प्रकृतिवाद (शिक्षा दर्शन)
प्रकृतिवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
दर्शन का आरम्भ आश्चर्य है। प्रकृति आश्चर्यमयी है। उसके भौतिक तत्व ने ही मनुष्य केा चिन्तन की प्रेरणा दी, अत: आरम्भ में हमें प्रकृति सम्बंधी विचार ही मिलते हैं। थेलीस ने जगत का मूल कारण जल बताया। एनेक्सी मैडम ने आध् ाार तत्व वायु को माना है। हैरेक्लाइट्स ने अग्नि को वास्तविकता या यर्थाथता का Reseller दिया। एम्पोडोक्लीज ने Earth , जल, अग्नि तथा वायु All को स्थायी तत्व माना। भारत में वैदिक काल में भी मनुष्य के विचार अग्नि, जल और Earth से सम्बद्ध पाये जाते हैं। इन All को देव का स्वReseller माना गया। प्रकृतिवाद का आरम्भ ऐतिहासिक विचार से Humanीय जगत के आरम्भ से ही कहा जाता है जो कि Indian Customer And यूनानी दोनों दर्शन में पाया जाता है। प्रकृतिव्यवस्थित Reseller में पण्चिमी दर्शन में अधिक विकसित हुआ यद्यपि प्रकृतिवादी दृष्टिकोण तत्व मीमांसा, सांख्य, वैषेणिक, चार्वाक, बौद्ध And जैन दर्शन में भी विस्तार में पाया जाता है। प्रकृतिवाद का विकास क्रमिक ढंग से हुआ है।
First अवस्था में प्रकृति से पदार्थ जो प्रकृति में पाये जाते हैं सत्य And यथार्थ ठहराये गये, उनका अस्तित्व अपने आप में और अपने ही द्वारा पूर्ण माना गया। ल्यूसीपस And डेमोक्राइट्स के According भौतिक पदार्थ अणु में गति हेाने से प्राप्त हेाते हैं। मन और आत्मा गतिशील सुधर अणुओं से बने हैं। एपीक्यूरस से स्पण्ट Reseller कि इन अणुओं से इन्द्रियों की सहायता द्वारा मन का ज्ञान होता है। लेकुसियस ने विकास के उपर जोर दिया। अणुओं के गतिणील होने पर Earth And अन्य ग्रहों की उत्पत्ति हुयी। गतिणीलता से मनुष्य को काल का अनुभव हुआ। हाब्स के बाद रूसों ने प्रकृति को मूर्त माना। उसके According All गुणों से युक्त And ज्ञान का स्त्रोत प्रकृति है। रूसों के बाद हरबर्ट स्पेन्सर हुये जिसने विकासवाद का आश्रय लिया। इन पर लेमार्क का प्रभाव पड़ा। डार्विन ने जीवविज्ञानात्मक सिद्धान्त दिये। इन्होनें ज्ञान को विकास And व§द्धि की प्रक्रिया पर आधारित Reseller। मृत्यु के समय विकास में सहायक Singleीकृत Reseller विछिन्न होकर पुन: जगत के पदार्थ में मिल जाते हैं। बीसवीं शताब्दी में बर्नाड शॉ भी प्रकृतिवादी दर्शन के प्रचारक बने।
भारत में कुछ चिन्तकों की विचारधारा में प्रकृतिवाद दिखायी देता है। रवीन्द्रनाथ टैगोर के दर्शन में प्रकृतिवाद की विचारधारा स्पण्ट है। दयानन्द सरस्वती जैसे आदर्शवादी विचारकों ने भी गुरूकल की स्थापना प्रकृति की गोद में की।
प्रकृतिवाद की संकल्पना
प्रकृतिवाद तत्व मीमांसा का वह Reseller है, जो प्रकृति को पूर्ण वास्तविकता मानता है। वह अलौकिक और पारलौकिक को नहीं मानता है जो बातें प्राकृतिक नियम से स्वतंत्र जान पड़ती है- जैसे Human जीवन या कल्पना की उपज वे भी वास्तव में प्रकृति की योजना में आती है। प्रत्येक वस्तु प्रकृति से उत्पन्न होती है और उसी में विलीन हो जाती है।
प्रकृतिवाद दर्शन का वह सम्प्रदाय है, जो चरम सत्ता को प्रकृति में निहित मानता है। दर्शन शास्त्र में प्रकृति का Means अत्यन्त व्यापक है। Single ओर प्रकृति का Means भौतिक जगत हो सकता है जिसे मनुष्य इन्द्रियों तथा मस्तिष्क की सहायता से अनुभव करता है, दूसरी ओर इसकी जीव जगत के Reseller में व्याख्या की जा सकती है, और Third Meansों में देशकाल का समग्र प्रपंच प्रकृति के अन्तर्गत समाविण्ट हो जाता है। प्रकृति या नेचर से विपरीतार्थक Word है परमात्मा अथवा ‘‘सुपर नेचुरल पावर’’ जिसे प्रकृति से परे माना जाता है। Means की व्याप्ति के आधार पर प्रकृतिवाद का वर्गीकरण Reseller जा सकता है।
- परमाणुवादी प्रकृतिवाद
- शक्तिवाद अथवा वैज्ञानिक प्रकृतिवाद
- जैविक प्रकृतिवाद
- यन्त्रवादी प्रकृतिवाद
- ऐतिहासिक तथा द्वनणात्मक भौतिकवादी प्रकृतिवाद
- Humanतावादी प्रकृतिवादी
- रूमानी प्रकृतिवादी
1. परमाणु प्रकृतिवाद –
यह सबसे पा्रचीन भाैितकवादी दशर्न हे जिसके मतानसु ार जगत की अंतिम इकार्इ परमाणु है, Meansात् चिरन्तन सत्ता भौतिक परमाणु में निहित है। परमाणुवाद के मतानुसार यह दृश्य जगत परमाणुओं के विविध संयोगों का प्रतिफल है। परमाणुओं का यह संयोग द्कि तथा गति के माध्यमों द्वारा होता है। अणुओं का पुन: विखण्डन Reseller जा सकता है और जगत की की अन्तिम इकार्इ शक्ति हो गयी और परमाणुवाद अमान्य सा हो गया है।
2. शक्तिवाद-
परमाणुवाद की असफलता ने शक्तिवाद को जन्म दिया परमाणुवाद में केवल दिक् और काल को ही तत्व थे, परन्तु नये शोधों ने Single और तत्व को जन्म दिया और वह था गति। नये शोधो ने स्पष्ट Reseller कि परमाणु गतिशील होते हैं और उनके इलेक्ट्रान और प्रोटान शक्ति कण होते हैं। अत: जगत का अन्तिम तत्व शक्ति को माना गया है। शक्तिवाद मनुष्य में स्वतंत्रत इच्छाशक्ति होना अथवा आत्मा जैसी किसी अन्य इकार्इ को स्वीकार नहीं करता है।
3. यन्त्रवाद-
इस सम्पद्राय के According सृष्टि यन्त्रवत् है भाैितक जगत, प्राणी जगत तथा Human जगत All की व्याख्या भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र तथा अन्य भौतिक विज्ञानों के माध्यम से की जा सकती है। यन्त्रवाद के According मन तथा उसकी All क्रियायें व्यवहार के प्रकार मात्र हैं, जिन्हें स्नायुसंस्थान, ग्रन्थिसंस्थान तथा मांसपेशीसंस्थान की सहायता से समझा जा सकता है। यन्त्रवादी भी शक्तिवादी के समान ही नियतिवाद में विश्वास करता है। उसके According जगत में जो परिवर्तन होते हैं वे All कारण-कार्य नियम से आबद्ध है।
4. जैविक प्रकृतिवाद –
इस सम्पद्राय का उदग् म डाविर्न के क्रम विकास सिद्धान्तों से हुआ है तथा वास्तव में किसी सम्प्रदाय को सच्चे Meansों में प्रकृतिवाद संज्ञा से अभिहित Reseller जा सकता है तो वह जैविक प्रकृतिवाद ही हैं इनके According Human का विकास जीवों के विषय में सबसे अंतिम अवस्था में है। मस्तिण्क के फलस्वReseller वह विज्ञान को संचित रख सकता है, नये विचार उत्पन्न कर सकता है। पर अन्य प्राणियों की तरह वह भी प्रकृति के हाथों का खिलौना मात्र है। उसकी नियति तथा विकास की सम्भावनायें वंशक्रम तथा परिवेण पर निर्भर करती है। मनुष्य की स्वतंत्रता का अधिकार भी सीमित है।
5. द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद –
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के प्रमुख व्याख्याकार माक्र्स तथा ऐंजल्स है। यह सम्प्रदाय भी विज्ञान को सर्वोच्च महत्व प्रदान करता है, परन्तु इसका आग्रह स§ण्टि संCreation से हटकर आर्थिक संCreation पर आ जाता है। इसके According समाज के आर्थिक संगठन का आधार क्रय है। द्वव्य जो आर्थिक संCreation में प्रयुक्त होता है, नैतिक, धार्मिक तथा दार्शनिक विचारों को जन्म देता है। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के According जगत विकास की निरन्तर प्रक्रिया है। परिवर्तन की All क्रियायें द्वन्द्वात्मक होती है, Meansात् All परिवर्तनकारी प्रक्रियायें स्वीकारोक्ति से आरम्भ होती है, तदनन्तर उसमें नकारोक्ति का संघर्ण अन्तर्निहित है, जिसका अवसान समाहारोक्ति में होता है। इस द्वन्द्व को उसने अस्ति-नास्ति तथा समण्टि संज्ञाओं में अभिहित Reseller है। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की आत्मा स्वतत्र इच्छाशक्ति अथवा परमात्मा आदि तत्वों से इन्कार करता है तथा स§ण्टि का मूल द्रव्य में मानता है।
6. रूमानी प्रकृतिवाद –
इस सम्प्रदाय के व्याख्याकार रूसों, नील And टैगोर है। इनकी रूचि स§ण्टि की संCreation में न होकर सृष्टि की आàळादकारी प्रकृति तथा गहन Human प्रकृति से है। इस सम्प्रदाय को प्रकृतिवादी केवल इन Meansों में कहा जा सकता है कि वह सामाजिक कृत्रिमता का विरोध करते हैं, तथा मनुष्य के प्रक§त जीवन को आदर्श मानते हैं। रूसों प्रकृति के निर्माता की कल्पना भी करता है। प्रकृति से परे किसी परमात्मा को अस्वीकार नहीं Reseller जाता अपितु प्रकृति को र्इण्वर की कृति माना जाता है।
वैज्ञानिक Humanतावद –
इस सम्पद्राय के According मनषुय अपनी बुिद्ध के प्रयोग द्वारा लोकतांत्रिक शासन की संस्थाओं को संचालित करते हुये बिना, किसी पराशक्ति की मदद से Single ऐसे तर्कशक्ति परक सभ्यता का स§जन कर सकते हैं जिसमें प्रत्येक मनुष्य Safty की अनुभूति कर सके और स्वयं में निहित सामान्य Humanीय क्षमताओं और स§जनात्मक शक्तियों के According विकास कर सके।
प्रकृतिवाद की परिभाषा
- थामस और लैगं – ‘‘प्रकृतिवाद आदशर्वाद के विपरीत मन को पदार्थ के अधनी मानता है और यह विश्वास करता है कि अन्तिम वास्तविकता- भौतिक है, अध्यात्मिक नहीं।’’
- पैरी-’’प्रकृतिवाद विज्ञान नहीं है वरन् विज्ञान के बारे में दावा है। अत्मिाक स्पष्ट Reseller से यह इस बात का दावा है कि वैज्ञानिक ज्ञान अन्तिम है और विज्ञान से बाहर या दार्शनिक ज्ञान का कोर्इ स्थान नहीं है।’’
- जेम्स वार्ड –’’प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जो प्रकृति को इर्ण् वर से अलग करती है और आत्मा को पदार्थ अथवा भौतिक तत्व के अधीन मानती है, And अपरिवर्तनशील नियमों को सर्वोच्च मानती है।’’
- ज्वाइस महोदय-’’वह विचारधारा है जिसकी पध्रान विशेषता है प्रकृति तथा मनुष्य के दार्शनिक चिन्तन जो कुछ आध्यात्मिक है अथवा वास्तव में जो कुछ अनुभवातीत है उसे अलग हटा देना है।’’
प्रकृति की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा और आचार मीमांसा की द§ण्टि से हम उसे इस Reseller में परिभाषा करते हैं-‘‘प्रकृति दर्शन की वह विचारधारा है जो इस ब्राह्माण्ड को प्रकृतिजन्य मानती है और यह मानती है कि यह भौतिक संसार ही सत्य है इसके अतिरिक्त कोर्इ आध्यात्मिक संसार नहीं है। यह र्इण्वर को नहीं मानती और आत्मा को पदार्थ जन्य चेतन तत्व के Reseller में स्वीकार करती है और यह प्रतिपादन करती है कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य सुखपूर्वक जीना है, जो प्राकृतिक विकास द्वारा प्राप्त Reseller जा सकता है।’’
प्रकृतिवाद का दार्शनिक दृष्टिकोण
1. तत्वदर्र्शन में प्रकृतिवाद –
परमाणु को सत् अनश्वर And अविभाज्य मानते है। ये परमाणु आकार And मात्रा में भिन्न होते हैं। इन्हीं के संयोग से ब्रह्माण्ड की Creation होती है जो द§श्य है वह परमाणुओं के संयोग का फल है। प्रकृतिवादियों के According मनुष्य- इन्द्रियों And विभिन्न शक्तियों का समन्वित Reseller है। सब प्रकृति का खेल है। इसमें आत्मा नामक चेतन तत्व नहीं है। सम्पूर्ण सृष्टि के नियम विद्यमान है। सब कार्य नियमानुसार हेाते है, मनुष्य भी प्रकृति अधीन है स्वतंत्र नहीं। प्रकृति के नियम, शाश्वत And अपरिवर्तनशील है।
2. ज्ञानशास्त्र में प्रकृतिवाद –
प्रकृतिवादी पत्रयक्ष का समथर्न करते है। ये इन्दिय्रों तथा अनुभव के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति पर बल देते हैं। वे इन्द्रियों द्वारा प्राप्त किये जाने वाले ज्ञान को सत्य मानते हैं। हरबर्ट स्पेन्सर इस ज्ञान को निम्न स्तर के ज्ञान से ऊँचा और तत्व ज्ञान से निम्न मानता है। तत्व ज्ञान पूर्णResellerेण संगठित ज्ञान होता है। इसको स्पेन्सर ने सर्वोत्तम प्रकार का ज्ञान बताया है। रूसों ने शिक्षा के सब स्तरों पर प्रत्यक्ष ज्ञान को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करने के लिये कहा है।
3. आचार मीमासां में प्रकृतिवाद –
प्रकृतिवाद पा्रकतिक पदार्थ And क्रियाओं को ही सत्य मानता है। इनके According प्रकृति अपने आप में शु़द्ध है और इसके अनुकूल आचरण मनुष्य को करना चाहिये, जिससे कि सुख मिलें। मनुष्य को अपनी प्रकृति के अनुकूल ही आचरण करना चाहिये। वे मनुष्य को किसी प्रकार से सामाजिक नियमों और आध्यात्मिक बंधनों में बांधकर नहीं रखना चाहते हैं। मनुष्य को जो कार्य सुख देते हैं वही कार्य वह करेगा। प्रकृतिवादी केवल प्राकृतिक नैतिकता को मानते हैं।
प्रकृतिवाद के मूल सिद्धान्त
प्रकृतिवाद के दार्शनिक दृष्टिकोण के बारे में पूर्व में जानकारी प्राप्त कर चुके है। अब प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा And आचार मीमांसा को हम सिद्धान्तों के Reseller इस प्रकार से देख सकते हैं-
1. यह ब्रह्म्र्राण्ड Single प्राकृतिक Creation है-
प्रकृतिवादियों के According संसार का कर्ता और करण दोनों स्वयं प्रकृति ही है। प्राकृतिक तत्वों के संयोग से पदार्थ और पदार्थों के संयांग से संसार की Creation होती है और उनके विघटन से इसका अन्त होता है। यह संयोग और विघटन की क्रिया कुछ निश्चित नियमों के According होती है। इसको बनाने और बिगाड़ने को प्राकृतिक परिवर्तन कहा जाता है।
2. यह भौतिक ससांर ही सत्य –
प्रकृतिवाद भाैितक ससार को ही सत्य मानता है। उसका स्पण्टीकरण है कि इस संसार को हम इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष कर रहे हैं, अत: यह सत्य है। इसके विपरीत आध्यात्मिक संसार को हम इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष नहीं कर पाते इसलिये वह असत्य है।
3. आत्मा पदार्थ जन्य चेतन तत्व है-
प्रकृतिवाद आत्मा के आध्यात्मिक स्वReseller को स्वीकार नहीं करता। उसका स्पण्टीकरण है कि यह संसार प्रकृति द्वारा निर्मित है और यह निर्माण कार्य निश्चित नियमों के According हेाता है, इसके पीछे किसी आध्यात्मिक शक्ति परमात्मा की कल्पना Single मिथ्या विचार है। प्रकृतिवादियों के According परमाणु में स्थित इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्यूट्रान की गतिशीलता जड़ में जीव और जीव में चेतन का विकास करते हैं।
4. मनुष्य ससांर की श्रेण्ठतम् Creation-
प्रकृतिवाद मनुष्य को जन्म से पूर्ण तो नहीं पर संसार की श्रेण्ठतम् Creation मानता है। भौतिक विज्ञानवादी प्रकृतिवाद के According मनुष्य संसार का श्रेण्ठतम् पदार्थ है। यन्त्रवादी प्रकृतिवाद के According मनुष्य श्रेण्ठतम् यंत्र है और जीव विज्ञानवादी यह संसार का सर्वोच्च पशु है। जीव विज्ञानवादियों के According मनुष्य अपने में निहित कुछ विशेष शक्तियों के कारण अन्य पशुओं से सर्वोच्च बना लिया। इसमें बुद्धि की महत्वपूर्ण भूमिका है।
5. Human विकास Single प्राकृतिक क्रिया है-
जीव विज्ञानवादी प्रकृतिवादी विकास सिद्धान्तों में विश्वास रखते हैं। उनके According मनुष्य का विकास निम्न प्राणी से उच्च प्राणी के Reseller में हुआ। मनुष्य भी कुछ प्रवृत्ति लेकर पैदा होता है। इनका स्वReseller प्राकृतिक है। वाह्य वातावरण से उत्तेजना पाकर ये शक्तियां क्रियाशील होती है, और मनुष्य का व्यवहार निश्चित होता है।
6. मनुष्य जीवन का उद्देश्य सुख-
प्रकृतिवाद Human जीवन के अंितम उद्देश्य में विश्वास नहीं करता है। उसका विश्वास है कि प्रत्येक प्राणी में जीने की इच्छा है और जीने के लिये वह संघर्ष करता है और परिस्थिति के अनुकूल बनाकर अपने आपको Windows Hosting कल लेता है। मनुष्य अपने परिस्थितियों का निर्माता भी है इस प्रकार उसने अन्य प्राणियों के समान सुख भेागा।
7. प्राकृतिक जीवन ही उत्तम-
प्रकृतिवादियों के According सभ्यता And संस्क§ति के विकास And मोह ने Human को प्रकृति से दूर Reseller है। मनुष्य की प्राकृतिक प्रकृति उत्तम है Human आत्मरक्षा चाहता है और यह भी चाहता है कि उसके किसी कार्य में बाधा न आये। Human की प्रकृति में छल, कपट, द्वेष आदि दुर्गुण नहीं है।
8. प्राकृतिक जीवन मे सामथ्र्य समायोजन और परिस्थिति पर नियत्रण-
जीव विज्ञानवादियों के According प्राकृतिक जीवन के लिये Single मनुष्य में सबसे First जीवन रक्षा का सामथ्र्य होनी चाहिये और प्राकृतिक वातावरण में समायोजन की क्षमता होनी चाहिये। जिस मनुष्य में यह शक्ति नहीं होगी वह जीवित नहीं होगा।