मराठों का पतन
मराठों के पतन के कारण
1. Singleता का अभाव-
मराठों में Singleता का सर्वदा से अभाव था। सामतं प्रथा के कारण मराठा साम्राज्य कर्इ छोटे-बड़ े राज्यों में विभाजित था। पेशवा माधवराव के बाद केंद्रीय सत्ता शिथिल हो गयी थी और Singleता का अभाव हो गया था। मराठा सामंतों और Kingों में पारस्परिक आंतरिक कलह, र्इश्र्या और द्वेश थे। वे अलग-अलग संधि और Fight करते थे। अत: वे अपनी संकीर्ण महत्वकांक्षाओं तथा स्वार्थ-लोलुपता का त्यागकर Singleता के सूत्र में नहीं बंध कर अंग्रेजों के विरूद्ध कभी संयुक्त मोर्चा स्थापित नहीं कर सके।
2. दृढ़ संगठन का अभाव-
मराठों के विशाल साम्राज्य की Single बड़ी दुर्बलता यह थी कि वह दृढ़ और सुसंगठित नहीं था। मराठा साम्राज्य का स्वReseller Single ढीला-ढाला राजनीतिक संघ था जिसका प्रत्येक अंग स्वतंत्र था। भोसले सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ आदि मराठा Kingों और सामंतों की पृथक-पृथक भूमि और राज्य थे। इनमें केन्द्र का प्रभाव और नियंत्रण नगण्य था। अत: मराठा संघ शड़यन्त्रो और प्रतिस्पर्धा का केन्द्र बन गया। इससे वे Single-Single करके Defeat होते गये।
3. योग्य नेतृत्व का अभाव-
पेशवा माधवराव, महादजी सिंधिया, यशवंतराव होल्कर जैसे प्रतिभासंपन्न समर्थ नेताओं के देहांत के बाद मराठों में ऐसा वीर, साहसी और योग्य नेता नहीं हुआ जो मराठों को Singleता के सूत्र में बांधने में सफल होता। नाना फड़नवीस ने अव’य मराठों को पुन: संगठित करने का प्रयास Reseller, परंतु वह स्वयं दोषपूर्ण था और फलत: उसके विरूद्ध शड़यंत्र होते रहे। उसकी मृत्यु के बाद चरित्रवान, योग्य व समर्थ नेतृत्व के अभाव में मराठा संघ विश्रृंखलित हो गया।
4. दूरदर्शिता और कूटनीतिक अयोग्यता-
मराठा नेताओं और Kingों में राजनीतिक अदूरदशिरता और कूटनीतिक योग्यता का अभाव था। इसीलिए सर्वाधिक शक्तिशाली होते हुए भी वे स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व और उच्च लक्ष्य स्थापित नहीं किये। उन्होंने शक्तिहीन खोखले जर्जारित मुगल साम्राज्य को Windows Hosting रखने में ही अपनी शक्ति लगा दी। इस प्रकार उनकी शक्ति और सत्ता का अपव्यय हुआ। मराठों ने स्वयं कोर्इ दृढ़ स्वतंत्र अखिल Indian Customer राज्य की कल्पना नहीं की, न ही कोर्इ पृथक राजनीतिक संगठन स्थापित Reseller, कोर्इ दूरदश्र्ाी राजनीतिक लक्ष्य भी नहीं अपनाया। उन्होंने शड्यंत्र, कुचक्र, चालाकी से अपने स्वार्थो की पूर्ति में ही अपनी शक्ति लगा दी। इससे अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति से उनमें कभी Singleता नहीं होने दी।
5. आदर्शो का त्याग-
मराठों ने अपनी राष्ट्रीयता, सादगी और श्रेष्ठ आदशर् जिनके कारण वे इतने शक्तिशाली और सफल बने थ,े कालान्तर में खो दिये। उन्होंने शिवाजी तथा प्रारंभिक पेशवाओं के श्रेष्ठ आद’रो को त्याग दिया था। समानता, सादगी, कर्मठ, कर्त्तव्यनिष्ठा, उत्तरदायित्व की दृढ़ भावना, संयम और कठोर समर्पित जीवन आदि गुणों ने उनको मुगलों के विरूद्ध सफलता प्रदान की थी। किन्तु अंगे्रजों से संघर्ष के युग में वे अब इन गुणों को खा े चुके थे। सामतं वाद, जात पाँत, ऊँच नीच, की भावना और ब्राह्मण मराठा विवाद से मराठा की राजनीतिक और सामाजिक Singleता में दरारे पड़ गर्इ।
6. दोषपूर्ण सैन्य संगठन-
मराठों का सैन्य संगठन दूशित था। उनकी सेना में मराठा, राजपूत, पठान, रूहेले आदि विभिन्न जातियों और संप्रदायों के सैनिक थे। इससे उनकी सेना में राष्ट्रीय भावना लुप्त हो गर्इ। उनमें वह शक्ति, सामर्थ्य और मनोबल नहीं था जो Single राष्ट्रीय सेना में होता है। मराठों के इन विविध सैनिक और अधिकारियों में र्इश्या और द्वेश विद्यमान था। इसलिये वे सामूहिक Reseller से राष्ट्रीय भावना से Fight करने में असमर्थ रहे। मराठों की सेना आधुनिक युरोपीयन ढग़ं से प्रशिक्षित थी। मराठों ने यूरोपीयन ढंग से अपने अधिकारियों को प्रवीण नहीं करवाया था। अत: दूशित सैन्य संगठन भी उनके पतन का कारण बना।
7. कुप्रशासन और दूशित Meansव्यव्स्था-
शिवाजी के बाद के मराठा Kingों ने सुदृढ़ सुव्यवस्थित शासन की उपेक्षा की। उत्तरी भारत में जिन उपजाऊ समृद्ध प्रान्तों को जीतकर मराठों ने अपना राज्य स्थापित Reseller था, वहाँ भी विजित प्रद’े ाों को प्रत्यक्ष प्रशासन में संगठित करने, कृशि, उद्यागे , व्यापार को विकसित करने, प्रजा की भलार्इ, Safty और प्रगति के लिये कोर्इ प्रयत्न नहीं Reseller। उनके कर्मचारी प्रजा का शोशण और राजकीय धन का गबन करते थे। धन की कमी से सैनिक पड़ोसी राज्यों में लूटपाट करते थे। ऐसा राज्य जो लूट के धन या ऋण पर आश्रित हो, कभी स्थायी नहीं बन सकता, न उसका प्रशासन ठीक होगा न सेना। अत: उसका पतन नि’िचत था।
8. Indian Customer राज्यो से शत्रुता-
अपने युग में मराठे देश की सर्वोच्च शिक्ता थे। अंग्रेजों से संघर्ष और Fight करने और उन्हें देश से बाहर करने के लिए अन्य Indian Customer Kingओं का सहयोग आव’यक था। पर मराठों ने उनसे मैत्री सम्बन्ध स्थापित नहीं किये। यदि मराठों ने हैदरअली, टीपू और निजाम की समय पर सहायता की होती तो वे अंगे्रजों की शिक्ता का अन्त करने में सफल हो जाते।