चिंतन क्या है?
- रॉस- चिंतन मानसिक क्रिया का भावनात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक वस्तुओं से संबंधित मानसिक क्रिया है।
- गैरेट- चिंतन Single प्रकार का अव्यक्त And अदृश्य व्यवहार होता है जिसमें सामान्य Reseller से प्रतीकों (बिम्बों, विचारों, प्रत्यय) का प्रयोग होता है।
- मोहसिन- चिंतन समस्या समाधान संबंधी अव्यक्त व्यवहार है।
चिंतन की उपरोक्त All परिभाषाओं को मुख्य Reseller से दो वर्गो में विभाजित करके समझा जा सकता है। First वर्ग में वे परिभाषाए आती है जिनके According चिंतन को Single ऐसी प्रक्रिया माना जाता है जिसमें बाहृय घटनाओं (भूत, वर्तमान तथा भविष्य की) का आन्तरिक या मानसिक चित्रण Reseller जाता है। हम उस वस्तु या घटना के बारे में भी सोच सकते है जिसे हमारे द्वारा कभी देखा तथा अनुभव न Reseller गया हो। Second वर्ग में ये परिभाषाए First वर्ग की परिभाषाओं से अधिक व्यवहारात्मक मानी जाती है क्योंकि ये चिंतन को Single ठोस क्रियात्मक आधार प्रदान करती हैं, उसे महज मानसिक क्रियाओं तथा अनुभूतियों का खिलौना न मानकर Single ऐसा साधन मानती है जिसके सहारे विभिन्न प्रकार के समस्या समाधान व्यवहार को दिशा और गति प्रदान करने का कार्य Reseller जा सकता है। चिंतन के इस स्वReseller का अध्ययन और मापन भी संभव हैं क्योंकि किसी का चिंतन कितना सार्थक है यह उसके समस्या समाधान व्यवहार के संदर्भ में अच्छी तरह जाना जा सकता है।
परन्तु अगर गहराई से और अधिक विश्लेषण Reseller जाए तो चिंतन की इन दोनों प्रकार की परिभाषाओं में कोई सैद्धान्तिक अन्तर नजर नहीं आता। दोनों का लक्ष्य Single ही है। मानसिक चित्रण और अनुभूति समस्या समाधान व्यवहार में सहायक होती है और समस्या समाधान व्यवहार मानसिक चित्रण या अनुभूतियों को जन्म देने वाला सिद्ध होता है। जब भी हम कोई समस्या हल करते हैं तो उसका विश्लेषण उसे ठीक से समझना तथा उसके हल के बारे में परिकल्पनाए बनाकर समाधान का रास्ता ढूॅढना- ये All बातें हमारे मन और मस्तिष्क में आंतरिक Reseller से चलती रहती है। हम विचारों के द्वारा वस्तुओं, व्यक्तियों, घटनाओं, प्रक्रियाओं आदि को अपने मन और मस्तिष्क में बिठाकर इधन-उधर इस तरह शतरंज की गोटियों की तरह आदान-प्रदान करते रहते हैं, ताकि हमारी समस्या के समाधान का कोई रास्ता निकल आए। इस तरह मानसिक चित्रण या मानसिक खिलवाड़ की प्रक्रिया और उसके द्वारा समस्या समाधान या और किसी प्रकार का प्रतिफल ये दोनों बातें अन्त: संबंधित है। इसलिए चिंतन की प्रक्रिया और उसके प्रतिफल को Single Second का अभिन्न अंग ही समझा जाना चाहिए तथा उनका मूल्यांकन चिंतन के परिणामस्वReseller होने वाले सम्पूर्ण लाभी के Reseller में ही Reseller जाना चाहिए। होता भी ऐसा ही है। कोई क्या सोच रहा है या कया सोच रहा था इसका पता उसके द्वारा बाहृय Reseller से किए जाने पर उसकी व्यवहार क्रियाओं द्वारा ही लगाया जा सकता हैं इस तरह समस्या समाधान या व्यवहार क्रियाओं के Reseller में किसी के द्वारा क्या Reseller गया और इसके लिए उसके मन और मस्तिष्क में First क्या कुछ घटित हुआ इन दोनों बातों का समन्वय ही चिंतन के मनोवैज्ञानिक Means And प्रकृति को समझने में Reseller जाना चाहिए। इस दृष्टि से चिंतन की Single व्यावहारिक परिभाषा के बारे में सोचा जाय तो उसमें चिंतन संबंधी मानसिक और आन्तरिक व्यवहार तथा इस व्यवहार का प्रतिफल इन दोनों ही बातों का समन्वय होना चाहिए।
इस प्रकार की परिस्थिति में निष्कर्ष Reseller से चिंतन को निम्न ढंग से परिभाषित करना हमारी दृष्टि से उपयुक्त सिद्ध हो सकता है: चिंतन से तात्पर्य हमारी उन व्यवहार क्रियाओं के प्राReseller से है जिसमें हम वस्तुओं, व्यक्तियों तथा घटनाओं का समस्या विशेष के समाधान हेतु अपने-अपने ढंग से मानसिक चित्रण या क्रियान्वयन (चिन्ह, प्रतीक आदि के Reseller में) करते रहते हैं।
चिंतन की प्रकृति
चिंतन के Means और उसकी परिभाषाओं के उचित विश्लेषण के माध्यम से हमें चिंतन की प्रकृति और उसके स्वReseller के बारे में निम्न निष्कर्ष निकालने में सहायता मिल सकती है।
- चिंतन All प्रकार से Single संज्ञानात्मक व्यवहार क्रिया है।
- चिंतन किसी उद्देश्य या लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर रहता है। इसका Means यह है कि दिवास्वप्न या कल्पना आदि उद्देश्यहीन संज्ञानात्मक क्रियाए चिंतन की परिधि में नहीं आती।
- चिंतन समस्या समाधान संबंधी व्यवहार हैं, आरम्भ से लेकर अन्त तक इसमें कोई न कोई समस्या विद्यमान रहती है। समस्या तब खड़ी होती है जब कोई निश्चित व्यवहार मनुष्य की अनुकूल Needओं को संतुष्ठ नहीं कर सकता। ये समस्याए चिंतन को उत्पन्न करती है और चिंतन उसके समाधान में सहायता प्रदान करता है।
- परन्तु समस्या समाधान संबंधी प्रत्येक व्यवहार चिंतन में नहीं आता जैसा कि मोहसिन ने अपनी परिभाषा में कहा है। चिंतन केवल आन्तरिक ज्ञानात्मक व्यवहार से संबंधित है। जब हम किसी स्थिति में कोई काम करके समस्या के समाधान का प्रयास करते है, उस समय हम चिंतन नहीं कर रहे होते हैं। चिंतन के समय बाहरी गत्यात्मक क्रियाए बन्द हो जाती है। यह Single अव्यक्त क्रिया है जो व्यक्ति के भीतर होती है।
- चिंतन में मानसिक खोज होती है, गत्यात्मक खोज नहीं। मान लो मुझे ताला खोलने के लिए चाबी की जरूरत पड़ गई। मैं अपनी जेब देखूॅगा जहॉ प्राय: चाबी रखी रहती है। परन्तु मुझे वहॉ चाबी नहीं मिलती। अब मैं यदि इधर-उधर दौड़ता हू तो यह गत्यात्मक खोज होगी। परन्तु यदि मैं मौन भाव से बैठकर सोचता हू कि मैंने उसे कहॉ रख दिया होगा तो यह मानसिक खोज होगी। समस्या समाधान में चिंतन का यही काम है। इससे समय और श्रम में बचत होती है।
- चिंतन जैसा कि गैरट ने अपनी परिभाषा में कहा है कि Single प्रतीकात्मक क्रिया है। चिंतन में समस्या का मानसिक समाधान सोचा जाता है। चिंतन में ठोस चीजों की बजाय प्रतीकों का प्रयोग होता है। उदाहरणस्वReseller किसी बिल्डिंग के निर्माण की योजना में इन्जीनियर प्रत्यन And भूल का बाहृय साधन नहीं अपनाता। वास्तव में वह अपनी चिंतन-क्रिया में विभिन्न मानसिक बिम्बों तथा प्रतीकों का प्रयोग करता है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुॅच सकते है कि चिंतन Single आन्तरिक ज्ञानात्मक प्रक्रिया है। उसका कोई निश्चित उद्देश्य होता है। इसमें किसी समस्या का समाधान निहित होता है। समस्या समाधान के लिए इसमें गत्यात्मक खोज नहीं होती, बल्कि विषयों, क्रियाओं तथा अनुभूतियों को मानसिक स्तर पर प्रयुक्त Reseller जाता है।
चिंतन के साधन
चिंतन की प्रक्रिया से जुड़े हुए तत्वों तथा काम में आने वाले साधनों को इन Reseller में समझा जा सकता है-
- बिम्ब- प्राय: बिम्ब चिंतन साधन के Reseller में प्रयुक्त किए जाते हैं। मानसिक चित्रों के Reseller में बिम्बों में व्यक्ति के उन वस्तुओं, दृश्यों तथा व्यक्तियों से संबंधित वयक्तिगत अनुभव सम्मिलित होते हैं जिन्हें वास्तविक Reseller में देखा हो या जिनके बारे में सुना या अनुभव Reseller हो। कई स्मृति बिम्ब होते हैं जो इन ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त अनुभवों पर आधारित होते हैं। कई कल्पना बिम्ब होते हैं जो कल्पनाओं पर आधारित होते है। अत: बिम्ब वास्तविक वस्तुओं, अनभूतियों तथा क्रियाओं के प्रतीक होते हैं।
- संप्रत्यय- संप्रत्यय भी चिंतन का Single महत्वपूर्ण साधान है। संप्रत्यय Single सामान्य विचार है जो किसी सामान्य वर्ग के लिए प्रयेफकत होता है और जो उसी सामान्य वर्ग की All वस्तुओं या क्रियाओं की किसी सामान्य विशेषता का प्रतिनिधित्व करता है। संप्रत्यय निर्माण या सामान्यीकरण से हमारे चिंतन प्रयासों में मितव्ययिता आती हैं। उदाहरणस्वReseller जब हम बन्दर Word सुनते हैं तो तत्काल हमारे मन में बन्दरों की सामान्य विशेषताएॅ ही नहीं घूम जाती बल्कि बन्दरों के संबंध में अपने व्यक्तिगत अनुीाव भी हमारी चेतन पटल पर आ जाते हैं और हमारे चिंतन को आगे बढ़ाते हैं।
- प्रतीक And चिन्ह- प्रतीक And चिन्ह वास्तविक विषयों, अनुभूतियों तथा क्रियाओं का प्रतिनिधित्व करते है। टे्रफिक की बत्तियॉ, रेल्वे सिग्नल, स्कूल की घंटियॉ, गीत, झण्डा, नारे-All प्रतीकात्मक अभिव्यक्तियॉ है। चिंतन में संप्रत्यय भी प्रतीकों And चिन्हों द्वारा अभिव्यक्त होते हैं। इन प्रतीकों And चिन्हों से चिंतन को बढ़ावा मिलता है। इनकी सहायता से तत्काल ज्ञान हो जाता है कि क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए- जैसे हरी झण्डी का हिलाना हमें बता देता है कि गाड़ी चलने वाली है और हमें गाड़ी में बैठ जाना चाहिए। इस प्रकार गणित में (+) का निशान बता देता है कि हमें क्या करना है। बोरिग लांगफील्ड तथा वैल्ड ने इस संबंध में महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाला है, प्रतीक And चिन्ह मोहरे And गोटियॉ है जिसमें द्वारा चिंतन का महान खेल खेला जाता है। इसके बिना यह खेल इतना अभूतपूर्व और सफल नहीं हो सकता।
- भाषा- भाषा केवल पारस्परिक सम्पर्क बनाने का ही साधन नहीं बल्कि चिंतन का भी साधन है। इनमें Word होते हैं जो प्रतीकात्मक होते हैं। कई बारे हम Wordों के स्थान पर इशारों का प्रयोग करते हैं। अंगूठा दिखाना, मुस्कुराना, भौहें चढ़ाना, कन्धे झठकना- आदि महत्वपूर्ण Means रखते हैं। चिंतन प्रक्रिया के लिए भाषा Single सशक्त And अत्यन्त विकसित साधन है।
चिंतन के प्रकार
प्रत्यक्ष बोधात्मक या मूर्त चिंतन-
यह चिंतन का अत्यन्त सरल Reseller है। प्रत्यक्ष बोध या अप्रत्यक्षीकरण ही इस प्रकार के चिंतन का आधार है। प्रत्यक्षीकरण व्यक्ति की संवेदनात्मक अनुभूमि की व्याख्या है। यदि Single बच्चे को सेब दिया जाए तो वह Single क्षण के लिए सोचता है और उसे लेने से इन्कार कर देता है। इस समय इसका चिंतन प्रत्यक्ष बोध पर आधारित है वह अपनी पूर्व अनुभूति के आधार पर संवेदना की व्याख्या कर रहा है। उसे हरे सेब के स्वाद की याद आ रही है जो उसे कुछ दिन First दिया गया था।
संप्रत्यात्मक या अमूर्त चिंतन-
प्रत्यक्ष बोधात्मक चिंतन की भॉति इसमें वास्तविक विषयों या क्रियाओं के बोध की Need नहीं होती। इसमें संप्रत्ययों And सामान्यीकृत विचारों का प्रयोग Reseller जाता है। इस प्रकार के चिंतन के विकास में भाषा का बहुत बड़ा हाथ होता है। यह चिंतन प्रत्यक्ष बोधात्मक चिंतन से बढ़िया माना जाता है, क्योंकि इससे समझने में सुविधा होती है तथा खोज And आविष्कारों में सहायता मिलती है।
विचारात्मक या तार्किक चिंतन-
यह ऊँचे स्तर का चिंतन है जिसका कोई निश्चित लक्ष्य होता है। सरल, चिंतन तथा इसमें पहला अन्तर तो यह है कि इसका उद्देश्य सरल समस्याओं की अपेक्षा जटिल समस्याओं को हल करना होता है। Second, इसमें अनुभूतियों को सरलतापूर्वक Single Second के लाभ जोड़ने की अपेक्षा समस्त संबंधित अनुभूतियों का पुनर्गठन करके उनमें से स्थिति का सामना करने के लिए या बाधाओं को दूर करने के लिए नए रास्ते निकाले जाते है। Third विचारात्मक चिंतन में मानसिक क्रिया प्रयत्न And भूल का यान्त्रिक प्रयास नहीं करती। Fourth विचारात्मक चिंतन में तर्क को सामने रखा जाता है। All संबंधित तथ्यों को तर्कपूर्ण क्रम में कठित करके उनसे प्रस्तुत समस्या का समाधान निकाला जाता है।
सृजनात्मक चिंतन-
इस चिंतन का मुख्य उद्देश्य किसी नई चीज का निर्माण करना है। यह वस्तुओं, घटनाओं तथा स्थितियों की प्रकृति की व्याख्या करने के लिए नएं सम्बन्धों की खोज करता है। यह पूर्व स्थापित नियमों से बाध्य नहीं होता। इसमें व्यक्ति स्वयं ही समस्या पैदा करता है और फिर स्वतन्त्रतापूर्वक उसके समाधान के साधन ढूॅढता है। वैज्ञानिकों तथा अनुसन्धानकर्ताओं का चिंतन इसी प्रकार का होता है।
अभिसारी चिंतन-
अभिसारी चिंतन की First व्याख्या पॉल गिलफर्ड ने की। अभिसारी चिंतन में किसी मानक प्रश्न का उत्तर देने में किसी सृजनात्मक योग्यता की Need नहीं होती। विद्यालयों में होने वाले अधिकांश कार्यो, बुद्धि आदि के परीक्षण में बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर देने में अभिसारी चिंतन का प्रयोग होता है। इस प्रकार के चिंतन में व्यक्ति Single पदानुक्रमिक ढंग से अनुसरण करते हुए चिंतन करता है। वस्तुत: यह चिंतन परंपरागत प्रकार की क्रमबद्ध विचार प्रक्रिया का परिणाम होता है, इसके द्वारा व्यक्ति अपनी सरल समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास करता है।
अपसारी चिंतन-
किसी समस्या के विभिन्न समाधानों या कार्य को करने के विभिन्न प्रयत्नों में से किसी Single उत्तम समाधान या प्रयत्न को चुना जाना अपसारी चिंतन है, अपसारी चिंतन अभिसारी चिंतन के विपरीत होता है क्योंकि अभिसारी चिंतन में किसी समस्या के समाधान के लिए कुछ निश्चित संख्या में समाधान उपस्थित होते हैं जबकि इस प्रकार के चिंतन में विभिन्न प्रकार के अनेकों समाधान होते हैं। अपसारी चिंतन में सृजनात्मकता तथा खुले प्रकार के प्रश्न तथा सृजनात्मकता सम्मिलित होती है।
क्रांतिक चिंतन-
क्रांतिक चिंतन, चिंतन का Single प्रकार होता है जिसमें किसी विषय-वस्तु, विषय या समस्या के समाधान में कौशलयुक्त संश्लेषण मूल्यांकन तथा पुर्नसंCreation सम्मिलित होते हैं। क्रांतिक चिंतन स्वनिर्देशित, स्व-अनुशासित, सुनियोजित प्रकार का चिंतन होता है।
चिंतन शक्ति का विकास
चिंतन सीखने-सिखानें की प्रक्रिया का Single महत्वपूर्ण तत्व है। हमारी सीखने की योग्यता हमारे ठीक चिंतन की योग्यता पर आधारित है। केवल वह व्यक्ति समाज में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है जो स्पष्ट, सावधानीपूर्ण And क्रमिक चिंतन कर सकता है। परन्तु व्यक्ति जन्म से चिंतक नहीं होता, व्यक्ति को चिंतन करना सीखना पड़ता है। चिंतन करना सीखना कोई आसान काम नहीं। इसके लिए उचित चिंतन की शैलियों तथा अभ्यास का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। यद्यपि प्रभावशाली तथा ठीक चिंतन करना सिखाने से संबंधित समस्त साधनों का History करना कठिन है परन्तु फिर भी निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देकर चिंतन प्रक्रिया को विकसित Reseller जा सकता है।
ज्ञान And अनुभूतियों की पर्याप्तता-
चिंतन बिना कोई पूर्वाधार के नहीं होता। चिंतन चिंतक के पूर्व ज्ञान तथा पूर्व अनुभवनों पर आधारित होता है। जितना अधिक ज्ञान होगा, उतना ही अधिक चिंतन होगा। गलत ज्ञान गलत चिंतन का कारण बन सकता है। अत: हमें पर्याप्त And उचित ज्ञान तथा अनुभूतियॉ ग्रहण करनी चाहिए। यह इन साधनों द्वारा Reseller जा सकता है:
- ज्ञान And अनुभव, संवेदनाओं तथा प्रत्यक्षीकरण से प्राप्त होते हैं। अत: यह महत्वपूर्ण है कि हम ठीक संवेदना ग्रहण कर उनकी ठीक तरह से व्याख्या कर सकें। अत: हमें ठीक निरीक्षण तथा ठीक व्याख्या करने का अभ्यास करना चाहिए।
- पर्याप्त ज्ञान प्राप्त करने के अवसर प्राप्त करने चाहिए। हमें स्वाध्याय, विचार-विमर्श तथा स्वस्थ And अभिप्रेरणात्मक क्रियाओं में भाग लेने हेतु सदैव तत्पर रहना चाहिए।
अभिप्रेरणा तथा लक्ष्य की निश्चितता-
पर्याप्त लचीलापन-
अनावश्यक बाधाए खड़ी होने तथा चिंतन के क्षेत्र के संकीर्ण हो जाने से चिंतन प्रक्रिया में बाधा पड़ती है। परन्तु इसका Means यह कभी नहीं कि हम अपने आपको पूरी स्वतंत्रता प्रदान करके कल्पना के संसार में अनावश्यक Reseller से विचरने दें। यदि समस्या समाधान में पूर्व अनुभवनों से सहायता न मिलती हो तो हमें नए संबंधें तथा नई संभावनाओं के प्रयोग की ओर ध्यान देना चाहिए।
इनक्यूबेशन-
चिंतन प्रक्रिया में प्रगति के लिए इनक्यूबेशन की क्रिया अत्यन्त सहायक सिद्ध हो सकती है। जब हम बहुत कोशिश करने पर भी किसी समस्या के समाधान में सफल नहीं होते तो उसे कुछ समय के लिए Single तरफ रख कर आराम करना चाहिए या किसी अन्य क्रिया में लग जाना चाहिए। इस दौरान हमारा अवचेतन उस समस्या पर विचार करता रहता है। जिस प्रकार इनक्यूबेशन से अंडे सेने का काम होता है, उसी प्रकार हमारे अवचेतन मन के प्रयासों द्वारा हमारी समस्याओं का समाधान निकल आता है। इस इनक्यूबेशन द्वारा हम अपने चिंतन में नया जीवन पैदा कर सकते हैं और थकान को दूर कर सकते हैं।
बुद्धि And विवेक-
उचित चिंतन की योग्यता बुद्धि में निहित है। उचित चिंतन के लिए बुद्धि का उचित विकास अत्यन्त आवश्यक है। विवके चिंतन प्रक्रिया को जारी करने का प्रभावशाली साधन है। यह समस्या समाधान के लिए अन्तदर्ृष्टि प्रदान करता है। अत: उचित चिंतन का विकास करने हेतु हमें सदैव बुद्धि विवके को इस कार्य हेतु Single आवश्यक साधन के Reseller में अपनाना चाहिए।
संप्रत्ययों तथा भाषा का उचित विकास-
यह तो First ही कहा जा चुका है कि संप्रत्यय, प्रतीक, चिन्ह, भाषा आदि चिंतन के महत्वपूर्ण साधन हैं। उनके उचित विकास के बिना चिंतन प्रभावशाली नहीं हो सकता। इन साधनों के विकास से चिंतन-प्रक्रिया को प्रेरणा मिलती है। गलत-संप्रत्ययों के अनुचित विकास से न केवल चिंतन की प्रगति में बाधा पड़ती है बल्कि अशुद्ध चिंतन And अपूर्ण धारणाओं का जन्म होता है। अत: हमें भाषा विकास में उचित संप्रत्ययों तथा भाषात्मक योग्यताओं के निर्माण की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए तथा इन्हें चिंतन हेतु समुचित उपयोग में लाने का अभ्यास करना चाहिए।
तर्क प्रक्रिया का ठीक होना-
तर्क प्रकिन पर प्रभाव पड़ता है। तर्कहीनता अशुद्ध चिंतन को जन्म देती है। तक शुद्ध चिंतन का विज्ञान है। अत: हमें सदैव तर्कपूर्ण चिंतन करने की आदत डालनी चाहिए।
उपर्युक्त बातों की ओर ध्यान देने के अतिरिक्त हमें अपने आपको ऐसे तत्वों से बचाने का भी प्रयास करना चाहिए जो चिंतन की प्रगति में बाधा डालते हैं। उनमें से Single तत्व हैं-भावात्मक उत्तजेना के प्रभाव में व्यक्ति अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठता है। संकीर्ण भावनाएॅ, भ्रम तथा अन्धविश्वासों के कारण चिंतन में बाधा पड़ती है। ठीक चिंतन के लिए इन तमाम बाधक तत्वों पर नियंत्रण रखना अत्यन्त आवश्यक है तभी हम उचित चिंतन की ओर प्रगति कर सकते हैं।