Human अधिकार क्या है?
Human अधिकार का Means And परिभाषा
Human अधिकार Word हिन्दी का युग्म Word है जो दो Wordो Human + अधिकार से मिलकर बना है। Human अधिकारों से आशय Human के अधिकार से है। Human अधिकार Word को पूर्णत: समझने के पूर्व हमें अधिकार Word को समझना होगा –
- हैराल्ड लास्की के According, ‘‘अधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियाँ है जिसके बिना आमतौर पर कोई व्यक्ति पूर्ण आत्म-विकास की आशा नहीं कर सकता।’’
- वाइल्ड के According, ‘‘कुछ विशेष कार्यो के करने की स्वतंत्रता की विवेकपूर्ण माँग को अधिकार कहा जाता है।’’
- बोसांके के Wordो में, ‘‘अधिकार वह माँग है जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करता है।’’
सारांशत: अधिकार वे सुविधाएँ है जो व्यक्ति को जीने के लिए, उसके व्यक्तित्व को पुष्पित और पल्लवित करने के लिए आवश्यक है। Human अधिकार का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। इसकी परिधि के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के नागरिक, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक And सांस्कृतिक अधिकारों का समावेश है। अपनी व्यापक परिधि के कारण Human अधिकार Word का प्रयोग भी अत्यंत व्यापक विचार-विमर्श का विषय बन गया है। अत: Human अधिकार को विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित करने का प्रयास Reseller है – आर.जे. विसेंट का मत है कि ‘‘Human अधिकार वे अधिकार है जो प्रत्येक व्यक्ति को Human होने के कारण प्राप्त है। इन अधिकारों का आधार Human स्वभाव में निहित है।’’ ए.ए. सईद के According, ‘‘Human अधिकारों का सम्बन्ध व्यक्ति की गरिमा से है And आत्म-सम्मान का भाव जो व्यक्तिगत पहचान को रेखांकित करता है तथा Human समाज को आगे बढाता है।’’
डेविड सेलवाई का विचार है कि ‘‘Human अधिकार संसार के समस्त व्यक्तियों को प्राप्त है, क्योकि ये स्वयं में Humanीय है वे पैदा नही किये जा सकते, खरीद या संविदावादी प्रक्रियाओं से मुक्त होते है।’’
डी.डी. बसु का मत है कि ‘‘Human अधिकार वे अधिकार है जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के Human परिवार का सदस्य होने के कारण राज्य तथा अन्य लोक सेवक के विरूद्ध प्राप्त होने चाहिए।’’
प्लानों तथा ओल्टन की परिभाषा सर्वाधिक संतुलित है, ‘‘Human अधिकार वे अधिकार है जो मनुष्य के जीवन, उसके अस्तित्व And व्यक्तित्व के विकास के लिए अनिवार्य है।’’ All लेखकों का जोर मुख्यत: तीन बातों पर है, पहला Human स्वभाव, दूसरा Human गरिमा तथा तीसरा समाज का अस्तित्व।
Human अधिकार अवधारणा का उद्भव And विकास
Human अधिकारों की अवधारणा उतनी ही प्राचीन है, जितनी कि Human जाति, समाज तथा राज्य की है। Human अधिकारों की धारणा का प्रत्यक्ष सम्बन्ध Human सुख है, जिसने विकास के क्रम में सामाजिक सुख, राष्ट्रीय तथा अन्र्तराष्ट्रीय सुख का स्वReseller धारण कर लिया है। ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ की अवधारणा को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मान्यता प्रदान करने से Human अधिकारों का स्वReseller विश्वव्यापी हो गया है। Human अधिकार में वे All अधिकार शामिल है जिनका सम्बन्ध व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता व प्रतिष्ठा से है। इसके अलावा वे अधिकार भी शामिल है जिनका भारत के संविधान और कानून में History है। साथ ही ऐसी अन्तर्राष्ट्रीय सर्वमान्य घोषणाओं को भी इसमें शामिल Reseller गया है, जिन्हें भारत के न्यायालयों में लागू Reseller जा सकता है।
History नदी की धारा की तरह है। नदी की धारा कभी प्रबल वेग से बहती है तो कभी शांत और कभी गंभीर मुद्रा अख्तियार कर लेती है, पर नदी कभी थमती नहीं, क्योंकि उसका थम जाना ही नदी की मौत की निशानी है। नदी की मानिंद से ही Human सभ्यता और संस्कृति का विकास प्रारम्भ हुआ जो आज भी अविरल Reseller से जारी है। Human History इस बात का साक्षी है कि Human विकास के ऐतिहासिक अनुभवों के बाद ही Humanाधिकारों की अवधारणा का जन्म हुआ।
आधुनिक विश्व के विकास में Human अधिकारों की अवधारणा विशेष महत्व रखती है यद्यपि यह विचार बीसवीं शताब्दी में लोकप्रिय हुआ। अन्य विचारों की भांति Human अधिकारों का संबंध भी सिद्धांत से है। जिसमें व्यक्ति, समाज, राजनीति तथा सरकार के लक्ष्यो को देखा जा सकता है ऐतिहासिक काल मे जिसे प्राकृतिक अधिकारां े अथवा नैसर्गिक अधिकारों के नाम से जाना जाता था, वे ही वर्तमान संदर्भो में मूल अधिकार अथवा Human अधिकारों के नाम से प्रचलित है।
History का अनुशीलन करने पर हम पाते है कि Human अधिकार की अवधारणा उतनी ही प्राचीन है कि जितनी कि Human का अस्तित्व। इसका स्पष्ट Means यह है कि Human अधिकार की जडें, सदैव Human समाज में विद्यमान रही है। ‘‘Human अधिकारों का जन्म Earth पर मनुष्य के विकास के साथ ही हुआ, क्योंकि इन अधिकारों के बिना वह न तो गरिमा के साथ जीनवयापन कर सकता था और न सभ्यता तथा संस्कृति का विकास कर सकता था, लेकिन इसके साथ ही Human अधिकारों के दमन का सिलसिला भी शुरू हो गया, क्योंकि शक्तिशाली व्यक्ति या समूह दूसरों का शोषण करके ही अपना वर्चस्व बनाये रख सकते थे।’’
Human अधिकार की उत्पत्ति के आधारभूत तत्व मनुष्य के प्राचीनतम साहित्य And धार्मिक पुस्तकों में उपलब्ध है। कालक्रमानुसार History के आधार पर दृष्टिपात करे तो देखते है कि, ‘‘बेबीलोनियन नियमों (Babylonian Law), बेबीलोन के हम्मूराबी (1792-1750 ई.पू.), लैगास के कालीन (3260 ई.पू.) अक्कड के सारगोन (2300 ई.पू.) के काल के दौरान भी Humanाधिकार का History मिलता है। बाइबिल, रामायण, वेद, कुरान शरीफ, महाभारत, श्रीमद् भागवत, गीता तथा जैन, बौद्ध And सिक्ख धर्म के ग्रन्थों में Human अधिकार की अवधारणा चिरन्तन Reseller से विद्यमान है। हैरोकिट्स (प्राकृतिक कानून का दर्शन), सुकरात (दार्शनिक), सोफिस्ट प्लेटो, अरस्तु जेनो, कौटिल्य, सिसरो, पौडलस, भीरू, वल्लुर की Creationओं में भी Human अधिकार की अवधारणा देखने को मिलती है इन ग्रन्थो तथा महान दार्शनिकों की Creationएँ Humanाधिकार की अवधारणा के आधारभूत तत्व है और ये ही Human अधिकार के मौलिक स्त्रोत है।
Human अधिकार के सिद्धांत
Human अधिकारों के बारे में और गहरी समझ विकसित करने के लिए यह जरूरी है कि इस विषय पर उपलब्ध राजनीतिक सिद्धातों का खुलासा Reseller जाए। इस सदर्भ में कई सिद्धांत Historyनीय है।
प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत
यह अधिकारों के सिद्धांत का सबसे प्राचीन सिद्धांत है और इसका उदय प्राचीन ग्रीक में हुआ था। इस सिद्धात के According, अधिकार मनुष्य के स्वभाव से संबंधित है इसलिए स्वत: प्रमाणिक सत्य है। यह इस बात पर भी बल देता है कि प्राकृतिक अधिकार राज्य And समाज की स्थापना के First से ही Human के साथ रह रहे है या Human उनका उपभोग करता रहा है। लॉक इस सिद्धांत का अधिकारी प्रवर्तक था। इस सिद्धांत के आलोचकों के According, अधिकार भाववाचक नही होता है। यह केवल व्यक्तिगत भी नही होता है। अधिकार समाज में ही पैदा ओर लागू हो सकता है। अधिकार और कर्त्तव्य Single ही सिक्के को दो पहलू है फिर भी इस सिद्धांत ने इस धारणा को महत्व प्रदान Reseller कि Human अधिकारों का हनन नहीं Reseller जा सकता है।
अधिकारों का कानूनी सिद्धांत
यह सिद्धांत प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत के प्रतिक्रिया स्वReseller पैदा हुआ। इस सिद्धांत के According, Human अधिकार राज्य के कानूनी शक्ति द्वारा ही पैदा Reseller जा सकता है। थॉमस हॉब्स और बेंथम तथा ऑस्टिन ने इस सिद्धांत को विकसित Reseller। अधिकार पूरी तरह से उपयोगितावाद पर आधािरत है। व्यक्ति को सामाजिक हित में कुछ अधिकार छोड़ने पडते है। केवल कानून अधिकारों का जन्मदाता नहीं हो सकता है, इसमें परम्पराएँ, नैतिकता And प्रथाएँ आदि भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। Human अधिकारों के संरक्षण के लिए राज्य की भूमिका स्वीकार की गई है।
गैर उपयोगितावादी सिद्धांत
द्वार्वाकिन नाजिक और जॉनराल्स इस सिद्धात के प्रवर्तक है। इस विचार पद्धति के According व्यक्तिगत And सामाजिक अधिकारों के मध्य कोई आपसी विरोध नहीं होना चाहिए, बल्कि Single सम भाव जरूरी है।
विधिक यथार्थवादी सिद्धांत
यह Single समकालीन विचार माला है। यह मूलत: अमेरिका में राष्ट्रपति रूजवेल्ट के ‘न्यू डील पॉलिसी’ के दौरान उद्भुत हुआ था। कार्ल लेवलेन तथा रेस्क्य ू पाउडं जसै े न्यायविदों ने इस सिद्धांत को आगे बढाया। यह सिद्धांत Human अधिकारों के व्यवहारिक पक्ष पर बल देता है।
मार्क्सवादी सिद्धांत
मार्क्स के According, अधिकार वास्तव मे बुर्जुवा (पूँजीपति) समाज की अवधारणा है जो King वर्ग को और मजबूत बनाती है। राज्य स्वयं में Single शोषणपरक संस्था है, अतएव पूँजीवादी समाज And राज्य में अधिकार वर्गीय अधिकार है। मार्क्स का दृढ़ विश्वास था कि Human अधिकार Single वर्गहीन समाज में पैदा और जीवित रह सकता है। इस तरह का समाज वैज्ञानिक समाजवादी विचारों के According ही गढा जा सकता है। सामाजिक और आर्थिक अधिकार इस सिद्धांत के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। इस सिद्धांत ने आर्थिक, सामाजिक आरै सास्ं कृतिक अधिकारो के अंतर्राष्ट्रीय घोषणा पत्र (1966) को भी प्रभावित Reseller है। All सिद्धात अपने समय की विशेष दशाओं की उपज है और सब में कुछ न कुछ तथ्य निहित है।
Human अधिकारों के प्रकार
साधारणत: अधिकारों को दो मुख्य मार्गो में विभाजित Reseller जाता है – (अ) नैतिक अधिकार, (ब) कानूनी अधिकार। आधुनिक समय में अलग-अलग राजनीतिक व्यवस्थाओं को भिन्न-भिन्न प्रकार के अधिकार प्राप्त होते है। उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था मे जहाँ नागरिक And राजनीतिक अधिकारों को विशिष्ट महत्व प्रदान Reseller जाता है। Human अधिकारों को निम्नांकित श्रेणियों में विभक्त अथवा वगीकृत Reseller जाता है –
प्राकृतिक अधिकार
मनुष्य अपने जन्म से ही कुछ अधिकार लेकर उत्पन्न होता है। यह अधिकार उसे प्रकृति से प्राप्त होते है। प्रकृति से प्राप्त होने के कारण ये स्वाभाविक Reseller से Human स्वभाव मे निहित होते है। जैसे जीवित रहने का अधिकार, स्वतंत्रतापूर्वक विचरण करने का अधिकार।
नैतिक अधिकार
नैतिक अधिकारों का स्त्रोत समाज का विवेक है। नैतिक अधिकार वे अधिकार है जिनका सम्बन्ध Human के नैतिक आचरण से होता है। नैतिक अधिकार राज्य द्वारा Windows Hosting नही होते, अत: इनका मानना व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर होता है। नैतिक अधिकारों को धर्मशास्त्र तथा जनता की आत्मिक चेतना के दबाव में स्वीकार करवाया जाता है।
कानूनी अधिकार
कानूनी अधिकार वे होते है, जिनकी व्यवस्था राज्य द्वारा कानून के According की जाती है और जिनका उल्लंघन राज्य द्वारा दण्डनीय होता है। यह अधिकार न्यायालय द्वारा लागू किये जाते है। सामाजिक जीवन का विकास होने के साथ-साथ इन अधिकारों में वृद्धि होती रहती है। कानून के समक्ष समानता तथा कानून का समान संरक्षण इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
नागरिक अधिकार
नागरिक और राजनीतिक अधिकार वे अधिकार होते है जो Human को राज्य का सदस्य होने के नाते प्राप्त होते है। इन अधिकारों के माध्यम से व्यक्ति अपने देश के शासन प्रबंध में प्रत्यक्ष या परोक्ष Reseller से भाग लेता है। उदारवादी प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं मे नागरिक And राजनीतिक अधिकारों का विशिष्ट महत्व है।
मौलिक अधिकार
आधुनिक समय में प्रत्येक सभ्य राज्य संविधान बनाते समय उसमें मूल अधिकारों का प्रावधान करते है। जनतंत्र में व्यक्ति का महत्व होता है। संविधान में मौलिक अधिकारों का History होने से स्वतंत्रता का दायरा स्पष्ट होता है तथा राजनीतिक मतभेदों से इन्हें ऊपर उठा दिया जाता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए इन अधिकारो को Indispensable माना गया है।
आर्थिक, सामाजिक एव सांस्कृतिक अधिकार
मनुष्य Single सामाजिक प्राणी है, वह समाज में सबके साथ मिलकर रहना चाहता है। समाज का भाग होने के कारण वह कई आर्थिक, सामाजिक एव सांस्कृतिक संस्थाओं का सदस्य भी होता है ओर उनकी गतिविधियों में भाग लेता है।
Human अधिकारों के वर्गीकरण की यह फेहरिस्त बडी लंबी है। समय के साथ-साथ यह फेहरिस्त बढ़ती भी जा रही है। Human अधिकारों में कौन से अधिकार महत्वपूर्ण है, कौन से कम महत्व के है, इसका निर्धारण करना कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य है। Human अधिकारों के संबंध में वैश्विक घोषणा के बाद Human अधिकारों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि ‘‘Human जीवन के समग्र विकास के लिए All अधिकारों की Safty एव क्रियान्वयन अनिवार्य है।’’