मनोरोग का Means, परिभाषा
- विचलन-मनोरोग की स्थिति में व्यक्ति का व्यवहार असामान्य हो जाता है, जो सामाजिक मानकों के अनुकूल नहीं होता है। इसे ही विचलन की संज्ञा दी गर्इ है।
- तकलीफ-मनोरोग की अवस्था में व्यक्ति का व्यवहार ऐसा हो जाता है, जो स्वयं उसके लिये अत्यन्त-दु:खदायी बन जाता है।
- दुष्क्रिया-मानसिक बीमारी की स्थिति में रोगी के शरीर या मन का कोर्इ हिस्सा उस तरह से कार्य नहीं कर रहा होता, जिस तरह से उसे कार्य करना चाहिये। इसके कारण व्यक्ति को अपने दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करने में भी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और यह स्थिति व्यक्ति को इतना अधिक परेशान कर देती है कि वह साधारण सामाजिक परिस्थितियों और कार्यों में भी अपने आपकों पर्याप्त Reseller से समायोजित नहीं कर पाता है।
- खतरा-मनोरोग की स्थिति में व्यक्ति द्वारा Reseller जाना वाले व्यवहार स्वयं अपने लिये तो खतरनाक होता ही है, इसके साथ-साथ Second लोगों के लिये भी खतरा ही उत्पन्न होता है। अनेक मनोरोग ऐसे होते हैं, जिनमें व्यक्ति का व्यवहार अत्यन्त हिंSeven्मक हो जाता है। ऐसे लोग स्वयं को भी चोट पहुँचा सकते हैं और दूसरों को भी। इसके अतिरिक्त मनोरोगियों का व्यवहार गलत निर्णय, कुव्यवस्था, द्वेष इत्यादि से ग्रस्त होने के कारण भी खतरनाक होता है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि मनोरोग Single असंतुलित मनोदशा की अवस्था होती है, जिसमें व्यक्ति के शरीर या मन का कोर्इ भाग उस ढंग से कार्य नहीं कर रहा होता है, जिस ढंग से सामान्य स्थिति में करता है और इसके कारण रोगी सामाजिक And सांवेगिक Reseller से मान्य व्यवहार बनाये रखने में स्वयं को असमर्थ पाता है Meansात उसका व्यवहार कुसमायोजी हो जाता है। अत: इस स्थिति से उत्पन्न भाव, विचार And व्यवहार व्यक्ति के लिये अत्यन्त दु:खदायी अथवा विघटनकारी होता है।
मनोरोग के स्वReseller को स्पष्ट करते हुये मनोवैज्ञानिकों ने अनेक परिभाषायें दी है, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नानुसार हैं-
- डेविड मेंकानिक के According-‘‘मानसिक बीमारी Single तरह का विचलित व्यवहार है। इसकी उत्पत्ति तब होती है जब व्यक्ति की चिंतन प्रक्रियायें, भाव And व्यवहार सामान्य प्रत्याशाओं या अनुभवों से विचलित होता है तथा प्रभावित व्यक्ति या समाज के अन्य लोग इसे Single ऐसी समस्या के Reseller में परिभाषित करते हैं, जिसमें नैदानिक हस्तक्षेप की Need होती है।’’
- DSM-IV (1994)- के According – DSM-IV में प्रत्येक मानसिक विकृति को Single नैदानिक Reseller से सार्थक व्यवहारपरक या नैदानिक संलक्षण या पैटर्न जो व्यक्ति में उत्पन्न होता है, के Reseller में समझा गया है और यह वर्तमान तकलीफ या अयोग्यता से संबंधित होता है। चाहे वर्तमान समय में व्यक्ति में व्यवहारपरक, मनोवैज्ञानिक या जैविक दुष्क्रिया की अभिव्यक्ति अवश्य माना जाता है। न तो कोर्इ विचलित व्यवहार, (जैसे-राजनैतिक, धार्मिक या लैंगिक) और न ही व्यक्ति तथा समाज के बीच होने वाले संघर्ष को मानसिक रोग माना जा सकता है, अगर ऐसा विचलन या संघर्ष व्यक्ति में दुष्क्रिया का लक्षण न हो।’’
- (APA:DSM, 1994, XXI-XXII) ब्राउन (1940) के According, ‘‘मनोरोग सामान्य व्यवहार का ही अतिरंजित Reseller अथवा विकृत Reseller है।’’