प्रार्थना के Reseller
वैज्ञानिकों का सिद्धान्त है कि प्रत्येक चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं- नेगेटिव तथा पॉजिटिव। धन धु्र And ऋण ध्रुव की भांति प्रार्थना को भी दो कोटियाँ मानी जा सकती है। (1) आकर्षक प्रार्थना (2) प्रवाहक प्रार्थना।
आकर्षक प्रार्थना
आकर्षक प्रार्थना वह आध्यात्मिक प्रयोग है जिनके द्वारा विश्व के अनंत शक्ति भंडार से वायुमण्डल में विकीर्ण थरथराने वाली ओज या दिव्य शक्ति के महासागर से दृढ़ संकल्प के According आत्म शक्ति खींचते हैं। कुछ समय के निमित्त मन Single सचेतन चुम्बक बन जाता है। ‘‘मैं शक्ति हूँ, मैं आत्म-शक्ति को आकर्शित करने वाला चुम्बक हूँ।’’ इस सत्ता से अनुप्राणित And सद्बुध मस्तिष्क Resellerी यन्त्र वायुमण्डल से ओजस् शक्ति खींचता है और महाशक्ति पुंज बनता है। ‘मैं शक्तिपुंज हूँ’। महान आकर्शण केन्द्र हूँ। ऐसा उच्चारण करते ही Singleदम Single विशेष विचार-अनुक्रम उत्पन्न होता है। ज्यों ही तुम ध्यान में Singleाग्र होते हो, झट गति की थरथराहटें उत्पन्न होने लगती हैंं। आकर्षक प्रार्थना आध्यात्मिक शक्तियों के उस प्रयोग को कहते हैं जिसके द्वारा विश्व व्याप्त अनन्त शक्ति भण्डार से बुद्धि शक्ति व प्रेम की तरंगों को आकर्षण होता है।
आकर्षक प्रार्थना अवस्थाएँ
इसकी तीन अवस्थायें हैं-
- परमात्मा से नि:संकोच आवश्यक शक्ति की याचना – इस मत के According साधक को Singleान्त स्थान में शान्तचित्त से लेटकर अपने अंग-प्रत्यंगों को शिथिल कर अथवा सुखासन से सीधे बैठकर परमपिता से अभीप्सित शक्ति की याचना करनी चाहिए। यदि आप शुद्ध And सच्चे हृदय से तन्मय होकर प्रार्थना करोगे तो परमेश्वर आपकी पुकार अवश्य सुनेंगे और ठीक उसी प्रकार सुनेंगे जिस प्रकार आप किसी के Wordों को सुनते हैं, यह Firstावस्था हुई।
- वांछित शक्ति को अपने में पूर्णत: लबालब भरना – आपको ऐसा मानसिक चित्र बनाना चाहिए जिसमें आप अपने आपको दीप्तबल से उद्वेलित होता हुआ देखें। कल्पना को उत्तेजित कीजिए और उसके द्वारा मन में Single ऐसा शक्तिशाली स्वReseller बनाइए जिसमें आप अपने आपको उस दिव्य शक्ति से भरा-पूरा देखे। नेत्र मूंदकर आप ऐसे ध्यान मग्न हो जाइए जैसे बहुत दूर Single ज्योतिपुंज है और Ultra site जैसी उसकी किरणें सृष्टि में बिखरी चली जा रही हैं। कल्पना कीजिए कि ये किरणें मेरी हैं। वे मेरे ही लिए आई हैं। वह सारी की सारी ज्योत्सना मेरी है। मेरे ही लिए है। ज्योत्सना चिन्तन का अभ्यास क्रमश: उत्तरोत्तर बढता जाना चाहिए। आप में शक्ति का प्रवाह भरता है या नहीं- इस विषय में Second से न कहें। निसर्ग को अपना कार्य करने दें। इस अवस्था में आप परम पिता की गोद में खेलते हैं।
- अनुभव की अवस्था – जिस शक्ति या बुद्धि की आपने याचना की होगी, क्रमश: वह आपको प्राप्त होने लगेगी। उसका कुछ-कुछ अनुभव भी होगा। आप इस धारणा को लेकर अपने नित्य के काम धन्धे में प्रवृत्त हों कि आपको मनोवांछित फल मिल गया हों, आप अपने आदर्श को धीरे-धीरे प्राप्त करते जा रहे हैं। आप में ‘दीप्तबल’ आ रहा है। नेत्रों में, मुख मण्डल में, अंग-प्रत्यंगों में दीप्त बल भर गया है। संक्षेप में जिन वस्तुओं की आपने प्रार्थना की है उन्हें अपने में आता हुआ देखो। इस प्रकार नव शक्ति से सम्पन्न होकर आप प्रवाहक प्रार्थना से कार्य ले सकते हैं। क्रमश: तुम्हें सत्य का प्रकाश दृष्टिगोचर होने लगेगा।
प्रवाहक प्रार्थना
प्रवाहक प्रार्थना आकर्षक प्रार्थना द्वारा प्राप्त मानसिक तरंगों को कार्य में लगाया जाता है। अनेक साधक महात्मा आध्यात्मिक चिकित्सक रोगी को बिना देखे रोगी चाहे कितने भी हजार मील की दूरी पर हो, इसी प्रार्थना से इलाज Reseller जाता है। गरीब, दरिद्र, दिवालिए और बेरोजगारों की समृद्धि के लिए प्रवाहक प्रार्थना का ही विशेष उपयोग Reseller जाता है। शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक कठिनाईयों को इसी प्रार्थना के असीम बल से दूर Reseller जाता है। इस प्रार्थना में व्यक्त सद्भावनाएँ, लहरों के Reseller में ईथर पदार्थ के अप्रत्यक्ष माध्यम द्वारा बिना रोक-टोक के हजारों रुकावटों को पार करती हुई यथास्थान पर पहुँचती हैं। Singleत्रित विचारों के सूक्ष्म परमाणुओं द्वारा आकाश में Single शक्तिशाली वायुमंडल विनिर्मित होता है और प्रार्थी की इच्छाशक्ति And Singleाग्रता के According इच्छानुकूल सिद्धि प्राप्त होती है।
उदाहरण – संसार में सबका भला हो। सबकी खैर हो सर्वत्र Single्य मंगल का प्रसार हो। आरोग्य, आनन्द, शान्ति, प्रेम, सुख-समृद्धि की वर्षा हो। हे करुणानिधान! आपकी मंगल कामना पूर्ण हो। ऐसी मंगलकारी प्रार्थना से आसपास के वायुमंडल में सुख-शान्ति, आरोग्य भातृ-भाव तथा पे्रम के विशुद्ध परमाणु विकीर्ण होते हैं। दरिद्रता, व्याधि, रोग, शोक, लड़ाई-झगड़े का दूषित वातावरण Destroy होकर प्रेम तथा भातृ-भाव का साम्राज्य फैलता है।