वन संसाधन क्या है?
उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन-
यह वन उन भागों में मिलता है। जहां का तापमान 240 से.ग्रे के आस पास तथा वार्षिक वर्षा 200 से.मी. से अधिक होती हैं।ये वृक्ष सदैव हरे भरे दिखार्इ पड़ते हैं। इनकी लकड़ी काले रंग की तथा कठोर दिखार्इ देती हैं। मुख्य वृक्ष रबड़, महोगनी, एबोनी, ताड़, आबनूस, बाँस आदि हैं। ये वन पश्चिमी तटीय प्रदेश, पश्चिमी घाट, उत्तर पूर्वी पर्वतीय पद्रेश And अंडमान निकोबार द्वीप समहू में पाये जाते है।।
मानसुनी वन:-
- आद्रमानसूनी वन :- ये वन उनभागों में मिलते हैं। जहां का वार्षिक तापमान 200 से अधिक तथा वर्षा 100 से 200 से.मी. तक होती हैं। ये वृक्ष Single विशेष मौसम में अपने पत्ते गिरा देते हैं । ये कम सघन हैं। इन वनों में सागौन, साखू, कुसूम, पलास, सीसम, आंवला, नीम, चंदन प्रमुख वृक्ष हैं। ये वन छत्तीसगढ़, पूर्वी उत्तरप्रदेश बिहार बंगाल उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु के भागों में पाये जाते है।। चंदन की लकड़ी सुगंिन्धत होती है।, सागौन सबसे बहुमल्ू य फर्नीचर उद्योग के लिये मानी जाती हैं।
- शुष्क मानसूनी वन:- इन वनों के पत्ते ग्रीष्म ऋतु में गिरने आरम्भ हो जाते है।। जहां का तापमान औसत 240 से.ग्रे. होता हैं। वर्षा 50 से 100 सेमी. होती हैं। ये वन पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पायें जाते हैं। इन भागों में अधिकतर खेजड़ा खैर, बबूल, महुआ,कीकर, नागफनी, खजूर आदि मिलती हैं।
मरूस्थलीय वन-
यहां अधिक तापमान रहता हैं तथा वर्षा भी मात्र 50 सेमी. से कम होती हैं। यहां पाये जाने वाले वृक्षों में नागफनी, बेर, खजूर, केकटस प्रमुख हैं। थार के मरूस्थल व दक्षिण भारत में आंध्रप्रदेश व कर्नाटक के वृष्टि छाया वाले क्षेत्रो में मिलते हैं।
ज्वारीय वन-
इन्हें डेल्टार्इ या सुंदरीवन भी कहते हैं। क्योंकि ये डेल्टा क्षेत्र में अधिकता से पार्इ जाते है। तथा यहां सुंदरी नाम के वृक्षों की प्रधानता होती है। ये सदा हरे भरे रहते हैं। अन्य प्रकार के वृक्षों में मैनग्रोव के अलावा केवड़ा, नारियल, मोगरा, व गोरडोल हैं। गंगा एंव बम््र हपुत्र के डेल्टा में पाये जाते है।।
पर्वतीय वन-
ये दो भागों में बाटे गये हैं:-
अ. पूर्वी हिमालय के वन –
- उष्ण कटिबंधीय वन
- शीतोष्ण कटिबंधीय वन
- शीत शीतोष्ण कटिबंधीय वन
- 5000 मीटर से ऊपर के वन
ब. पश्चिमी हिमालय के वन –
- अर्द्ध उष्ण कटिबंधीय वन
- शीतोष्ण कटिबंधीय वन
- अधिक ऊँचार्इ वाले वन ।
संसाधनों के Reseller में वनों से लाभ-
संपूर्ण भारत में वनों के अस्तित्व को बनायें रखने के लिये अनेक उपाय किये जा रहें हैं। जगह, जगह वृक्षारोपण पर्वतीय भागों में वनारोपण कार्यक्रम चलाये जा रहें हैं। यदि Indian Customer जनमानस अपने बच्चों के समान देख भाल करे तो अनेक लाभ मिलेंगे। वनों से देश की Meansव्यवस्था को प्रत्यक्ष एंव अप्रत्यक्ष Reseller से लाभ मिलता हैं।
प्रत्यक्ष लाभ:-
- राष्ट्रीय आय में वृद्धि :-वर्तमान में देश की आय का लगभग 2 प्रतिशत या लगभग 4000 करोड़ Resellerये मिलते हैं।
- र्इंधन :- यह Indian Customer इंर्धन खासकर ग्रामीण जनों का मुख्य इर्ंधन का कार्य करती है।।
- व्यवसाय का स्त्रोत :- वन लगभग 60 लाख व्यक्तियो को व्यवसाय प्रदान करता हैं।
- औद्योगिक कच्चा माल की पूर्ति :- ये लाख, बिड़ी, कागज, प्लार्इवुड, रबर, रेशम एंव फर्नीचर उद्योगों के लिये कच्चामाल प्रदान करता हैं। वनो से मिलने वाली जड़ी बूटियो से अनेक प्रकार की दवाइंया बनायी जाती हैं।
अप्रत्यक्ष लाभ:-
- बाढ़ एंव मिट्टी के कटाव से बचत करते हैं।
- वर्षा को आकर्षित करते हैं।
- इनसे तापमान में नियंत्रण होता हैं।
- रेगिस्तान के विस्तार को वृक्ष लगाकर रोका जा सकता है।
- मिट्टी में उर्वरा शक्ति बनायें रखते हैं।
- Human के मनोंरजन And पर्यटन के स्थल हैं।