाला वर्ग संघर्ष है जो विजयी हुआ है और इसने पूंजीपति वर्ग के खिलाफ सत्ता हाथ में ले ली है। जो पराजित हुआ है, ऐसा पूंजीपति वर्ग जो विलुप्त नहीं हुआ है। जिसने प्रतिरोध करना बंद नहीं Reseller है। बल्कि अपने प्रतिरोध को तीव्र कर दिया है।’ लेनिन ने उक्त कथन में समाजवाद को पतन की ओर ले जा सकने वाले भविष्य के खतरे के प्रति आगाह Reseller था। कोर्इ भी दो वर्गों के संघर्ष में इस प्रकार की सम्भावना बनी रहती है।
स्टालिन काल के समाजवादी दौर ने लेनिन की इस उक्ति को सहीं सिद्ध Reseller। समाजवादी निर्माण की ऐतिहासिक उपलब्धियों और शानदार जीतों के दौर में सर्वहारा वर्ग के महान नेता स्टालिन की मुख्य और गम्भीरतम गलती का स्रोत दार्शनिक – सैद्धांतिक था। वह गलती यह थी कि 1936 र्इ. में उन्होंने निजी स्वामित्व के खात्मे से यह निष्कर्ष निकाला कि, शोषक वर्गों और वर्ग संघर्ष का देश के भीतर अब अस्तित्व समाप्त हो गया है। सर्वहारा अधिनायकत्व की मुख्य Need अब बाहरी दबावों- आक्रमणों से समाजवाद को बचाने के लिए ही है। इसी निष्कर्ष के आधार पर स्टालिन के समय से न केवल अंतराष्ट्रीय स्तर पर बल्कि व्यावहारिक स्तर और आनुभाविक तरीके से देश के भीतर भी बुर्जुआ तत्वों के विरूद्ध सर्वहारा अधिनायकत्व के अंतर्गत सतत् क्रांति नहीं की जा सकी। समाज में नये बुर्जुआ तत्व पैदा होते रहे। उनका आधार विस्तारित होता रहा। चूंकि राज्य सत्ता सर्वहारा वर्ग के हाथों में बनी रही थी इसलिए गम्भीर गलतियों को भी ठीक करके समाजवादी क्रांति को आगे बढ़ाने की सम्भावना मौजूद रही। पूंजीवादी पुनर्स्थापना की शुरूआत केवल तभी हो सकी जब ख्रुश्चेव ने सर्वहारा अधिनायकत्व को तिलांजलि देकर बुर्जुआ अधिनायकत्व का सत्ता में प्रभाव बढ़ा दिया।
1. रूस में ख्रुश्चेव काल –
5 मार्च 1953 र्इ. में सोवियत रूस के प्रधानमंत्री स्टालिन की मृत्यु हो गर्इ। इस घटना का रूस की राजनीतिक स्थिति पर काफी प्रभाव पड़ा। स्टालिन अन्य नेताओं की अपेक्षा अधिक कठोर And उग्र था। वह पश्चिमी देशों के प्रति कठोर विदेश नीति को अपनाने का समर्थक था। 6 मार्च को जार्जी मेलेन्काव प्रधानमंत्री बने। 8 अगस्त को उन्होंने नर्इ आर्थिक नीति की घोषणा की। इन नीतियों से प्रमुख सोवियत नेता Agree नहीं थे। 1958 र्इ. में रूस के नये प्रधानमंत्री ख्रुश्चेव (ज्ञीतनेबींअम) बने। उसने स्टालिन की नीतियों का परित्याग करते हुए समझौता वादी नीति का अनुसरण Reseller। 15 सितम्बर 1959 र्इ. को ख्रुश्चेव ने अमरीका की यात्रा की। अमरीकी राष्ट्रपति आइजन हावर के साथ मिलकर राजनीतिक And सैन्य समस्याओं पर विचार करने का निर्णय लिया। सन् 1962 र्इ. से ख्रुश्चेव ने अमरीका के सामंजस्य से तनाव शैथिल्य की नीति को अपनाने के लिए मार्ग प्रशस्त Reseller था। ख्रुश्चेव ने कहा- ‘विभिन्न प्रकार की सामाजिक व्यवस्था वाले राष्ट्र न केवल Single साथ रह सकते है वरन् उन्हें आपसी संबंधों को सुधारने तथा पारस्परिक सहयोग को बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए। इस प्रकार सोवियत संघ में उसका कद काफी ऊंचा हो गया था।
2. चीन And सोवियत संघ के सम्बन्ध –
रूस चीन के कोरिया And मंचूरिया में आर्थिक हित देखता था। इन हितों में जापान बाधक था। अत: रूस ने चीन का सहयोग करने की नीति अपनार्इ। रूस ने चीन को आर्थिक सहायता भी की। इस सहायता के बदले रूस ने अपने हितों की पूर्ति की। चीन में 1921 र्इ. में कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना हुर्इ। डॉ. सन्यात सेन के कुओमिंगतांग दल को रूसी ढंग में ढालने के लिए रूस ने सलाहकार के Reseller में बोरोडीन And ब्लूशर को चीन भेजा। परंतु कुओमिंगतांग And कम्युनिस्टों के बीच चीन में गृहFight हुआ तो रूस ने कम्युनिस्टों की मदद की थी। 1949 र्इ. को स्टालिन के 71वें जन्मोत्सव में भाग लेने माओत्सेतुंग रूस गये And दो माह वहीं रहे। 1950 र्इ. में रूस And चीन के बीच पारस्परिक सहायता And सामंजस्य बढ़ाने हेतु 30 वर्षों के लिए Single संधि हुर्इ। इसके According Agreeि हुर्इ कि यदि जापान भविष्य में दोनों देश में किसी पर भी आक्रमण करता है तो दोनों देश मिलकर उसका मुकाबला करेंगे। 1960 र्इ. में इसके विपरीत कम्यूनिस्ट पार्टी के अधिवेशन में चीनी प्रधानमंत्री चाऊएनलार्इ And रूसी प्रधानमंत्री ख्रुश्चेव के बीच ख्ुाले तौर पर झगड़ा हुआ And चाऊएनलार्इ अधिवेशन को बीच में ही छोड़कर पीकिंग लौट गये। रूस ने चीन की विकास योजनाओं में लगे समस्त सोवियत वैज्ञानिकों को तीन दिन का नोटिस देकर बुला लिया। चीन ने रूस पर आरोप लगाया कि उसने चीन से 1390 विशेषज्ञों को वापस बुलाकर तकनीकी सहयोग वाली 257 योजनाओं को रद्द Reseller है। भारत-चीन के बीच तनाव के दौर में रूस द्वारा भारत का सहयोग किये जाने And चीन को इंकार करने पर आपत्ति उठार्इ। इस प्रकार आपसी सामंजस्य And समझौते का दौर विवाद में परिणत होने लगा था। 8 सितम्बर 1976 र्इ. में कट्टर माक्र्सवादी नेता माओत्सेतुंग की चीन में मृत्यु हो गर्इ। माओत्सेतुंग की मृत्यु के पश्चात सोवियत रूस के साथ चीन का वैचारिक संघर्ष समाप्त हो रहा था, परंतु राजनीतिक तनाव में कमी नहीं आर्इ। चीन में अब उदारवादी युग का आरम्भ होने लगा था।
3. पूर्वी यूरोप, चेकोस्लोवाReseller, हंगरी And पोलैण्ड में उथल-पुथल –
द्वितीय विश्वFight के पश्चात निरस्त्रीकरण को लेकर सोवियत संघ का पश्चिमी शक्तियों से मतभेद बना रहा। इसी का परिणाम शीत Fight था। स्टालिन ने पूर्वी यूरोप के प्रमुख देशों चेकोस्लोवाReseller यूगोस्लाविया And पोलैण्ड के साथ पारस्परिक सहयोग की संधि कर ली थी। 1948 र्इ. तक सोवियत संघ ने समाजवाद को अल्बानिया हंगरी रूमानिया बल्गारिया And पूर्वी जर्मनी तक फैला दिया। परंतु ये देश स्टालिन की नीतियों से पूर्णत: संतुष्ट नहीं थे। 1958 र्इ. में ख्रुश्चेव के प्रधानमंत्री बनते ही पूर्वी यूरोप की राजनीति में उथल-पुथल शुरू हो गर्इ। पोलेण्ड के राष्ट्रवादी नेता गोमुल्का को भी स्टालिन द्वारा बंदी बना लिया गया। पोलेण्ड रूस के प्रभाव And स्टालिन की तानाशाही से तृस्त था। जून 1957 र्इ. में पोलेण्ड के मजदूरों ने बेहतर मजदूरी And बेहतर जीवन स्तर के लिए विद्रोह कर दिया। वारसा की रूसी कठपुतली सरकार ने इसे दबाने के प्रयास किये। लेकिन कोर्इ परिणाम नहीं निकला। ख्रुश्चेव ने समझौतावादी रूख अख्तियार Reseller। गोमुल्का को रिहा कर दिया गया। तथा पोलेण्ड को साम्यवादी देशों के गुट के बाहर भी व्यापार करने की स्वतंत्रता प्रदान की। पोलेण्ड की तरह हंगरी भी रूस के साम्यवादी चंगुल से मुक्त होने को छटपटा रहा था। हंगरी के प्रधानमंत्री इमरे-नैगी ने गैर साम्यवादी दलों को शामिल कर सरकार बनाने की योजना बनार्इ And मास्को के साथ सम्बन्ध समाप्त कर दिये। 24 अक्टूबर 1956 र्इ. को सोवियत सेना ने हंगरी में प्रवेश Reseller And हंगरी के विद्रोह को कुचल दिया। 200 से अधिक को मृत्युदंड And Single लाख से अधिक को गिरफ्तार कर लिया गया। नैगी को मृत्युदंड दिया गया। Single विश्वस्त साम्यवादी नेता कादिर को हंगरी का प्रधानमंत्री बनाया। हंगरी में भी रूस ने अपने आर्थिक नियंत्रण हटा लिए And Needनुसार आर्थिक नीतियां अपनाने की स्वतंत्रता प्रदान की।
चेकोस्लोवाReseller में सोवियत समर्थक कट्टर साम्यवादी एण्टोनिन नावोत्नी का शासन था। इससे चेाकेस्लोवाReseller की जनता अAgree थी। रूस चेकोस्लोवाReseller के आर्थिक व्यवहार को भी नियंत्रण में रखे हुए था। इस तानाशाही पूर्ण रवैये के विरोध में जब चैकवासियों ने विरोध प्रदर्शन Reseller तो नावोत्नी ने इन विद्रोहों का सशस्त्र दमन Reseller। विरोध के अधिक बढ़ने पर बाध्य होकर एण्टोनिन नावोत्नी ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद अलेक्जेंडर दुबचेक चेक के King बने इन्होंने सामाजिक और आर्थिक सुधार लागू किये। चेक में साम्यवादी हस्तक्षेप को समाप्त कर दिया गया।
जब ब्रेझनेव रूस के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने इन नीतियों का विरोध Reseller और 1968 र्इ. में चेकोस्लोवाReseller पर आक्रमण कर दिया। कर्इ माह तक चेक प्रतिरोध चलता रहा। ब्रेझनेव ने अपनी अनुचित कार्यवाही को ब्रेझनेव सिद्धांत के तहत उचित बताया। इस सिद्धांत के तहत- यदि किसी साम्यवादी देश में साम्यवादी अस्तित्व खतरे में दिखार्इ देगा तो देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना पूर्णत: उचित है। 1980 र्इ. में रूस ने चेकोस्लोवाReseller पर आर्थिक पाबंदियां लगा दी। फलत: साम्यवादी सरकार गिर गर्इ।