भारत की प्राकृतिक विपदाएं
भारत संसार के सबसे अधिक प्राकृतिक विपदाग्रस्त देशों में चीन के बाद दूसरा हैं।
भूकम्प
भूकम्प साधारण Wordों में भूकम्प का Means धरती का कंपन हैं। भूगर्भिक शक्तियों के कारण Earth के भूपटल में अचानक कम्पन पैदा हो जाती हैं तो उसे भूकम्प कहते हैं। भूकम्प स्थल And जल दोनो भागों में आते हैं। अब भूकम्प लेखन यंत्र (सिस्मोग्राफ) के द्वारा भूकम्प की गति का पता चलता हैं।
भारत में तीव्र भूकम्प की आशंका वाले क्षेत्र:-
Indian Customer मानक ब्यूरों ने भूकम्प के विभिन्न तीव्रताओं वाले क्षेत्रों का मानचित्र बनाया हैं। भूकम्पो की तीव्रता में भिन्नता के आधार पर सम्पूर्ण भारत को चार क्षेत्रों में बांटा गया हैं। क्षेत्र की जानकारी चिन्ह द्वारा अंकित हैं।
- All को अनुभव होता हैं लोग पलंग या खाट से नीचे गिर जाते हैं। फर्नीचर खिसक जाते हैं।
- प्रत्येक व्यक्ति घबराकर भागते हैं। भूकंप रोधी मकानो में भी थोड़ी टूट फूट हो जाती हैं।
- मजबूत भवनों एंव पूलों में टूट फूट हो जाती हैं। खराब निर्माण तत्वों से बने चिमनियां, खंबें स्मारक, दीवारें जमीन पर गिर जाते हैं।
- प्रमाणित वैज्ञानिक तक से बने भवनों And पुलों आदि को भारी नुकसान, नीवं का खिसकना, संपूर्ण शहर बबार्द हो जाता हैं।
भूकंप का प्रभाव:-
- संपत्ति की हानि:- भवने, बांध, पुल, पाइप लाइन, रेल की पटरियां एंव सड़के फट जाती हैं, क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। गुजरात के भुज में आये भूकम्प से लाखो मकान गिर गये, सड़के फट गर्इ एंव रेल की पटरिया मुड़ गर्इ।
- जन हानि:- भूकंप का सबसे अधिक बुरा प्रभाव हजारों लोगों की प्राण छूट जाने के कारण होता है। 11 अक्टूबर 1737 में कलकत्ता में आये भूकंप से 3 लाख व्यक्ति मारे गय।े 2005 में मुजफ्फाराबाद (पाकिस्तान) में 50,000 से अधिक लोगो की जाने चली गर्इ।
- सुनामी:-भूकम्प के कारण समुद्र में Single ऊँची तरंग उठती हैं। इसे ही जापान में सुनामी कहते हैं। अभी तक कर्इ सुनामी लहरों ने अपना तांडव मचाया हैं। 26 दिसम्बर 2004 को (Indian Customer प्रामाणिक समय 6:28 प्रात:) सुमात्रा तट के पास सागर में सिम्यूल द्वीप पर सुनामी लहरे उतपन्न हो गयी थी जिससे प्रभावित देशों में 3,00,000 से अधिक व्यक्ति काल के गाल मे समा गये।
- अन्य प्रभाव:- भूकंप के कारण आग लगना, दरार पड़ना, भूस्खलन, बाढ़ का प्रकोप आदि हानियां होती हैं।
भूस्खलन
पर्वतीय ढ़ालों या नदी तट पर षिलाओं, मिट्टी या मलबे का अचानक खिसककर नीचे आ जाना भूस्खलन हैं। इसी प्रकार पर्वतीय क्षेत्रों में बड़े बड़े बर्फ के टूकड़े सरककर नीचे गिरने लगते है। पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे पर्वतो के जीवन पर बूरे प्रभाव दिखार्इ देने लगे है।
भूस्खलन के क्षेत्र:-
हिमालय पष्चिमी घाट और नदी धाराओं मे प्राय: भूस्खलन होते रहते हैं। भूस्खलनों का प्रभाव जम्मू कष्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम तथा All Seven उ. पूर्वी राज्य भूस्खलन से ज्यादा प्रभावित हैं। दक्षिण में महाराष्ट्र, कर्नाटक में तमिलनाडु और केरल को भूस्खलन का प्रकोप झेलना पड़ता हैं।
भूस्खलन के कारण:-
- भारी वर्षा- लगातार भारी वर्षा होने पर।
- भूकंप एंव ज्वालामुखी विस्फोट :-हिमालय क्षेत्र में प्राय: भूकंप आते रहते हैं। भूकंप के प्रभाव से हिमानी टूट जाते हैं। ज्वालामुखी विस्फोटों से भी पहाड़ी क्षेत्रो में भूस्खलन आते हैं।
- अन्य कारण :-पहाड़ी क्षेत्रो में सड़क निर्माण, झूमिंग कृषि, And भवन आदि निर्माण करने से भी भूस्खलन होता हैं। जल स्तर जल्दी ऊपर आ जाने के करण बाढ़ आ जाती हैं।
- चक्रवात And सुनामी लहरें- इन दोनो के कारण समुद्रो में ऊँची ऊँची लहरे उठती हैं और तूफानी वेग के कारण भारी तबाही मचाती हैं।
- अन्य कारण- वनों के विनाश के कारण And नदियों में परिवर्तन के कारण भी बाढ़ आ सकती हैं।
भूस्खलन का परिणाम या प्रभाव :-
- पर्यावरण का हूास- भूस्खलन से पर्वतीय भागों के पर्यावरण And सौंदर्यता पर भी प्रभाव पड़ता हैं।
- पहाड़ों के ऊपर झरने आदि के जल स्त्रोत सूख रहे हैं।
- नदियों में बाढ़ की वृद्धि हो रही हैं। जैसे अगस्त 1988 को लामारी नामक स्थान पर भूस्खलन से काली नदी का प्रवाह अवरूद्ध हो जाने से लगभग 1.5 वर्ग किमीमें बाढ़ का प्रकोप आ गया था।
- सड़क मार्ग अवरूद्ध हो जाने से यातायात प्रभावित होता हैं।
- अचानक भूस्खलन से अपार जन-धन की हानि होती हैं।
भूस्खलन रोकने तथा इसके दुश्प्रभावों को कम करने के उपाय:-
- वन रोपण- वनरोपण से मृदा में ढ़ीलापन नहीं आ सकता हैं झूमिंग कृषि पद्धति बंद Reseller जाये।
- सड़कों के निर्माण में नर्इ तकनीक का इस्तेमाल कर चट्टानों को नीचे खिसकने से रोका जा सकें।
- खनिज And वनों का शोषण न Reseller जाये।
- भूस्खलन वाले भागों में जल रिसाव रोकने के लिये उपाय किये जायें। मजबूत दिवारों का निर्माण Reseller जायें।
- वन विनाश- हम लगातार वनों का दोहन करते जा रहें हैं। वे पेड़ पौधे जो मृदा कणों को बांधे रखते हैं। ढ़ीले हो जाते हैं अत्याधिक वर्षा होने पर भूस्खलन निर्बाध गति से प्रारंभ हो जाता हैं।
सूखा
भारत में प्रति वर्ष किसी न किसी क्षेत्र में सूखा या अनावृश्टि पड़ता रहता हैं। जिस प्रकार जुलार्इ 2009 मानसुन की अल्पवृश्टि के कारण बहुत बड़े भाग में सूखा पड़ गया हैं। धान की फसले सूख गर्इ जिन्हे मवेशियों को चरा दिये गया। अब हमारे प्शु को क्या खिलायें और लोग भोजन की तलाष में रोजगार पाने दूर दूर जा रहे हैं।
सूखा का तात्पर्य:-
वर्षा का न होना या मानसून की अल्पवृष्टि या लंबे अवकाश को सूखा कहते हैं। मौसम वैज्ञानिकों के संबंध में ‘‘काफी लंबें समय तक Single विस्तृत भाग में वर्षण की कमी ही सूखा हैं।’’
सूखे के कारण-
- वर्षा की कमी, मानसून की अनिश्चितता, अल्प वर्षा से सूखा पड़ जाता हैं।
- शहरों के बसाव के कारण बड़े बड़े जलाशय, झील आदि पाट दिये जाते हैं।
- पर्यावरण के संतुलन बिगड़ने के कारण।
- वनों के विनाश ने मानसुन रोकने की क्षमता कम कर दी हैं।
- भूमिगत जल के दोहन के कारण भी भारी जलसंकट उत्पन्न होता हैं।
सूखे के दुष्परिणाम:-
- भोजन एंव पानी की कमी के कारण भूख एंव प्यास से त्राही-त्राही मच जाती हैं।
- भूखमरी, कुपोषण और महामारियों से अकाल मौते होने लगती हैं।
- अपने घर द्वार छोड़कर रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं।
- मवेशी चारे पानी के अभाव में मरने लगते हेैं। सन् 1877, 1899, 1919 तथा 1943 में भारत में भीशण अकाल पड़े हैं। सन् 1973 में भारत में 20 करोड़ व्यक्ति सूखे से प्रभावित हुये थे तथा कृषि क्षेत्र में 1,558 करोड़ Resellerये की हानि हुर्इ थी।
भारत के सूखा प्रभावित क्षेत्र :-
यद्यपि भारत के अधिकांश क्षेत्रों में कभी न कभी सूखा अपना रूखापन का रौद्रमय Reseller दिखाता हैं। भारत में सूखे की सर्वाधिक बारम्बारता दो क्षेत्रों में मिलती हैं। जो दिये गये मानचित्र के अवलोकन से स्पश्ट हैं।
भारत – सूखा प्रवण क्षेत्र।
- भारत का पष्चिमी क्षेत्र- इसमें राजस्थान तथा उससे संलग्न हरियाणा, गुजरात तथा म.प्र. के भाग आते हैं।
- भारत का दक्षिणी क्षेत्र- इसमें मध्य महाराष्ट्र पूर्वी तथा मध्य कर्नाटक, पमध्य कर्नाटक तमिलनाडु तथा आंध्रप्रदेश स्थित हैं।
सूखे से निपटने के लिये सूखे क्षेत्रों के अनुकूल कृषि पद्धति, सूखा सहन करने वाली फसलें बोकर, वर्षा जल संग्रहण, ऊँची मेड़, पेड़ पौधे लगाकर, नदियों को आपस में जोड़कर इस समस्या का हल Reseller जा सकता हैं।
बाढ़
मानसुन की वर्षा के अति हो जाने से नदी बेसिन में जल का स्तर ऊपर फैल जाना बाढ़ हैं। दुर्ग जिले में शिवनाथ नदी की सहायक नदी तांदुला नदी में बाढ़ आ जाने से बगमरा ग्राम गुण्डरदेही में आकर बस गया। है तब भारत की बड़ी नदियों का आलम अपने विकराल Reseller धारण कर “ाोक एंव विनाश के कारण बनती हैं। भारत में 2.42 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ की संभावना वाला क्षेत्र बतलाया गया हैं। इसमें से आधे से चौथार्इ क्षेत्र में प्रति वर्श बाढ़ आया करती हैं। गंगा तथा ब्रम्हपुत्र नदी तंत्र मिलकर भारत की लगभग 60 प्रतिशत बाढ़ के लिये उत्तरदायी माने जाते हैं।
बाढ़ के कारण:-
- भारी वर्षा-जब अधिक वर्षा होती हैं तो नदियों में बाढ़ आ जाती हैं।
- नदियों मे अवसादों का जमा होना :- नदियों में अवसादो के जमाव होने के कारण उथली हो जाती हैं जिससे जल स्तर जल्दी ऊपर आ जाने के कारण बाढ़ आ जाती हैं।
- चक्रवात And सुनामी लहरें-इन दोनो के कारण समुद्रों में ऊॅंची ऊॅंची लहरे उठती है। और तूफानी वेग के कारण भारी तबाही मचाती हैं
- अन्य कारण- वनों के विनाश के कारण And नदियों में परिवर्तन के कारण भी बाढ़ आ जाती हैं।
बाढ़ नियंत्रण के उपाय:-
- संग्रहण जलाशय:- नदियों में बड़े बड़े बांध बनाकर बाढ़ नियंत्रित की जा सकती हैं।
- तटबंध- नदियों के किनारों पर कृत्रिम तटबांध बनाकर बाढ़ से फैलने वाले जल को रोका जा सकता है।
- वृक्षारोपण- नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में यदि वृक्षारोपण Reseller जाये तो बाढ़ के भयावह को काफी कम Reseller जा सकता हैं। पश्चिमी बंगाल में दामोदर नदी अपनी बाढ़ के प्रकोप के लिये तथा बिहार में कोसी नदी बाढ़ के प्रकोंप के लिये जानी जाती हैं। जिन्हें उनके क्षेत्र में शोक की नदी कहा जाता हैं। राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम के अंतगर्त दामोदर घाटी परियोजना And कोसी नदी परियोजना से बाढ़ में काफी नियंत्रण आया हैं।
चक्रवात-
चक्रवात अत्यंत निम्नवायुदाब का लगभग वृत्ताकार केंद्र हैं। जिसमें चक्कर दार पवन प्रचंड वेग से चलती हैं तथा मूसलाधार वर्षा करती हैं। Single अनुमान के According Single पूर्ण विकसित चक्रवात मात्र Single घंटे में 3 अरब 50करोड़ टन कोष्ण आर्द्र वायु को निम्न अक्षांशों में स्थानान्तरित कर देता हैं।
चक्रवात आने के महीने- यद्यपि चक्रवात आने का कोर्इ निष्चित माह नहीं हैं। लेकिन अधिकांशत: चक्रवात अक्टूबर नवम्बर में बंगाल की खाड़ी में Single वाताग्र पर उश्ण कटिबंधीय चक्रवात बनते है। इस वाताग्र के उत्तर में स्थानीय वायु तथा दक्षिण में समुद्री वायु रहती हैं।
चक्रवात आने के स्थान- भारत में सबसे अधिक चक्रवात पूर्वी तट पर आते हैं। चक्रवात के संकट की आशंका वाले राज्य हैं, पष्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु सबसे अधिक गुजरात में आते हैं। महाराष्ट्र के तटीय और कुछ अंदरूनी क्षेत्र भी चक्रवात के प्रकोप की चपेट में आते हैं।
चक्रवात आने का कारण- आधुनिक विचारों से इन चक्रवातो से भारी वर्षा इसलिये होती हैें कि ऊपरी वायुमंडल में पश्चिमी तरंगों के कारण होने वाला अपसरण इन पूर्वी अवदाबों को अधिक विकसित कर देता हैं। चक्रवातों द्वारा महाविनाश ( हानियाँ ) चक्रवातो के कारण बड़ी बड़ी इमारते, पुल, टॉवर आदि धराषायी हो जाते हैं। मूसलाधार वर्षा से बाढ़ का पानी चारो ओर तबाही मचा देता हैं। चक्रवात द्वारा उतपन्न उत्ताल तरंगे तटीय भागों के हरे भरें खेत खलिहान, गांव एंव शहर उजाड़ देते हैं। इनके कारण भूस्खलन भी होता हैं।