शुम्पीटर का विकास प्राReseller
- The Theory of economic development – 1912
- Business cycles (2 Volumes, 1939)
- Capitalism, socialism and democracy
बेन्जामिन हिगिन्स के According शुम्पीटर 20वीं सदी में विकास मॉडल देने वाले First Meansशास्त्री थे। आर्थिक विकास के ऐतिहासिक क्रम में शुम्पीटर का महत्वपूर्ण स्थान हैं। परम्परावादी विचार-धारा तथा कार्ल माक्र्स का विचार विकास सिद्वान्त को निराशावादिता की ओर ले जाता है। यदि Single ओर हासमान नियम तथा जनसंख्या की वृद्धि स्थिर अवस्था पर पहुंचाती है तो दूसरी तरफ अन्तर्निहित विरोधाभाशों के कारण पूंजीवाद का विकास Single स्थिति पर आने के बाद ठप्प हो जाता है। शुम्पीटर का विश्लेशण इन निराशावादी चिन्ताओं से मुक्त हैं। इस प्रकार शुम्पीटर मॉडल के अध्ययन से समझ सकेंगें कि इसमेंं सहज Reseller से Single आशावादी झलक मिलती है।
शुम्पीटर के According – ‘‘आर्थिक विकास वृत्तीय प्रवाह में होने वाला Single आकास्मिक तथा असतत् परिवर्तन हैं। Meansात् संतुलन की Single ऐसी हलचल है जो पूर्व स्थापित साम्य की स्थिति को सदा के लिए बदल देती है।’’
शुम्पीटर के विकास प्राReseller का History
जोसेफ एलोइ शुम्पीटर (Josepn Alois Schumpiter) ने पहली बार 1911 में जर्मनी भाषा में प्रकाशित The Throry of Economic Development में अपना सिन्द्वात प्रस्तुत Reseller। इसका अग्रेंजी संस्करण 1934 में प्रकाशित हुआ। बाद में Business cycle (1939) और Capitalism, Socialism and democracy (1942) में इस सिद्धान्त को परिष्कृत एंव परिवर्धित Reseller गया। इन्होने विकास के सम्बन्ध में पूर्ण विचार प्रस्तुत किये है।
शुम्पीटर के विकास प्राReseller का आर्थिक जगत में महत्वपूर्ण स्थान है। शुम्पीटर के मॉडल में प्रतिष्ठित मॉडलो से भिन्नता हैं परन्तु यह प्रतिष्ठित माडलों से ज्यादा प्रभावपूर्ण है। इन्होने साहसी को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान Reseller है।
शुम्पीटर के विकास प्राReseller की मान्यताएं
- शुम्पीटर ने ऐसी Meansव्यवस्था की परिकल्पना की है जहां पूर्ण प्रतियोगिता हैं जो स्थिर साम्य की अवस्था है।
- स्थिरावस्था साम्य जहां, जहां न तो अधिक लाभ की स्थिति है और न तो हानि की स्थिति हैं न बचत है न निवेश है और न ही बेरोजगारी की स्थिति है। इन सारी चीजो को शुम्पीटर ने Single आर्थिक चक्र से बताया है। जो कृमिक Reseller से चलता रहता है। चक्रीय प्रक्रिया में Single समान उत्पादन होता रहता है।
- शुम्पीटर के According Means व्यवस्था का विकास नवप्रवर्तनों पर निर्भर करता है। और नवप्रर्वतन का कार्य उद्यमी के ऊपर निर्भर करता है।
- शुम्पीटर ने आर्थिक विकास को Single असतत् चलने वाली प्रक्रिया माना है।
शुम्पीटर का विकास प्राReseller की विवेचना
आर्थिक विकास से Means
आपकों शुम्पीटर के विकास प्राReseller का अध्ययन करने के लिए आर्थिक विकास के Means को जानना आवष्यक शुम्पीटर के According आर्थिक विकास से हमारा अभिप्राय आर्थिक जीवन में घटित होने वाले केवल उन्ही परिवर्तनों से हैं जिनको उपर से लादा नहीं जाता हैं। बल्कि वे स्वयंभूत प्रेरणाओं से भीतर से ही प्रकट होते है।
आर्थिक जीवन का चक्रीय उच्चावचन
शुम्पीटर आर्थिक विकास की प्रक्रिया की ब्याख्या चक्रीय प्रवाह ;ब्पतबनसंत सिवूद्ध से प्रारम्भ करते है। जो बिना विनाश के निरंतर चलती रहती हैं। Meansात जो प्रति वर्ण Single ही तरह से उसी प्रकार अपनी पुनरावृत्ति करता रहता है। जिस प्रकार जीवों में रक्त का संचरण होता है। इस वृत्तीय प्रवाह में प्रत्येक वर्श उसी ढंग से वहीं वस्तुये उत्पादित होती है। आर्थिक प्रणाली में कहीं प्रत्येक पूर्ति के समान मांग प्रतीक्षा करती हैं तथा प्रत्येक मांग के लिए समान पूर्ति/Second Wordों में, समस्त आर्थिक क्रियाएं Single समय समस्त Meansव्यवस्था में पुनरावृत्ति करती है।
शुम्पीटर के लिए – वृत्तीय प्रवाह Single सरिता है। जो कि श्रम शक्ति और भूमि पर निरन्तर प्रवाह हो रहे झरनों की संतुष्टि में Resellerान्तरण Reseller जाये। उनके According विकास वृत्तीय प्रवाह की दिशाओं में आकस्मिक तथा अनिरन्तर परिर्वतन संतुलन की फलन है जो First की विद्यमान संतुलन स्थिति को सदा के लिए परिवर्तित तथा विस्थापित कर देती है। शुम्पीटर के According – Meansव्यवस्था स्थिर संतुलन में रहती है तथा स्थिर संतुलन में Meansव्यवस्था पूर्ण प्रतियोगिता मूलक संतुलन में रहती है। Meansात् निम्नलिखित स्थितियां पायी जाती है।
- उत्पादन की मांग उत्पादन की पूर्ति D=S
- कीमत = औसत लागत, P=AC
- लाभ = शून्य, P=O
- ब्याज की दर = लगभग शून्य, Ri=Just O
- बेरोजगारी = नही के बराबर, D = Demand, S= Suppy, P= Profit, R= Rate of interest, N= unemployed
आर्थिक विकास Single असतत् प्रक्रिया
ऊपर के अध्ययन से आप समझ गए होंगें कि आर्थिक विकास Single चक्रिय प्रक्रिया है । शुम्पीटर ने आर्थिक विकास को वृत्तीय प्रवाह का असतत् विचलन माना है। उनका विकास प्राReseller यह है कि – आर्थिक विकास इस वृत्तीय प्रवाह में होने वाला Single आकास्मिक तथा असत्त परिवर्तन है Meansात् सन्तुलन की Single ऐसी हलचल है जो पूर्व स्थापित साम्य की स्थिति को सदा के लिए बदल देती है। तो वृत्तीय प्रवाह में बाधा या विचलन किस Reseller में होता है शुम्पीटर के According यह बाधा या विचलन नव प्रवर्तनों के Reseller में आती है।
नवप्रवर्तनों की भूमिका
अब आप यह समझ चुके हैं कि शुम्पीटर ने अपने मॉडल में आर्थिक विकास को अससत् प्रक्रिया माना है, अब हम नवप्रवर्तनों की भूमिका का अध्ययन करेंगें-
नव प्रवर्तनों के Reseller
शुम्पीटर के According नवप्रवर्तन निम्न प्रकार हो सकता है।
- किसी नवीन वस्तु का उत्पादन करना ।
- उत्पादन की किसी नवीन प्रविधि का प्रचलन होना नये बाजारों की खोज होना।
- कच्चे माल के लिए नये पूर्ति श्रोतों का पता लगाना ।
- Singleाधिकार स्थापित करने की तरह किसी उद्योग के नये संगठन को कार्यान्वित करना ।
नवप्रवर्तनों के कार्य
शुम्पीटर के According आर्थिक विकास का कार्य स्वत: नहीं होता बल्कि इस कार्य को विशेश प्रयास व जोखिम के साथ शुरू करना होता है। यह कार्य नवप्रवर्तक Meansात् उद्यमी करता है। पूंजीपति नहीं। पूंजीपति केवल पूंजी प्रदान करता है जबकि उद्यमी उसके प्रयोग का निदेशन करता है। शुम्पीटर का कहना है कि साहसी के सम्बन्ध में स्वामित्व नहीं बल्कि नेतृत्व अधिक महत्वपूर्ण होता है।
अत: साधारण प्रबन्धकीय योग्यता वाले व्यक्ति में जोखिम उठाने व अनिष्चतता वहन करने की योग्यता नहीं होती। यह कार्य उद्यमी द्वारा Reseller जाता हैं इस प्रकार उद्यमी शुम्पीटर के विकास सिद्वान्त की केन्द्रीय शक्ति है। साहसी विकास का मुख्य प्रेरक श्रोत हैं। वह नवीनताओं का सृजनकर्ता है उत्पादन की तकनीक में क्रान्ति का अधिष्ठाता है और बाजारों के विस्तार का श्रेय भी उसे ही दिया जाता है। ‘‘साहसी अथवा उद्यमी की तुलना युद्व की व्यूह Creation करने वाले उस निडर व कुशाग्र बुद्वि वाले कमाण्डर से की जा सकती है, जो लड़ाकू फौज में प्रतिक्षण साहस, रणकौशल व उत्साह की भावना भरता रहता है। शुम्पीटर के Wordों में- ‘‘स्थिर Meansव्यवस्था में साहसी बहाव के साथ तैरता हैं, गतिशील Meansव्यवस्था में उसे बहाव के विपरीत तैरना होता है। साहसी विकास मंच का नेता है अन्य उसके अनुगामी होते है। वह स्वाभिमानी तथा विवकेशील होता है। उसमें जूझने की प्रवृत्ति होती है। वह जीतने का संकल्प रखता है। और उसमें अपने आपको जीतने Second से श्रेष्ठ सिद्ध करने की प्रबल इच्छा होती है। वह केवल लाभ के लिए ही जोखिम नहीं उठाता बल्कि सफलता प्राप्त करना भी उसका Single लक्ष्य होता है।
उद्यमी की भूमिका, तथा प्रेरित करने वाले तत्व
अब तक के अध्ययन से आप उद्यमी के भूमिका तथा कार्यों से परिचित हो गए है… अब आप उद्यमी की भूमिका को प्रेरित करने वाले तत्व के विशय में अध्ययन करेंगें। उद्यमी को मुख्य Reseller से तीन बातें प्रेरित करती है :-
- नवीन वाणिज्य साम्राज्य की स्थापना करने की लालसा।
- अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की इच्छा
- अपनी शक्ति तथा प्रवीणता के प्रयोग करने की प्रसन्नता।
उद्यगी को अपना आर्थिक कार्य करने के लिए दो चीजों की Need है।
First – नई वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए आवष्यक तकनीकी ज्ञान की उपलब्धता। द्वितीय – ऋण के Reseller में उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण की शक्ति Meansात बैंक साख की सुविधा।
शुम्पीटर की धारणा थी की समाज में तकनीकी ज्ञान का Single ऐसा भंडार विद्यमान रहता है। जिसे अभी तक खोला नहीं गया है। और इसका प्रयोग First उद्यमी द्वारा Reseller जाता है। इस तरह, संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि विकास की दर समाज में तकनीकी ज्ञान भण्डार में परिवर्तन का फलन है। तकनीकी परिर्वतन की दर उद्यमियों के सक्रिय होने के स्तर पर निर्भर करती है और यह सक्रियता स्तर नये उद्यमियों के प्रकट होने तथा शाखा निर्माण की मात्रा द्वारा निर्धारित होता है।
पूंजी, लाभ एंव व्याज –
शुम्पीटर के According पूंजी केवल वह स्तर है जिसके द्वारा उद्यमी जिन वस्तुओं को चाहता है। उनको अपने नियंत्रण में रखता है। अन्य Wordों में पूंजी उत्पादन के साधनों को नये प्रयोगो की ओर ले जाने Meansात् उत्पादन को नया मोड़ देने का साधन हैं। उनके According लाभ लागतों का अन्तर है।
शुम्पीटर के According – प्रतियोगी संतुलन में प्रत्येक वस्तु की कीमत उसकी उत्पादन लागत के बराबर होती है। अत: लाभ नहीं उत्पन्न होते। नवप्रर्वतन से होने वाले गत्यात्मक परिवर्तनों के कारण लाभ उत्पन्न होते है। वे उतनी देर तक बने रहते है। जब तक कि नवप्रर्वतन सामान्य नहीं हो जाते। पूंजी और लाभ की तरह शुम्पीटर ब्याज को भी विकास की देन मानता है। यह वर्तमान उपभोग का भविष्य के उपभोग पर अधिमान हैं। परन्तु लाभ की तरह यह विकास की सफलताओं का प्रतिफल नहीं है Meansात् यह विकास की सफलताओं का प्रतिफल नहीं है बल्कि यह विकास पर रूकावट की तरह है। यह उद्यमीय लाभ पर Single कर की तरह हैं।
वृत्तीय प्रवाह को तोड़ना – शुम्पीटर का मॉडल वृत्तीय प्रवाह को Single नवप्रवर्तन से भंग करने से प्रारम्भ होता है। जो Single उद्यमी लाभ कमाने के लिए Single नई वस्तु के Reseller में करता है। शुम्पीटर की धारणा के According चूकि Single पूंजीवादी व्यवस्था में उत्पत्ति के साधनों के नये व अच्छे संयोग की सम्भवनायें सदा विद्यमान रहती है। अत: साहसी इन लाभ सम्भावनाओं का फायदा उठाने के लिए नये प्रयोग Meansात् नवप्रवर्तन करते है जिनके लिए बैंको से ऋण लिया जाता है। चूंकि नवप्रवर्तनों में निवेश में जोखिम होती है। अत: उन्हे ऋण पर ब्याज देना होगा। नवप्रवर्तन जब Single बार सफल हो जाता है। और लाभ देने लगता है तब अधिक संख्या में अन्य उद्यमी उसका अनुकरण करने लगते है। Single क्षेत्र में नवप्रवर्तन सम्बन्ध क्षेत्रों में नवप्रवर्तनों को प्रोत्साहन दे सकता है। मोटरकार उद्यमी प्रारम्भ होने के परिणाम स्वReseller सड़कों रबर टायरों तथा पेट्रोल इत्यादि के उत्पादन में नये निवेशों की लहर फैला सकता है। परन्तु Single नव प्रवर्तन कभी शत-प्रतिशत नहीं होता है।
पूंजीवादी विकास की चक्रीय प्रक्रिया
शुम्पीटर का विचार था कि नवप्रवर्तन हेतु जब बैंको से ऋण लिया जाता है। तो साख का विस्तार होता है। नवप्रवर्तन हेतु किये गये निवेश में वृद्धि से मौद्रिक आय और कीमतें बढ़ने लगती है। जो आगे चलकर समस्त Means समस्याओं के संचयी विस्तार की दशाये उत्पन्न कर देती है। शुम्पीटर ने इस आर्थिक चेतना को उद्यमी ने नवप्रवर्तन की प्राथमिक लहर की संज्ञा दी है। बढ़ती हुई कीमतें लाभ को बढा़ती है इससे उत्साहित होकर उद्यमी बैंको से ऋण लेकर निवेश को बढ़ाते है इससे उत्पादन का और अधिक विस्तार होता है लाभ की प्रवृत्तिया जहां से फर्म को प्रोत्साहन देती हे वहां आय व लाभ की सम्भावना नये विनियोगी को जम्न देने लगती है। फलस्वReseller बैंको से अधिक मात्रा में ऋण लिये जाते है। इससे साख- स्फीति की द्वितीयक लहर प्रेरित होती है। जो नवप्रवर्तन की प्राथमिक लहर पर अध्यारोपित हो जाती है। शुम्पीटर ने इसे समृद्वि की आवष्यक दर कहा है। कुछ समय पश्चात नई वस्तुयें बाजार में आना शुरू हो जाती है जो पुरानी वस्तुओं को विस्थापित करती है। और दिवालियापन पुन: समायोजन तथा खपत की प्रक्रिया शुरू होती है। बाजार में नई वस्तुओं तथा फर्म के प्रवेश से उत्पादन इकाईयों में परस्पर प्रतिस्पर्धा होती है। शुम्पीटर ने इसे सृजनात्मक विनाश की प्रक्रिया का First चरण कहा है। पुरानी वस्तुओं की मांग घट जाती है। उनकी कीमते घट जाती है। लाभ के कम होने से पुरानी फर्मे जमा उद्यमी घटाती है और कुछ का तो दीवाला भी निकल जाता है। इस तरह नई फर्मो के सामने पुरानी फमेर्ं बाजार में ठहर नहीं पाती। जब नवप्रवर्तक लाभों में से बैंक ऋण वापस करना शुरू कर देते है तो मुद्रा की मात्रा घट जाती है। और कीमते गिरने लगती है। लाभ कम हो जाते है अनिष्चितता तथा जोखिम बढ़ जाती हैं नवप्रवर्तक की प्ररेणा घटती है। और अन्त में समाप्त हो जाती है। असंतुलन And असामान्य की प्रक्रिया के फलस्वReseller बैंक अपना Resellerया वापस लेने लगते है। जिससे मुद्रा विस्फीति की दशा उत्पन्न होती है। प्रवर्तन क्रियाओं से शिथिलता आती है। फलस्वReseller कीमतों व मौद्रिक आय में ह्रास होना शुरू हो जाता है। शुम्पीटर ने इस समस्या को प्रतिसार अवस्था कहा है। इस अवस्था के पश्चात नये सिरे से तथा नये ढ़ंग से नवप्रवर्तन किये जाते है। इससे नई तेजी प्रारम्भ हो जाती है। शुम्पीटर ने इसे पुनरूत्थान की अवस्था कहा है। इस तरह विकास की यह पूरी प्रक्रिया अपने को पूर्व की भॉति दोहराती है। और अंतत: देश की आर्थिक प्रणाली पुन: साम्य की स्थिति प्राप्त कर लेती है मन्दी के बाद का यह संतुलन बिन्दु पुराने संतुलन बिन्दु से ऊॅंचा होता है। शुम्पीटर के According – इस चक्रों की निश्चित अवधि नहीं होती और इन चक्रो को गम-खुशी के चक्र कहतें है।
पूंजीवाद के विनाश की प्रक्रिया
शुम्पीटर के विश्लेशण में उद्यमी ही प्रमुख व्यक्ति है। वह आकास्मिक तथा असतत ढ़ग से आर्थिक विकास करते है। ‘‘चक्रीय उतार-चढ़ाव पूंजीवाद के अन्तर्गत आर्थिक विकास की कीमत है। ‘‘जो उसके गत्यात्मक समय मार्ग की स्थायी विशेशता है। दीर्घकाल में निरंतर प्रोद्योगिकीय प्रगति का परिणाम होगा कि कुल तथा प्रति व्यक्ति उत्पादन में असीम वृद्धि हो जायेगी क्योंकि ऐतिहासिकता से प्रौद्योगिकीय प्रगति के घटते प्रतिफल नही होते। जब तक प्रौद्योगिकीय प्रगति होती रहेगी तब तक लाभों दर की धनात्मक रहेगी इसलिए न तो निवेश योग्य कोणों के श्रोत ही सूख सकते है। और न ही निवेश के अवसर ही समाप्त हो सकते है। परन्तु पुंजीवाद पद्वति के इस गुणगान का यह कदायि Means नही है कि पुंजीवाद पद्वति को रहने दिया जाये, यह पद्वति Human जाति के कन्धे से गरीबी का बोझ दूर नही कर सकती। इसलिए पूंजीवादी समाज में प्रति व्यक्ति आय के स्तर पर कोई ऊंची सीमा नहीं होती है। फिर भी पूंजीवाद की आर्थिक सफलता का परिणाम अंत में उसकी तबाही होगी। पूंजीवाद के भविष्य पर अंतिम टिप्पणी देते हुये शुम्पीटर न लिखा था- ‘‘क्या पूंजीवाद क्या रहेगा? नहीं, मै समझता हॅू कि वह बच नहीं पायेगा। उनके According- पूंजीवाद की सफलता ही , इन सामाजिक संस्थाओं की जड़ खोदती है। और उसकी रक्षा करती है, और अनिवार्य Reseller से ऐसी परिस्थितिया उत्पन्न करती है, जिसमें पूंजीवाद नहीं जी सकता, और प्रबलता से समाजवाद के स्पष्ट वारिस होने का संकेत करता हैं’’ कार्ल माक्र्स की ही भांति शुम्पीटर भी इस धारणा के समर्थक थे कि पूंजीवाद का अन्त सुनिश्चित है। अन्य Wordों को पूंजीवाद व्यवस्था अपने विनाश की दशाये स्वयं उत्पन्न करती है। शुम्पीटर ने पूंजीवाद के पतन के लिए तीन प्रमुख कारणों को उत्तरदायी बताया है।
- उद्यमी कार्य का महत्व समाप्त होना – प्रारम्भ में उद्यमी चक्रीय प्रवाह में व्यवधान उत्पन्न करके विकास क्रम को चालू करता है लेकिन धीरे-धीरे चक्र Single प्रकार से दैनिक कार्य हो जाता है। बड़े-बड़े उद्योगों में यह उनकी कार्य प्रणाली का ही Single आवष्यक अंग हो जाता है और इस प्रकार के उद्यमियों को अलग से कोई विशिष्ट महत्व नहीं रह जाता है। शुम्पीटर के Wordों में – उद्यमियों के लिए कुछ भी करने को नहीं रह जाता लाभ गिरने लगता है। ब्याज शून्य हो जाता है उद्योग और व्यापार का प्रबन्ध Single सामान्य प्रशासन का Reseller ले लेता है। और प्रबन्धक अन्ततोगत्वा नौकरशाही (मैनेजर) का Reseller धारण कर लेते है।
- बुर्जुआ परिवार का बिखरना – धीरे-धीरे बुर्जुआ परिवार बिखरने लगता है। तर्क और बुद्धिमान पारिवारिक जीवन में प्रवेश कर जाते है। परिवार का भी लाभ, लागत के According लोग विचार करते है। फलस्वReseller घर का विचार ध्वस्त हो जाता है। और इसमें संग्रह की प्रवृति Destroy हो जाती है जो कि पूंजीवाद की प्रेरक शक्ति है।
- पूंजीवादी समाज के संस्थानिक ढांचे का विघटन :- उद्यमी के न केवल आर्थिक तथा समाजिक कार्य समाप्त हो जाते है वरन् धन के Singleत्रीकरण तथा बड़े-बड़े औद्योगिक संस्याओं के स्थापित हो जाने से निजी सम्पति तथा प्रसंविदा की स्वंतन्त्रता आदि महत्वहीन होने हो जाती है जो पूंजीवादी की प्रमुख संस्थायें है। शुम्पीटर का कहना है- ‘‘कि पूंजीवाद की मौत का घंटा बजाने के लिए उपर्युक्त शक्तिया ही काफी नहीं है पूंजीवाद Single ऐसे असंतुष्ट बुद्धिजीवी वर्ग को जन्म देता है। जो बेरोजगार हैं तथा जिसके पास विचार स्वतंन्त्रता जीवन के प्रति साहसी रहा है (नवप्रवर्तन) ये बुद्धिजीवी वर्तमान सामाजिक ढांचे के प्रति असंतोश को संगठित करके उसे नेतृत्व प्रदान करता है। जो पूंजीवाद की धारणा का विरोध करते है चूंकि बुद्धिजीवी स्वत: के संगठन द्वारा पूंजीवाद को समाप्त नहीं कर सकता अत: वह श्रमिको को संगठित करके इसका सहारा लेता है। धीरे-धीरे पूंजीवाद Resellerी किला रक्षाहीन हो जाता है।
शुम्पीटर के विकास मॉडल का Meansव्यवस्था में महत्व
शुम्पीटर का सिद्धान्त आर्थिक विकास के मुख्य साधन के Reseller में स्फीतिकारी वित्त एंव नवप्रवर्तनों के महत्व को रेखाकित करता है। स्फीतिकारक वित्त व्यवस्था उन शाक्तिशाली ढ़गो में से Single मानी पाती है जिसे प्रत्येक अल्पविकसित देश किसी न किसी समय अपनाने का अवश्य प्रयास करता है। नवप्रवर्तनों से Single ओर उत्पादकता व दूसरी ओर से रोजगार में वृद्धि में होती है। यद्यपि यह पाष्चात्य पूंजीवाद की समस्याओं में सम्बन्ध रखता है। फिर भी जब Single बार औद्योगिकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाये तो यह निश्चित Reseller से उन समस्याओं की ओर संकेत दे सकता है कि व्यर्थ तथा अतिरिक्त कठिनाईयों से कैसे बचा पाये जो आयोजनाओं तथा असमन्वित विकास में रहती है।
शुम्पीटर के विकास प्राReseller की आलोचना
मॉयर तथा वाल्डविन के According-शुम्पीटर के सिद्धान्त को Single ऐसा प्रमुख कार्य कहना चाहिये जिसे निश्चय से स्मिथ, रिकार्डो मिल, माक्र्स, मार्शल तथा कीन्स जैसे Meansशास्त्रियों के योग्य तथा समकक्ष माना जा सकता है। यह शानदार तर्क Single बड़े सैद्वान्तिक की अंतदर्ृष्टि से आपूरित है। फिर भी वे इस सिद्वान्त की कटु आलोचनायें करते है।
- नवप्रवर्तन उद्यमी का कार्य नहीं – शुम्पीटर के सिद्वान्त की समाप्त प्रक्रिया उद्यमी व नवप्रर्वतन पर आधारित है जिसे वह Single आर्दश व्यक्ति मानता है। यह भी 18वीं तथा 18वीं शताब्दी में सम्भवस्त: जब नवप्रर्वतक उद्यमी या अविश्कारों द्वारा किये जाते है। परन्तु वर्तमान में All प्रकार के नवप्रर्वतन कम्पनियों के कार्य क्रम का Single आय है। इनके लिए किसी विशेश प्रकार की व्यक्ति Need नहीं समझा गया है।
- आर्थिक विकास के लिए चक्रीय प्रक्रिया आवश्यक नहीं – शुम्पीटर के According – नवप्रवर्तनों से आर्थिंक विकास चक्रीय प्रक्रिया में होता है। परतुुं यह सही नही। आर्थिक विकास के लिए मंदी वेतन का चक्र आवष्यकता नहीं। इसका सम्बन्ध निंरतर परिवर्तनों से होता है। जैसा कि नर्कसे में कहा है।
- नवप्रवर्तन ही विकास का मुख्य कारण नही – शुम्पीटर नवप्रवर्तन को ही विकास का मुख्य कारण मानता है पंरतु यह वास्तविकता से दूर है, क्योंकि आर्थिक विकास केवल नवप्रवर्तनों पर निर्भर नहीं करता बल्कि कई अन्य आर्थिक And सामाजिक तत्वों पर निर्भर करता है।
- चकर््रीय परिवर्तन नवप्रवर्तनों के कारण नहीं :- फिर मंदी व तेजी नवप्रवर्तनों के ही कारण नहीं होती इसके कई मनोविज्ञानिक, प्राकृतिक, वित्तिय आदि कारण भी होते है।
- बैंंक साख को अधिक महत्व :- शुम्पीटर पूंजी निर्माण में बैंक साख को आवष्यकता से अधिक महत्व देता है। बड़े-बडे़ औद्योगिक संस्थान अल्पकाल में तो बैंक से साख ऋण प्राप्त कर सकते है। परन्तु दीर्घकालीन नवप्रवर्तनों के लिए जिसमें पूंजी की अधिक Need होती है। बैंक ऋण अपर्याप्त होते है। इसके लिए ऋण पत्र तथा नये शेयरो को बेचकर ही पूंजी प्राप्त की जा सकती है।
- पूंजीवाद से समाजवाद की प्रक्रिया सही नहीं – शुम्पीटर का पूंजीवादी से समाजवादी की ओर जाने का विश्लेशण सही नहीं, वह इस बात का विश्लेशण नहीं करता कि पूंजीवाद समाज समाजवाद की ओर कैसे अग्रसर होता है। वह केवल यह बताता है कि उद्यमी के कार्यो में परिवर्तन होने से पूंजीवादी समाज का संस्थानिक ढांचा परिवर्तित हो रहा है। उसका पूंजीवाद के नाश का विश्लेशण भावुक है। न कि वास्तवकि।
अन्त में, मायर तथा बाल्डविन के Wordों में- ‘‘शुम्पीटर विकास का बृहत सामाजिक आर्थिक विश्लेशण Reseller हैं उसकी सर्वत्र प्रशंसा की जाती है परंतु बहुत कम लोग उसके निष्कर्णो को स्वीकार करने के लिए तैयार है। उसका तर्क उत्तेजक है उसका विश्लेशण उछयिक है पर वह पूर्ण Resellerेण विश्वनीय नहीं है। उसका विश्लेशण Singleतरफा है तथा उसने कई बातों पर आवष्यकता से अधिक जोर दिया। ‘‘