जनसंचार की अवधारणा
द्वितीय विश्वFight के समय समाचार और मनोरंजन के प्रचुर प्रयोग ने इसकी प्रचारक क्षमता को भली-भँाति स्थापित कर दिया और फिर जनप्रचार ने वैचारिक मतामत तय करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाना आरम्भ कर दिया। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध और बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में बनते हुए नए समाज में पूँजीवाद के आगमन के साथ लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं का आविर्भाव हुआ। बाजार का विस्तार होने लगा, औद्योगीकरण और शहरीकरण होने लगा। पश्चिमी समाजशास्त्री- स्पेन्सर, वेबर, दुख्र्ाीम, पार्क आदि के चिन्तन में ग्रामीण समाज के शहरीकरण और जनचेतना के स्वर उभर कर आने लगे। इस आधुनिक समाज में Single ऐसा व्यापारिक वर्ग उभरने लगा, जिसे अपने उत्पाद की अधिकाधिक खपत करने की जरूरत होने लगी और इसके लिए यातायात और संचार के तत्कालीन संसाधन अपर्याप्त होने लगे। राजनीतिक दलों को लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अधिकाधिक लोगों के विचारों को अपने पक्ष में मोड़ने की जरूरत होने लगी, लोगों को अपने विचार समाज के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए या राजसत्ता तक पहुँचाने के लिए संचार के साधनों की Need होने लगी और इन Needओं की पूर्ति के लिए संचार के मुद्रण माध्यमो से लेकर कम्प्यूटर तक, तार से लेकर मोबाइल तक, रेडियो से लेकर टेलीविज़न तक अनेक संचार-संसाधन अत्यधिक द्रुतगति से विकसित होने लगे।
सूचना प्रौद्योगिकी के इस विकास ने संचार के क्षेत्र में Single क्रान्ति उपस्थित कर दी। जनसंचार की अवधारणा को समझने के लिए संचार प्रौद्योगिकी को जानने की भी Need है क्योंकि इस प्रौद्योगिकी के द्वारा ही जनसंचार सम्भव है। इस प्रौद्योगिकी के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों परिणाम हमें दिखार्इ देते हैं। इसने Single ओर स्थानों की दूरी को कम करने में, वैश्विक परिदृश्य को समझने में, ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों से परिचित होने में, राजनीतिक परिस्थितियों को समझने में, सांस्कृतिक ऐक्य और आर्थिक नीतियों को समझने में, जनमत के महत्व को समझने में, सामाजिक परिदृश्यों को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ – समाज की आशाओं को पंख दिये तो दूसरी ओर समाज के भय को भी प्रकट Reseller क्योंकि पोर्नोग्रॉफी जैसी विधा के प्रवेश के साथ संचार संसाधनों ने जनमन में हिंसा, क्रूरता, अश्लीलता,यौन अपराधादि की दुष्प्रवृत्ति को भी बल दिया, जिसके कारण जनसंचार के दुष्परिणाम भी प्रकट हुए।
जनसंचार का लक्ष्य
जनसंचार के माध्यमों का अधिकाधिक विस्तार व्यापार के कार्यों के लिए हुआ था। स्पश्ट है कि जनसंचार के माध्यमों का उपयोग सिर्फ राजनीतिक लक्ष्यों के लिए ही नहीं हुआ अपितु आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से भी हुआ। समाचार पत्रों द्वारा राजनीतिक प्रचार के साथ साथ व्यापारिक गतिविधियों को भी प्रसरित Reseller गया। आज विज्ञापनी दुनिया ने किस प्रकार Meansपक्ष को प्रभावित Reseller है, यह All को ज्ञात है। बाजार की शक्ति स्थापित करने में, उपभोक्तावाद को बढ़ावा देने में, पूँजी को केन्द्रीकृत करने में जनसंचार माध्यमों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
सामाजिक क्षेत्र पर तो जनसंचार का प्रभाव बहुत गहरा है। Single समय था जब विदेश जाने पर लोगों का अपने सम्बन्धियों से सम्पर्क नहीं हो पाता था या बमुश्किल होता था, फिर चिट्ठियों द्वारा यह सम्पर्क कुछ सम्भव हुआ, फिर तार, टेलीफोन, आदि के द्वारा सम्पर्क सूत्र बढ़ने लगे और अब र्इ-मेल,चैटिंग, टेली कॉन्फ्रेंसिंग आदि के द्वारा Single Second से बात करना इतना सहज हो गया है, जैसे आमने-सामने बात करना। यानी जनसंचार ने दुनिया को बहुत छोटा बना दिया है। हमारे दैनन्दिन जीवन में जनसंचार माध्यमों ने इतन सशक्त ढंग से प्रवेश कर लिया है कि अब उनके बिना जीवन की कल्पना सम्भव नहीं है। प्रात:काल से रात्रि तक अखबार, फोन, मोबाइल, कम्प्यूटर, इन्टरनेट, आदि हमारी पहुँच के दायरे में रहते हैं। Single मोबाइल से अब हमारा काम नहीं चलता, दो सिम वाले , मल्टी सिम वाले फोन आसानी से बाजार में उपलब्ध हैं ये माध्यम हम तक सूचना पहुँचाते हैं, हमे ज्ञान-विज्ञान के विविध Resellerों, क्षेत्रों से परिचित कराते हैं। हमारी अभिरुचियों, प्रस्तुतियों, तरीकों, शैलियों को भी जनसंचार ने प्रभावित Reseller है। जनसंस्कृति और आभिजात्य संस्कृतियों के अन्तराल को कम करने का कार्य जनसंचार ने Reseller है। जनसंस्कृति मूलत: वेशभूषा, परम्पराएँ, संगीत, नृत्य, लोककथाएँ आदि के आधार पर निधारित होती हैं, जनसंचार के संसाधनों ने स्थान-स्थान की जनसंस्कृति से हमारा परिचय कराया है। इससे Single ओर हमें अन्य संस्कृतियों के वैशिष्ट्य से परिचित कराकर हमारी सांस्कृतिक अभिरुचियों को विस्तृत Reseller है तो हमारी मूल संस्कृति को विकृत करने में भी योगदान Reseller है।
उदाहरणस्वReseller हम अपनी कुमाउँनी अथवा गढ़वाली संस्कृति को देखें तो पाते हैं कि अब कुमाउॅनी या गढ़वाली बोलने वालों की संख्या विशेषत: शहरी क्षेत्रों में बहुत कम होती जा रही है, हमारी पारम्परिक पोशाक भी अब बहुत कम या परिवर्तित Reseller में दिखार्इ देती है, हमारे अनेक व्यंजन अब जनमानस से लुप्त हो रहे हैं, लोकगीतों में भी परिवर्तन हुए है दूसरी ओर नये नये व्यंजन, नर्इ- नर्इ वेशभूषाएँ हमें देखने को मिलती हैं। स्पष्ट है कि जनसंचार के माध्यम विभिन्न संस्कृतियों को Single Second के नजदीक लाते हैं। ‘कल्चरल Single्सचेंज’ Word का प्रचलन जनसंचार की ही देन है। जनसंचार ने लोकसंस्कृति को विश्वमंच पर प्रस्तुत Reseller हैं तो दूसरी ओर अपसंस्कृति को भी लोकप्रिय बनाया है। जहाँ First लोग अपनी संस्कृति से ही जुड़ते थे, वैवाहिक सम्बन्धों में वे अपने दायरे से बाहर नहीं निकलते थे,आज भी हमें ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि अपने दायरे से बाहर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने वाले समाज द्वारा बहिष्कृत कर दिये जाते हैं, परन्तु अब यह दायरा धीरे-धीरे बढ़ रहा है और हम तमाम दूसरी संस्कृतियों को अपनाने लगे हैं। संक्षेप में जनसंचार के लक्ष्य इन क्षेत्रों से सम्बद्ध हैं-
जनसंचार परिक्षेत्र और विस्तार
जनसंचार के अभाव में व्यापार क्षेत्र का विकास नहीं हो सकता, जनता और सरकार के बीच सम्पर्क नहीं हो सकता, साहित्यसृजन नहीं हो सकता, समाजसेवा का कार्य सुचारु Reseller से नहीं हो सकता,राजनैतिक दल अपने मतामत से जनता को परिचित नहीं करा सकते, सामाजिक संस्थाएँ अपने क्रियाकलापों की सूचना जन तक नहीं पहुँचा सकतीं, सांस्कृतिक आदान-प्रदान सुचारु Reseller से नहीं हो सकता।