जापान का History
सौन्दर्य की दृष्टि से, जापान विश्व का Single सुन्दर And रमणीय देश है। यहाँ स्थित जंगल, पर्वत, पहाड़ी क्षेत्र, झील, नदी और मैदानी भाग लोगों को आकर्षित करते हैं। जापान में लौह अयस्क की काफी कमी है जिसकी पूर्ति आजकल वह भारत से कर रहा है। यहाँ प्राकृतिक संसाधनेां की कमी है जिसके कारण यहाँ के लोग परिश्रमी, अध्यवयासायी तथा अन्य रास्ते खोजने में सक्षम हुए। उन्होंने दूसरों से सीखने की कला को अपने में आत्मSeven Reseller। राष्ट्रीयता और सम्पर्क भावना और आत्मSeven करने की कला ने उन्हें विश्व में अग्रणी बना दिया।
जापान का History
जापान में प्रचलित कथा के According वहाँ का सम्राट देवताओं का वंशज है और राजपरिवार की ‘श्रृंखला युगों से अटूट बनी है।’ जापान में Single किंवदन्ती प्रसिद्ध है जिसके According इजानामी नामक देवता तथा इजानामी देवी के संयोग से जापान की उत्पत्ति हुई। Ultra site देवी आमातेरासू ने अपने पौत्र को यहाँ राज्य करने के लिए भेजा। उसके प्रपौत्र ने सम्पूर्ण जापान पर 660 ई.पू. में आधिपत्य स्थापित Reseller और यामातो राजवंश की नींव डाली। जापान में फैले छोटे-छोटे कबीलों की स्वतन्त्रता को Destroy नहीं Reseller गया वरन् उन्हें राज्य का सामन्त बना लिया गया। जापान में यह व्यवस्था कारगर सिद्ध हुई और जापान में Single ही राजवंश का शासन चलता रहा। जापानी गणना के According हिरोहितों Single सौ तेईसवे सम्राट हैं। सम्राट के दैवीय उद्भव के विश्वास की इस मानसिक प्रवृत्ति ने जापानियों में तीव्र देशभक्ति की भावना को पोषित Reseller, जिसके लिए जापान प्रसिद्ध है।
छटी शताब्दी ईस्वी के आसपास जापान का सम्पर्क चीन से हुआ और चीन का जापान पर प्रभाव पड़ने लगा। चीन और जापान में प्रचारकों, भिक्षुओं और छात्रों का आना जाना प्रारम्भ हुआ। कोरिया के रास्ते चीनी संस्कृति जापान पहुंचने लगी। जापान ने चीन के राजदरबार में अपने दूत भेजे। जापान में चीनी लिपि भी प्रचलित होने लगी। कारीगर और व्यापारी भी यहाँ आने लगे। चीन और जापान के बीच कई शताब्दियों तक सम्पर्क बना रहा। जापानियों ने चीनी सभ्यता को ग्रहण कर उस पर अपनी विशिष्ट छाप लगा दी। 645 ई. में जापान में चीन के यांग राज्य के नमूने पर केन्द्रीय शासन प्रणाली की स्थापना की गई। भूमि का राष्ट्रीयकरण Reseller गया और Single समान कर पद्धति लागू की गई। प्रान्तों और प्रदेश में राजकीय अफसर नियुक्त किए गए। जापान में बौद्ध धर्म का प्रवेश भी चीन से ही हुआ और कुछ ही समय बाद बौद्ध धर्म चीन का राष्ट्रीय धर्म बन गया।
जापान में सामन्ती व्यवस्था-
जापान के विभिन्न प्रान्तों में केन्दी्रय सरकार के जो अधिकारी नियुक्त किए गए थे, कालान्तर में उनका पद वंशानुगत हो गया। 12वी शताब्दी तक उन्होंने अपनी शक्ति में पर्याप्त वृद्धि कर ली थी जिससे Single सामन्ती व्यवस्था का ढाँचा तैयार हो गया। इनके पास बड़ी-बड़ी जागीरें थी और इनको ‘डैम्यो’ कहा जाने लगा। डैम्यो अपने क्षेत्रों में स्वतन्त्र होते थे। इनके अधीन और छोटे सामन्त होते थे। डैम्यो स्वतन्त्र आर्थिक, राजनीतिक और सैनिक इकाई बन गए थे। इनके अपने अलग कानून, रस्म और रिवाज होते थे। सामन्तों में आपस में संघर्ष भी होते थे जिसके लिए इन्होंने अपनी सेना का गठन Reseller। इन सैनिकों को ‘सामूराई’ कहा जाता था। ‘सामुराई’ अपनी वफादारी, वीरता और सख्त जीवन के लिए प्रसिद्ध थे। इनकी तुलना पूर्व मध्यकालीन भारत के राजपूतों से की जा सकती है।
जापान में ‘शोगून ‘ व्यवस्था-
सामन्तवादी व्यवस्था ने जापान में अराजकता और अव्यवस्था को जन्म दिया। सामन्त राजदरबार पर अपना-अपना प्रभाव जमाने के लिए अनैतिकता का सहारा लेने लगे। सामन्त अपने वीरता के कार्यो से भी राजदरबार को प्रभावित करते थे ताकि King उनको श्रेष्ठ स्थान दे सके। 1192ई. में योरीतोमो नमाक सामन्त को सम्राट द्वारा ‘प्रधान सेनापति (शोगून) का पद दिया गया। धीरे-धीरे ‘शोगून’ का पद भी वंशानुगत हो गया। शोगून का प्रमुख पद पाने के लिए सामन्तों में होड़ लगी रहती थी। 1109 से 1333 ईतक दोजी परिवार, 1392 से 1603 ई. तक आशाकागी परिवार, तथा 1603 ई. से इयेयासु तोकूगावा के पास ‘शोगून’ का पद पहुँचा। शोगून की समाप्ति 1667 ई. में उस समय कर दी गई जबकि मेईजी पुर्नस्थापना हुई।
शोगून शासन व्यवस्था में सम्राट केवल नाममात्र का होता था। इयेयासु द्वारा शोगून पद प्राप्त करने से पूर्व जापान में सामन्ती व्यवस्था ने जापान की संस्कृति को झकझोर कर रख दिया था। दोजी और आशीकागा परिवारों के पास जब तक शोगून का पद रहा जापान में अराजकता, मार-काट, लूट-खसोट का समय रहा। सामन्त Single Second पर आक्रमण कर रहे थे। सैनिक प्रशासन की राजधानी कामाकुरा में विलासिता का प्रवेश हो गया। चीनी संस्कृति का आगमन प्रमुख Reseller से हुआ। इसी काल में जापान ने मंगोल जाति के आक्रमण का सामना Reseller। मंगोलों ने कुबलाई खाँ के नेतृत्व में जापान पर भीषण आक्रमण कर दिया। जापान के लोगों ने बाह्य आक्रमण के समय मतभेद भुलाकर Singleता का परिचय दिया और चीनी (मंगोल) आक्रमण को विफल कर दिया।
आशीकागा काल में जापान में गृह कलह में वृद्धि हुई। अव्यवस्था जापान साम्राज्य की सीमाओं के बाहर भी फैल गई। समुद्री लुटेरे भी आमजन को कष्ट देने लगे। आशीकागा शोगून विलासिता तथा राजदरबार से संबंद्ध परम्परागत दुराचारों के शिकार हो गए उन्होंने जनता पर भारी कर लगाए। जनता में विद्रोह की प्रवृत्ति बढ़ने लगी। जनता ने कर देने से इन्कार कर दिया। संकट की स्थिति में Single आशीकागा शोगून ने चीन का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया और स्वयं के लिए जापान के King की उपाधि प्राप्त कर ली। बदले में चीन को जापान में व्यापारिक अधिकार दे दिए। अभी तक के History में, जापान में यह First बाह्य दखल था।
यूरोपीयत के आगमन से इस अराजकता में और वृद्धि हुई। 16वी सदी के मध्य में पुर्तगाली जापान पहुँचे। इसके बाद स्पेन, डच तथा ब्रिटेनवासी आए। इन्होंने यहाँ वाणिज्य-व्यापार प्रारम्भ Reseller और गोला बारूद तथा ईसाई धर्म को अपने साथ लाए।
जापान में शान्ति स्थापना के प्रयास-
जापान में फैली अराजकता को दूर करने का कार्य सैनिक वर्ग ने Reseller। यह सैनिक वर्ग निम्न श्रेणी से था। इन्होंने गृह कलह को समाप्त कर जापान को संभलने का मौका दिया। नोबुनागा, हिदेयोशी तथा इयेयासु नामक सेनानायकों ने क्रमश: देश की बागडोर अपने हाथ में ली और जापान की Single ठोस शुरूआत की। इयेयासु ने तो Single ऐसे प्रशासन का संगठन Reseller जो 19वीं शताब्दी के मध्य तक चलता रहा।
1603 ई. में इयेयासु ने स्वयं को शोगून के पद पर नियुक्त Reseller। 400 वर्ष पूर्व योरीतोमा द्वारा संगठित शोगून व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ Reseller। उसने चेर्दो (टोReseller) में, अपनी राजधानी स्थापित की। इयेयासु ने चेर्दों के चारों ओर तोकुगावा परिवार के सदस्यों की सामन्ती जागीरें स्थापित कर दीं। ये सामन्त दाइम्यो कहलाते थे। ये सामन्त शासन कार्य में शोगून की सहायता करते थे। सामन्तों (दाइम्यो) के नीचे सैनिक होते थे जो समूराई कहलाते थे। ये प्रशासन चलाने, राज्य की Safty करने तथा किसानों आदि से कर भी वसूल करते थे। समाज के सबसे नीचे वर्ग में व्यापारी तथा शिल्पी थे।
राज पद के अधिकारों में कमी –
इयेयासु द्वारा King के परम्परागत पद को समाप्त नहीं Reseller गया। बल्कि सम्राट के पद की पवित्रता को और अधिक ऊँचा उठाकर राजकीय मामलों में King के सक्रिय हस्तक्षेप को रोका गया। उसे दैनिक प्रशासन के कार्यो तथा राष्ट्र के वास्तविक मामलों की चिन्ता से मुक्त कर दिया गया। मन्त्रियों And परिवार के कुछ लोगों को छोड़कर अन्य कोई व्यक्ति King से नहीं मिल सकता था। सिद्धान्त Reseller में शोगून उसके मात्र सेवक थे, जबकि सत्यता यह भी कि शासन की समस्त शक्ति शोगून के पास थी और King मात्र दिखावे की वस्तु बनकर रह गया था। इस प्रकार की व्यवस्था 19वीं शताब्दी के Second चरण में भी चलती रही जिसकी मेईजी पुर्नस्थापना के द्वारा ही समाप्त Reseller जा सका और राज पद को Single बार फिर गरिमा के साथ राजतन्त्र के साथ जोड़ा गया।