संसद का गठन
संसद का गठन
संविधान के अनुच्छेद 79 में संसद के गठन के लिए उपबंध Reseller गया है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि संघ के लिए Single संसद होगी जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी जिनके नाम राज्य सभा और लोक सभा होंगे। इस प्रकार संसद के तीन अंग हैं- (1) राष्ट्रपति, (2) राज्य सभा और, (3) लोक सभा। राष्ट्रपति संसद का भाग वैसे ही है जैसे कि इंग्लैण्ड में सम्राट। वह आरम्भिक अभिभाषण देने के प्रयोजन से ही संसद में ही बैठता है अन्यथा नहीं। किन्तु संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक उसकी अनुमति के बिना विधि नहीं बन सकता है। कोर्इ विधेयक जब दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाता है तो उसके बाद वह राष्ट्रपति के पास उसकी अनुमति के लिए भेजा जाता है, अनुमति मिल जाने पर वह अधिनियम हो जाता है।
Indian Customer संविधान संघ के विधानमंडल Meansात् संसद की संCreation में ब्रिटिश नमूने का अनूसरण करता है। ग्रेट ब्रिटेन में क्राउन संसद का अंग है। फिर भी, Second सदन Meansात राज्य सभा की संCreation यूनार्इटेड किंग्डम में हाउस ऑफ लार्ड्स से भिन्न है। इस सम्बन्ध में अमरीकन संविधान में सीनेट के नमूने को स्वीकार Reseller गया है। परन्तु संयुक्त राज्य अमरीका में राष्ट्रपति विधानमण्डल Meansात् कांग्रेस का भाग नहीं है।
भारत में लोकसभा का प्रत्यक्ष Reseller से निर्वाचन Reseller जाता है और इस प्रकार वह इंग्लैण्ड में हाउस ऑफ कामन्स के समReseller है। वह जनता की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है और उसको सारभूत शक्तियाँ प्रदान की गर्इ हैं। यह मन्त्रिपरिषद और वित्त का नियन्त्रण करती है। भारत की संचित निधि से व्यय के लिए लोकसभा का पूर्व अनुमोदन आवश्यक है।
संसद की संCreation
1. राज्यसभा
राज्य सभा में 250 से अधिक सदस्य नहीं होंगे जिनमें से (क) 12, राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा में विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव के कारण नामनिर्दिष्ट किए जायेंगे और संघ राज्य क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधि होंगे। राज्यसभा में राज्यों के और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों द्वारा भरे जाने वाले स्थानों का आवण्टन चौथी अनुसूची में इस निमित्त अन्तर्विश्ट उपबन्धों के According होगा। प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के According Singleल संक्रमणीय मत द्वारा Reseller जाएगा। संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि ऐसी रीति से चुने जाएंगे जो संसद विधि द्वारा विहित करें। इस शक्ति के अधीन संसद यह विहित Reseller है कि राज्य सभा में संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि का निर्वाचन उस राज्य क्षेत्र के निर्वाचन मण्डल द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के According Singleल संक्रमणीय मत द्वारा Reseller जाएगा।
इस प्रकार राज्य सभा में परिसंघ की इकार्इयों के प्रतिनिधि होते हैं। इससे उसका परिसंघीय स्वReseller प्रतिपादित होता है। फिर भी इसमें अमरीका के द्वितीय सदन के गठन में प्रयुक्त राज्यों के समान प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त का अनुसरण नहीं Reseller गया है। भारत में राज्य सभा में राज्यों के प्रतिनिधियों की संख्या 1 से 34 तक है।
राज्य सभा के लिए नाम निर्देशन करने में राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है। न्यायालय राष्ट्रपति की नाम निर्देशन करने की शक्ति में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। राज्य सभा सभा में निर्वाचित और नाम निर्देशित सदस्यों की प्रास्थिति में इस बात को छोड़कर कोर्इ भेद नहीं है कि पूर्ववर्ती राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग ले सकते हैं, लेकिन बादवर्ती ऐसा नहीं कर सकते हैं। भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। यह Single स्थायी निकाय है जिसके Single तिहार्इ सदस्य प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर निवृत्त हो जाते हैं। इस प्रकार कोर्इ व्यक्ति 6 वर्ष तक राज्य सभा का सदस्य रह सकता है।
2. लोकसभा
लोकसभा जनता का सदन है और जनता द्वारा प्रत्यक्ष Reseller से निर्वाचित Reseller जाता है। इसमें 552 से अधिक सदस्य नहीं होंगे जिनमें (क) राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए सदस्य 530 से अधिक नहीं होंगे जिनमें (ख) संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि 20 से अधिक नहीं होंगे। (ग) राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित दो से अधिक आंग्ल-Indian Customer समुदाय के प्रतिनिधि होंगे यदि राष्ट्रपति की यह राय है कि लोक सभा में आंग्ल Indian Customer समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है।
लोक सभा का निर्वाचन
लोक सभा के निर्वाचन के निमित राज्यों को प्रादेशिक क्षेत्रों में विभाजित या वर्गीकृत Reseller जाएगा। सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर राज्य की जनता द्वारा Reseller जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति जो नागरिक है, अठारह वर्ष की आयु से कम का नहीं है और अनिवास, चित्तविकृति, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण के आधार पर निरर्हित नहीं है ऐसे निर्वाचन में मत देने का हकदार होगा। अनुसूचित जातियों और जनजातियों को छोड़कर अन्य किसी अल्पसंख्यक वर्ग के लिए स्थानों का कोर्इ आरक्षण नहीं होगा। इस प्रकार सदन के अधिकांश सदस्य जनता के प्रत्यक्ष Reseller से निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं।
संघ राज्य क्षेत्रों के सदस्यों का निर्वाचन ऐसी रीति से होगा जो संसद विधि द्वारा विहित करे। इस शक्ति के अनुसरण में संसद ने यह अधिनियमित Reseller है कि संघ राज्य क्षेत्रों के All प्रतिनिधि प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने जाएंगे।
स्थानों का आबण्टन-लोकसभा के लिए निर्वाचन प्रत्यक्ष है। इसलिए यह अपेक्षित है कि भारत के राज्यक्षेत्र को ऐसे निर्वाचनों के लिए उपयुक्त प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभजित Reseller जाए। अनुच्छेद 81 में दो बातों में प्रतिनिधित्व की समानता है : (क) विभिन्न राज्यों के बीच, और (ख) Single ही राज्य के विभिन्न राज्य क्षेत्रों के बीच, जैसे-
- प्रत्येक राज्य में लोकसभा में आबण्टित स्थानों की संख्या ऐसी होगी कि उस संख्या से राज्य की जनसंख्या का अनुपात All राज्यों के लिए यथासाध्य Single ही हो। यह उपबन्ध किसी राज्य को लोक सभा में स्थानों के आबण्टन के प्रयोजन के लिए तब तक लागू नहीं होगा जब तक उस राज्य की जनसंख्या साठ लाख से अधिक नहीं हो जाती है और
- प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित Reseller जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबण्टित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य Single ही हो।
प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर राज्यों को लोक सभा में स्थानों के आबण्टन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुन: समायोजन Reseller जाएगा जो संसद विधि द्वारा अवधारित करे। परन्तु ऐसे पुन: समायोजन के लोक सभा में प्रतिनिधित्व पर तब तक कोर्इ प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय विद्यमान लोक सभा का विघटन नहीं हो जाता है। परन्तु ऐसे पुन: समायोजन का प्रभाव उस तारीख से होगा जिसको राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिश्ट करे और ऐसे पुन: समायोजन के प्रभावी होने तक लोकसभा के लिए कोर्इ निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पुन: सामायोजन के First विद्यमान हैं।
परन्तु यह और भी कि जब तक सन् 2026 के बाद की गर्इ पहली जनगणना के सुसंगत आँकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं तब तक यह आवश्यक नहीं होगा कि- (i) सन् 1971 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित Reseller गया राज्य को लोकसभा के स्थानों का आवण्टन; और (ii) सन् 2001 की जनगणना के आधार पर Reseller जा सकने वाला प्रत्येक राज्य का प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन इस अनुच्छेद के अधीन पुन: समायोजित Reseller जाए।
संसद के सदनों की अवधि
राज्य सभा का विघटन नहीं होगा, किन्तु उसके सदस्यों में से यथासम्भव निकटतम Single-तिहार्इ सदस्य, संसद द्वारा विधि द्वारा इस निमित किए गए उपबन्धों के According, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य निवृत्त हो जाएंगें। इसका यह Means हुआ कि हर Second वर्ष के प्रारम्भ पर राज्य सभा के Single-तिहार्इ सदस्यों के लिए निर्वाचन होगा और कोर्इ व्यक्ति राज्य सभा का छह वर्ष तक सदस्य रह सकता है। राज्य सभा के सदस्यों की निवृत्ति का क्रम राज्य सभा (सदस्यों की पदावधि) आदेश, 1952 द्वारा शासित होता है। इस आदेश को राष्ट्रपति ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में बनाया है।
लोक सभा का सामान्य जीवन काल पांच वर्ष हैं किन्तु राष्ट्रपति उसे इसके पूर्व विघटित कर सकता है। पाँच वर्ष की अवधि की समाप्ति का परिणाम लोक सभा का विघटन होगा। इस सम्बन्ध में अनुच्छेद 83 (2) में उपबंध इस प्रकार Reseller गया है- ‘‘लोक सभा, यदि First विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने First अधिवेशन के लिए नियत तारीख से पाँच वर्ष तक बनी रहेगी, इसके अधिक नहीं और पाँच वर्ष की उक्त अवधि की समाप्ति का परिणाम लोक सभा का विघटन होगा।’’
परन्तु उक्त अवधि को, जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, तब, संसद विधि द्वारा, ऐसी अवधि के लिए बढ़ा सकेगी, जो Single बार में Single वर्ष से अधिक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के बाद उसका विस्तार किसी भी दशा में छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा। इस प्रकार संविधान ने आपात् की अवधि के दौरान संसद द्वारा अपनी अवधि को बढ़ाने की शक्ति को परिसीमित Reseller है। यह विस्तार Single बार में Single वर्ष से अधिक अवधि के लिए नहीं Reseller जा सकता। इसका Means यह है संसद के Single ही अधिनियम द्वारा यह अवधि बढ़ार्इ जा सकती है और किसी भी दशा में आपत् की उद्घोषणा के प्रवृत्त न रहने के बाद यह अवधि छह मास के आगे विस्तारित नहीं की जा सकती। यदि आपात स्थिति Single वर्ष से आगे बनी रहती है तो संसद का जीवन काल फिर से Single अन्य अधिनियम द्वारा Single वर्ष और आगे बढ़ाया जा सकता है।
संसद के सदस्य हेतु अर्हता
कोर्इ व्यक्ति संसद के किसी स्थान को भरने के लिये चुने जाने के लिये अर्हित तभी होगा जब-
- वह भारत का नाक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निर्मित प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्राReseller के According शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है, जैसे- ‘‘मैं अमुक, जो राज्य सभा (लोक सभा) में स्थान भरने के लिये अभ्यथ्र्ाी के Reseller में नाम निर्देशित हुआ हूँ र्इश्वर की शपथ लेता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा और मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा,’’
- वह राज्य सभा में स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का और लोक सभा में स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का है। और
- उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएं हैं जो संसद द्वारा बनार्इ गर्इ किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस निर्मित विहित की जाएं। संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अधीन संसदीय सदस्यता के लिए आवश्यक अर्हताएं विहित Reseller है। उदाहरण के लिए कोर्इ व्यक्ति राज्य सभा के सदस्य के Reseller में चुने जाने के लिए अर्हित नहीं होगा जब तक कि वह संपृक्त राज्य में किसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता नहीं है। इसी प्रकार कोर्इ व्यक्ति लोक सभा का सदस्य तभी होगा जब वह भारत में किसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता है।
सदस्यता के लिए निर्हताएं
अनुच्छेद 102 के अधीन-(1) कोर्इ व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा।
- यदि वह भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर, जिसकों धारणा करने वाले का निरर्हित न होना संसद ने विधि द्वारा घोषित Reseller है, कोर्इ लाभ का पद धारण करता है। इसके स्पष्टीकरण में यह कहा गया है कि कोर्इ व्यक्ति केवल इस कारण भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का या ऐसे राज्य मंत्री है;
- यदि वह विकृतचित्त है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है;
- यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है;
- यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नगरिता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निश्ठा या अनुिश्क्त को अभिस्वीकार किए हुए हैं;
- यदि वह संसद के किसी सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा यदि वह दसवें अनुसूची के अधीन इस प्रकार निरर्हित हो जाता है।
अनुच्छेद 102 के According कोर्इ भी अयोग्यता किसी व्यक्ति में विद्यमान होने पर वह संसद का सदस्य नहीं बन सकता जबकि संविधान के अनुच्छेद 191 के According कोर्इ भी अयोग्यता विद्यमान होने पर वह राज्य के विधान मण्डल का सदस्य नहीं बन सकता है। इसके अलावा लोक प्रतिनिधित्व 1951 की धारा 8 से लेकर 10 तक कुछ अन्य अयोग्यताएं भी है जो किसी व्यक्ति की संसद या राज्य के विधानमण्डल में सदस्यता के लिए बाधक होगी। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा-8 दोषसिद्ध पर आधारित निरर्हता के बारे में बताती है।