दलितों का History
History क्या होता है ? इस सवाल के जवाब में विद्वानों का मत है कि History Kingों का रिकार्ड मात्र होता है। शायद इसी कारण गुलामों और दबे कुचले लोगों का कोई History नही रहा है। लेकिन दलितों का History देखे तो काफी गौरवशाली रहा है। वास्तव में देखा जाये तो शूद्र कौन थे ? शूद्र भारत के मूल निवासी माने जाते है। जिन्हें History मे अनार्य कहा जाता था और आर्य वह लोग थे जो कि पश्चिमोत्तर एशिया से भारत आये थे। यहां पर आकर आर्यो ने अनार्य जो उस समय भारत के मूल निवासी और King वर्ग था। उनके किलो व राज्यों पर साम, दाम, दण्ड व भेद की नीति अपनाकर दल बल से अधिकार कर लिया और उनको दास या गुलाम बना दिया गया और उन गुलामों को ही आगे चलकर शून्द्र (दलित) की संज्ञा प्रदान की गई थी। आगे चलकर आर्यो ने शूद्रो में से सछुत शूद्र और ‘अछूत शूद्र’ दो अलग-अलग वर्गो का निर्माण Reseller। अनेकों Historyकोरों और हिन्दू धर्म ग्रन्थों में भी इस बात के तथ्य मिलते है जिन्हें ब्राह्यण ग्रन्थों में शूद्र या दलित घोषित Reseller गया है। वह वास्तव में क्षत्रिय है। जो भारत का King वर्ग रहा है। अब सवाल उठता है कि क्षत्रिय दलित कैसे बने तो यह ब्राह्यण और क्षत्रिय Fightो के कारण हुआ है। इन Fightों मे जिन क्षत्रियों ने आसानी से ब्राह्यणों की अधिनता स्वीकार की थी उनको कम दण्ड देने हेतु ग्रह कार्यो आदि में लगाया गया था और जिन्होने अति कठिन संघर्ष Reseller था उन्हे गन्दगी साफ सफाई के कार्य में लगा कर अछूतों की संज्ञा दी गई थी। यदि वेदों में देखते है तो शूद्र Word का प्रयोग किसी वेद में नही पाया जाता केवल ऋग्वेद के ‘पुरुष सूक्त’ में इस Word का वर्णन है। इसके अतिरिक्त तीनों वेदों में इस Word (शूद्र) का प्रयोग कही नहीं Reseller गया। जिससे पता चलता है कि ऋग्वेद में ‘पुरुष सूक्त’ ब्राह्यणों द्वारा बाद में छल से जोडा गया है। आगे चलकर शूद्र बना रहे इसके लिए ब्राह्यमणों के द्वारा सामाजिक व्यवस्था व कानून तैयार Reseller गया जिसको बनाने का कार्य Single ब्राह्यमण बुद्धिजीवी नेता ‘मनु’ को दिया गया मनु द्वारा समाज में वर्ग व्यवस्था चार वर्णो में लागू की गई जिसमें ब्राह्यण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र इसमें शूद्रों को अन्तिम श्रेणी में रखा गया और उनके लिए अलग कानून बनाये गये।
जो इस प्रकार थे :-
- वर्ग व्यवस्था में शूद्रों का स्थान सदैव अन्तिम होगा।
- शूद्र अपवित्र व तीन वर्णो से नीचे है अत: उनके सुनने के लिए कोई कर्मकाण्ड था वेद मन्त्र नही होगा।
- वैद्य किसी भी शूद्र की चिकित्सा नही करेगा।
- शूद्रों का वध करने पर ब्राह्यण को दण्ड नहीं दिया जायेगा।
- किसी भी शूद्र को विद्या ग्रहण करने व पढाने का अधिकार नही होगा।
- किसी भी शूद्र को सम्पत्ति रखने का अधिकार नही होगा। यदि वह इसका उल्लंघन करता है तो उसकी सम्पत्ति ब्राह्यणों द्वारा छिन्न ली जायेगी।
- शूद्र कही भी सम्मान पाने का अधिकारी नहीं होगा।
- शूद्र जन्म से दास होगा और मरने तक दास बनकर ही रहेगा।
मनु द्वारा लिखे गये इस कानून को मनुस्मृति, मनुवाद या ब्राह्यणवाद के नाम से जाना जाता है।
इसके अतिरिक्त दलितो के History के बारे में कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि लगभग 4000-4500 वर्षो First सिन्धु सभ्यता का उदय हुआ था जो सबसे समृद्ध सभ्यता मानी जाती थी। उस सभ्यता को अपनाने वाले लोग कौन थे और बाद में कहा चले गये इन All पहलूओं के अध्ययन से पता चलता है कि वर्तमान ईरान, ईराक, रुस और जर्मनी आदि जो उस समय मध्य एशिया कहा जाता था वहां के लोग घुमक्कड व खानाबदोश थे। (जो आर्य थे) वह खाने की तलास में उत्तर के रास्ते घुमते हुए भारत आये और यहां कि सम्पन्नता देखकर लालच में आकर यही बस गये और यहा के मूल Kingों को छल से अपने जाल में फंसा कर अपना गुलाम बनाया और उन पर अपना अधिपत्य जमाना शुरु कर दिया जिससे दोनों मे Fight आरम्भ हुआ। यह संघर्ष लगभग 500 वर्षो तक चला जिसे History में ‘आर्य और अनार्य Fight’ के नाम से जाना जाता है। Fight मे पराजित अनार्यो को शूद्र की संज्ञा दी गई थी जो आज के वर्तमान समय मे दलित जातियों में विभक्त है। और दलितों के नाम से जाने जाते है।
आरम्भ में यहाँ All शूद्र ही कहलाते थे। First अधिनियम 1935 में शूद्रों को दलित से सम्बोधित Reseller गया था आगे चलकर यही Word दलित Indian Customer संविधान के अनुच्छेद 341 में भी संविधान निर्माताओं के द्वारा भी आम रुप से प्रयोग में लाया गया था। संविधान के अनुच्छेद-341 के तहत भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष अनुबन्ध की व्यवस्था की गई है और इन All दलित जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान निर्माताओं के द्वारा की गई है। आरम्भ से ही दलितों की आर्थिक, शैक्षिक और समाजिक स्थिति बहुत ही दयनीय रही है। इनकी इस स्थिति में सुधार व दलितों में चेतना जगाने का कार्य अनेक दलित महापुरुषों के द्वारा Reseller गया था। इस समाज की स्थिति में सुधार लाने का कार्य करने वालों में सबसे पहला नाम दलित आजादी के पितामाह माने जाने वाले ज्योतिबाराव फूले का आता है। उनके बाद दलितों की स्थिति सुधारने हेतु छत्रपति शाहूजी महाराज द्वारा आरक्षण की व्यवस्था करके (सरकारी नौकरियाँ में) क्रांन्तिकारी कदम उठाया। आगे चलकर अनेकों महापुरुषों ने दलितो की दशा सुधारने हेतु कार्य किये जो दलित आन्दोलन में महत्वपूर्ण स्थान रखते है। और उनके बाद वर्तमान समय में दलितों में राजनीतिक व सामाजिक चेतना को जाग्रत करने का कार्य मान्यवर कांशीराम जी के द्वारा Reseller गया है।