रूसी क्रांति 1917
क्रांति के कारण :
1917 की रूसी क्रांति के लिए जो परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं, उनका ब्यौरा है-
(1) औद्योगिक क्रांति :
19वीं शदी के उत्तरार्द्ध में रूस में औद्योगिक क्रांति का श्रीगणेश हुआ । जिसके परिणामस्वReseller रूस में कर्इ औद्योगिक केन्द्र स्थापित हुए । इन औद्योगिक कारखानों में लाखों की संख्या में ग्रामीण मजदूर आकर कार्यरत हुए और औद्योगिक केन्द्र के समीपस्त शहरों में निवास करने लगे । शहरी वातावरण के कारण वे First की तरह सीधे सादे नही रह गये थे। उनमें जागृति आने लगी थी और वे राजनीतिक मामलों में दिलचस्पी भी लेने लगे थे । इस प्रकार जन-जागरण के कारण उन्होंने लम्बे समय से हो रहे अपने शोषण के विरूद्ध संगठित होने का प्रयास Reseller और अपने अधिकारों की माँग शुरू कर दी । रूस में मजदूरों ने अपने कर्इ क्लब भी स्थापित कर लिये थे । जहाँ विभिन्न प्रकार के मामलों में वार्तालाप और विचारों का आदान-प्रदान होने लगा । इसी पृष्ठाधार पर रूस में क्रांति की पृष्ठभूमि निर्मित हुर्इ । Meansात् परोक्ष Reseller से औद्योगिक क्रांति के कारण रूस में राजनीतिक क्रांति की पृष्ठभूमि निर्मित हुर्इ ।
(2) माक्र्सवादी विचारधारा का प्रभाव
1917 की रूसी क्रांति के लिए माक्र्सवादी विचारधारा का अत्यधिक योगदान रहा है। रूस का First साम्यवादी नेता प्लेखनाव था, जो रूस में निरंकुश जारशाही को समाप्त करके साम्यवादी व्यवस्था की स्थापना करना चाहता था। लेकिन जारशाही शासन के चलते इसे स्वीट्जरलैण्ड भाग जाना पड़ा । वह जनेवा में रहते हुए ‘मजदूरों की मुक्ति का आन्दोलन’ चलाया । उसने माक्र्स की पुस्तकों का रूसी भाषा में अनुवाद करके गुप्त Reseller से रूस के मजदूर वर्ग को प्रदान करवाने का अथक प्रयास Reseller । गुप्तReseller से मजदूरों के बीच माक्र्सवादी सिद्धान्तों का प्रचार करवाया । जिससे श्रमिकों पर साम्यवादी विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा और वे देश के कल-कारखानों में अपने अधिकार का स्वप्न देखने लगे । इस प्रकार माक्र्सवादी विचारधारा से प्रभावित श्रमिक संगठन रूसी क्रांति की आधारशिला साबित हुए ।
(3) बौद्धिक विचारों की क्रांति :
किसी भी राजनीतिक क्रांति के पूर्व देश में बौद्धिक क्रांति का होना नितान्त आवश्यक है । इसके बिना क्रांति सम्भव नहीं होती है और यदि होती भी है तो प्राय: असफल हो जाती है । रूसी क्रांति के पूर्व रूस के शिक्षित लोगों के विचारों में परिवर्तन आना आरम्भ हो गया। यें लोग पश्चिमी यूरोपीय ग्रन्थों का गहन अध्ययन Reseller और उनका अनुवाद रूसी भाषा में करके नवीन विचारों का रूस में प्रचार Reseller । ऐसे लोगों में टाल्स्टाय, दोस्तोयविस्की, तुर्गन आदि का नाम Historyनीय है । इनके क्रांतिकारी विचारों ने रूस में उथल-पुथल मचा दी । इस प्रकार रूस में राजक्रांति होने से First रूसी जनमानस में जन-जागृति हो चुकी थी और उनके दिमाग में क्रांतिकारी विचारों का समावेश करा दिया गया था। इसी कारण 1917 की रूसी क्रांति अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सफल रही ।
(4) जार का निरंकुश And स्वेच्छाचारी शासन
जार का निरंकुश And स्वेच्छाचारी शासन भी इस क्रांति के लिए पर्याप्त उत्तरदायी था। जनता करों के बोझ से लदी थी । किसी का जीवन Windows Hosting नहीं था। ऐसे शासन से हर कोर्इ भयभीत था। किसी को किसी भी समय कारागार में डाला जा सकता था, या साइबेरिया के ठंडे And उजाड़ प्रदेश में निर्वासित Reseller जा सकता था । इसके अतिरिक्त जार ने शासन में जरा भी सुधार करने के लिए तैयार नहीं था और न ही जनता को शिक्षा And स्वास्थ्य सम्बंधी सुविधाएँ उपलब्ध थीं । Meansात् निरंकुश जारशाही के कारण देश के विकास के All दरवाजे बन्द थे । ऐसी अवस्था में रूस के जो विद्याथ्र्ाी विदेशों से अध्ययन करके लौटे थे, वे यह अनुभव करने लगे कि उनका देश विकास और उन्नति की दौड़ में काफी पिछड़ा हुआ है, जिसका मूल कारण जार की निरंकुशता है । अत: उन्होंने देश की प्रगति के लिए निरंकुश जारशाही का अन्त करना आवश्यक समझा और इस दिशा में उन्होंने निरंकुश And स्वेच्छाचारी शासन के विरूद्ध प्रचार करके जनता को जार के विरूद्ध भड़काना शुरू Reseller, जिसकी अन्तिम परिणित 1917 में क्रांति के Reseller में उभरकर सामने आयी ।
(5) 1905 की रूसी क्रांति का प्रभाव
यद्यपि 1905 की रूसी क्रांति प्रत्यक्ष Reseller में असफल हो गयी थी । किन्तु असफल होकर भी इसने रूसी जनता को किसी न किसी Reseller में अवश्य प्रभावित Reseller । इस क्रांति ने जनता में राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न कर दी । Meansात् इसने जनता को राजनीतिक अधिकारों से परिचित करा दिया। अब उसे जनतांत्रिक शासन और मताधिकार का ज्ञान हो गया । अत: उसने रूस मे लोकतंत्रात्मक शासन स्थापित कर सत्ता अपने हाथों में लेना चाहा। जिसके लिए उसने Single बार पुन: क्रांति करने का मन बनाया । इसके अलावा 1905 की क्रांति में जो कमी या भूल हो गयी थीं, उस अनुभव का पूरा लाभ उठाते हुए जनता ने 1917 में ऐसी सुनियोजित And व्यवस्थित क्रांति की, जो अपने लक्ष्य में पूर्णतया सफल रही। इस प्रकार 1917 की रूसी क्रांति की सफलता के पीछे 1905 की रूसी क्रांति का योगदान निश्चित Reseller से था।
(6) First विश्वFight और रूस
1914 में जब First विश्वFight प्रारंभ हुआ, तब जार ने इसे Single पवित्र Fight का नाम देकर जनता का ध्यान विश्वFight की ओर आकृष्ट Reseller, ताकि वह जारशाही के विरूद्ध अपने असंतोष को भूल जाय । लेकिन जब विश्वFight में रूस की पराजय की खबरें लगातार आना शुरू हुर्इं, तो रूसी जनता का असंतोष पुन: उभर आया । जब जनता को सेना की पराजय का कारण ज्ञात हुआ कि रूस की भ्रष्ट नौकरशाही And रिश्वतखोरी की वजह से रूसी सैनिकों को न तो अच्छे हथियार उपलब्ध हो पा रहे हैं और न ही पर्याप्त भोजन………। ऐसी स्थिति में रूसी सैनिक मोर्चे पर बेमौत मारे जा रहे हैं । अत: जनता का असंतोष आक्रोश में बदल गया । इस प्रकार Single बार पुन: रूस के क्षितिज पर क्रांति के चिन्ह दृष्टिगोचर होने लगा ।
(7) रूस में अकाल की स्थिति
First विश्वFight में रूसी सेना की निरन्तर पराजय से रूसी सेना में सैनिकों का नितान्त अभाव हो गया। अत: रूसी जारशाही ने लाखों कृषकों को कृषि कार्य से पृथक करके Fight के मोर्चे पर भेज दिया । जहाँ पर Fight की अनुभवहीनता के कारण बहुत से किसान Fight में ढ़ेर हो गये । कृषकों की कमी से रूस की कृषि प्रभावित हो गयी। अनाज के वार्षिक उत्पादन में भारी कमी आ गयी । इससे रूस में अकाल की स्थिति निर्मित हो गयी। इसके अतिरिक्त Fight के कारण यातायात के साधन भी Destroy हो गये थे । जिससे गाँवों का अनाज बड़े-बड़े नगरों में नहीं पहुँच पा रहा था। ऐसी स्थिति में लोग भूख से मरने लगे । रोजमर्रा की जिन्दगी में उपयोगी वस्तुओं का सर्वथा अभाव हो गया । इससे वस्तुओं के मूल्य आसमान छूने लगे । निर्धन व्यक्तियों को जीवन निर्वाह करना दूभर हो गया। रूस में सर्वत्र दुर्भिक्ष के लक्षण दिखार्इ देने लगे ।
यद्यपि वास्तविकता यह थी कि बाजार में वस्तुओं का इतना अधिक अभाव नहीं था, जितना कि दिखार्इ दे रहा था। इसके पीछे मूल कारण यह था कि मुनाफाखोर पूँजीपतियों ने प्राथमिक उपयोग की वस्तुओं को बाजार से लोप करवाकर अधिक कीमतों पर चोरबाजारी में वस्तुओं की बिक्री कर रहे थे । यदि जारशाही की नौकरशाही भ्रष्ट न होती तो स्थिति को नियंत्रित Reseller जा सकता था । लेकिन जारशाही की सरकार इस दिशा में सर्वथा असफल रही । ऐसी हालत में जनता का आक्रोशित होना स्वाभाविक था । अत: आक्रोशित जनता ने निरंकुश जारशाही के तख्ते को उखाड़ फेंकने के लिए दृढ़ संकल्प हो उठी । लेकिन दूसरी तरफ जार और उसके सलाहकार इस स्थिति के प्रति पूर्णतया उदासीन थे । वे भोग विलास और सत्ता शक्ति के मद में इतना अधिक मस्त थे कि उनके पास इन समस्याओं पर विचार करने के लिए न तो समय ही था और न ही कोर्इ रूचि थी। फलत: रूसी जनता ने Single बार फिर से 1917 में जारशाही के विरूद्ध क्रांति का बीड़ा उठाने के लिए तत्पर हो उठी ।
मार्च की क्रांति का श्रीगणेश और जारशाही का पतन
7 मार्च 1917 को रूसी क्रांति का पहला विस्फोट प्रेट्रोग्रेड में हुआ । यहाँ के निर्धन किसान-मजदूरों ने भूख से व्याकुल होकर सड़कों पर जुलूस निकाला और होटलों And दुकानों को लूटने लगे । इससे स्थिति बेकाबू होने लगी । अत: सरकार ने स्थिति पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए इन पर गोली चलाने का आदेश दिया । किन्तु सैनिकों ने गोली चलाने से इन्कार कर दिया । क्योंकि अब तक सेना भी क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित हो चुकी थी। इस कारण परिस्थिति और भी गम्भीर हो गयी । अब तो रूस में जगह-जगह हड़तालें और आन्दोलन शुरू हो गये, चारों तरफ रूस में क्रांति के चिन्ह दिखार्इ देने लगे ।
अगले दिन 8 मार्च को कपड़ा मिलों की ‘मजदूर स्त्रियाँ’ भी रोटी की माँग करती हुर्इं हड़ताल शुरू कर दीं । Second दिन अन्य कर्इ मजदूर भी उनके साथ आ मिले । उस दिन पूरे पेट्रोग्रेड में आम हड़ताल की गयी । हड़तालियों द्वारा ‘रोटी दो’ ‘Fight बन्द करो’, ‘निरंकुश जारशाही का अंत हो’ आदि नारे लगाये जाने लगे । 10 मार्च को देशव्यापी हड़ताल की गयी। 11 मार्च को जार ने मजदूरों को काम पर लौटने का आदेश दिया, किन्तु उन्होंने अपनी हड़ताल जारी रक्खी । तब जार ने सैनिकों को उन पर गोलीबारी करने का आदेश दिया । लेकिन सैनिकों ने गोली चलाने से सिर्फ मना ही नहीं Reseller, बल्कि 25000 सैनिक हड़तालियों से जा मिले । इसी दिन 11 मार्च को जार ने प्रतिनिधि सभा ‘ड्यूमा’ को भंग करने का आदेश दे दिया । लेकिन ड्यूमा ने भंग होने से मना कर दिया। हड़ताली मजदूर और सैनिकों ने पेट्रोग्रेड में Single सोवियत की स्थापना की । अगले दिन पूरे राजधानी पर सोवियतों का अधिकार हो गया । अत: जार निकोलस विवश होकर सिंहासन का परित्याग कर दिया ।
इस प्रकार मार्च 1917 की क्रांति के परिणामस्वReseller रूस से निरंकुश जारशाही के शासन का अंत हो गया ।
उत्तरदायी अस्थायी सरकार की स्थापना And उपलब्धियाँ
जिस समय पेट्रोगे्रड में क्रांति हो रही थी, उस समय जार निकोलस द्वितीय Fight स्थल पर था । वह पेट्रोग्रेड की अराजकता का अन्त करने के उद्देश्य से राजधानी जाना चाहा । लेकिन विप्लवकारी सैनिकों ने उसे राजधानी के बजाय विस्साव नगर भेज दिया। जहाँ उसे बन्दी बना लिया गया । जार के बन्दी हो जाने पर ड्यूमा ही Single ऐसी संस्था थी, जो देश का शासन संचालित करती । अत: पेट्रोग्रेड की सोवियत और ड्यूमा के अध्यक्ष रोजियान्को के बीच Single समझौता हुआ । जिसके तहत् 18 मार्च 1917 को Single उदारवादी नेता जॉर्ज ल्वाव के नेतृत्व में Single उत्तरदायी सरकार की स्थापना की गयी ।
यद्यपि क्रांति मजदूर वर्ग ने की थी, लेकिन शासन सत्ता मध्यम वर्ग के हाथ में चली गयी। इसका प्रमुख कारण यही था कि मजदूर वर्ग देश का शासन चालने में अभी अपने आपको असमर्थ महसूश कर रहा था । साथ ही सेना का रूख भी निश्चित नहीं था और ड्यूमा द्वारा स्थापित सरकार के शासन से दूसरी क्रांति का भय भी नहीं था ।
अस्थायी सरकार का गठन And उसके सुधार
अस्थायी सरकार में प्रिन्स ल्वाव प्रधानमंत्री के Reseller में नियुक्त हुआ । इस सरकार में अन्य मंत्री बहुत योग्य थे । मिल्यूकॉव को विदेश मंत्री, करेन्सकी को न्याय मंत्री और Fight मंत्री गुचकॉव को बनाया गया । यह मंत्रिमण्डल संवैधानिकता पर विश्वास करता था। अत: इसी आधार पर इसने निम्नलिखित सुधार किये –
- देश के लिए नवीन संविधान निर्मित करने हेतु Single संविधान सभा की घोषणा की गयी।
- राजनीतिक बन्दियों को मुक्त कर दिया गया और जिन्हें देश से निर्वासित कर दिया गया था, उन्हें वापस स्वदेश आने की अनुमति प्रदान की गयी ।
- यहूदी विरोधी समस्त कानूनों को समाप्त कर दिया गया ।
- प्रेसों को स्वतंत्रता प्रदान कर दी गयी ।
- भाषण और सभा करने की स्वतंत्रता दे दी गयी ।
- संघों के गठन की अनुमति प्रदान कर दी गयी ।
- पुलिस को मनमाने ढ़ंग से किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार समाप्त कर दिया गया ।
- फिनलैण्ड और पोलैण्ड को स्वायत्तता प्रदान करने का आश्वासन दिया गया ।
- मृत्यु दण्ड निषिद्ध कर दिया गया ।
- All को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गयी और चर्च के विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया ।
- वयस्क मताधिकार के आधार पर Single विधान सभा के निर्वाचन की घोषणा की गयी।
सरकार की कठिनार्इयाँ
इस सरकार का गठन लोकतांत्रिक सिद्धान्तों के आधार पर हुआ था । इसलिए इसकी स्थिति प्रारंभ से ही डाँवाडोल रही । इसे कर्इ कठिनार्इयों का सामना करना पड़ा, जिनका बिन्दुवार description निम्नलिखित है :-
- सरकार Fight जारी रखना चाहती थी, जबकि लगातार पराजय के कारण रूसी सैनिक Fight नहीं करना चाहते थे ।
- मजदूर वर्ग इस सरकार पर विश्वास नहीं करता था। इसलिए ग्रामीण स्तर पर मजदूर वर्ग ने कर्इ स्वतंत्र सोवियतें स्थापित कर ली थीं । यें सोवियतें साम्यवादी सिद्धान्तों को कार्यान्वित करना चाहती थीं । इसलिए सरकार और इन सोंवियतों के मध्य परस्पर मतभेद था। जिससे सरकार की स्थिति दुर्बल थी ।
- किसान और मजदूर चाहते थे कि जागीरदारों की भूमि बिना मुआवजा के कृषकों में बाँट दी जाय ।
- मजदूर वर्ग देश के महत्वपूर्ण उद्योगों का राष्ट्रीकरण करना चाहता था ।
- मजदूर वर्ग अपनी माँगों को पूरा करवाने के लिए हड़तालों का सहारा लिया और जगह-जगह आतंकवादी कार्य शुरू कर दिये ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि किसान, मजदूर और सैनिक इस सरकार के सुधारों से संतुष्ट नहीं हुए । क्योंकि इसने न तो जनता की रोटी की समस्या का समाधान कर पायी और न ही Fight विराम करके शान्ति ही स्थापित कर सकी । वास्तव में यह सरकार देश की वास्तविक समस्या को हल कर पाने में प्राय: असफल रही। इसलिए इसकी भी वही गति हुर्इ जो जारशाही की हुर्इ थी । फलत: इस सरकार का पतन हो गया।
करेन्सकी की सरकार
ल्वाव की सरकार के पतन के बाद करेन्सकी को प्रधानमंत्री के पद पर आसीन Reseller गया। करेन्सकी मेन्शेविक दल का नेता था । वह क्रांति और रक्तपात को पसन्द नहीं करता था । वह वैधानिक तरीके से सुधार करके रूस में समाजवाद की स्थापना करना चाहता था । वह Fight को जारी रखना चाहता था, किन्तु प्रतिष्ठा के साथ Fight विराम की इच्छा रखता था। उसने रूसी सेना में उत्साह और जोश उत्पन्न करना चाहता था, परन्तु इस दिशा में उसे सफलता न मिल सकी । दूसरी तरफ बोलशेविक दल करेन्सकी की सरकार का निरन्तर विरोध कर रहा था और शांति, भूमि और रोटी (Peace, Land, Bread) के नारे लगा रहा था। अगस्त 1917 में करेन्सकी ने राष्ट्र की संकटापन्न स्थिति पर विचार करने के लिए Single सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया । किन्तु इस सम्मेलन में समाजवादियों के आपसी मतभेद के कारण कोर्इ खास निर्णय नहीं हो सका । अत: समाजवादियों के परस्पर मतभेद के कारण बोलशेविक दल को अपना प्रभाव बढ़ाने का अच्छा अवसर मिल गया । इसी बीच करेन्सकी और रूसी सेनापति कार्नीलाव के बीच मतभेद उत्पन्न हो गया । कार्नीलाव मनमाने ढ़ंग से रूसी सेना का संचालन शुरू कर दिया । अत: करेन्सकी ने कार्नीलाव को विद्रोही करार दिया और इस सैनिक विद्रोह का दमन वोलशेविकों की सहायता से करने में सफल हुआ । इससे वोलशेविकों के प्रभाव में अत्यधिक वृद्धि हो गयी ।
केडेट दल (क्रांतिकारी समाजवादी दल) और मेन्शेविक दल के मंत्री करेन्सकी की नीतियों से असंतुष्ट होकर मंत्रीमण्डल से त्यागपत्र दे दिये । जिससे करेन्सकी को बड़ी कठिनार्इ के साथ पाँच सदस्यीय नया मंत्रीमण्डल का गठन करना पड़ा । यद्यपि इस मंत्रीमण्डल में कोर्इ प्रभावशाली व्यक्ति नहीं था । लगभग इसी दरम्यान वामपन्थी समाजवादी दल भी करेन्सकी का विरोधी हो गया । फलत: परिस्थिति का लाभ उठाने के लिए वोलशेविक दल सशस्त्र क्रांति करके सत्ता हथियाने की योजना बनाने लगा । इससे स्पष्ट हो गया कि करेन्सकी सरकार भी अधिक दिनों तक टिकने वाली नहीं है ।
बोल्शेविक क्रांति
वास्तव में मार्च 1917 की रूसी क्रांति को असंतुष्ट कृषक और मजदूर वर्ग ने ही संभव बनाया था। लेकिन उन्हें क्रांति का कोर्इ लाभ नहीं मिला । क्योंकि उस क्रांति से जारशाही के शासन का अंत अवश्य हो गया, लेकिन सत्ता अस्थायी सरकार के Reseller में मध्यम वर्ग के हाथों में चली गयी । तात्कालिक सरकार ने भी Fight बन्द करने के लिए कोर्इ प्रयास नहीं Reseller । Fight में भागीदारी भी यथावत रखी गयी । इसके अतिरिक्त इस सरकार द्वारा न तो सामन्ती व्यवस्था का अन्त Reseller गया और न ही भूमि का समान Reseller से कृषकों में वितरण Reseller गया । बल्कि उसने पूँजीपति वर्ग और मजदूर वर्ग के बीच अन्तर बनाये रखने का प्रयास Reseller तथा मजदूरों पर वही पुराने औद्योगिक कानून लादना चाहा । अत: रूस का कृषक और मजदूर वर्ग भड़क गया और उसके जमींदारों को लूटना मारना शुरू कर दिया । मजदूर वर्ग ने काम के घण्टे कम करने तथा वेतन बढ़ाने के लिए हड़ताल शुरू कर दी । सैनिक विद्रोही रूख अपनाकर रणक्षेत्र से वापस लौटने लगे। 7 नवम्बर को बोल्शेविकों ने पेट्रोग्रेड के समस्त भवनों And रेल्वे स्टेशन पर कब्जा कर लिया । इस प्रकार सम्पूर्ण रूस में अराजकता व्याप्त हो गयी । लोगों का सरकार पर से भरोसा उठ गया । ऐसे हालात में करेन्सकी परिस्थिति को सम्भालने में असमर्थ रहा और वह रूस छोड़कर भाग गया । उसके समस्त साथी बन्दी बना लिये गये । इस प्रकार रक्त की Single बूँद बिना बहाये बोल्शेविकों ने पैट्रोग्रेड पर कब्जा कर लिया ।
करेन्सकी की सरकार के पतन के बाद रूस की सत्ता वोल्शेविक नेता लेनिन तथा ट्रॉटस्की के हाथों में आ गयी । इन्होंने Single अस्थायी सरकार का गठन Reseller । जिसमें लेनिन चेयरमैन और ट्रॉटस्की विदेश मंत्री बना । लेनिन ने रूस में पूर्णतया सर्वहारा वर्ग का अस्थिानायकत्व स्थापित Reseller ।
इस प्रकार 1917 की वोल्शेविक क्रांति ने सच्चे Meansों में रूस में मजदूर सरकार की स्थापना की । जिसने रूस में Single ऐसी नवीन व्यवस्था स्थापित की जिसमें न तो कोर्इ शोषक था और न कोर्इ शोषित ।