संचार क्या है?
संचार में हम लोग कुछ चीजों का आदान-प्रदान करते हैं, तो कुछ लोग इसे सहभागिता की प्रक्रिया मानते हैं। यह तो हम All समझते हैं कि संचार है क्या। हम All अधिकतर समय संचार की प्रक्रिया में ही लगे रहते हैं। हम कभी संदेश प्रेषक तो कभी प्रापक की भूमिका निभाते हैं। कई बार संचार करने के लिए कुछ मशीनी माध्यमों का प्रयोग भी करना पड जाता है। सफलता व अन्य All उद्देश्यों को प्राप्त करने में संचार सहायक बनता है।
उपर्युक्त बातों के आधार पर हम संचार का वर्णन कर सकते हैं। संचार पर Discussion भी कर सकते हैं। लेकिन जैसे ही हम संचार को परिभाषित करने की कोशिश करेंगे, हम पाएंगे कि यह बहुत ही जटिल कार्य है।
आइए देखते हैं कुछ विशेषज्ञों ने संचार को किस प्रकार परिभाषित Reseller है।
- Larry L. Barker & D. A. Barker के According : किसी Single निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए Single व्यवस्था के दो घटकों द्वारा की जाने वाली अन्योन्यक्रिया को संचार कहा जाता है। (इनके According संचार गतिशील, परिवर्तनशील व अंतहीन प्रक्रिया है।)
- J. P. Legan के According : संचार वह प्रक्रिया है, जिसमें दो या अधिक व्यक्ति आपस में किसी Single संदेश पर समान समझ पैदा करने के लिए विचारों, भावों, तथ्यों, प्रभावों इत्यादि का आदान-प्रदान करते हैं।
- Brooker के According : संदेश के माध्यम से Single व्यक्ति से Second व्यक्ति तक कोई Means प्रेषित करने की प्रक्रिया संचार है।
- Weaver के According : संचार नामक प्रक्रिया की सहायता से हम दूसरों को आसानी से प्रभावित कर सकते हैैं।
- Thayer के According : पारस्परिक समझ, विश्वास व अच्छे Humanीय संबंध बनाने के लिए विचारों व सूचनाओं का आदान-प्रदान करने की प्रक्रिया संचार है।
- L. Brown के According : विचार, भाव और कर्तव्य इत्यादि के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को संचार कहते हैं।
- Wilbur Schramm के According : उद्दीपकों का प्रसारण ही संचार है।
- John Harris के According : समानता स्थापित करने की प्रक्रिया ही संचार है।
- Dennis McQuil के According : संचार लोगों के बीच में समानता की भावना को बढ़ता है, लेकिन संचार होने के लिए समानता होना Single आवश्यक शर्त है। संचार लगभग वही है जो कि हम अपने दैनिक क्रिया कलापों में करते हैं। लोगों के आपसी संबंधों से इसका काफी कुछ लेना देना है। यह काफी साधारण से काफी जटिल हो सकता है। हम संचार कैसे करें, यह काफी हद तक संदेश, प्रेषक व प्रापक की प्रकृति पर निर्भर करता है। यहां संचार की कुछ और परिभाषाएं दी गई हैं।
संचार वह प्रक्रिया है, जिसमें लोग भावों की सहभागिता करते हैं। Single व्यक्ति (संचारकर्ता) द्वारा दूसरों (प्रापक) के व्यवहार में बदलाव के लिए उद्दीपक प्रसारित करने की प्रक्रिया संचार है।
संचार की श्रेणियां
अन्त:व्यैक्तिक संचार
मनुष्य द्वारा अपने आप से बात करने यानी कि दिमाग में कुछ सोचने विचारने की प्रक्रिया को अन्त:व्यैक्तिक संचार कहा जाता है। सोच, विचार प्रक्रिया, भावनात्मक प्रतिक्रिया, दृष्टिकोण, मूल्य और विश्वास, स्व अवधारणा, Meansों की Creation व उनकी व्याख्या इसी संचार के अन्तर्गत आते हैं।
अन्त:व्यैक्तिक संचार
दो या दो से अधिक लोगों के बीच होने वाले संचारीय आदान-प्रदान की प्रक्रिया अन्त:व्यैक्तिक संचार कहलाती है। इस प्रकार के संचार में संदेश प्रसारित करने के लिए Single से अधिक स्रोतों का भी प्रयोग Reseller जा सकता है। जैसे हम शाब्दिक संचार करते वक्त शारीरिक भाव भंगिमाओं से भी कुछ संदेश प्रेषित कर रहे होते हैं।
समूह संचार
सांचे दृष्टिकोण, उद्देश्य या हितों वाले कुछ लोगों का समूह आपस में जो संचार करता है वह समूह संचार की श्रेणी में आता है। इस संचार के प्रतिभागी सांझे मूल्य या व्यवहार के मानक प्रदर्शित करते हैं।
जन माध्यम
आमतौर पर जनमाध्यमों को परिभाषित करते हुए कहा जाता है कि “किसी संदेश का व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन व प्रसार करने वाले संगठन जनमाध्यम हैं।” 1939 में हैरबर्ट ब्लूमर ने Human Single़ित्रकरण की चार श्रेणियां निर्धारित की थीं। उनके According Single जगह Singleत्रित होने वाले लोगों को समूह, जन समूह, भीडò और मास कहा जाता है। किसी भाषण, लेख, संकेत या व्यवहार के माध्यम से विचार, सूचना, संदेश इत्यादि का आदान-प्रदान ही संचार है। यह सूचना या विचारों को प्रभावशाली तरीके से दूसरों तक पहुंचाने के लिए सही Wordों व संकेतों के चयन की तकनीक व कला है।
जनसंचार के क्षेत्र में हम उन साधनों के बारे में भी बात करते हैं, जिनमें काफी तीव्र गति से संदेश को काफी लोगों तक पहुंचाया जाता है। उदाहरण के लिए मुद्रण अथवा प्रसारण के माध्यम। इसमें सूचना के प्रसारण से जुडे विभिन्न पेशों जैसे कि विज्ञापन, पत्रकारिता इत्यादि को शामिल Reseller जाता है। इस प्रणाली में हम ई मेल, टीवी, टेलीफोन इत्यादि की तकनीक के माध्यम से संदेश प्रेषित करते हैं। संचार, खासकर Human संचार तो इन चीजों को समझने से ही जुडे हुआ है कि मनुष्य संचार कैसे करता है।
अपने आप से : अन्त:व्यैक्तिक संचार
Second व्यक्ति से : अन्तव्र्यैक्तिक संचार
समूह के अन्दर : समूह संचार
संगठन के अंदर : सांगठनिक संचार
अनेक लोगों के साथ : जन संचार
संस्कृतियों के पार : क्रास कल्चरल संचार
साधारणतम Wordों में हम संचार को S-R से described करते हैं। यहां वर्ण S का Means उद्दीपक (Stimuli) व R का Means जवाब (Response) से है। प्राप्त Reseller गया संदेश उद्दीपक है, जबकि उस संदेश की प्रतिक्रिया जवाब है।
इसे प्रेषक-प्रापक माडल के नाम से भी जाना जाता है। यह संचार के प्रारम्भिक माडलों में से Single है। इस माडल में संचार के सिर्फ दो ही तत्व बताए गए हैं। यह कहता है कि हर संचार में इतनी क्षमता तो अवश्य होती है कि वह कोई प्रभाव पैदा कर पाए। कई बार यह प्रभाव साधारण व प्रत्यक्ष होता है तो कुछ मामलों में यह जटिल व विलम्बित भी हो सकता है। यह माडल संचार की प्रक्रिया का Single और महत्वपूर्ण पहलू दर्शाता है कि All संचार Single व्यक्तिगत स्तर पर होते हैं। Meansात् आप भले ही काफी लोगों तक Single ही संदेश पहुंचा दें, लेकिन उस पर हर आदमी की प्रतिक्रिया अलग होगी।
सामान्यतया: संचार को Single गतिविधि के तौर पर देखा जाता है। लेकिन वास्तव में यह Single प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में सूचना, विचार, भाव, कौशल, ज्ञान इत्यादि आपस में बांटे जाते हैं। यह सब काम कुछ ऐसे चिह्नों के माध्यम से Reseller जाता है, जिनका Means उस समाज के All लोग समझते हों।
संचार ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें मनुष्य कुछ सीखता है। Meansात् इस प्रक्रिया में हम दूसरों से सीखने की कोशिश करते हैं। यह गतिशील है व परिस्थिति के According इसकी प्रकृति भी परिवर्तित होती रहती है। अत: संचार को विचारों, भावों, अनुभवों की सहभागिता की प्रक्रिया कहा जा सकता है।
संचार Singleतरफा प्रक्रिया न होकर दोतरफा है। किसी भी स्रोत से संदेश प्राप्त करने के बाद प्रापक अपनी प्रतिक्रिया उस तक पहुंचाने की कोशिश करता है। प्रापक की यह प्रतिक्रिया प्रतिपुष्टि होती है।
संचार के तत्व
हम First ही बात कर चुके हैं कि संचार Single प्रक्रिया है और किसी भी प्रक्रिया के पूरे होने में कुछ तत्व सहायक भूमिका निभाते हैं। यहां हम संचार की प्रक्रिया के तत्वों की बात करेंगे। संचार की प्रक्रिया का सबसे पहला तत्व है स्रोत। इसको प्रेषक व संचारकर्ता भी कहा जाता है। लेकिन संचार की प्रक्रिया का अध्ययन करने पर हमें पता चलता है कि प्रेषक सिर्फ संदेश भेजता ही नहीं, बल्कि वह संदेश ग्रहण भी करता है।
संचार की प्रक्रिया का दूसरा तत्व प्रापक है। वह संदेश प्राप्त करता है और उसमें निहीत Means को समझने के लिए उसका विसंकेतीकरण करता है। यहां गौर करने लायक बात यह है कि प्रापक सिर्फ संदेश ग्रहण ही नहीं करता, अपितु वह संदेश भेजता भी है। संचार की चक्रीय प्रकृति के कारण स्रोत व प्रापक के बीच भूमिकाओं की अदला-बदली चलती रहती है। भूमिकाओं की इस अदला-बदली के चलते हम लंबे समय तक स्रोत व प्रापक Wordों का प्रयोग नहीं कर सकते। संचार के इन दो तत्वों को दर्शाने के लिए हम प्रतिभागी Word का प्रयोग कर सकते हैं। संचार में भाग लेने वाले स्रोत व प्रापक को प्रतिभागी कहने के पीछे कारण यह है कि संचार काफी प्रतिभागी, लोकतांत्रिक व समायोजक प्रकृति का होता है।
संचार का अगला तत्व है संदेश। संदेश शाब्दिक या अशाब्दिक दोनों ही प्रकार के हो सकते हैं। संदेश आमतौर पर ऐसी भाषा में होता है, जिसे All प्रतिभागी समझ सकें। यह मौखिक, लिखित, मुद्रित, दृश्य या दृश्य-श्रव्य किसी भी स्वReseller में हो सकता है।
इसके बाद बारी आती है माध्यम की। यह वह माध्यम है, जिससे हम संदेश को प्रसारित करते हैं। डाक या जनसंचार के किसी भी माध्यम से संदेश प्रसारित Reseller जा सकता है। प्रतिपुष्टि संचार का अगला तत्व है। यह संदेश के प्रापक भागीदार द्वारा व्यक्त की गई प्रतिक्रिया है, जो कि प्रेषक के पास भेजी जाती है। प्रेषक भागीदार को प्रतिपुष्टि या तो उसी माध्यम से भेजी जाती है, जिससे उसने संदेश भेजा था या फिर प्रापक (जो अब प्रेषक की भूमिका में है) अपनी मर्जी से किसी और माध्यम का चुनाव कर सकता है। संचार की प्रक्रिया को निरंतर चलाए रखने में प्रतिपुष्टि काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
शोर भी संचार का Single महत्वपूर्ण तत्व है। यह कुछ और नहीं बल्कि संचार की राह में आने वाले अवरोधक हैं। यह अवरोधक भौतिक या बौद्कि दो प्रकार के हो सकते हैं। इनको संदेश में खलल माना जाता है और Single हद तक इनको नियंत्रित भी Reseller जा सकता है।
अब हम समझ चुके हैं कि संचार चक्रीय व अन्योन्यक्रियात्मक प्रक्रिया है। कभी भी निर्वात में संचार नहीं हो सकता है। इसके लिए विभिन्न तत्वों की Need होती है। विभिन्न परिस्थितियों और उनमें संचार के विभिन्न तत्वों की मौजूदगी के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि संचार चार स्तरों पर होता है। संचार के यह चार स्तर इस प्रकार हैं:
- अन्त:व्यैक्तिक संचार
- अन्तव्र्यैक्तिक संचार
- समूह संचार
- जनसंचार
संचार के इन चार स्तरों या संदर्भों को आमतौर पर संचार के प्राReseller कहा जाता है। यह चारों स्तर प्रतिभागियों की संख्या, प्रतिभागियों के बीच अपनेपन का भाव, बढती जटिलता और प्रतिपुष्टि की प्रकृति इत्यादि के आधार पर Single-Second से भिन्न हैं।
संचार की प्रक्रिया
Single व्यक्ति से Second व्यक्ति तक सूचना प्रवाहित करने और उसे समझने की प्रक्रिया संचार है। संचार की प्रक्रिया में 6 आधारभूत तत्व समाहित रहते हैं। यह तत्व हैं- प्रेषक (संकेतक), संदेश, माध्यम, प्रापक (विसंकेतक), शोर व प्रतिपुष्टि। यह तत्व संचार को प्रभावी बनाने में किस प्रकार सहायक हैं और आप इनको किस प्रकार प्रयोग कर सकते हैं इनकी जानकारी होने पर कोई भी व्यक्ति अपना संचार कौशल विकसित कर सकता है।
सबसे First प्रेषक संचार की प्रक्रिया की शुरुआत करता है। प्रेषक यह सुनिश्चित करता है कि उसे कौन सा Means प्रेषित करना है। इसके बाद वह उसे ऐसे चिह्नों व संकेतों में परिवर्तित करता है जिनको कि संदेश प्राप्त करने वाला समझ सके। (प्रापक उस Means को कितना ग्रहण कर पाता है, यह उस पर निर्भर करता है, लेकिन प्रेषक यही सोचकर संकेतों का चयन करता है कि वह प्रापक की समझने की भाषा है।) Meansों को संकेतों में ढालने की यह प्रक्रिया संकेतीकरण कहलाती है। अब प्रेषक के पास संदेश तैयार है। फिर वह तय करता है कि संदेश किस माध्यम से प्रापक तक पहुंचाया जाए। संदेश वह सूचना या Means है, जिन्हें प्रेषक प्रापक तक भेजना चाहता है। संचार का माध्यम बोले गए Word, लिखित या मुद्रित सामग्री इत्यादि हो सकता है। मौखिक संचार आमतौर पर अनौपचारिक होता है। आधिकारिक भाषणों, कार्यालयीन सम्मेलनों इत्यादि को छोडकर यह सामान्यतया व्यक्तिगत प्रकृति का होता है। जबकि कार्यालयों या फिर जब संचार काफी लोगों के साथ जुडòा हुआ हो तो इसे लिखित स्वReseller में Reseller जाता है। इंटर आफिस मेमो इत्यादि को अनौपचारिक पड़ताल और जवाब इत्यादि के रिकार्ड के लिए संभाला जाता है। व्यक्तिगत पत्रों के अलावा All पत्र काफी औपचारिक प्रकार के होते हैं।
सूचनाओं के आदान-प्रदान व संचार की Need को काफी समय तक समय और स्थान की सीमाएं बांध नहीं पाई। ई मेल, वायस मेल, फैक्स इत्यादि ने संचार और ज्ञान की सहभागिता को बढ़ावा दिया है। कम्प्यूटर के माध्यम से लिखित संदेश के प्रसार की प्रक्रिया ई मेल है। वहीं डिजीटल प्रणाली में रिकार्ड आवाज का प्रसारण इत्यादि वायस मेल है। अब तो हमारे पास काफी संख्या में जनमाध्यम भी उपलब्ध हैं।
मौखिक संचार में अनौपचारिक बैठक, सुनियोजित सभा और जनसभा को शामिल Reseller जाता है। इस संचार में वक्ता की आवाज और प्रस्तुतिकरण की शैली काफी अन्तर पैदा करती है। दैनंदिन कार्य, निर्देशन, सूचनाओं का आदान-प्रदान और अन्तव्यर्ैक्तिक संबंधों में गर्माहट रखने के लिए अनौपचारिक बातें होना काफी आवश्यक है। आजकल सूचना प्रौद्योगिकी ने हम सबके संचार करने के तौर तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए हैं। इंटरनेट व अन्य इलैक्ट्रानिक माध्यमों ने हमें किसी भी वक्त किसी भी स्थान से सूचना प्राप्त करने लायक बना दिया है।
यहां इससे संबंधित कुछ Wordों का description दिया गया है। प्रापक वह व्यक्ति या समूह है, जिसे संदेश पहुंचाने के लिए संचार की सारी कवायद की गई। संचारित संदेश में कुछ खलल पैदा करने वाली All चीजों को शोर की श्रेणी में रखा जाएगा। प्रतिपुुष्टि यह सुनिश्चित करती है कि संचार की प्रक्रिया में आपसी Agreeि का निर्माण हुआ है। प्रापक से प्रेषक की तरफ कुछ सूचनाएं जाने की प्रक्रिया प्रतिपुष्टि कहलाती है।
संचार के कार्य
डेविड बर्लो के According संचार का मुख्य उद्देश्य Human को अपनी आधारभूत Needओं व दैनंदिन जरूरतों की पूर्ति के काबिल बनाना है। इसमें आदेश देने, प्रार्थना करने व दूसरों की प्रार्थनाओं पर गौर करने की योग्यताएं शामिल हैं।
बर्लो आगे कहते हैं: ‘संचार हमें सामाजिक संगठनों, आर्थिक संबंधों, सांस्कृतिक मूल्यों इत्यादि को समझने की क्षमता प्रदान करता है।’ यह आवश्यक है कि किसी भी संचार का उद्देश्य और उसके संदेश की अन्तर्वस्तु मनुष्यों की आम जिन्दगी के लिए प्रासंगिकता रखने वाले होने चाहिएं। संचार के क्रियात्मक भाग को प्रदर्शित करने के लिए हार्लोल्ड लासवैल ने यह प्रतिमान सुझाया था: किसने, क्या, किस माध्यम से, किसको, किस प्रभाव के साथ कहा (हार्लोल्ड लासवैल का संचार का प्रतिमान) लासवैल ने कहा था कि यह All चरण क्रियात्मक स्तर पर संचार की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। प्रभाव पर उनका इतना बल Single बार फिर संचार की क्रियात्मकता को ही दर्शाता है। मोटे तौर पर देखें तो संचार कार्य करता है: 1. सूचना देना 2. शिक्षा देना 3. मनोरंजन 4.किसी काम के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना कई लोग इस शृंखला में ज्ञानोदय के नाम से पांचवां कार्य भी जोडते हैं।
इसके अलावा भी संचार के कुछेक अतिरिक्त कार्य हैं। यह कार्य इस प्रकार हैं: 1. मूल्यांकन 2. दिशा निर्देशन 3.प्रभावित करना 4. अभिविन्यास करना।
कोई भी संचार की Resellerरेखा तैयार करते वक्त उपरोक्त में से कुछ कामों को उद्देश्यों में अवश्य शामिल Reseller जाता है। उपर्युक्त काम सही तरीके से पूरे हों इसके लिए संचार की ऐसी Resellerरेखा तैयार करना आवश्यक है जो कि प्रापक का ध्यान अपनी तरफ खींचे। ऐसे चिह्नों और संकेतों का प्रयोग Reseller जाना चाहिए, जो कि प्रापक को आसानी से समझ में आ जाएं। यह प्रापक में कुछ Needएं जागृत करे और उनकी पूर्ति के लिए उसको रास्ता सुझाए। ऐसी अवस्था में ही संचार वांछित परिणाम दे सकता है। हालांकि हमें संचार व जनसंचार में भेद को नहीं भूलना है। संचार व जनसंचार में फर्क है।
- सूचनाओं के आदान-प्रदान, सहभागिता इत्यादि की प्रक्रिया को हम संचार कहते हैं।
- जनसंचार में पेशेवर संचारकर्ताओं का Single समूह संदेश को लगातार, त्वरित गति से व व्यापक दायरे तक पहुंचाने के लिए जन माध्यमों का प्रयोग करते हैं। इसमें Single व्यापक दायरे में लोगों तक Single संदेश पहुंचाकर उन्हें किसी न किसी स्तर पर प्रभावित करने की चेष्टा की जाती है।
अन्तर्वैयक्तिक संचार में सूचनाओं की सहभागिता, कुछ जानकारी देकर या अपने जोरदार पक्ष को रखकर प्रापक को प्रभावित करना मूल उद्देश्य होता है। यदि Single व्यक्ति अपने मत इत्यादि के प्रति किसी को जीतने में कामयाब हो गया है तो संचार को सफल माना जाएगा।